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भारतीय रेगिस्तान | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारतीय रेगिस्तान, जिसे हिंदी में "ठठरी भूमि" भी कहा जाता है, एक विस्तृत और आकर्षक प्राकृतिक क्षेत्र है जो भारत के उपमहाद्वीप में स्थित है। यह शयानक तथा अप्रजनन इलाका होता है, जहां बहुत कम वर्षा होती है और तापमान अत्यंत उच्च होता है। इसका स्थानांतरण जैविक और अजैविक कारणों से होता है, जिससे यह बारिश के प्रभाव से रहित और उबाऊ भूमि का आकार धारण करता है। 

भारतीय रेगिस्तान अपूर्ण वनस्पति, मिट्टी और विभिन्न जीव-जंतु प्रजातियों के लिए अपने विशिष्ट मानव और प्राकृतिक संसाधनों के लिए मशहूर है। इसके विस्तारवादी दृश्य, चमकीली बालू की डून और विचित्र पत्थरी मार्गों की प्राकृतिक विविधता इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाती है। भारतीय रेगिस्तान अपनी अद्वितीय रंग-बिरंगी तस्वीरों, ख़ासतौर पर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय, अनूठी जीव-जंतु प्रजातियों और विभिन्न आदिवासी संस्कृतियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह एक अतुलनीय प्राकृतिक संसाधन है जो भारतीय मानवीय और प्राकृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

थार

  • थार नाम ‘थुल’ से लिया गया है जो कि इस क्षेत्र में रेत की लकीरों के लिए प्रयुक्त होने वाला एक सामान्य शब्द है। थार रेगिस्तान एक शुष्क क्षेत्र है जो 2,00,000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। यह भारत और पाकिस्तान की सीमा के साथ एक प्राकृतिक सीमा बनाता है।
  • भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों के उत्तर पश्चिम में है।

भारतीय रेगिस्तान | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • इसे अभिविन्यास के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
    (अ) उत्तरी भाग सिंध की ओर
    (ब) दक्षिणी भाग कच्छ के रण की ओर प्रवण है।
  • थार रेगिस्तान में कई संरक्षित क्षेत्र स्थित हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

    रेगिस्तानी प्राकृतिक पार्क: इस क्षेत्र में लगभग 3162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है। यह रेगिस्तान के सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक है और इसमें 44 गांवों के साथ वनस्पतियों और जीवों का विस्तृत चयन है।

    ताल छापर अभयारण्य: यह 7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यह चुरू जिले में स्थित है। इस अभयारण्य में लोमड़ी, काले हिरण, तीतर आदि की बड़ी संख्या में जीवाश्मों का निवास है।

    सुंधा माता संरक्षण रिजर्व: यह आरक्षण 117.49 वर्ग किलोमीटर (45.36 वर्ग मील) क्षेत्र को कवर करता है और यह जालोर जिले में स्थित है।

  • बरखान एक विशेष प्रकार का टीला होता है जो रेगिस्तानी रेत से बनता है। यह अर्धचंद्राकार रेत के टीले होते हैं। बरखानों की एक विशेदक विशेषता यह है कि यह सदैव वायु की दिशा में होता है। बरखान बनने का कारण यह होता है कि रेगिस्तान में अत्यधिक मात्रा में रेत उपस्थित होती है।
  • इसके अलावा यह दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा मरुस्थल है।

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Try yourself:बरखान क्या है?
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भारतीय मरुस्थल का इतिहास

  • भारतीय मरुस्थल का इतिहास मेसोजोइक युग से शुरू होता है। इस युग के दौरान भारतीय मरुस्थल समुद्र के नीचे था। इस दौरान मैसोजोइक समय के तेल और गैस के भंडार अपनाये जाने वाले अतिरिक्त ऑक्सीजन से युक्त प्राचीन जीवाश्मों का उत्खनन किया जा सकता है।
  • साक्ष्य: भारतीय मरुस्थल के इतिहास का साक्ष्य आकल में काष्ठ के जीवाश्म उद्यान एवं जैसलमेर के समीप ब्रह्मसर के आसपास समुद्री निक्षेप के रूप में पाया जाता है।
  • भारतीय मरुस्थल में स्थित रेगिस्तान की अंतर्निहित चट्टान संरचना प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार है। यह क्षेत्र बहुत शुष्क होता है और उसमें वर्षा कम होती है। इसके कारण यहां के जीव जंतु भी विशेष रूप से अनुकूलित होते हैं।

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Try yourself:भारतीय मरुस्थल में पाई जाने वाली वनस्पतियों में से कौन सी है?
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भारतीय मरुस्थल की जलवायु

  • वार्षिक वर्षा: 150 मिलीमीटर से कम। कारण: देश के पश्चिम भाग में स्थित होने के कारण स्थानीय वायु धारा एवं समुद्री वायु धारा के प्रभाव से वर्षा कम होती है।
  • तापमान: ग्रीष्मकाल में 45-50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, जबकि शीतकाल में 0 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।
  • आर्द्रता: कम और अचानक बदलने वाली।

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लवणजल के स्रोत

भारतीय मरुस्थल के कुछ हिस्सों में लवणजल के स्रोत होते हैं, जो धारा और पानी की अभाव की स्थिति को और बुरा बना देते हैं।

पानी की स्थिति

  • थार मरुस्थल में पानी की कमी होती है। यहां के कुएँ और नदियाँ सूख जाती हैं।
  • लोकल लोग भूजल उपयोग करते हैं और बारिश के पानी को टांकों में संचित करते हैं।

वनस्पति और जैव विविधता

भारतीय मरुस्थल में कुछ वनस्पतियाँ होती हैं जो सूखे के अध्यावसायिक स्थितियों में बच सकती हैं। केवल ऐसी वनस्पतियाँ होती हैं जो सूखे में निर्धारित होने वाली नमी को संचय कर सकती हैं। भारतीय मरुस्थल में वनस्पति के रूप में कीकर, खेजड़ी, पाला, बबूल आदि होते हैं। यहां की जैव विविधता को चिंगारा, गोधावन, रेत का फिल, काला टिलोनिया आदि से मिलती है।

  • भूमियों की उपयोगिता: भारतीय मरुस्थल के भूमियों का उपयोग कृषि, खनिज संसाधनों की खानान, और पशुधन के लिए किया जा सकता है।
  • आबादी संस्थान: भारतीय मरुस्थल की आबादी का संस्थान कम होता है, लेकिन इसमें गांव और शहर दोनों होते हैं। इस क्षेत्र में लोगों के लिए स्थानीय व्यवसाय उपलब्ध हैं।
  • पर्यटन: भारतीय मरुस्थल एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां के कुछ प्रमुख आकर्षण हैं जैसलमेर का सोनार किला, खुम्बलगढ़ का किला, बीकानेर की लालगढ़ आदि।
  • विस्तार और सुरक्षा: भारतीय मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली कार्यक्रम जैसे कि वृक्षारोपण और वनीकरण की कार्यवाही की जाने वाली है। इसके अलावा, इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भारतीय सेना के कुछ हिस्से यहां स्थित होते हैं।
  • भारतीय मरुस्थल के लिए चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन, सड़क और रेलवे के विस्तार, और नदी गोदावरी के जल संसाधनों की स्थानीय उपयोगिता के कारण सूखा और वनस्पति के विनाश की समस्या होती है।

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Try yourself:बरखान किस प्रकार का टीला होता है?
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भारतीय रेगिस्तान की स्थलाकृति


ग्रेट इंडियन डेजर्ट की मिट्टी वर्ष भर सूखी रहती है और हवा से टकराव का खतरा होता है। रेगिस्तान में गति वाली तेज हवाएं बहती हैं, जो कुछ हिस्से को निकटवर्ती उपजाऊ भूमि पर जमा कर देती हैं। ये तेज हवाएं रेगिस्तान के भीतर रेत की ढ़ेरों को हिला सकती हैं। इंदिरा गांधी नहर जैसी जल संरचनाएं थार रेगिस्तान को पानी प्रदान करती हैं। ये नहरें रेगिस्तान को उपजाऊ क्षेत्रों तक फैलने से भी रोकती हैं।

कठोर रेगिस्तानी जलवायु में पेड़ों की कम स्थानीय प्रजातियाँ जीवित रह सकती हैं, इसलिए इस क्षेत्र में जिन पेड़ों की मूल निवासी नहीं होती है, उनकी प्रजातियों को लगाया जाता है। यूकेलिप्टस, जोजोबा, बबूल, कैसिया आदि पेड़ों की प्रजातियाँ इस क्षेत्र में इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया, जिम्बाब्वे, चिली और सूडान से लगाई गई हैं। इनमें से जोजोबा सबसे अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि यह रोपण के लिए अधिक उपयुक्त है और आर्थिक रूप से व्यापारिक महत्व रखता है।

थार रेगिस्तान के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

  • थार रेगिस्तान का लगभग 85% भाग भारत में है। यह राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। भारत के थार मरुस्थल का 61.11% भाग राजस्थान में आता है।
  • थार मरुस्थल का जलवायु अत्यंत शुष्क होता है। इसकी औसत तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।
  • थार मरुस्थल में वनस्पति संख्या बहुत कम होती है। यहां केवल कुछ छोटे-छोटे वन होते हैं जो कुछ जानवरों को आश्रय प्रदान करते हैं।
  • यह दुनिया का 17वां सबसे बड़ा रेगिस्तान और दुनिया का 9वां सबसे बड़ा गर्म उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तान है। 
  • पाकिस्तान में इस मरुस्थल को थाल (चेलिस्तान) नाम से जाना जाता हैं। थार रेगिस्तान के पाकिस्तान के हिस्से में लाल सुहानरा बायोस्फीयर रिजर्व और नेशनल पार्क एक यूनेस्को घोषित बायोस्फीयर रिजर्व है। 
  • यह क्षेत्र रेगिस्तान के प्रवासी और निवासी पक्षियों की 141 प्रजातियों का आश्रय स्थल है। छिपकलियों की लगभग 23 प्रजातियाँ और साँपों की 25 प्रजातियाँ इस क्षेत्र में पाई जाती हैं।  
  • थार मरुस्थल में कुछ प्रमुख जानवर होते हैं जैसे काला हिरण, चिंकारा, भारतीय जंगली गधा, काराकल, लाल लोमड़ी, मयूर, भेड़िया, रेतका पक्षी (सैंड ग्रोउस), तेंदुआ, एशियाई जंगली बिल्ली आदि।
  • इस क्षेत्र की अधिकांश नदियाँ अल्पकालिक हैं। रेगिस्तान के दक्षिणी भाग में बहने वाली लूनी नदी एक शुष्क अंतर्देशीय बेसिन में खाली हो जाती है और इस प्रकार यह एक एंडोरिक नदी बेसिन का एक उदाहरण है।
  • एंडोरहिक बेसिन- कभी-कभी धाराएँ कुछ दूर बहने के बाद जमीन में गायब हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक झील या प्लाया में शामिल होकर अंतर्देशीय जल निकासी होती है। थार मरुस्थल में अनेक छोटी-छोटी नदियाँ होती हैं जैसे लूनी, ताणा, घाघरा, चम्बल, बांगंगा आदि। ये नदियाँ बारिश के समय जलभराव करती हैं और जल्दी उखड़ जाती हैं।
  • थार मरुस्थल में थोड़ी सी उर्वरता भी होती है। यह मुख्य रूप से शुष्क नदियों की उपस्थिति से संकेत मिलता है।
  • थार मरुस्थल में बागर नाम का अर्ध-मरुस्थली क्षेत्र होता है। यह राजस्थान के अरावली श्रृंखला के पश्चिम में स्थित है।
  • थार मरुस्थल में अनेक मरुस्थलीय उत्सव होते हैं जैसे कि जैसलमेर के ताजिये का मेला, पुष्कर मेला, बादल मेला आदि।
  • थार मरुस्थल भारत का सर्वाधिक ऊन उत्पादक क्षेत्र है। इसके अलावा यह जिप्सम और काओलिन जैसे खनिजों का भी सर्वाधिक उत्पादक है।
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