गुप्त साम्राज्य (275.550 ई.)
- साहित्य, स्थापत्य तथा कला के क्षेत्रा में अभूतपूर्व उपलब्धि के कारण गुप्त काल को भारत का क्लासिकी (Classical) युग तथा कुछ इतिहासकारों ने स्वर्णिम युग माना है।
- कुषाणों के बाद गुप्त लोगों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार पर अपना आधिपत्य कायम कर, प्रयाग को संभवतः राजधानी बनाया। इसमें अनुगंगा, प्रयाग, साकेत एवं मगध शामिल थे।
चन्द्रगुप्त I (320.335 ई.)
- गुप्त वंश का प्रथम महत्वपूर्ण राजा जिसने लिच्छवी राजकुमारी से शादी की तथा गुप्त संवत् (319-20 ई. में) चलाया।
समुद्रगुप्त (335.380 ई.)
- इलाहाबाद के अशोक स्तम्भ पर समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ने गुप्तों के बारे में जो लेख लिखे है उससे उस काल की जानकारी मिलती है।
- समुद्रगुप्त ने साम्राज्य विस्तार के लिए लड़ाइयां लड़ीं तथा गंगा-यमुना दोआब, पूर्वी हिमालय राज्य तथा विन्ध्य क्षेत्रा के जंगली राज्यों को जीत लिया और दक्कन एवं दक्षिण भारत के 12 शासकों को जीतकर अपनी प्रभुता स्वीकार कराकर पुनः आजाद कर दिया।
- एक चीनी सूत्रा के अनुसार समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के शासक के अनुरोध पर गया में एक बौद्ध मन्दिर बनवाने की अनुमति दी थी। समुद्रगुप्त लड़ाई में लगातार जीतता रहा तथा उसने अश्वमेध यज्ञ भी किया, इसलिए कुछ इतिहासकारों ने उसे भारतीय नेपोलियन भी कहा है।
चन्द्रगुप्त II (380.412 ई.)
- इसने वाकाटक के राजकुमार से अपनी पुत्राी ब्याही तथा राजकुमार की मृत्यु के बाद वाकाटक का शासन भी चलवाया एवं पश्चिमी मालवा तथा गुजरात को जीता। उज्जैन को उसने अपनी दूसरी राजधानी बनाई तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
स्मरणीय तथ्य
• चन्द्रावर युद्ध में मुहम्मद गोरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द्र को हराया। यह युद्ध कब हुआ था 1194 ई. में
• ‘विडो रीमैरिज एसोसिएशन’ के संस्थापक थे विष्णु शास्त्री पंडित
• परिसियों में धर्म सुधार के लिए 1851 में नौरोजी फरदोनजी, दादाभाई नौरोजी, एस. एस. बंगाली आदि लोगों ने किस सभा की स्थापना की थी रहनुमाई माजदायान सभा
• महात्मा गांधी अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष कितनी बार बने एक बार (1924ए बेलगांव)
• प्रसिद्ध पारसी त्यौहार - ‘नौरोज’ किस शासक ने प्रारम्भ किया था? बलबन ने
• किस राजवंश ने हत्या कर सत्ता हथियाई तथा जिसका अंत भी हत्या के द्वारा ही हुआ? शुंग वंश
• सिराजुद्दौला के साथ अंग्रेजों ने कौन-सी संधि की थी? अलीनगर की संधि
• ‘नरेन्द्र मण्डल’ की स्थापना का सुझाव किसमें था? चेम्सफोर्ड सुधारों में
• मोहम्मद अली जिन्ना का ‘चैदह सूत्री प्रस्ताव’ किसके विरुद्ध था? नेहरू रिपोर्ट के
• महात्मा गांधी ने अपने विचारों के प्रसारण हेतु किस समाचार-पत्र का सम्पादन किया था? हरिजन का
• अन्तिम मौर्य सम्राट् कौन था? बृहद्रथ
• ‘हुमायूंनामा’ किसकी कृति है? गुलबदन बेगम की
• त्रिचनापल्ली के घेरे में क्लाइव ने किसकी रक्षा की? मुुहम्मद अली की
• नरसिंह वर्मन द्वितीय ने जिसकी उपाधि राजसिंह थी, कांची में किस मंदिर का निर्माण कराया? कैलाश मंदिर का
• कनिष्क की राजधानी कहां थी? पुरुषपुर (पेशावर)
- कालिदास एवं अमर सिंह उसके दरबारी कवि थे, चीनी यात्राी फाह्यान उनके काल (399-414) में भारत भ्रमण किया था। कुतुब मीनार, दिल्ली के निकट उसके द्वारा स्थापित एक लौह स्तम्भ अवस्थित है।
- इसके बाद के शासक प्रायः सामान्य स्तर के निकले, जिनमें कुमार गुप्त (415-454) तथा स्कन्दगुप्त (455-67) के शासन काल तक तो गुप्त साम्राज्य बना रहा लेकिन बाद के शासक कमजोर निकले एवं धीरे-धीरे साम्राज्य का पतन हो गया।
गुप्त प्रशासन
- राजशाही वंशानुगत थी लेकिन उत्तराधिकार के निश्चित नियमों का अभाव था। सेना सुसंगठित थी जिसमें घुड़सवारों की प्रधानता थी। भूमि कर उपज का 1/4 से 1/6 भाग था।
- भूमि कर बढ़ता गया, जबकि व्यापार कर कम किया गया। अफसरशाही मौर्यों जैसी संगठित नहीं थी। गुप्त लोग वैश्य थे, अतः उच्च पद पर नियुक्तियों में निम्नवर्गों को भी प्रवेश मिला। सबसे प्रमुख प्रशासक कुमारामात्य होते थे।
- शासन इकाइयों में बंटा था, जिसमें भुक्ति (शासक-उपरिक) तथा विषय (विषयपति) के अतिरिक्त ग्राम स्तर पर भी प्रशासकीय इकाइयाँ थीं।
समाज, धर्म एवं कला
- जातियों का विभाजन, अछूतों की संख्या में वृद्धि, महिला एवं शूद्रों की स्थिति में सुधार, ब्राह्मण धर्म का बोलबाला आदि इस काल की प्रमुख विशेषता थी। दासों की संख्या बढ़ी। दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता भी अपनाई गई।
- मन्दिरों में पूजा हिन्दू धर्म की सामान्य विशेषता बन गई। गुप्तों ने सोने के सिक्के चलवाये तथा मन्दिरों को भूमिदान किया एवं सामन्ती व्यवस्था को बढ़ावा दिया।
- चन्द्रगुप्त के दरबार में नवरत्न (नौ महान विद्वान) थे। कालिदास, अमर सिंह, आर्यभट्ट, धन्वन्तरि, वराहमिहिर, पाणिनी, पतंजलि, शूद्रक आदि प्रमुख विद्धान इसी युग की देन है।
- आर्यभट्ट ने बहुत सी ज्योतिष गणना की एवं सूर्यवर्ष की लम्बाई नापी। उन्होंने बीजगणित के भी सिद्धांत दिये।
- चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्रा में भी प्रगति हुई। बहुत से हिन्दू मन्दिर तो बने ही, बौद्ध धर्म का भी विकास होता रहा। बुद्ध की तांबे की बनी मूर्तियां भी मिली है। गुप्त शासकों ने नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई। हिन्दू दर्शन की छः पद्धतियां एवं पुराणों, रामायण एवं महाभारत का पूर्ण संकलन इसी काल में हुआ।
चित्राकारी: इस युग की चित्राकारी बाघ और अजन्ता में पाई जाती है। जहाँ अजन्ता के चित्रा मुख्यतः धार्मिक विषयों पर आधारित है, वहीं बाघ के चित्रा मनुष्य के लौकिक जीवन से लिए गए है। तकनीकी दृष्टि से अजंता के भित्तिचित्रा विश्व में सर्वोच्च स्थान रखते है। अजंता के चित्रों के तीन विषय है - 1. छतों, कोनों आदि स्थानों को सजाने के लिए प्राकृतिक सौन्दर्य, जैसे वृक्ष, पुष्प, नदी, झरने, पशु-पक्षी आदि तथा रिक्त स्थानों को भरने के लिए अप्सराओं, गंधर्वों तथा यक्षों के चित्रा, 2. बुद्ध और बोधिसत्व के चित्रा और 3. जातक ग्रंथों के वर्णनात्मक दृश्य।
मूर्तिकला: इस युग की मूर्तिकला गाँधार कला के विदेशी प्रभाव से मुक्त लगती है। गुप्तकालीन मूर्तिकारों ने नई कल्पना, सम्मिति और प्राकृतिक आयाम का समावेश किया तथा गाँधार कला की विशिष्टताओं-वस्त्र-विन्यास, अलंकरण आदि को छोड़ दिया। गाँधार मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्रों, जैसे तक्षशिला का ह्रास हुआ तथा उसकी जगह बनारस और पाटलिपुत्रा ने ले ली, जो आगे चलकर मध्यकालीन बंगाल, बिहार, चंदेल और धार कलाओं का जनक बना। मुख्यतः विष्णु के अवतारों की प्रतिमाएँ बनाई गईं। गुप्तकालीन बौद्ध मूर्तियाँ भी अपनी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है। उनमें सजीवता और मौलिकता मिलती है।
वास्तुकला: गुप्तकालीन मंदिरों में तकनीकी व निर्माण-संबंधी अनेक विशेषताएँ थीं। शिखरयुक्त मंदिरों, जिनमें प्रधान शिखरों के साथ गौण शिखर भी शामिल था, का निर्माण प्रारंभ हो गया था। इस काल के मुख्य मंदिरों में भूमरा का शिव मंदिर, जबलपुर जिले में तिगवा का विष्णु मंदिर, नचना-कुठार का पार्वती मंदिर, देवगढ़ का दशावतार मंदिर, खोह का मंदिर, भीतरगाँव का मंदिर, सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर, लाड़खान का मंदिर, दर्रा का मंदिर, विदिशा के समीप उदयगिरि का मंदिर शामिल है। इस काल का सर्वोत्कृष्ट मंदिर झाँसी जिले में देवगढ़ का पत्थर का बना दशावतार मंदिर है।
अन्य कलाएँ: संगीत, नृत्य और अभिनय कला का भी इस काल में विकास हुआ। समुद्रगुप्त को संगीत का ज्ञाता माना गया है। वात्स्यायन ने संगीत का ज्ञान प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक माना है। मालविकाग्निमित्राम् से पता चलता है कि नगरों में संगीत की शिक्षा के लिए कला भवन होते थे। इसी पुस्तक में गणदास को संगीत व नृत्य का आचार्य बताया गया है। नाटक के अभिनय को उच्च कला माना गया था। नाट्यशालाओं के लिए प्रेक्षागृह तथा रंगशाला शब्द मिलता है।
गाँधार-कला
- गाँधार प्रदेश में ग्रीक कलाकारों ने जिस शैली को अपनाया, उसे गाँधार-कला के नाम से जाना जाता है। इस शैली के शिल्पकार यूनानी थे किंतु उनकी कला का आधार भारतीय विषय, अभिप्राय और प्रतीक थे। इस प्रकार इस शैली का उदय भारतीय-यूनानी समन्वय का परिणाम था। गाँधार प्रदेश भारतीय, चीनी, ईरानी, ग्रीक और रोमन संस्कृतियों का संगम-स्थल था। गाँधार कला के प्रमुख केन्द्र थेµजलालाबाद, हद, बामियाँ, स्वात-घाटी और पेशावर। इस कला की मूर्तियों में बुद्ध यूनानी देवता अपोलो सरीखे लगते है। उनकी मुद्राएँ तो बौद्ध है, जैसे कमलासन मुद्रा में बुद्ध बैठे है, किंतु मूर्तियों के मुख-मंडल और वó यूनानी शैली के है। उनकी मूर्तियों को अलंकृत मूर्धजों से युक्त प्रदर्शित किया गया है, जो यूनानी और रोमन कला का प्रभाव है। बोधिसत्वों की मूर्तियाँ यूनानी राजाओं की भाँति वस्त्रभूषणों से सजी हैं जिससे वे आध्यात्मिक व्यक्ति न लगकर सम्राट लगते है।
- गाँधार कला की मूर्तियाँ गाँधार में प्राप्त सिलेटी पत्थर की है। इन्हें मोटे वस्त्र पहने दिखलाया गया है, पारदर्शक नहीं। इन मूर्तियों में माँसलता अधिक है। मूर्तियों के होठ मोटे और आँख भारी है तथा वे मस्तक पर उष्णीष धारण किये है। मुखमुद्रा प्रायः भावशून्य है। उनमें आध्यात्मिक भावना का प्रायः अभाव है।
- यूनानी कला में शारीरिक सौन्दर्य को वरीयता दी जाती थी, जबकि भारतीय कला में आध्यात्मिकता को। यूनानी बौद्धिकता पर बल देते थे जबकि भारतीय भावुकता पर। इन्हीं मूलभूत अंतरों के कारण गाँधार कला भारत में लोकप्रिय न हो सकी।
मथुरा-कला
- कुषाण कला का दूसरा महत्वपूर्ण केन्द्र मथुरा और उसका निकटवर्ती प्रदेश था। इस प्रदेश में जिस प्रकार की मूर्तिकला का उदय हुआ वह मथुरा-कला के नाम से विख्यात है। मथुरा शक-कुषाणों की पूर्वी राजधानी थी।
- मथुरा कला की मूर्तियाँ प्रायः लाल बलुआ पत्थर की हैं, जिस पर श्वेत चित्तियाँ है। यह लाल बलुआ पत्थर निकटस्थ प्रदेश में उपलब्ध है। बुद्ध की प्रारंभिक अवस्था की मूर्तियाँ खड़ी हुई निर्मित की गई है। अधिकांश मूर्तियों में मुंडित अथवा नखाकृति केशों सहित सिर है। प्रायः बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों का एक ही स्कंध ढंका दिखलाया गया है। वस्त्र शरीर से चिपके हुए है। वस्त्रो पर धारीदार सिलवट कलात्मक ढंग से प्रदर्शित की गई है। कुषाणकालीन मथुरा की मूर्तियों में आध्यात्मिक भावना का उद्दीपन उतना नहीं मिलता जितना की बाद के गुप्तकाल में। मथुरा कला हृदय की कला है। उसमें गाँधार कला के बुद्धिवादी दृष्टिकोण का अभाव है। इनमें बाह्य और आत्मिक सौन्दर्य का समन्वय है।
- यह कला भरहुत और साँची से उद्भूत कला से प्रभावित दिखती है।
अमरावती-कला
- अमरावती आँध्र प्रदेश के गंटूर जिले में कृष्णा नदी के दक्षिण किनारे पर एक छोटा-सा कस्बा है। वहाँ अनेक वस्तुएँ पाई गई है। इस कस्बे का पुराना नाम धरतीकोट था। अमरावती स्तूप और उसके चारों ओर की रेलिंग या संगमरमर के पर्दे के बारे में हमें ब्रिटिश म्यूजियम या सेंट्रल म्यूजियम, मद्रास और फर्गुसन तथा डाॅ. बुर्गेस द्वारा प्रकाशित कर्नल मैकेन्जी के चित्रों से पता चलता है। यह वस्तुतः 200 ई. पू. में बनवाया गया था, यद्यपि उस पर बहुत-सी नक्कासियाँ बहुत बाद की है और कुषाण-काल से सम्बद्ध है। सभी स्तूपों की नक्कासी एक-दूसरे से मिलती-जुलती है और उत्तर-भारतीय शैली से काफी भिन्न है। इसी कारण से इसे एक नयी शैली के तहत रखा गया है। अमरावती की मूर्तियाँ क्षीण और प्रसन्न आकृतियों से पूर्ण है और वे कठिन भावभंगिमों और झुकावों में व्यक्त की गई है। किन्तु दृश्य अधिकतर घने है और व्यक्तिगत मूर्तियों में एक विशिष्ट मोहकता है, फिर भी साधारण प्रभाव अधिक आनन्ददायक नहीं है। तथापि इसमें संदेह नहीं है कि इस काल में कला का ज्ञान विकास की एक उच्च सीमा तक पहुँचा था। पौधे और फूल विशेषकर कमल, इस शैली में बहुत सुन्दर रीति से व्यक्त किये गये है। बुद्ध की मूर्ति जहाँ-तहाँ आती है, किन्तु भगवान को बहुधा एक प्रतीक द्वारा व्यक्त किया गया है। इस प्रकार यह एक ओर भरहुत, बोधगया और साँची तथा दूसरी ओर मथुरा और गाँधार के बीच के परिवर्तन काल का निर्देश करता है।
गुप्तकालीन नाटक एवं नाटककार | | |
नाटक | नाटककार | नाटक का विषय |
मालविकाग्निमित्रम् | कालिदास | अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय-कथा पर आधारित |
विक्रमोर्वशीयम् | कालिदास | सम्राट पुरुरवा एवं अप्सरा उर्वशी की प्रणय-कथा पर आधारित |
अभिज्ञानशाकुन्तलम् | कालिदास | दुश्यन्त तथा शकुन्तला की प्रणय-कथा पर आधारित |
मुद्राराक्षसम् | विशाखदत्त | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा का वर्णन है |
देवीचन्द्रगुप्तम् | विशाखदत्त | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त द्वारा शकराज का वध कर ध्रुवस्वामिनी से विवाह का वर्णन है |
मृच्छकटिकम् | शूद्रक | इस नाटक में नायक चारुदत्त, नायिका वसंतसेना के अतिरिक्त राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्तदास आदि का वर्णन है |
स्वप्नवासवदत्तम् | भास | इसमें महाराज उदयन एवं वासवदत्ता की पे्रमकथा का वर्णन किया गया है |
प्रतिज्ञायौगंधरायणम् | भास | इसमें महाराज उदयन किस तरह योगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जैयिनी से लेकर भागता है, का वर्णन है। |
चारुदत्तम् | भास | इस नाटक का नायक चारुदत्त मूलतः भास की क& |
हर्षवर्द्धन (606.647 ई.)
- थानेश्वर के पुष्यभूति परिवार के प्रभाकर वर्द्धन के पुत्रा हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। बाणभट्ट का हर्षचरित एवं चीनी यात्राी ह्वेनसांग के वर्णनों से हर्ष के बारे में जानकारी मिलती है।
- हर्ष ने अपने प्रतिनिधि जालन्धर, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभी में रखे थे तथा दक्षिण में इसको चालुक्य नरेश पुल्केशिन II ने आगे बढ़ने से रोक रखा था। चीनी शासक के साथ इसने राजनयिक सम्बन्ध रखे थे।
- हर्ष का शासन गुप्तों के जैसा ही था, पर यह सामंतों पर ज्यादा निर्भर एवं विकेन्द्रीकृत था। वह प्रान्तों के शासन का खुद सर्वेक्षण करता था। साम्राज्य भुक्ति (प्रदेश), विस् (जिला), पाठक (तहसील) एवं ग्राम में बंटा था। कर उपज का 1/6 भाग था।
- राजकोष का बड़ा भाग मानवीय कार्यों पर खर्च होता था। दंड पद्धति मौर्य शासन जैसी थी एवं कार्यालयों में कार्य सम्बन्धी दस्तावेज रखे जाते थे।
- उसके शासनकाल में आये चीनी यात्राी ह्वेनसांग ने उसके शासन प्रबन्ध के बारे में लिखा है।
- हर्ष पहले शैव था जो बाद में बौद्ध हो गया।
- हर्ष स्वयं विद्धान था तथा उसने संस्कृत में तीन पुस्तकें लिखी थी। इसके काल के अन्य विद्धान मतंग, दिवाकर, जयसेन, भर्तृहरि तथा बाणभट्ट आदि थे।