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राज्यपाल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

राज्यपाल

  • राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रधान राज्यपाल होता है। राज्य की कार्यपालिका शक्ति उसी में निहित होती है और राज्य के समस्त कार्य उसी के नाम से किये जाते हैं।
  • सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल नियुक्त किया जाता है।
  • 1956 में किए गए संशोधन के पश्चात् एक ही व्यक्ति एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। इस उपबन्ध के अनुसार असम के राज्यपाल को ही मेघालय का भी राज्यपाल नियुक्त किया जाता है। (अनुच्छेद 153)

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने हेतु कितने दिन पूर्व उसे नोटिस देना होता है? - 14 दिन
  • संविधान की किस अनुसूची में राज्यपाल, राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश आदि के वेतन दिए गए हैं? - द्वितीय अनुसूची
  • किस संविधान संशोधन के द्वारा प्रीवीपर्स मान्यताएं तथा विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए?कृ 26वां संविधान संशोधन (1971)
  • भारत की संघीय व्यवस्था किस देश की संघीय व्यवस्था के अनुरूप है?
  • - कनाडा की
  • किस लेख के द्वारा किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति, निगम या संस्था को ऐसा कार्य करने के लिए आदेश दिया जाता है जो उसकी कर्तव्य सीमा में आता है और जिसको उसे पूरी निष्ठा से पूरा करना चाहिए - परमादेश
  • राज्यों के पुनर्गठन सम्बन्धी विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व किसकी सहमति प्राप्त करना आवश्यक होता है?- राष्ट्रपति की
  • किसी राज्य के नाम में परिवर्तन करने का अधिकार किसको प्राप्त है? - संसद को
  • राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव कौन ला सकता है? - संसद का कोई भी सदन
  • यदि किसी भारतीय नागरिक को अपने धर्म के कारण कोई सार्वजनिक पद नहीं दिया जाता है तो उसे कौन-से मूल अधिकार से वंचित रखा जा रहा है? - समानता का अधिकार
  • किस गैर-संसद सदस्य को उसको सम्बोधित करने का अधिकार है? -  भारत के महान्यायवादी
  • भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व के सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की सिफारिश कौन-सा प्राधिकरण करता है? - वित्त आयोग


राज्यपाल की नियुक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार भारत में राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • किसी राज्य का राज्यपाल सामान्यतः अन्य किसी राज्य के निवासी को ही नियुक्त किया जाता है। इस परम्परा को अपनाने के मुख्य कारण ये थे कि वह उस राज्य की दलबन्दियों एवं गुटबन्दियों से दूर रहकर निष्पक्ष एवं स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर सके तथा राज्य मंत्रिमण्डल द्वारा यदि कभी संकीर्ण प्रान्तीयतावादी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर निर्णय ले लिया जाए तो वह उसे रोक सके।

राज्यपाल की पदावधि

अनुच्छेद 156 (1) के अनुसार-

  • राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करेगा।
  • राष्ट्रपति किन आधारों पर उसे पद से हटा सकता है संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। लेकिन सामान्यतः उसे गम्भीर अपराध, जैसे-घूसखोरी, भ्रष्टाचार, राजद्रोह, संविधान का उल्लंघन करने पर ही पदच्युत किया जा सकता है।

अनुच्छेद 156 (2) के अनुसार-

  • राज्यपाल राष्ट्रपति को अपनी इच्छानुसार अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा द्वारा पद मुक्त हो सकता है।
  • अनुच्छेद 156 (3) के अनुसार राज्यपाल अपने पद ग्रहण करने की तारीख से 5 वर्ष तक की अवधि तक पद धारण कर सकता है।
  • सामान्यतः राज्यपाल 5 वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर भी जब तक नया राज्यपाल अपना पद ग्रहण न कर ले अपने पद पर बना रहता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 157 के अनुसार, राज्यपाल-
    (1) भारत का नागरिक हो,
    (2) वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा अनुमति दिए जाने से पहले लोक सभा के कितने सदस्यों को सरकार के प्रति अविश्वास के प्रस्ताव का समर्थन करना चाहिए? - 50 सदस्यों का
  • भारत के राष्ट्रपति, संसद द्वारा पारित किसी धनेतर विधेयक को कितनी बार लौटा सकते हैं? -  एक बार
  • नीति-निर्देशक तत्वों का क्रियान्वयन किस पर निर्भर करता है? -  सरकार के पास उपलब्ध संसाधनों पर
  • संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा होने पर कौन-सी शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त नहीं है ? -  वह लोक सभा व राज्य सभा को भंग करने का अधिकार रखता है
  • ब्रिटिश संसद द्वारा ‘इण्डियन इन्डिपेंडेंस एक्ट’ कब पारित किया गया? - जुलाई 1947
  • संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत राज्य सभा नई अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की रचना प्रस्तावित कर सकती है? - अनुच्छेद 312 
  • भारतीय संविधान में केन्द्र व राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र को संघसूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची द्वारा स्पष्ट किया गया है, जो कार्य इन सूचियों में वर्णित नहीं है वह किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं? - संघ के
  • संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत राज्य सभा नई अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की रचना प्रस्तावित कर सकती है?- अनुच्छेद 312 
  • भारत की संविधान सभा का गठन किसके प्रावधान के अन्तर्गत किया गया? -  केबिनट मिशन प्लान 1946 के 
  • भारतीय संविधान में केंद्र व राज्य सरकारों के कार्य क्षेत्र को संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची द्वारा स्पष्ट किया गया है। जो कार्य इन सूचियों में वर्णित नहीं हैं वह किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं - संघ के अधिकार क्षेत्र में
  • लोक लेखा समिति में कितने सदस्य होते हैं -  22


राज्यपाल के पद के लिए शर्तेंवेतन तथा भत्ते

  • संविधान के अनुच्छेद 158 में राज्यपाल के पद के लिए कुछ शर्तें दी गई है। ये इस प्रकार है-
    (i) राज्यपाल को संसद के किसी भी सदन का या भारत राज्य क्षेत्रा के किसी भी राज्य के विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाए जो कि संसद के किसी भी सदन का अथवा किसी भी राज्य के विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य है तो राज्यपाल का पद ग्रहण करने की तारीख से यह समझा जाएगा कि उसने जिस सदन का वह सदस्य था उसमें अपना स्थान रिक्त कर दिया है। (अनुच्छेद 158 (1))
    (ii) राज्यपाल भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन लाभ का कोई पद धारण नहीं करेगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 158 (3) के अनुसार राज्यपाल बिना किराया दिए शासकीय आवास के उपयोग का हकदार होगा तथा इसके साथ ही उसके वेतन तथा भत्तों एवं अन्य सुविधाओं के संबंध में निर्णय संसद करेगी।
  • संसद द्वारा राज्यपाल (परिलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार) अधिनियम, 1982 के अनुसार (1987 में इसे संशोधित किया गया) राज्यपाल के वेतन, भत्ते व उपलब्धियां निर्धारित की गई हैं। वेतनमान समसामयिक पीछे बाॅक्स में देखें।
  • जहां एक ही व्यक्ति दो राज्यों या अधिक राज्यों का राज्यपाल है वहां उस राज्यपाल को दी जाने वाली उपलब्धियां एवं भत्ते संबंधित राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में बांट दिए जाते है जो कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा निश्चित करे।
  • राज्यपाल को प्राप्त वेतन, भत्तों तथा सुविधाओं को उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किया जा सकता।

राज्यपाल द्वारा शपथ

  • संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार प्रत्येक राज्यपाल अपना पद ग्रहण करने से पूर्व उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उसी न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्न प्रारूप में शपथ लेगा तथा उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा-
  • "मैं अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं (या सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं) कि मैं श्रद्धापूर्वक-(राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के दायित्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं-(राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में रत रहूंगा।“

राज्यपाल की शक्तियां

  • राज्यों में राज्यपाल की वही स्थिति मानी जाती है जो कि केन्द्र में राष्ट्रपति को प्राप्त है। यद्यपि राज्यपाल को ऐसी कोई राजनयिक या सैन्य शक्ति प्राप्त नहीं है जैसी कि राष्ट्रपति को प्राप्त है लेकिन फिर भी उसे राष्ट्रपति की भांति कार्यपालिका विधायी एवं न्यायिक शक्तियां प्राप्त है।

कार्यपालिका शक्तियां

  • संविधान के अनुच्छेद 166 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका संबंधी कार्य राज्यपाल के नाम से ही की हुई कही जाएगी।
  • राज्यपाल ही राज्य की मंत्रिपरिषद् एवं राज्य के मुख्यमंत्राी की नियुक्ति करता है।
  • मंत्रिपरिषद् के मंत्रियों की नियुक्ति वह मुख्यमंत्राी की सिफारिश पर करता है।
  • मुख्यमंत्राी की सिफारिश से ही वह राज्य के अन्य पदाधिकारियों जैसे महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल), राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल किसी भी मंत्राी को एवं महाधिवक्ता को पद्च्युत भी कर सकता है। ऐसा वह मुख्यमंत्राी की सलाह से ही करता है।
  • लेकिन उसे राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है। इन्हें उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति द्वारा ही पदच्युत किया जा सकता है।
  • साथ ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति उससे परामर्श ले सकता है।

विधायी शक्तियां

  • जिस प्रकार केन्द्र में राष्ट्रपति संसद का अंग होता है उसी प्रकार राज्यपाल राज्य विधान मण्डल का एक अविभाज्य अंग होता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 333 के अधीन राज्यपाल राज्य विधान सभा में आंग्ल भारतीय (एंग्लो इण्डियन) समुदाय के सदस्यों को, यदि उन्हें विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला हो तो, मनोनीत कर सकता है।
  • 23वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 द्वारा वह ऐसे केवल एक ही सदस्य को मनोनीत कर सकता है।
  • इसी प्रकार जिन राज्यों में द्विसदनात्मक विधानमण्डल है वहां विधान परिषद् (राज्य विधानमण्डल का उच्च सदन) में राज्यपाल को सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति उसी प्रकार प्राप्त है जैसी कि राज्यसभा के संबंध में राष्ट्रपति को प्राप्त है।
  • वह ऐसे व्यक्तियों को जो साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारी आन्दोलनों एवं समाज सेवा में व्यावहारिक अनुभव रखते हों को विधान परिषद् के सदस्य मनोनीत कर सकता है।
  • यहां यह ध्यान देने योग्य है कि राज्यसभा के लिए निर्धारित विषयों में ‘सहकारी आन्दोलन’ विषय नहीं है।
  • राज्यपाल किसी भी सदस्य को अनुच्छेद 181 में उल्लेखित शर्तों को पूरा न कर सकने की स्थिति में चुनाव आयोग से सलाह करके सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है।
  • राज्यपाल ही राज्य विधानमण्डल के सदस्यों, विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद् के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को शपथ दिलवाता है तथा स्थायी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यकारी अध्यक्ष को मनोनीत करता है।
  • राज्यपाल राज्य व्यवस्थापिका के अधिवेशन बुलाता है तथा स्थगित करता है।
  • राज्यपाल नई विधानसभा गठित होने के पश्चात् उसकी पहली बैठक में एक या दोनों सदनों को सम्बोधित करता है अथवा आरंभिक भाषण देता है।
  • राज्यपाल को राज्य के निम्न सदन को विघटित करने की शक्ति प्राप्त है। ऐसा वह मुख्यमंत्राी के परामर्श से कर सकता है।
  • राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक कि उसे राज्यपाल की अनुमति प्राप्त न हो जाए।
  • राज्यपाल विधेयकों को स्वीकृति देता है, स्वीकृति देने से इंकार भी कर सकता है तथा वह उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सुरक्षित भी रख सकता है।
  • वह किसी भी विधेयक को सुझावों सहित विधान मण्डल को लौटा भी सकता है। परन्तु यदि विधानमण्डल उन्हें पुनः उसी रूप में पारित कर दे तो राज्यपाल को उन पर अपनी स्वीकृति प्रदान करनी ही पड़ती है।
  • कोई भी धन विधेयक उस समय तक विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे पारित करने की अभ्यर्थना (अनुरोध) पर राज्यपाल के हस्ताक्षर न हो जाए। इस प्रकार धन विधेयक राज्यपाल की अनुमति से ही सदन में प्रस्तुत किए जा सकते है।
  • जब विधानमण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो तब राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार भी प्राप्त है। इन अध्यादेशों का वही प्रभाव रहता है जैसा कि राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित अधिनियमों का होता है।
  • ये अध्यादेश विधानमण्डल के अधिवेशन प्रारम्भ होने के छः सप्ताह पश्चात् केवल उसी स्थिति में प्रभावशील रह सकेंगे जब कि विधानसभा उन्हें स्वीकृत कर दे।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारतीय संविधान की संघ और राज्यों के बीच शक्ति विभाजन की विधि किस देश के संघ की प्रेरणा पर  - कनाडा एवं आस्ट्रेलिया
  • डाॅ.बी.आर. अम्बेडकर ने किस मौलिक अधिकार को भारतीय संविधान का हृदय एवं आत्मा कहा था?-  संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  • भारतीय संविधान में प्रदत्त ‘मूलभूत अधिकारों’ को निलम्बित करने वाली सत्ता कौन है? - राष्ट्रपति
  • सर्वोच्च न्यायालय के किस मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में प्रथागत वरिष्ठता क्रम के सिद्धांत को पहली बार त्यागा गया? - न्यायमूर्ति ए.एन. रे की नियुक्ति में
  • संविधान संशोधन से सम्बन्धित से प्रावधानों का उल्लेख संविधान के भाग 20 में किया गया है। सम्बन्धित अनुच्छेद कौन-सा है?- अनुच्छेद 368 
  • संविधान में राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों को शामिल करने का क्या उद्देश्य है? - सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना
  • भारतीय संविधान में किस प्रकार की शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है? -  संसदीय शासन प्रणाली की
  • कौन लोग राष्ट्रपति के चुनाव में तो मतदान नहीं करते, किन्तु उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करते हैं? - संसद के मनोनीत सदस्य
  • योजना आयोग उपाध्यक्ष किसके समकक्ष होता है? - कैबिनेट मंत्री के
  • ‘सत्यमेव जयते’ वाक्य कहां से लिया गया है?- मुंडकोपनिषद् से
  • किसी विधेयक के धन विधेयक होने का अन्तिम निर्णय कौन करता है? - लोकसभा अध्यक्ष 
  • दल-बदल विरोधी कानून से संविधान का कौन-सा संशोधन सम्बन्धित है? -  52 वां
  • राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र बनने के लिए किसी व्यक्ति की आयु पूर्ण होनी चाहिए 35 वर्ष
  • राष्ट्रपति संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत लोक सभा को भंग कर सकता है? -  अनुच्छेद 85 के अन्तर्गत

वित्तीय शक्तियां

  • राज्य का वार्षिक बजट तथा कोई भी अन्य धन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत करने से पूर्व राज्यपाल की सिफारिश या अनुमति आवश्यक है।
  • राज्य की संचित निधि राज्यपाल के संरक्षण में रहती है।
  • राज्य की आकस्मिक निधि पर नियन्त्राण राज्यपाल का ही होता है। इस निधि में से वह राज्य सरकार को आकस्मिक व्यय के लिए अग्रिम राशि प्रदान कर सकता है। परन्तु बाद में इस प्रकार के व्यय पर विधानसभा द्वारा पुष्टि आवश्यक है।

न्यायिक शक्तियां

  • संविधान के अनुच्छेद 161 के अधीन राज्यपाल को कुछ न्यायिक शक्तियां दी गई है। इसमें कहा गया है कि उन विषयों से सम्बद्ध अपराधों के विषय में जो कि राज्य कार्यपालिका शक्ति की परिधि में आते हैं, राज्यपाल किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा कर सकता है, उसे कम कर सकता है (लघुकरण), उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार अथवा निलम्बन कर सकता है।
  • राज्यपाल को किसी ऐसे अपराधी को क्षमा करने का अधिकार नहीं है जिसने कि संघ सरकार के कानून का उल्लंघन किया हो।

आपात शक्तियाँ

  • यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति की भांति यह अधिकार नहीं है कि वह बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त क्रान्ति की आशंका से राज्य में आपातकाल लागू करे लेकिन यदि राज्यपाल (अनुच्छेद 356 के अनुसार) को जब यह महसूस हो जाए कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिनमें राज्य का शासन संवैधानिक उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने हेतु अनुरोध कर सकता है।

अन्य शक्तियाँ

  • राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन तथा राज्य की आय-व्यय से संबंधित महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट प्राप्त कर उन्हें विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करवाता है।
  • वह राज्य के समारोहों में भाग लेता है। राज्य की ओर से दिए जाने वाले कुछ पुरस्कार वितरित करता है। इसके साथ ही वह राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति भी होता है।
  • अनुच्छेद 160 के अधीन राष्ट्रपति राज्यपाल को कुछ आकस्मिक शक्तियां भी प्रदान कर सकता है।

स्वविवेकी शक्तियों

  • राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 166 (3) के अधीन विवेकानुसार कार्य करने की भी शक्ति प्राप्त है।
  • ऐसी स्थिति में जबकि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तब राज्यपाल अपने विवेक से किसी ऐसे व्यक्ति को जो कि उसकी नजर में स्थायी सरकार का गठन कर सकता है, को मुख्यमंत्राी नियुक्त कर सकता है।
  • ऐसे संघ क्षेत्रों का प्रशासन जिसके लिए राष्ट्रपति द्वारा उसे नियुक्त किया गया है, अपने अधिकारों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद् की सलाह के वगैर स्वविवेक से करता है।
  • संविधान की छठी अनुसूची के उपबंध 9 (2) के अनुसार असम का राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार असम राज्य के खनिजों की अनुकूलता से उत्पन्न होने वाले स्वामित्व के लिए रकम निर्धारित कर जिला परिषद् को देगा।
  • अनुच्छेद 317 (2) के अधीन राष्ट्रपति आदेश दे सकता है कि महाराष्ट्र एवं गुजरात के राज्यपाल अपने राज्यों के किन्हीं विशेष क्षेत्रों के विकास के लिए कोई विशेष कदम उठाए।
  • अनुच्छेद 317 (1) (क) के अधीन जिसे कि 1962 के संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा नागालैण्ड के राज्यपाल को उस समय तक के लिए जब तक कि उस राज्य में विद्रोही नागाओं के कारण आन्तरिक अशान्ति बनी हुई हो अपने स्वविवेक से उसके लिए विधि या व्यवस्था निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है।
  • इसी प्रकार 1971 में अनुच्छेद 317 (1) (ग) में शामिल प्रावधान के अधीन राष्ट्रपति द्वारा मणिपुर के राज्यपाल द्वारा उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनने वाली राज्य की विधानसभा की सूची का उचित कार्यकारण सुनिश्चित करने का दायित्व भी सौंपा गया है।
  • इसी प्रकार 36वें संशोधन अधिनियम द्वारा सिक्किम के राज्यपाल को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे ”शान्ति के लिए और सिक्किम राज्य की जनता के विभिन्न विभागों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए“ कार्य करें।

 

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FAQs on राज्यपाल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. राज्यपाल क्या होता है और उनकी क्या भूमिका होती है?
उत्तर: राज्यपाल भारतीय राज्यों में एक महत्वपूर्ण पद होता है जो राज्य सरकार के प्रमुख होते हैं। उनकी प्रमुख भूमिका उत्तराधिकारी भूमिका होती है, जहां उन्हें कानून बनाने, अभियांत्रिकी और न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति करने, आपातकालीन प्रशासन और अन्य राज्य सरकारी मामलों के माध्यम से राज्य सरकार का प्रबंधन करने का अधिकार होता है।
2. संशोधन नोटस क्या होते हैं और उनका महत्व क्या है?
उत्तर: संशोधन नोटस भारतीय संविधान के बदलाव या संशोधन के लिए प्रस्तुत की जाने वाली एक विधि होती है। यह संविधान की प्राथमिकताओं और देश की आधारभूत व्यवस्था में बदलाव करने का माध्यम होता है। संशोधन नोटस महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे देश के नागरिकों के अधिकारों, स्वतंत्रता के मानदंडों और न्यायपालिका के सुदृढ़ीकरण के लिए बदलाव कर सकते हैं।
3. भारतीय राजव्यवस्था में UPSC का क्या महत्व है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय राज्यों में विभिन्न सरकारी पदों की भर्ती के लिए अधिकारी चुनने के लिए जिम्मेदार है। यह एक स्वतंत्र आयोग है जो लोगों की योग्यता, ज्ञान और कौशल का मापदंड निर्धारित करके उन्हें सरकारी पदों के लिए चुनता है। UPSC का महत्वपूर्ण यह अर्थ होता है कि यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया निष्पक्ष और योग्यताओं पर आधारित होती है।
4. भारतीय राजव्यवस्था में संशोधन नोटस के लिए UPSC द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा कौन-सी है?
उत्तर: संशोधन नोटस के लिए UPSC द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा 'संघ लोक सेवा परीक्षा' है। इस परीक्षा में अभ्यर्थियों को भारतीय संविधान, भारतीय राजव्यवस्था, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, सामान्य विज्ञान और गणितीय योग्यता पर आधारित प्रश्नों का सामरिक आयोजन किया जाता है।
5. संशोधन नोटस के लिए UPSC परीक्षा के लिए कैसे तैयारी की जा सकती है?
उत्तर: संशोधन नोटस के लिए UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए विद्यार्थी को भारतीय संविधान, भारतीय राजव्यवस्था, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, सामान्य विज्ञान और गणितीय योग्यता के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए। विद्यार्थी को नवीनतम विषय सामग्री, पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों का अध्ययन करना चाहिए और नियमित रूप से मॉक टेस्ट लेना चाहिए। इसके अलावा, संशोधन नोटस के प्रमुख पहलुओं के बारे में स
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