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Moral Integrity (नैतिकता अखंडता): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

भारत में पुलिसिंग और नैतिकता

चर्चा में क्यों?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह संदेश दिया कि 'आदर्श पुलिस व्यवस्था' यह दर्शाती है कि पुलिस अधिकारी का काम ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से परिपूर्ण होता है।

पुलिसिंग में नैतिकता

नैतिक निर्णय लेना

  • जीवन और स्वतंत्रता मौलिक नैतिक मूल्य हैं और सभी मानव समाजों में ऐसा माना जाता है, पुलिस को नियमित रूप से यह तय करना पड़ता है कि गिरफ्तार करना है या नहीं अर्थात् किसी की स्वतंत्रता को समाप्त करना है या नहीं, और इसके चरम स्थिति पर कभी-कभी उन्हें यह तय करना होगा कि किसी के जीवन की स्वतंत्रता को सीमित करना है या नहीं।
  • कोई भी नैतिक निर्णय लेते समय पुलिस को कई जटिल कार्रवाइयों पर विचार करना पड़ता है।
  • उन्हें किसी व्यक्ति की अच्छाई और बुराई पर विचार करने से पहले विचार करना होगा कि क्या उनके कार्य गलत हैं या नहीं।
  • किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिये उन्हें कार्रवाई की प्रेरणा और इरादों एवं उसके परिणामों को देखना होगा।

खतरे या शत्रुता का सामना

  • पुलिस को अपना कर्तव्य करने के लिये खतरे या शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है, और अनुमानतः अपने काम के दौरान पुलिस अधिकारियों को अन्य व्यवसायों के लोगों की तुलना में भय, क्रोध, संदेह, उत्तेजना और ऊब सहित कई तरह की भावनाओं का अनुभव होने की संभावना है।
  • पुलिस के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये उन्हें इन भावनाओं का सही तरीके से जवाब देने में सक्षम होना चाहिये, जिसके लिये उनमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता होना आवश्यक है

भारत में नैतिक पुलिसिंग संबंधी विभिन्न चुनौतियाँ

पुलिस का राजनीतिकरण

  • भारत में कानून का शासन है जो न्याय के बुनियाद पर आधारित है, उसे राजनीति के शासन ने कमज़ोर कर दिया है।
  • पुलिस के राजनीतिकरण का प्रमुख कारण विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की नियुक्ति के लिये उचित कार्यकाल नीति का अभाव और राजनीतिक हित के लिये उपयोग किये जाने वाले मनमाने तबादले एवं पोस्टिंग हैं।
  • राजनेता पुलिस अधिकारियों को वश में करने के लिये स्थानांतरण और निलंबन को हथियार के रूप में उपयोग करते हैं।
  • ये दंडात्मक उपाय पुलिस के मनोबल को प्रभावित करते हैं और संगठन के भीतर कमांड की शृंखला को हानि पहुँचाते हैं, जिससे उनके वरिष्ठ अधिकारियों के अधिकार को कम किया जा सकता है जो ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष हो सकते हैं, लेकिन पर्याप्त रूप से सहायक या राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं हैं।

पुलिस की मनमानी

  • ‘बेले’ (Bayley) और ‘एथिकल इश्यूज इन पोलिसिंग’ (Ethical Issues in Policing) जैसी पुस्तकों में लेखकों का मानना है कि कानून के शासन को राजनीति के शासन से बदला जा रहा है, जो देश में सुशासन की स्थापना के लिये चिंता का विषय है।
  • उनके अनुसार, पुलिस का गैर-ज़िम्मेदाराना और मनमानी पूर्ण व्यवहार इसके प्रमुख कारक हैं और यह उन ईमानदार और सक्षम पुलिस अधिकारियों को हतोत्साहित करता है जो भारतीय पुलिस संस्थानों का नवीनीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं।

भ्रष्टाचार

  • हालाँकि भ्रष्टाचार दुनिया के हर हिस्से में प्रचलित है, भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, 2021 में 180 देशों में से 85 वें स्थान पर है।
  • लगभग प्रत्येक स्तर पर और विभिन्न रूपों में विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से पुलिस विभाग अछूता नहीं है।
  • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी भ्रष्टाचार गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं और ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ निम्न श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को रिश्वत लेते पकड़ा गया है।

हिरासत में होने वाली मौतें

  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में हिरासत में होने वाली मौतों की कुल संख्या वर्ष 2020-21 में 1,940 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 2,544 हो गई।
  • उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में हिरासत मेंं होने वाली मौत के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए हैं।

अवपीड़न के तरीकों का उपयोग

  • पुलिस अवपीड़न (Police Coercion) शब्द को सबसे अच्छी तरह से परिभाषित किया जा सकता है, जब एक पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध से अपराध के स्वीकारोक्ति के प्रयास में अनुचित दबाव या धमकी का उपयोग करता है।
  • पुलिस अवपीड़न कई रूप ले सकती है और पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया जाता रहा है कि अपराध को कबूल कराने के प्रयास में विभिन्न प्रकार के अनुचित दबाव का उपयोग किया जाता है।

संबंधित सुझाव

  • शाह आयोग की सिफारिश (1978): शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट (रिपोर्ट संख्या II, 26 अप्रैल, 1978) में सुझाव दिया था कि सरकार को देश की राजनीति से पुलिस को निष्पक्ष रखने की व्यवहार्यता और वांछनीयता पर गंभीरता से विचार करना चाहिये और उन्हें पुलिस कर्तव्यों के अनुसार ईमानदारी से नियुक्त करना चाहिये।
  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977): पुलिस को बाह्य और आंतरिक प्रभाव से बचाने के लिये, राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने कई महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिये हैं। आयोग के अनुसार हिरासत में बलात्कार, पुलिस फायरिंग से मौत और अत्यधिक बल प्रयोग के मामले में न्यायिक जाँच को अनिवार्य किया जाना चाहिये।

मॉडल पुलिस अधिनियम

  • आदर्श पुलिस अधिनियम बनाने के लिये सोली सोराबजी समिति की स्थापना की गई थी।
  • समिति ने वर्ष 2006 में "पुलिस को एक कुशल, प्रभावी, जन अनुकूल और उत्तरदायी एजेंसी के रूप में संचालित करने में सक्षम बनाने के लिये"अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।
  • सामान्य तौर पर, समिति ने प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण किया।
  • वर्ष 2006 के प्रकाश सिंह मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस सुधार के उद्देश्य से 7 निर्देश जारी किये थे।
  • भारत सरकार ने संसद में वादा किया था कि निकट भविष्य में एक मॉडल पुलिस अधिनियम पेश किया जाएगा, जो अभी तक नहीं हुआ है।

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आगे की राह

मानवाधिकारों की रक्षा करना

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को "शासन में कम और जवाबदेही में अधिक" होना चाहिये।
  • इसके अलावा पुलिस नैतिकता और पुलिस संस्थान लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिये उच्चतम नैतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हैं।अतः मानवाधिकारों की सुरक्षा पुलिस का मुख्य कार्य है।

पुलिस द्वारा नैतिक सिद्धांतों का पालन

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार, पुलिस को सावधानीपूर्वक तैयार किये गए नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये जो पीड़ितों के नैतिक अधिकारों को संदिग्धों के साथ उचित रूप से संतुलित करते हैं
  • उदाहरण के लिये नागरिकों और स्वयं की सुरक्षा के लिये पुलिस द्वारा बल का उपयोग आवश्यकता एवं आनुपातिकता के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर होना चाहिये।
  • पुलिस का अराजनीतिकरण: राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिश के अनुसार पुलिस का अराजनीतिकरण करना और उसे बाहरी दबावों से बचाने के साथ ही प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर फिर से ज़ोर देना समय की तत्काल आवश्यकता है।

इस मामले में शामिल हितधारक हैं

  • मैं कंपनी के CEO के रूप में
  • कंपनी में नई भर्तियाँ
  • कंपनी के वरिष्ठ कर्मचारी
  • कंपनी के शेयरधारक

CEO के सामने आने वाली स्थितिजन्य चुनौतियाँ हैं

  • संकट प्रबंधन: सीमित संसाधनों के साथ और कर्मचारियों पर बिना या न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव के संकट को कुशलतापूर्वक संभालना।
  • कार्यालय में स्वस्थ कार्य संस्कृति को बनाए रखने और कुशल निर्णय लेने हेतु जनता के बीच विश्वास के लिये समय पर निर्णय लेना।
  • संघर्ष प्रबंधन: इस मुद्दे को हल करने के लिये CEO की कार्रवाई की कार्यप्रणाली ऐसी होनी चाहिये कि कर्मचारी बिना किसी कठिनाई के काम कर सकें।

विभिन्न नैतिक अवयव जिनका उपयोग किया जा सकता है:

  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता: भावनात्मक बुद्धिमत्ता से तात्पर्य 'अपनी और दूसरों की भावनाओं की पहचानने, उन्हें नियंत्रित करने और प्रबंधित करने की क्षमता से है।
  • भावनात्मक गुणक(EQ): यह किसी की EI का एक माप है, यानी एक मानकीकृत परीक्षण के माध्यम से, स्वयं और दूसरों के संबंध में भावनाओं के बारे में जागरूकता का पता चलता है।
  • सहानुभूति: यह व्यक्तिगत रूप से और समूहों में दूसरों की ज़रूरतों तथा भावनाओं के बारे में जागरूकता है तथा यह चीजों को दूसरों के दृष्टिकोण से देखने में सक्षम बनाता है।
  • सामाजिक कौशल: यह सहानुभूति को लागू करता है और दूसरों की ज़रूरतों को किसी व्यक्ति की ज़रूरतों के साथ संतुलित करता है। इसमें दूसरों के साथ अच्छे संबंध बनाना शामिल है।

समस्या को हल करने के लिये सीईओ की कार्रवाई

कार्य योजना

  • चूँकि कंपनी का व्यवसाय उन्नतिशील रहा है और अधिक विशेषज्ञ कर्मचारियों की भर्ती भी की गई है, इसलिये रणबीर को जल्दी से एक बड़े और बेहतर कार्यस्थल की तलाश करनी चाहिये।
  • यदि कर्मचारियों को अभी भी समस्या का सामना करना पड़ता है
    • अपनी कार्य योजना का खुलासा करने के बाद भी यदि कर्मचारी अभी भी उन्हीं पुराने मुद्दों के बारे में शिकायत कर रहे हैं, तो उन्हें उन्हें विश्वास दिलाना चाहिये कि समस्या जल्द ही हल हो जाएगी।

जब तक कार्यालय का विस्तार नहीं हो जाता तब तक वह कुछ छोटे कदम उठा सकता है जैसे

  • शौचालय की सफाई: कर्मचारियों को प्रभावित करने के लिये बहुत छोटे-छोटे कदम उठाना जैसे नियमित रूप से शौचालय की सफाई कराना आदि। लेकिन समस्या जगह की है न कि सफाई की, यह कदम कर्मचारियों को कुछ दिनों के लिये प्रभावित कर सकता है लेकिन यह अंतिम समाधान नहीं होगा।
  • कर्मचारियों को ध्यानपूर्वक सुनना: कर्मचारी की बात को ध्यान से सुनना और फिर उनकी समस्या का समाधान करना महत्त्वपूर्ण विषय है। कार्यालय में नेतृत्वकर्ताओं को यह गुण दिखाने की ज़रूरत है। इसलिये, रणवीर को बैठकों में शिकायतों या कर्मचारियों के कथन को नापसंद करने के बाद भी सामान्य व्यवहार करने की आवश्यकता है।।
  • उसे बैठक में स्विच ऑफ करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसे कर्मचारियों की शिकायतों को अधिक सहानुभूतिपूर्वक सुनना चाहिये। ये बैठकें एक उद्देश्य की पूर्ति करती हैं। यदि वह उन सभी बातों की उपेक्षा करता है जो स्टाफ सदस्यों को कहना है, तो वर्तमान कर्मचारी भी इस्तीफा दे सकते हैं। स्टाफ के सदस्य जो कहते हैं, उसके लिये उसे उत्तरदायी होना चाहिये।
  • उनकी मांगों को नज़रअंदाज करना: वह उनकी मांग और काम को नजरअंदाज कर सकता है लेकिन यह कदम कंपनी की उत्पादकता और भविष्य की संभावनाओं को बाधित कर सकता है।
  • वर्क फ्रॉम होम विकल्प: यह कदम संभावित विकल्प हो सकता है, क्योंकि काम का हाइब्रिड मॉडल प्रदान करके स्थान संबंधी समस्या को हल किया जा सकता है। कर्मचारी आसानी से घर से काम कर सकते हैं और कुछ कर्मचारी कार्यालय आ सकते हैं, यह कार्यालय के बुनियादी ढाँचे संबंधी दबाव को कम करता है।
  • किराए पर कार्यालय की व्यवस्था करना: जब तक उचित कार्यालय स्थल की व्यवस्था न हो, तब तक केवल अस्थायी अवधि के लिये पास में एक अलग किराये से स्थान लेकर कर्मचारियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का समाधान किया जा सकता है और विवाद के सभी पक्षों को संतुष्ट किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • संघर्ष को केवल उस स्थिति में शामिल सभी हितधारकों द्वारा सामूहिक प्रयास के माध्यम से हल किया जा सकता है। कंपनी को अपने सीईओ, वरिष्ठ कर्मचारियों और अन्य कर्मचारियों के बीच भावनात्मक बुद्धिमत्ता, सहानुभूति तथा भावनात्मक गुणक में सुधार के लिये पहल करने की आवश्यकता है। 
  • इससे कर्मचारी स्वतंत्र रूप से अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकते हैं। इसके अलावा कंपनी के सीईओ और प्रबंधन को समस्याओं को अधिक ध्यान से सुनना चाहिये तथा उचित समय पर मुद्दों को हल करने के लिये उचित उपाय करना चाहिये।

डीएम के सामने आने वाली नैतिक और स्थितिपरक चुनौतियाँ हैं

नैतिक मुद्दे

  • तटस्थता: इस मामले ने लोक सेवकों द्वारा तटस्थता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, राज्य को हमेशा तटस्थ रहना चाहिये और धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर पक्षपात नहीं करना चाहिये।
  • निष्पक्षता: दोनों समुदायों के मुद्दों और चिंताओं को एक नज़रिये से देखना और बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह और दुर्भावना के समान प्राथमिकताओं के साथ मुद्दों को हल करना।
  • सहिष्णुता: प्रत्येक धार्मिक समुदाय के व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों, पसंद और नापसंदों के बावजूद शांतिपूर्ण उत्सव की सुविधा प्रदान करना।
  • हितों का टकराव: एक धर्म के पक्ष में डीएम की धार्मिक मान्यता और किसी भी धार्मिक समुदाय को हॉल आवंटित करने का मुद्दा।

स्थितिपरक नैतिकता

  • संकट प्रबंधन: सीमित संसाधनों के साथ और स्थानीय समुदायों पर बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के संकट से कुशलतापूर्वक निपटना।
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखना: दोनों समुदायों के विरोध में कुछ अराजक तत्त्व धार्मिक हिंसा और दंगों को भड़का सकते हैं।
  • कार्यालय में स्वस्थ कार्य संस्कृति को बनाए रखने और जनता के बीच विश्वास के लिये समय पर उचित निर्णय लेना।
  • इस मुद्दे को हल करने के लिये डीएम द्वारा निम्नलिखित कार्रवाई की जा सकती है ताकि दोनों समुदाय अपने
  • त्योहार शांतिपूर्वक मना सकें
    जैसा कि लोग अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाने के लिये विरोध कर रहे हैं। हिंसक विरोध और दंगों की संभावना को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। यहाँ तीन प्रमुख मुद्दे हैं:
  • समुदायों द्वारा विरोध को समाप्त करना,
  • दोनों समुदायों के उत्सव समारोह के लिये हॉल और स्थल के प्रश्न का निर्णय करना।
  • त्योहारों को शांतिपूर्ण तरीके से मनाना।

आइए प्रत्येक मुद्दे को एक-एक करके हल करते हैं

  • चूँकि दोनों समुदाय अपने प्रमुख त्योहारों को मनाने के लिये उत्सुक हैं और अपनी धार्मिक भावनाओं के तहत वे विरोध कर रहे हैं, अतः यह स्थिति हिंसक प्रकृति ले सकती है। समुदायों द्वारा विरोध को समाप्त करने के लिये :
  • दोनों समुदायों के धार्मिक नेताओं को आमंत्रित करें और अन्य सरकारी अधिकारियों के साथ उनसे मिलें।
  • उन्हें इस मुद्दे की संवेदनशीलता के बारे में सूचित करना जैसे कि उनका विरोध समाज में मौजूद कुछ अशांत तत्वों की कार्रवाई के कारण दोनों समुदायों और पूरे समाज की शांति को नुकसान पहुँचा सकता है
  • धरना स्थल पर पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती की व्यवस्था करना।

दोनों समुदायों के उत्सव समारोह के लिये हॉल और स्थल के प्रश्न का निर्णय करना।

  • हम (सार्वजनिक अधिकारी) उन्हें सुनिश्चित करेंगे कि सरकार द्वारा दोनों समुदायों को एक उपयुक्त स्थान, पर्याप्त सुविधाएँ और कड़ी सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
  • और सभी प्रमुख हितधारकों को विश्वास में लाकर सभी निर्णय लिये जाएँगे।
  • लेकिन किसी भी आगे की कार्रवाई के लिये पूर्व-आवश्यक शर्त समुदायों द्वारा विरोध को समाप्त करना है और संबंधित धार्मिक नेताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वो विरोध को समाप्त करने के लिये अपने लोगों का का मार्गदर्शन करेंगे तथा राज्य मशीनरी हर संभव तरीके से नेताओं की मदद करेगी।
  • केस स्टडी में शहर के एकमात्र हॉल का उल्लेख है और वर्तमान में हॉल के लिये दो दावेदार हैं। एक समुदाय को अनुमति देने और दूसरे को हॉल में त्योहार मनाने से मना करने से हितधारकों के बीच टकराव हो सकता है।
  • इसलिये, स्थानों के 2 सेट (या तो सार्वजनिक क्षेत्र या किराए की निजी भूमि) को निर्धारित करेंगे, ये दोनों एक-दूसरे से पर्याप्त रूप से अलग होंगे (भविष्य में किसी भी टकराव से बचने के लिये और अन्य सुरक्षा कारणों से) और समुदाय के नेताओं से समूह में से किसी एक स्थान को चुनने के लिये कहेंगे।
  • सुरक्षा और प्रबंधन से लेकर तमाम इंतजाम सरकार करेगी।
  • प्रशासन सेवाओं के लिये समुदायों से उचित शुल्क भी लेगी और समुदाय को यह सुनिश्चित करेगी कि इस शुल्क का उपयोग भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिये इस तरह के एक और हॉल के निर्माण के लिये किया जाएगा।
  • कार्यक्रम स्थल पर भीड़ को प्रबंधित करने के लिये पड़ोसी ज़िले से सुरक्षा कर्मियों आदि जैसे पर्याप्त संसाधन की मदद ली जाएगी ।

त्योहारों को शांतिपूर्ण तरीके से मनाना।

  • मैं हर चीज और प्रक्रिया के लिये एक उचित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) स्थापित करूँगी
  • मैं किसी भी अप्रत्याशित घटना को रोकने के लिये आयोजन करने वाले लोगों, सरकारी अधिकारियों, मेरे (डीएम) और अन्य हितधारकों के बीच एक उचित और प्रभावी 24*7 संचार लाइन स्थापित करूँगी।
  • आयोजन के दिन अतिरिक्त चौकसी बरती जाएगी।
  • फोर्स (आरएएफ), अग्निशमन सेवाएँ और अन्य तत्काल मांग वाले संसाधनों को हाई अलर्ट मोड पर रखा जाएगा
  • आमतौर पर दुर्लभ संसाधन, विविध समुदाय और भावनात्मक तत्त्व समाज में परेशानी पैदा करते हैं। समाज के प्रत्येक हितधारक का यह कर्तव्य है कि वह विविध पृष्ठभूमि वाले लोगों के बीच सहयोग करके और दुर्लभ संसाधनों का प्रबंधन करके समाज की भलाई में योगदान करे।
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