उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों पर वैश्विक रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग 2023 पर एक वैश्विक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सबसे गरीब आबादी को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है।
- विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस प्रतिवर्ष 30 जनवरी को मनाया जाता है। इसे 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (2021) में घोषित किया गया था।
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Diseases- NTD)
परिचय:
- NTD संक्रमणों का एक समूह है जो अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के विकासशील क्षेत्रों में सीमांत समुदायों में सबसे आम है।
- यह विभिन्न प्रकार के रोगजनकों के कारण होता है, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और परजीवी कीट।
- NTD विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आम हैं जहाँ लोगों के पास स्वच्छ जल या मानव अपशिष्ट के निपटान के सुरक्षित तरीकों की सुविधा नहीं है।
- आमतौर पर इन बीमारियों के अनुसंधान एवं उपचार के लिये तपेदिक, HIV-एड्स और मलेरिया जैसी बीमारियों की तुलना में कम धन आवंटित होता है।
- NTD के उदाहरण हैं: सर्पदंश का ज़हर, खुजली, जम्हाई, ट्रेकोमा, लीशमैनियासिस और चगास रोग आदि।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- अवलोकन:
- वैश्विक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) के भार में 16 देशों की हिस्सेदारी लगभग 80% है।
- वैश्विक स्तर पर लगभग 1.65 बिलियन लोगों को कम-से-कम एक NTD के लिये उपचार की आवश्यकता का अनुमान है।
- कोविड-19 ने समुदाय आधारित पहल, स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति शृंखलाओं तक पहुँच को प्रभावित किया। परिणामस्वरूप वर्ष 2019 और 2020 के बीच 34% कम व्यक्तियों ने NTD के लिये उपचार प्राप्त किया।
- सिफारिशें:
- विलंब को दूर करने और वर्ष 2030 तक NTD रोडमैप लक्ष्यों की दिशा में प्रगति में तेज़ी लाने हेतु अधिक प्रयासों एवं निवेश की आवश्यकता है।
- WHO ने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बहु-क्षेत्रीय सहयोग और साझेदारी का आग्रह किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर NTD कार्यों के पूर्ण पैमाने पर कार्यान्वयन हेतु अतिरिक्त भागीदारों और निवेशकों को प्रोत्साहित करना तथा अंतराल को कम करना व समाप्त करना समय की आवश्यकता है।
वैश्विक पहल:
- 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप:
- NTD रोडमैप 2021-2030 संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के संदर्भ में NTD के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक प्रयासों हेतु WHO का खाका है।
- ब्लूप्रिंट निम्नलिखित उपायों की सिफारिश करता है:
- प्रक्रिया और प्रभाव का मापन।
- रोग-विशिष्ट योजना और उसके संचालन से लेकर क्षेत्रों में सहयोगात्मक कार्य तक।
- बाह्य रूप से संचालित एजेंडा उन कार्यक्रमों पर निर्भर हैं जो देश के स्वामित्त्व वाले और देश द्वारा वित्तपोषित हैं।
- NTD पर लंदन घोषणा: इसे 30 जनवरी, 2012 को NTD के वैश्विक भार को पहचानने के लिये अपनाया गया था।
NTD को समाप्त करने हेतु भारतीय पहल:
- लसीका फाइलेरियासिस (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis-APELF) के उन्मूलन के लिये त्वरित योजना वर्ष 2018 में NTD के उन्मूलन की दिशा में गहन प्रयासों के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी।
- वर्ष 2005 में भारत, बांग्लादेश और नेपाल की सरकारों द्वारा सबसे संवेदनशील आबादी के शीघ्र रोग निदान और उपचार में तेज़ी लाने तथा रोग निगरानी में सुधार एवं कालाज़ार को नियंत्रित करने के लिये WHO समर्थित एक क्षेत्रीय गठबंधन का गठन किया गया है।
- भारत पहले ही कई अन्य NDTs को समाप्त कर चुका है, जिसमें गिनी वर्म, ट्रेकोमा और यॉज़ शामिल हैं।
- जन औषधि प्रशासन (Mass Drug Administration- MDA) जैसे निवारक तरीकों का उपयोग समय-समय पर स्थानिक क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें जोखिम वाले समुदायों को फाइलेरिया रोधी (Anti-filaria) दवाएँ मुफ्त प्रदान की जाती हैं।
- सैंडफ्लाई प्रजनन (Sandfly Breeding) को रोकने के लिये स्थानिक क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर अवशिष्ट छिड़काव जैसे वेक्टर जनित रोकथाम उपाय किये जाते हैं।
- सरकार द्वारा लिम्फोएडेमा (Lymphoedema) और हाइड्रोसील (Hydrocele) से प्रभावित लोगों के लिये रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता रोकथाम उपाय भी सुनिश्चित किये जाते हैं।
- केंद्र और राज्य सरकारों ने कालाज़ार (Kala-Azar) और इसकी अगली कड़ी (ऐसी स्थिति जो पिछली बीमारी या चोट का परिणाम है) से पीड़ित लोगों के लिये वेतन मुआवज़ा योजनाएँ (Wage Compensation Schemes) शुरू की हैं, जिन्हें पोस्ट-कालाज़ार डर्मल लीशमैनियासिस (Post-Kala Azar Dermal Leishmaniasis) के रूप में भी जाना जाता है
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 का उल्लंघन करने वाले भारत में कई मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों (MHIs) की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की।
- NHRC के अनुसार, MHIs रोगियों के ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक उन्हें "अवैध रूप से" रख रहे हैं, जो न केवल अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, बल्कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के तहत दायित्त्वों का निर्वहन करने में सरकारों की विफलता को भी उज़ागर करता है, जिन्हें भारत द्वारा अनुमोदित किया गया है।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 की पृष्ठभूमि:
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 से पूर्व, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 1987 अस्तित्त्व में था, जो मानसिक रोगियों के संस्थागतकरण को प्राथमिकता देता था और रोगी को कोई अधिकार नहीं देता था।
- अधिनियम ने न्यायिक अधिकारियों और मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को लंबे समय तक रहने हेतु प्रवेशों को प्राधिकृत करने के लिये अक्सर व्यक्ति की सूचित सहमति और इच्छाओं के विरुद्ध असंगत अधिकार प्रदान किया।
- नतीजतन, कई व्यक्तियों को भर्ती किया जाना जारी है और उनकी इच्छा के खिलाफ मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रखा गया है।
- इसने वर्ष 1912 के औपनिवेशिक युग के भारतीय पागलपन अधिनियम के लोकाचार को मूर्त रूप दिया, जो आपराधिकता और पागलपन को जोड़ता था।
- शरण स्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ "असामान्य" और "अनुत्पादक" व्यवहार जो कि व्यक्ति को समाज से अलग करता था, का एक व्यक्तिगत घटना के रूप में अध्ययन किया जाता था। हस्तक्षेप का उद्देश्य अंतर्निहित कमी या "असामान्यता" को ठीक करना है, जिसके परिणामस्वरूप "स्वास्थ्य लाभ" होता है।
- वर्ष 2017 में MHA ने शरण से जुड़ी नैदानिक विरासत को समाप्त कर दिया।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA) 2017
परिचय:
- इस अधिनियम ने मानसिक बीमारी को "सोच, मनोदशा, धारणा, अभिविन्यास या स्मृति का एक पर्याप्त विकार के रूप में परिभाषित किया है जो क्षमता निर्णय, वास्तविकता, जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने के लिये व्यवहार को पहचानने की क्षमता या शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को बाधित करता है।
- यह मरीजों को उन सुविधाओं तक पहुँच का भी अधिकार प्रदान करता है जिनमें समुदाय और घर, आश्रय एवं समर्थित आवास तथा चिकित्सालय में पुनर्वास सेवाएँ भी शामिल हैं।
- यह PMI (मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति) पर शोध और न्यूरोसर्जिकल उपचार के उपयोग को नियंत्रित करता है।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत अधिकार:
- अग्रिम निर्देश का अधिकार (रोगी यह बता सकता है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के दौरान बीमारी का इलाज कैसे किया जाए या नहीं किया जाए)।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार।
- निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार।
- समुदाय में रहने का अधिकार।
- क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार।
- निषिद्ध उपचार के तहत इलाज न करने का अधिकार।
- समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार।
- सूचना का अधिकार।
- गोपनीयता का अधिकार।
- कानूनी सहायता और शिकायत का अधिकार।
आत्महत्या करने का प्रयास अपराध नहीं:
- कोई व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है, यह माना जाएगा कि वह "गंभीर तनाव से पीड़ित" है और किसी भी जाँच अथवा अभियोजन के अधीन नहीं होगा।
- इस अधिनियम में केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना की परिकल्पना की गई है।
इस कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियाँ:
- मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) की अनुपस्थिति:
- अधिकांश राज्यों में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) नहीं हैं तथा कई राज्यों ने MHI की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम मानकों को अधिसूचित नहीं किया है।
- MMHRBs ऐसे निकाय हैं जो मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिये मानकों का मसौदा तैयार कर सकते हैं, उनके कामकाज़ की देख-रेख करने के साथ ही यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अधिनियम का अनुपालन करते हैं अथवा नहीं।
- MHRB के अभाव में लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करने अथवा अधिकारों के हनन के मामलों में समाधान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
- खराब बजटीय आवंटन:
- खराब बजटीय आवंटन और धन का उपयोग एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण करता है जिसमें आश्रयगृह में आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है, प्रतिष्ठान में कर्मचारियों की संख्या कम होती है और पेशेवर तथा सेवा प्रदाता मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं।
- लांछन की भावना:
- इन स्थानों में जो भी लोग रहते हैं, वे या तो अपने परिवार वालों द्वारा लाए जाते हैं अथवा पुलिस और न्यायपालिका इसके लिये उत्तरदायी होती है।
- कई मामलों में परिवार वाले कैद से जुड़े कलंक अथवा ऐसे ही किसी विचार के कारण उन्हें ले जाने से मना कर देते हैं कि वह व्यक्ति अब समाज में कोई योगदान नहीं दे सकता है।
- "पारिवारिक मतभेद, वैवाहिक असहमति और व्यक्तिगत संबंधों में हिंसा के कारण महिलाओं का परित्याग किये जाने की अधिक संभावना होती है, जो कुल मिलाकर इस परिस्थिति में लैंगिक भेदभाव में योगदान देते हैं।
- समुदाय आधारित सेवाओं का अभाव:
- जबकि धारा 19 जो लोगों के "समाज में रहने, हिस्सा बनने और समाज से अलग न होने" के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है, के कार्यान्वयन हेतु कोई ठोस प्रयास नहीं किये गए हैं।
- वैकल्पिक समुदाय-आधारित सेवाओं की कमी के कारण पुनर्वास तक पहुँच और जटिल हो जाती है, जैसे कि सहायता प्राप्त या स्वतंत्र रहने हेतु घर, समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ एवं सामाजिक-आर्थिक अवसर।
आगे की राह
- यह सुनिश्चित करने हेतु अधिनियम की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिये कि यह व्यक्तियों की मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने में प्रभावी है।
- इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित करने हेतु संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिये कि अधिनियम को पर्याप्त रूप से लागू किया गया है।
- मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक/स्टिग्मा को दूर करने, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने हेतु निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये।
मानव पूंजी पर कोविड-19 का प्रभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने “कोलैप्स एंड रिकवरी: हाउ कोविड-19 एरोडेड ह्यूमन कैपिटल एंड व्हाट टू डू” (Collapse and Recovery: How COVID-19 Eroded Human Capital and What to Do) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 के कारण बड़े पैमाने पर मानव पूंजी की क्षति हुई, जिसने मुख्य रूप से बच्चों और युवाओं को प्रभावित किया।
- इसने प्रमुख विकासात्मक चरणों में युवा लोगों पर महामारी के प्रभाव को लेकर वैश्विक डेटा का विश्लेषण किया: प्रारंभिक बचपन (0-5 वर्ष), स्कूल की उम्र (6-14 वर्ष), और युवा (15-24 वर्ष)।
नोट: मानव पूंजी में ज्ञान, कौशल और स्वास्थ्य शामिल हैं जिसे लोग अपने पूरे जीवन में निवेश और जमा करते हैं जिससे उन्हें समाज के उत्पादक सदस्यों के रूप में अपनी क्षमता का एहसास करने में मदद मिलती है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- महामारी का प्रभाव:
- कोविड-19 ने जीवन चक्र के महत्त्वपूर्ण क्षणों में मानव पूंजी को भारी नुकसान पहुँचाया, मुख्य रूप से अविकसित तथा विकासशील देशों में बच्चों एवं युवाओं को प्रभावित किया।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं।
- स्कूली बच्चों पर प्रभाव:
- कई देशों में प्री-स्कूल उम्र के बच्चों ने प्रारंभिक भाषा और साक्षरता में 34% से अधिक और पूर्व-महामारी की तुलना में गणित में 29% से अधिक ने सीखने के कौशल को खो दिया है।
- कई देशों में स्कूलों के फिर से खुलने के बाद भी प्री-स्कूल नामांकन वर्ष 2021 के अंत तक ठीक से नहीं हो पाया था; कई देशों में इसमें 10% से अधिक की गिरावट देखी गई थी।
- महामारी के दौरान बच्चों को अधिक खाद्य असुरक्षा का भी सामना करना पड़ा।
- स्वास्थ्य देखभाल में कमी:
- लाखों बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल में कमी का सामना करना पड़ा, जिसमें प्रमुख रूप से टीके न ले पाना भी शामिल है।
- उन्होंने अपने देखभाल के वातावरण में अधिक तनाव का अनुभव किया, जैसे- अनाथ, घरेलू हिंसा और खराब पोषण आदि जिसके परिणामस्वरूप विद्यालय जाने में सक्षम नहीं थे जिसके कारण सामाजिक और भावनात्मक विकास कम हुआ।
- युवा रोज़गार:
- महामारी से पूर्व 40 मिलियन लोग जो रोज़गार संपन्न थे, महामारी के पश्चात् वर्ष 2021 के अंत तक रोज़गार विहीन हो गए, जिससे युवा बेरोज़गारी की स्थिति और खराब हो गई। युवाओं की आय में वर्ष 2020 में 15% और वर्ष 2021 में 12% की गिरावट आई।
- अल्प शिक्षित नए प्रतियोगियों के पास श्रम बाज़ार में अपने पहले दशक के दौरान 13% कम आय होगी।
- ब्राज़ील, इथियोपिया, मेक्सिको, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम में वर्ष 2021 में कुल युवाओं में से 25% के पास न तो शिक्षा, रोज़गार और न ही प्रशिक्षण था।
- भविष्य में चुनौतियाँ:
- आज के नन्हे बच्चों/टॉडलर में संज्ञानात्मक कमी के कारण जब वे काम करने की उम्र में पहुँच जाएंगे तो कमाई में 25% की गिरावट आ सकती है।
- कोविड से प्रभावित शिक्षा के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में छात्रों की भविष्य की औसत वार्षिक आय 10% तक कम हो सकती है। छात्रों की इस पीढ़ी को जीवन भर की संभावित कमाई में 21 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- इस पैमाने पर जीवन भर की कमाई के नुकसान का मतलब कम उत्पादकता, अधिक असमानता और आने वाले दशकों में संभवतः अधिक सामाजिक अशांति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सिफारिशें
- देशों को इन नुकसानों की भरपाई हेतु तत्काल कार्रवाई के साथ मानव पूंजी में निवेश करना चाहिये।
- मानव पूंजी गरीबी में कमी और समावेशी विकास का एक प्रमुख चालक है। अर्थात् वर्तमान एवं भविष्य के संकटों तथा तनावों का सामना करने हेतु इसमें लचीलापन लाना अत्यावश्यक है।
- कुछ नीतिगत कार्रवाइयों में शामिल हो सकते हैं:
- टीकाकरण और पोषण पूरक अभियान, पालन-पोषण कार्यक्रमों की कवरेज बढ़ाना, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना, कमज़ोर परिवारों हेतु नकद हस्तांतरण के कवरेज का विस्तार करना।
- शिक्षण समय बढ़ाना, छात्रों के सीखने का उनके स्तर के आधार पर मूल्यांकन करना और आधारभूत शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने हेतु पाठ्यक्रम को सुव्यवस्थित करना।
- युवाओं को अनुकूलित प्रशिक्षण, नौकरी हेतु मध्यस्थता, उद्यमिता कार्यक्रम और नई कार्यबल उन्मुख पहलों के लिये समर्थन प्रदान करना आवश्यक है।
- दीर्घावधि में राष्ट्रों को मानव विकास के लिये ऐसी प्रणालियाँ तैयार करनी चाहिये जो वर्तमान तथा भविष्य में संकटों हेतु बेहतर तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये लचीली, तीव्र और अनुकूलनीय हों।
शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले
चर्चा में क्यों?
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 से स्पष्ट है कि वर्ष 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों द्वारा आत्महत्याओं में भारी वृद्धि हुई थी और यह पिछले पाँच वर्षों से लगातार बढ़ रही है।
छात्रों द्वारा आत्महत्या की वर्तमान स्थिति:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, वर्ष 2020 में 12,526 मौतों से 4.5% की वृद्धि के साथ भारत में वर्ष 2021 तक प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई जिसमें 10,732 आत्महत्याओं में से 864 का कारण "परीक्षा में विफलता" थी।
- वर्ष 1995 के बाद से देश में वर्ष 2021 में आत्महत्या के कारण सबसे अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, जबकि पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का आँकड़ा लगभग 2 लाख है।
- वर्ष 2017 में 9,905 छात्रों की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई थी, उसके बाद से आत्महत्या से होने वाली छात्रों की मृत्यु में 32.15% की वृद्धि हुई है।
- महाराष्ट्र में वर्ष 2021 में 1,834 मामलों के साथ छात्रों की आत्महत्या की संख्या सबसे अधिक थी, इसके बाद मध्य प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान था।
- रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि महिला छात्रों की आत्महत्या का प्रतिशत 43.49% के साथ पाँच वर्ष के निचले स्तर पर था, जबकि पुरुष छात्रों की आत्महत्या कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
- वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में ऐसी मौतों की संख्या बढ़कर 5,693 हो गई।
- शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-21 में IIT, NIT, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की।
- 122 में से 68 अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के थे।
- इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के जाने-माने केंद्र कोटा, भारत में होने वाली आत्महत्याएँ एक बढ़ती हुई चिंता है।
- जनवरी 2023 तक कोटा में वर्ष 2022 से अब तक 22 छात्रों की मौत हो चुकी है और वर्ष 2011 से लगभग 121 की मौत हो चुकी है।
आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक:
- शैक्षणिक दबाव:
- माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
- असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है
- मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:
- अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
- ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
- अलगाव और अकेलापन:
- शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
- यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
- वित्तीय चिंताएँ:
- वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
- इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है।
- साइबर बुलिंग:
- साइबर बुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न की घटनाएँ तेज़ी से आम होती जा रही हैं तथा छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के कारणों को बढ़ा सकती हैं।
- साइबर बुलिंग के कई रूप हो सकते है, जैसे- उत्पीड़न, साइबर स्टॉकिंग या सोशल मीडिया के माध्यम से डराना-धमकाना।
- मादक पदार्थों का सेवन:
- मादक द्रव्यों और शराब का सेवन छात्र को आत्महत्या के कारणों में वृद्धि कर सकता है। मादक द्रव्यों के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, वित्तीय कठिनाइयाँ और कानूनी समस्याएँ हो उत्पन्न हो सकती हैं, जो छात्रों को भारी पड़ सकती हैं।
- आपसी संबंध को लेकर समस्या:
- रिश्ते से संबंधित समस्याएँ, जैसे कि अलगाव, पारिवारिक संघर्ष और मित्रता के मुद्दे भी छात्र आत्महत्याओं में योगदान दे सकते हैं।
- इन समस्याओं से निपटना उन छात्रों के लिये विशेष रूप से कठिन हो सकता है जो घर से दूर हैं और कम समर्थ है।
- समर्थन की कमी:
- शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं।
- यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है।
- समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं।
आत्महत्याओं को रोकने हेतु संभावित पहल
- बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ:
- छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है।
- इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
- मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को आत्मसात करना:
- मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
- समग्र व्यक्तित्त्व विकास पर ध्यान देना:
- व्यक्तित्त्व विकास के लिये एक समग्र दृष्टिकोण के साथ शैक्षिक संस्थान एक सहायक और समावेशी वातावरण बना सकते हैं जो छात्रों को अकादमिक एवं भावनात्मक रूप से आगे बढ़ने में मदद कर सकता है तथा आत्महत्याओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- खेलों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना:
- खेल आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए तनाव की स्थिति में एक सकारात्मक सोच प्रदान कर आत्महत्याओं को रोकने में मदद कर सकते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करना:
- छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये।
- कठोर साइबर बुलिंग नीतियाँ:
- कठोर साइबर बुलिंग नीतियों को लागू करने और ऑनलाइन उत्पीड़न पर नकेल कसने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इसमें सोशल मीडिया साइटों की निगरानी करना, साइबर बुलिंग के बारे में शिक्षा प्रदान करना और साइबर बुलिंग करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शामिल हो सकती है।
- मादक द्रव्यों के सेवन रोकथाम कार्यक्रम:
- मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम के कार्यक्रमों को लागू करने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इसमें छात्रों को मादक द्रव्यों के सेवन के खतरों के बारे में शिक्षित करना, नशे के आदी लोगों को सहायता प्रदान करना एवं ड्रग्स तथा शराब की उपलब्धता को कम करने हेतु कदम उठाना शामिल हो सकता है।
- सकारात्मक संबंध बनाना:
- छात्रों को सकारात्मक संबंध और संपर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित करना, संबंध परामर्श सेवाओं की पेशकश करना तथा छात्रों को मदद हेतु प्रोत्साहित करना आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
- परिवार का सहयोग:
- छात्रों को उनके परिवारों द्वारा सहयोग प्रदान किये जाने से आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इसमें परिवारों के लिये सहायता और संसाधनों की पेशकश करना एवं छात्रों को अपने परिवारों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
आत्महत्याओं को कम करने हेतु संबंधित पहलें:
- वैश्विक पहल:
- विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD): यह प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है, WSPD की स्थापना वर्ष 2003 में WHO के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी। यह स्टिग्मा को कम करता है और संगठनों, सरकार एवं जनता के बीच जागरूकता बढ़ाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है।
- WSPD का 2021-2023 के लिये "कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना" त्रैवार्षिक विषय है। यह विषय एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है इसका उद्देश्य हम सभी में आशा और आशावाद जगाना है।
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: 10 अक्तूबर को प्रत्येक वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समग्र उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है।
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम “मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को सभी के लिये वैश्विक प्राथमिकता बनाना” है।
भारतीय पहल:
- मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम (MHA), 2017:
- MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
- किरण (KIRAN):
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से परेशान लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण" शुरू की है।
- मनोदर्पण पहल:
- मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
- इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:
- वर्ष 2023 में घोषित राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति देश में अपनी तरह की पहली योजना है, जो वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग है।
- यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।
- उद्देश्य:
- यह रणनीति का लक्ष्य मोटे तौर पर अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना है।
- मनोरोग बाह्य रोगी विभाग स्थापित करना, जो अगले पाँच वर्षों के भीतर सभी ज़िलों में ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से आत्महत्या रोकथाम सेवाएँ प्रदान करेगा।
- इसका उद्देश्य अगले आठ वर्षों के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों में एक मानसिक विकास पाठ्यक्रम को शामिल करना है।
- यह आत्महत्या संबंधी मामलों की ज़िम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने की परिकल्पना करता है।
विशेष विवाह अधिनियम 1954
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश में अंतर-धार्मिक विवाहों को नियंत्रित करने वाले कानून, विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
- वर्ष 2021 में इसके कई प्रावधानों को रद्द करने के लिये याचिकाएँ दायर की गईं।
विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:
- विशेष विवाह अधिनियम भारत में अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह को पंजीकृत करने एवं मान्यता प्रदान करने हेतु बनाया गया है।
- यह एक नागरिक अनुबंध के माध्यम से दो व्यक्तियों को अपनी शादी विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है।
- अधिनियम के तहत किसी धार्मिक औपचारिकता के निर्वहन की आवश्यकता नहीं होती।
- इस अधिनियम में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्ध विवाह शामिल हैं।
- यह अधिनियम न केवल विभिन्न जातियों और धर्मों के भारतीय नागरिकों पर बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।
वर्तमान याचिका के बारे में:
- SMA की धारा 5 में इस कानून के तहत शादी करने वाले व्यक्ति को इच्छित विवाह की सूचना देने की आवश्यकता होती है।
- धारा 6(2) के मुताबिक, इसे विवाह अधिकारी के कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर चिपका दिया जाना चाहिये।
- धारा 7(1) किसी भी व्यक्ति को नोटिस के प्रकाशन के 30 दिनों के भीतर विवाह पर आपत्ति करने की अनुमति देती है, ऐसा न करने पर धारा 7(2) के तहत विवाह संपन्न किया जा सकता है।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले इन प्रावधानों के कारण कई अंतर-धार्मिक जोड़ों ने अधिनियम की धारा 6 और 7 को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।
प्रमुख बिंदु
- अंतर-धार्मिक विवाह
- अंतर-धार्मिक विवाह का आशय अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं वाले दो व्यक्तियों के बीच वैवाहिक संबंध से है।
- एक अलग धर्म में शादी करना किसी वयस्क के लिये अपनों व्यक्तिगत पसंद का मामला है।
- अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित मुद्दे:
- माना जाता है कि अंतर-र्धार्मिक विवाह के तहत पति-पत्नी (ज़्यादातर महिलाएँ) में से किसी एक का जबरन धर्मांतरण होता है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, गैर-मुस्लिम से शादी करने के लिये धर्म परिवर्तन ही एकमात्र तरीका है।
- हिंदू धर्म केवल एक विवाह की अनुमति देता है और जो लोग दूसरी शादी करना चाहते हैं वे दूसरा रास्ता अपनाते हैं।
- ऐसे विवाहों से पैदा हुए बच्चों के जाति निर्धारण के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 समाज के पिछड़ेपन के अनुकूल नहीं है।
- उच्च न्यायालय द्वारा अंतर-र्धार्मिक विवाह को रद्द करने के संदर्भ में अनुच्छेद 226 की वैधता पर बहस चल रही है।
- अनुच्छेद 226: रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति।
- अंतर-धार्मिक विवाहों से संबंधित कानूनों पर विचार करते समक्ष चुनौतियाँ:
- मौलिक अधिकारों के विरुद्ध: किसी व्यक्ति को विवाह के चुनाव में कानून का हस्तक्षेप उसके मौजूदा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जैसे:
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)।
- स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19)।
- धर्म की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 25 व अनुच्छेद 21)।
- धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध: भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को प्रमुख सिद्धांतों में शामिल किया गया है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- इसलिये भारत में अंतर-धार्मिक विवाहों की अनुमति है क्योंकि संविधान किसी भी व्यक्ति को अन्य धर्म को अपनाने का अधिकार प्रदान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के साथ भिन्नता:
- सर्वोच्च न्यायालय ने शफीन जहान बनाम अशोक केएम (2018) मामले में अनुच्छेद 21 के एक भाग के रूप में अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को बरकरार रखा है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, संविधान प्रत्येक व्यक्ति की जीवन-शैली या विश्वास का पालन करने की क्षमता को सुरक्षित करता है जिसका वह पालन करना चाहता है।
- इसलिये अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय में के.एस. पुट्टस्वामी बनाम यूओआई (2017) के फैसले ने "पारिवारिक जीवन के चुनाव के अधिकार" को मौलिक अधिकार के रूप में माना है।
- पितृसत्तात्मक: इससे पता चलता है कि कानून की जड़ें पितृसत्तात्मक हैं, जिसमें महिलाओं को माता-पिता एवं सामुदायिक नियंत्रण में रखा जाता है और यहाँ तक की जीवन के निर्णय लेने के अधिकार से वंचित किया जाता है, अगर वे निर्णय उनके अभिभावकों को स्वीकार्य न हो।
आगे की राह
- किसी भी कानून को शामिल करने से बचने के लिये मानसिक और सामाजिक स्तर पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की स्वीकृति होनी चाहिये।
- अधिकारों का शोषण नहीं होना चाहिये, केवल विवाह हेतु धर्म परिवर्तन करना बिल्कुल भी बुद्धिमानी नहीं है।
नमस्ते (NAMASTE) योजना
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2023-2024 में यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action for Mechanized Sanitation Ecosystem- NAMASTE) के लिये लगभग 100 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, साथ ही सरकार सभी शहरों एवं कस्बों में सेप्टिक टैंक तथा सीवर की 100% यांत्रिक सफाई सुनिश्चित करने पर विचार कर रही है।
- इस योजना को देश के सभी शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULB) तक विस्तारित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
नमस्ते योजना
परिचय:
इसे वर्ष 2022 में केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
- यह योजना आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs and the Ministry of Social Justice & Empowerment- MoSJE) द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है, इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर तथा सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं को खत्म करना है।
उद्देश्य:
- भारत में स्वच्छता/सफाई संबंधी कार्यों में होने वाली मौतों को शून्य करना।
- स्वच्छता के सभी कार्य कुशल श्रमिकों द्वारा कराना।
- कोई भी सफाई कर्मचारी मानव मल के सीधे संपर्क में न आए।
- स्वच्छता कर्मचारियों को स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups- SHG) में शामिल करना और स्वच्छता उद्यमों को चलाने हेतु सशक्त बनाना।
- सुरक्षित स्वच्छता कार्य के प्रवर्तन और निगरानी को सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय, राज्य एवं शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्तरों पर पर्यवेक्षी तथा निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना।
- स्वच्छता सेवा चाहने वालों (व्यक्तियों और संस्थानों) को पंजीकृत और कुशल स्वच्छता श्रमिकों से सेवाएँ लेने हेतु जागरूकता बढ़ाना।
ULB में लागू की जाने वाली योजना की मुख्य विशेषताएँ:
- पहचान: NAMASTE में सीवर/सेप्टिक टैंक वर्कर्स (SSWs) की पहचान करने की परिकल्पना की गई है।
- SSW को व्यावसायिक प्रशिक्षण और PPE किट प्रदान करना।
- स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाइयों (Sanitation Response Units- SRU) को सुरक्षा उपकरणों हेतु सहायता।
- आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Ayushman Bharat-Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- AB-PMJAY) के तहत चिह्नित SSW और उनके परिवारों को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ प्रदान करना।
- आजीविका सहायता: कार्ययोजना स्वच्छता से संबंधित उपकरणों की खरीद हेतु सफाई कर्मचारियों को वित्तीय सहायता एवं सब्सिडी (पूंजी+ब्याज) प्रदान करके मशीनीकरण तथा उद्यम विकास को बढ़ावा देगी।
- सूचना शिक्षा और संचार (Information Education and Communication- IEC) अभियान: नमस्ते योजना के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु ULB और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम (National Safai Karamcharis Finance & Development Corporation- NSKFDC) द्वारा संयुक्त रूप से व्यापक अभियान चलाए जाएंगे।
हाथ से मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्कैवेंजिंग:
- मैनुअल स्कैवेंजिंग को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालों और सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने की प्रथा को "अमानवीय प्रथा" के रूप में चिह्नित करता है।
मैला ढोने की समस्या से निपटने के लिये उठाए गए कदम:
- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
- यह सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके अपनाने और सीवर में होने वाली मौतों के मामले में कर्मियों के परिवार वालों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।
- यह मैला ढोने वालों कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में बदलाव है।
- इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी मिलना शेष है।
- मैला ढोने वालों कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
- वर्ष 2013 का अधिनियम, जो वर्ष 1993 के अधिनियम के स्थान पर लाया गया, न केवल शुष्क शौचालयों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है बल्कि अस्वच्छ शौचालयों, गड्ढों और खुली नालियों की हाथों द्वारा सफाई पर भी प्रतिबंध लगाता है।
- अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम, 2013:
- यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
- अत्याचार निवारण अधिनियम:
- वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम सफाई कर्मचारियों के लिये एक एकीकृत रक्षा कवच साबित हुआ, मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के संदर्भ में एक मील का पत्थर बन गया।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 के बाद से सीवेज सफाई का काम करने के दौरान मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।