UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हशमेल
 अगर आप अपने कारोबार ई-मेल का प्रयोग करते हैं तो आपके लिए एक अच्छी खबर है। अब कम्प्यूटर सेंधमारों से आपके आंकड़े बचाने के लिए नया ई-मेेल सिस्टम ‘हशमेल’ आ गया है। यह सिस्टम एक विशेष पेटेंट कराये गये कोड तकनीक के द्वारा आपके ई-मेल आंकड़ों के संदेशों की गोपनीयता बरकरार रखता है। यहां तक कि अमेरिकी सरकार भी इसका उल्लघंन नहीं कर सकती है। हशमेल को हश कम्यूनिकेशन ने तैयार किया है। कम्पनी इसके बारे में इतनी निश्चित है कि उसने इंटरनेट पर इसका कोड पेश कर विशेषज्ञों को जांच के लिए भी मौका दिया है। एक माह के भीतर ही इसे प्रयोग करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है तथा रोजाना करीब डेढ़ हजार लोग इससे जुड़ रहे हैं।

 ‘हशमेल’ याहू व हाॅटमेल की भांति मुफ्त ई-मेल वेबसाइट है और कारोबार जगत के लिए के बहुत फायदेमंद हो सकता है। इससे वकील अपने सहयोगियों व मुवक्किल से केस के बारे में गुप्त बातें भी बिना किसी भय के कर सकते हैं। बैंक क्षेत्रा व वित्त मामलों में हशमेल किसी भी किस्म की सेंधमारी से बचाता है। इस सुविधा का फायदा उठाने के लिए आपको वेबसाइट पर जाकर एक प्रवेश फार्म भरना होगा। एक महत्वपूर्ण बात /यान रखें कि हशमेल आपके संदेश को गोपनीयता तब तक ही बरकरार रखेगा जब तक आप उसे किसी ऐसे व्यक्ति को भेज रहे हों जो खुद हशमेल प्रयोग कर रहा है।

 यह कैसे काम करता है? - यह समझा जाता है कि ई.मेल एक प्वाइंट-टू-प्वाइंट मीडियम है और इसमें संदेश सीधे एक व्यक्ति से दूसरे के पास जाता है। जबकि वास्तव में ई-मेल के द्वारा भेजी जाने वाली सूचना अनेकों कम्प्यूटरों से हो कर गुजरती है व इससे कहीं भी छेड़-छाड़ की जा सकती है। हशमेल के द्वारा जब आप संदेश भेजते हैं तब यह एक विशेष कोड युक्त होता है और इसे कोई भी इंटरनेट विशेषज्ञ खोल नहीं सकता है। सिर्फ आपका पासवर्ड ही आपके संदेश को खोलेगा। इसलिए आपका पासवर्ड जितना जटिल होगा, आपके संदेश उतने ही गोपनीय रहेंगे।

किन्तु हशमेल के कारण सुरक्षा एजेंसियों की चिंता भी बढ़ी है। उन्हें आशंका है कि आतंकवादी व अपराधी इसका प्रयोग कर खतरनाक सूचनाएं एक-दूसरे को भेज सकते हैं और उनके लिए इसकी जांच संभव नहीं हो पाएगी। हालांकि हशमेल के फाॅर्म में नियम व कानूनों का पालन करने के निर्देश हैं, पर अपराधी शायद ही इसकी परवाह करें।

नाभिकीय चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण तिथियां
 1896    हेनरी बेकेरल द्वारा यूरेनियम से उत्सर्जित गप्त विकिरणों की खोज। 
 1897    मैरी क्यूरी ने इन गुप्त विकिरणों को ‘रेडियोएक्टिविटी’ का नाम दिया।
 1901    हेनरी अलेक्जेन्ड्री डालोस और यूजीन ब्लोच और यूजिन ब्लोच ने रेडियम को टूयबरक्यूलोसिस से क्षतिग्रस्त चमड़े के पास लाया।
 1903    अलेक्जेन्डर ग्राहम बेल ने यह सुझाव दिया कि जहां ट्यूमर है, वहां रेडियम की उपस्थिति है।
 1913    फ्रेडरिक प्रोइश्चस ने पहली बार इन्टारवेन रेडियम इन्जेक्शन का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया।
 1924    जाॅर्ज डे हेवेशी, जे.ए. क्रिश्यिचन और स्वेन लोमहोल्ट ने पहली बार पशुओं पर रेडियोट्रेसर (लेड और बिस्मथ) का प्रयोग किया।
 1932    अर्नेस्ट ओ. लाॅरेंस और एम. स्टेनले लिविंगस्टोन ने “अति वेग वाले विद्युत आयन का उत्पादन बिना किसी अत्यधिक वोल्टेज के“ विषय पर अपना पहला लेख प्रकाशित किया। यह रेडियोन्यूक्लाइड्स की मात्रा के उत्पादन में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ।
 1936    जाॅन,एच, लाॅरेंस ने पहला क्लीनिकल थिरैप्यूटिकल एप्लिकेशन का उपयोग फाॅसफोरस.32 की मदद से ल्यूकेमिया के लिए किया।
 1937    जाॅन लिविनगुड, फ्रेड फेयरब्रदर और ग्लेन सीबोर्ग ने आयरन.59 की खोज की। जाॅन लिविनगुड और ग्लेन सीबोर्ग ने आयोडीन.131 और कोबाल्ट.60 खोज की। 
 1939    एमिलियो सेग्रि और ग्लेन सीबोर्ग ने टेक्नेटियम.99 खोज की।
 1940    राॅकफेलर फाउंडेशन ने पहली साइक्लोट्राॅन, जो कि वाशिंगटन विश्वविद्यालय में बायोमेडिकल रेडियोआइसोटोप उत्पादन के लिए समर्पित है, दान प्रदान किया।
 1946    सैमुअल एम.सीडलिन, लियो डी. मेरीनेयली और एलीनोर ओस्त्रोरी ने एक रोगी के थाइराॅइड कैंसर का उपचार आयोडिन.131 से किया।
 1947    बेनेडिक्ट कैसिन ने रेडियोआयोडीन की मदद से यह पता लगाया कि वास्तव में थाइराॅयड नोड्यूल आयोडीन संचय करता है कि नहीं।
 1948    एबोट लेबोरेटरीज ने रेडियो आइसोटोप्स का वितरण शुरू किया।
 1950    के.आर. क्रिसपेल और जाॅन पी. स्टोरैसिली ने आयोडिन.131 लेबेल्ड ह्यूमेन सीरम एल्ब्यूमिन का उपयोग हृदय में स्थित ब्लड पूल के प्रतिबिंबन के लिए किया।
 1951    यू.एस. फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने सोडियम आयोडायडीन1.131 का उपयोग थाइराॅयड रोगी के लिए करने का अनुमोदन किया।
 1953    गाॅर्डन ब्राउनवेल और एच.एच. स्वीट ने पाॅजीट्राॅन डिटेक्टर का निर्माण किया।
 1954    डेविड कुल ने रेडियोन्यूक्लाइड स्कैनिंग के लिए फोटो रिकार्डिंग सिस्टम का आविष्कार किया। आगे चलकर यही रेडियोलाॅजी में उपयोग किया गया।
 1955    रेक्स हफ ने यह मापा कि किसी मनुष्य द्वारा आयोडीन.131 ह्यमेन सीरम एल्ब्यूमिन उपयोग रने से कितना कारडिएक आउटपुट होता है।
 1958    हाल एंगर ने सिन्टीलेशन कैमरे का आविष्कार किया।
 1960    लुइ जी. स्टैंग और जूनियर पाॅवेल ने टेक्नेटियम.99 ड का प्रचार किया। तब तक इसका उपयोग न्यूक्लियर मेडिसन के लिए नहीं किया गया।
 1962    डेविड कुल ने एमीशन रीकंस्ट्रक्शन टोमोग्राफी का प्रचार किया।
 1963    एफ.डी.ए ने न्यू ड्रग को रेडियोफार्मास्टयूटिक्लस के लिए वर्जित किया, जो कि परमाणु ऊर्जा आयोग द्वारा प्रतिबंधित है।
 1969    सी.एल. एडवार्ड ने यह रिपोर्ट दी कि कैंसर में गैलियम.67 का संचयन होता है।
 1971    अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने कार्यात्मक तौर पर यह घोषणा की कि नाभिकीय चिकित्सा एक मेडकल विशिष्टता है।
 1973    एच.विलियम स्ट्राॅस ने एक्सरसाइज स्ट्रेस ने एक्सरसाइज स्ट्रेस टेस्ट मायोकारडिएल स्केन का प्रचार किया।
 1976    जाॅन किज ने आम तौर पर उपयोग किये जाने वाले ‘स्पेक्ट’ कैमरे का प्रचार किया।
 1978    डेविड गोल्डनबर्ग ने मनुष्य के रेडियो लेवेल्ड एन्टीबाॅडिज का उपयोग किया।
 1981    जे.पी. मैक ने ट्यूमर प्रतिबिंबित करने के लिए रेडियो लेवेल्ड मोनोक्लोनल एन्टीबाॅडीज का उपयोग किया।
 1983    स्टीव लारसेन और जेफ कैरास्क्यूलो ने आयोडीन.131 लेवेल्ड मोनोक्लोनल एन्टीबाॅडीज का उपयोग करके मैलिगेन्ट मेलानोमा द्वारा कैंसर रोगियों का उपचार किया।
 1989    एफ.डी.ए. ने मायोकारडिएल परफ्यूजन इमेजिंग पाॅजीट्राॅन रेडियो फार्मास्यूटिकल को अनुमोदित किया।
 1992    एफ.डी.ए. ने ट्यूमर इमेजिंग के लिए पहले मोनोक्लोनल एन्टीबाॅडी रेडियोफार्मास्यूटिकल्स को अनुमोदित किया।
 (इसके बाद की जानकारी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अ/याय में एवं समसामयिकी में मिलेगी।)

 

एड्स रोग
 एड्स के इलाज के क्षेत्रा में वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि का दावा किया है। वैज्ञानिकों ने दवाओं के एक ऐसे मिश्रण का पता लगाया है जिसकी मदद से एड्स पीड़ित व्यक्ति के खून से एचआईवी को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है। अमेरिका के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फाॅर एलर्जी एंड इनफेक्सस डिजीजेज’ में कार्यरत एवं एड्स पर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता हासिल करने वाले चिकित्सक एंथोनी फाउसी ने नयी दिल्ली में आयोजित प्रतिरक्षा विज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में इस दवा के मिश्रण का खुलासा किया। उसके अनुसार एड्स के विषाणु (एचआईवी) सीडी.4 कोशिकाओं में छिपे रहते हैं और किसी भी समय प्रजनन करने की उनकी क्षमता अप्रभावित रहती है।
 डाॅ. फाउसी ने बताया कि प्रतिरक्षी कोशिकाओं में एक विशेष तरह ‘इंटरल्यूकिंस’ पायी जाती है। एड्स के इलाज के लिए पहले से ही मौजूद तीन दवाओं के मिश्रण (HAART) में यदि इस प्रोटीन को भी मिला दिया जाए तो इस तरह तैयार दवा के सेवन से एड्स संक्रमित व्यक्ति की सीडी.4 कोशिकाओं से ‘ह्यूमन इम्यूनो डेफिसियेंसी वायरस’ (HIV) को पूरी तरह नष्ट किया जा सकता है। अभी तक एड्स पीड़ितों को जो दवा दी जा रही थी उससे एचआईवी को सिर्फ रक्त कोशिकाओं से पूरी तरह नष्ट कर पाना संभव हो पाता था। लेकिन अब यह दवा एचआईवी को सीडी.4कोशिकाओं में जिंदा नहीं रहने देगी और वहां से उन्हें समूल नष्ट करने में कारगर साबित होगी। सीडी.4 कोशिकाओं में छिपे रहने की वजह से ही एचआईवी नष्ट नहीं हो पाते और एड्स का संपूर्ण इलाज संभव नहीं हो पाता। डाॅ. फाउसी के मुताबिक वैज्ञानिक के सहयोग से एड्स इलाज के त्रि-औषधि फार्मूले में ‘इंटरल्यूकिंस’ प्रोटीन का संयोग कर एचआईवी का समूल विनाश सुनिश्चित किया गया। ऐसा पहली बार संभव हो सका है। अब वैज्ञानिक इस बात का अ/ययन कर रहे हैं कि क्या इस नये फार्मूले की मदद से लिम्फ ऊतको से भी एचआईवी  को समाप्त किया जा सकता है। डाॅ0 फाउसी ने नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एड्स के 14 मरीजों पर इंटरल्यूकिंस प्रोटीन का त्रि-औषधि फार्मूले के साथ संयोग पर प्रभाव देखा। यह दवा एक सप्ताह तक एड्स रोगियों को दी गयी जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए।


 

अन्वेषण

  • अटंर्कटिका में खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को 1200 फुट की गहराई में प्राचीन काल का जीवित बैक्टीरिया मिला है। इस खोज के साथ ही पृथ्वी से परे अत्यंत ठंडे और अंधेरे स्थानों में भी जीवन की मौजूदगी की संभावना हो गयी है। वोस्टोक केन्द्र के नीचे ताजे पानी की एक भूमिगत झील के ऊपर जहां से जीवित बैक्टीरिया मिला है वह स्थान सूर्य की किरणों की पहुंच से बहुत दूर है। इस सन्दर्भ में सवाल यह है कि पृथ्वी के जीवन का मुख्य ऊर्जा स्रोत सूर्य के बिना ही आखिर इस बैक्टीरिया को ऊर्जा कहां से मिलती रही।
  •  रेखागणित में वृत्त की परिधि तथा व्यास से पारस्परिक अनुपात को दर्शाने वाले ‘पाई’ (π) का नया शुद्धतम मान निकालने का दावा कुमांऊ विश्वविद्यालय (उ.प्र.) के ओंकार उपा/याय ने किया है। इस खोज से दशमलव में भी पाई का अंतिम मान निकल जाता है जबकि अब तक ज्ञात मान का दशमलवीय रूपांतरण अनंत हो जाता था। परम्परागत रूप से पाई का मान 22/7 अर्थात् परिधि तथा व्यास को अत्याधुनिक उपकरणों से नाप कर यह मान 22 के बाद 8 शून्य और नौवें स्थान पर एक होने का दावा किया है। इस प्रकार दशमलव में इसका मान 2.142857143 होता है जबकि 22/7 का मान 3.1442857 होता है और दशमलव के बाद में छह अंकों की अनंत बार पुनरावृत्ति होती रहती है। आर्यभट्ट प्रथम के अनुसार, वृत्त की परिधि और व्यास के बीच अनुपात 21.9912 और होता है। तब उसका दशमलव में मान 3.1416 निकलता है। जबकि आर्यभट्ट द्वितीय के मुताबिक यह संबंध 22 और 7 का होता है।
  •  मानव और सेक्स बिल्लियों के सेक्स गुणसूत्रा समान पाये गये हैं। अमेरिकी अनुसंधानकर्ता विलियम मर्फी और स्टीफन ओ ‘ब्रायन ने यह खोज की है कि मानव और बिल्ल्यिों के ‘एक्स’ और ‘वाई’ क्रोमोजोम्स पर एक ही प्रकार के जीवतत्व (जीन्स) लगे होते हैं। इस खोज से वैज्ञानिक बिल्लियों के मा/यम से पुरुष के मां बनने की सम्भावना सहित मानव लैंगिकता का अ/ययन कर सकते हैं। ज्ञातव्य है कि स्तनधारियों के ‘एक्स’ और ‘वाई’ एरोमेटिक प्लांट्स (CIMP) लखनऊ ने किया है। इस संस्था ने इस मिंट का पेटेन्ट ‘हिमालय’ के नाम से जून 1999 में अमेरिका में कराया। इसका पेटेन्ट नम्बर पीपी 10935 है। 80 के दशक में भारत मिंट तेल का आयात कर रहा था, लेकिन अब वह न सिर्फ मिंट के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि इस तेल के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक के रूप में उभरा है।


सिद्धा चिकित्सा
 प्राचीन चिकित्सा पद्धति ‘सिद्धा’ आने वाले दिनों में एड्स रोगियों के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। तमिलनाडु में अब इस पद्धति से एड्स रोगियों का इलाज किया जा रहा है, जिसके आशाजनक परिणाम मिले हैं। चेन्नई के ताम्बरम् अस्पताल में भर्ती 248 रोगियों में से कुछ का इलाज सिद्धा चिकित्सा पद्धति से किया जा रहा है। 
 इस चिकित्सा के तहत जड़ी-बूटियों के रस से तैयार की गयी दवाइयां एड्स रोगी में रोग से लड़ने की क्षमता पैदा करती है। विशेष बात यह है कि एड्स रोगियों को एलोपैथिक दवाइयों के साथ-साथ सिद्धा की औषधियां भी दी जा रही हैं। ऐसा दावा किया गया है कि सिद्धा पद्धति से उपचार वाले रोगियों की स्थिति बाकी से अच्छी है और निरंतर सुधार हो रहा है। इस उपचार के बाद रोगियों के परीक्षण से पता लगा है कि इनमें एड्स वायरस की वृद्धि को रोकने में सिद्धा दवाइयां कारगर साबित हुई हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में सिद्धा औषधियां एड्स पर काबू पाने में सफल साबित होंगी। यदि यह पद्धति एड्स रोगियों में प्रतिरोधात्मक क्षमता पैदा कर सकी तो फिर एड्स पर नियंत्राण कर पाने में सफलता मिल सकती है।               

 

अल - नीनो 
 अल-निनो एक ऐसी मौसम संबंधी क्रिया है, जो पानी के बढ़ते तापक्रम तथा घटते वायुमंडलीय दाब से प्रकट होती है। यह आमतौर से म/य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर से आरंभ होती है तथा सारी दुनिया के जलवायविक प्रतिदर्श को तहस-नहस कर देती है। यह दरअसल दक्षिणी प्रशांत महासागर की सबसे बड़ी तथा बार-बार घटित होने वाली ऐसी जलवायविक घटना है, जिसका प्रभाव संपूर्ण विश्व में अनुभव किया जाता है। इसके कारण दक्षिण अफ्रीका में सारी फसलें नष्ट हो गयीं, सान्टा मोनिका में भंयकर तुफान आया और संपूर्ण एशिया में मानसून बाधित हो गया। कैलिफोर्निया में तूफान ने भंयकर कोहराम मचा दिया। पिछले कुछ समय से यह पूरी तरह स्पष्ट होता जा रहा है कि महासागरों में जो कुछ नाटकीय घटनाएं होती हैं, वे सारे विश्व को प्रभावित करती हैं। अल-नीनो प्राकृतिक रूप से घटने वाली ऐसी ही एक दुर्घटना है।
 अल-नीनो प्रशांत महासागर की वह गर्म धारा है, जो दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटों से होती हुई दक्षिण की ओर बहती है। यह सामान्यतया इक्वाडोर तथा पेरू के तटों से दूर ठंडे जल को गर्म कर देती है। ‘अल-नीनो’ स्पेनी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- ‘शिशु’। चूंकि यह अधिकतर क्रिसमिस के आसपास आती है, इसलिए इसे प्रभु ईसा मशीह के शिशु की संज्ञा दी गयी है।
 यूं तो गर्म धाराएं कमोवेश हर साल ही बनती हैं, जो आमतौर से दिसंबर या जनवरी से मार्च तक चलती हैं। लेकिन वैज्ञानिक इसे अल-नीनो तभी कहते हैं, जब यह घटना लंबे समय तक चलती है और इसका प्रभाव दूर-दूर तक होता है। अल-नीनो की सबसे पहली घटना 1726 ई. में रिकाॅर्ड की गयी थी। उसके बाद लगभग प्रत्येक चार वर्ष के बाद यह घटती रही है। समुद्र जल के बहुत अधिक गर्म हो जाने के कारण समुदी जीव बड़ी संख्या में नष्ट हो जाते हैं और प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है। वैज्ञानिक अभी निश्चित रूप से यह बता पाने की स्थिति में नहीं है कि केंद्रीय प्रशांत महासागर की सतहों का बढ़ता तापक्रम किस प्रकार कई महीनों के बाद दुनिया भर में मौसम संबंधी समस्याएं उत्पन्न करता है। अपरोक्ष रूप से सागरीय धाराएं अल-नीनो प्रभाव को उत्तर में अलास्का तथा जापान तक और दक्षिण में अंध महासागर तक ले जाती हैं। तापक्रम की अनियमितताएं ऊपरी वायुमंडल में वायु प्रवाह को आधिक कर देता है, जिसके फलस्वरूप -‘टेलीकनेक्शन’ नामक एक नयी क्रिया आरंभ हो जाती है, जो मध्य यूरोप में बाढ़ तथा दक्षिण अफ्रीका में सूखा लेकर आती है। ऐसी ही एक समस्या अल-नीनो के बाद कोलंबिया जैसे देशों में मलेरिया के भंयकर प्रकोप का है।

1942:स्वशासी समिति के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान की स्थापना।
1971:विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना। (मई)
1982:राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमी विकास बोर्ड की स्थापना। (जनवरी)
1996:प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड का गठन। (सितंबर)
1998:प्रयोग तथा व्यासमापन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड का सोसाइटी के रूप में पंजीकरण। (12 अगस्त)
परमाणु ऊर्जा
1948:परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन। (10 अगस्त)
1956:परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना।
 :भारत के प्रथम स्वदेशी रिएक्टर अप्सरा का निर्माण।
1957:मुंबई में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की स्थापना।
1962:नांगल, पंजाब में प्रथम गुरुजल संयंत्रा स्थापित।
1969:तारापुर परमाणु बिजलीघर चालू हुआ।
1971:कलपक्कम में परमाणु अनुसंधान के लिए इंदिरा गांधी केंद्र की स्थापना।
1972:रावतभाटा में परमाणु बिजलीघर की प्रथम इकाई चालू हुई।
1974:शांतिपूर्ण कार्यों के लिए पोखरण में प्रथम भूमिगत परमाणु विस्फोट। (10 मई)
1984:इंदौर में उच्च प्रौद्योगिकी केन्द्र की स्थापना।
अंतरिक्ष कार्यक्रम
1962:अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति का गठन और तिरूवनंतपुरम के लिए थुम्बा इक्वेटोरियल राॅकेट लांचिग स्टेशन (टी.ई.आर.एल.एस.) की स्थापना का कार्य शुरू। 
1963:थुम्बा से प्रथम सांउडिंग राॅकेट का प्रक्षेपण। ;21 नवंबर)
1986:कलपक्कम में प्रथम स्वदेशी डिजाइंड तथा निर्मित रिएक्टर की स्थाना। (मार्च)
1998:पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए गए। (11 मई और 13 मई)
1976:सैटलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (एस.आई.टी.ई.) की शुरुआत।
1965:थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिक केंद्र की स्थापना।
1967:अहमदाबाद में उपग्रह दूरसंचार भू-उपग्रह स्टेशन की स्थापना।
1972:अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना।
1975:प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट का प्रक्षेपण। (19 अप्रैल)
1979:प्रायोगिक उपग्रह भास्कर-I का प्रक्षेपण।
 :रोहिणी उपग्रह को अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित करने के लिए एस एल वी-3 का प्रथम प्रायोगिक प्रक्षेपण विफल रहा।
1980:एस एल वी-3 के दूसरे प्रायोगिक प्रक्षेपण के फलस्वरूप रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।
1981:प्रायोगिक भू-स्थिर संचार उपग्रह, एपल (ए.पी.पी.एल.ई.) का सफल प्रक्षेपण। भास्कर-2 का प्रक्षेपण। (नवंबर)
1982:इनसैट-1 ए का प्रक्षेपण (अप्रैल), जिसे सिंतबर में निष्क्रिय कर दिया गया।
1983:एस एल वी-3 का दूसरा प्रक्षेपण। आर एस-डी 2 कक्षा में स्थापित किया गया।
 :इनसैट-1 बी का प्रक्षेपण।
1984:भारत और सोवियत मानव अंतरिक्ष मिशन। (अपै्रल)
1976:प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट का प्रक्षेपण। (19 अप्रैल)
1979:प्रायोगिक उपग्रह भास्कर-प् का प्रक्षेपण।
1987:एस आर ओ एस एस-प् उपग्रह सहित ए एस एल वी उपग्रह यान का प्रक्षेपण।
1988:प्रथम भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह आई आर एस-प् ए का प्रक्षेपण। इनसैट-प् सी का प्रक्षेपण (जुलाई)। नवंबर में इसने काम करना बंद कर दिया।
1990:इनसैट-I डी का सफल प्रक्षेपण।
1991:दूसरे दूरसंवेदी उपग्रह आई आर एस-प् बी का सफल प्रक्षेपण। (अगस्त)
1992:एस आर ओ सी सी-सी सहित ए एस एल वी उपग्रह यान का तीसरा प्रक्षेपण। (मई) उपग्रह को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किया गया।
 :देश में निर्मित प्रथम इनसैट-2ए का सफल प्रक्षेपण।
The document विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
74 videos|226 docs|11 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्या होती है?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एक विषय है जो मानव ज्ञान, अनुसंधान, विकास और उपयोग के प्रयासों को समझने और विश्लेषण करता है। यह विज्ञान की विभिन्न शाखाओं और तकनीकी उत्पादों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
2. यूपीएससी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का क्या महत्व है?
उत्तर: यूपीएससी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि इससे प्रश्न पूछे जाते हैं जो वैज्ञानिक अभियांत्रिकी, तकनीकी और विज्ञान के संबंधित मुद्दों पर आधारित होते हैं। इसका अच्छा ज्ञान रखना उम्मीदवारों के लिए आवश्यक है ताकि वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
3. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कौन-कौन से विषय शामिल होते हैं?
उत्तर: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कई विषय शामिल होते हैं, जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित, नवाचारी विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, यांत्रिकी, जलवायु विज्ञान, खनिज विज्ञान, भूगर्भिकी, जैव प्रौद्योगिकी, संगणक विज्ञान आदि।
4. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्या नवीनतम विकास हुआ है?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई नवीनतम विकास हुए हैं। उदाहरण के लिए, जीवन विज्ञान के क्षेत्र में जीन एडिटिंग और जीनेटिक इंजीनियरिंग के अद्वितीय उपयोग विकसित किए गए हैं। इसके अलावा, रोबोटिक्स, एआई, मशीन लर्निंग, नवीनतम कंप्यूटर तकनीक और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी अद्वितीय विकास हुआ है।
5. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में भारत की भूमिका क्या है?
उत्तर: भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला देश है। भारतीय वैज्ञानिकों ने विभिन्न क्षेत्रों में अनेक अद्वितीय अविष्कार किए हैं और वैज्ञानिक अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान, नवीनतम तकनीकों का विकास, औषधियों की खोज और उत्पादन, जलवायु विज्ञान, जीवन विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में मान्यता प्राप्त की है।
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ppt

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

,

practice quizzes

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

video lectures

,

Free

,

past year papers

,

Objective type Questions

,

shortcuts and tricks

,

Previous Year Questions with Solutions

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 2) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

Summary

,

Exam

,

Semester Notes

,

Extra Questions

,

Sample Paper

,

Important questions

,

study material

;