UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

चोल साम्राज्य

 राजनीतिक इतिहास


 ¯ ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में सबसे अधिक महत्वपूर्ण साम्राज्य चोल वंश का था। 
 ¯ चोल राजाओं ने तंजौर के आसपास के क्षेत्र तमिलनाडु से अपना शासन आरम्भ किया। 
 ¯ धीरे-धीरे उन्होंने पल्लव वंश के शासक और अन्य स्थानीय शासकों को पराजित कर अपने को शक्तिशाली बना लिया। 
 ¯ आधुनिक मदुरै क्षेत्र में चोल साम्राज्य के दक्षिण में पांड्य राज्य था। 
 ¯ पश्चिमी किनारे पर आधुनिक केरल प्रांत में चेर वंश का राज्य था। 
 ¯ बारहवीं शताब्दी तक इन राज्यों में से कुछ का पतन हो गया और इन क्षेत्रों में नवीन राज्यों की स्थापना हुई। वारंगल (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में काकतेय वंश का शासन आरम्भ हुआ और आधुनिक मैसूर के निकट होयसल वंश ने अपना राज्य स्थापित कर लिया। 
 ¯ चोल शासकों को अपनी शक्ति की रक्षा के लिए इन सभी राज्यों से युद्ध करने पड़े। चोल शासक तेरहवीं शताब्दी तक अपनी महत्ता को दक्षिण भारत में स्थापित किए रहे।

चोल शासक
 ¯ चोल साम्राज्य की स्थापना करने वाले आरंभिक शासकों में विजयालय (846-871 ई.) था जिसने तंजौर को जीता और इसे अपनी राजधानी बनाया। 
 ¯ विजयालय पल्लवों का सामंत था। विजयालय के पुत्र एवं उत्तराधिकारी आदित्य प्रथम (लगभग 871-907 ई.) ने पांड्यों के विरुद्ध पल्लवों को सहायता प्रदान की जिससे पल्लवों ने प्रसन्न होकर न केवल तंजौर पर चोल आधिपत्य को मान्यता दे दी, वरन् उन्हें कुछ पल्लव प्रदेश भी प्रदान किया। 
 ¯ इससे भी अधिक महत्वपूर्ण परांतक प्रथम (907-955 ई.) था जिसने पांड्य राज्य को जीता और मदुरैकोण्डा की उपाधि ग्रहण की जिसका अर्थ है ‘मदुरै का विजेता’। परंतु परांतक को भी राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय ने पराजित किया। 
 ¯ परांतक प्रथम का राज्य दक्षिण में कन्याकुमारी और उत्तर में नेल्लौर तक फैला था। 
 ¯ उसकी मृत्यु के बाद तीन दशकों में क्रमशः गंडरादित्य व अरिंजय, परांतक द्वितीय (सुन्दर चोल) तथा उत्तम चोल सिंहासनारूढ़ हुए।
 ¯ चोल वंश के राजाओं में सबसे उल्लेखनीय राजराजा प्रथम और उसका पुत्र राजेन्द्र प्रथम था। 
 ¯ राजराजा प्रथम (985-1014 ई.) एक कुशल सेना संचालक था और उसने अनेक दिशाओं में आक्रमण किए। 
 ¯ उसने पांड्य और चेर वंश के राज्यों पर और मैसूर के कुछ भागों पर भी आक्रमण किए। 
 ¯ उसने उत्तर की ओर आधुनिक आंध्र प्रदेश के वेंगी क्षेत्र पर आक्रमण किया। 
 ¯ राजराजा समुद्र पर अधिकार रखने के महत्व को भी समझता था। अतः वह एक सामुद्रिक विजय के लिए निकला और उसने लंका और मालदीव नामक द्वीपों पर आक्रमण कर दिया। 
 ¯ साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ उसका उद्देश्य केरल, श्रीलंका और मालदीव के समुद्र तटों से पश्चिम एशिया के साथ होने वाले व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करना भी था। इस प्रकार इन क्षेत्रों की विजय से पश्चिमी व्यापार से प्राप्त होने वाला धन चोल साम्राज्य में आने लगा पर बहुत अधिक समय तक वह इन क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में नहीं रख सका।
 ¯ राजराजा प्रथम का पुत्र राजेन्द्र प्रथम (1014- 1044 ई.) उससे भी अधिक महत्वाकांक्षी था। उसने अपने पिता की विजय-नीति को जारी रखा और दक्षिण प्रायद्वीप में अनेक युद्ध लड़े। उसके इन युद्धों में दो युद्ध बड़े ही साहसिक और वीरतापूर्ण थे।
 ¯ एक तो वह जिसमें उसकी सेनाएं पूर्वी भारत के समुद्र तट से होकर उड़ीसा को पार करती हुई गंगा नदी तक पहुंच गई। दक्षिण लौटने से पूर्व उसने बंगाल और बिहार में शासन करने वाले पाल वंश के राजा महिपाल को आतंकित किया। इस अवसर की स्मृति में उसने गंगईकोण्ड चोल (गंगा का चोल विजेता) की उपाधि धारण की तथा कावेरी के निकट एक नई राजधानी बनाई जिसका नाम रखा गंगईकोण्डचोलपुरम। 
 ¯ उसका दूसरा साहसपूर्ण युद्ध दक्षिण-पूर्व एशिया में हुआ जिसमें उसने सामुद्रिक अभियान किया था। अनेक शताब्दियों से भारत के व्यापारी दक्षिण-पूर्वी एशिया के विभिन्न भागों से व्यापार करते आ रहे थे। भारतीय जहाजों को मलक्का की जल-संधि (जलडमरूमध्य) से होकर गुजरना पड़ता था। उस समय इस पर श्रीविजय का अधिकार था। इस राज्य के अंतर्गत मलाया प्रायद्वीप, सुमात्रा, जावा और कुछ अन्य पड़ोसी द्वीप भी थे। वहां के व्यापारी इस व्यापार पर अधिकार करने के लिए भारतीय जहाजों के मार्ग में कठिनाइयां उत्पन्न करने लगे। भारतीय व्यापारियों ने राजेन्द्र चोल से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की और उसने एक विशाल जल-सेना भेज दी। श्री विजय की पराजय हुई और उसने भारतीय जहाजों को उस जल मार्ग से सुरक्षा के साथ यात्रा करने की आज्ञा दे दी।
 ¯ राजेन्द्र प्रथम के उत्तराधिकारियों ने अपनी शक्ति, समय और धन का बहुत बड़ा भाग प्रायद्वीप के अन्य राज्यों के साथ युद्ध करने में व्यय कर दिया। इनमें से कुछ युद्धों में उन्हें सफलता भी नहीं मिली। 
 ¯ धीरे-धीरे चोल राज्य शक्तिहीन हो गया और अन्य राज्य अधिक शक्तिशाली बन गए। तेरहवीं शताब्दी के अंत तक चोल राज्य का अंत हो गया।

चोल शासन प्रणाली
 ¯ राज्य में राजा सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति होता था। फिर भी यह आशा की जाती थी कि वह अपनी मंत्रिपरिषदृ या अपने पुरोहित की सलाह से शासन कार्य का संचालन करेगा। शासन के विभिन्न विभागों के विशेष अधिकारी होते थे। 
 ¯ राज्य का प्रांतों में विभाजन किया गया था जिसे मंडलम कहते थे। 
 ¯ प्रत्येक मंडलम कई वलनाडु और नाडु  में बंटा हुआ था। इसमें एक निश्चित संख्या में गांव होते थे। 
 ¯ आरम्भ में चोल राज्य की राजधानी तंजौर थी, पर बाद में आधुनिक मद्रास के निकट कांचीपुरम को राजधानी बनाया गया। 
 ¯ कुछ समय तक तंजौर के निकट बने नगर गंगईकोण्डचोलपुरम को राजधानी बनाया गया था। 
 ¯ मदुरै और वेंगी के प्रांतों का प्रशासन राजघराने के राजकुमारों के हाथों में थी।
 ¯ बहुत से गांवों में शासन का संचालन राजकीय कर्मचारियों के द्वारा न किया जाकर स्वयं ग्रामवासियों के द्वारा किया जाता था। इन गांव वालों की एक ग्राम परिषदृ होती थी जिसको उर या सभा कहते थे। 
 ¯ गांवों के मंदिरों की दिवालों पर लंबे अभिलेख मिलते हैं जिनमें विस्तार के साथ वर्णन किया गया है कि उर अथवा सभा किस प्रकार आयोजित की जाती थी। 
 ¯ जिनके पास भूमि थी अथवा गांव के जो लोग ऊंची जाति के होते थे वे सभा के लिए लाटरी द्वारा चुन लिए जाते थे। इन सभाओं में गांव के जीवन और वहां के कार्यों के संबंध में विचार किया जाता था। 
 ¯ यह सभा कभी-कभी छोटी समितियों में विभाजित कर दी जाती थी और प्रत्येक समिति गांव के एक-एक अंग की देखरेख करती थी। 
 ¯ उदाहरण के लिए एक गांव की सभा में एक तालाब समिति थी जिसका काम इस बात की देखभाल करना था कि गांव के तालाब में पानी रहता है या नहीं और उस पानी का ठीक वितरण ग्रामवासियों के लिए होता है या नहीं।
 ¯ चोल राज्य की आय दो साधनों से प्राप्त होती थी - भूमि और भूमि की उपज पर लगाए गए कर से तथा व्यापार कर से। 
 ¯ इस लगान का एक भाग राजा के लिए रख दिया जाता था और शेष भाग सार्वजनिक निर्माण कार्यों, जैसे- सड़क और तालाब बनाने, राजकर्मचारियों को वेतन देने, स्थल सेना और जल सेना का व्यय वहन करने अथवा मंदिर निर्माण में खर्च किया जाता था। 
 ¯ भूमि कर प्रायः ग्राम परिषदृ से एकत्र किया जाता था। 
 ¯ व्यापार कर व्यापारियों से, जो प्रायः नगरों में रहते थे, वसूल किया जाता था।

समाज
 ¯ राजा, राजदरबार और दरबारियों के अतिरिक्त ब्राह्मणों और व्यापारियों का भी समाज में अत्यधिक सम्मान किया जाता था 
 ¯ ब्राह्मणों का इसलिए सम्मान किया जाता था कि वे धार्मिक कृत्यों को करते थे और विद्वान थे। कुछ विद्वान ब्राह्मणों को राजा द्वारा भूमि और ग्राम उपहार में दिया जाता था। यह ब्रह्मदेय उपहार कहलाता था। उनकी संतान भी इस भूमि और गांवों को उत्तराधिकार में प्राप्त करती थीं। इस तरह कुछ ब्राह्मण तो इतने धनी हो गए कि वे अपना धन व्यापार में भी लगाने लगे। 
 ¯ चोल राज्य में व्यापारी बड़े सम्पन्न हो गए थे।  उनका चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया के साथ लाभकारी व्यापार था। इसके अतिरिक्त उनका विशाल भारत के अनेक प्रांतों के साथ भी व्यापार होता था तथा उत्तरी-दक्षिणी राज्यों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था।  

स्मरणीय तथ्य 
  • चोल सत्ता (800 से 1200 ई.) का संस्थापक विजयालय था। इसने ‘नरकेसरी’ की उपाधि धारण की।
  • चोल कांची के पल्लव राजवंश के सामंत थे।
  • चोलों की प्रारंभिक राजधानी उरैयुर थी।
  • राजराजा प्रथम ने श्री लंका के विजित क्षेत्रों का नाम मामुण्डी चोलमंडलम रखा एवं पोल्लोनरूआ को इसकी राजधानी बनाया।
  • गंगाघाटी व बंगाल विजय अभियान के बाद राजेन्द्र प्रथम ने ‘गंगैकोण्डचोल’ की उपाधि धारण करते हुए नवीन राजधानी ‘गंगैकोण्डचोलपुरम्’ की स्थापना की।
  • परान्तक प्रथम ने ‘मंदुरैकोण्ड’ की उपाधि धारण की। परान्तक द्वितीय को ‘सुन्दर चोल’ कहा जाता था।
  • राजराजा प्रथम ने सर्वप्रथम भू-सर्वेक्षण करवाया, इसने चोल अभिलेखों को ऐतिहासिक प्रशस्ति के साथ लिखवाने की प्रथा की शुरुआत की। नगरम स्थानीय समिति व्यापारिक वर्ग से संबंधित थी।
  • सभा की कार्यकारी समिति को वरियम कहा जाता था।
  • कुलोत्तुंग प्रथम ने व्यापारिक दूतमंडल को चीन भेजा था।
  • चोल काल में धान को विनिमय की इकाई के रूप में प्रयोग किया जाता था।
  • चोल काल में द्रविड़ कला के अंतर्गत निर्मित मंदिरों की विशेषता उनके पिरामिड आकार वाले शिखर होते थे।
  • चोल मंदिर के प्रवेश द्वारों को ‘गोपुरम्’ कहा जाता था।
 

 
 ¯ कुछ व्यापारी मिलकर एक व्यापार मंडल बना लेते थे जिसको मणिग्रामम कहा जाता था। व्यापार-मंडल प्रायः एक ही व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों का संगठन होता था। 
 ¯ राजा भी व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए आवश्यक कदम उठाता था। सन् 1077 ई. में 72 व्यापारियों का एक राजदूत-मंडल यह देखने के लिए चीन भेजा गया कि उस देश के साथ व्यापार बढ़ाने की और कौन-सी संभावनाएं हैं।
 ¯ प्रत्येक व्यक्ति धनी और वैभव-सम्पन्न नहीं था। नगरों के मजदूर और गांवों के किसान प्रायः बहुत गरीब होते थे। उनको कठोर परिश्रम करना पड़ता था। 
 ¯ शूद्रों को प्रायः बड़ी मुसीबत उठानी पड़ती थी। कुछ शूद्रों को तो मंदिर में जाने तक की मनाही थी।

मंदिर
 ¯ मंदिरों के निर्माण और उनकी सुरक्षा के लिए राजा और धनी व्यक्ति उदारता से धन और भूमि का दान करते थे। 
 ¯ प्रत्येक गांव और नगर में एक मंदिर बनाया जाता था किन्तु कुछ बड़े-बड़े नगरों और धार्मिक स्थानों के मंदिर अन्य स्थानों के मंदिरों से बड़े होते थे। 
 ¯ चोल राजाओं के बनवाए हुए राजमंदिर बहुत वैभवशाली तथा भव्य थे, जैसे - तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर (राजराज मंदिर)। 
 ¯ केन्द्रीय मंदिर के ऊपर एक ऊंचा शिखर बनाया जाने लगा। 
 ¯ मंदिर का प्रवेश द्वार गोपुरम कहलाता था। इसका निर्माण भी बड़े सुंदर ढंग से होने लगा। 
 ¯ गर्भ गृह में देवी या देवता की मूर्ति स्थापित की जाती थी। ये मूर्तियां या तो पत्थर की बनी होती थीं या कांसे की। कांसे की बनी हुई मूर्तियां विशेष रूप से सुंदर हैं और अपने सौंदर्य के लिए संसार भर में प्रसिद्ध हैं।
 ¯ चोल राज्यों का मंदिर सामाजिक कार्यों का केन्द्र भी बन गया था। वह केवल पूजा करने का धार्मिक स्थान ही नहीं था बल्कि एक ऐसा स्थान था जहां लोग मिलते-जुलते थे। 
 ¯ उत्सवों और धार्मिक त्योहारों पर आसपास के क्षेत्रों के लोगों के एकत्र होने का स्थान मंदिर ही था। 
 ¯ मंदिर की दीवारों को मूर्तियों से सजाया जाता था। इन मूर्तियों के द्वारा देवता और मनुष्य दोनों के दृश्य चित्रित किए जाते थे। दीवारों पर बने हुए इन दृश्यों में राजदरबार, युद्ध, पूजा-उपासना तथा संगीत और नृत्य के  दृश्य होते थे।

The document चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|679 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. चोल साम्राज्य क्या था?
उत्तर: चोल साम्राज्य, 800 से 1200 ईस्वी तक दक्षिण भारत में मौजूद एक प्रमुख राज्य था। यह विशेष रूप से तमिलनाडु क्षेत्र में स्थित था और चोल वंश द्वारा नियंत्रित किया जाता था। यह साम्राज्य व्यापक व्यापार नेटवर्क, कला, साहित्य और संस्कृति के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था।
2. चोल वंश कब से कब तक शासन कर रहा था?
उत्तर: चोल वंश दक्षिण भारत में 800 से 1200 ईस्वी तक शासन कर रहा था। इसका समयांतर बाद में पांड्य वंश ने शासन किया। चोल वंश के शासकों में राजराज और राजेंद्र चोल प्रमुख थे, जिन्होंने इस साम्राज्य को उच्चतम मान्यता प्रदान की और विश्व व्यापार में उन्नति कराई।
3. चोल साम्राज्य के लिए चार्टर्ड ट्रेड क्या था?
उत्तर: चार्टर्ड ट्रेड, चोल साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण व्यापारिक प्रथा थी। इसमें चोल राजा उच्च स्तरीय व्यापारिक समझौतों के माध्यम से विदेशी व्यापारियों को अपने राज्य में आमंत्रित करते थे। यह व्यापारिक समझौते विशेष अवसरों, व्यापारिक नियमों और सुरक्षा की गारंटी के साथ होते थे। चार्टर्ड ट्रेड के माध्यम से चोल साम्राज्य विदेशी बाजारों में अपने उत्पादों की व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देता था।
4. चोल साम्राज्य में कला और साहित्य का क्या महत्व था?
उत्तर: चोल साम्राज्य में कला और साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान था। इसके शासकों ने कला, साहित्य, शिल्पकारी और संगीत को बढ़ावा दिया। वे तमिल भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए पहल किया और संस्कृत साहित्य को भी महत्व दिया। चोल साम्राज्य के मंदिरों, स्मारकों और प्राचीन रचनाओं में इस विषय पर गहरा प्रभाव दिखाई देता है।
5. चोल साम्राज्य की मुख्य विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: चोल साम्राज्य की मुख्य विशेषताएं इसके व्यापारिक शक्ति, समृद्ध साहित्य और कला परंपरा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नति, और संगठित शासन व्यवस्था थी। चोल साम्राज्य ने उच्च स्तरीय व्यापार नेटवर्क विकसित किया, जिसने इसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बनाया। इसके शासकों ने कला और साहित्य को महत्व दिया और राजवंश की गरिमा बढ़ाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवीनीकरण किया। चोल साम्राज्य में संगठित शासन व्यवस्था थी, जो उच्च स्तरीय प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली के विकास को दर्शाती थी।
398 videos|679 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

pdf

,

इतिहास

,

चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.)

,

practice quizzes

,

यूपीएससी

,

Previous Year Questions with Solutions

,

mock tests for examination

,

shortcuts and tricks

,

Viva Questions

,

चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.)

,

study material

,

Sample Paper

,

इतिहास

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

इतिहास

,

video lectures

,

ppt

,

यूपीएससी

,

Semester Notes

,

Important questions

,

यूपीएससी

,

past year papers

,

Exam

,

Objective type Questions

,

MCQs

,

Summary

,

Free

,

चोल साम्राज्य - दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.)

;