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Essays (निबंध): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

ESSAY 1

साक्षरता द्वारा महिलाओं के लिये समानता


‘‘बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिल भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी-जैसी माँ’’

उपर्युक्त पंक्तियाँ क्या कहना चाहती हैं और वो किस सामाजिक स्थिति की ओर हमारा ध्यान ले जाना चाह रही हैं? माँ याद करने पर दिनभर घर में काम करने वाली माँ ही याद आती है। चाहे वह बीवी, बेटी, बहन या पड़ोसन की ही भूमिका क्यों न निभा रही हो।
अवलोकन एवं तत्त्व चिंतन से यह पता चलता है कि प्रकृति ने महिला एवं पुरुष का निर्माण परस्पर पूरक के रूप में किया है। स्त्री एवं पुरुष के बीच का शाश्वत, मूल, प्राकृतिक या वास्तविक संबंध समानता का होता है, न कि एक गौण और दूसरा प्रधान हो। किंतु विडंबना है कि आज स्त्री और पुरुष के मध्य असमानता की खाई व्याप्त हो गई है जो उपर्युक्त पंक्तियों में स्पष्ट नजर आती है। हमें यह देखना होगा कि इस असमानता का स्वरूप क्या है, अर्थात् नारी को आज किन-किन रूपों में अन्याय, अत्याचार एवं अपमान सहना पड़ रहा है और किन विधियों द्वारा महिलाओं की स्थिति में समानता की पुर्नस्थापना की जा सकती है।
साक्षरता के अर्थ पर अगर गौर करें तो इसका शब्दार्थ होता है अक्षर ज्ञान से युक्त होने की स्थिति। इस स्थिति में व्यक्तिगत स्तर पर साक्षरता को वयैक्तिक साक्षरता एवं सामूहिक स्तर पर सामाजिक साक्षरता कहते हैं। उसी प्रकार साक्षरता का व्यापक अर्थ होता है पढ़ा-लिखा या विद्वान परंतु यदि साक्षरता के व्यावहारिक अर्थ को देखते हैं तो इन दोनों के मध्य भी एक मध्यममार्गी अर्थ है जो अधिक उपयोगी तथा व्यवहार्य है। महिला समानता से तात्पर्य है महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार की प्राप्ति व उनका उपभोग। महिलाओं की असमानता के स्वरूप पर अगर बात की जाए तो सिर्फ पिछड़े ग्रामीण समाज में ही नहीं अपितु शहरी प्रगतिशील आधुनिक समाज में भी महिलाओं को विभिन्न स्थानों पर असमानता का सामना करना पड़ता है। लेकिन महिलाओं की यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब वे निरक्षर होती हैं
महिलाओं के साथ असमानता की स्थिति उनके जन्म लेने के पूर्व से ही शुरू हो जाती है। लड़की की तुलना लड़के के जन्म की इच्छा एक प्रगतिशील समाज के लिये श्राप के समान होता है, परंतु आज भी कई स्थानों पर बेटी के जन्म लेने के पूर्व ही उसे मार दिया जाता है। जन्म लेने के उपरांत भी पालन-पोषण में असमानता दिखाई देती है। खान-पान एवं वस्त्रों के चयन में यह निश्चित रूप दिखाई देता है। शिक्षा के संदर्भ में बात की जाए तो आज भी पुरुष  साक्षरता दर, महिला साक्षरता दर की अपेक्षा ज्यादा है जो समाज की हकीकत को बयाँ करता है। नौकरी में अवसर के संदर्भ में देखा जाए तो वहाँ भी पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा अधिक वरीयता प्राप्त है। अधिक शारीरिक श्रमवाली नौकरियों में पुरुषों का एकाधिकार स्थापित है एवं बच्चों के जन्म से लेकर लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने के कारण भी महिलाओं को कई जगह नौकरी में प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भी महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा पीछे ही पाई गई हैं। न उन्हें इच्छानुसार खर्च करने की स्वतंत्रता होती है और न ही घर की अर्थव्यवस्था पर अधिकार। खेलकूद से लेकर स्वास्थ्य स्थिति तक में पाया गया है कि इन सब क्षेत्रों में भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा निम्न है।
इन सभी को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि समाज द्वारा इन असमानताओं को दूर करने के प्रयास किये जाएं। लेकिन इससे पहले यह भी जरूरी है कि महिलाएँ अपने अधिकार की रक्षा हेतु स्वयं सामने आएँ और समाज का कर्त्तव्य है कि उन्हें इस कार्य में सहयोग करे।

‘‘किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो।’’

समाज में नारी के प्रति व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिये नए एवं समान कानूनी व्यवस्थाओं और उनका क्रियान्वयन आवश्यक है। गर्भ परीक्षण, पोषण, उत्तराधिकार एवं नौकरी जैसे अनेक क्षेत्रों में अब भी कानूनी व्यवस्थाएँ अपूर्ण एवं विसंगतिपूर्ण है। समान कानून बनाना एवं सुधारना ही पर्याप्त नहीं, उनका सही रूप से क्रियान्वयन भी हो, ऐसी व्यवस्था स्थापित करना आवश्यक है।
समाज में बुद्धिजीवी लोगों को एकत्रित कर नारी की सामाजिक स्थिति में सुधार एवं उत्थान के संबंध में अनेक कानूनी प्रयास किये जाने चाहिये।
कानूनी समानता संबंधी तमाम उपायों के बावजूद आज देश की काफी कम महिलाएँ राजनीतिक पदों पर पहुँच सकी हैं। राजनीतिक स्तर पर इस विषमता को दूर करने के लिये जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक पदों पर महिलाओं के लिये आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिये। वर्तमान में महिलाओं को आर्थिक मामलों में वांछित स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। संपत्ति में समान भागीदारी देकर एवं आर्थिक अनुबंधों में लगी पाबंदियाँ हटाकर महिलाओं के आर्थिक अधिकार को संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।
नारी समानता की पक्षधर धार्मिक व्यवस्थाएँ भी पुन: प्रखरता से लागू की जानी चाहिये। अन्य लोगों को भी इन व्यवस्थाओं का अनुकरण कर नारी को महत्ता देने का आग्रह करना चाहिये।
खेलकूद के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विशेष आर्थिक प्रावधान, विशेष खेल के मैदान, महिला क्रीड़ा शिक्षिकाओं की नियुक्तियाँ, महिला खेल छात्रवृत्तियाँ एवं साथ ही पृथक खेल टूर्नामेंट आयोजित कराने चाहिये।
साक्षरता से महिलाओं में नवीन चेतना का संचार होगा। चेतना या जागृति आने से तमाम प्रकार की असमानताएँ, अन्याय, अत्याचार जैसी स्थिति दूर हो जाती है। साक्षर समाज राजनीतिक, कानूनी एवं व्यवस्था संबंधी तथा परंपरागत उपाय करके लिंग समानता की स्थिति का निर्माण कर लेता है। महिलाओं का वर्तमान पिछड़ापन दूर करके उन्हें समानता के वास्तविक स्तर पर लाने का एकमात्र उपाय ‘साक्षरता’ है। उनका वास्तविक उत्थान एवं असली समानता उनकी साक्षरता में है।

ESSAY 2

आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण कितने अलग?

यदि अतीत में झाँक कर देखें तो पता चलता है कि यूरोप, अमेरिका आदि देशों में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में तीव्र प्रगति हुई। विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कारों के बदौलत चिकित्सा, व्यापार, परिवहन, शिक्षा इत्यादि क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई। इस प्रगति के कारण पाश्चात्य देशों का विश्व के सभी देशों के ऊपर काफी  प्रभुत्व स्थापित हुआ। भारत में भी अमेरिका एवं यूरोप आदि देशों के विकास का लोहा माना गया और उन्हें आदर्श मान उनका अनुकरण किया जाने लगा। भारत में इन देशों की बढ़ती प्रतिष्ठा के कारण पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति को अपनाने की एक होड़ सी पैदा हो गई। भारत के साथ अन्य देशों में भी पाश्चात्यीकरण की बयार बहने लगी। इसके साथ ही विकसित हुए प्रत्येक प्रचलन एवं खोजों को भी पाश्चात्यीकरण का रूप माना जाने लगा। धीरे-धीरे आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण को एक माना जाने लगा।
आगे चलकर जब पाश्चात्यीकरण के दोष सामने आने लगे तो लोग आधुनिकता में भी पाश्चात्यीकरण का प्रभाव ढूंढने लगे। इस स्थिति को दूर करने के लिये विचारकों को इस तथ्य के साथ सामने आना पड़ा कि आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण एक नहीं हैं अपितु ये एक दुसरे से भिन्न हैं। इस भिन्नता को समझने के लिये इस तथ्य पर गहराई पूर्वक चिंतन करने की आवश्यकता है।
मनुष्य जब परंपरागत विचारों, कार्यों, पद्धतियों और जीवनशैली को प्रभावी समयानुसार एवं अर्थपूर्ण बनाने के लिये जब उसमें नए नए विचारों, सोच एवं तकनीक का समावेशन करता है तो यह प्रक्रिया आधुनिकीकरण का रूप ले लेती है। जबकि पाश्चात्यीकरण का अर्थ पश्चिमी गोलार्द्ध में स्थित देश मुख्यतः फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली तथा अमेरिका से लगाया जाता है।
क्योंकि इन देशों ने ही भूतकाल में वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आदि क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति की थी अतः इनकी  धाक संपूर्ण विश्व में स्थापित हो गई है। इस सफलता और विकास से प्रभावित होकर बाकी देश भी इन देशों की सभ्यता और संस्कृति को अपनाने लगे। इन देशों की वैज्ञानिक सोच एवं पद्धति को अपनाने के साथ इनके रहन-सहन, वेश-भूषा और खान-पान तथा दिनचर्या को भी अपनाने लगे। हम ऐसा भी कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों की सभ्यता एवं संस्कृति का अनुकरण  और उसे आत्मसात करने की प्रक्रिया ही पाश्चात्यीकरण है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दोनों अवधारणाएँ एक नहीं अपितु एक ही प्रकृति एवं प्रक्रिया से विकसित दो भिन्न तत्त्व हैं। हालांकि इन दोनों में काफी समानताएँ हैं जिसके कारण इन्हें एक माने जाने की भूल होती रहती है किंतु बारीकी से गौर करने पर इनके मध्य  विषमताएँ भी दृष्टिगोचर होती हैं।
अगर समानताओं की बात करें तो दोनों ही वर्तमान काल की प्रक्रियाएँ हैं जो वैज्ञानिक उन्नति के कारण प्रकाश में आई थीं। चूँकि पाश्चात्य देशों द्वारा आधुनिकीकरण को अधिक तीव्रता से अपनाया गया अतः वे आधुनिकीकरण के पर्याय बन गए। वस्तुतः आधुनिकीकरण की आधुनिक अवधारणा का विकास पश्चिमी जगत से ही हुआ था इसलिये भी पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण मान लिया जाता है।
इसी प्रकार अगर असमानताओं की बात की जाए तो यह भिन्नता दोनों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
असमानताएँ

  • आधुनिकीकरण:
    • आधुनिक समय की अवधारणा पर आधारित होने के कारण ‘काल तत्व’ आधार।
    • आधुनिकीकरण, प्रकृति के परिवर्तनशीलता से ऊर्जा प्राप्त करता है।
    • आधुनिकीकरण की उत्पत्ति किसी भी देश में होने वाले नवाचार से संभव है।
    • आधुनिकीकरण में सदा नई प्रक्रिया का समावेश रहता है। 
    • आधुनिकीकरण अपनाने की प्रक्रिया देश को गौरवान्वित करती है।
  • पाश्चात्यीकरण:
    • पाश्चात्यीकरण पश्चिमी देशों से संबंधित अवधारणा है जिसमें ‘स्थान’ प्रमुख तत्त्व है। 
    • पाश्चात्यीकरण अपनाने की ऊर्जा पश्चिमी देशों की भौतिक देशों की मौलिक वैज्ञानिक सफलताओं से प्राप्त होती है। 
    • पाश्चात्यीकरण पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति, जीवनशैली को अपनाकर ही संभव है।
    • पाश्चात्यीकरण एक रूढ़ भाव है जो पुरातन भी हो सकता है।
    • पाश्चात्यीकरण को अपनाने वाले देश हीनता का अनुभव भी कर सकते हैं।

आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण को एक मान लेना एक नितांत भूल साबित होगी क्योंकि इसके कई प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार असत्य को सत्य समझ लेने से विपत्ति की आशंका उत्पन्न होती है उसी प्रकार का प्रभाव यहाँ भी पड़ता है। अगर हम गहराई से विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण दो भिन्न बातें हैं जो ‘अपनी समानताओं’ के कारण अभिन्न प्रतीत होती हैं। किंतु अनेक आधारों पर यह सिद्ध हो चुका है कि दोनों एक नहीं अपितु अलग-अलग हैं। आधुनिकीकरण एक व्यापक शाश्वत और प्रकृति में निरंतर घटित होने वाली प्रक्रिया है जबकि पाश्चात्यीकरण  एक क्षेत्र विशेष, सीमित और संकुचित सभ्यता का ही रूप है।

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FAQs on Essays (निबंध): November 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. परीक्षा की तिथि क्या है?
उत्तर: परीक्षा की तिथि नवंबर 2023 है।
2. नवंबर 2023 में परीक्षा की तैयारी कैसे करें?
उत्तर: नवंबर 2023 में परीक्षा की तैयारी के लिए आपको संगठित रूप से अध्ययन करना चाहिए। आप पिछले साल के पेपर्स का अध्ययन कर सकते हैं, महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और मॉक टेस्ट दे सकते हैं। साथ ही, एक अच्छे अध्ययन सामग्री का उपयोग करें और संदर्भ पुस्तकें खरीदें।
3. इस परीक्षा के लिए पात्रता मानदंड क्या हैं?
उत्तर: इस परीक्षा के लिए पात्रता मानदंड आवेदक की उम्र, शिक्षा योग्यता, नागरिकता आदि पर निर्भर करते हैं। आवेदक को आवेदन पत्र भरने से पहले अधिकारियों द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा।
4. इस परीक्षा में प्रश्नों की संरचना क्या होगी?
उत्तर: इस परीक्षा में प्रश्नों की संरचना विषय के आधार पर अलग होती है। प्रश्न वाणी और लिखित दोनों रूप में हो सकते हैं। आपको विषय के आधार पर छात्र को ज्ञान, समझ और विचार का मापन करने के लिए प्रश्नों को हल करना होगा।
5. इस परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग होगी क्या?
उत्तर: नेगेटिव मार्किंग की उपस्थिति परीक्षा के निर्माताओं द्वारा निर्धारित की जाती है। आपको परीक्षा के निर्देशों को ध्यान से पढ़कर अंकन स्कीम के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। यदि नेगेटिव मार्किंग होती है, तो आपको सतर्क रहना चाहिए और समय से पहले गलत उत्तर देने से बचना चाहिए।
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