UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC

प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

प्राणि विज्ञान
सन्तुलित आहार (Balanced diet)

  • वह भोजन जिसमें शरीर की वृद्धि एवं स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक सभी पोषक पदार्थ एवं तत्व निश्चित अनुपात में उपस्थित हों, सन्तुलित आहार कहलाता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए उसकी आयु, वातावरण एवं उसके कार्य की प्रकृति के अनुसार सन्तुलित भोजन के पदार्थों और तत्वों की मात्र अलग-अलग होती है। 
  • सामान्यतः एक सामान्य कार्य करने वाले औसत युवा मनुष्य को 3,000 से 3,500 कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न करने लायक भोजन की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भोजन में लगभग 90 ग्राम प्रोटीन, 400 से 500 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 50 से 70 ग्राम वसा तथा अन्य आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है। 
  • बचपन में जब वृद्धि तेजी से होती है तब अपेक्षाकृत अधिक भोजन की आवश्यकता होती है। प्रौढ़ावस्था में अपेक्षाकृत कम भोजन की आवश्यकता होती है। पुरुष और बालकों को स्त्रियों तथा बालिकाओं की तुलना में अधिक भोजन चाहिए। 
  • इसी प्रकार ठंडी जलवायु में अथवा शीतकाल में गर्म जलवायु तथा ग्रीष्मकाल की तुलना में अधिक मात्र में भोजन की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति अधिक परिश्रम करते है और सक्रिय जीवन व्यतीत करते है उनके भोजन की मात्र अधिक होनी चाहिए। 
  • शरीर में भोजन की प्रमुख भूमिका ईंधन के रूप में होती है। पाचन के पश्चात् पोषक तत्वों के कारण ऊर्जा और ताप निवृत होता है, जिससे शरीर का तापक्रम उचित बना रहता है तथा विभिन्न कार्यकलाप सम्भव होते है।

- विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों में ऊर्जा उत्पादन की क्षमता समान नहीं होती। उसी मात्र में किसी प्रकार के भोज्य पदार्थ से अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है तो किसी अन्य प्रकार से कम। 

  • इन भोज्य पदार्थों के ऊर्जा मूल्य की माप की जा सकती है। कैलोरी वह इकाई है जिसमें इसे मापा जाता है। ताप ऊर्जा की वह मात्र है जो एक ग्राम जल के तापक्रम को एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाए, एक कैलोरी होती है। 
  • वसा, कार्बोहाइड्रेट तथा फालतू प्रोटीन (जिनकी ऊतकों के निर्माण हेतु आवश्यकता नहीं होती), वे भोज्य पदार्थ है जो ऊर्जा प्रदान करते है। एक ग्राम शुद्ध वसा में ऊर्जा 9 कैलोरी होती है। इसी प्रकार एक ग्राम शुद्ध कार्बोहाइड्रेट में 4 कैलोरी तथा एक ग्राम प्रोटीन में 4 कैलोरी होती है। 
  • संतुलित भोजन की दृष्टि से भोजन की मात्र तथा उसकी गुणता दोनों ही महत्वपूर्ण है। यदि इन दोनों की पूर्ति नहीं होती तो कुपोषण की स्थिति बनती है।


 

प्राणियों का वर्गीकरण

प्रमुख वर्ग

प्रमुख लक्षण

प्रमुख उदाहरण

प्रोटोजोआ (Protozoa)

सरलतम, सूक्ष्मदर्शीय, एक-कोशिकीय जन्तु।

अमीबा, युग्लीना, पैरामीशियम, माॅनोसिस्ट, मलेरिया, परजीवी इत्यादि।

पाॅरीफेरा (Porifera)

बहुकोशिकीय, छिद्रयुक्त शरीर।

विभिन्न प्रकार के स्पंज; जैसे-ल्यूकोसोलेनिया, साइकन आदि।

सीलेण्टरेटा (Coelenterata)

बहुकोशिकीय शरीर, शरीर के भीतर अन्तरगुहा, गुदा अनुपस्थित, प्रचलन हेतु संस्पर्शक।

हाइड्रा, ओबेलिया, जेलीफिश, समुद्री एनीमोन, कोरल, फाइसैलिया इत्यादि।

प्लेटीहेल्मिन्थिस (Platyhelminthes)

शरीर पत्ती-जैसा, फीता-जैसा आदिचूषक एवं शुक उपस्थित, गुदा अनुपस्थित।

लिवरफ्लक, टेपवर्म आदि।

निमैटिहेलिन्थिस (Nematehelminthes)

शरीर लम्बा, बेलनाकार, गुदा उपस्थित।

गोल कृमि-ऐस्केरिस, हुकवर्म, आॅक्ज्यूरिस इत्यादि।

एनेलिडा (Annelida)

शरीर लम्बा, बेलनाकार, खंडयुक्त।

केचुआ, नेरीस, जोंक इत्यादि।

आथ्र्रोपोडा (Arthropoda)

खण्डयुक्त एवं शरीर सिर,वक्ष तथा उदर में विभेदित। शरीर के ऊपर काइटिन का बना कड़ा आवरण, प्रचलन हेतु सन्धिपाद।

केंकड़ा, झींगा, बिच्छू, मक्खी, मच्छर, टिड्डी, लोकस्ट, तितली, मधुमक्खी, तेलचट्टा, लाब्सटर, मकड़ी, भौंरा, गोजर इत्यादि।

मोलस्का (Mollusca)

कोमल शरीर कैल्शियम कार्बोनेट के बने कड़े आवरण के भीतर,  जिसको कवच (shell) कहते है।

सीप, घोंघा, आॅक्टोपस, कट्ल-फिश, स्लग इत्यादि।

इकाइनोडर्माटा (Echinodermata)

समुद्री जन्तु, कांटेदार त्वचा।

तारामीन या स्टारफिश, सी-अर्चिन, समुद्री खीरा या सी-कुकम्बर आदि।

प्रोटोकाॅर्डेटा (Protochordata)

नोटोकाॅर्ड जीवनभर उपस्थित; शरीर सिर, धड़ एवं उदर में  विभेदित नहीं।

एम्फीआॅक्सस, बलैनोग्लोसस, हर्डमैनिया।

मत्स्य या पीसीज

नौकाकार शरीर, पंख एवं

रोहू या लेबियो, कतला, हिल्सा, सार्डीन,

(Pisces)

गिल उपस्थित, जल-निवासी, शीतरक्तीय।

नैन, सौर, सिंधी, माँगुर, टेंगरा, शार्क, समुद्री घोड़ा इत्यादि।

उभयचर या एम्फीबिया (Amphibia)

जल एवं थल में समान रूप से वास, चिकनी एवं ग्रन्थियुक्त त्वचा, शीतरक्तीय।

मेढक या राना टिग्रिना, टोड या बूफो, हायला, सैलामैण्डर इत्यादि।

सरीसृप या रेप्टीलिया (Reptilia)

स्थलवासी, शल्कयुक्त त्वचा, शीतरक्तीय।

विभिन्न प्रकार की छिपकलियाँ-दीवार छिपकली, गिरगिट, वैरनस इत्यादि। विभिन्न प्रकार के साँप-धामिन, अजगर, नाग या कोबरा, करेत, जलसर्प, समुद्री सर्प इत्यादि। कछुआ, घड़ियाल, मगर इत्यादि।

पक्षी या एवीज (Aves)

उष्णरक्तीय, शरीर हवा में  उड़ने के लिए अनुकूलित, त्वचा पर पंख उपस्थित।

सारस, मोर, उल्लू, कोयल, धनेश, गिद्ध, तोता, मैना, बुल-बुल, चील, बाज, गोरैया, नीलकंठ, कबुतर, बगुला, मुर्गी, बत्तख, कौआ इत्यादि।

स्तनधारी या मैमेलिया (Mammalia)

त्वचा पर बाल उपस्थित, उष्णरक्तीय, त्वचा में स्वेद ग्रन्थियाँ उपस्थित, जबड़ों में  विभिन्न प्रकार के दाँत, मादा में स्तनग्रन्थि उपस्थित।

शेर, चीता, तेंदुआ, हिरण, सांभर, बारहसिंघा, हाथी, गैंडा, ऊँट, घोड़ा, गधा, गाय, भैंस, सुअर, बकरी, भेड़, कुत्ता, बिल्ली, लोमड़ी, लकड़हारा, सियार, चूहा, छुछून्दर, खरगोश, भालू, रीछ, चमगादड़, गिलहरी, बन्दर, मनुष्य इत्यादि।

 

WBC के प्रकार

कुल WBC का%

में संश्लेषण होता है

कार्य की प्रकृति

1. ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes)

 

 

 

(क) बेसोफिल्स (Basophils)

5

लाल अस्थि मज्जा

फेगोसाइटिक नहीं  हैं

(ख) इओसिनोफिल्स (Eosinophils)

3

लाल अस्थि मज्जा

फेगोसाइटिक नहीं  हैं

(ग) न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils)

67

लाल अस्थि मज्जा

फेगोसाइटिक हैं

2. एग्रेन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes)

 

 

(क) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)

28

लिम्फ नोड

घाव के भरने में सहायक  हैं

(ख) मोनोसाइट्स  (Monocytes)

1.3

लिम्फ नोड

फेगोसाइटिक  हैं

 

कंकाल तंत्र
- मानव शरीर के हड्डियों को चार भागों में बाँटा जा सकता है-1. खोपड़ी, 2. रीढ़ तथा छाती, 3. बाँह तथा पैर, और 4. कंधा तथा जाँघ।
    1. खोपड़ी या स्कल (Skull): इसमें 29 हड्डियाँ होती है-8 हड्डियाँ खोपड़ी के ऊपरी भाग में तथा 21 हड्यिाँ निचले भाग में।
    2. रीढ़ तथा छाती की हड्डियाँः रीढ़ की हड्डियाँ छोटी-छोटी छल्लेदार हड्डियों की बनी होती है। इन्हें कशेरूक या वर्टेब्री (Vertebrae) कहते है। मनुष्य के शरीर में कुल 33 कशेरूक होते है।
 

 

विभिन्न चिकित्सा उपकरण

 चिकित्सा उपकरण

उपयोग

1.  इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (ECG)

हृदय के संकुचन एवं प्रसार के समय उसमें उत्पन्न विद्युत वाहक बल को मापना, हृदय में किसी अन्य प्रकार के विकार का पता लगाना।

2. इलेक्ट्रोएन्सिफैलोग्राफ (EEG)

मस्तिष्क में होने वाली विद्युत क्रियाओं को निरूपित करना, मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का निरूपण करना।

3. आटो एनालाइजर

विभिन्न जैव रासायनिक तत्वों जैसे ग्लूकोज, यूरिया, कोलेस्ट्रोल इत्यादि की जांच करना।

4. सीटी स्कैन

सम्पूर्ण शरीर के किसी भाग में असामान्यता या विकृति का पता लगाया जा सकता है।

5. कम्प्यूटेड टोनोग्राफिक स्कैनिंग

शरीर के किसी भी अंग का X-Ray लेकर कम्प्यूटर में विश्लेषण किया जाता है।

6. पेस मेकर

 


- सभी कशेरूक एक के ऊपर एक स्थित होकर एक लम्बे दंड का निर्माण करते है। इस दंड के केन्द्रीय भाग में मेरूरज्जु स्थित रहती है।
                                            भाग कशेरुकों की संख्या
(i)  गर्दन                                 7
(ii) वक्ष                                  12
(iii) कटि                                 5 (सबसे बड़ी एवं भारी हड्डी)
(iv) श्रोणि                               5
(v) पुच्छ                                4

3. बाँह तथा टाँग की हड्डियाँ-
    बाँह के भाग                   हड्डी का                    हड्डियों की 
(i)  ऊपरी बाँह                     ह्यूमरस                  सिर्फ 1
(ii) निचली बाँह                 रेडियस + अलना                2
(iii) हाथ
(क) कलाई या मणिबंध          मणिबंधिकाएँ                8
             (Carpals)    
(ख) हथेली (Metacarpals)    कराभिकाएँ                   5
(ग) अंगुलियाँ (Digits)         अंगुलास्थियाँ                 15

टाँग की हड्डियाँ
  पैर के भाग                    हड्डी का नाम       हड्डियों की  संख्या 
(i) जाँघ                             फीमर                         सिर्फ 1
(ii) पिंडली                        टीबीआ + फीबुला                   2
(iii) पाँव
(क) एड़ी (Tarsals)                टार्सल्स                           7
(ख) तलवा (Metatarsals)    मेटाटार्सल्स                       5
(ग) पादांगुलियाँ ;क्पहपजेद्ध     पादांगुलास्थियाँ              15

4. कंधे तथा कमर की हड्डियाँ
    हड्डी का नाम                    हड्डियों की संख्या
    कंधा  अंसमेखला                  2 जोड़ा 
   (Pectoral Girdle)     
(स्केपुला Scapula    
    (+ क्लेविकल Clavicle)    
कमर    श्रोणिमेखला (Pelvie Girdle)        3
   (इस्कियम-Ischium + Pubes-च्नइमे +  इलियम-Ilium)    

पाचन तंत्र (Digestive System)
पाचन की कार्य विधि सारणी पिछले पृष्ठ पर दी गयी है, उसे देख लें। यहाँ सिर्फ अवशोषण दिया जा रहा है। 
अवशोषण

  •  छोटी आँत की भीतरी दीवार से अंगुलियों के आकार में बहुत-से उद्वर्ध निकले रहते है जिन्हें विल्लाई (villi) या दीर्घरोम कहते है। प्रत्येक विल्लाई की लंबाई लगभग 1.5 मिमी. होती है।
  • प्रत्येक विल्लाई के बीचों-बीच एक लसीका-वाहिनी होती है, जिसे लेक्टियल (lacteal) कहते है। लैक्टिल भोजन में उपस्थित वसीय अम्लों तथा ग्लिसेराॅल (glycerol) का अवशोषण करता है और तब रक्त नलिका में उड़ेल देता है।
  • प्रोटीन के मोनोमर अमीनो अम्ल तथा कार्बोहाइड्रेट के मोनोसेकेराइड भी छोटी आंत की दीवारों (विल्लाई) द्वारा ही अवशोषित होते है और बिना लेक्टियल के सहयोग के रक्त की धारा में डाल दिए जाते हैं।


 

पाचन की कार्य विधि

अभिक्रिया-स्थल

पाचक द्रव

स्त्रवित एन्जाइम

रासायनिक अभिक्रिया

विशेष

मुँह

लार

टायलिन (लार एमिलेस)

पके स्टार्च का विलेय शर्करा  (मालटोज) के रूप में परिवर्तन।

लार का कार्य भोजन पर तब तक चलता रहता है जब तक कि भोजन आमाशय में पहुँच नहीं जाता।

आमाशय

आमाशयिक रस

(i)रेनिन

कैसिनोजिन (Caseinogen) का कैसिन (Casein)  में परिवर्तन।

आमाशय की पेशियाँ भोजन का चर्बन करके इसे जल एवं आमाशयिक रस में घोलकर

 

 

(ii)  पेप्सिन

प्रोटीन का पेप्टोन में रूपान्तरण।

एक प्रकार का तरल अम्लीय पदार्थ  बनाता है जिसे ‘काईम’  कहते है।

 

 

(iii) लाइपेज

वसा का जल अपघटन करना।

 

पक्वाशय

पित्त

 

आमाशयिक एन्जाइमों को क्रिया मुक्त करना तथा वसा को इमल्सीफाय करना।

काईम में और अधिक जल मिलने से ‘काईल’ की रचना होती है।

अग्न्याशय

अग्न्याशयिक रस

(i)  ट्रिप्सिन

प्रोटीन और पेप्टोन का पोलिपेप्टाइड और अमीनो अम्ल में परिवर्तन।

 

 

 

(ii)  एमिलेस

सभी शर्कराओं और स्टार्चों का माल्टोज में परिवर्तन।

 

 

 

(iii) लाइपेज

वसा का ग्लिसराॅल और वसीय अम्ल में परिवर्तन।

 

छोटी आँत

आंत्ररस

(i) इन्टेरोकाइनेस

अग्न्याशय द्रव व ट्रिप्सिन को क्रिया मुक्त करना।

 

 

 

(ii)  इरेप्सिन

सभी प्रोटीन पदार्थों का अमीनो अम्ल में परिवर्तन।

 

 

 

(iii) सूक्रेज, माल्टेज एवं लेक्टेज

कार्बोहाइड्रेट वाले सभी पदार्थों का मोनो सेकेराइड में परिवर्तन।

 

 

धमनी (Artery)

शिरा (Vein)

शुद्ध रक्त हृदय से शरीर के तंतुओ तक ले जाती है। अपवाद-फुप्फुसीय धमनी।

तंतुओं से अशुद्ध रक्त हृदय में लाती है। अपवाद-फुप्फुसीय शिरा।

धमनी में रक्त का प्रवाह हृदय से तंतु की ओर होता है।

शिरा में रक्तप्रवाह तंतु से हृदय की ओर  होता है।

धमनी की दीवार मोटी और  लचीली होती है।

शिरा की दीवार पतली होती है।

धमनी की दीवार पर रक्तचाप अधिक होता है, अर्थात रक्त वेग से बहता है।

शिरा की दीवार पर रक्तचाप कम होता है। अतः रक्त बहुत धीमे बहता है।

धमनी में कपाट (valve) नहीं लगे रहते।

शिरा में जगह-जगह पर कपाट लगे रहते है जिससे रक्त का प्रवाह उल्टी दिशा में नहीं हो सकता।

रक्त (Blood)
- रक्त वास्तव में एक गाढ़ा पीला तरल पदार्थ है। रक्त को जीवनद्रव की संज्ञा दी गई है। इसी पर सभी जीवों की जीवनक्रियाएँ निर्भर करती है।
    रक्त की बनावट- रक्त में रक्तवारि या प्लाज्मा (plasma) और रक्तकण रहते है।
(i) रक्तवारि- रक्त के तरल पदार्थ को रक्तवारि या प्लाज्मा (plasma) कहते है। रक्त का लगभग 55 प्रतिशत भाग प्लाज्मा होता है।
(ii) रक्तकण- प्लाज्मा में अनेक छोटे-छोटे सूक्ष्म कण तैरते रहते है। ये कण दो प्रकार के होते है- रक्तकण या ब्लड काॅरपसल्स (blood corpuscles)  और प्लेटलेट्स (platelets)।
 

रक्तकण दो प्रकार के होते है-
(क) लाल रक्तकण या रेड ब्लड काॅरपसल्स (red blood corpuscles) और
(ख) श्वेत रक्तकण या ह्नाइट ब्लड काॅरपसल्स (white blood corpuscles)।

(क) लाल रक्तकण (RBC)- एक बूँद रक्त में इनकी संख्या लगभग 57 हजार होती है। ये देखने में गोल, लंबे तथा चिपटे होते है। इनमें उपस्थित हीमोग्लोबिन (haemoglobin) के कारण ये रक्तकण लाल दिखाई पड़ते है।

  • मनुष्य के 1 घन मि.मी. में लाल रक्त कणों की संख्या लगभग 54,00,000 (नर में) तथा 48,00,000 (मादा) में होती है।
  • इसका औसत जीवनकाल 110-120 दिन का होता है।
  • लाल रक्तकण के कार्य- लाल रक्तकण फेफड़े से आॅक्सीजन लेकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाते है। ये हमारे रक्त से कार्बन डाइआॅक्साइड और जल के अनावश्यक अंश को अलग करते है।
     

(ख) श्वेत रक्तकण- श्वेत रक्तकणों की संख्या लाल रक्तकणों की अपेक्षा बहुत कम होती है। इनका कोई निश्चित आकार नहीं होता। आवश्यकतानुसार ये अपना आकार बदलते रहते है। इनमें हीमोग्लोबिन नहीं पाया जाता, अतः ये रंगहीन होते हैं। इसलिए इन्हें श्वेत रक्तकण कहा जाता है।
    1 घन मि.मी. में इसकी संख्या करीब 10,000 होती है। इसका जीवन काल 15 घंटे से 10 दिन का होता है।
श्वेत रक्तकण के कार्य- श्वेत रक्तकण हमारे शरीर में स्थित रोग उत्पन्न करनेवाले जीवाणुओं को नष्ट करते तथा रोग के कीटाणुओं के आक्रमण से हमारे शरीर की रक्षा करते है। ये सभी प्रकार के घाव भरने में मदद करते है।
प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स (Platelets orthrombocytes) - प्लेटलेट्स को थ्रोम्बोसाइट्स भी कहते है। इनका आकार लाल रक्तकण की अपेक्षा लगभग तिहाई होता है। इनकी संख्या लाल रक्तकण से कम पर श्वेत रक्तकण से अधिक होती है।

    प्लेटलेट्स के कार्य- प्लेटलेट्स रक्त के थक्का बनने में मदद करते है।

  • रक्त का जमना (रक्त का थक्का बनना) - प्लाज्मा का फाइब्रिनोजेन (fibrinogen) वायु के संपर्क में आता है, तब आॅक्सीजन से मिलकर फाइब्रिन (fibrin) में बदल जाता है। फाइब्रिन प्लाज्मा में महीन तंतुओं का जाल बना देता है जिसमें रक्त-कणिकाएँ फँस जाती हैं और एक थक्का बन जाता है। थक्का के जमने से रक्त का निकलना बंद हो जाता है।
  • लाल रक्तकण तथा श्वेत रक्तकण का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है।
  • रक्त केशिकाओं (vessels) में कुछ विशेष प्रकार के पदार्थ मौजूद रहते है जो रक्त को थक्के में परिवर्तित नहीं होने देती और रक्त का प्रवाह निर्बाध गति से होता रहता है। ऐसे पदार्थ हैं-

    हीपेरिन (Heparin), एंटीथ्रोम्बोप्लास्टीन (Antith-romboplastin), आॅक्जेलेट्स और साइट्रेट्स (Oxalates and Citrates) तथा डिफाइब्रिनेसन (Defibrination)।

  • रुधिर बैंक (Blood Bank): एक स्वस्थ आदमी के रक्त में सोडियम नाइट्रेट तथा डेक्सट्रेट मिलाकर फ्रिज में इसका भंडारण  किया जा सकता है। इस विधि से रक्त 8 से 10 दिनों तक जीवित रहता है।
  • वे ऊत्तक जो रक्त कण बनाते है,  हीमोप्वाइटिक ऊत्तक (Haemopoietic tissue)  कहलाते है, जैसे लाल अस्थि मज्जा (Red Bone Marrow)।
  • जरूरत से अधिक रक्त कण को प्लीहा (Spleen)  में संग्रहित कर लिया जाता है। अतः प्लीहा शरीर के ”रक्त कोष“ का काम करता है; साथ ही पुराने और कटे- फटे RBC को मृत कर देता है।
  • मृत RBC यकृत में जाता है जो इसके प्रोटीन को पित्त रस बनाने के काम में लाता है तथा लोहा पुनः लाल अस्थि मज्जा को लौटा देता है।
  • WBC का उत्पादन ”लाल अस्थि मज्जा“, ”प्लीहा“, ”थाइमस“ तथा ”लिम्फ नोड“ में होता है।
The document प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
74 videos|226 docs|11 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. प्राणि विज्ञान क्या है?
उत्तर: प्राणि विज्ञान एक शाखा है जो जीवों के विज्ञान के अध्ययन के साथ-साथ उनके जीवन, विकास, संरचना, और क्रियाएं आदि का अध्ययन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य जीवित प्राणियों के बारे में विज्ञानिक ज्ञान प्रदान करना है।
2. प्राणि विज्ञान क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: प्राणि विज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें जीवित प्राणियों के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है। यह हमें उनकी संरचना, क्रियाएं, जीवन प्रक्रम, और जीवन की अद्यावत जानकारी प्रदान करता है। इसके साथ ही यह विज्ञानियों को जीवित प्राणियों से संबंधित नई दवाओं, खाद्य उत्पादों, और वैज्ञानिक उपकरणों का विकास करने में मदद करता है।
3. प्राणि विज्ञान की प्रमुख शाखाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: प्राणि विज्ञान की प्रमुख शाखाएं निम्नलिखित हैं: - जीवशास्त्र (जीव विज्ञान): इसमें जीवों के बारे में विस्तृत ज्ञान होता है, जैसे कि उनकी संरचना, क्रियाएं, विकास, और प्रकृति। - उद्भिज्ज जीवविज्ञान (बॉटनी): इसमें पौधों और उनके जीवन प्रक्रम का अध्ययन होता है। - जंतु विज्ञान (जैविकी): इसमें जीवों के जीवन प्रक्रम, संरचना, विकास, और उनके जीवन प्रक्रम का अध्ययन होता है। - मानव जीवविज्ञान (अंतरिक्षीय जीव विज्ञान): इसमें मानव शरीर के अध्ययन के साथ-साथ मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन होता है।
4. प्राणि विज्ञान के लिए UPSC परीक्षा क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), और अन्य संघीय स्तरीय सेवाओं में चयनित होने का प्रमुख प्रमाणिका है। प्राणि विज्ञान के लिए UPSC परीक्षा में सवालों का प्रश्न पत्र शामिल हो सकता है, जो छात्रों को प्राणि विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करता है। इसके अलावा, UPSC परीक्षा प्राणि विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण एवं अवसर प्रदान करता है जिससे विज्ञान के क्षेत्र में अपनी करियर बनाने की संभावनाएं होती हैं।
5. प्राणि विज्ञान के लिए UPSC परीक्षा की तैयारी कैसे की जाए?
उत्तर: प्राणि विज्ञान के लिए UPSC परीक्षा की तैयारी करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन किया जा सकता है: 1. प्राणि विज्ञान के अध्ययन के लिए संबंधित पुस्तकों और मैटेरियल का अवलोकन करें। 2. उच्चतम गुणवत्ता वाले प्रश्नों के लिए पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अध्ययन करें। 3. नियमित रूप से मॉक टेस्ट और अभ्यास करें ताकि
74 videos|226 docs|11 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Summary

,

Objective type Questions

,

practice quizzes

,

Sample Paper

,

UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

Viva Questions

,

प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान

,

video lectures

,

Important questions

,

प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान

,

ppt

,

सामान्य विज्ञान

,

Previous Year Questions with Solutions

,

pdf

,

Free

,

shortcuts and tricks

,

UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

सामान्य विज्ञान

,

Extra Questions

,

Semester Notes

,

UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

past year papers

,

सामान्य विज्ञान

,

study material

,

प्राणि विज्ञान (भाग - 1) - जीव विज्ञान

;