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एवरीडे साइन्स (Everyday Science)(भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

एवरीडे साइन्स (Everyday Science)

-  मरुस्थलीय पौधों में पत्तियों की अपेक्षा काँटे होते है
पौधों की पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) क्रिया होती है, जिसमें पौधों से पानी वाष्प के रूप में बाहर निकलता है। रेगिस्तानी भागों में पानी की कमी रहती है। अतः पौधों में एक अनुकूलता उत्पन्न हो जाती है, जिससे पत्तियों के स्थान पर काँटे निकल आते है। इन काँटों से वाष्पोत्सर्जन बहुत ही कम होता है, और पौधा रेगिस्तान में जीवित रहता है।

- बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक तत्त्व
बीजों के अंकुरण के लिए नमी, आक्सीजन और उचित तापक्रम की आवश्यकता होती है। अंकुरण के लिए प्रकाश आवश्यक नहीं होता है।

- अम्लीय वर्षा (Acid rain)
वर्षा के जल में जब वायु में उपस्थित प्रदूषणकारी पदार्थ मिल जाते है, तब इस वर्षा को अम्लीय वर्षा कहते है। अम्लीय वर्षा में सल्फर डाइ-आक्साइड मुख्य घटक होता है जो पानी के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाता है। 1972 में स्वीडन में पहली बार अम्लीय वर्षा हुई थी।

- कुछ जन्तुओं की आँखें रात को चमकती है
रात में आँखों का चमकना बिल्ली कुल (फेलिडी) और अनेक रात्रिचर प्राणियों का एक विशिष्ट गुण है। आँखों पर प्रकाश पड़ने के कारण दिखाई देने वाली आँखों की यह चमक शीशे जैसी तथा आँखों में पीछे की ओर स्थित ‘टेपिटम ल्यूसिडम“ परत के कारण होती है। यह परत ग्वानिन तथा राइबोफ्लेविन के सघन क्रिस्टलों, जिंक यौगिकों, कोलाजन तंतुओं और लिपिड की बूँदों की बनी होती हैं। ‘टेपिटम ल्यूसिडम’ परत प्रकाश को परावर्तित करके, प्राणियों को कम प्रकाश में भी रात्रि में देखने के अनुकूल बनाती है।

- शरीर पर वायुमंडल के दबाव का अनुभव नहीं होता है
हमारे शरीर में अन्य पदार्थों की तुलना में पानी की मात्र सबसे अधिक होती है। पास्कल के नियमानुसार द्रव पदार्थ द्वारा उत्पन्न दाब सभी दिशाओं में समान रूप से होती है। शरीर के अन्दर के तरल पदार्थों द्वारा पड़ने वाली दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर होती है। हम ज्यों-ज्यों ऊपर जाते है, त्यों-त्यों वायुमंडलीय दाब कम होने के कारण शरीर के दाब का अनुभव होने लगता है। अंतरिक्ष यात्री के रहने के लिए इसीलिए दाबमुक्त कमरे की व्यवस्था की जाती है।
जब हम ऊपर की ओर जाते है, तो निम्न घटनाएं होती हैं-
(1) 7.2 किमी. की ऊंचाई पर जाने पर रक्त में घुली नाइट्रोजन बुलबुले के रूप में निकलती है, क्योंकि वायुमंडलीय दाब कम हो जाता है। (2) 16 किमी. की ऊंचाई पर जाने पर फेफड़ों में आक्सीजन का अभाव आरंभ हो जाता है (3) अधिक ताप और विकिरण के कारण कोशिकाओं का कार्य और संतुलन बिगड़ जाता है।

- रात में पेड़ के नीचे सोना हानिकारक है
श्वसन के दौरान पौधे रात्रि में आक्सीजन लेते है और कार्बन डाइ-आक्साइड बाहर निकालते है। इस प्रकार पेड़ के नीचे आक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे हमें श्वसन के लिए उचित मात्र में आक्सीजन नहीं मिल पाता है। इसलिए रात में पेड़ के नीचे नहीं सोना चाहिए।

- डबलरोटी का फुलना
डबलरोटी बनाते समय उसमें सोडियम बाई-कार्बोनेट डाला जाता है। सोडियम बाई-कार्बोनेट से कार्बन डाइ-आक्साइड निकलती है। इसी कार्बन डाइ-आक्साइड के कारण डबलरोटी फूलती है।

- कानों के अभाव में साँप सुनता है
साँप बिना कान के हवा से आने वाली ध्वनि तरंगों को नहीं सुन पाता है, किन्तु वह त्वचा द्वारा पृथ्वी से उत्पन्न कम्पन को महसूस करता है। इस प्रकार साँप को सुनाई देता है। संपेरे बीन बजाते समय उसे इधर-उधर घुमाते है तो साँप भी घूमता है। वह बीन की ध्वनि से प्रभावित नहीं होता बल्कि अपनी 
सुरक्षा करने की कोशिश करता है। इसलिए बीन के साथ-साथ सिर हिलाता है। 

- पौधे सूर्य के प्रकाश की ओर झुकते है
पौधों के प्रकाश की ओर झुकने की क्रिया को प्रकाश-अनुवर्तन ;च्ीवजवजतवचपेउद्ध कहते है। इसकी खोज चाल्र्स डार्विन ने की थी। पौधों का यह झुकाव आक्सिन ;।नगपदद्ध नामक हार्मोन के कारण होता है।

- डकार आना
खाने के समय कुछ वायु पेट के अन्दर चली जाती है। भोजन नली में छाती और पेट के बीच एक वाल्व होता है, जो आहार निगलते समय खुल जाता है तथा अन्दर जाने के बाद तुरन्त बंद हो जाता है। भोजन पचने से भी कुछ गैस पेट में बनती हैं। जब ये गैसे पेट में काफी मात्र में इकट्ठा हो जाती है तो मस्तिष्क से इन गैसों को बाहर निकालने का एक संदेश आता है, जिससे पेट की मांसपेशियाँ कड़ी हो जाती है और वाल्व क्षण भर के लिए खुल जाता है, फलस्वरूप गैस बाहर निकलती है। यही डकार है।

- साँप का विष हमारे शरीर पर प्रभाव डालता है
साँप के विष दो प्रकार के होते हैं। पहला- तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालने वाला जिसे न्यूरोटाक्सिक कहते है। इसका प्रभाव समूचे तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है, जिसमें व्यक्ति कभी-कभी चिल्लाता है। झाड़-फूंक वाले ऐसी स्थिति में तरह-तरह की किंवदंतियों के सहारे रोगी को परेशान करते है। जबकि मंत्र से विष कभी कम नहीं होता। दूसरे प्रकार का विष हीमोग्लोबिन को नष्ट करता है, जिसे हीमोटाक्सिक कहते है। कोबरा तथा करैत में इसी प्रकार का विष पाया जाता है। इसमें व्यक्ति की मृत्यु एक घंटे के अन्दर हो जाती है। इस प्रकार के विष से व्यक्ति चिल्लाता नहीं है।
 

जीवाणु विज्ञान में महत्वपूर्ण खोज

• 1683

ल्यूवेनहाॅक द्वारा जीवाणु की खोज।

• 1827- 1926

जे- एल-  लिस्टर ने एन्टिसेप्टिक सर्जरी की खोज की।

• 1843- 1910

राबर्ट कोच ने हैजा तथा तपेदिक के जीवाणुओं की खोज किया तथा रोग का जर्म सिद्धान्त बताया।

• 1833

क्लेब्स (Klebs) ने डिप्थिरिया का जीवाणु खोजा।

• 1853- 1938

एच- ग्राम (H. Gram) ने ग्राम अभिरंजक की खोज की।

• 1863- 1933

कालमेट (Calmette) ने बी- सी- जी-  (B.C.G.) टीका की खोज की।

• 1851- 1931

डब्ल्यू- एम-  बिजरनिक (B.C.G.)  ने जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बताया।

• 1812- 1892

लुई पाश्चर ने रेबीज का टीका तथा दूध के पाश्चराइजेशन की खोज की।


- बिच्छू के काटने से मनुष्य मर सकता है
बिच्छू एक भयंकर किस्म का जीव है। ये एकांत जीवन व्यतीत करना पसंद करते है। घर में यह जूतों के अन्दर, बिस्तरों एवं कालीनों के नीचे रहता है। बिच्छू की अधिकाँश जातियाँ हानि-रहित होती है। इनका डंक पीड़ादायक होता है पर वह घातक नहीं होता। लेकिन इजिप्शियन (Egyptian) बिच्छू व लीयुरुस (Leiurus) जैसी उष्णकटिबंधीय जातियाँ बहुत खतरनाक हो सकती है और कभी-कभी मृत्यु का कारण बन सकती है। बिच्छू का जहर हृदय के स्नायुओं तथा सीने की माँसपेशियों का पक्षाघात कर देता है। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा मैक्सिको में साँप के काटने की अपेक्षा बिच्छू के डंक मारने से अधिक लोग मरते है।

- मादा जन्तुएं अपने बच्चों को पहचान लेती हैं
वे जन्तु जिनमें बच्चे की देख-रेख माताएँ करती है, माँ का बच्चे को पहचानना बहुत जरूरी है ताकि उसका सम्बन्ध टूट न जाये। माताएँ अपनी चार ज्ञानेन्द्रियों में से एक का प्रयोग करके अपने बच्चे को पहचान लेती है। ये चार ज्ञानेन्द्रियाँ है- गंध, ध्वनि, दृष्टि तथा स्पर्श। अधिकांश स्तनपायी जन्तु, जैसे- हिरन, भेड़, घोड़े व सील मछलियाँ अपने बच्चों को गंध द्वारा पहचानती है। इन जन्तुओं में जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी माँ उसके पास नाक ले जाकर साँस ऊपर खींचकर उसकी गंध की पहचान कर लेती है। उसके बाद से जब भी माँ अपने बच्चे को तलाश करना चाहती है, तभी वह अपने आस-पास के बच्चों की साँस खींचकर उस समय तक सूँघती रहती है जब तक उसका बच्चा न मिल जाये।
पक्षियों में ध्वनि द्वारा बच्चे को पहचानना अधिक प्रचलित है। प्रत्येक मादा पक्षी की अपनी विशिष्ट ‘‘माँ की पुकार“ (Mother call) होती है, जिसे उसका बच्चा अण्डे से बाहर निकलते ही पहचान लेता है।
कुछ जीव-जन्तुओं के बच्चों के लिए आकार तथा डील-डौल का भी महत्व होता है। बच्चों को पहचानने में स्पर्श की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

- पृथ्वी पर सबसे पहले पक्षी का उद्भव
पृथ्वी पर सर्वप्रथम आर्किओप्टेरिक्स नामक पक्षी का जन्म हुआ था। इसका विकास रेंगने वाले (Reptiles) जन्तुओं से हुआ था। इसलिए आर्किओप्टेरिक्स की उससे काफी समानता थी। आज के पक्षियों के विपरीत इस पक्षी के दाँत थे और हड्डियों से युक्त पूंछ थी।

- कृत्रिम हृदय प्रत्यारोपण
कृत्रिम हृदय प्रत्यारोपण हार्ट लंग मशीन (Heart lung machine) की सहायता से किया जाता है। यह मशीन रक्त को शिराओं से धमनियों में इस तरह पम्प करती है कि उसे हृदय से होकर नहीं जाना पड़ता। यह मशीन रक्त का आक्सीजनीकरण भी करती है, जिससे रक्त को फेफड़ों से होकर गुजरना नहीं पड़ता। इस प्रकार हृदय की गति को रोककर चार घण्टे तक शल्यक्रिया की जा सकती है। प्रथम हृदय प्रत्यारोपण डा. क्रिश्चियन बर्नार्ड द्वारा 3 दिसम्बर, 1967 को दक्षिण अफ्रीका के ग्रुटशुर अस्पताल में किया गया था। यह 55 वर्षीय लुइस वाशकांस्की के हृदय को बदलकर किया गया था।

- इलेक्ट्रोएंसेफलोग्राफी (E. E. G.) 
इलेक्ट्रोएंसेफलोग्राफी एक बायो-मेडिकल प्रक्रम है जो मनुष्य तथा अन्य जीव जन्तुओं के मस्तिष्क में पैदा होने वाली विद्युतधारा को अंकित करता है। इसकी खोज जर्मनी के हांस वर्गर ने की थी। इसके द्वारा मस्तिष्क रोगों का निदान किया जाता है। मिरगी तथा असामान्य उपापचयों (Metabolic) सम्बन्धी रोगों का अध्ययन भी E. E. G. द्वारा किया जाता है।

- ई. सी. जी. (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम)
यह हृदय के धड़कनों के कारण पैदा हुए विद्युत कम्पनों का ग्राफ बनाने की एक विधि है। हृदय का प्रत्येक भाग अपनी स्वतन्तंत्र विद्युत लहरों का प्रतिरूप बनाता है। इन कम्पनों के आरेख को मशीन द्वारा रिकार्ड करके इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम बनाया जाता है। यह ग्राफ हृदय के हालात एवं गतिविधियों के विषय में उपयोगी सूचनायें देता है, जिससे हृदय की बीमारियों को दूर करने में सहायता मिलती है।

- रोधक्षमता (Immunity)
शरीर की बीमारी के विभिन्न कीटाणुओं, जैसे- बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ के खिलाफ लड़ने और बीमारी के बाद ठीक होने की प्राकृतिक क्षमता को रोधक्षमता कहते है। हमारे शरीर की श्वेत रक्तकणिकाएं ही शरीर को विभिन्न रोगों से रोधक्षमता प्रदान करती है। रोधक्षमता दो प्रकार की होती हैं- प्रथम, विशेष या अर्जित रोधक्षमता ( यह रोग के हमले के बाद स्वतन्तंत्र रूप से सक्रिय होती है) दूसरी, सामान्य रोधक्षमता अर्थात् जो सूक्ष्मजीवों को मारती है या उनकी वृद्धि को रोकती है। आजकल ऐसे अनेक टीके बनाए गये है, जो काली खांसी, डिप्थीरिया, मीजल्स, टिटनेस, टाइफाइड, पोलियो, टी.बी. इत्यादि बीमारियों के विरुद्ध रोधक्षमता पैदा करती हैं।

- कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) 
कृत्रिम गर्भाधान की क्रिया में नर जीव के शुक्राणुओं को मादा के गर्भाशय में किसी कृत्रिम प्रक्रिया से प्रविष्ट कराया जाता है। इसका उपयोग अच्छी नस्ल के जानवर को पैदा करने के लिये किया जाता है। पशुओं में अच्छी नस्ल के वीर्य को कृत्रिम गर्भाधान हेतु सुरक्षित रखने के लिये क्रायोप्रिजर्वेशन विधि से द्रव नाइट्रोजन में रखा जाता है। आजकल यह विधि महिलाओं के लिये भी प्रयोग होने लगी है। जिन महिलाओं के पति अपनी प्रजनन क्षमता खो बैठते है, उनकी पत्नियों के लिये कृत्रिम गर्भाधान का तरीका प्रयोग मेें लाया जा रहा है।

- पेसमेकर (Pacemaker)
जब कभी हृदय की धड़कन तेज एवं धीमी होती है तो इसका हमारे तंत्रिका तंतंत्र पर प्रभाव पड़ता है। ये तंत्रिका बेगस एवं सिम्पैथेटिक होते है। बेगस तंत्रिका हृदय द्वारा अधिक काम किये जाने के फलस्वरूप धड़कनों को कम करती है। सिम्पैथेटिक तंत्रिका उत्तेजना के समय हृदय की धड़कन की गति को बढ़ाती है। आजकल रोगियों के लिए कृत्रिम पेसमेकर भी बना लिए गये है। ये पेसमेकर हृदय को आवश्यक विद्युत सन्देश देते रहते है। यह बैटरी से संचालित होती है और छः या उससे अधिक वर्षों तक चल सकती है। 

- मेनिंजाइटिस रोग
यह भंयकर रोग है, जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊपर की झिल्ली में सूजन आ जाती है। इस रोग में यदि रोगी का तुरन्त प्रारम्भिक उपचार नहीं किया जाये तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। यह नाइसीरिया मेनिंजाइटिडीस ;छमपेेमतपं उमदपदहपजपकपेद्ध नामक जीवाणु से होता है। यह सामान्यतः बच्चों को अधिक होता है। लेकिन जब यह फैलता है तो शीघ्र ही महामारी का रूप ले लेता है, और तब इससे सभी प्रभावित हो सकते है। यह रोग उन लोगों को अधिक होता है, जो सुअर, घोड़े की लीद वाले जगहों तथा गन्दी बस्तियों में रहते है। यह रोग सर्वप्रथम जापान में फैला था। इसीलिये इसे जापानी मेनिंजाइटिस  भी कहते है।

- जैव-युद्ध (Biological- warfare)
आजकल इस युद्ध की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है। जैव युद्ध का अर्थ है- शतंत्रुओं में बीमारियाँ पैदा करने वाले जीवाणुओं (बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ) को पहुँचाना, और उन्हें रोगग्रस्त करके मौत के घाट उतारना। यह बीमारी केवल व्यक्तियों में ही नहीं, बल्कि पशुओं, पौधों, प्राकृतिक संसाधनों इत्यादि में भी फैला दी जाती है। 

 

हानिकारक कीट

कुछ रोग फैलाने वाले कीट है-

• घरेलू मक्खी (Housefly)

आमातिसार (Amoebic dysentery), हैजा (Cholera)] अतिसार (Diarrhoea), सूजाक (Gonorrhoea)]कोढ़ (Leprosy)] टायफाॅइड (Typhoid)], तपेदिक  (Tuberculosis) ।

• मच्छर द्वारा (Mosquitoes)

मलेरिया (Malaria), फील-पाँव (Elephantiasis), दण्डकज्वर (Dengue fever) तथा पीतज्वर (Yellow fever) आदि।

• चूहा

प्लेग (Bubonic plague) जैसे महामारी को फैलाती है।

• सी-सी मक्खी (Tse-Tse fly)

अफ्रीका के घातक निद्रारोग (Sleeping sickness) को यही फैलाती है।

• सैण्डफ्लाई (Sandfly)

यह कालाजार तथा फोड़े का रोग (Oriental sore) फैलाती है।

• खटमल (Bed bug)- 

यह टाइफस रिलैप्सिंग ज्वर (Typhus relapsing fever) तथा कोढ़ (Leprosy) फैलाने का काम करता है।

• शरीर की जूँ (Louse)- 

यह भी टाइफस, टेन्च ज्वर (Trench fever)तथा रिलैप्सिग (Relapsing fever) जैसे घातक रोगों को फैलाती है।


कैंसर
शरीर में अनियन्त्रिात कोशिकाओं के बढ़ने की क्रिया को ही कैंसर कहते है। जब शरीर के किसी भी भाग में कोशिकाएं अनियन्त्रिात रूप से बढ़ने लगती है तो शरीर के उस भाग में रसौली या ट्यूमर (Tumor) बन जाता है। यही ट्यूमर जब फटता है तो वह भयानक कैंसर बन जाता है। कैंसर कई प्रकार के होते हैं-त्वचा कैंसर, स्तन कैंसर (महिलाओं में), फेफडे़ का कैंसर, हड्डियों तथा रक्त का कैंसर इत्यादि। रक्त कैंसर को ल्यूकेमिया कहा जाता है। इसमें श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है और लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम हो जाती है। कैंसर का इलाज तीन प्रकार से किया जाता है, प्रारम्भिक काल में रोग का पता लगाकर शल्यक्रिया द्वारा, दूसरा एक्स किरणों तथा रेडियो-किरणों द्वारा, तीसरा लेसर द्वारा।

दिल का दौरा
सामान्यतः दिल का दौरा का अर्थ है ”रक्त की कमी के कारण इसके किसी हिस्से का विनाश हो जाना। इस विनाश या टूट-फूट के कई कारण है,- जैसे हृदय को रक्त देने वाली धमनियों के अन्दर चिकनाई जमा हो जाना, उनका रास्ता संकुचित हो जाना, जिससे ये धमनियाँ उचित मात्रा में हृदय को रक्त नहीं दे पाती। चिकनाई युक्त पदार्थ, जैसे घी, मक्खन तथा तले पदार्थ ज्यादा खाने से ऐसा होता है। जब इन धमनियों में कहीं रुकावट आ जाती है तो दिल में रक्त की कमी से दर्द होने लगता है, इसे एन्जाइना पेक्टोरिस कहते है। यदि हृदय के अन्दर रक्त का संचार रुक जाए तो वह हिस्सा निष्क्रिय हो जाता है। इस हिस्से को शरीर पुनः सक्रिय नहीं कर पाता है; इसी स्थिति को दिल का दौरा पड़ना कहा जाता है।

बाल सफेद होने के कारण
हमारे बालों का काला रंग मेलानिन (Melanin) नामक पिगमेंट के कारण होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है इस पिगमेंट का बनना कम होता जाता है, फलतः बाल सफेद होने लगते है। युवावस्था में बालों का सफेद होना एक पैतृक गुण (Hereditary) है। साथ ही उचित पोषक तत्वों की कमी के कारण, सदमा, चिंता और शोक के कारण भी बाल सफेद हो जाते है, क्योंकि इन परिस्थितियों में मेलानिन का बनना कम हो जाता है।
खाना खाने के बाद हमें नींद आने लगती है
सामान्यतः जब हम भोजन करते है तब भोजन की पाचन क्रिया के लिये पेट को रक्त की अधिक आवश्यकता होती है। भोजन के बाद शरीर के खून का बहुत सारा हिस्सा पेट को प्रवाहित हो जाता है, परिणामस्वरूप मस्तिष्क में रक्त की मात्रा कुछ समय के लिये कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में मस्तिष्क की क्रियाशीलता मंद हो जाती है। मस्तिष्क की क्रियाशीलता कम होना ही सुस्ती या नींद का कारण है। मस्तिष्क में रक्त की उचित मात्रा पहुँचने में समय लगता है। वास्तव में यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें शरीर को आराम की आवश्यकता होती है। इसीलिये भोजन करने के बाद थोड़ी देर आराम करना बहुत जरूरी होता है।

फोड़े-फुंसियों में मवाद (Pus) पड़ जाता है
शरीर के किसी भी कटे हुए हिस्से पर या फोडे़-फुंसियों में बहुत से रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया होते है, इन बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए हमारे शरीर के रक्त में उपस्थित श्वेत रक्त कण इनसे युद्ध करते है। जैसे ही शरीर पर बैक्टीरिया हमला करते है, श्वेत रक्तकण इन बैक्टीरिया को मारने के लिये घेरा डाल लेते है, इस लड़ाई में बहुत से बैक्टीरिया मारे जाते है और बहुत से श्वेत कण भी नष्ट हो जाते है। ये मरे हुए बैक्टीरिया और नष्ट हुए श्वेत कण ही पस या मवाद के रूप में बाहर निकलते है। यह लड़ाई तब तक चलती रहती है जब तक सभी बैक्टीरिया समापत नहीं हो जाते। जब तक युद्ध चलता रहता है, तब तक पस भी निकलता रहता है।

प्लास्टिक सर्जरी
प्लास्टिक सर्जरी त्वचा से सम्बन्धित एक ऐसी शल्यक्रिया है, जिसके द्वारा पैदायशी अंग-दोष, दुर्घटना में विकृत हुये अंग या चेहरे की बदसूरती को दूर किया जाता है। प्लास्टिक सर्जरी की क्रिया में शरीर की स्वस्थ त्वचा को काटकर प्रभावित अंगों में आरोपित किया जाता है। चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए की जाने वाली सर्जरी को कास्मेटिक सर्जरी या ब्यूटी सर्जरी कहते है। 
 

एड्स (AIDS)

एड्स ऐसी बीमारी है, जिसमें  मनुष्य की रोगरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है। सर्वप्रथम जून 1981 में एड्स का प्रथम रोगी कैलिफोर्निया में  पाया गया और 1982 मेें  इस रोग का नाम एड्स दिया गया।

हमारे शरीर में विषाणु, जीवाणु तथा अन्य रोग कारकों से बचने के लिए प्रतिरक्षा तंत्रा (Immune system) होता है। यह इम्यून सिस्टम श्वेत रक्त कणिकाएं, टी कोशिका (T. cell), जो थाइमस में  परिपक्व होती है तथा बी कोशिका (B. cell), जो अस्थि मज्जा में  परिपक्व होती है, के द्वारा नियंत्रित होता है। इनमें  से किसी भी कोशिका की कमी से रोगरोधी क्षमता हीन हो जाती है। यही स्थिति एक एच. आई. वी. संक्रमण द्वारा उत्पन्न होती है जिसे एड्स के नाम से जाना जाता है।

एड्स होने के कई कारण है, जैसे  - समलैगिक संबंध, अप्राकृतिक यौन प्रक्रिया, वेश्यावृत्ति, ऋतुकाल में  स्थापित यौन सम्बन्ध, मादक द्रव्यों  का सेवन, बिना समुचित सफाई के रक्त का आदान-प्रदान, तथा इन्ट्रावेनस इन्जेक्शन के लिए एक ही सुई को स्टेरिलाइज किये बिना दूसरे व्यक्ति में प्रयोग, आदि। इनसे रोग का जन्म और प्रसार होता है।

अफ्रीका संभवतः एड्स का जन्म स्थान और युगान्डा एड्स की राजधानी है। एक सर्वे के अनुसार 80%  अफ्रीकी लोग वेश्याओं  के सम्बन्ध में  आते है। भारत में  इस समय 5 लाख लोगों  में  एड्स का संक्रमण है, तथा सन् 2000 तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 50 लाख एड्स के रोगी होंगे। एड्स का परीक्षण इलीसा तथा डिप्सटीक विधि से किया जाता है। इसमें  डिप्सटीक विधि काफी उपयुक्त तथा कम खर्चीली है। डिप्सटीक विधि की खोज मिल्टन टाम ने किया है।

हाल में  सं. रा. अमेरिका की फेडरल सेन्टर्स आफ फार- डिजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने ओरामोर नामक विधि के तहत एड्स की जाँच के लिए विशेष तौर पर बनाये गये एक पैड को मुँह में  दो मिनट तक रखा जाता है। यह पैड लार व थूक को सोख लेता है। इस पैड को एक विशेष पात्र में  रखकर जाँच प्रयोगशाला में  भेजा जाता है जहाँ इसकी जाँच कर पता लगाया जाता है कि उसमें  एच. आई. वी. विषाणु है या नहीं। इस पैड की जाँच की वही विधि अपनायी जाती है जो रक्त के जरिये एड्स की जाँच में  अपनायी जाती है। यह परंपरागत विधि की तरह कारगर और बहुत सस्ता है।

 
सल्फा औषधि (Sulfa drugs)
सल्फा औषधियाँ मानव निर्मित एक प्रकार के रासायनिक पदार्थ है जो बैक्टीरिया मारने या उसकी वृद्धि को नियन्त्रिात करने के काम आती है। इस औषधि में गन्धक के परमाणु होते है। इन्हें जब बैक्टीरिया खाते हैं तो फ़ोलिक अम्ल का निर्माण नहीं कर पाते, फलस्वरूप बैक्टीरिया का प्रजनन रुक जाता है। इस प्रकार शरीर रोग से मुक्त हो जाता है। अनेक रोगों, यथा- न्यूमोनिया, मेनिंजाइटिस इत्यादि के लिये ये दवायें काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई है।

रेगिस्तान में जानवर और पौधे जीवित रहते है
रेगिस्तानी क्षेत्रा में पानी बहुत कम होता है, चारों तरफ रेत ही रेत होती है। यहाँ दिन में बहुत गर्मी तथा रात ठंडी होती है। यहाँ के जानवर गर्मी से बचने के लिए दिन में झाड़ियों के नीचे छिप जाते है, जब कभी थोड़ी वर्षा होती है, तभी पौधे व जानवर अपने अन्दर पानी जमा कर लेते है। रेगिस्तानी जहाज के नाम से जाना जाने वाला ऊंट अपने कूबड़ में चर्बी इकट्ठा कर लेता है, जिससे वह कई दिनों तक बिना पानी पिये रह सकता है। रेगिस्तानी पौधे के रूप में झाड़ी एवं कैक्टस मिलते है। इनमें पत्तियाँ कम और काँटे अधिक होते है। इनका तना बहुत मोटा एवं गूदेदार होता है, जिससे ये पौधे अपने तने में काफी पानी जमा रखते है- इसी प्रक्रिया से पौधे एवं जानवर रेगिस्तान में जीवित रहते है।

सर्प अपनी केंचुली बदलते है
सभी सर्पों का शरीर जीवन भर वृ़िद्धशील होता है। इस शारीरिक वृद्धि के कारण उनकी त्वचा छोटी पड़ जाती है। अतः यह अपनी बाहरी त्वचा एक निर्धारित समय के बाद छोड़ देता है। इसी को साँप का केंचुली बदलना कहते है। साँप एक से तीन महीने की अवधि में केंचुली बदलता है। जब सर्प को अपनी केंचुली बदलनी होती है तब वह अपने मुँह को किसी खुरदरी जगह से रगड़ता है। इस प्रक्रिया से उसका केंचुली बदलना आसान हो जाता है।
 

अकशेरुकीय जन्तु

अकशेरुकीय जन्तु को निम्नलिखित संघों में विभक्त किया गया है -

 संघ

गुण  

उदाहरण

1. प्रोटोजोआ

(a) सूक्ष्मदर्शी, एककोशिक अथवा अकोशिक

अमीबा, पैरामीशियम, युग्लीना, ट्रिपैनोसामा इत्यादि

 

(b)  प्रायः जलीय, कुछ परजीवी

 
 

(c)  गति के अंग पादाभ, कशाभिका या पक्ष्माभिकायें

 

2. पोरीफेरा

(a) जलीय प्राणी

स्पंज, साइकोम, मायोनिका, स्पंजिला इत्यादि

 

(b)  शरीर स्तरीय

 
 

(c) शरीर पर असंख्य छिद्र

 

3. सीलेन्ट्रेटा

(a)  प्राणी जलीय, द्विस्तरीय

हाइड्रा, फाइसेलिया, आरेलिया इत्यादि

 

(b)  शरीर में थैले जैसी गुहा

 

4. प्लैटीहैल्मैन्थीज

(a)  त्रितरीय शरीर

टीनिया, लिनेरिया, सिस्टोसोमा

 

(b)  प्रायः अंतः परजीवी

 

5. निमैटोहैल्मैन्थीज

(a) लंबे तथा बेलनाकार

एस्केरिस

 

(b)  आहारनली पायी जाती है

 

6. एनिलिडा

(a) जल व थल पर पाये जाते हैं

बेरीस, केंचुआ, जोंक

 

(b)  गति के लिये शूक तथा चूषक पाये जाते हैं

 
 

(c) तंत्रिका रज्जू उपस्थित

 

7. आर्थोपोडा

(a) यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है

केंकड़ा, मच्छर, बिच्छू, मकड़ियां इत्यादि

 

(b)  प्राबी जल व थल दोनों में पाये जाते हैं

 
 

(c) शरीर सिर व धड़ में विभक्त होता है

 
 

(d)  अधिकांशतया बहिर्कंकाल पाया जाता है

 

8. मोलस्का

(a) कई प्राणी उभयधारी होते हैं

पाइला, यूनियो कौड़ी, सीप इत्यादि

 

(b) शरीर कवच से ढका होता है

 

9. इकाइनोडर्मेटा

(a)  जलीय वास स्थान

स्टार फीस, समुद्री खीरा, ब्रिस्टल स्टार इत्यादि

 

(b)  त्वचा कांटेदार

 


लहसुन के उपयोग के फायदे
लहसुन में एलियम (Allium) नामक एंटीबायोटिक होता है, जो बहुत से रोगों से छुटकारा दिलाने में फायदेमंद है। इसके उपयोग से रक्तदाब कम हो जाता है, पेट की गैस एवं अम्लता में कमी आती है, तथा यह अनेक हृदय रोगों के लिये काफी उपयोगी है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप कर देने से विषैले कीड़ों की जलन कम हो जाती है। इसके सेवन से सर्दी, जुकाम ठीक हो जाता है, तथा यह गठिया रोग में भी काफी उपयोगी है।

कुत्ते का पागल होना
कुत्ते में पागलपन एक वायरस के द्वारा होता है। यह वायरस किसी दूसरे जानवर या वायु द्वारा उसके शरीर में पहँच जाता है। ये विषाणु (Virus) चार से छः सप्ताह के भीतर अपना असर दिखाना शुरू करते है। जब यह वायरस पूरे शरीर से फैलकर मस्तिष्क पर हमला करता है तो कुत्ता उत्तेजित हो जाता है और गुर्राना एवं भौकना शुरू कर देता है। इस बीच यह किसी को भी काट सकता है। इसी स्थिति को कुत्ते का पागलपन कहा जाता है। इस स्थिति में पहुँचने पर कुत्ता तीन से पाँच दिन में मर जाता है। पागल कुत्ते के काटने से मनुष्य में हाइड्रोफोबिया रोग हो जाता है।

जानवर जुगाली करते रहते है
जानवरों के पेट की संरचना बड़ी जटिल होती है। इनका पेट चार हिस्सों में बंटा होता है। निगला हुआ भोजन पेट के एक भाग से होकर दूसरे भाग में जाता है, प्रत्येक भाग दूसरे भाग से बड़ा होता है। जुगाली की प्रक्रिया से ही यह भोजन एक भाग से दूसरे भाग में जाता है। इसीलिये भोजन को सुपाच्य बनाने के लिए जानवर जुगाली करते है। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जहाँ गाय, भेड़, बकरी इत्यादि में ऊपर में दाँत नहीं होते, वहाँ इनके मसूढ़े बहुत सख्त होते हैं।

दूध
दूध को सम्पूर्ण आहार माना जाता है। इसमें वे सभी पौष्टिक पदार्थ मौजूद होते है, जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता है। इसके महवपूर्ण तत्व पानी, शक्कर, प्रोटीन, चिकनाई, विटामिन और खनिज इत्यादि है। गाय के दूध में पानी 87.2%, चिकनाई 3.7%, प्रोटीन 3.5%, चीनी 4.9% और शेष खनिज लवण तथा विटामिन होते हैं।

बुखार
एक स्वस्थ आदमी के शरीर का तापमान 98.40 फारेनहाइट या 37.20 सेंटीग्रेड होता है। जब कभी किसी आदमी के शरीर में कोई रोग या विकार पैदा हो जाता है, या कुछ कीटाणु आक्रमण कर देते है, तो शरीर की कोशिकाओं में पायरोजन (Pyrogens) पैदा हो जाते है। इनके कारण शरीर के तापमान का नियंत्रण करने वाले केन्द्रों का निश्चित क्रम बदल जाता है। फलस्वरूप शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। तापमान के बढ़ने की इस प्रक्रिया को ही बुखार कहा जाता है। बुखार एक ऐसी शारीरिक प्रक्रिया है जो बीमारी के कीटाणुओं को समाप्त करने में हमारी सहायता करती है। बुखार के समय हमारे शरीर की प्रक्रियाऐं एवं अंग तेजी से काम करने लगते है। बुखार में शरीर के अन्दर हारमोन, एंजाइम और रक्त कोशिकाएँ पैदा होने की दर बहुत अधिक हो जाती है। ये सभी बुखार पैदा करने वाले कीटाणुओं का विनाश करने में जुट जाते हैं।

कस्तूरी
हिरण-परिवार का एक मृग जिसमें कस्तूरी पाई जाती है उसे ही कस्तूरी मृग कहा जाता है। कस्तूरी मृग साइबेरिया से लेकर हिमालय तक के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में यह जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है। कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें तीखी गन्ध होती है। मृग के पेट की त्वचा के नीचे नाभि के पास एक छोटा सा थैला होता है, जिसमें कस्तूरी का निर्माण होता है। कस्तूरी से उत्तम प्रकार के साबुन, इत्रा एवं अन्य सुगन्धित पदार्थ बनाये जाते है। 

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FAQs on एवरीडे साइन्स (Everyday Science)(भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. जीव विज्ञान क्या है?
उत्तर. जीव विज्ञान एक शाखा है जो जीव जगत् के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करती है, जिसमें संरचना, विकास, व्यवहार, जीवों की प्रकृति और उनके पर्यावरण में उनके संघर्षों का अध्ययन शामिल होता है। यह जीवन की विविधता को समझने में मदद करती है और जीवों के संघर्षों के बारे में ज्ञान प्रदान करती है।
2. सामान्य विज्ञान क्या है?
उत्तर. सामान्य विज्ञान विभिन्न प्राकृतिक, तकनीकी, और वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन करने वाली एक शाखा है। यह हमें विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के बारे में ज्ञान प्रदान करती है, जैसे कि भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, आदि। सामान्य विज्ञान के अध्ययन से हमें पृथ्वी और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
3. UPSC का मतलब क्या होता है?
उत्तर. UPSC का मतलब होता है "यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन"। यह भारतीय संघीय सेवा परीक्षा (Indian Civil Services Examination) आयोजित करने वाला संगठन है। UPSC के माध्यम से विभिन्न सरकारी संघ, प्रशासनिक और विभागीय सेवाओं के लिए पदों की भर्ती की जाती है। यह परीक्षा भारतीय नागरिकों को सिविल सेवा में सेवा करने का अवसर प्रदान करती है।
4. जीव विज्ञान क्या-क्या शामिल करता है?
उत्तर. जीव विज्ञान किसी भी जीवित वस्तु के बारे में विज्ञान का अध्ययन है। इसमें जीवों का विवरण, संरचना, उनकी विकास और जीवों का व्यवहार शामिल होता है। जीव विज्ञान उनकी संरचना, जीवन की प्रक्रियाओं, प्रजनन, पोषण, जीवों के रोग और उनके पर्यावरण में उनके संघर्षों का अध्ययन करता है।
5. सामान्य विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण शाखाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर. सामान्य विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण शाखाएं निम्नलिखित हैं: - भौतिकी: यह विज्ञान की शाखा वस्तुओं के गुणों, उनके आकार, रंग, ध्वनि, ऊर्जा, आदि का अध्ययन करती है। - रसायन विज्ञान: यह शाखा रासायनिक पदार्थों के गुणों, उनके संरचना, उत्पादन, रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करती है। - जीव विज्ञान: यह विज्ञान की शाखा जीव जगत् के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करती है, जैसे कि संरचना, विकास, व्यवहार, जीवों की प्रकृति आदि। - भूगोल: यह शाखा पृथ्वी के भौतिक और जीवनीय पहलुओं का अध्ययन करती है, जैसे कि भूकंप, जलवायु, धरती के आवासीय प्राणी, पौधे, आदि। - आइतिहासिक विज्ञान: यह विज्ञान की शाखा मानव समाज और मानव सभ्यता के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करती
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