भावनात्मक प्रज्ञता के प्रतिमान
- परिवर्तनशील विश्लेषण का प्रतिमान (Transactional Analysis Model) - एरिक बर्नी (1964) : एरिक बर्नी ने 1964 में भावनात्मक प्रज्ञता के Transactional Analysis (Parent-Child - Adult Ego) के द्वारा यह बतलाया कि परिस्थितियों के अनुसार अपनी भावनाओं को परिवर्तित करते हुये किसी परिस्थिति पर अपना प्रभाव जमाना चाहिये।
किसी प्रबंधक/सिविल सेवक को अपने समूह के साथ व्यवहार करते समय, हर बार एक ही जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिये। किसी सफल सिविल सेवक के लिये ये आवश्यक है कि समूह व्यवहार करते समय वह उपर्युक्त Parent-Child -Adult Ego की बीच परिवर्तनशील व्यवहार करे तभी वह अपने समूह पर लगातार अंतः परस्पर प्रभाव किसी संगठनात्मक लक्ष्य के प्राप्ति हेतु बनाये रख सकता है। इसके लिये संचार करते समय उसे विवेकशील मस्तिष्क व भावनाओं के बीच संतुलन भी रखना चाहिये। - डेनियल गोलमैन (Daniel Goleman) का प्रतिमान
डेनियल गोलमैन की 'इमोशनल इंटेलिजेंस (Emotional Intelligence) नामक पुस्तक (1995) ने इस शब्द को काफी लोकप्रिय बनाया। गोलमैन के अनुसार “भावनात्मक समझ या संवेगात्मक प्रज्ञता किसी व्यक्ति की भावनाओं को जानने, उसका प्रबंधन करने, खुद के अहं को अभिप्रेरित करने, दूसरे की भावनाओं को पहचानने तथा दूसरों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने की क्षमता है।" डेनियल गोलमैन का ज्यादा बल भावनात्मक प्रज्ञता के व्यावहारिक पक्षों पर है। गोलमैन के अनुसार व्यक्ति की सफलता में सर्वाधिक महत्व भावनात्मक सम्झ का होता है और इसी आधार पर वो भविष्य में महिलाओं के सफलता को अधिक मानते| हैं, क्योंकि उनका मानना है पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं का El अधिक होता है। गोलमैन ने भावनात्मक प्रज्ञता के प्रमुख पहलुओं को बताया है जिसमें स्वजागरूकता, स्वप्रबंधन, स्व-प्रेरण, सामाजिक-जागरुकता तथा संबंध प्रबंध शामिल है।
(i) स्व-जागरुकता (Self Awareness) : खुद की भावनाओं को समझने की क्षमता में यह भावनात्मक समझ का सर्वाधिक आवश्यक पहलू है। यह हमें किसी निश्चित समय पर अपनी भावनाओं का ठीक-ठाक आकलन करने तथा हमारी प्राथमिकताओं के अनुसार निर्णय लेने की क्षमता है। उच्च स्व-जागरुकता वाले| लोगों में उनके सबल व निर्बल पक्ष मूल्य तथा उद्देश्यों को जानने की अनुमति प्रदान करता है। उच्च आत्म-जागरुकता वाला व्यक्ति अपनी मनोदशा का सटीक मापन कर सकता है और उनकी मनोदशा दूसरे को कैसे प्रभावित कर सकती है सहज रूप से समझ सकता है, उसमें निरंतर सुधार के लिए दूसरों की राय लेने में खुला होता है और वह अनिश्चितताओं तथा दबावों के बावजूद कड़े निर्णय लेने में सक्षम होता है। ऐसे व्यक्ति विनोद प्रवृत्ति प्रदर्शित करने में भी सक्षम होते हैं। अच्छी आत्म जागरुकता वाला नेतृत्व इसका अनुमान लगा सकता है कि वह पसंद किया जाता है या नहीं. अथवा संगठन के सदस्यों पर उचित मात्रा में दबाव बना रहा है या नहीं।
(ii) आत्म-प्रबंधन (Self Management) : अपने आत्म-प्रबंधन से तात्पर्य यह है कि हम अपनी भावनाओं आवेग व संशोधनों को कितने अच्छे तरीकों से नियंत्रित करते हैं। इसमें शामिल है; विध्वंसक आवेगों पर नजर रखना, ईमानदारी व सत्यनिष्ठा प्रदर्शित करना, परिवर्तन के समय उदार होना, अच्छे प्रदर्शन की गति को बनाये रखना तथा अवसरों को पकड़ना और असफलता के पश्चात् भी आशावादी बने रहना। उच्च आत्म प्रबधन वाला नेतृत्व एक मतभिन्नता के कारण अपनी टीम के सदस्य को निष्कासित करने का अचानक निर्णय नहीं लेता या फिर योजना के अनुसार कार्यकर्ताओं के नहीं चलने पर अधिक गुस्सा नहीं करता। आत्म प्रबंधन से मुक्त व्यक्ति मनोवेगों के दवावों से तीव ही उबर जाता है।
(iii) स्व-अभिप्रेरण एवं समूह अभिप्रेरण (Self Motivation & Group Motivation) : व्यक्ति को अपने लक्ष्य को सदा याद रखना चाहिए, छोटे-छोटे आर्कषणों से बचा जाना चाहिए, समाधान का पक्षधर होना चाहिए ना कि समस्या का। अपने समूह की सकारात्मक अभिवृत्ति संगठनात्मक लक्ष्य के लिए नैतिक आचरण के लिए बनाये रखने पर बल देना चाहिए। अपना कामकाज और दिनचर्या इस तरीके से विकसित किया जाना चाहिए, जिससे थकान प्रबंधन (Fatigue Management) हो जाए, कार्य में बोरियत ना हो, निराशा ना हो, इसके साथ-साथ किसी व्यक्ति को आलोचना सुनने, स्ववार्ता (Self Talk) के आधार पर स्वयं की आलोचनाओं को प्रस्तुत करने की आदत डालनी चाहिए तभी लक्ष्य के प्रति अपेक्षित भावनाओं को सुनिश्चित किया जा सकता है।
(iv) संबंध-प्रबंधन (Relationship Management) : संबंध प्रबंधन से तात्पर्य है, दूसरे लोगों की भावनाओं को निर्देशित करना। इसमें शामिल है; दूसरों को प्रेरित करना, दूसरों के विश्वास एवं भावनाओं को प्रभावित करना, दूसरों की क्षमताओं का विकास करना, परिवर्तन का प्रबंधन संघर्षों का समाधान मजबूत व्यक्तिगत संबंधों का निर्माण, समूह कार्य का समर्थन और उदाहरण के द्वारा नेतृत्व करना। इन अभिक्रियाओं के लिए दूसरों को प्रभावित करने के उद्देश्य से स्पष्ट प्रणाली का ढंग से संचार करने की क्षमता की आवश्यकता होती है। अच्छा संबंध प्रबंधन कौशल से युक्त नेतृत्व दूसरों को अपना विजन बांटने के लिए समझाने में सफल रहता है और जब जरूरत पड़े तब लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए नेटवर्क वाले लोगों का निरंतर विस्तार करता रहता है।
(v) क्रोध/तनाव प्रबंधन (Anger/Stress Management) : डेनियल गोलमैन ने क्रोध/तनाव इत्यादि के प्रबंधन को भावनात्मक क्षमता (EI) के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में स्वीकार किया है। ऐसा करने के लिए क्रोध का विनियंत्रण करना जरूरी है। इसमें आपातकाल की भांति जो जल्दी-जल्दी कार्य किये जाते हैं और जरूरी कार्य किए जाते हैं उसी उपागम को अपनाना चाहिए और तत्काल क्रोध छोड़कर सबसे जरूरी और उचित कार्य करने पर बल दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं स्वय का गलतिया और दूसरा का गलतियों पर स्वनअनुकंपा (Self Compassion) की आवृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि भूतकाल की किसी मनोवैज्ञानिक क्षति या मनोवैज्ञानिक रूप से आहत होने की घटना को बार-बार याद नहीं किया जाना चाहिए ऐसे संगठनात्मक वातावरण के निर्माण से क्रोध प्रबंधन बेहतर तरीके से होने लगता है।
(vi) सामाजिक जागरुकता (Social Awareness) : सामाजिक जागरुकता से तात्पर्य है दूसरों की भावनाओ, विचारों व स्थितियों को समझना तथा संवेदनशील होना। इसमें शामिल है; दूसरों की परिस्थिति को समझना, दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को अनुभव करना और न बताये जाने के बावजूद दूसरों की आवश्यकताओं को समझना। जागरुक नेतृत्व कार्यालयी राजनीति की आभास की क्षमता से भी युक्त होता है और सामाजिक नेटवर्क को भी समझता है।
वह लोगों के सबल पक्ष, निपुणता व विकास को भी अच्छी तरह जानता है। उदाहरण के तौर पर, उच्च सामाजिक जागरुकता वाला टीम नेतृत्व किसी व्यक्ति या समूह को कोई परियोजना सौंपते वक्त भलीभांति परिचित होगा कि वह व्यक्ति या समूह उस परियोजना के प्रति उत्साह रखता है या नहीं। एक सीईओ, जिसे श्रम संघ की मांगो की समझ, संवेदनशीलता है, वह महंगे हड़ताल को टालने के लिए श्रम संघ के नेता से सफलतापूर्वक समझौता करने की क्षमता से युक्त होगा। - पीटर सेलोवी (Peter Salovy) एवं रिचर्ड मेयर (Richard Mayer) का प्रतिमान
पीटर सेलोवी और रिचर्ड मेयर ने अपने प्रतिमान में वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर क्रोध तनाव प्रबंधन के लिए कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी विचाराधारा का प्रस्तुतीकरण किया है। उनके अनुसार संगठनात्मक प्रतिमान (Model) को समझकर इसे बेहतर ढंग से जाना जा सकता है।
(i) भावनाओं के अवबोधन करने की क्षमताः किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को तीव्रता के साथ अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों की भावनाओं को देख-सुन-स्पर्श कर उसे तेजी से अपनी मनोवृत्तियों में शामिल किया जाना चाहिए।
(ii) भावनाओं को चिंतन, विचारधारा या संज्ञान से जोड़नाः किसी व्यक्ति को अपनी भावनाओं को पढ़ते हुए और दूसरों की भावनाओं को पड़कर उसे चिंतन प्रक्रिया या विचारधारा से जोड़ने को प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की आलोचना होती है और वह प्रतिक्रिया स्वरूप क्रोध करे लेकिन सतत् अभ्यास के माध्यम से यह प्रयास करना चाहिए कि, आलोचना के पक्ष को चिंतन से जोड़े और सामने वाले की नाराजगी को परखते हुए संतुलित भावनाओं का प्रदर्शन करे।
(iii) भावनाओं को समझनाः भावनात्मक क्षमता में दक्ष किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों की भावनाओं की सूक्ष्मता, गहनता इत्यादि को ठीक प्रकार से पहचानना चाहिए। वास्तविक अर्थों में सुख और दुःख, खुशी और क्रोध की पहचान करे क्योंकि यह संभव है कि व्यक्तियों के परस्पर विरोध की स्थिति में किसी एक व्यक्ति का विरोध प्रदर्शन शायद सकारात्मक लक्ष्य के लिए अच्छे नियम से किया जा रहा हो, जिसे दूसरे व्यक्ति को समझने का प्रयास करना चाहिए।
(iv) भावनाओं का प्रबंधन करनाः यह दो प्रकार से होता है
➤ व्यक्ति को अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने से ही बचना चाहिए।
➤ भावनाओं को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में तीक्ष्णता को कम करते हुए प्रस्तुत करना चाहिये।
उदाहरण के लिए किसी प्रशासनिक संगठन में अधिकारी को अधीनस्थों की त्रुटियों पर यदि अत्यधिक क्रोध आ रहा है तो इसे संतुलित करने के लिए तरीका-
➤ यह है कि उसकी त्रुटियों को उसके योगदानों से समानांतर तुलना करते हुए अपनी विरोधात्मक भावनाओं पर रोक लगाना।
➤ अधीनस्थ की त्रुटियों को बताना परंतु उसकी गहनता या तीक्ष्णता को कम करते हुए संगठनात्मक हित में जो जरूरी है उससे अवगत कराना।
भावनात्मक प्रज्ञता की उपयोगिता
नैतिकता के संदर्भ में-- ऐसा व्यक्ति जो भावनाओं का महत्व समझता है और जो वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं इत्यादि के प्रति संवदेनशील हो सकता है।
- इससे व्यक्ति के नैतिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है और वह सद्गुणी व्यवहार करता है जिसके लिए उसका जन्म हुआ है तथा वह अपनी अंतरात्मा की आवाज से प्रभावित होकर कार्य करता है।
- इसके द्वारा व्यक्ति अपनी पाश्विक इच्छाओं को नियंत्रित करने पर अत्यधिक बल देता है जिससे कि समाज में नैतिक आचरण की प्रवृत्ति बढ़ती है और मनुष्य का सामाजीकरण हो जाता है।
- भावनाएँ संगठन के अंदर संवेदनशीलता, अपने ग्राहकों/नागरिकों के संदर्भ में संवदेनशीलता का विकास करती हैं।
- EI के माध्यम से संगठन में भाई-भतीजावाद, भेदभाव इत्यादि को कम किया जा सकता है। इसमें किसी प्रबंधक को प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाकर कार्य करना चाहिए।
- EI के माध्यम से नैतिक दुविधाओं का समापन हो सकता है क्योंकि यह भावनात्मक विभेदीकरण की समझ को विकसित कराती है।
Sigmund Freud के द्वारा संकल्पित Id-Ego-Super Ego की संकल्पना क्रमशः दमित इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास-व्यक्ति से सम्बन्ध-सामाजिक मानदंड से सम्बन्ध है जिसके परिणामस्वरूप नैतिक व्यक्तित्व का विकास होता है।
कार्य संस्कृति के संदर्भ में -
- संगठन में उच्च अधिकारी व अधीनस्थ के बीच संबंधों को कम/समाप्त करना।
- EI के माध्यम से विपणन बेहतर होता है और ग्राहक-नागरिक उन्मुखता का विकास होता है।
- संगठन में जोखिम लेने की क्षमता का विकास EI से हो सकता है तब यह स्थायित्व का विकास होता है।
- बेहतर कार्य संस्कृति के लिए ग्राहक सेवा जरूरी होती है और भावनाओं का ध्यान रखकर इसका संचालन किया जा सकता है।
प्रशासन एवं शासन में भावनात्मक समझ
"प्रशासनिक क्षेत्र' में लोगों के बीच पारस्परिक समझ एवं विश्वास रूपी पुल-निर्माण हेतु भावनात्मक समझ व्यवहार की पूर्वशर्त है। प्रभावी एवं दक्ष शासन के संवर्धन हेत प्रत्येक मंत्रालय प्रत्येक विभाग एवं प्रत्येक कार्यालय तथा प्रशासनिक क्षेत्र की प्रत्येक इकाई में अविश्वास रूपी खामियों को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सामाजिक पूंजी की जरूरत है। हालांकि भावनात्मक समझ कौशल अपने अवधारणात्मक विकास के आरंभिक चरण में है फिर भी प्रदर्शन के लिहाज से यह कौशल काफी महत्वपूर्ण हो गया है। उदाहरण के तौर पर, शोधों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जो चिकित्सक मरीज की भावनाओं को समझने के कौशल से युक्त है वह कम सहानुभूति रखने वाले चिकित्सकों की तुलना में मरीज के इलाज में अधिक प्रभावी होते है। शोध से यह भी पता चला है कि उच्च भावनात्मक समझ से संबंधित विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाले लोग अपने लक्ष्य को पूरा करने में अधिक प्रभावी होते हैं।
प्रशासन एवं शासन में बढ़ती कल्याणकारी राज्य की अपेक्षाओं, सीमित बजट में अधिक कार्यकुशल योजनाओं के नेतृत्व के कारण बढ़ता तनाव, सिविल सोसाइटी की बढ़ती जागरूकता आदि के कारण भावनात्मक समझ की आवश्यकता अत्यन्त बढ़ गई है। जिन प्रशासकों में भावनात्मक समझ होती है वे ऐसी जटिल परिस्थितियों से अपने को सफलतापूर्वक कार्य निर्वाहन करते हुये निकाल लेते हैं। भावनात्मक समझ से युक्त प्रशासक तनाव प्रबंधन व समझ प्रबंधन में दक्ष होते है। भावनात्मक प्रज्ञता से युक्त प्रशासक स्वयं को तथा दूसरों को अभिप्रेरित करने में समर्थ्य होता है।
प्रशासन और शासन व्यवस्था में उनके प्रयोग
- प्रशासन व शासन व्यवस्था में प्रज्ञता व भावना दोनों के अपने अलग-अलग मायने है। मनुष्य प्रज्ञता से लगातार मूल्यांकन, विश्लेषण व निर्यण निर्माण की प्रक्रिया से गुजरता रहता है तथा साथ ही वह अपनी भावनात्मक अभिवृत्ति को भी त्याग नहीं पाता। अगर सामान्य भाषा में कहना हो तो प्रज्ञता निर्धारण, तो भावना उसी को गतिशील बनाती है। पूर्व में दिए गए भावनात्मक पज्ञता के प्रतिमानों को देखें।
- आदिकाल से ही भारत के लोगों का स्वरूप भावनात्मक ही रहा है। इसी का गलत: फायदा राजनीतिक पार्टियाँ अपने फायदे के लिए करती आई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रज्ञता और भावना के समन्वय को जोड़कर भावनात्मक प्रज्ञता कहा गया है जो कि प्रशासनिक कार्यशैली के लिए आत्यावश्यक है।
- एक और मुख्य बात कि प्रशासन का कर्तव्य केवल अपने कार्यों को बौद्धिक रूप से संपन्न करना नहीं है बल्कि लोगों की भावनाओं का भी कद्र करना है। क्योंकि प्रशासन का कार्य समाज के वंचित वर्गों तक सरकार की योजनाओं का लाभ देना भी है।
- आमतौर पर प्रशासन व समाज के बीच एक आभासी दूरी बनी हुई है। इस दूरी के लिए अशिक्षा, संवेदनशीलता, आजादी से पूर्व प्रशास के व्यवहार में निरंतरता (कुछ क्षेत्रों में) कारण जिम्मेदार है। प्रशासन को जनसामान्य की भावनाओं को आहत किए बिना समाज का हित सोचना है। एक और प्रमुख समस्या रहती है कि योजनाओं का कार्यरूप तो दे दिया जाता है परन्तु इनसे प्रभावित लोगों के पुनर्वास की समुचित व्यवस्था नहीं की जाती जो कि जनता के भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए काफी है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को भावनात्मक संतुष्टि के क्रियान्वय के साथ करने की आवश्यकता है।
भावनात्मक प्रज्ञता और भावनात्मक श्रम के संबंध में लैंगिक भेद क्या भूमिका अदा करता है?
- औसतन महिलाएं पुरुषों की तुलना में किसी दूसरे व्यक्ति की भावना को समझने के लिए तुरंत इच्छुक रहती है। संगठन में महिलाओं की भावनात्मक अम से ज्यादा जुड़े होने की उम्मीद रहती है फिर भी यह जरूरी नहीं कि महिलाओं की भावनात्मक प्रज्ञता पुरुषों की तुलना में स्वभाविक रूप से अधिक हो।
- हालांकि भावनात्मक श्रम से नियमित रूप से जुड़े रहना भावनात्मक प्रज्ञता को बढ़ाता है। यह एक कौशल है, जो अनुभव के साथ और समृद्ध होता है। अध्ययन से यह बात सवित होती है कि सार्वजनिक संगठनों में महिलाएं, भावनात्मक कार्यों से जुड़ना ज्यादा पसंद करती हैं और पुरुषों की तुलना में ज्यादा कारगर भी सिद्ध होती है। फिर भी इनके योगदान को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है, अक्सर इनकी अनदेखी की जाती है, इसके बावजूद संगठन में इनका काफी महत्वपूर्ण योगदान होता है। स्त्री व पुरुषों के भावनात्मक श्रम और प्रदर्शन के बीच जांच के पश्चात् यह पाया गया कि वे संगठन जहां ज्यादा महिला सरकारी कर्मचारी कार्यरत थी वहां की समय उत्पादकता, कर्मचारी कारोबार और ग्राहक संतुष्टि सहित सभी कार्यों में संगठन का प्रदर्शन बेहतर रहा। हालांकि संगठनात्मक योगदान निश्चित रूप से मुआवजा राशि में परिलक्षित नहीं होता है।
- हालांकि महिलाएं जो नौकरशाही के शीर्ष नेतृत्व पर हैं, उनसे अभी भी यह उम्मीद की जाती है कि वो अपने प्राथमिक कार्यों के साथ-साथ भावनात्मक अम भी उपलब्ध कराएं, जिसकी अपेक्षा पुरुषों से नहीं की जाती है। सभी भावनात्मक प्रज्ञता सामान्य, महत्वपूर्ण और सराहनीय हैं। अगर इसे किसी बड़ी हिम्मतवाले नौकरियों के साथ जोड़ा जाए जैसे कि प्रबंधन आदि तो इसको वरीयताक्रम में शीर्ष स्थान पर रखा जाएगा। भावनात्मक प्रज्ञता जिसका नौकरियों में काफी महत्व है, महिलाओं के संबद्ध में अक्सर इसकी अनदेखी कर दी जाती है और यह माना जाता है कि भावनात्मक अम ही उनके लिए उपयुक्त है। इसे सिर्फ पुरुषों द्वारा ही प्रदर्शित किए जाने पर स्वीकार्य और मूल्यवान माना जाता है।
- अगर महिलाएं पुरुषों की बराबरी के स्तर के कार्य (नीति बनाना, प्रबंधन के ऊपरी स्तर पर) को करती हैं तो ही वह पुरुषों के बराबर पैसा कमा पाएंगी, अन्यथा उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वह भावनात्मक श्रम ही प्रदान करें।
क्या भावनात्मक समझ को सीखा जा सकता है?
- भावनात्मक सम्झ को सीखा जा सकता है। इसके मत में कई मतभेद है, कई विद्वानों का मानना है कि इसे 'सिखाया जा सकता है, जबकि कई विद्वानों का मानना है कि इसे सिखाया नहीं जा सकता है। समर्थन के पक्ष में 'गोलमैन' जैसे लोग इस बात का समर्थन करते हैं कि उचित कार्यक्रम के प्रयोग के द्वारा ऐसा संभव है। कुछ सप्ताह के भीतर ही एक निराशावादी व्यक्ति को आशावादी बनाया जा सकता है जबकि इसके विरोध में व्यक्तित्व के सिद्धान्त और स्नायुविज्ञानिक प्रमाण विरोध प्रकट करते हैं। इन सिद्धान्तों का मानना है कि भावनात्मक समझ को व्यावहारिक रूप से विकसित नहीं किया जा सकता है।
- भावनात्मक समझ को सीखने वाले समर्थकों का मानना है कि इनके निर्धारण में जीन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन जीन, की अभिव्यक्ति को रूप देने में प्रकृति का एक बड़ा योगदान है। अत: सतत् प्रयास, पूर्ण प्रतिबद्धता और अनुशासन से भावनात्मक समझ को विकसित किया जा सकता है।
- वर्तमान में अमेरिका में ऐसे कई विद्यालय व विश्वविद्यालय हैं, जहाँ विद्यार्थियों को SEL (Social & Emotional Learning) (सोशल एंड इमोशनल लनिंग) पाठ्यक्रम के तौर पर पढ़ना होता है, और इनके सकारात्मक परिणाम आये। यूनेस्को ने भी 10 मूलभूत सिद्धान्त के साथ इसे विश्व में देशों से शिक्षा में शामिल करने के लिये भेजे है जो SEL आधारित है।
भावनात्मक प्रज्ञता की आलोचना
भावनात्मक प्रज्ञता आलोचना के संबंध में यह कहा जा सकता है कि यह एक सटीक विज्ञान नहीं है और इस कारण इसको मापना मुश्किल है। आम तौर पर इसका इस्तेमाल स्व-प्रतिवेदन (self reporting) और सहकर्मियों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है। इसकी अपनी कुछ कठोर सीमाएं हैं, जैसे पक्षपात, पूर्वाग्रह और हेरा-फेरी लेकिन क्षमता परीक्षण की जांच भी खामियों से रहित नहीं है, और यह भी आईने की तरह स्पष्ट नहीं हो सकता, अगर वो वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में भावनात्मक सेटिंग्स का सामना करते है।
इसके काम की योग्यता का एक महत्वपूर्ण माप, भविष्य के अनुसंधान, भावनात्मक प्रज्ञता की जांच कैसे की जाए के लिए प्रवल करना निश्चित रूप से आवश्यक है।
आलोचक कहते है कि "एक संख्यात्मक पैमाना कसे किसी व्यक्ति के चरित्र और प्रज्ञता को बताएगा। डर है कि कहीं यह दुरूपयोग को आमंत्रित न करे।" इसका यह मतलब नहीं है कि भावनात्मक कौशल को साधारण तौर पर लिया जाए। उदाहरण के रूप में, कुछ लोग क्रोध के साथ सौरा कर सकते हैं, पर डर के साथ नहीं, और हो सकता है कि आनंद लेने में असमर्थ हों इसलिए हर भावना को अपने आप में सही देखा जाना चाहिए।
इसके अलावा आलोचकों का यह तर्क है कि भावनात्मक प्रज्ञता संज्ञानात्मक प्रज्ञता की एक नैतिक रूप से तटस्थ, आवधारणा है, दोनों का अच्छे या बुरे कामों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कुछ का अपने सहकर्मियों के साथ काफी अच्छा संबंध होता है, जिससे वे उनकी भावनाओं का इस्तेमाल कुछ फायदा लेने के लिए कर सकते हैं, इस प्रकार, एक नैतिक कंपास मार्गदर्शन के बिना 'भावनात्मक प्रज्ञता कौशल' अनिवार्य रूप से बेकार है।