(i) नगर निगम, (ii) नगर पालिका, (iii) नगर क्षेत्रा समितियां,(iv)अधिसूचित क्षेत्रा समिति तथा (v)छावनी परिषद्।
74वां संविधान संशोधन अधिनियम
22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा द्वारा तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्य सभा द्वारा पारित और 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत एवं 1 जून, 1993 से प्रवर्तित 74वें संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय नगरीय शासन के सम्बन्ध में संविधान में भाग 9-क तथा 18 नये अनुच्छेदों एवं 12वीं अनुसूची जोड़कर निम्नलिखित प्रावधान किया गया है -
(i) प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद् तथा नगर निगम का गठन किया जाएगा। नगर पंचायत का गठन उस क्षेत्रा के लिए होगा, जो ग्रामीण क्षेत्रा से नगरीय क्षेत्रा में परिवर्तित हो रहा है। नगर पालिका परिषद का गठन छोटे नगरीय क्षेत्रों के लिए किया जाएगा, जबकि बड़े नगरों के लिए नगर निगम का गठन होगा।
(ii) तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगर पालिका के क्षेत्रा में एक या अधिक वार्ड समितियों का गठन होगा।
(iii) प्रत्येक प्रकार के नगर निकायों के स्थानों के लिए अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए उनके जनसंख्या के अनुपात में स्थानों को आरक्षित किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए कुल स्थानों का 30 प्रतिशत आरक्षित होगा।
(iv) नगरीय संस्थाओं की अवधि पांच वर्ष होगी, लेकिन इन संस्थाओं का 5 वर्ष के पहले भी विघटन किया जा सकता है और विघटन की स्थिति में 6 माह के अन्दर चुनाव कराना आवश्यक होगा।
(v) नगरीय संस्थाओं की शक्तियां और उत्तरदायित्व क्या होगा, इसका निर्धारण राज्य विधान मण्डल कानून बनाकर कर सकती है। राज्य विधान मण्डल कानून बनाकर नगरीय संस्थाओं को निम्नलिखित के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व और शक्तियां प्रदान कर सकती है -
(अ) नगर में निवास करने वाले व्यक्तियों के सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास के लिए योजना तैयार करने के लिए,
(ब) ऐसे कार्यों को करने तथा ऐसी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए, जो उन्हें सौंपा जाए।
(क) नगरीय योजना (इसमें शहरी योजना भी सम्मिलित है),
(ख) भूमि उपयोग का विनियम और भवनों का निर्माण,
(ग) आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना,
(घ) सड़कें और पुल,
(ङ) घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के निमित्त जल की आपूर्ति,
(च) लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई तथा कूड़ा-करकट का प्रबन्ध,
(छ) अग्निशमन सेवायें,
(ज) नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिक पहलुओं की अभिवृद्धि,
(झ) समाज के कमजोर वर्गों (जिसके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मन्द व्यक्ति सम्मिलित है) के हितों का संरक्षण
(त्र) गन्दी बस्तियों में सुधार,
(ट) नगरीय निर्धनता में कमी,
(ठ) नगरीय सुख सुविधाओं, जैसे पार्क, उद्यान, खेल का मैदान इत्यादि की व्यवस्था,
(ड) सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक पहलुओं की अभिवद्धि,
(ढ) कब्रिस्तान, शव गाड़ना, शमशान और शवदाह तथा विद्युत शवदाह,
(ण) पशु-तालाब तथा जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना,
(त) जन्म-मरण सांख्यिकी (जन्म-मरण पंजीकरण सहित),
(थ) लोक सुख सुविधायें (पथ-प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टाप, लोक सुविधा सहित),
(द) वधशालाओं तथा चर्म शोधनशालाओं का विनियमन।
(vi) राज्य विधान मण्डल कानून बनाकर उन विषयों को विहित कर सकती है, जिन पर नगरीय संस्थाय कर लगा सकती है।
(vii) नगरीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करने के लिए वित्त आयोग का गठन किया जाएगा, जो करों, शुल्कों, पथकरों, फीसों की शुद्ध आय और संस्थाओं तथा राज्य के बीच वितरण के लिए राज्यपाल से सिफारिश करेगा।
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