Table of contents | |
बंगाल पर अंग्रेजों का आधिपत्य | |
प्लासी का युद्ध | |
बक्सर का युद्ध | |
इलाहाबाद की संधि |
अलीवर्दी खान और उसके पूर्व के नवाबों ने यूरोपीय कंपनियों को हमेशा नियंत्रण में रखा। तथा, 1756 ई. में जब सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना, तब तक अंग्रेज केवल व्यापारी ही थे। उनके पास कासिम बाजार में एक कारखाना, तथा कलकत्ता में दुर्ग था।
सिराजुद्दौला के नवाब बनने पर, उसके परिवार के सदस्यों के बीच षड्यंत्र और झगड़े शुरू हो गए। इन साजिशों ने अंग्रेज कम्पनी को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका दिया। इसी बीच, अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों के भय से कलकत्ता दुर्ग की किलेबन्दी प्रारम्भ कर दी।
सिराजुद्दौला शायद कर्नाटक की घटनाओं से अवगत था। उसने किलेबन्दी का विरोध किया, तथा 15 जून 1756 को फोर्ट विलियम को घेर लिया। 5 दिनों बाद, अंग्रेजों ने आत्म-समर्पण कर दिया, मगर गवर्नर रोजर ड्रेक तथा अन्य प्रमुख नागरिक पीछे के द्वार से भाग निकले। सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को बंदी बना लिया।
ब्लैक होल घटना के दौरान सिराजुद्दौला ने 146 अंग्रेजों को एक ही कमरे में कैद कर दिया। अगले दिन सुबह अधिकांश कैदी मृत पाए गए। केवल 23 लोग ही जीवित बचे। इस दुखद घटना को ‘ब्लैक होल घटना’ कहते हैं।
जब कलकत्ता की हार और ‘ब्लैक होल घटना’ की खबर मद्रास पहुंची तो एडमिरल वाटसन और क्लाइव को एक नौसैनिक बेड़े के साथ कलकत्ता पर दुबारा कब्जा करने के लिए भेजा गया।
अंग्रेजों ने कलकत्ता पर कब्जा कर लिया तथा हुगली को नष्ट कर दिया।
बाद में अंग्रेजों और नवाब में हुए समझौते के अनुसार नवाब ने अंग्रेजों को पुनः सारी सुविधाएं तथा कलकत्ता की किलेबन्दी की अनुमति दे दी।
मगर अंग्रेज उतने से संतुष्ट नहीं थे। क्लाइव ने परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए नवाब की सेना के मुख्य सेनापति व असंतुष्ट सरदारों के नेता मीरजाफर से सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाने के लिए एक गुप्त समझौता किया।
इस समझौते के अनुसार अंग्रेजों ने नवाब पर अपनी विजय के उपरांत मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने का वादा किया और इसके एवज में मीर जाफर द्वारा अंग्रेजों को पुरस्कृत करने का वचन दिया गया।
प्लासी का युद्ध नवाब सिराजुद्दौला के और ब्रिटिश कंपनी के बीच लड़े गए थे।
प्लासी का युद्ध
यह युद्ध 23 जून, 1757 को मुर्शिदाबाद से 22 मील दक्षिण में प्लासी नामक स्थान पर हुआ था।
इस युद्ध में ब्रिटिश सेना जो कि क्लाइव के नेतृत्व में थी, नवाब सिराजुद्दौला की सेना को हरा दी। नवाब को पकड़ा लिया गया था और बहुत निर्दयता से मार दिया गया था।
इस युद्ध में मीरजाफर, जो कि नवाब के पूर्वज थे, ने ब्रिटिश के साथ शामिल होकर षड्यंत्र में सहयोग किया था। मीरजाफर को ब्रिटिश कंपनी ने नवाब बनाया था।
जगत सेठ, जो कि बंगाल की वित्त-व्यवस्था पर नियंत्रण रखते थे, भी मीरजाफर का समर्थन करने में शामिल थे।
मीरजाफर को नवाब बनाया गया था। उसने अंग्रेजों को 24 परगना की जमींदारी दी और क्लाइव को 2,34,000 पाउंड की निजी भेंट दी।
बंगाल की समस्त फ्रांसीसी बस्तियां अंग्रेजों को दे दी गई थी और तय किया गया था कि भविष्य में अंग्रेज पदाधिकारियों तथा व्यापारियों को निजी व्यापार पर कोई चुंगी नहीं देनी होगी। इस प्रकार कंपनी का बंगाल में एकाधिकार स्थापित हो गया था।
कंपनी के अफसर और उनके भारतीय दलाल किसानों तथा दस्तकारों को अपना माल बाजार भाव से काफी सस्ता बेचने के लिए मजबूर करते थे। इसके अलावा, कंपनी भी नवाब से भारी धन की मांग करती थी जिसे वह पूरा करने में असमर्थ था। स्थिति इतनी बिगड़ गई थी कि नवाब के पास अपने सैनिकों को वेतन देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं बचा था।
अंततः, मीरजाफर भी कंपनी के खिलाफ होने लगा।
मीरजाफर के दामाद मीर कासिम ने स्थिति का लाभ उठाते हुए 1760 ई. में अंग्रेजों के साथ एक सन्धि कर ली जिसके अनुसार उसने कंपनी को बर्द्धवान, मिदनापुर तथा चटगांव के जिले, सिल्हट के चूने के व्यापार में आधा भाग और कंपनी को दक्षिण अभियान के लिए 5 लाख रुपये देने का वादा किया।
कंपनी के अफसरों ने मीरजाफर को गद्दी से हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया। मीर कासिम ने कंपनी के आला अफसरों को विपुल धनराशि देकर प्रसन्न किया।
मीर कासिम ने अंग्रेज कंपनी पर अपनी पूर्ण निर्भरता की स्थिति को समझा तथा इससे छुटकारा पाने की कोशिश करने लगा।दरअसल, स्वतंत्र होने की कोशिश करने वाला वह बंगाल का आखिरी नवाब था।
उसने मीर जाफर के उन सभी अफसरों को बर्खास्त करना शुरू कर दिया जो कंपनी के समर्थक थे।अपने सैनिकों को युद्ध के नए तरीके सिखाने के लिए उसने यूरोपीय सैनिकों को नियुक्त किया।
वह अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले गया, जहां तोप तथा बन्दूक बनाने की व्यवस्था की गई। आंतरिक व्यापार पर लगे करों को लेकर कम्पनी व नवाब में झगड़ा प्रारम्भ हो गया।
वंसिटार्ट, वारेन हैस्टिंग्स तथा नवाब में एक समझौता हुआ जिसमें नवाब ने इस शर्त पर अंग्रेज व्यापारियों को आंतरिक व्यापार में भागीदार बनाना स्वीकार किया कि वे वस्तुओं के क्रय मूल्य पर 9 प्रतिशत कर देंगे तथा ‘दस्तक’ देने का अधिकार नवाब को ही होगा। लेकिन कलकत्ता परिषद ने इस समझौते को अस्वीकार कर दिया।
मीर कासिम ने कठोर कार्रवाई करते हुए सभी आंतरिक कर हटा लिए जिससे अंग्रेज व भारतीय व्यापारी समान हो गए।
उसके द्वारा उठाए गए कदमों, विशेषकर अंतिम कार्रवाई, से अंग्रेज कंपनी के अफसर नाराज हो गए और उन्हांेने नवाब को हटा देने का फैसला किया।
सन् 1763 ई. में जो लड़ाई हुई उसमें नवाब की सेना हार गई। नवाब को बिहार और बंगाल से खदेड़ दिया गया।
उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के यहां शरण ली।
शुजाउद्दौला सफदरजंग के बाद अवध का नवाब बना था। उस समय मुगल बादशाह शाह आलम ने भी अवध के नवाब की शरण ली थी। शाह आलम के पिता आलमगीर द्वितीय की हत्या हो जाने के बाद वजीर ने उसे दिल्ली में घुसने नहीं दिया था।
बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर, 1764 ई. को पश्चिम बिहार के बक्सर नामक स्थान पर हुआ था। इस लड़ाई में नवाब अवध के सहयोग से मीर जाफर और शाह आलम शामिल थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की तैयारी कर रहे थे। तीनों की संयुक्त सेना और कैप्टन मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेज सेना के बीच तीखी लड़ाई हुई, जिसमें भारतीय सेनाओं की हार हुई। इस लड़ाई के बाद ब्रिटिश सेना ने बक्सर शासन का आरम्भ कर दिया।
मीरजाफर 72 वर्ष की आयु में दोबारा बंगाल का नवाब बनाया गया। उसके बाद उसके बेटे को नवाब बनाया गया।
सन् 1765 ई. में अवध के नवाब वजीर शुजाउद्दौला, मुगल सम्राट शाह आलम और अंग्रेज कम्पनी का गवर्नर क्लाइव के बीच समझौता हुआ।
समझौतों के अनुसार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल गई। इससे कंपनी को इन प्रदेशों से राजस्व वसूली का अधिकार मिल गया।
अवध के नवाब ने इलाहाबाद और कोरा या कड़ा मुगल बादशाह को दे डाला।
मुगल बादशाह ब्रिटिश सैनिकों के संरक्षण में इलाहाबाद में रहने लगा।
कंपनी ने मुगल बादशाह को हर साल 26 लाख रुपये देना मंजूर किया, मगर जल्दी ही वह अपने वादे से मुकर गई और भुगतान रोक दिया।
बाहरी हमलों से अवध के नवाब की रक्षा के लिए कंपनी ने अपनी सेना भेजने का वचन दिया, मगर सेना का खर्च उठाने की जिम्मेदारी नवाब की थी। इस प्रकार अवध का नवाब कंपनी का आश्रित हो गया।
सन् 1765 से 1772 तक बंगाल में दोहरी सरकार रही, क्योंकि वहां एक साथ दो सत्ताएं शासन कर रही थीं।
सेना और राजस्व-वसूली अंग्रेजों के हाथों में थी और प्रशासन संभालने का काम नवाब के जिम्मे था।
ऐसी स्थिति में अपने अधिकारों को अमल में लाने के लिए नवाब के पास कोई साधन नहीं रह गए थे।
दूसरी तरफ, सारी शक्ति अंग्रेजों के हाथ में थी, मगर जिम्मेवारी कोई नहीं। 1770 ई. में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा। कंपनी और उसके अफसरों के दुव्र्यवहारों ने अकाल को और भी अधिक भयावह बना दिया।
सन् 1772 ई. में इस द्वैध शासन व्यवस्था को खत्म कर दिया गया और बंगाल पर कम्पनी का सीधा शासन लागू हो गया।
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1. बंगाल पर अंग्रेजों का आधिपत्य कब स्थापित हुआ? |
2. प्लासी का युद्ध कब हुआ था? |
3. बक्सर का युद्ध कब हुआ था? |
4. इलाहाबाद की संधिप्लासी का युद्ध कब हुआ था? |
5. ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अंग्रेजों का आधिपत्य कैसे स्थापित किया? |
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