सामान्य काम करने वाली वयस्क महिलाओं के लिए संतुलित आहार
खाद्य पदार्थ | शाकाहारी (ग्राम में) | माँसाहारी (ग्राम में) |
अनाज | 350 | 350 |
दालें | 70 | 55 |
हरी पत्तियों वाली सब्जियाँ | 125 | 55 |
अन्य सब्जियां | 75 | 79 |
मूल ट्यूबर | 75 | 75 |
फल | 30 | 30 |
दूध | 200 | 100 |
वसा व तेल | 35 | 40 |
चीनी | 30 | 30 |
माँस व मछली | . | 30 |
अण्डे | . | 30 |
शरीर की रक्षा शक्ति
एण्टीबाॅडी को उनकी क्रियाओं के आधार पर 5-समूहों में बाँटा गया है-
(i) प्रतिजीवविष (Antitoxin): यह रोगाणुओं के द्वारा उत्पादित जीव विष (Toxin) को नष्ट करता है।
(ii) समूहिका (Aglutinin): यह रोगाणुओं को समूह में बाँधता है।
(iii) लाइसिन (Lysin): यह रोगाणुओं का संलयन ;सलेपेद्ध करता है।
(iv) प्रेसिपिटिन (Precipitin): यह रोगाणुओं का समूहन कर रक्त से पृथक कर देता है।
(v) आॅप्सोनिन (Opsonin): यह श्वेत रक्त कोशिकाओं को रोगाणुओं से लड़ने में मदद करता है।
प्रतिरक्षा (Immunity): शरीर के रोग निरोधी क्षमता को साधारण शब्दों में रोग की प्रतिरोध शक्ति कहते है।
यह शक्ति कई बातों पर निर्भर करती है; जैसे-व्यक्ति का स्वास्थ्य, रोगाणुओं की मात्र, उनकी जननशक्ति, रोग निरोधी क्षमता की मात्र आदि।
अंतःस्त्रवी ग्रंथि एवं उनकी स्थिति | हाॅरमोन का नाम | हाॅरमोन का कार्य |
थायराॅइड (गले में) (Thyroid) | थाइराॅक्सिन (Thyroxine) | मेटाबोलिज्म की दर को नियंत्रित करता है। |
पैराथायराॅइड (Parathyroid) (गले में) | पैराथाॅरमोन (Parathormone) | रक्त में Ca और p के आयनों की संख्या नियत करते है। हृदय धड़कन, पेशी संकुचन, रक्त के थक्का बनने आदि में सहयोग देते है। |
एड्रीनल (वृक्क के ऊपर) | एड्रीनेलीन (Adrenalin) | डर, क्रोध, अपमान, पीड़ा जैसे आकस्मिक समय में शरीर की प्रतिरक्षी क्षमता को बढ़ाता है। इसीलिए इस ग्रंथि को ”जीवन रक्षक हाॅरमोन“ भी कहते है। |
थामस | थाइमोसिन (Thymosin) | लिम्फ का उत्पादन करता है। |
पिट्यूटरी (मस्तिष्क में) इसे ”मास्टर ग्लैंड“ भी कहा जाता है क्योंकि यह करीब- करीब सभी अंतःस्त्रवी ग्रंथियों के स्त्रवण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। | (i) वृद्धि हाॅरमोन (Growth Hormone) | शरीर के उचित वृद्धि को नियंत्रित करता है। |
| (ii)आॅक्सिटोसीन (Oxytocin) | गर्भाशय की दीवार को सिकोड़कर प्रसव पीड़ा का प्रेरक; शिशु जन्म के बाद गर्भाशय को सामान्य दशा में लाना। |
| (iii) प्रोलेक्टिन या LTH | गर्भकाल में स्तनों की वृद्धि और दूध के स्त्रवण का प्रेरक। |
आइलेट आॅफ लैंगर हैन्स (अग्न्याशय में) | (i) इन्सूलिन | रक्त में बढ़े हुए ग्लूकोज को ग्लायकोजन में बदलना। |
| (ii)ग्लूकागाॅन | रक्त में घटी हुई ग्लूकोज आपूर्ति हेतु ग्लायकोजन का ग्लूकोज में बदलना। |
गोनेड्स |
|
|
(i) वृषण (एन्ड्रोजेन) | (i) नर में टेस्टेस्टेराॅन | नर जननांग तथा नर लक्षणों का सम्पूर्ण विकास। |
(ii)अंडाशय | (ii)नारी में ईस्ट्रोजेन्स | मादा जननांग तथा लैंगिक लक्षणों का सम्पूर्ण विकास। |
प्राणी का नाम | श्वसन अंग |
मछली | गिल |
उभयचर (जैसे मेढ़क) | त्वचा, फेफड़ा |
अन्य | फेफड़ा |
रक्त समूह (Blood Group)
- रक्त समूह का व्यावहारिक महत्व निम्नलिखित में है-
(i) रक्ताधान (Blood Transfusion), तथा (ii) बच्चे के माता-पिता नियत करने में।
रीसस फैक्टर (Rh Factor)
| हृदय के चेम्बर की संख्या |
मछली | 2 |
उभय-चर | 3 |
सरीसृप या रेप्टाइल्स (इस वर्ग के विकसित प्राणी में हृदय के चार चैम्बर होने के संकेत शुरू हो जाते है।) | 3 |
स्तनधारी एवं पक्षी | 4 |
लिम्फ तंत्र (Lymphatic System)
- RBC कभी भी रक्त नली से बाहर नहीं निकलते, किंतु प्लाज्मा और WBC रक्त केशिकाओं (Blood Capillaries) से बाहर आकर ऊत्तक में चले जाते है। बिना RBC के रक्त का यह रंगहीन भाग ”लिम्फ“ कहलाता है।
- पतली दीवार वाली लिम्फ केशिकाएँ शरीर के प्रत्येक अंग में (तंत्रिका तंत्र को छोड़कर) एक जाल-सी बनाती है।
- लिम्फ केशिकाएँ इकट्ठी होकर लिम्फ नली और लिम्फ नोड का निर्माण करती है।
- इसी लिम्फ नोड के द्वारा लिम्फ, नली में संचालित होता है।
- लिम्फ नली में पाई जानेवाली वाल्व की संख्या रक्त के शिरा से बहुत अधिक होती है। ये वाल्व लिम्फ को लिम्फ नोड से निकलने तो देते है किंतु पुनः लौटने नहीं देते।
- स्तनधारियों में लिम्फ का कोई हृदय नहीं होता।
कार्य
वयस्क पुरुष के लिए संतुलित आहार | ||
खाद्य पदार्थ शाकाहारी | सामान्य कार्य करने वाले | |
माँसाहारी (ग्राम में) | (ग्राम में) | |
अनाज | 475 | 475 |
दालें | 80 | 65 |
हरी पत्तियों वाली सब्जियाँ | 125 | 125 |
अन्य सब्जियां | 75 | 75 |
मूल व ट्यूबर | 100 | 100 |
फल | 30 | 30 |
दूध | 200 | 100 |
वसा और तेल | 40 | 40 |
माँस और मछली | - | 30 |
अण्डे | - | 30 |
चीनी | 40 | 40 |
हृदय (Heart)
(i) धमनी- धमनी एक ऐसी नलिका है, जिससे रक्त हृदय से निकलकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है। धमनियाँ शरीर की मांसपेशियों के भीतर स्थित होती है। इसकी दीवारें मोटी और लचीली होती है। धमनियों में सामान्यः शुद्ध रक्त प्रवाहित होता है।
(ii) शिराएँ- शिराएँ रक्त को शरीर के विभिन्न भागों से हृदय में पहुँचाती हैं। शिराएँ त्वचा के नीचे ही स्थित रहती है। इनकी दीवारें पतली तथा कम लचीली होती है। इनमें रक्त का बहाव तेजी से नहीं होता। इनमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर अर्द्धचंद्राकार वाल्व होते है, जो रक्त को उलटी दिशा में जाने से रोकते है। शिराओं में सामान्यतः अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है।
मोरे ईल(Moray eel), ब्लू क्रेवली (Crevally), रेड स्नैपर (Red Snapper) तथा स्टोन फिश (Stone Fish) आदि मछलियों के माँस विषाक्त होते हैं। |
क्वाशिओरकर | मरास्मस |
(i) क्वाशिओरकर रोग बच्चों के आहार में केवल प्रोटीन की कमी के कारण होता है। | मरास्मस रोग बच्चों के आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा की कमी के कारण होता है। |
(ii) क्वाशिओरकर रोग में बच्चे का पेट व पैर सूज जाते है (या फूल जाते है) अर्थात् बच्चे को ईडिमा (oedema) हो जाता है। | मरास्मस रोग में बच्चे को ईडिमा नहीं होता। |
(iii) क्वाशिओरकर रोग में बच्चे का पेशीय क्षय नहीं होता। | मरास्मस रोग में बच्चे का पेशीय क्षय होता है, जिससे वह कंकाल-मात्र रह जाता है। |
(iv) क्वाशिओरकर रोग एक वर्ष से पाँच वर्ष तक की आयु वाले बच्चों में पाया जाता है। | मरास्मस रोग एक वर्ष तक की आयु वाले शिशुओं (छोटे बच्चों) में पाया जाता है। |
रक्त-परिसंचरण क्रिया
महत्वपूर्ण जानकारी |
पोलीफायोडाॅन्ट (Polyphyodont) - कुछ जानवरों में जीवनभर दांतों का उगना जारी रहता है, पुराने और कटे-फटे दांत गिर जाते हैं और उनके स्थान पर नए दांत आ जाते हैं। दांतों की इस व्यवस्था को पोलीफायोडाॅन्ट कहते हैं। |
डायफायोडाॅन्ट (Diphyodont)कृ आदमी में दो प्रकार के दांत होते हैं - दूध के और स्थायी या वयस्क के दांत। यह व्यवस्था diphyodont कहलाती है। |
हेटरोडोन्ट (Heterodont) - जब दांतों का आकार भिन्न हो, जैसे - आदमी में। मनुष्य या मांसाहारी जानवरों में चार प्रकार के दांत होते हैं। |
हृदय की कार्य विधि
रक्त चाप (Blood Pressure)
स्मरणीय तथ्य |
- पीलिया (Jaundice) रोग में पित्तवर्णक (Bile Pigment) रक्त में चला आता है। इस रोग में यकृत प्रभावित होता है। |
- शरीर में रोगाणु जो विष उत्पन्न करता है, उसे जीवविष (Toxin) कहा जाता है। |
- शरीर जीव-विष (Toxin) से बचने के लिए जो पदार्थ उत्पन्न करता है, उसे प्रति जीवविष (Anti-toxin) कहा जाता है। |
- मानव शरीर में प्रतिदिन लगभग 800 मिली. अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) का स्त्रव होता है। यह स्त्रव पाचन क्रिया के दौरान होता है। |
- मानव शरीर में प्रतिदिन 700-1200 मिली. पित (Bile) का स्त्रव होता है। |
- स्वस्थ रक्त में प्रति 200 मिली. रक्त में लगभग 25 ग्राम हेमोग्लोबिन की मात्र रहती है। सामान्यतः हेमोग्लोबिन की इसी मात्र को 100 प्रतिशत हेमोग्लोबिन कहा जाता है। इसकी 90 प्रतिशत से अधिक मात्र स्वाभाविक मात्र मानी जाती है। |
- सामान्यतः प्रति 100 सी. सी. रक्त में रक्त-ग्लूकोज की मात्र (12 घंटे के उपवास के बाद) 80 से 120 मिग्रा. तक रहती है। |
महत्वपूर्ण जानकारी |
मम्प्स Mumps एक वाइरस संक्रामक रोग है जो पैरोटिड ग्रंथि पर आक्रमण करता है जिससे इस ग्रंथि में सूजन आ जाती है। इस अवस्था में मुंह का खुलना या भोजन निगलना कठिन हो जाता है, साथ ही सैलाइवा का स्रवण भी कम हो जाता है। |
नाड़ी-दर (Pulse rate)
श्वसन (Respiration)
श्वसन नली (Trachea)
फेफड़ा (Lungs)
विटामिन | ||||
विटामिन एवं रासायनिक नाम | प्रमुख स्रोत | दैनिक आवश्यक मात्र | शारीरिक क्रिया | हीनता-जन्य रोग |
ए रेटिनाॅल (Retinol) | मछली का यकृत तेल, दूध, मक्खन, घी, गाजर, पत्तीदार और हरी सब्जियाँ आदि | 5000 यूनिट | चाक्षुष वर्णक (Visual Pigment) का संश्लेषण, नेत्र और इसकी श्लेष्मा-झिल्ली को स्वस्थ रखना | रतोंधी,शुष्काक्षिपाक (xerophthalmia), पाचक नाल और नेत्र का संक्रामक रोग |
बी-1 थाएमीन (Thiamine) | खमीर, अंकुरित गेहूँ, शिंवी फल (सेम, मटर आदि), मांस, अंडा और शाक-सब्जी | 1 .2 मिग्रा. | कार्बोहाइड्रेट-उपापचय | बेरी-बेरी |
बी-2 रिबोफ्लेवीन (Riboflavin) | दुग्ध, मांस,पत्तीदार सब्जियाँ आदि | 1 .7 मिग्रा. | ऊत्तक में आॅक्सीकरण | जिह्ना में सूजन (Glossitis), त्वचा में सूजन (Dermatitis), दृष्टि की स्वच्छता में कमी, भ्रूण की अस्थियों का टेढ़ा-मेढ़ा होना |
बी-7 निकोटिनिक अम्ल, नियासीन (Niacine) | मछली, अंडे आदि | 19 मिग्रा. | ऊत्तक-आॅक्सीकरण | पेलाग्रा (Pellagra) |
बी-12 सायनोकोबाल्मिन (Cynocobalmin) | यकृत | 0 .001 मिग्रा. | लाल रक्तकणों का निर्माण | अरक्तता (Anaemia) |
सी एस्काॅर्बिक अम्ल (Ascorbic acid) | नींबू कुल के फल,हरी सब्जियाँ आदि | 70 मिग्रा. | एन्जाइम सम्बन्धी कार्य | स्कर्वी (Scurvy) |
डी कैल्सिफेराॅल (Calciferol) | मछली का यकृत तेल,अंडे, यकृत, पराबैंगनी किरण आदि | 0-400 यूनिट | कैल्सियम और फाॅस्फोरस का उपापचय | रिकेट (Rickets) |
ई टोकोफेराॅल (Tocoferol) | सलाद की पत्तियाँ,शिंवी फल (सेम, मटर) आदि |
| कोशिकाओं का निर्माण,विटामिन-ए के समुचित उपयोग में सहायता | बंध्यता, पेशी तथा तंत्रिका-तंत्र संबंधी गड़बड़ी |
के-1 फिलोक्विनोन (Phylloquinone) | हरी सब्जियाँ |
| रक्त का जमना | रक्त का दोषपूर्ण जमना |
श्वसन की कार्यिकी
कृत्रिम श्वसन (Artificial Respiration)
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1. प्राणि विज्ञान क्या है? |
2. प्राणि विज्ञान क्यों महत्वपूर्ण है? |
3. प्राणि विज्ञान अध्ययन के लिए आवश्यक उपकरण कौन-कौन से हैं? |
4. प्राणि विज्ञान किस तरह से पर्यावरणीय विज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है? |
5. प्राणि विज्ञान के अनुसार जीव विज्ञान का महत्व क्या है? |
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