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राज्यपाल - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रधान राज्यपाल होता है। राज्य की कार्यपालिका शक्ति उसी में निहित होती है और राज्य के समस्त कार्य उसी के नाम से किये जाते हैं।
  • सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल नियुक्त किया जाता है।
  • 1956 में किए गए संशोधन के पश्चात् एक ही व्यक्ति एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। इस उपबन्ध के अनुसार असम के राज्यपाल को ही मेघालय का भी राज्यपाल नियुक्त किया जाता है। (अनुच्छेद 153)

राज्यपाल की नियुक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार भारत में राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • किसी राज्य का राज्यपाल सामान्यतः अन्य किसी राज्य के निवासी को ही नियुक्त किया जाता है। इस परम्परा को अपनाने के मुख्य कारण ये थे कि वह उस राज्य की दलबन्दियों एवं गुटबन्दियों से दूर रहकर निष्पक्ष एवं स्वतंत्रातापूर्वक कार्य कर सके तथा राज्य मंत्रिमण्डल द्वारा यदि कभी संकीर्ण प्रान्तीयतावादी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर निर्णय ले लिया जाए तो वह उसे रोक सके।

राज्यपाल की पदावधि
अनुच्छेद 156(1) के अनुसार

राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करेगा।

  • राष्ट्रपति किन आधारों पर उसे पद से हटा सकता है संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। लेकिन सामान्यतः उसे गम्भीर अपराध, जैसे- घूसखोरी, भ्रष्टाचार, राजद्रोह, संविधान का उल्लंघन करने पर ही पदच्युत किया जा सकता है।

अनुच्छेद 156(2) के अनुसार
राज्यपाल राष्ट्रपति को अपनी इच्छानुसार अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा द्वारा पद मुक्त हो सकता है।

  • अनुच्छेद 156 (3) के अनुसार राज्यपाल अपने पद ग्रहण करने की तारीख से 5 वर्ष तक की अवधि तक पद धारण कर सकता है।
  • सामान्यतः राज्यपाल 5 वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर भी जब तक नया राज्यपाल अपना पद ग्रहण न कर ले अपने पद पर बना रहता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 157 के अनुसार, राज्यपाल-

(1) भारत का नागरिक हो,
(2) वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।


राज्यपाल के पद के लिए शर्तें

  • संविधान के अनुच्छेद 158 में राज्यपाल के पद के लिए कुछ शर्तें दी गई है। ये इस प्रकार है

(i) राज्यपाल को संसद के किसी भी सदन का या भारत राज्य क्षेत्रा के किसी भी राज्य के विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाए जो कि संसद के किसी भी सदन का अथवा किसी भी राज्य के विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य है तो राज्यपाल का पद ग्रहण करने की तारीख से यह समझा जाएगा कि उसने जिस सदन का वह सदस्य था उसमें अपना स्थान रिक्त कर दिया है। (अनुच्छेद 158 (1))
(ii) राज्यपाल भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन लाभ का कोई पद धारण नहीं करेगा।

राज्यपाल द्वारा शपथ

  • संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार प्रत्येक राज्यपाल अपना पद ग्रहण करने से पूर्व उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उसी न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्न प्रारूप में शपथ लेगा तथा उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा -

" मैं अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं (या सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं) कि मैं श्रद्धापूर्वक - (राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के ड्डदायित्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं - (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में रत रहूंगा।"

राज्यपाल की शक्तियाँ

  • राज्यों में राज्यपाल की वही स्थिति मानी जाती है जो कि केन्द्र में राष्ट्रपति को प्राप्त है। यद्यपि राज्यपाल को ऐसी कोई राजनयिक या सैन्य शक्ति प्राप्त नहीं है जैसी कि राष्ट्रपति को प्राप्त है लेकिन फिर भी उसे राष्ट्रपति की भांति कार्यपालिका विधायी एवं न्यायिक शक्तियां प्राप्त है।

कार्यपालिका शक्तियाँ

  • संविधान के अनुच्छेद 166 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका संबंधी कार्य राज्यपाल के नाम से ही की हुई कही जाएगी।
  • राज्यपाल ही राज्य की मंत्रिपरिषद् एवं राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है।
  • मंत्रिपरिषद् के मंत्रियों की नियुक्ति वह मुख्यमंत्री की सिफारिश पर करता है।
  • मुख्यमंत्री की सिफारिश से ही वह राज्य के अन्य पदाधिकारियों जैसे महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल), राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल किसी भी मंत्राी को एवं महाधिवक्ता को पद्च्युत भी कर सकता है। ऐसा वह मुख्यमंत्री की सलाह से ही करता है।
  • लेकिन उसे राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है। इन्हें उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति द्वारा ही पदच्युत किया जा सकता है।
  • साथ ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति उससे परामर्श ले सकता है।

                                                                     महत्वपूर्ण तथ्य

  • ध्यानाकर्षण प्रस्ताव- इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य अध्यक्ष/सभापति की अनुमति से अविलम्बनीय लोक महत्व के किसी मामले की ओर किसी मंत्री का ध्यान आकर्षित करता है कि वह उस मामले पर एक संक्षिप्त वक्तव्य दे। मंत्री ऐसे प्रस्ताव पर या तो तुरन्त वक्तव्य दे सकता है या किसी अन्य तिथि को वक्तव्य देने के लिए समय की मांग कर सकता है। इस प्रस्ताव के मुख्य स्रोत  दैनिक समाचार पत्र होते है तथा कभी कभी वे किसी सदस्य की निजी जानकारी के आधार पर या उसके अपने निर्वाचकों के साथ हुए पत्र व्यवहार के आधार पर दी जा सकती है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव से सम्बन्धित नियम 1954 में बनाया गया था। यह प्रस्ताव 10 बजे लिखित रूप में दिया जाता है।
  • अल्पकालीन चर्चायें - गैर सरकारी सदस्य अविलम्बनीय लोक महत्व के मामले को सदन के ध्यान में लाने के लिए अल्पकालीन चर्चा उठा सकता है। अल्पकालीन चर्चा उठाने की प्रथा 1953 से प्रारम्भ की गयी। इस चर्चा को उठाने के लिए मामले का संक्षेप में उल्लेख करते हुए और उसके कारणों की स्पष्ट व्याख्या करते हुए सदस्य, जो चर्चा उठाना चाहता है, द्वारा सदन के महासचिव को सूचना देनी होती है। ऐसी सूचना पर दो अन्य सदस्यों का भी हस्ताक्षर होना चाहिए। इस चर्चा की स्वीकार्यता के सम्बन्ध में अध्यक्ष/सभापति निर्णय करता है और यदि उसको समाधान हो जाता है कि मामला अविलम्बनीय तथा पर्याप्त महत्व का है और उसे शीघ्र ही सदन में उठाना आवश्यक है और उस पर चर्चा के लिए शीघ्र कोई अवसर उपलब्ध नहीं है, तो वह सूचना को स्वीकार कर सकता है। ऐसी चर्चा के लिए सप्ताह में दो दिन का समय नियत किया जा सकता है, जो कार्य मंत्रणा समिति की सिफारिश पर की जाती है। सामान्यतया ऐसी चर्चा मंगलवार तथा गुरुवार को स्वीकार की जाती है।

विधायी शक्तियाँ

  • जिस प्रकार केन्द्र में राष्ट्रपति संसद का अंग होता है उसी प्रकार राज्यपाल राज्य विधान मण्डल का एक अविभाज्य अंग होता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 333 के अधीन राज्यपाल राज्य विधान सभा में आंग्ल भारतीय (एंग्लो इण्डियन) समुदाय के सदस्यों को, यदि उन्हें विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला हो तो, मनोनीत कर सकता है।
  • 23वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 द्वारा वह ऐसे केवल एक ही सदस्य को मनोनीत कर सकता है।
  • इसी प्रकार जिन राज्यों में द्विसदनात्मक विधानमण्डल है वहां विधान परिषद् (राज्य विधानमण्डल का उच्च सदन) में राज्यपाल को सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति उसी प्रकार प्राप्त है जैसी कि राज्यसभा के संबंध में राष्ट्रपति को प्राप्त है।
  • वह ऐसे व्यक्तियों को जो साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारी आन्दोलनों एवं समाज सेवा में व्यावहारिक अनुभव रखते हों को विधान परिषद् के सदस्य मनोनीत कर सकता है।
  • यहां यह ध्यान देने योग्य है कि राज्यसभा के लिए निर्धारित विषयों में ‘सहकारी आन्दोलन’ विषय नहीं है।
  • राज्यपाल किसी भी सदस्य को अनुच्छेद 181 में उल्लेखित शर्तों को पूरा न कर सकने की स्थिति में चुनाव आयोग से सलाह करके सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है।
  • राज्यपाल ही राज्य विधानमण्डल के सदस्यों, विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद् के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को शपथ दिलवाता है तथा स्थायी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यकारी अध्यक्ष को मनोनीत करता है।
  • राज्यपाल राज्य व्यवस्थापिका के अधिवेशन बुलाता है तथा स्थगित करता है।
  • राज्यपाल नई विधानसभा गठित होने के पश्चात् उसकी पहली बैठक में एक या दोनों सदनों को सम्बोधित करता है अथवा आरंभिक भाषण देता है।
  • राज्यपाल को राज्य के निम्न सदन को विघटित करने की शक्ति प्राप्त है। ऐसा वह मुख्यमंत्री के परामर्श से कर सकता है।
  • राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक कि उसे राज्यपाल की अनुमति प्राप्त न हो जाए।
  • राज्यपाल विधेयकों को स्वीकृति देता है, स्वीकृति देने से इंकार भी कर सकता है तथा वह उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सुरक्षित भी रख सकता है।
  • वह किसी भी विधेयक को सुझावों सहित विधान मण्डल को लौटा भी सकता है। परन्तु यदि विधानमण्डल उन्हें पुनः उसी रूप में पारित कर दे तो राज्यपाल को उन पर अपनी स्वीकृति प्रदान करनी ही पड़ती है।
  • कोई भी धन विधेयक उस समय तक विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे पारित करने की अभ्यर्थना (अनुरोध) पर राज्यपाल के हस्ताक्षर न हो जाए। इस प्रकार धन विधेयक राज्यपाल की अनुमति से ही सदन में प्रस्तुत किए जा सकते है।
  • जब विधानमण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो तब राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार भी प्राप्त है। इन अध्यादेशों का वही प्रभाव रहता है जैसा कि राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित अधिनियमों का होता है।
  • ये अध्यादेश विधानमण्डल के अधिवेशन प्रारम्भ होने के छः सप्ताह पश्चात् केवल उसी स्थिति में प्रभावशील रह सकेंगे जब कि विधानसभा उन्हें स्वीकृत कर दे।

वित्तीय शक्ति

  • राज्य का वार्षिक बजट तथा कोई भी अन्य धन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत करने से पूर्व राज्यपाल की सिफारिश या अनुमति आवश्यक है।
  • राज्य की संचित निधि राज्यपाल के संरक्षण में रहती है।
  • राज्य की आकस्मिक निधि पर नियन्त्राण राज्यपाल का ही होता है। इस निधि में से वह राज्य सरकार को आकस्मिक व्यय के लिए अग्रिम राशि प्रदान कर सकता है। परन्तु बाद में इस प्रकार के व्यय पर विधानसभा द्वारा पुष्टि आवश्यक है।

न्यायिक शक्तियाँ

  • संविधान के अनुच्छेद 161 के अधीन राज्यपाल को कुछ न्यायिक शक्तियां दी गई है। इसमें कहा गया है कि उन विषयों से सम्बद्ध अपराधों के विषय में जो कि राज्य कार्यपालिका शक्ति की परिधि में आते हैं, राज्यपाल किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा कर सकता है, उसे कम कर सकता है (लघुकरण), उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार अथवा निलम्बन कर सकता है।
  • राज्यपाल को किसी ऐसे अपराधी को क्षमा करने का अधिकार नहीं है जिसने कि संघ सरकार के कानून का उल्लंघन किया हो।

आपात शक्तियाँ

  • यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति की भांति यह अधिकार नहीं है कि वह बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त क्रान्ति की आशंका से  राज्य में आपातकाल लागू करे लेकिन यदि राज्यपाल (अनुच्छेद 356 के अनुसार) को जब यह महसूस हो जाए कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिनमें राज्य का शासन संवैधानिक उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने हेतु अनुरोध कर सकता है। 

अन्य शक्तियाँ

  • राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन तथा राज्य की आय-व्यय से संबंधित महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट प्राप्त कर उन्हें विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करवाता है।
  • वह राज्य के समारोहों में भाग लेता है। राज्य की ओर से दिए जाने वाले कुछ पुरस्कार वितरित करता है। इसके साथ ही वह राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति भी होता है।
  • अनुच्छेद 160 के अधीन राष्ट्रपति राज्यपाल को कुछ आकस्मिक शक्तियां भी प्रदान कर सकता है। 

स्वविवेक शक्तियाँ

  • राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 166 (3) के अधीन विवेकानुसार कार्य करने की भी शक्ति प्राप्त है।
  • ऐसी स्थिति में जबकि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तब राज्यपाल अपने विवेक से किसी ऐसे व्यक्ति को जो कि उसकी नजर में स्थायी सरकार का गठन कर सकता है, को मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है।
  • ऐसे संघ क्षेत्रों का प्रशासन जिसके लिए राष्ट्रपति द्वारा उसे नियुक्त किया गया है, अपने अधिकारों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद् की सलाह के वगैर स्वविवेक से करता है।
  • संविधान की छठी अनुसूची के उपबंध 9 (2) के अनुसार असम का राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार असम राज्य के खनिजों की अनुकूलता से उत्पन्न होने वाले स्वामित्व के लिए रकम निर्धारित कर जिला परिषद् को देगा।
  • अनुच्छेद 317 (2) के अधीन राष्ट्रपति आदेश दे सकता है कि महाराष्ट्र एवं गुजरात के राज्यपाल अपने राज्यों के किन्हीं विशेष क्षेत्रों के विकास के लिए कोई विशेष कदम उठाए।
  • अनुच्छेद 317 (1) (क) के अधीन जिसे कि 1962 के संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा नागालैण्ड के राज्यपाल को उस समय तक के लिए जब तक कि उस राज्य में विद्रोही नागाओं के कारण आन्तरिक अशान्ति बनी हुई हो अपने स्वविवेक से उसके लिए विधि या व्यवस्था निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है।
  • इसी प्रकार 1971 में अनुच्छेद 317 (1) (ग) में शामिल प्रावधान के अधीन राष्ट्रपति द्वारा मणिपुर के राज्यपाल द्वारा उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनने वाली राज्य की विधानसभा की सूची का उचित कार्यकारण सुनिश्चित करने का दायित्व भी सौंपा  गया है।
  • इसी प्रकार 36वें संशोधन अधिनियम द्वारा सिक्किम के राज्यपाल को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे "शान्ति के लिए और सिक्किम राज्य की जनता के विभिन्न विभागों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए" कार्य करें।
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FAQs on राज्यपाल - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल का क्या महत्व होता है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल राज्य के मुख्य नियंत्रक के रूप में कार्य करता है। वह राज्य के कानूनों को संवालित करता है, न्यायपालिका के आदेशों का पालन करता है और राज्य सरकार के साथ सहयोग करके नये कानून बनाने और कानूनों को लागू करने में मदद करता है।
2. भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल किस प्रकार नियुक्त होता है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के अधिकार में होती है और वह आमतौर पर राज्य की हाइरग्रिक व्यक्ति, राजनीतिज्ञ या प्रशासनिक अधिकारी होते हैं।
3. भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल की क्षमताओं में कौन-कौन से कार्य शामिल होते हैं?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल को कई क्षमताएं होती हैं। उनकी क्षमताओं में राज्य के विभिन्न संघटकों के माध्यम से नये कानूनों को मंजूरी देना, राज्य सरकार के नियमों और निर्देशों का पालन करने का निर्देश देना, शासन कार्यों का संचालन करना, राज्य में आपातकाल की घोषणा करना और राज्य के सभी न्यायपालिका संबंधित मामलों में योग्यता देखना शामिल होते हैं।
4. राज्यपाल की कार्यकाल की अवधि क्या होती है?
उत्तर: राज्यपाल की कार्यकाल की अवधि पांच वर्ष की होती है। हालांकि, इसे विस्तार किया जा सकता है यदि राष्ट्रपति को आवश्यकता हो या अगर उनकी कार्यक्षमता पर विश्वास होता है।
5. भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल की नियुक्ति किस तरीके से होती है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति को सामान्यतया उपनियुक्ति की सलाह लेने के बाद राज्यपाल को नियुक्त करते हैं। उनकी नियुक्ति पर राज्य सरकार की सिफारिश भी ली जाती है।
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