प्रार्थना समाज
¯ ब्रह्म समाज का प्रभाव महाराष्ट्र में 1849 में ही दिखने लगा था, जबकि परमहंस सभा की स्थापना हुई थी। किन्तु यह अल्पकालीन साबित हुआ और अपना अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाया।
¯ प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 में केशव चन्द्र सेन की उत्साहपूर्ण निगरानी में हुई।
¯ नाम का अंतर स्पष्टतया जानबूझकर ही रखा गया था क्योंकि हिन्दू धर्म के प्रति बंगाल के ब्रह्म समाजियों का जो रूख था, उससे प्रार्थना समाजवालों का रूख भिन्न था।
¯ प्रार्थना समाजी बराबर अपने को हिन्दू धर्म के अंतर्गत समझते हुए सुधार का रूख अपनाया जो ब्रह्म समाजियों से बहुत जगह भिन्न था।
¯ वे भक्तिभावपूर्ण आस्तिकजन थे जो अपने पूर्वजों - नामदेव, तुकाराम एवं रामदास - जैसे मराठा संतों के महान परंपरा के अनुयायी थे लेकिन धार्मिक चिंतन के बदले इन लोगों ने अपना ध्यान सामाजिक सुधार की दृष्टिगोचर किया।
स्मरणीय तथ्य ¯ राममोहन राय का यह विश्वास था कि वेदांत का दर्शन मानवीय तार्किकता पर आधारित है जो किसी भी सिद्धांत की सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। ¯ राममोहन राय ने वरीय सेवाओं के भारतीयकरण, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को अलग करने, जूरी द्वारा न्याय किए जाने तथा न्यायपालिका के समक्ष भारतीयों और यूरोपियों के बीच समानता की मांग की। ¯ 1821 में नेपल्स की क्रांति की विफलता पर राजाराम इतने व्यथित हुए कि उन्होंने अपने सभी सामाजिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए। 1823 में स्पेनी अमेरिका में क्रांति की सफलता पर उन्होंने एक नागरिक भोज का आयोजन किया। ¯ 1831 में कलकत्ता के हिंदू काॅलेज से एच. वी. डेरोजियो को उनकी उग्रता के कारण निकाल बाहर किया गया और 22 वर्ष की अवस्था में हैजा से उनकी मृत्यु हो गई। ¯ डेरोजियो समर्थकों ने राममोहन राय की परंपरा यथा लोगों को समाचार पत्रों, पर्चों, नागरिक सम्मेलनों आदि के द्वारा सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं में शिक्षित करने का कार्य जारी रखा। ¯ के. पी. घोष डेरोजियो के विख्यात शिष्य थे। ¯ ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने संस्कृत पर ब्राह्मणों के एकाधिकार के विरोध में संस्कृत काॅलेज के द्वार शूद्रों के लिए भी खोल दिए। ¯ स्कूल के सरकारी निरीक्षक के रूप में विद्यासागर ने 35 छात्राओं के स्कूल खोले जिसमें से कुछ को उन्होंने अपने पैसे से चलाया। ¯ 1880 के दशक में जब वाइसराय की पत्नी लेडी डफरिन के नाम से डफरिन अस्पताल खोला गया तो भारतीय औरतों के लिए प्रसव क्रिया की आधुनिक तकनीक एवं आधुनिक दवाइयां उपलब्ध कराई गई। ¯ 1880 के दशक में अंग्रेजी जानने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 80,000 थी। ¯ प्राथमिक स्कूल की शिक्षा को अनिवार्य करने का विधेयक गोखले द्वारा 1911 ई. में इम्पीरियल काउंसिल में लाया गया जिसे ठुकरा दिया गया। ¯ 19वीं शताब्दी का बंगाली बुद्धिजीवी वर्ग अपने को जमीदारों और किसानों के बीच का मध्यमवर्ग कहता था। ¯ लक्ष्मणाराशुचेत्ति 1850 के दशक में मद्रास देशी एसोसिएसन के महत्वपूर्ण व्यवसायी थे। ¯ महाराष्ट्र में ‘खोती’ छोटे स्तर पर रेन्ट वसूलने के अधिकार को कहा जाता था। ¯ 1880 और 1890 के दशकों में बम्बई में बुद्धिजीवी वर्ग का नेतृत्व फिरोजशाह मेहता, के. टी. तेलंग तथा बदरुद्दीन तैयबजी जैसे वकीलों ने किया। ¯ डी. वाचा बाॅम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएसन के सचिव (1885-1915) कांगेस के सामान्य सचिव (1896-1913) तथा 38 सालों तक बाॅम्बे मिल-आॅनर्स एसोसिएसन की कार्यकारी समिति के सदस्य तथा बहुत से कपड़ा मिलों के मैनेजिंग एजेंट रहे थे। ¯ के. टी. तेलंग प्रार्थना समाज के सदस्य थे। ¯ एम. जी. राणाडे की 1901 में मृत्यु हो गईं। |
¯ उदाहरणस्वरूप उन्होंने विभिन्न जातियों के बीच अंतर्भोजन एवं अंतर्विवाह, विधवाओं का पुनर्विवाह और óियों और दलितों की अवस्था में सुधार पर जोर दिया।
¯ उन्होंने एक परिव्यक्त शिशु सदन एवं अनाथालय पंठरपुर में स्थापित किया और रात्रि पाठशालाएँ, एक विधवा भवन, एक दलित वर्ग मिशन एवं इस तरह की अन्य उपयोगी संस्थाएँ कायम की।
¯ प्रार्थना समाज ने पश्चिम भारत में समाज सुधार का केन्द्र बिन्दु का काम किया।
¯ इसकी सफलता के पीछे मुख्यतः जस्टिस महादेव गोविंद राणाडे (1842-1901) का हाथ रहा। इन्होंने अपना सारा जीवन प्रार्थना समाज के पीछे लगा दिया।
¯ 1861 ई. में स्थापित विधवा-विवाह संघ के संस्थापकों में वे शामिल थे।
¯ जस्टिस राणाडे ने दो महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों की स्पष्ट व्याख्या की। प्रथमतः उन्होंने इस सत्य पर जोर डाला कि ”सुधारक को संपूर्ण मनुष्य से निबटनेे की कोशिश करनी चाहिए, न कि केवल एक ही ओर सुधार चालू करने की“।
¯ राणाडे के लिए ”धर्म सामाजिक सुधार से उसी प्रकार अभिन्न था जिस प्रकार मानव प्रेम ईश्वर प्रेम से अभिन्न है।“
स्मरणीय तथ्य ¯ वीरसलिंगम (तेलुगु) ने 1878 में विधवा-विवाह को मुख्य ध्येय बनाकर राजामुंदरी समाज-सुधार संगठन की स्थापना की। ¯ 1880 में के. एन. नटराजन ने प्रभावी इंडियन सोशल रिफार्मर (भारतीय समाज सुधारक) की शुरुआत की। ¯ मद्रास में 1892 में युवा मद्रास पार्टी द्वारा एक हिन्दू समाज सुधार संगठन की शुरुआत की गई। ¯ ‘इंडियन मुसलमानस्’ (भारतीय मुस्लिम) का लेखक हंटर है। ¯ दयानंद सरस्वती ने धार्मिक सुझाव वाला एक पर्चा गौकरुणानिधि 1881 में प्रकाशित किया। ¯ जी. जी. अगरकर ने दक्कन एडुकेशन सोसायटी की शुरुआत की एवं तिलक के साथ मिलकर ‘केसरी’ एवं ‘मराठा’ की शुरुआत की। ¯ कृष्णाराव ने 1904 में मसुलीपट्टनम से एक उग्रवादी समाचारपत्र किस्तन पत्रिका निकालना शुरू किया। ¯ सी. वी. रमणपिल्लई के ऐतिहासिक उपन्यास ‘मार्तण्ड वर्मा’ ने अपने नायक आनंद पदमनाभन के द्वारा नायरों की खोई सैन्य प्रतिष्ठा को उजागर करने की कोशिश की। ¯ 1920 के द्वितीयार्ध में बंगाल में 110 हड़ताल हुए। ¯ बाबा रामचंद्र एक महत्वपूर्ण किसान नेता थे एवं उन्होंने कुर्मी-क्षत्रिय सभा की स्थापना की। ¯ गांधी ने अहमदाबाद मजदूर महाजन की शुरुआत की। ¯ 1920 के लगभग मारवार में जगनारायण व्यास द्वारा एक ‘कर-नहीं’ आंदोलन शुरू किया गया। ¯ संयुक्त राज्य के अवध क्षेत्र में (प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर एवं फैजाबाद जिले) 1920-21 में एक किसान आंदोलन हुआ। ¯ 1918 मंे आई. एन. द्विवेदी द्वारा यू. पी. किसान सभा की स्थापना की गई। ¯ 1923 में आंध्र के गंुटुर जिले में एन. जी. रंगा ने प्रथम रैयत संगठन की स्थापना की। ¯ स्वामी सहजानंद सरस्वती लगभग 1925 और 1935 के बीच बिहार और संपूर्ण भारत में महत्वपूर्ण किसान नेता थे। ¯ अछूतांे ने 1920 के दशक में आंदोलन की शुरुआत डा. अम्बेडकर, उनके पहले स्नातक के नेतृत्व में की। ¯ 1906 में, ए. सी. नानेरजी ने इंडियन मिलहैं ड यूनियन का गठन किया। ¯ आॅल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का पहला अधिवेशन 20 अक्टूबर, 1920 को बम्बई में आरंभ हुआ। ¯ 1922 में जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील वक्र्स ने हड़ताल कर दी। ¯ अहमदाबाद में 1923 में 20ः मजदूरी कम करने के विरोध में हुए हड़ताल के कारण 64 में 56 कपड़ा मिल बंद हो गए। ¯ 1938 के नागपुर में संयुक्त अधिवेशन के साथ ही आॅल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस एवं नेशनल ट्रेड यूनियन फेडरेशन एक साथ हो गए। |
¯ दूसरा महान सिद्धांत, जिस पर राणाडे ने बल दिया, यह था कि भारत का समाज शरीर वृद्धि दिखलाता है, जिसे उपेक्षित नहीं होना चाहिए और जो जबरदस्ती दबाया नहीं जा सकता।
¯ उन्होंने कहा ”हम लोगांे में से ऐसे भी हैं, जो सोचते हैं कि सुधारक का काम यहीं तक सीमित है कि अतीत से नाता तोड़ने का साहसपूर्ण संकल्प किया जाए तथा अपना तर्क जिसे उचित और ठीक कहे, केवल उसे ही किया जाए। ऐसा सोचने में बहुत समय से बनी हुई आदतों और प्रवृत्तियों की शक्ति की उपेक्षा कर दी जाती है।“
¯ राणाडे ने ऐसा कहने का साहस कर परिस्थितियों का अधिक वास्तविक ज्ञान प्रदर्शित किया। ”सच्चे सुधारक को किसी साफ स्लेट पर नहीं लिखना है। उसका काम बहुधा अर्धलिखित वाक्यों को पूर्ण करना होता है।“
¯ ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज अधिकतर पश्चिम से संबद्ध विचारों के परिणाम थे तथा पश्चिमी तर्कवाद को भारतीय ढंग से व्यक्त करते थे।
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1. प्रार्थना समाज क्या है? |
2. प्रार्थना समाज के सांस्कृतिक जागरण के लिए कौन-कौन सी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं? |
3. प्रार्थना समाज की इतिहास क्या है? |
4. प्रार्थना समाज किस परीक्षा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है? |
5. प्रार्थना समाज का यूपीएससी (UPSC) और आईएएस (IAS) से क्या सम्बंध है? |
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