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भारत के लिए आतंकवाद का खतरा | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

“आतंकवाद को राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक प्रयोजनों हेतु जोर जबरदस्ती के साधन के रूप में हिंसा के योजनाबद्ध, संगठित और सुव्यवस्थित उपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।"

परिचय

  • भारत की सुरक्षा ऐतिहासिक, भौगोलिक अनिवार्यताओं के कारण दक्षिण एशिया की घटनाओं से प्रभावित होती है। यह कहा जाता है कि परस्पर अविश्वास इन राज्यों के बीच एक प्राकृतिक श्राप है, तथापि यह तथ्य समान रूप से उपमहाद्वीप के सभी देशों के लिए सत्य नहीं हैं। परस्पर अविश्वास की यह खाई भारत-पाकिस्तान के मध्य अधिक गहरी है।
  • इस उपमहाद्वीप में बहुलवादी, लोकतांत्रिक सरकारों एवं गैर बहुलवादी सरकारों के एकात्मक रूप में तनाव, संबंधों में असन्तुलन को और बढ़ाता है। ऐसी परिस्थितियों ने दक्षिण एशिया के विवादों में अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों की संलग्नता को जन्म दिया है और इस प्रकार अतक्षेत्रीय संबंधों को और जटिल बनाते हुए, सम्पूर्ण परिदृश्य को उलझा दिया है। 
  • दक्षिण एशियाई देशों के मध्य नृजातीय, भाजिक एवं धार्मिक अतिव्याप्ति (Overlap) ने न केवल इन सभी राज्यों में, राजनीतिक विकास बल्कि अन्तर्राज्यीय संबंधों पर भी प्रभाव डाला है।
  • पड़ोसियों के बीच सीमाएं प्राकृतिक न होकर भौगोलिक एवं नृजातीय है, अत: यहाँ सामाजिक तनावों का सीमापार प्रभाव होना स्वाभाविक है।
  • हमारी सुरक्षा बाह्य एवं आन्तरिक स्रोतों से उत्पन्न संघर्ष, तनावों एवं खतरों से भेद्य है।
  • भारत के आन्तरिक सुरक्षा की घरेलू गत्यात्मकता, इसके सामाजिक, राजनीतिक परिवेश में प्रदर्शित होती है। जिसका मुख्य लक्षण विविधता है। यह विविधता इसके समुदायों एवं जातियों, नस्लों एवं विजातीय समूहों, भाषाओं एवं उपभाषाओं, धार्मिक विश्वासों, परम्पराओं एवं रीतिरिवाजों, संस्कृति की विभिन्न अभिव्यक्तियों के साथ, एक गत्यात्मक वातावरण में परिचालन करते हुए प्रदर्शित होती है।
  • अतएव, हमारा आन्तरिक सुरक्षा परिदृश्य अपनी जटिलता एवं विभिन्नताओं के साथ इसी तरह निरन्तर रहेगा। 
  • यद्यपि समस्याएं, स्वाभाविक रूप से अपनी घरेलू जड़ों से आबद्ध रहेंगी तथापि, इन्हें भड़काने में बाह्य कारक अपनी भूमिका इसी तरह निभाते रहेंगे।
  • असहमति के आंतरिक बलों से जुड़कर वाह्य कारक सुरक्षा समस्याओं को और विकृत करने का प्रयास करेंगे। 
  • इस प्रकार आतंकवाद, मादकद्रव्यों, छोटे अस्त्रों के प्रसार, ऊर्जा आवश्यकताओं एवं सूचना युद्धों में शून्यता एवं आन्तरिक सुरक्षा के अनुसरण, देश के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होंगे।

आतंकवाद के वित्तपोषण स्रोत

भारत कई प्रकार के आंतरिक सुरक्षा के खतरों का सामना कर रहा है। आतंकवाद में लिप्त समूह विभिन्न स्रोतों, जैसे -नकली मुद्रा, जबरन वसूली, अपराध, तस्करी इत्यादी से धन एकत्रित करते हैं। आईएसआई प्रयोजित आंतकवाद व अन्य प्रकार के आंतकवाद के वित्तपोषण स्रोत निम्नवत है-

आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, आईएसआई प्रायोजित एवं वितपोषित आतंकवाद का एक सटीक उदाहरण है। आईएसआई राज्य के अतिरिक्त निजी राशि आदि से धन एकत्रित करता है।

इण्डियन मुजाहिदीन (आईएम) के मामले में विदेश राज्य का समर्थन आईएसआई द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता के रूप में है। इसके अलावा संठतित आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से तथा वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से इनकी गैर-कानूनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए धन एकत्रित किया जाता है।

माना जाता है कि आईएसआई का आंतकी नेटवर्क के पास धन निम्नवत तरीके से आता है-

  • इस्लामिक देशों से जेहाद के नाम पर चंदा
  • ड्रग्स तस्करी से कमाई
  • भारतीय जाली मुद्रा के प्रसार से
  • अन्य संगठित अपराधों के माध्यम से।

वित्तीय नेटवर्क, कराची और इस्लामाबाद से कुछ ट्रस्टों के माध्यम से संचालित होता है। जिनका माध्यम जाली बैंक खातों के माध्यम से संचालित किए जाते हैं।

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संस्थागत ढांचा

2008 से पहले आतंकवाद का मुकाबला मुख्यतः राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बलों की मदद से आसूचना ब्यूरो (आईबी) द्वारा किया जाता था। आईबी ने विभिन्न राज्यों की पुलिस के बीच समन्वय का कार्य करने वाली आसूचना एजेंसी की भूमिका निभाई जांच करने और कार्यवाही करने का कार्य राज्य पुलिस द्वारा किया जाता था।

  • 26/11 के पश्चात् नये बदलाव - यद्यपि 26/11 के दौरान मुंबई पुलिस और एनएसजी द्वारा की गई कार्यवाही की सर्वत्र सराहना की गई है, तथापि प्रारंभिक प्रतिक्रिया और बलों द्वारा प्रयोग में लाएग गए हथियारों, प्रशिक्षण और उपलब्ध आसूचना के अनुसार की गई कार्यवाही के बीच समन्वय में गंभीर खामियां नजर आई इसलिए 26/11 के पश्चात भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए।
  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण : राष्ट्रीय अभिकरण (एनआईए) एक संघीय एजेंसी है जिसकी स्थापना भारत सरकार ने भारत में आतंकवाद से लड़ने के लिए की है।
  • नेटग्रिड : राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड या नेटग्रिड एक एकीकृत आसूचना ग्रिड है जो आसूचना का व्यापक स्वरूप इकट्ठा करने के लिए कई विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों के डाटाबेस में एक कड़ी का काम करेगी और आसूचना एजेंसियों के लिए सुलभ रूप से उपलब्ध हो सकेगी।
  • मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) का पुनर्गठन : आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मैक एक मल्टी एजेंसी सेंटर है इसका कार्य आतंकवाद, कारगिल युद्ध के बाद संबंधित प्राप्त सूचना को दैनिक आधार पर साझा करना है। मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) की स्थापना 2002 में दिल्ली में की गई थी और विभिन्न राज्यों की सहायक मल्टी एजेंसी सेंटरों (एसएमएसी) में आसूचना प्रयासों को साझा करने के लिए विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। मल्टी एजेंसी सेंटर आसूचना ब्यूरो में, पुलिस केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों, रक्षा और वित्तीय आसूचना एजेंसियों सहित कई एजेंसियों के साथ आसूचना साझा करती है।
  • एनएसजी के चार नए केंद्रों की स्थाना : सुरक्षा बलों की कमी को देखते हुए मानेसर के अतिरिक्त चार स्थानों-मुंबई, कोलकाता, चैन्नई और हैदाराबाद में एनएसजी के केंद्र बनाए गए हैं ताकि मुश्किल हालातों में और अधिक प्रभावशाली तरीके से कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।
  • तटीय सुरक्षा योजना का नवीकरण : मुंबई हमले के बाद तटीय सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई देश की तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई उपाय किए गए। इस संबंध में सरकार द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णय
    • भारत की तटीय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेवारी तट रक्षक दल को सौंपी गई है। लेकिन समुद्री सीमा की सुरक्षा की पूर्ण जिम्मेवारी भारतीय नौसेना की है।
    • तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिये गये हैं कि तटीय पुलिस स्टेशनों, चैक पोस्टों, आउट पोस्टों इत्यादि के निर्माण की स्वीकृत तटीय सुरक्षा योजनाओं को यथाशीघ्र क्रियान्वित किया जाए।

कानूनी रूपरेखा

आतंकवाद से निपटने के लिए पहला विशेष अधिनियम टाडा (टीएडीए) था जो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लागू किया गया। परंतु टाडा के दुरुपयोग किए जाने के आरोप लगने के पश्चात् 1995 में इसे समाप्त कर दिया गया और दिसंबर 2001 में संसद पर हमले के बाद पोटा (पीओटीए) अधिनियम बनाया गया। वर्ष 2004 में पोटा को भी समाप्त कर दिया गया। 26/11 मुंबई हमले के बाद यूएपीए संशोधन अधिनियम दिसंबर 2008 में लागू हुआ और 2012 में इसमें और संशोधन किए गए।

  • आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम या टाडा अधिनियम - पंजाब आंतकवाद की पृष्ठभूमि के तहत टाडा अधिनियम एक आतंकवादरोधी कानून था जो पूरे भारत में 1985 से 1995 के बीच अस्तित्व में था (1987 में इसमें संशोधन किया गया)। दुरुपयोग के व्यापक आरोप लगने के कारण 1995 में इसे समाप्त कर दिया गया। आतंकवाद को परिभाषित करने और आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए सरकार द्वारा बनाया गया यह पहला आतंकवाद विरोधी कानून था।
  • आतंकवाद निवारण अधिनियम 2002 (पोटा)- पोटा एक आतंक विरोधी अधिनियम है जिसे भारत की संसद ने 2002 में बनाया। यह अधिनियम भारत में कई आतंकवादी हमले, विशेष रूप से, संसद पर हमला होने के बाद बना।

26/11 के बाद परिवर्तन

पहले से विद्यमान गैर-कानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम में कई सुसंगत संशोधन किए गए।

➤  गैर-कानूनी गतिविधियाँ (निवारण) संशोधन अधिनियम (यूएपीए) - व्यक्तियों और संस्थाओं की गैर-कानूनी गतिविधियों और उससे जुड़े मामलों के निवारण के लिए  यूपा एक प्रभावशाली अधिनियम है। यूपा 1967 में बना और 1969, 1972, 1986, 2004, 2008 और 2012 में इसमें संशोधन किए गए। 2012 में किए गए संशोधन में यूपा में आतंकवादी कार्यों की परिधि में आर्थिक अपराधों को भी शामिल किया गया। 'आतंकवादी कार्य' की परिभाषा को विस्तृत किया गया है, इसमें देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले अपराधों हथियारों के खरीदारी, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन एकत्रित करना, भारतीय जाली मुद्रा तैयार करना आदि शामिल हैं।
यह कानून सरकार को अधिकार देता है कि वह ऐसे किसी समूह को 'गैरकानूनी संघ' अथवा 'एक आतंकवादी संगठन' घोषित करे और इस समूह या संगठन के होने वाले सदस्यों या उन्हें सहयोग देने वाले को जुर्म करार दे। 

गैरकानूनी संघ

केंद्र सरकार ने गैरकानूनी संघों की एक सूची रखी है. जिसमें आवश्यकता अनुसार संशोधन किया जा सकता है। एक बार किसी संगठन के इसमें दर्ज होने पर उसकी सदस्यता लेना यूएपीए के तहत जुर्म माना जाएगा। इस कानून के तहत उस संगठन को मिलने वाले धन पर पाबंदी लगाई जा सकती है और उसके दफ्तर की निगरानी की जा सकती है।

  • किसी संगठन की भारत से अलग होने का समर्थन करने, उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करने वाली गतिविधियाँ।
  • स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की हैसियत को दुष्प्रभावित करने वाली गतिविधियाँ।
  • भारत के प्रति वैमनस्य का भाव रखने वाले संगठन।

आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए उठाये गए कदम

  • यूएपीए के अंतर्गत आतंकवाद के लिए धन जुटाना अपराध घोषित
  • वित्तीय खुफिया इकाइयों के साथ सुरक्षा एजेंसियों की
  • एकीकृत कार्यवाही,
  • विमुद्रीकरण,
  • नई करंसी (मुद्रा) में बेहतर सुरक्षा-व्यवस्था,
  • पीएमएलए का 2013 और 2018 में मजबूती प्रदान करना
  • आतंकवाद वित्तपोषण प्रतिरोधक (सीएफटी) विशेष प्रकोष्ठ (गृह मंत्रालय द्वारा 2019 में गठित)

आतंकवाद संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

चूंकि अधिकतर आतंकवादी प्रकारों के अपने अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव हैं, लिहाजा इन पर काबू पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण हो गया है, उदाहरण स्वरूप भारत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 1267 के तहत वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय जनमत तैयार करता रहा है किंतु चीन उसके ऐसे सभी प्रयासों को अवरूद्ध करता है।

आतंकवाद से निपटने हेतु संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजीएस)

आतकंवाद और अंतर्राष्ट्र संगठित अपराध से लड़ने के लिए सूचना के आदान-प्रदान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाने हेतु आतंकवाद निरोध संबंधी संयुक्त कार्य समूह की स्थापना हेतु विदेशी मंत्रालय नोडल प्राधिकरण है। द्विपक्षीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत और अन्य देशों के बीच स्थापित आतंकवाद निरोध संबंधी संयुक्त कार्य समूहों से संबंधित मुद्दों पर  पीडी डिवीजन, एमईए के साथ एक इंटरफेस (मंच) के तौर पर कार्य करता है।

सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 2322

सुरक्षा परिषद ने 12 दिसबर, 2016 को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था। इसका मकसद आतंकवाद के प्रतिरोध के लिए द्वि-स्तर पर परस्पर न्यायिक सहयोग को बढ़ाना और उसे मजबूत करना था। इसका लक्ष्य सक्रियात्मक सहयोग के जरिये आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय कानून और न्यायिक प्रणाली की प्रभावकारिता में संवृद्धि करना है। यह प्रस्ताव आतंकवाद प्रतिरोधक गतिविधियों से संबंधित कुछ मुद्दों के बारे में भी है

  • यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संधियों और परस्पर कानूनी सहायता और प्रत्यर्पण के लिए एक राष्ट्रीय केंद्रीय प्राधिकरण के गठन जैसे व्यवहार्य अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों का उपयोग।
  • विदेशी लड़ाकू आतंकवादियों के प्रवाह को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाना और संघर्ष के क्षेत्रों से उनकी वापसी और विदेशी लड़ाकू आतंकवादियों के बारे में उपलब्ध उनकी बायोमैट्रिक एवं बायोग्राफिक सूचनाएं साझा करना।

आतंकवाद के खिलाफ भारत के स्तर पर तैयारियों का विश्लेषण

आतंकवाद-रोधी एजेंसियों की चार प्रमुख भूमिकाएं निम्नवत हैं-

  • आसूचना एकत्रित करना
  • प्रशिक्षण एवं ऑपरेशन
  • जांच
  • अभियोजन

आसूचना एकत्रित करना - वर्तमान में यह कार्य राज्य पुलिस और केंद्रीय सरकार एजेंसियों द्वारा किया जा रहा है। 26/11 के बाद स्थापित नेटग्रिड और मैक बहुत ही उपयोगी है। वित्तीय लेन-देन, पासपोर्ट, वीजा से संबंधित अपराधों सीमा पार घुसपैठ, जाली मुद्रा की वसूली इत्यादि से संबंधित जानकारी और महत्वपूर्ण सूचनाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी एजेंसियों से इकट्ठा कर परस्पर मिलान करने की अभी भी जरूरत है ताकि आतंकी गतिविधियों की जांच एवं पर्दाफाश करने में मदद हो सके।

अभियोजना - हमारी न्यायिक व्यवस्था बहुत ही सुस्त है और इसके प्रक्रियात्मक पहलुओं में काफी समय व्यतीत होता है। आतंकावदी मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष द्रुतगति (फास्ट-ट्रैक) न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए। इस दिशा में हमें बहुत सुधार करने की आवश्यकता है। एनआईए एक्ट में विशेष न्यायालयों का प्रावधान किया गया है।

बेहतरी की संभावना

आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिए एक विस्तृत रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सरकार, राजनीतिक दलों, सरक्षा एजेंसियों, नागरिक समितियों और मीडिया को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

  • राजनीतिक : देश में एक मजबूत राजनीतिक सर्वसम्मति बनाई जानी चाहिए जिसमें राष्ट्रीय हित सर्वोपरी हो। चूंकि राष्ट्रहित के मामलों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इनकी चर्चा मीडिया में या किसी अन्य सार्वजनिक मंच पर नहीं की जानी चाहिए। इनका निर्णय वोट बैंक की राजनीति या पार्टी की विचारधारा के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए।
  • विधिक : आतंकवाद के विरुद्ध हमें एक सख्त अधिनियम की आवश्यकता है। हमें ऐसी फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की आवश्यकता है जो 3-4 माह में फैसला दे सके। आतंकवादियों के विरुद्ध पुलिस के पास शक्तियाँ सीमित हैं। आतंकवाद कानून व अन्य अपराध कानून में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है। उदाहरण के तौर पर दोनों मामलों में हिरासत में रखने की अवधि कवेल 24 घंटों की है। कई बार आतंकवादी को गिरफ्तार करने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही करने की आवश्यकता होती है, जिसके कारण आतंकवादी को न्यायालय में पेश करना मुश्किल हो जाता है। हमें अपराधिक न्याय व्यवस्था में एक ऐसी प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें सुनवाई और दोषिसिद्धि 3 से 4 माह में हो जाए तब तक लोगों की याददाश्त ताजा होती है। न्यायिक पद्धति मे बचाव के रास्ते और न्याय में देरी भी आतंकवादियों को हिंसा में लिप्त होने के लिए निर्भिक बनाती है। सख्त कानन्, बचाव के रास्ते बंद होने और बिना देरी के न्याय मिलने से परिवार वाले भी अपने सदस्यों को आतंकवाद के कार्य में लिप्त होने से रोकने में भूमिका निभाएंगे।
  • पुलिस : राज्य पुलिस को मजबूत बनाना, उनकी प्रशिक्षण क्षमताओं में वृद्धि करने, निगरानी करने, जांच करने और ऑप्रेशन के लिए आधुनिक उपकरण मुहैया करवाना समय की मांग है। हमें आधुनिक वैज्ञानिक फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की जरूतर है। अधिकतर आतंकवादी साइबन नेटवर्क के माध्यम से काम कर रहे हैं। इसलिए साइबर क्राइम के विरुद्ध विशेष उपकरणों की जरूरत है।
  • मीडिया : आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। मीडिया प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनावश्यक बहस में लिप्त होता है। लोकतंत्र में बहस का हमेशा स्वागत है परंतु कुछ मामलों में मीडिया को अधिक निर्लिप्त दृष्टिकोण रखना चाहिए।
  • जनता : आम जनता को हमारे पड़ोसी देशों के बुरे इरादों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। बहुतसंख्यक और अल्पसंख्यक, दोनों समुदायों को धार्मिक सद्भाव और शांति के लिए मिलकर काम करना चाहिए। पर्यावरणीय जागरुकता की तरह की सुरक्षा जागरुकता विद्यालयों में एक विषय होना चाहिए, ताका सभी नागरिक मूलभत सुरक्षा मुद्दों के प्रति जागरुक हो और एक मंच पर हों।

आतंकवाद , विद्रोह और नक्सलवाद के बीच क्या अन्तर है?

आतंकवाद, विद्रोह और नक्सलवाद के बीच का अंतर नीचे परिभाषित किया गया है-

  • आतंकवाद : राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक उद्देश्य के लिए योजनाबद्ध, संगठित और व्यवस्थित तरीके से हिंसा का प्रयोग करना आतंकवाद है। यह एक सामान्य शब्द है और आतंकवाद की परिभाषा के अनुसार विद्रोह, उग्रवाद एवं नक्सलवाद आतंकवाद के विभिन्न रूप हैं।
  • विद्रोह : सरकार को अपरदस्थ करने की दृष्टि से समाज के एक वर्ग द्वारा सशस्त्र संघर्ष और हिंसक कार्यवाही 'विद्रोह' की परिभाषा में आता है। यहां पर महत्वपूर्ण कारक यह है कि विद्रोहियों को सदैव की जनता का समर्थन मिलता है। 1950 के दशक के प्रारंभ में नागालैण्ड की समस्या को विद्रोह का एक उपयुक्त उदाहरण कहा जा सकता है।
  • नक्सलवाद : कंयुनिस्ट छापामारों का हिसंक गतिविधियों के माध्यम से राज्य को अस्थिर करना 'नक्सलवाद' है। भारत में नक्सलवाद अधिकतर माओवादी विचारधारा पर आधारित है जिसके माध्यम से वे लोगों की सरकार स्थापित करने के लिए सरकार को अपदस्थ करना चाहते हैं। विद्रोह और नक्सलवाद आतंकवाद के विभिन्न रूप हैं लेकिन सभी आतंकवाद विद्रोह या नक्सलवाद नहीं है।
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