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Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

नमक का सीमित सेवन

चर्चा में क्यों? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) वयस्कों के लिये 5 ग्राम से कम नमक के दैनिक उपभोग की सिफारिश करता है किंतु एक औसत भारतीय की सोडियम खपत इस मात्रा के दोगुनी से भी अधिक है।

  • WHO ने सदस्य राज्यों के लिये वर्ष 2025 तक जनसंख्या द्वारा सोडियम सेवन को 30% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है किंतु प्रगति धीमी रही है। भारत का 4 में से 2 का सोडियम स्कोर इस स्वास्थ्य चिंता को दूर करने के लिये अधिक कठोर प्रयासों की आवश्यकता को इंगित करता है। 
  • WHO ने हाल ही में 'सोडियम उपभोग कटौती पर वैश्विक रिपोर्ट' (Global Report on Sodium Intake Reduction) प्रकाशित की, जिसमें वर्ष 2025 तक जनसंख्या द्वारा सोडियम उपभोग को 30% कम करने की दिशा में अपने 194 सदस्य राज्यों की प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।

नमक का सीमित सेवन करने की आवश्यकता

  • अत्यधिक नमक के सेवन के उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसे खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
  • सोडियम का सेवन कम करना आवश्यक है क्योंकि यह निम्न रक्तचाप के साथ दृढ़ता से सहसंबद्ध है, जिससे हृदय रोगों में कमी आ सकती है।
  • हृदय रोग विश्व भर में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है तथा भारत जैसे निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMIC) पर महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव के लिये ज़िम्मेदार है।
  • भारत में कई कारकों के कारण हृदय रोग और उच्च रक्तचाप की गंभीर चुनौती है, जिनमें बढ़ती मृत्यु दर सहित पुरुषों में उच्च प्रबलता, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में पूर्व-उच्च रक्तचाप वाली एक बड़ी आबादी शामिल है। 
  • मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज़ ऑफ डेथ (MCCD) 2020 रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में सभी प्रलेखित मौतों में से 32.1% के लिये संचारी रोग ज़िम्मेदार हैं, जिसमें उच्च रक्तचाप एक प्रमुख जोखिम कारक है। 
  • विश्व आर्थिक मंच का अनुमान है कि हृदय रोग के कारण वर्ष 2012 से 2030 के बीच अकेले भारतीय अर्थव्यवस्था को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की क्षति होगी। 

संबंधित पहलें

  • ईट राइट इंडिया अभियान: 
    • इसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय खाद्य प्रणाली में बदलाव लाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी के पास सुरक्षित, पौष्टिक एवं संपोषणीय भोजन उपलब्ध हो। 
  • ‘आज से थोड़ा कम’ अभियान: 
    • FSSAI ने 'आज से थोड़ा कम' सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है। इन प्रयासों के बावजूद भारतीयों की औसत सोडियम खपत अत्यधिक स्तर पर बनी हुई है। अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में सोडियम की सामान्य दैनिक खपत लगभग 11 ग्राम है, जो प्रतिदिन 5 ग्राम की अनुशंसित मात्रा से बहुत अधिक है।
  • चुनौतियों का समाधान: 
    • नमक की खपत को कम करने के लिये भारत को उपभोक्ताओं, उद्योग और सरकार को शामिल करने वाले बहु-आयामी दृष्टिकोण के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति का निर्माण करने की आवश्यकता है। सोडियम के अत्यधिक सेवन के कारण होने वाले उच्च रक्तचाप की समस्या से निपटने के लिये राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सहयोग आवश्यक है।
    • विश्व भर में गैर-संचारी रोगों (NCD) के कारण होने वाली अधिकांश मौतों की संख्या को सीमित करने और इस रोग की रोकथाम के लिये सोडियम की खपत को कम करना एक लागत प्रभावी रणनीति है।
    • एक रिपोर्ट के अनुसार, सोडियम की खपत को कम करने के लिये नीतियों को लागू करने से वर्ष 2030 तक विश्व स्तर पर अनुमानित सात मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकती है।
    • NCD से होने वाली मौतों को कम करना सतत् विकास लक्ष्यों में से एक है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सोडियम की खपत में कटौती संबंधी नीति काफी महत्त्वपूर्ण है।

भूदान-ग्रामदान आंदोलन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में महाराष्ट्र के एक गाँव ने ग्रामदान अधिनियम को लागू करने की मांग को लेकर बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया

भूदान आंदोलन

  • पृष्ठभूमि: 
    • यह भारत में वर्ष 1951 में विनोबा भावे द्वारा शुरू किया गया एक सामाजिक- राजनीतिक आंदोलन था।  
    • विनोबा भावे, महात्मा गांधी के शिष्य थे, जिन्हें गांधीजी ने पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रूप में चुना और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया।
    • स्वतंत्रता के बाद उन्होंने महसूस किया कि भूमिहीन का मुद्दा ग्रामीण भारत के सामने एक बड़ी समस्या है और वर्ष 1951 में उन्होंने भूदान आंदोलन या भूमि उपहार आंदोलन शुरू किया।
  • उद्देश्य: 
    • उनका उद्देश्य धनी ज़मींदारों को भूमिहीन किसानों को अपनी भूमि का एक हिस्सा दान करने के लिये राजी करना था।
    • जब भावे ने गाँव-गाँव घूमकर ज़मींदारों से अपनी ज़मीन दान करने का अनुरोध किया तो आंदोलन को गति मिली।
    • भावे का दृष्टिकोण अहिंसा के दर्शन में निहित था तथा उनका यह विचार था कि भू-स्वामियों को गरीबों हेतु करुणा एवं सहानुभूति के साथ अपनी भूमि दान करनी चाहिये।
  • ग्रामदान आंदोलन:
    • भूदान आंदोलन का अगला चरण ग्रामदान आंदोलन या ग्राम उपहार आंदोलन था।
    • इसका उद्देश्य भूमि के सामूहिक स्वामित्त्व के माध्यम से आत्मनिर्भर गाँव बनाना था।
    • ग्रामदान आंदोलन के तहत ग्रामीणों से आग्रह किया गया कि वे अपनी भूमि एक ग्राम परिषद को दान करें, जो ग्रामीणों को भूमि का प्रबंधन एवं वितरण करेगी।
    • इस आंदोलन को कई राजनीतिक नेताओं का समर्थन मिला तथा इसे ग्रामीण भारत में भूमि के असमान वितरण की समस्या के समाधान के रूप में देखा गया।
  • आंदोलन का महत्त्व:
    • यह आंदोलन भारत के कई हिस्सों में सफल रहा, हज़ारों एकड़ भूमि ज़मींदारों द्वारा दान की गई।
    • भूदान-ग्रामदान आंदोलन का भारतीय समाज एवं राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, इसने भूमिहीनता की स्थिति को कम करनेभूमि का अधिक समान वितरण करने तथा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों के सशक्तीकरण में मदद की।
    • इसने समुदाय में सभी को समान अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ देकर तथा समुदायों को स्वशासन की ओर बढ़ने हेतु सशक्त बनाकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया।
  • कमियाँ: 
    • यह दान की गई भूमि या तो अनुपजाऊ या मुकदमेबाज़ी के अधीन होती थी।
    • साथ ही भूमि के बड़े क्षेत्रों को दान किया गया था, जबकि भूमिहीनों के बीच बहुत कम वितरित किया गया था। 
    • यह उन क्षेत्रों में सफल नहीं हुआ जहाँ भूमि जोत में असमानता थी।
    • साथ ही यह आंदोलन अपनी क्रांतिकारी क्षमता को उजागर करने  में भी विफल रहा।

ग्रामदान अधिनियम का वर्तमान परिदृश्य

  • विभिन्न राज्यों में ग्रामदान अधिनियम: 
    • वर्तमान में भारत के सात राज्यों में 3,660 ग्रामदान गाँव हैं, जिनमें से सबसे अधिक ओडिशा (1309) में हैं।
    • अन्य छह राज्य आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं।
    • सितंबर 2022 में असम सरकार ने राज्य में दान की गई भूमि पर अतिक्रमण का सामना करने हेतु असम भूमि एवं राजस्व विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित करके असम ग्रामदान अधिनियम, 1961 तथा असम भूदान अधिनियम, 1965 को निरस्त कर दिया।
    • उस समय तक असम में 312 ग्रामदान गाँव थे। 
  • ग्रामदान अधिनियम की कुछ सामान्य विशेषताएँ: 
    • गाँव के कम-से-कम 75% भूस्वामियों को ग्राम समुदाय को भूमि का स्वामित्त्व प्रदान करना देना चाहिये। ऐसी भूमि गाँव की कुल भूमि का कम-से-कम 60% होनी चाहिये।
    • दान की गई भूमि का 5% खेती के लिये गाँव में भूमिहीनों में वितरित कर दिया जाता है।
    • ऐसी भूमि प्राप्तकर्त्ता समुदाय की अनुमति के बिना उसे हस्तांतरित नहीं कर सकते।
    • शेष भूमि दाताओं के पास रहती है; वे और उनके वंशज इसका उपयोग कर सकते हैं।
    • हालाँकि वे इसे गाँव के बाहर अथवा गाँव में किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं बेच सकते हैं जो ग्रामदान में शामिल नहीं हुआ है।
    • ग्रामदान में शामिल सभी काश्तकारों को अपनी आय का 2.5% हिस्सा समुदाय हेतु देना अपेक्षित है।
  • चिंताएँ: 
    • मुख्य रूप से कानून के खराब कार्यान्वयन के कारण कई गाँवों में इस अधिनियम की प्रासंगिकता खत्म हो गई है।
    • ग्रामदान के तहत कुछ गाँवों में अपनी ज़मीन देने वालों के वंशज निराश हैं कि वे गाँव के बाहर अपनी ज़मीन नहीं बेच सकते हैं और उनके अनुसार यह अधिनियम 'विकास विरोधी' है।
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