परिच्छेद - 2
यह परमावश्यक है कि हम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाएं और इस तरह आगामी वर्षों और दशकों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कुछ बदतरीन प्रभावों से बचें। उत्सर्जन कम करने के लिए ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग के हमारे तरीकों में एक बड़ा बदलाव अपेक्षित होगा। जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भरता से हटना अतिविलम्बित है, किन्तु दुर्भाग्य से, प्रौद्योगिकीय विकास धीमा और अपर्याप्त रहा है, मोटे तौर पर इसलिए कि तेल की अपेक्षाकृत निम्न कीमतों से जन्मी अदूरदर्शिता के कारण सरकारी नीतियां अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहन नहीं देती रही है। इसलिए अब राष्ट्रीय अनिवार्यता के रूप में वृहत् पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा को काम में लाने के अवसर का लाभ उठाना भारत जैसे देश के लिए अत्यावश्यक है। यह देश ऊर्जा के सौर, वायु और जैवमात्रा स्रोतों से अत्यध्कि सम्पन्न है। दुर्भाग्य से, जहां हम पीछे हैं, वह है इन स्रोतों को काम में लाने के लिए प्रौद्योगिकीय समाधान विकसित और सर्जित करने की हमारी क्षमता।
जलवायु परिवर्तन पर अंतःसरकारी पैनल (IPCC) द्वारा निर्धारित रूप से ग्रीनहाउस गैसों को सख्ती से कम करने के लिए एक विशिष्ट प्रक्षेप-पक्ष स्पष्ट रूप से यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता को दिखाता है कि ग्रीनहाउस गैसों के भूमंडलीय उत्सर्जनों का चरम बिन्दु 2015 को पार न करे और उसके आगे तेजी से घटने लगे। ऐसे प्रक्षेप पक्ष के साथ संबद्ध लागत वस्तुतः मर्यादित है और इसकी राशि, IPCC के आकलन में, 2013 में विश्व GDP के 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। दूसरे शब्दों में, सम्पन्नता के जिस स्तर पर विश्व बिना उत्सर्जन में कमी लाए पहुंच सकता, खराब-से-खराब हालत में कुछ मास या अधिक से अधिक एक वर्ष तक टल जाएगी। स्पष्टतः यह, जलवायु परिवर्तन से जुड़े बदतरीन खतरों से करोड़ों लोगों को बचाने के लिए चुकाई जाने वाली कोई बहुत बड़ी कीमत नहीं है। तथापि, ऐसे किसी प्रयास के लिए जीवन-शैलियों को भी उपयुक्त रूप से बदलना होगा। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना सिर्फ एक प्रौद्योगिकीय उपाय भर नहीं है, और इसके लिए स्पष्टतः जीवन-शैलियों में बदलाव और देश की आर्थिक संरचना में रूपांतरण अपेक्षित है, जिसके द्वारा, उत्सर्जन को प्रभावी रूप से कम किया जाए, जैसे कि जीव प्रोटीन के काफी कम मात्राओं में उपभागे के माध्यम से । खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने यह निर्धारित किया है कि पशुधन क्षेत्रक से उत्सर्जन कुल उत्सर्जन का 18 प्रतिशत होता है। इस स्रोत से हो रहे उत्सर्जन में कमी लाना पूरी तरह मनुष्यों के हाथ में है, जिन्हानें अपनी अधिक से अधिक जीव प्रोटीन के उपभोग की आहार-आदतों के कारण पड़ने वाले प्रभाव पर कभी कोई प्रश्न नहीं उठाया। वस्तुतः उत्सर्जन में कमी लाने के विशाल सह-सुलाभ हैं, जैसे अपेक्षाकृत कम वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी लाभ, उच्चतर ऊर्जा सुनिश्चितता तथा और अधिक रोजगार।
प्रश्न.153. परिच्छेद के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सहायक होंगे ? (2014)
1. मांस के उपभोग में कमी लाना
2. तीव्र आर्थिक उदारीकरण
3. उपभोक्तावाद में कमी लाना
4. पशुधन की आधुनिक प्रबंधन प्रक्रियाएं
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(क) 1, 2 और 3
(ख) 2, 3 और 4
(ग) केवल 1 और 3
(घ) केवल 2 और 4
उत्तर. (ग)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार-जीवनशैली में बदलाव आवश्यक है। खासकर प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। जैसा कि विकल्प (3) में वर्णित है। जन्तु प्रोटीन हेतु मांस का उपभोग कम से कम होना चाहिए। खाद्य प्रशासन संगठन (FAQ)का दावा है कि ग्रीन हाउस गैसों का लगभग 18% भाग पशुधन से उत्सर्जित होता है। अतः विकल्प (1) भी सत्य है।
प्रश्न.154. हम जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर क्यों बने हुए हैं ? (2014)
1. अपर्याप्त प्रैद्योगिकीय विकास
2. अनुसंधान और विकास के लिए अपर्याप्त निधियां
3. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की अपर्याप्त उपलब्धता
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(क) केवल 1
(ख) केवल 2 और 3
(ग) केवल 1 और 3
(घ) 1, 2 और 3
उत्तर. (घ)
उपाय.
हम भारतीयों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता जारी है। इसका कारण है ऊर्जा के अन्य रूपों हेतु अनुसंधान व विकास के लिए निवेश का अभाव जो कि हमारे यहां बहुत ही आसानी से उपलब्ध हैं। तकनीकी विकास की कमी के कारण, आसानी से उपलब्ध संसाधन जैसे -वायु, सौर तथा बायोमास ऊर्जा का दोहन नहीं हो पाता है।
प्रश्न.155. परिच्छेद के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना हमारे लिए किस तरह सहायक हैं ? (2014)
1. इससे लोक स्वास्थ्य पर व्यय घटता है
2. इससे पशुधन पर निर्भरता घटती है
3. इससे ऊर्जा आवश्यकताएं घटती हैं
4. इससे भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन की दर घटती है
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(क) 1, 2 और 3
(ख) 1, 3 और 4
(ग) 2, 3 और 4
(घ) केवल 1 और 4
उत्तर. (घ)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार - ग्रीन हाउस गैसों के उपयोग में कमी लाकर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। जिसके कारण जनस्वास्थ्य में वृद्धि होगी। इसके परिणाम स्वरूप जनस्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में कमी आएगी जैसा कि विकल्प (1) में कहा गया है। वैज्ञानिकों ने पहले से ही भविष्यवाणी की है कि आगामी 30 वर्षो में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। तथा उसके बाद भी यह प्रभाव जारी रहेगा। अतः विकल्प (4) भी सत्य है।
प्रश्न.156. इस परिच्छेद का सारभूत संदेश क्या है ? (2014)
(क) हम जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर बने हुए हैं
(ख) ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना अत्यावश्यक है
(ग) हमें अनुसंधान और विकास में निवेश करना ही चाहिए
(घ) लोगों को अपनी जीवन-शैली बदलनी ही चाहिए
उत्तर. (ख)
उपाय.
परिच्छेद द्वारा प्रदत्त आवश्यक संदेश यह है कि वातावरण में उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैस की मात्रा में काफी हद तक कमी लाना अति आवश्यक है।
निम्नलिखित 5 (पांच) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
निम्नलिखित दो परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेद के आगे आने वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इन प्रश्नांशों के आपके उत्तर इन परिच्छेदों पर ही आधारित होने चाहिए।
परिच्छेद - 1
हाल के वर्षों में, भारत न केवल खुद अपने अतीत की तुलना में, बल्कि अन्य देशों की तुलना में भी, तेजी से विकसित हुआ है। किन्तु इसमें किसी आत्मसंतोष की गुंजाइश नहीं हो सकती, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इससे भी अधिक तीव्र विकास करना और इस संवृद्धि के लाभों को, अब तक जितना किया गया है उससे कहीं अधिक व्यापक रूप से, अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाना सम्भव है। उन सूक्ष्म संरचनात्मक परिवर्तनों के प्रकारों के ब्यौरों में जाने से पहले, जिनकी हमें सकल्पना करने और फिर उन्हें कार्यान्वित करने की जरूरत है, समावेशी संवृद्धि के विचार को विस्तार से देखना सार्थक होगा, जो कि इस सरकार की विभिन्न आर्थिक नीतियों और निर्णयों के पीछे एक निरूपक संकल्पना निर्मित करता है। समावेशी संवृद्धि में रूचि रखने वाला राष्ट्र इसी संवृद्धि को एक भिन्न रूप में देखता है जो इस पर आधारित है कि क्या संवृद्धि के लाभों का जनसंख्या के एक छोटे हिस्से पर ही अम्बार लगा दिया गया है या इनमें सभी लोगों की व्यापक रूप से साझेदारी है। अगर संवृद्धि के लाभों में व्यापक रूप से साझेदारी है तो यह खुशी की बात है, पर अगर संवृद्धि के लाभ एक हिस्से पर ही केंद्रित है, तो नहीं। दूसरे शब्दों में, संवृद्धि को अपने आप में एक साध्य की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सभी तक संपन्नता पहुंचाने के एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
भारत के स्वयं के अतीत के अनुभव तथा दूसरे राष्ट्रों के अनुभव भी, यह सुझाते हैं कि संवृद्धि गरीबी के उन्मूलन के लिए आवश्यक तो है परन्तु यह एक पर्याप्त शर्त नहीं है। दूसरे शब्दों में, संवृद्धि को बढ़ाने की नीतियों को ऐसी और नीतियों से सम्पूरित किया जाना आवश्यक है जो यह सुनिश्चित करें कि अधिकाधिक लोग सवृंद्धि की प्रक्रिया में शामिल हों, और यह भी, कि ऐसी क्रियाविधियां उपलब्ध हों जिनसे कुछ लाभ ऐसे लोगों में पुनर्वितरित किए जाएं जो बाजार-प्रक्रिया में भागीदार होने में अक्षम हैं और इस कारण पीछे छूट जाते हैं।
समावेशी संवृद्धि के इस विचार को एक अधिक सुस्पष्ट रूप देने का एक सरल तरीका यह है कि किसी राष्ट्र की उन्नति को उसके सबसे गरीब हिस्से, उदाहरणार्थ, जनसंख्या के सबसे निचले 20 प्रतिशत की उन्नति के आधार पर मापा जाए। जनसंख्या के इस सबसे निचले पांचवें हिस्से की प्रति व्यक्ति आय को मापा जा सकता है और आय की वृद्धि दर की गणना भी की जा सकती है और सबसे गरीब हिस्से से सम्बन्धित इन मापकों के आधार पर हमारी आर्थिक सफलता का आकलन किया जा सकता है। यह दृष्टि आकर्षक है, क्योंकि यह संवृद्धि की उस उपेक्षा नहीं करती जैसी कि कुछ पहले से परम्पराविरुद्ध मानदण्डों में की जाती थी।
यह बस जनसंख्या के सबसे गरीब हिस्से की आय की वृद्धि को ही देखती है। यह इसे भी सुनिश्चित करती है कि ऐसे लोगों की भी उपेक्षा न हो जो इस निचले पाचंवें हिस्से से बाहर हैं। अगर ऐसा हो, तो पूरी सम्भावना है कि वे लोग भी इस निचले पांचवें हिस्से में आ जाएं और इस प्रकार अपने आप ही हमारी इन नीतियों का सीधा लक्ष्य बन जाएं। इस प्रकार यहां सुझाए गए मानदण्ड समावेशी संवृद्धि के विचार का सांख्यिकीय समाकलन है जो परिणामतः दो उपसिद्धांतों की ओर ले जाते हैं: यह इच्छा करना कि आवश्यक रूप से भारत ऊंची संवृद्धि प्राप्त करने का प्रयास करे और हम इसे सुनिश्चित करने के लिए कार्य करें कि संवृद्धि से सबसे गरीब हिस्से लाभान्वित हों।
प्रश्न.157. इस परिच्छेद में, लेखक की दृष्टि का केन्द्रबिन्दु क्या है ? (2014)
(क) भारत की, न केवल इसके खुद के पूर्व के निष्पादन की तुलना में बल्कि अन्य राष्ट्रों की तुलना में भी, आर्थिक संवृद्धि की प्रशंसा करना।
(ख) आर्थिक संवृद्धि की आवश्यकता पर बल देना, जो देश की सम्पन्नता की एकमात्र निर्धारक है।
(ग) उस समावेशी संवृद्धि पर बल देना, जिसमें जनसंख्या व्यापक रूप से संवृद्धि के लाभों में सहभागी होती है।
(घ) उच्च संवृद्धि पर बल देना।
उत्तर. (ग)
उपाय.
इस परिच्छेद में लेखक का कथन है कि राष्ट्र की आगामी आर्थिक संवृद्धि तथ सम्पन्नता को सुनिश्चित तभी किया जा सकता है जब समावेशी वृद्धि को लागू किया जाय, जहां संवृद्धि का लाभ पूरी जनसंख्या को प्राप्त हो न कि केवल कुछ क्षेत्रों को।
प्रश्न.158. इस परिच्छेद में, लेखक उन नीतियों का समर्थन करता है, जो (2014)
(क) आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने में सहायक होंगी।
(ख) आय के बेहतर वितरण में सहायक होंगी, चाहे वृद्धि दर कुछ भी हो।
(ग) आर्थिक संवृद्धि बढ़ाने और आर्थिक उपलब्धियों को उनमें पुनर्वितरित करने में सहायक होंगी, जो पीछे छूट रहे हैं।
(घ) समाज के सबसे गरीब हिस्सों के विकास पर बल देने में सहायक होंगी।
उत्तर. (ग)
उपाय.
लेखक का सुझाव है कि समावेशी संवृद्धि को अधिक प्रभावी बनाने के लिए हमें केवल समाज के गरीब वर्गों पर ध्यान केन्द्रित नही करना चाहिए बल्कि उच्च तथा मध्यम वर्ग को भी सम्मिलित करना चाहिए। इस प्रकार समाज के इन वर्गो द्वारा अर्जित आर्थिक लाभ को पुनर्विभाजित करके पिछड़े हुए वर्ग को प्रदान करना सम्भव होगा।
प्रश्न.159. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः (2014)
लेखक के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था विकसित हुई है किन्तु यहां
आत्मसंतोष के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि
1. संवृद्धि से गरीबी का उन्मूलन होता है।
2. संवृद्धि सभी की सम्पन्नता में परिणमित हुई है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों
(घ) न तो 1 और न ही 2
उत्तर. (घ)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार-गरीबी का उन्मूलन ही संवृद्धि के लिए पर्याप्त शर्त नही है। अतः विकल्प (1) गलत है। संवृद्धि को सभी के लिए सम्पन्नता को सुनिश्चित करने हेतु एक साधन के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए। परन्तु इसे अभी भी प्राप्त करना शेष है। अतः भारत को प्रयास जारी रखना है। इस प्रकार विकल्प (2) भी गलत है।
परिच्छेद - 2
सरकार के लिए राज्य के स्वामित्व वाली कम्पनियों को प्रायः सहमति और अनेदखी से नियंत्रित करना आसान है। इसलिए पहले कदम के रूप में वास्तव में यह करने की जरूरत है कि पेट्रोल के कीमत-निर्धारण को एक पारदर्शी सूत्र पर आधारित किया जाए- यदि कच्चे तेल की कीमत x और विनिमय दर y हो, तब हर महीने अथवा पखवाड़े पर, सरकार पेट्रोल की अधिकतम कीमत की घोषणा करे, तो उसे कोई भी व्यक्ति x और y के आधार पर परिकलित कर सकता है। यह सुनिश्चित करने हेतु नियम बनाया जाना चाहिए कि तेल का विपणन करने वाली कम्पनियां सामान्य रूप से, अपनी लागतें प्राप्त कर सकें।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई कम्पनी नवप्रवर्तनों से अपनी लागतों को कम कर ले, तो वह और अधिक लाभ प्राप्त करेगी। इस प्रकार, इस प्रणाली के अंतर्गत व्यावसायिक प्रतिष्ठान नवप्रवर्तनों की ओर अधिक प्रवृत्त और दक्ष हो जाएंगे। एक बार नियम की घोषणा हो जाए, तो सरकार की तरफ से फिर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यदि कुछ समय के लिए ऐसा कर दिया जाए, तो प्राइवेट कम्पनियां इस बाजार में पुनः प्रवेश करेंगी। और जब एक बार उनकी पर्याप्त संख्या बाजार में आ जाए, तो हम नियम-आधारित कीमत-निर्धारण को हटा सकते हैं और इसे वास्तविक रूप में बाजार पर छोड़ा जा सकता है (निश्चित रूप से सामान्य ऐंटि-ट्रस्ट (न्यास-विरोधी) विनियमों व अन्य प्रतिस्पर्धी कानूनों के अधीन रहते हुए)।
प्रश्न.160. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (2014)
परिच्छेद के अनुसार, कोई तेल कम्पनी और अधिक लाभ कमा सकती है, यदि पेट्रोल के कीमत-निर्धारण हेतु एक पारदर्शी सूत्र प्रति पखवाड़े या माह घोषित किया जाए,
1. इसके विक्रय को बढ़ाकर।
2. नवप्रवर्तनों के द्वारा।
3. लागतों में कमी करके।
4. इसके ईक्विटी शेयरों को उंची कीमतों पर बेच कर।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) 2 और 3
(ग) 3 और 4
(घ) 1, 2 और 4
उत्तर. (ख)
उपाय.
यदि कच्चे तेल की कीमत x और दर y हो तथा सरकार द्वारा ऐसा ही पारदर्शी सूत्र लागू किया जाय तो तेल कम्पनियां न्यास-विरोधी तथा अन्य प्रतियोगी कानूनों को प्रवर्तित करके लाभ प्राप्त कर सकती है। अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु उन्हे लागत मूल्य में कटौती के तरीकों को खोजना होगा। अतः विकल्प (2) तथा (3) को चयनित किया जा सकता है।
प्रश्न.161. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः (2014)
परिच्छेद के अनुसार, प्राइवेट तेल कम्पनियां तेल उत्पादन के बाजार में पुनः प्रवेश करती हैं, यदि
1. एक पारदर्शी नियम-आधारित पेट्रोल का कीमत-निर्धारण अस्तित्व में हो।
2. तेल उत्पादन के बाजार में सरकार का कोई हस्तक्षेप न हो।
3. सरकार द्वारा उपदान दिए जाते हों।
4. एंटि-ट्रस्ट (न्यास-विरोधी) विनियमों को हटा दिया गया हो।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(क) 1 और 2
(ख) 2 और 3
(ग) 3 और 4
(घ) 2 और 4
उत्तर. (क)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार प्राइवेट तेल कम्पनियां तेल उत्पादन के बाजार में पुनः प्रवेश कर सकती हैं यदि एक पारदर्शी नियम आधारित पेट्रोल का कीमत निर्धारण अस्तित्व में हो। क्योंकि वे नवप्रवर्तन, लागत मूल्य में कमी तथा अधिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम होगें जो कि किसी भी व्यवसाय के लिए एक आकर्षक प्रोत्साहन है।
निम्नलिखित 8 (आठ) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
निम्नलिखित दो परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेद के आगे आने वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इन प्रश्नांशों के आपके उत्तर इन परिच्छेदों पर ही आधारित होने चाहिए।
परिच्छेद - 1
हिमालय का पारितंत्र भूवैज्ञानिक कारणों और जनसंख्या के बढ़े हुए बोझ, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और अन्य सम्बन्धित चुनौतियों से जन्य दबाव के कारण, क्षति के प्रति अत्यंत सुभेद्य हैं। सुभेद्यता के ये पहलू जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण उत्तेजित हो सकते हैं। यह सम्भव है कि जलवायु परिवर्तन हिमालय के पारितंत्र पर, बढ़े हुए तापमान, परिवर्तित वर्षण प्रतिरूप, अनावृष्टि की घटनाओं और जीवीय प्रभावों के माध्यम से, प्रतिकूल प्रभाव डाले। यह न केवल उच्चभूमियों में रहने वाले देशज समुदायों के पूरे निर्वाह पर, बल्कि सारे देश में और उसके परे अनुप्रवाह क्षेत्र में रहने वाले निवासियों के जीवन पर भी असर डालेगा। इसलिए, हिमालय के पारितंत्र की धारणीयता बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए सभी निरूपक प्रणालियों के संरक्षण के लिए सचेत प्रयत्न करने की आवश्यकता होगी।
आगे, इस पर बल देने की आवश्यकता है कि सीमित व्याप्ति वाले, और बहुधा विशेषीकृत आवासीय आवश्यकताओं वाले विशेषक्षेत्री घटक सर्वाधिक सुभेद्य घटकों में से है। इस संदर्भ में, हिमालय का जैवविविधता वाला तप्तस्थल, जो विशेषक्षेत्री विविधता से संपन्न है, जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है। इसके खतरों में, आनुवंशिक संसाधनों और जातियों, आवासों का सम्भावित क्षय और सहगामी रूप से, पारितंत्र के लाभों में कमी का आना शामिल है। इसलिए इस क्षेत्र के लिए संरक्षण योजनाएं बनाते समय, निरूपक पारितंत्रों/आवासों में विशेष क्षेत्री घटकों के संरक्षण का अत्यंत महत्त्व हो जाता है।
उपर्युक्त को हासिल करने की दिशा में, हमें समकालीन संरक्षण उपागमों की ओर ध्यान अंतरित करना होगा, जिसमें संरक्षित क्षेत्र-प्रणालियों के बीच दृश्यभूमि स्तर की अंतर्संयोजकता का प्रतिमान शामिल है। यह संकल्पना, जाति-आवास पर ध्यान केंद्रित करने की जगह जैवभौगोलिक परास को विस्तारित करने पर समावेशी ध्यान-संकेंद्रण करने का पक्षसमर्थन करती है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक समंजन सीमित हुए बिना आगे बढ़ सकें।
प्रश्न.162. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (2014)
परिच्छेद के अनुसार, पारितंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावस्वरूप
1. इसके वनस्पतिजात और प्राणिजात में से कुछ का स्थायी विलोपन हो सकता है।
2. स्वयं पारितंत्र का स्थायी विलोपन हो सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों
(घ) न तो 1 और न ही 2
उत्तर. (घ)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार, पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव के कारण जंतुओं की कुछ निश्चित प्रजाति तथा उनके निवास को हानि पहुचं सकती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं में ह्रास आ सकता है। अतः न तो विकल्प (1) न ही (2) सही है।
प्रश्न.163. निम्नलिखित में से किस एक कथन का सबसे सटीक निहितार्थ यह है कि समकालीन संरक्षण उपागम की ओर ध्यान अंतरित करने की आवश्यकता है ? (2014)
(क) प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हिमालय के पारितंत्र पर दबाव डालता है
(ख) जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षण प्रतिरूपों में बदलाव, अनावृिष्ट की घटनाएं और जीवीय हस्तक्षेप होता है।
(ग) समृद्ध जैवविविधता, जिसमें विशेषक्षेत्री विविधता शामिल है, हिमालय क्षेत्र को एक जैवविविधता तप्तस्थल बनाता है।
(घ) हिमालय के जैवभौगोलिक क्षेत्र को इस तरह समर्थ बनाना चाहिए कि वह अबाध रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल बनता रहे।
उत्तर. (घ)
उपाय.
परिच्छेद का स्पष्ट कथन है कि तापक्रम परिवर्तन, परिवर्तित वर्षण प्रतिरूप तथा अनावृष्टि की घटनाओं के कारण हिमालय के पारितंत्र पर प्रतिफूल प्रभाव पड़ सकता है जिसके परिणाम स्वरूप मानव के साथ-साथ जन्तु तथा पादपों की कई प्रजातियों की मृत्यु हो सकती है। किन्तु परिच्छेद का मुख्य लक्ष्य यह बताना है कि हिमालयी परितंत्र की धारणीयता को बनाए रखने की आवश्यकता है।
प्रश्न.164. इस परिच्छेद द्वारा क्या सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया गया है ? (2014)
(क) विशेक्ष क्षेत्रीयता हिमालयी क्षेत्र की लाक्षणिक विशेषता है
(ख) संरक्षण प्रयासों का बल कतिपय जातियों या आवासों के स्थान पर जैवभौगोलिक परासों पर होना चाहिए।
(ग) जलवायु परिवर्तन का हिमालय के पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है।
(घ) हिमालय के पारितंत्र के अभाव में, उच्चभूमियों और अनुप्रवाह क्षेत्रों के समुदायों के जीवन का कोई धारण-आधार नहीं होगा।
उत्तर. (ख)
उपाय.
परिच्छेद में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संदेश इसके अंतिम कुछ पंक्तियों में निहित है। तथ्य यह है कि हमारा ध्यान मात्र प्रजाति निवास तक केन्द्रित न हो कर सम्पूर्ण जैव परास अर्थात मानव के साथ-साथ पादप तथा जन्तु जगत तक विस्तृत होना चाहिए। ताकि अधिक प्रभावी ढंग से जलवायु समायोजन को क्रियान्वित किया जा सके।
प्रश्न.165. परिच्छेद के संदर्भ में, निम्नलिखित पूर्वधारणाएं बनाई गई हैं: (2014)
1. प्राकृतिक पारितंत्र बनाए रखने के लिए, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का पूरी तरह परिहार किया जाना चाहिए।
2. पारितंत्र को, न केवल मानवोद्भविक, बल्कि प्राकृतिक कारण भी प्रतिकूलतः प्रभावित कर सकते हैं।
3. विशेषक्षेत्री विविधता के क्षय से पारितंत्र का विलोपन होता है।
उपर्युक्त धारणाओं में से कौन-सी सही है/ हैं ?
(क) 1 और 2
(ख) केवल 2
(ग) 2 और 3
(घ) केवल 3
उत्तर. (ख)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार, मात्र मानवीय गतिविधियों के कारण ही वातावरणीय प्रदूषण नहीं हो रहा है, बल्कि प्राकृतिक कारण से भी जलवायु तंत्र पर प्रतिवूफल प्रभाव पड़ सकता है। इस तथ्य का उल्लेख परिच्छेद के प्रथम चार पक्तियों में किया गया है।
परिच्छेद - 2
यह अक्सर भुला दिया जाता है कि विश्वव्यापीकरण केवल अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों और लेन देन संबंधी नीतियों के बारे में ही नहीं है, बल्कि इसका सरोकार समान रूप से राष्ट्र की घरेलू नीतियों से भी है। अंतर्राष्ट्रीय रूप से (WTO आदि द्वारा) मुक्त व्यापार और निवेश प्रवाह संबंधी नियत दशाओं को पूरा करने हेतु किए गए आवश्यक नीतिगत परिवर्तन प्रत्यक्षतः घरेलू उत्पादकों तथा निवेशकों को प्रभावित करते हैं। किन्तु विश्वव्यापीकरण में अधःशायी आधारभूत दर्शन कीमतों, उत्पादन तथा वितरण प्रतिरूप के निर्धारण के लिए बाजारों की अबाध स्वतंत्रता पर बल देता है, तथा सरकारी हस्तक्षेपों को उन प्रक्रियाओं के रूप में देखता है जो विकृति उत्पन्न करती है तथा अदक्षता लाती है। अतः सार्वजनिक उद्यमों का विनिवेशों तथा विक्रयों द्वारा निजीकरण हो, और अभी तक जो क्षेत्र और कार्यकलाप सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित हैं, आवश्यक है कि उन्हें प्राइवेट क्षेत्र के लिए खोल दिया जाए। इस तर्क का विस्तार शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं तक है।
कामगारों की छंटनी के माध्यम से श्रम बल का समायोजन करने पर लगे प्रतिबंध हटा लिए जाने चाहिए तथा तालाबंदी पर लगे प्रतिबंधों को हटाकर निर्गमन को अपेक्षाकृत आसान बनाया जाना चाहिए। रोजगार तथा वेतन बाजार शक्तियों को स्वतंत्र गतिविधियों द्वारा शासित होना चाहिए, क्योंकि उनको नियंत्रित करने में कोई भी उपाय निवेश को हतोत्साहित कर सकते हैं तथा उत्पादन में अदक्षता भी उत्पन्न कर सकते हैं। सर्वोपरि रूप से राज्य की भूमिका में कमी लाने के समग्र दर्शन के अनुरूप, ऐसे राजकोषीय सुधार किए जाने चाहिए जिनसे आमतौर पर कराधन के स्तर निम्न हों तथा वित्तीय विवेक के सिद्धांत के पालन हेतु शासकीय खर्च न्यूनतम हो। ये सब घरेलू स्तर पर किए जाने वाले नीतिगत कार्य हैं तथा विश्वव्यापीकरण कार्यसूची के सारभाग विषयों, यथा, माल और वित्त के स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह से प्रत्यक्षतः संबंधित नहीं हैं।
प्रश्न.166. इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण के अंतर्गत सरकारी हस्तक्षेपों को ऐसी प्रक्रियाओं के रूप में देखा जाता है, जिनके कारण (2014)
(क) अर्थव्यवस्था में विकृतियां और अदक्षता आती है।
(ख) संसाधनों का इष्टतम उपयोग होता है।
(ग) उद्योगों को अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रदता होती है।
(घ) उद्योगों के संबंध में बाजार शक्तियों की गतिविधि स्वतंत्र होती है।
उत्तर. (क)
उपाय.
परिच्छेद के अनुसार, सरकारी हस्तक्षेप के कारण अर्थव्यवस्था में विकृति तथा अदक्षता का प्रादुर्भाव होता है। इसका कारण है भ्रष्टाचार तथा उद्यमियों द्वारा निवेश के प्रति रूचि का अभाव।
प्रश्न.167. इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण का आधारभूत दर्शन क्या है ? (2014)
(क) कीमतों और उत्पादन के निर्धारण के लिए उत्पादकों को पूर्ण स्वतंत्रता देना
(ख) वितरण प्रतिरूप विकसित करने हेतु उत्पादकों को स्वतंत्रता देना
(ग) कीमतों, उत्पादन और रोजगार के निर्धारण हेतु बाजारों को पूर्ण स्वतंत्रता देना
(घ) आयात और निर्यात के लिए उत्पादकों को स्वतंत्रता देना
उत्तर. (ग)
उपाय.
प्रथम परिच्छेद का कथन है कि वैश्वीकरण का आधारभूत दर्शन- मूल्य निर्धारण, माल उत्पादन तथा स्वयं के मानदंड के अनुसार उन्हे वितरित करने की बाजार हेतु पूर्ण स्वतंत्रता को सुचिश्चित करना है।
प्रश्न.168. इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा/से आवश्यक है/ हैं ? (2014)
1. सार्वजनिक उद्यमों की निजीकरण
2. सार्वजनिक व्यय की विस्तार नीति
3. वेतन और रोजगार निर्धारित करने की बाजार शक्तियों की स्वतंत्र गतिविधि
4. शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं का निजीकरण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(क) केवल 1
(ख) केवल 2 और 3
(ग) 1, 3 और 4
(घ) 2, 3 और 4
उत्तर. (ग)
उपाय.
परिच्छेद स्पष्ट करता है कि विश्व व्यापार संगठन द्वारा निर्धारित शर्तो के अनुसार वैश्वीकरण हेतु सार्वजनिक क्षेत्रों का नीजिकरण होना चाहिए। अतः विकल्प (ग) सही है रोजगार तथा वेतनमान का निर्धारण बाजार की शक्तियों द्वारा होना चाहिए।
प्रश्न.169. इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण की प्रक्रिया में राज्य की भूमिका कैसी होनी चाहिए ? (2014)
(क) विस्तृत होती हुई
(ख) घटती हुई
(ग) सांविधिक
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर. (ख)
उपाय.
सम्पूर्ण परिच्छेद का मुख्य आशय यह है कि राज्य को वैश्वीकरण की प्रक्रिया में कम भूमिका निभानी चाहिए। इसका स्पष्टीकरण परिच्छेद की अंतिम कुछ पंक्तियों में किया गया है जिसमें विशेषकर भारत को संदर्भित किया गया है।
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