इंटरएक्टिव टी वी: अब टी वी को इंटरएक्टिव बनाने के प्रयासों से नए आयाम मिलने की सम्भावना काफी हद तक बढ़ गई है। टी वी कम्पनियों की कोशिश है कि इंटरनेट कम्प्यूटर के संगम से जो इन्फोटेक क्रांति इन दिनों पैर फैला रही है उसका जरिया टी वी भी हो। अभी तक पर्सनल कम्पयूटर, चिप और द्रुत संचार प्रणाली का ही सहयोग लिया जा रहा है। एक नए ‘पर्सनल वीडियो रिकाॅर्डर’ उपकरण के जरिए टेलिविजन को ही पर्सनल कम्प्यूटर के :प में प्रस्तुत किया जा रहा है। सेट टाॅप बाॅक्स के :प में यह उपकरण कम्प्यूटर चिप की सहायता से टी वी को इंटरएक्टिव टी वी (आई टी वी) में बदल देता है। इससे टी वी पर मन पसंद प्रोग्राम देख ही नहीं सकते, उन्हें तुरन्त रिकाॅर्ड भी कर सकते हैं। कोई अपने स्वयं के प्रोग्राम को भी कम्प्यूटर चिप के जरिए अपने टी वी पर देख सकते हैं। प्रोग्राम को मेमोरी में भी डाला जा सकता है। सामान्य टी वी को इंटरएक्टिव टी वी में बदलने में ‘डी वी डी’ प्रौद्योगिकी ने विशेष भूमिका अदा की है।
राइससैट: एशियाई वैज्ञानिक एशिया भर में धान की खेती पर निगाह रखने और उसका अध्ययन करने के लिए सन् 2005 तक ‘राइससैट’ नामक विशेष उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहे हैं, ताकि इस महाद्वीप में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। एशिया के ऊपर कक्षा में स्थापित होने पर यह एक अनोखा उपग्रह होगा जो केवल इसी पर केन्द्रित होगा और इसके सभी हिस्सों के धान की खेती से सम्बन्धित भू-सर्वेक्षण आंकड़े मुहैया कराएगा। बैंकाक स्थित ‘एशियन इंस्टीट्यूट आॅफ ‘टेक्नोलाॅजी’ (AIT) के दूरसंवेदी केन्द्र को ‘राइससैट परियोजना’ का सचिवालय बनाया गया है। यह केन्द्र ‘राइससैट’ के आंकडे़ भी प्राप्त करेगा। धान एशिया की प्रमुख फसलों में से एक है। विश्व का 90 प्रतिशत धान का उत्पादन और खपत इसी महाद्वीप में होता है। ए आई टी के एशियाई दूरसंवेदी शोध केन्द्र से जुड़े डाॅ. सूरत लेर्तलुम के अनुसार जापान सरकार राइससैट का प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगी। अन्य देश और संस्थाएं उपग्रह के संेसर, ग्राउंड रिसीविंग स्टेशन ओर ग्राउंड केट्रोल स्टेशन के निर्माण के लिए सहयोग करेंगे। इस उपग्रह में एक सिंथेटिक एपर्चर राडार होगा जो वर्ष भर हर मौसम में रात-दिन एशिया प्रशांत क्षेत्रा के धान की फसलों का अवलोकन करेगा और सूचनाएं संग्रहित करेगा। यह उपग्रह 600 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाएगा और एक सप्ताह में किसी स्थान पर दोबारा पहुंचेगा। एशिया के मौसम के मद्देनजर इसकी राडार प्रणाली इस तरह की बनाई जाएगी कि यह भारी वर्षा से पानी में डूबी फसल का भी अवलोकन कर सके। राइससैट परियोजना का प्रयोग जापानी कम्पनी एन ई सी कार्पोरेशन द्वारा डिजाइन किए गए मिशन डिमोंस्ट्रेशन सैटेलाइट फ्रेम पर आधारित होगा।
विलोमेट: कम्प्यूटर की क्षमता में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। एक के बाद एक अधिक क्षमता वाली चिप विकसित की जा रही है। आज की सर्वाधिक क्षमता वाली चिप पेंटियम-3 है।, जिसकी स्पीड 800 मेगाहहॉट्ज प्रति सेकेण्ड है। इनटेल ने ‘विलामेट’ चिप बनाए जाने की घोषणा की जिसकी क्षमता 1.5 मेगाहहॉट्ज होगी। यह पेंटियम-3 से लगभग दो गुना अधिक तेजी से काम करेगा।
आई बी.एम. के अनुसंधानकर्ता भी अधिक स्पीड वाली चिप बनाने में जुटे हैं। उन्होंने ऐसे हाई-स्पीड क्म्प्यूटर सर्किट बनाने में सफलता प्राप्त की है जो 3.3 से 4.5 गीगाहर्ट्ज तक की स्पीड दे सकते हैं। इनमें भी सिलीकन ट्रांजिस्टर ही लगाए गए हैं। आई.बी.एम. के रेडाल आइजेक के अनुसार अब गीगाहर्ट्ज का समय आ गया है। इनके चिप के सर्किट में इंटरलाॅक पाइपलाइड सी-माॅस डिजाइन का इस्तेमाल हुआ है। इससे चिप की स्पीड तो बढ़ी है, बिजली की खपत भी कम होगी।
रह्यूमैब-ई 25 : अनुसंधानकर्ताओं ने प्रयोग स्तर पर अस्थमा रोग की जीवतत्वीय :प से तैयार औषधि ईजाद की है, जिसको रह्यूमैब-ई 25 नाम दिया गया है। इस नवीन औषधि का ‘एस्टराॅयड’ की तरह कोई भी दुष्प्रभाव नहीं है। डेनवेर के नेशनल ज्यूइस मेडिकल एण्ड रिसर्च संेटर के प्रमुख अनुसंधानकर्ता डाॅ. हेनरी मिलग्रोन का कहना है कि अस्थमा के रोगियों के लिए यह औषधि क्रांति ला सकती है। उनका कहना है कि ‘रह्यूमैब-ई 25’ जैसी औषधियां सांस की बीमारी के लिए जादुई गोली साबित हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले एक दशक के गम्भीर किस्म की सांस की बीमारी के इलाज के लिए ‘एस्टराॅयड’ को ही दिया जाता रहा है, लेकिन अधिक दिनों तक इसे लेने से बच्चों की वृद्धि एकदम रुक जाती है। वयस्कों के एस्टराॅयड को लम्बे समय तक इस्तेमाल से अस्थिरोग, आमाशय में रक्तस्राव, बढ़े रक्तचाप, मधुमेह, मोतियाबिन्द और मोटापा बढ़ने जैसी बीमारियां हो जाती हैं। रह्यूमैब-ई 25’ औषधि को इंजेक्शन के द्वारा लिया जाता है। इसे मानवीय एंटीबाॅडी में चूहे के जीवतत्व की प्रतिमूल के सूक्ष्म टुकड़ों को गूंथकर तैयार किया गया है। इसको विकसित करने वाली तीन औषधि उत्पादक कम्पनियां-जेनेटैक, नोवार्तिस फार्मा एग और टेनाॅक्स को आशा है कि कुछ और परीक्षणों के बाद अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन शीघ्र ही इसकी सार्वजनिक बिक्री के लिए अनुमति दे देगा।
‘बे्रलनोट’: ‘बे्रलनोट’ दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए कम्पयूटर है, जिसकी सहायता से ब्रेल लिपि में पढ़ना तथा ई-मेल सहित कई अन्य दस्तावेजों को स्वर के साथ पढ़ना सम्भव हो सकेगा। इस कम्प्यूटर का निर्माण न्यूजीलैण्ड के क्राइस्ट चर्च शहर में स्थित ‘पल्स डाटा इन्टरनेशनल’ ने माइक्रोसाॅफ्ट के सहयोग से किया है। दृष्टिहीन इस कम्प्यूटर के ‘ब्रेल की बोर्ड’ का उपयोग करते हुए ई-मेल सहित कई अन्य सूचनाओं को ले सकते हैं अथवा भेज भी सकते हैं। इस कम्प्यूटर के माध्यम से दृष्टिहीनों को नौकरियों के लिए आवेदन करने और आॅनलाइन डाटा ग्रहण करने में भी काफी सहयोग मिल सकेगा।
‘रोडशिफ्ट 5.8’: ‘रोडशिफ्ट 5.8’ एक क्वासर है जो सम्भवतः अब तक का सबसे दूर स्थित खगोलीय पिण्ड है। इसकी खोज अप्रैल 2000 में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में खगोलभौतिक विज्ञान के छात्रा जियाओहुई फेन और तीन अन्य विज्ञानियों ने हवाई स्थित ‘केक अंतरिक्ष दूरबीन’ के जरिये की है। यह क्वासर ‘सेक्टेन्स’ नक्षत्रा में धूल के लाल धब्बे की भांति दिखाई पड़ा है। यह पृथ्वी से 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर है। इस खोज से खगोल वैज्ञानिकों की इस मान्यता को बल मिलता है कि ब्रह्मांड अभी अपनी शैशवास्था में है। जियाओहुई का कहना है कि हम इस काल को देख रहे हैं जब निहारिकाएं बहुत युवा थीं और ‘बिंग बैंग’ के बाद ब्रह्मंड में जब पहली बार प्रकाश दिखायी पड़ा था। उल्लेखनीय है कि बैंग के साथ पहली बार प्रकाश दिखाइयी पड़ा था। उल्लेखनीय है कि बैंग के साथ ही ब्रह्मांड का जन्म हुआ था। चूंकि इस क्वासर के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 12 अरब वर्ष लग गये हैं, इसलिए वैज्ञानिकों का यह माना है कि यह खगोलिय पिण्ड इस समय भी होगा जब ब्रह्मांड की आयु मात्रा एक अरब वर्ष थी। ज्ञातव्य है कि ब्रह्मांड की आयु लगभग 13 अरब वर्ष है।
आॅटो-चिप: अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा यंत्रा बनाया है जो बहुत ही कम वोल्टेज पर काम कर सकेगा। यह कम वोल्टेज के बावजूद इतनी तेज और पर्याप्त विद्युत प्रवाहित करेगा कि उससे राडार और संचार उपग्रहों को भी संचालित किया जा सकेगा। माॅड्यूलेटर रूपी इस यंत्रा का नाम ‘आटो-चिप’ दिया गया है। यह चिप विद्युत संकेतों को 100 गिगाबाइट प्रति सेकेंड की दर से ‘आॅप्टिक ट्रांसमिशन’ में बदल सकती है। इस तरह के इलेक्ट्रो-आॅप्टिक माॅड्यूलेटर वास्तविक समय संचार में सहायक हो सकते हैं। कम्पयूटर में चाहे जितनी भी फाइलें भर जायें इसके कारण से वह कभी धीमा नहीं पड़ेगा।
‘टीएमआर’-1 सी’ : ‘टीएमआर’-1 सी’ एक आकाशीय पिण्ड है, जिसको पहले एक आदिकालीन ग्रह माना गया था लेकिन नवीनतम आंकड़े यह बताते हैं कि वह सुदूर अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि में मौजूद एक नक्षत्रा है। यह इतना गर्म है कि जितना एक ग्रह होता है। तीन वर्ष पूर्व ‘हब्बल’ अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा इस पिण्ड के लिये गये चित्रा सुदूर अंतरिक्ष में स्थित नक्षत्रा से काफी कुछ मिलते जुलते हैं। इसका प्रकाश अंतर-नक्षत्राीय धूल के कारण धुंधला दिखाई पड़ता है। पासोडना (कैलिफोर्निया) स्थित ‘एक्स्ट्रा सोलर रिसर्च कारपोरेशन’ की सूसन टेरेबी ने इस पिण्ड को सबसे पहले 1998 में खोजा था। सूसन का अनुमान था कि यह पिण्ड युवा, गर्म, आदिकालीन ग्रह है, जिसका द्रव्यमान बृहस्पति ग्रह के द्रव्यमान से कुछ गुना अधिक है।
हब्बल दूरबीन: ‘हब्बल ’ अमेरिकी-यूरोपीय अंतरिक्ष दूरबीन है, जिसने 24 अप्रैल को अपने कार्यकाल के 10 वर्ष पूरे कर लिये। इस अंतरिक्ष दूरबीन को 24 अप्रैल, 1990 को ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। उसने ब्रह्मांड के ब्लैक होल्स, मरणासन्न नक्षत्रों और सुदूर स्थित निहारिकाओं के वर्णातीत चित्रा पृथ्वी पर प्रेषित किये। अपने 10 वर्षीय कार्यकाल में हब्बल ने ब्रह्मांड के 13.670 पिंडों का अध्ययन किया; 2.71 लाख निजी पर्यवेक्षण किये तथा पृथ्वी पर अरबों वाइट्स के आंकडें़ भेजे। हब्बल द्वारा भेजी गयी सूचनाओं के आधार पर अब तक 2,600 से अधिक वैज्ञानिक अध्ययन रिपोर्टें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस दूरबीन में प्रक्षेपण के दो माह बाद ही निकट दृष्टिदोष हो गया था, फलतः इसका मुख्य दर्पण कैमरों द्वारा स्पष्ट छायाचित्रा ले पाने में बाधक बन गया था। इस दोष को 1993 में दूर कर लिया गया। 12.5 टन भार की यह दूरबीन पृथ्वी से 600 किलोमीटर ऊपर 20,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूम रही है।
कार्डियोलीपेन वायरस: नौजवानों में हृदय रोग एवं महिलाओं में बार-बार गर्भपात के लिए कार्डियोलीपेन वायरस जिम्मेदार है। इस वायरस से होने वाली ‘लूपस’ नाम का मर्ज कई बीमारियों की जड़ है। कोशिका नली में बह रहे रक्त में रक्त-क्लोटिंग और वृक्क में गड़बड़ी उत्पन्न करने का जिम्मेदार भी यही वायरस है। रक्त कोशिकाओं में रक्त-प्रवाह में हाने वाली रुकावट हृदय रोग का कारण बनता है। इसी तरह जब रक्त रुक-रुककर शरीर के अंगों तक पहुंचता है तो महिला के गर्भ में उपस्थित भ्रूण को भी उचित मात्रा में रक्त व पोषाहार मिलना कम हो जाता है। यह गर्भपात का कारण बनता है। अमेरिका से आए पो. अजरूद्दीन धाराबी ने यह जानकारी पी.जी. आई. लखनऊ में आयोजित काॅन्फ्रेंस में दी। पो. धाराबी ने ‘कूपस’ बीमारी की खोज 1983 में की थी।
काॅक्स-2: अनुसंधानकर्ताओं ने एक ऐसी यौगिक (औषधि) की खोज की है जो मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाली जीवतत्वों को अवरुद्ध कर और कोशिकाओं की मृत्यु को रोककर मस्तिष्क की बीमारियों जैसे ‘अल्झीमर’ से होने वाली हानियों से मस्तिष्क को बचा सकेगी। यह यौगिक काॅक्स-2 नामक प्रोटीन को प्रभावित करती है। कॉक्स - 2 मानव के पूरे शरीर में पाई जाती है तथा इसके कारण ही मानव को पीड़ा तथा उत्तेजना का अनुभव होता है। कॉक्स - 2 गठिया की बीमारी में दी जाने वाली औषधि ‘कॉक्स - 2 इनहिबिटर्स’ से भी प्रभावित होती है, लेकिन अनुसंधानकर्ताओं के अंतर्राष्ट्रीय दल ने जो नया यौगिक (औषधि) विकसित किया है वह काॅक्स-2 प्रोटीन के जीवतत्वीय स्तर को प्रभावित करती है। इस औषधि का विकास डाॅ. निकोलस बैजान और उनके सहयोगी अनुसंधानकर्ताओं ने किया है। उनके द्वारा खोजी गई यह नई औषधि चोटों, अल्झीमर रोग, आघात, पर्किंसन तथा अन्य स्थितियों में मस्तिष्क को सुरक्षित रख सकेगी। इस औषधि के उपयोग से कार दुर्घटनाओं में लगने वाली मस्तिष्क चोटों अथवा मस्तिष्क-मृत्यु से मस्तिष्क की रक्षा की जा सकती है। डाॅ. बेजान का कहना है कि कॉक्स - 2 मस्तिष्क की आघात स्थितियों में एक प्रपात के रूप में काम करने लगता है, जिससे मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। ऐसे समय यह औषधि कॉक्स - 2 का स्विच आॅफ कर देता है और मस्तिष्क की रक्षा करता है।
मिनिमल जीनोम प्रोजेक्ट: राकविले (मैरीलैंड) स्थित सेलेरा जेनोमिक्स के आनुवांशिकी विशेषज्ञों के एक दल ने पता लगाया है कि जीव रचना के लिए लगभग 300 जीन जरूरी होते हैं। इस खोज ने जीव की रचना को भी सैद्धांतिक स्तर पर संभव बना दिया है। इस खोज को जीव की रचना की सर्वाधिक सरल विधि के रूप में व्याख्यायित किया गया है यानी नित नई करामात करने वाला मनुष्य अब ईश्वर की सत्ता को सीधी चुनौती देने की स्थिति में आ रहा है। अब तक यही माना जाता था कि आदमी सब कुछ कर सकता है, सिवाय जीव रचना के। लेकिन इस खोज ने इस असंभव को भी संभव में बदलने की उम्मीदें जगा दी हैं। ऐसा लगता है कि इंसान निकट भविष्य में शरीर रचना से छेड़छाड़ किये बिना प्रयोगशाला में रसायनों की मदद से विभिन्न आकारों के जीवों की रचना करने में सक्षम हो जायेगा। आनुवांशिकी के इस विस्फोटक विकासक्रम के निहितार्थ धार्मिक हैं या जातीय या फिर कुछ और अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है। लेकिन एक दल तकरीबन इस निष्कर्ष तक पहुंच चुका है कि जीव उत्पत्ति में कम से कम कितने ‘जीन’ की आवश्यकता पड़ती है। आमतौर पर इसे पुनः उत्पादन और पर्यावरण से अनुक्रिया करने में सक्षम अवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है।
रिपोर्ट में नैतिकवादियों की ओर संकेत करते हुए कहा गया है कि यह तबका दो साल पहले शुरू किये गए मिनिमल जीनोम प्रोजक्ट का धुर विरोधी रहा है। फलतः इस बात की काफी संभावना है कि उनका प्रचंड विरोधी वैज्ञानिकों को प्रयोगशाला में रसायनों के माध्यम से जीवन का निर्माण करने में रोक दे। सेलेरा जेनोमिक्स के वरिष्ठ विज्ञानी जे. क्रेग वेंटर भी इस पक्ष को लेकर आशंकित हैं। उनका कहना है कि जहां तक जनता का सवाल है, वह पहले से ही मानती आई है कि जीन अनुसंधानकर्ता ईश्वर कí
74 videos|226 docs|11 tests
|
1. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्या हैं? |
2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच क्या अंतर हैं? |
3. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
4. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों की उदाहरण दें। |
5. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आईएएसपीसी परीक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
74 videos|226 docs|11 tests
|
|
Explore Courses for UPSC exam
|