UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड

  • दमन के इसी दौर में अमृतसर में सामूहिक हत्या की एक नृशंस घटना हुई। 
  • 10 अप्रैल, 1919 को दो राष्ट्रवादी नेता - सत्यपाल और डा. सैफुद्दीन किचलू - गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें अमृतसर से निष्कासित करने का आदेश दिया गया। शासन की इस कार्रवाई से शहर में उत्तेजना फैल गई। 
  • अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम का एक छोटा-सा पार्क है जो तीन ओर ऊंची दीवारों से घिरा है। एक छोटी गली से पार्क में जाने का रास्ता है।
  • दोनों नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जनता में व्याप्त व्यापक उत्तेजना को देखते हुए सरकार ने लोगों के एक स्थान पर एकत्रित होने पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन जनता को इसकी सूचना देने के पर्याप्त प्रबन्ध नहीं किए गए। 
  • 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन सायंकाल जलियांवाला बाग में नेताआंे की गिरफ्तारी के विरोध में शांतिपूर्ण सभा पर जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए सिपाहियों को भीड़ पर गोली चलाने के आदेश दिए। 
  • सैनिकों ने 10 मिनट तक निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाई और जब गोलियाँ खत्म हो गईं तो वे वहां से चले गए। 
  • कांग्रेस के अनुमान के अनुसार करीब एक हजार आदमी मारे गए और करीब 200 जख्मी हुए।
  • यह हत्याकंाड जानबूझ कर किया गया था। डायर ने शान से कहा था कि लोगों को सबक सिखाने के लिए उसने यह सब किया था और उसने निश्चय कर लिया था कि यदि सभा चालू रहती तो वह सब की हत्या कर डालता। उसे कोई पश्चाताप नहीं हुआ। 
  • उल्टे उसकी इंग्लैंड वापसी पर उसको सम्मानित करने के लिए कुछ अंग्रेजों ने पैसे इकट्ठे किए। 
  • करीब 21 साल बाद, 13 मार्च, 1940 को एक भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह ने गोली मारकर माइकेल ओडायर की हत्या कर दी। जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय माइकेल ओडायर पंजाब का लेफ्टिनेंट-गवर्नर था। 
महत्वपूर्ण कथन
 ”जो स्वदेशी राज्य होता है वह सर्वोपरि एवं उत्तम होता है।“
 - स्वामी दयानन्द सरस्वती
 ”जिस प्रकार सारी धारायें अपने जल को सागर में ले जाकर मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के सारे धर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं ।“
 - स्वामी विवेकानन्द
 ”हम दया की भीख नहीं मांगते, हम तो केवल न्याय चाहते हैं , ब्रिटिश नागरिक के समान अधिकारों का जिक्र नहीं करते, हम स्वशासन चाहते हैं ।“
 - दादाभाई नौरोजी
 ”मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी की चोट ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की एक-एक कील होगी।“
 - लाला लाजपत राय
 ”वह समय आ गया है जब हमारे सम्मान के चिह्न उसके साथ ही मौजूद अपमान के कारण हमारे लिये शर्मनाक हो जाते हैं ।“
 - रवीन्द्र नाथ टैगोर
 ”उस समय जबकि जनता का उत्साह ऊँचा था ऐसे में पीछे हटने का आदेश देना राष्ट्रीय संकट से कम नहीं था।“
 - सुभाष चन्द्र बोस
 (असहयोग आन्दोलन के स्थगन पर)
 ”मैं स्वभाव से ही समाजवादी हूँ।“     - जवाहर लाल नेहरू
 ”वेदा की ओर लौटो“     - स्वामी दयानन्द सरस्वती
 ”बन्दे मातरम्“     - बंकिम चन्द्र चटर्जी
 ”आराम हराम है“     - जवाहर लाल नेहरू
 ”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा।“
 - सुभाष चन्द्र बोस
 ”सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।“
 - राम प्रसाद बिस्मिल
  • इस आमनवीय घटना के विरोध में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने अपनी ‘सर’ की पदवी अंग्रेजों को लौटा दी।

खिलाफत और असहयोग आन्दोलन

  • ब्रिटिश शासन के खिलाफ बढ़ता हुआ रोष खिलाफत और असहयोग आन्दोलन के रूप में व्यक्त हुआ। 
  • प्रथम महायुद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। युद्ध के बाद पराजित तुर्की को ब्रिटेन के अत्याचारों का शिकार होना पड़ा। इन अन्यायों के विरुद्ध 1919 ई. में मुहम्मद अली तथा शौकत अली (जो अली बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध थे), अबुल कलाम आजाद, हसरत मोहानी व अन्य नेताओं के नेतृत्व में आन्दोलन चलाया गया। 
  • हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का उत्कृष्ट समय समझकर गांधीजी भी खिलाफत कमेटी में शामिल हो गए। 
  • कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया। 
  • दरअसल, तुर्की के सुलतान को खलीफा (मुसलमानों का धार्मिक नेता) भी माना जाता था। इसलिए तुर्की के प्रति हो रहे अन्याय के खिलाफ जो आन्दोलन चलाया गया, उसे ‘खिलाफत आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस आन्दोलन में असहयोग का नारा दिया गया। 
  • खिलाफत का यह आन्दोलन जल्दी ही पंजाब में दमन के विरोध में और स्वराज के लिए चल रहे आन्दोलन में मिल गया।
  • सन् 1920 ई. में कांग्रेस ने प्रथम कलकत्ता के अपने विशिष्ट अधिवेशन में और फिर नागपुर में 1920 ई. के अंत में आयोजित अपने नियमित अधिवेशन में, गांधीजी के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ संघर्ष की एक नई योजना स्वीकार की। 
  • नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया। 
  • ”सभी न्यायोचित और शांतिमय साधनों से भारतीय जनता द्वारा स्वराज प्राप्त करना“ कांग्रेस के संविधान की प्रथम धारा बन गई। इन साधनों को ‘असहयोग आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस आन्दोलन का लक्ष्य था पंजाब तथा तुर्की के साथ हो रहे अन्याय को खत्म करना और स्वराज प्राप्त करना।
  • इसकी शुरुआत ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई ‘सर’ जैसी पदवियों को त्यागने के साथ हुई। 
  • सुब्रह्मण्यम अय्यर और रवीन्द्र नाथ ठाकुर इस दिशा में पहले ही पहल कर चुके थे। 
  • गांधीजी ने 1920 ई. में अपना ‘कैसर-ए-हिन्द’ पदक लौटा दिया। कई अन्य भारतीयों ने भी इसका अनुसरण किया।
महत्वपूर्ण कथन
 ”स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।“
 - लोकमान्य तिलक
 ”जो काम 50 हजार हथियारबन्द सिपाही नहीं कर सकते थे उसे महात्मा जी ने कर दिया, उन्होंने शान्ति कायम कर दी।“
 - माउण्टबेटन
 ”भारतीय संस्कृति पूरी तरह न हिन्दू है, न इस्लामी और न ही कुछ अन्य। वह सबका संयोजन है।“
 - गाँधी जी
 ”भाग्य चक्र किसी न किसी दिन अंग्रेजों को अपना भारतीय साम्राज्य छोड़ने के लिये विवश करेगा। मगर किस प्रकार का भारत वे छोड़कर जायेंगे, कितनी भयंकर गरीबी होगी? जब शताब्दियों पुराने प्रशासन का प्रवाह सूख जायेगा तब वे किस तरह की बेकार कीचड़ व गन्दगी अपने पीछे छोड़कर जायेंगे।“
 - रवीन्द्र नाथ टैगोर
 ”दासता का नया चार्टर“
 - जवाहर लाल नेहरू
 (1935 के अधिनियम के बारे में)
 ”अगर संसार में कोई पाप है तो वह कमजोरी है, सभी तरह की कमजोरियों से दूर रहो, कमजोरी पाप है, कमजोरी मौत है।“
 - लाला लाजपत राय
 ”क्या आप लोग एक ही देश में नहीं बसते, क्या आप लोगों को एक ही जमीन पर जलाया नहीं जाता, याद रखिये हिन्दू व मुसलमान शब्द केवल धार्मिक विभेद बतलाने के लिए हैं , अन्यथा सभी व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म के हो, एक राष्ट्र के हैं ।“
 - सर सैय्यद अहमद खाँ
 ”इंकलाब जिंदाबाद“     - भगत सिंह
 ”दिल्ली चलो“     - सुभाष चन्द्र बोस
 ”सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा“     - मुहम्मद इकबाल
 ”हम अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध हैं पर अल्पसंख्यकों की इच्छाओं को बहुसंख्यकों पर थोपा नहीं जा सकता।“
 - लार्ड एटली
  • इसके बाद विधान परिषदों का बहिष्कार शुरू हुआ। 
  • हजारों विद्यार्थियों और अध्यापकों ने स्कूल-कालेज छोड़ दिए। 
  • राष्ट्रवादियों ने दिल्ली में जामिया मिलिया और वाराणसी में काशी विद्यापीठ जैसी नई शिक्षण संस्थाएँ स्थापित की। 
  • बहुतों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी। 
  • वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया और सारे देश में हड़तालें हुईं।
  • सन् 1921 ई. में कांग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ जिसके अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे। अधिवेशन ने आंदोलन को जारी रखने का फैसला किया और तब असहयोग आंदोलन का अंतिम दौर आरम्भ हुआ जिसमें लोगों से कहा गया कि वे कर अदा न करें।
महत्वपूर्ण रचनायें
 इण्डियन स्ट्रगल    सुभाष चन्द्र बोस
 हिन्ट्स फाॅर सेल्फ कल्चर    लाला हरदयाल
 अभ्युदय    मदन मोहन मालवीय
 इण्डिया फ्राम कर्जन टू नेहरू    दुर्गा दास
 सत्यार्थ प्रकाश    स्वामी दयानन्द सरस्वती
 हमदर्द    मुहम्मद अली जिन्ना
 इण्डियन मिरर    केशव चन्द्र सेन
 न्यू इण्डिया    ऐनी बेसेण्ट
 वार आॅफ इण्डियन इन्डिपेन्डेन्स    वीर सावरकर
 असवाब बगावत-ए-हिन्द    सर सैय्यद अहमद
 सांग आॅफ इण्डिया    सरोजिनी नायडू
 गीता रहस्य    लोकमान्य तिलक
 सिविल सिविलियन्स इन दी इण्डियन म्यूटिनीज    एस. वी. चैधरी
 दि ग्रेट रिबेलियन    अशोक मेहता
 सिपाय म्यूटनी एण्ड रिवोल्ट आॅफ 1857    आर. सी. मजूमदार
 इकोनाॅमिक हिस्ट्री आॅफ इण्डिया    आर. सी. दत्त


चैरी-चैरा काण्ड

  • 5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चैरी-चैरा नामक स्थान पर पुलिस ने एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चलाई। 
  • क्रुद्ध भीड़ ने पुलिस थाने को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इस घटना में 21 सिपाही जलकर मर गए। 
  • गाँधीजी की यह शर्त थी कि आंदोलन पूर्णतः शांतिपूर्ण होना चाहिए। चैरी-चैरा की घटना का समाचार मिलने पर गांधीजी ने अत्यन्त दुःखी होकर असहयोग आन्दोलन वापस लेने की घोषणा की। 
  • 10 मार्च, 1992 ई. को उन्हें गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद की सजा सुनाई गई।
  • 1922 ई. में ही खिलाफत आन्दोलन भी स्वतः समाप्त हो गया क्योंकि मुस्तफा कमाल के नेतृत्व में तुर्की में खलीफा की सत्ता समाप्त कर दी गई।
  • खिलाफत और असहयोग आन्दोलन के साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन का एक और दौर समाप्त हुआ। इस आन्दोलन ने हिंदू और मुसलमानों की एकता को भी मजबूत बनाया। इस दौरान एक सर्वाधिक लोकप्रिय नारा थाः ‘हिन्दू मुसलमान की जय’। 
  • राष्ट्रीय आंदोलन अब केवल शिक्षित लोगों तक या नगरवासियों तक सीमित न रहकर गाँवों में भी फैल गया। स्वराज की मांग को लेकर लोग खुलेआम मैदान में उतरे।
  • असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद कुछ साल तक कोई देशव्यापी जन-आंदोलन नहीं हुआ। कुछ समय तक देश में व्यापक निराशा छायी रही। साम्प्रदायिक दंगे हुए। 
  • असहयोग आंदोलन के पहले और इसके दौरान जो हिन्दू-मुस्लिम एकता बनी थी वह टूटती नजर आने लगी। 
  • 1923 ई. में स्थापित स्वराज पार्टी ने और कांग्रेस के रचनात्मक कार्यक्रम ने आजादी के आंदोलन की भावना को जीवित रखा और इसके संदेश को सारे देश में फैलाया। 
The document जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. जलियांवाला बाग हत्याकांड क्या है?
उत्तर: जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण घटना है जो 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर, पंजाब में हुई थी। इसमें ब्रिटिश सेना के एक जनरल, रेजिनाल्ड डायर द्वारा जलियांवाला बाग में एक अमनवादी सभा के लोगों पर असंवेदनशील तरीके से आगजनी की गई थी। इस हमले में कई लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।
2. खिलाफत क्या है और इसका स्वतंत्रता संग्राम के साथ क्या संबंध है?
उत्तर: खिलाफत एक इस्लामी आंदोलन था जिसका मानवाधिकारों की हिफाजत और खिलाफत की सुरक्षा की मांग थी। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ा हुआ था क्योंकि यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हुआ था और इसे महात्मा गांधी ने भी समर्थन दिया था। खिलाफत आंदोलन की एक मुख्य गतिविधि थी जिसके तहत भारतीय मुस्लिम समुदाय ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन कर रहे होते थे।
3. असहयोग आन्दोलन क्या है और यह स्वतंत्रता संग्राम में कैसे योगदान दिया?
उत्तर: असहयोग आन्दोलन गांधीवादी आंदोलन का एक प्रमुख घटक था जिसका उद्देश्य था भारतीयों को आधिकारिक, अराजक और असंकेतिक ढंग से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित करना। यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया क्योंकि इसके द्वारा भारतीय जनता एकजुट होकर ब्रिटिश सरकार को नुकसान पहुंचाने में सक्षम हुई।
4. यूपीएससी क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: यूपीएससी (UPSC) भारतीय नगर सेवा कमीशन का संक्षिप्त रूप है जो भारतीय संघ लोक सेवा परीक्षा का आयोजन करता है। यह परीक्षा भारतीय सरकार के विभिन्न नगर सेवा पदों के लिए न्यायिक, कार्यकारी और स्थानिक स्तर परीक्षाएं आयोजित करती है। यूपीएससी परीक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से भारतीय नगरिकों को सरकारी पदों के लिए चयन का मौका मिलता है।
5. आईएएस क्या है और यह कैसे जुड़ा हुआ है स्वतंत्रता संग्राम से?
उत्तर: आईएएस (IAS) भारतीय प्रशासनिक सेवा का एक पद है जो यूपीएससी द्वारा चयनित अधिकारियों को प्रशासनिक पदों में नियुक्त करता है। यह पद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है क्योंकि इसके माध्यम से गुणवत्ता और क्षमता से चयनित अधिकारी देश के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रशासनिक कार्य करते हैं और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

past year papers

,

यूपीएससी

,

Sample Paper

,

Previous Year Questions with Solutions

,

MCQs

,

study material

,

pdf

,

जलियांवाला बाग हत्याकांड

,

खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम

,

practice quizzes

,

खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम

,

Objective type Questions

,

जलियांवाला बाग हत्याकांड

,

ppt

,

यूपीएससी

,

Summary

,

इतिहास

,

Free

,

इतिहास

,

video lectures

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

यूपीएससी

,

Important questions

,

Semester Notes

,

जलियांवाला बाग हत्याकांड

,

इतिहास

,

खिलाफत और असहयोग आन्दोलन - स्वतंत्रता संग्राम

,

shortcuts and tricks

,

Extra Questions

,

mock tests for examination

,

Viva Questions

;