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राज्य विधानमंडल (भाग -1) - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

राज्यों में दूसरे सदन का सृजन और उत्सादन

  • संविधान के प्रारंभ से किए गए परिवर्तन के कारण अनुच्छेद 169 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार दो सदन वाले राज्य है बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ख्अनुच्छेद 168,। इनमें जम्मू-कश्मीर को भी जोड़ा जा सकता है जिसने अपने राज्य के संविधान द्वारा द्विसदनीय विधान मंडल स्वीकार किया है।
  • इसका यह अर्थ हुआ कि शेष राज्यों में विधान मंडल एक-सदनीय है अर्थात् वह केवल विधान सभा से मिलकर बनता है ख्अनुच्छेद 168,ए किंतु यह सूची स्थायी नहीं है क्योंकि संविधान में यह उपबंध है कि जिन राज्यों में विधान परिषद् विद्यमान है वहां उसका उत्सादन किया जा सकता है और जहां वह विद्यमान नहीं है उस राज्य में उसका सृजन किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए एक सादी प्रक्रिया है जिसने संविधान के संशोधन की आवश्यकता नहीं होती। प्रक्रिया यह है कि उस राज्य की विधान सभा एक विशेष बहुमत द्वारा एक संकल्प पारित करेगी जिसके अनुसरण में संसद् अधिनियम बनाएगी (संकल्प, कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किया जाएगा) ख्अनुच्छेद 169,।
  •  यह असाधारण उपबंध राज्यों के लिए किया गया था जिससे संविधान के बनाते समय की गई इस आलोचना का उत्तर दिया जा सके कि हमारे कुछ राज्य जो निर्धन है उन्हें दो सदनों पर खर्च करना ठीक नहीं रहेगा। तदनुसार यह उपाय किया गया कि प्रत्येक राज्य अपनी इच्छानुसार चाहे तो दूसरा सदन रखे या नहीं रखे। इस उपबंध का फायदा उठाकर आंध्र प्रदेश ने 1957 में संसद द्वारा विधान परिषद् अधिनियम 1957 पारित कराके विधान परिषद् का सृजन किया। इसी प्रक्रिया द्वारा 1985 में आंध्र प्रदेश की विधान परिषद् का उत्सादन हो गया।

राज्य में द्वितीय सदन की उपयोगिता

  •  यह स्पष्ट है कि विधान परिषद् की स्थिति विधान सभा की अपेक्षा कम महत्व की है। इसका महत्व इतना कम है कि इसका अस्तित्व व्यर्थ जान पड़ता है।
    (क) विधान परिषद् की संरचना ही उसे निर्बल बनाती है। परिषद् भागतः निर्वाचित और भागतः निर्दिष्ट होती है तथा विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करती है।
    (ख) इसकी विद्यमानता विधान सभा की इच्छा पर निर्भर होती है क्योंकि विधान सभा को यह शक्ति है कि वह संसद के अधिनियम द्वारा द्वितीय सदन के उत्सादन के लिए संकल्प पारित कर सकती है।
    (ग) मंत्रिपरिषद् केवल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
    (घ) विधान परिषद् धन विधेयक को न तो अस्वीकार कर सकती है और न ही उसमेंकोई संशोधन कर सकती है। वह उस विधेयक को 14 दिन से अनधिक की अवधि के लिए रोक सकती है या उसमें संशोधनों की सिफारिश कर सकती है।
    (ङ) सामान्य विधान के संबंध में (अर्थात् धन विधेयक से भिन्न विधेयकों के संबंध में) विधान परिषद् की स्थिति विधान सभा के नीचे है। वह विधान सभा मेंप्रारम्भ होने वाले विधेयक के पारित होने में अधिक से अधिक चार मास का विलम्ब (दो यात्राओं में) कर सकती है और असहमति की दशा में विधान सभा की ही बात मानी जाएगी।
  •  परिषद् में प्रारम्भ होने वाले विधेयक की दशा में विधान सभा को यह शक्ति है कि वह उस विधेयक को अस्वीकार कर उसे तुरंत समाप्त कर दे।
  • इस प्रकार यह दिखाई देता है कि राज्य में द्वितीय सदन संघ की संसद के द्वितीय सदन के समान पुनरीक्षण करने वाला निकाय नहीं है जो अपनी विसम्मति द्वारा गतिरोध उत्पन्न करके विधेयक के पारित होने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक करना अनिवार्य कर दे (धन विधेयक से भिन्न विधेयकों की दशा में)। यह सब होते हुए भी अप्रत्यक्ष निर्वाचन और विशेष ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के नामनिर्देशन से विधान परिषद् की संरचना होने के कारण परिषद् में अधिक मेधावी व्यक्ति होते है और अपनी विलम्बकारी शक्ति से भी वह जल्दी में विधान बनाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाती है जिससे बिना विचारे लाए गए विधेयकोंकी कमियां या दोष सामने आ जाते है।

विधान परिषद का गठन

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार किसी राज्य की विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिये, लेकिन किसी भी राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में 40 से कम नहीं होनी चाहिये।
  •  संविधान के अनुच्छेद 171(2) के अधीन विधान परिषदों की संरचना की रीति की शक्ति संसद को प्रदान की गई है। लेकिन जब तक संसद ऐसी विधि न बनाये तब तक उसकी संरचना संविधान में अनुच्छेद 171(3) में उल्लेखित रीति के अनुसार होगी।
  •  संविधान में उल्लेखित रीति के अनुसार विधान परिषद् के कुछ सदस्य तो निर्वाचित होते है और कुछ मनोनीत (नाम निर्दिष्ट)।
  • निर्वाचित सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा।
  •  विधान परिषद् के सदस्य विभिन्न तों से लिये जाएंगे। इन सदस्यों में 5/6 सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होंगे और 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत। सदस्यों की कुल सदस्य संख्या का-

(क) एक तिहाई भाग स्थानीय निकायों- नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों एवं अन्य स्थानीय निकाओंसे मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डलोंद्वारा निर्वाचित होगा।
(ख) 1/12 भाग उस राज्य में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातकोंसे मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डल द्वारा या इन्हीं के समान (समतुल्य) योग्यता रखने वाले राज्य के निवासियोंद्वारा चुना जाएगा।
(ग) 1/12 भाग राज्य के भीतर माध्यमिक शिक्षा संस्थाओंतथा उनसे उच्च स्तर के शिक्षण संस्थानोंके कम से कम तीन वर्ष पुराने शिक्षकोंद्वारा चुना जाएगा।
(घ) एक तिहाई सदस्य राज्य की विधान-सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियोंमें से निर्वाचित होंगे जो कि विधान सभा के सदस्य नहीं है।
(ङ) शेष सदस्य (1/6) राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियोंमें से मनोनीत किये जाएंगे जिन्हेंसाहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन एवं सामाजिक सेवा के संबंध मेंविशेष ज्ञान या जानकारी का अनुभव हो।

  • केन्द्रीय विधानमण्डल के द्वितीय सदन राज्यसभा की भाँति राज्योंकी विधान परिषद् भी एक स्थायी सदन है। इसका विघटन नहीं किया जा सकता।
  • किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते है और उनके स्थान पर उतने ही अन्य सदस्य चुन लिए जाते है। इस प्रकार एक सदस्य की पद अवधि 6 वर्ष की होती है।

 विधान परिषद के सदस्यों की योग्यताएं

  • संविधान के अनुच्छेद 173 के अधीन विधान परिषद् के सदस्यों के लिए निम्न अर्हताएँ (योग्यताएं) निर्धारित की गई हैं -

कोई भी व्यक्ति किसी राज्य के विधान मण्डल के किसी स्थान हेतु चुने जाने के लिए तभी योग्य होगा जबकि - 
(क) वह भारत का नागरिक हो।
(ख) वह कम से कम 30 वर्ष की आयु का हो।
(ग) उसके पास वे सभी अन्य योग्यताएँ हों जो कि संसद कानून द्वारा निर्धारित करे।
इस अधिकार के अधीन संसद ने जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में यह निर्धारित किया है कि - 
(घ) विधान परिषद का सदस्य निर्वाचित होने के लिए आवश्यक है कि वह उस राज्य मेंकिसी भी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रा में मतदाता हो।

सदस्यों की अयोग्यताएं

  • उपर्युक्त योग्यताओं के अतिरिक्त कोई भी सदस्य संविधान के अनुच्छेद 120 में निर्धारित अयोग्यताओं के रहते विधान परिषद का सदस्य नहीं हो सकता। वे अयोग्यताएं वे ही हैं जो कि किसी संसद सदस्य के लिए निर्धारित हैं-
             (क) वह संघ या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो तथा किसी ऐसे पद पर भी न हो जिसको धारण करने वाले को राज्य विधानमण्डल ने कानून द्वारा इस पद हेतु अयोग्य घोषित किया हो।
           (ख) किसी सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित विकृत चित्त (पागल) न हो।
           (ग) अनुन्मोचित दिवालिया न हो।
           (घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति अपनी निष्ठा को स्वीकार करता हो।
           (ङ) न्यायालय द्वारा अपराधी ठहराया गया हो।
           (च) निर्वाचन के संबंध में भ्रष्ट या अवैध आचरण का दोषी हो।
          (छ) किसी ऐसे निगम का प्रबंधक या अभिकर्ता हो जिसमें सरकार का वित्तीय हित हो।
  • यदि किसी सदस्य के निर्वाचन संबंधी कोई अनियमिता या उसका निर्वाचन ऊपर वर्णित किसी अयोग्यता से ग्रस्त है तो ऐसी स्थिति में इसका निर्णय राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की राय के अनुसार किया जाएगा एवं उसका निर्णय अन्तिम होगा। किसी भी न्यायालय में उस पर विचार नहीं किया जा सकेगा।

विधान परिषद का सभापति तथा उप-सभापति

  • विधान परिषद् अपनी बैठको के संचालन अथवा कार्य संचालन के लिए तथा बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए अपने सदस्यों में से ही किसी एक को सभापति तथा एक को उप-सभापति चुनती है।
  • इन दोनों पदाधिकारियों को विधान परिषद् स्वयं अपने दो तिहाई बहुमत से पदच्युत् भी कर सकती है।
  •  सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना तथा सदन में अनुशासन बनाये रखने का दायित्व सदन के सभापति का होता है।
  • कोई भी विधेयक उसकी पूर्वानुमति के वगैर सदन में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता। वही विधेयकों पर बहस की अनुमति देेता है एवं उसे संचालित करता है।
  • सभापति ही बहस समाप्त होने के पश्चात विधेयक पर मतदान कराता है तथा पारित हो जाने पर उस पर हस्ताक्षर करता है। साथ ही उसे निर्णायक मत देने का भी अधिकार होता है।
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FAQs on राज्य विधानमंडल (भाग -1) - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. राज्य विधानमंडल क्या है?
उत्तर: राज्य विधानमंडल एक निर्वाचन द्वारा चुने गए सदस्यों से मिलकर बनी होती है और यह एक लोकतांत्रिक भारतीय राज्य के नियमों और कानूनों का निर्माण करने और संशोधन करने का कार्य करती है। यह राज्य सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग होता है।
2. राज्य विधानमंडल की स्थापना कब हुई?
उत्तर: राज्य विधानमंडल की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत की गई। यह 26 जनवरी 1950 को सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ।
3. राज्य विधानमंडल के कार्य क्या हैं?
उत्तर: राज्य विधानमंडल के कार्य निम्नलिखित हैं: - नए कानूनों और विधानों का प्रस्तावना और पारित करना - सरकारी नीतियों और योजनाओं की जांच करना - बजट पारित करना - विधायकों के संविधानिक और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा करना - सरकारी निर्देश और आदेशों के विरुद्ध आपत्तियों का निवारण करना
4. राज्य विधानमंडल के सदस्यों का चयन कैसे होता है?
उत्तर: राज्य विधानमंडल के सदस्यों का चयन निर्वाचन द्वारा होता है। वाणिज्यिक निर्वाचन आयोग राज्य में निर्वाचन की प्रक्रिया को संचालित करता है और निर्वाचित नेताओं को सदस्य बनाने के लिए चुनाव करवाता है।
5. राज्य विधानमंडल का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर: राज्य विधानमंडल का अध्यक्ष विधानमंडल के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। अधिकांश राज्यों में, विधानमंडल के सदस्यों द्वारा अध्यक्ष का चयन किया जाता है जो विधानमंडल की कार्यवाही का कुछ निर्देशन करता है और बैठकों की अध्यक्षता करता है।
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