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History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): September 2022 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने 5 सितंबर, 2022 को महान स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ.चिदंबरम पिल्लई को उनकी 151वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • वह एक लोकप्रिय कप्पलोटिया थमिज़ान (तमिल खेवनहार) और "चेक्किलुथथा चेम्मल" के रूप में जाने जाते थे।

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): September 2022 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

  • जन्म: वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई (चिदंबरम पिल्लई) का जन्म 5 सितंबर, 1872 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के ओट्टापिडारम् में एक प्रख्यात वकील उलगनाथन पिल्लई और परमी अम्माई के घर हुआ था।
  • प्रारंभिक जीवन: चिदंबरम पिल्लई ने कैलडवेल कॉलेज, तूतीकोरिन से स्नातक किया। अपनी कानून की पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्होंने एक संक्षिप्त अवधि के लिये तालुका कार्यालय में क्लर्क के रूप में कार्य किया।
  • वर्ष 1900 में न्यायाधीश के साथ उनके विवाद ने उन्हें तूतीकोरिन में नए काम की तलाश करने के लिये बाध्य किया।
  • वर्ष 1905 तक वे पेशेवर और पत्रकारिता गतिविधियों में संलग्न रहे।

राजनीति में प्रवेश

  • चिदंबरम पिल्लई ने 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया।
  • वर्ष 1905 के अंत में चिदंबरम पिल्लई ने मद्रास का दौरा किया और बाल गंगाधर तिलक तथा लाला लाजपत राय द्वारा शुरू किये गए स्वदेशी आंदोलन से जुड़े।
  • चिदंबरम पिल्लई रामकृष्ण मिशन की ओर आकर्षित हुए और सुब्रमण्यम भारती तथा मांडयम परिवार के संपर्क में आए।
  • तूतीकोरिन (वर्तमान थूथुकुडी) में चिदंबरम पिल्लई के आने तक तिरुनेलवेली ज़िले में स्वदेशी आंदोलन ने गति प्राप्त करना शुरू नहीं किया था।

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

  • 1906 तक चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी (SSNCO) के नाम से एक स्वदेशी मर्चेंट शिपिंग संगठन स्थापित करने के लिये तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का समर्थन हासिल किया।
    • उन्होंने स्वदेशी प्रचार सभा, धर्मसंग नेसावु सलाई, राष्ट्रीय गोदाम, मद्रास एग्रो-इंडस्ट्रियल सोसाइटी लिमिटेड और देसबीमना संगम जैसी कई संस्थाओं की स्थापना की।
  • चिदंबरम पिल्लई और शिवा को उनके प्रयासों हेतु तिरुनेलवेली स्थित कई वकीलों द्वारा सहायता प्रदान की गई, जिन्होंने स्वदेशी संगम या 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक' नामक एक संगठन का गठन किया।
  • तूतीकोरिन कोरल मिल्स की हड़ताल (1908) की शुरुआत के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन ने एक द्वितीयक चरित्र प्राप्त कर लिया।
  • गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह (1917) से पहले भी चिदंबरम पिल्लई ने तमिलनाडु में मज़दूर वर्ग का मुद्दा उठाया था और इस तरह वह इस संबंध में गांधीजी के अग्रदूत रहे।
  • चिदंबरम पिल्लई ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर 9 मार्च, 1908 की सुबह बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने और स्वराज का झंडा फहराने के लिये एक विशाल जुलूस निकालने का संकल्प लिया।
  • कृतियाँ: मेयाराम (1914), मेयारिवु (1915), एंथोलॉजी (1915), आत्मकथा (1946), थिरुकुरल के मनकुदावर के साहित्यिक नोट्स के साथ (1917)), टोल्कपियम के इलमपुरनार के साहित्यिक नोट्स के साथ (1928)
  • मृत्यु: चिदंबरम पिल्लई की मृत्यु 18 नवंबर, 1936 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस कार्यालय तूतीकोरिन में हुई।

अंबेडकर सर्किट

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने अंबेडकर सर्किट नामक एक विशेष पर्यटक सर्किट की घोषणा की जिसमें डॉ. भीम राव अंबेडकर से संबंधित पाँच प्रमुख स्थलों को शामिल किया गया है।

परिचय

  • सरकार ने पहली बार वर्ष 2016 में अंबेडकर सर्किट या पंचतीर्थ का प्रस्ताव रखा था, लेकिन हाल ही में इस योजना की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
  • सरकार द्वारा घोषित पर्यटन सर्किट के पाँच शहर हैं:
    • जन्मभूमि- मध्य प्रदेश के महू में अंबेडकर का जन्मस्थान।
    • शिक्षा भूमि- लंदन में वह स्थान जहाँ वह अपने अध्ययन काल में रहते थे।
    • दीक्षा भूमि- नागपुर में वह स्थान जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया।
    • महापरिनिर्वाण भूमि- दिल्ली में उनके निधन का स्थान।
    • चैत्य भूमि- मुंबई में उनके अंतिम संस्कार का स्थान।

महत्त्व

  • पर्यटन पर ध्यान केंद्रित करना
    • इसका उद्देश्य दलित समुदाय के अलावा पर्यटकों को आकर्षित करना है, जो ज़्यादातर इन स्थानों पर तीर्थ यात्रा के लिये आते हैं।
    • यात्रा में भोजन, परिवहन और स्थल पर प्रवेश शामिल होगा।
  • क्षेत्र का विकास
    • विशेष सर्किट के निर्माण से सरकार को बुनियादी ढाँचे, सड़क और रेल संपर्क एवं आगंतुक सुविधाओं सहित विषय से संबंधित सभी स्थलों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलती है।

अंबेडकर सर्किट से संबंधित मुद्दे

  • सरकार के स्थानीय और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना
    • विभिन्न दलित विद्वानों और अंबेडकरवादियों ने तर्क दिया कि इसमें शामिल पाँच स्थल अंबेडकर की वास्तविक विरासत के साथ न्याय नहीं करते हैं ये केवल सरकार के "स्थानीय और राष्ट्रवादी" छवि का तुष्टिकरण करते हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण स्थलों को मान्यता

  • आलोचकों का दावा है कि कई अन्य स्थल हैं जिन्हें अभी तक मान्यता प्राप्त नहीं हुई जैसे:
  • महाराष्ट्र का रायगढ़ ज़िला, जहाँ डॉ. अंबेडकर ने महाड सत्याग्रह का नेतृत्व किया था,
  • पुणे, जहाँ उन्होंने यरवदा जेल में महात्मा गांधी के साथ दलित वर्गों के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल के विषय पर पहली बार बातचीत की थी।
  • इसी का परिणाम दलित वर्गों की ओर से डॉ अंबेडकर द्वारा और उच्च जाति के हिंदुओं की ओर से मदन मोहन मालवीय द्वारा हस्ताक्षरित पूना पैक्ट था।
  • श्रीलंका, जहाँ उन्होंने एक बौद्ध सम्मेलन में भाग लिया, के बारे में कहा जाता है कि इसने उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने के लिये प्रभावित किया
  • कोल्हापुर, जहाँ मार्च 1920 में एक और महान समाज सुधारक छत्रपति शाहूजी महाराज ने डॉ अंबेडकर को भारत में उत्पीड़ित वर्गों के सच्चे नेता के रूप में घोषित किया।

अन्य पर्यटन सर्किट

  • सरकार ने वर्ष 2014-15 में स्वदेश दर्शन योजना के तहत 15 पर्यटन सर्किटों की पहचान की थी।
  • रामायण और बौद्ध सर्किट के अलावा अन्य में तटीय सर्किट, डेजर्ट सर्किट, इको सर्किट, हेरिटेज, नॉर्थ ईस्ट, हिमालयन, सूफी, कृष्णा, ग्रामीण, आदिवासी और तीर्थंकर सर्किट शामिल हैं।
  • ट्रेन सहयोग के मामले में रामायण, बौद्ध और पूर्वोत्तर सर्किट पहले से ही सक्रिय हैं, जबकि चौथा अंबेडकर सर्किट होगा।

मोहनजोदड़ो: यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल

चर्चा में क्यों?

पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग ने चेतावनी दी है कि सिंध प्रांत में भारी वर्षा से मोहनजोदड़ो के विश्व धरोहर  का दर्जा खतरे में पड़ गया है।

विरासत स्थल को खतरा

  • 16 और 26 अगस्त, 2022 के बीच, मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक खंडहरों में रिकॉर्ड 779.5 मि.मी. वर्षा हुई, जिसके परिणामस्वरूप "स्थल को काफी नुकसान हुआ और स्तूप गुंबद की सुरक्षा दीवार सहित कई दीवारें आंशिक रूप से गिर गईं" है।
    • मुनीर क्षेत्र, स्तूप, महान स्नानागार और इन खंडहरों के अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
  • यह आशंका है कि मोहनजोदड़ो के खंडहरों को विश्व विरासत सूची से हटाया जा सकता है, इसलिये सिंध के अधिकारियों ने स्थल पर संरक्षण और बहाली के कार्य पर तत्काल ध्यान देने का आह्वान किया है।

मोहनजोदड़ो के प्रमुख बिंदु

  • मोहनजोदड़ो का स्थल, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'मृतकों का टीला' सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के महत्त्वपूर्ण स्थलों में से एक है।
    • सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल पाकिस्तान-ईरान सीमा के पास बलूचिस्तान में सुत्कागेनडोर से लेकर उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के आलमगीरपुर तक और जम्मू के मांडा से लेकर महाराष्ट्र के दाइमाबाद तक फैले एक बड़े क्षेत्र में पाए गए हैं।
    • भारत में हड़प्पा सभ्यता के अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल गुजरात में लोथल, धौलावीरा और राजस्थान में कालीबंगा हैं।
  • हड़प्पा के साथ-साथ मोहनजोदड़ो भी कांस्ययुगीन (3300 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व) शहरी सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध स्थल है।
  • यह लगभग 3,300 ईसा पूर् और 1,300 ईसा पूर्व के बीच सिंधु घाटी में विकसित हुआ, इसका 'परिपक्व' चरण 2,600 ईसा पूर्व से 1,900 ईसा पूर्व तक था।
  • दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में सभ्यता का पतन जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों से माना जाता है
  • मोहनजोदड़ो की खुदाई वर्ष 1920 में शुरू हुई थी और वर्ष 1964-65 तक चरणों में जारी रही, अभी भी केवल एक छोटे से हिस्से की खुदाई की गई है।
  • मोहनजोदड़ो की प्रागैतिहासिक प्राचीनता की खोज वर्ष 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रखाल दास बनर्जी ने की थी।
  • यह स्थल ईंट से बने फुटपाथ, विकसित जल आपूर्ति, जल निकासी, शौचालयों, विशाल अन्नागार और स्नानागार एवं स्मारक भवनों के साथ परस्पर समकोण पर काटती हुई सड़कों तथा विस्तृत नगर नियोजन प्रणाली के लिये प्रसिद्ध है।
  • अपने चरमोत्कर्ष और अत्यधिक विकसित सामाजिक संगठन के साथ इसके अनुमानित निवासियों की संख्या  30,000 से 60,000 के मध्य थी
  • कराची से 510 किलोमीटर उत्तर पूर्व और सिंध में लरकाना से 28 किलोमीटर दूर बिना पकी ईंट के विशाल शहर के खंडहरों को वर्ष 1980 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।

यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल

परिचय

  • विश्व धरोहर/विरासत स्थल का आशय एक ऐसे स्थान से है, जिसे यूनेस्को द्वारा उसके विशिष्ट सांस्कृतिक अथवा भौतिक महत्त्व के कारण सूचीबद्ध किया गया है।
  • विश्व धरोहर स्थलों की सूची को ‘विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार किया जाता है, यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर समिति’ द्वारा इस कार्यक्रम को प्रशासित किया जाता है।
  • यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित अभिसमय’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।

सूचीबद्ध स्थलों की संख्या:

  • इसके 167 सदस्य देशों में लगभग 1,100 यूनेस्को सूचीबद्ध स्थल हैं।
  • वर्ष 2021 में यूनाइटेड किंगडम में 'लिवरपूल मैरीटाइम मर्केंटाइल सिटी' को "संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को व्यक्त करने वाली विशेषताओं के अपरिवर्तनीय नुकसान" के कारण विश्व विरासत सूची से हटा दिया गया था।
  • वर्ष 2007 में यूनेस्को पैनल ने ओमान में अरब ओरिक्स अभयारण्य को अवैध शिकार और निवास स्थान के क्षरण पर चिंताओं के बाद और वर्ष 2009 में जर्मनी के ड्रेसडेन में एल्बे घाटी को एल्बे नदी के पार वाल्डस्च्लोसेचेन रोड ब्रिज के निर्माण के बाद इस सूची से  हटा दिया ।

भारत के स्थल

  • भारत में कुल 3691 स्मारकों और स्थल हैं। इनमें से 40 यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित हैं
  • जिसमें ताजमहल, अजंता और एलोरा की गुफाएँ शामिल हैं। विश्व धरोहर स्थलों में असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जैसे प्राकृतिक स्थल भी शामिल हैं।
  • गुजरात में हड़प्पा शहर धोलावीरा भारत के 40वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में।
  • रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल था।
  • कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान, सिक्किम को भारत का पहला और एकमात्र "मिश्रित विश्व विरासत स्थल" के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • वर्ष 2022 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये विश्व विरासत स्थल के रूप में विचार करने के लिये होयसल मंदिरों के पवित्र समागम को नामित किया।

यूनेस्को (UNESCO)

परिचय
  • यूनेस्को को वर्ष 1945 में स्थायी शांति के निर्माण के साधन के रूप में ‘मानव जाति में बौद्धिक और नैतिक एकजुटता’ विकसित करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांँस में स्थित है।
यूनेस्को की प्रमुख पहलें
  • मानव व जीवमंडल कार्यक्रम
  • विश्व विरासत कार्यक्रम
  • यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क नेटवर्क
  • यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क
  • एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेज़ इन डेंजर

चोल राजवंश 

चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु आइडल विंग CID ने वर्ष 1960 के दशक में तमिलनाडु के नरेश्वर सिवन मंदिर से चुराई गई और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न संग्रहालयों में रखी छह चोल-युग की कांस्य मूर्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिये कदम उठाए हैं।
  • इंडो-फ्रेंच इंस्टीट्यूट, पुद्दुचेरी के पास उपलब्ध छवियों की मदद से मूर्तियों को हाल ही में अमेरिका में सफलतापूर्वक खोजा गया था, जिसने वर्ष 1956 में नौ कांस्य मूर्तियों का दस्तावेजीकरण किया था। उनमें से सात मूर्ति पाँच दशक पहले चोरी हो गई थी।
  • संस्थान ने त्रिपुरानथकम, तिरुपुरासुंदरी, नटराज, दक्षिणमूर्ति वीणाधारा और संत सुंदरर की प्राचीन पंचलोहा मूर्तियों की छवियाँ उनकी पत्नी परवई नटचियार के साथ प्रदान की थीं।
मध्यकालीन चोल राजवंश
परिचय
  • चोलों (8-12वीं शताब्दी ईस्वी) को भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक के रूप में याद किया जाता है।
  • चोलों का शासन 9वीं शताब्दी में शुरू हुआ जब उन्होंने सत्ता में आने के लिये पल्लवों को हराया। इनका शासन 13वीं शताब्दी तक पाँच से अधिक शताब्दियों तक चलता रहा।
  • मध्यकाल चोलों के लिये पूर्ण शक्ति और विकास का युग था। यह राजा आदित्य प्रथम और परान्तक प्रथम जैसे राजाओं द्वारा संभव हुआ।
  • यहाँ से राजराज चोल और राजेंद्र चोल ने तमिल क्षेत्र में राज्य का विस्तार किया। बाद में कुलोतुंग चोल ने मज़बूत शासन स्थापित करने के लिये कलिंग पर अधिकार कर लिया।
  • यह भव्यता 13वीं शताब्दी की शुरुआत में पांड्यों के आगमन तक चली।

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प्रमुख सम्राट

  • विजयालय: चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की थी। उसने 8वीं शताब्दी में तंजौर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और पल्लवों को हराकर शक्तिशाली चोलों के उदय का नेतृत्व किया।
  • आदित्य प्रथम: आदित्य प्रथम विजयालय साम्राज्य का शासक बनने में सफल हुआ। उसने राजा अपराजित को हराया और साम्राज्य ने उसके शासनकाल में भारी शक्ति प्राप्त की। उन्होंने वदुम्बों के साथ पांड्या राजाओं पर विजय प्राप्त की एवं इस क्षेत्र में पल्लवों की शक्ति पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • राजेंद्र चोल: यह शक्तिशाली राजराजा चोल का उत्तराधिकारी बना। राजेंद्र प्रथम गंगा तट पर जाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्हें लोकप्रिय रूप से गंगा का विक्टर कहा जाता था। इस काल को चोलों का स्वर्ण युग कहा जाता है। उनके शासन के बाद राज्य में व्यापक पतन देखा गया।

प्रशासन और शासन

  • चोलों के शासन के दौरान पूरे दक्षिणी क्षेत्र को एक ही शासी बल के नियंत्रण में लाया गया था। चोलों ने निरंतर राजशाही में शासन किया।
  • विशाल राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था जिन्हें मंडलम के रूप में जाना जाता था।
  • प्रत्येक मंडलम के लिये अलग-अलग गवर्नर को प्रभारी रखा गया था।
  • इन्हें आगे नाडु नामक ज़िलों में विभाजित किया गया था जिसमें तहसील शामिल थे।
  • शासन की व्यवस्था ऐसी थी कि चोलों के युग के दौरान प्रत्येक गाँव स्वशासी इकाई के रूप में कार्य करता था। चोल कला, कविता, साहित्य और नाटक के प्रबल संरक्षक थे; प्रशासन को मूर्तियों और चित्रों के साथ कई मंदिरों और परिसरों के निर्माण में देखा जा सकता है।
  • राजा केंद्रीय प्राधिकारी बना रहा जो प्रमुख निर्णय लेता था और शासन करता था।

वास्तुकला

  • चोल वास्तुकला (871-1173 ई.) मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली का प्रतीक था।
  • उन्होंने मध्ययुगीन भारत में कुछ सबसे भव्य मंदिरों का निर्माण किया।
  • बृहदेश्वर मंदिर, राजराजेश्वर मंदिर, गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर जैसे चोल मंदिरों ने द्रविड़ वास्तुकला को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। चोलों के बाद भी मंदिर वास्तुकला का विकास जारी रहा।

चोल मूर्तिकला के प्रमुख बिंदु

  • चोल मूर्तिकला का एक महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन तांडव नृत्य मुद्रा में नटराज की मूर्ति है।
    • हालाँकि सबसे पहले ज्ञात नटराज की मूर्ति, जिसे ऐहोल में रावण फड़ी गुफा में खोदा गया है, प्रारंभिक चालुक्य शासन के दौरान बनाई गई थी, चोलों के शासन के दौरान मूर्तिकला अपने चरम पर पहुँच गई थी।
  • 13वीं शताब्दी में चोल कला के बाद के चरण का चित्रण भूदेवी, या पृथ्वी की देवी को विष्णु की छोटी पत्नी के रूप में दर्शाने वाली मूर्ति द्वारा किया गया है। वह अपने दाहिने हाथ में एक लिली पकड़े हुए आधार पर एक सुंदर ढंग से मुड़ी हुई मुद्रा में खड़ी है, जबकि बायाँ हाथ भी उसी तरफ लटका हुआ है।
  • चोल कांस्य प्रतिमाओं को विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमाओं में से एक माना जाता है।

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आचार्यविनोबा भावे 


चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

जन्म

  • विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था।
  • उनके पिता और माता का नाम क्रमशः नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी था।

संक्षिप्त परिचय

  • आचार्य विनोबा भावे एक अहिंसक और स्वतंत्रता के कार्यकर्त्ता, समाज सुधारक और आध्यात्मिक शिक्षक थे।
  • महात्मा गांधी के एक उत्साही अनुयायी होने के नाते विनोबा ने अहिंसा और समानता के अपने सिद्धांतों का पालन किया।
  • उन्होंने अपना जीवन गरीबों और दलितों की सेवा हेतु समर्पित कर दिया तथा उनके अधिकारों के लिये खड़े हुए

पुरस्कार और मान्यता

  • विनोबा भावे वर्ष 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे।
  • उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न (भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से भी सम्मानित किया गया था।

गांधी के साथ जुड़ाव

  • विनोबा भावे ने 7 जून. 1916 को गांधी से मुलाकात की और आश्रम में निवास किया।
  • गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिये समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया।
  • आश्रम के एक अन्य सदस्य मामा फड़के ने उन्हें विनोबा (एक पारंपरिक मराठी विशेषण जो महान सम्मान का प्रतीक है) नाम दिया था।
  • 8 अप्रैल, 1921 को विनोबा भावे, गांधी के निर्देशों के तहत वर्धा में एक गांधी-आश्रम का प्रभार लेने के लिये वर्धा गए
  • वर्धा में अपने प्रवास के दौरान वर्ष 1923 में उन्होंने मराठी में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म' का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  • उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया।
  • उन्होंने खादी का कताई करने वाला चरखे का उपयोग किया और दूसरों से ऐसा करने का आग्रह किया, जिसके परिणामस्वरूप कपड़े का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ।
  • वर्ष 1932 में, विनोबा को छह महीने के लिए धूलिया जेल भेज दिया गया था क्योंकि उन पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया गया था।
    • कारावास के दौरान उन्होंने साथी कैदियों को 'भगवद गीता' के विभिन्न विषयों को मराठी में समझाया।
  • धूलिया जेल में उनके द्वारा गीता पर दिये गए सभी व्याख्यानों को एकत्र किया गया और बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।
  • वर्ष 1940 में उन्हें भारत में गांधीजी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिये खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
  • 1920 और 1930 के दशक के दौरान भावे को कई बार बंदी बनाया गया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिये 40 के दशक में पांँच साल की जेल की सज़ा दी गई थी।
  • उन्हें आचार्य (शिक्षक) की सम्मानित उपाधि दी गई थी।

सामाजिक कार्यों में भूमिका

  • उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की दिशा में अथक प्रयास किया।
  • गांधीजी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर उन्होंने उन लोगों का मुद्दा उठाया जिन्हें गांधीजी द्वारा हरिजन कहा जाता था।
  • उन्होंने गांधीजी के सर्वोदय शब्द को अपनाया जिसका अर्थ- "सभी के लिये प्रगति" (Progress for All) है।
  • इनके नेतृत्व में 1950 के दशक के दौरान सर्वोदय आंदोलन ने विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें प्रमुख भूदान आंदोलन है।

भूदान आंदोलन

  • वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया।
  • 19 वीं 1951 को पोचमपल्ली गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान करने का अनुरोध किया।
  • विनोबा ने गाँव के जमींदारों को आगे आने और हरिजनों को संरक्षित करने के लिये कहा।
  • उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की।
  • यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।
  • यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया।
  • वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया।
  • इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई।

धार्मिक कार्य

  • उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिये कई आश्रम स्थापित किये, जो विलासिता रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देता है।
  • महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1959 में महिलाओं के लिये ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की स्थापना की।
  • उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की।

साहित्यक रचना

  • उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति आदि शामिल हैं।

मृत्यु

  • वर्ष 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में उनका निधन हो गया।
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FAQs on History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): September 2022 UPSC Current Affairs - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई कौन हैं?
उत्तर. वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई एक भारतीय राजनेता और देश के पूर्व वित्तमंत्री थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी।
2. अंबेडकर सर्किट क्या है?
उत्तर. अंबेडकर सर्किट भारत के नगर चिदंबरम में स्थित है और यह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। यह सर्किट बांधने वाले द्वारा डिज़ाइन किया गया है और अंबेडकर जयंती और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों के लिए प्रयोग होता है।
3. मोहंजोदड़ो क्या है और यह कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तर. मोहंजोदड़ो एक प्राचीन सभ्यता का प्रमुख स्थल है जो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित है। यह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है। मोहंजोदड़ो में एक प्राचीन सभ्यता की खोजों ने मानव इतिहास के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान किया है।
4. चोल राजवंश की महत्वपूर्णता क्या है?
उत्तर. चोल राजवंश तमिलनाडु में स्थापित एक महत्वपूर्ण राजवंश था। यह राजवंश मध्यकालीन भारतीय इतिहास में व्यापक रूप से मशहूर है। चोल राजवंश ने विजयपुरम, तंजावुर, उड़यपुरम, और कावेरीपट्टणम जैसे नगरों को आपूर्ति का केंद्र बनाया था। वे व्यापार, नौकायन, कला, साहित्य, शिल्प, और धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए जाने जाते हैं।
5. आचार्य विनोबा भावे कौन थे और उनका महत्व क्या है?
उत्तर. आचार्य विनोबा भावे एक महान सामाजिक कार्यकर्ता, अद्यतन मार्गदर्शक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने भारतीय आंतरिक स्वराज्य आंदोलन के दौरान गांधी जी के साथ मिलकर प्रमुख भूमिका निभाई। उनका महत्वपूर्ण कार्य लैंड रिफॉर्म और भूमि संरक्षण के क्षेत्र में था। वे सत्याग्रह, अहिंसा, और सर्वोदय के सिद्धांतों के पक्षधर थे और भारतीय समाज में गांधीवादी आदर्शों के प्रचारक रहे।
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