UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) की एक प्रयोगशाला, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (Indian Institute of Petroleum- IIP) ने बोइंग, इंडिगो, स्पाइसजेट और तीन टाटा एयरलाइंस- एयर इंडिया, विस्तारा और एयरएशिया इंडिया के साथ सतत् विमानन ईंधन के उत्पादन के लिये साझेदारी की है। 

सतत् विमानन ईंधन/सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल

  • परिचय:
    • इसे बायो-जेट फ्यूल भी कहा जाता है, इसके उत्पादन राष्ट्रीय स्तर पर विकसित तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है जिसमें खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधों के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • ASTM इंटरनेशनल द्वारा ASTM D4054 प्रमाणीकरण के लिये आवश्यक मानकों को पूरा करने हेतु संस्थानों द्वारा उत्पादित इस ईंधन के नमूनों का संयुक्त राष्ट्र फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लीयरिंग हाउस में सख्त परीक्षण किया जा रहा है।
  • उत्पादन का स्रोत:
    • CSIR-IIP ने गैर-खाद्य और खाद्य तेलों के साथ-साथ खाना पकाने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले तेल जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके ईंधन तैयार किया है।
    • उन्होंने पाम स्टीयरिन, सैपियम ऑयल, पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट्स, शैवाल तेल, करंजा और जेट्रोफा सहित विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल किया।
  • भारत में सतत् विमानन ईंधनउत्पादन के लाभ:
    • भारत में SAF के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने से GHG उत्सर्जन को कम करने, वायु गुणवत्ता में सुधार, ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने तथा संधारणीय विकास को बढ़ावा देने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।
    • यह विमानन उद्योग को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान करने में भी मदद कर सकता है।
    • विमानन के लिये जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है और शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य में योगदान दे सकता है।
    • विमानन हेतु जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर एक साथ उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है, जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है एवं नेट ज़ीरो (शुद्ध शून्य) उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का समर्थन कर सकता है।

ASTM प्रमाणन

  • ASTM इंटरनेशनल, जिसे पहले अमेरिकन सोसाइटी फॉर टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स के नाम से जाना जाता था, एक वैश्विक संगठन है जो उत्पादों, सामग्रियों एवं प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला हेतु तकनीकी मानकों को विकसित तथा प्रकाशित करता है।
  • ASTM मानकों का उपयोग उद्योग, सरकारों और अन्य संगठनों द्वारा उत्पादों एवं प्रक्रियाओं में गुणवत्ता, सुरक्षा तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है।
  • ASTM प्रमाणन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी उत्पाद या सामग्री का परीक्षण और प्रासंगिक ASTM मानकों के खिलाफ मूल्यांकन किया जाता है।
  • प्रमाणन का उपयोग यह प्रदर्शित करने हेतु किया जा सकता है कि कोई उत्पाद या सामग्री कुछ आवश्यकताओं को पूरा करती है, जैसे- प्रदर्शन विनिर्देश, सुरक्षा मानक या पर्यावरण नियम आदि।

विश्व में SAF को बढ़ावा देने हेतु पहल

  • CORSIA प्रोग्राम: अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) ने विमानन उत्सर्जन को उजागर करने हेतु कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) की स्थापना की है।
    • CORSIA एयरलाइनों को वर्ष 2020 के स्तर से ऊपर किसी भी उत्सर्जन को ऑफसेट करने की आवश्यकता है और यह प्राथमिक रूप से उत्सर्जन को कम करने हेतु SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल: विश्व आर्थिक मंच ने क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य SAF के उत्पादन और उपयोग में तेज़ी लाना है।
    • यह पहल SAF उत्पादन को विकसित करने और बढ़ाने में सहयोग करने हेतु विमानन, ईंधन एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के हितधारकों को एक साथ लाती है।
  • SAF सम्मिश्रण लक्ष्य:
    • यूरोपीय संघ ने विमानन से GHG उत्सर्जन को कम करने हेतु स्थायी विमानन ईंधन हेतु सम्मिश्रण लक्ष्य स्थापित किये हैं जिसका उद्देश्य समय के साथ विमानन ईंधन में SAF के उपयोग को बढ़ाना है।
    • वर्ष 2025 से गैसोलीन और मिट्टी तेल से बने पारंपरिक जेट ईंधन के साथ SAF का सम्मिश्रण 2 प्रतिशत से शुरू होगा।
      • वर्ष 2050 में 63 प्रतिशत SAF सम्मिश्रण तक पहुँचने के लक्ष्य के साथ सम्मिश्रण लक्ष्य प्रत्येक पाँच साल में बढ़ेगा।
  • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट और SAF उत्पादन प्रोत्साहन:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में सतत् विमानन ईंधन (SAF) के उपयोग और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये अमेरिकी कॉन्ग्रेस ने मई 2021 में सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट पेश किया।
    • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट अमेरिका में SAF-उत्पादक सुविधाओं की संख्या बढ़ाने के लिये पाँच वर्षों में 1 बिलियन डॉलर का अनुदान प्रदान करता है।
  • नोट: ईंधन के कुछ अन्य स्थायी स्रोत जिन पर भारत काम कर रहा है, में शामिल हैं:
    • बायोडीज़ल
    • पारंपरिक ईंधन में इथेनॉल सम्मिश्रण
    • हाइड्रोजन ईंधन सेल

SAF से जुड़ी चुनौतियाँ

  • उच्च लागत: SAF के उत्पादन की लागत वर्तमान में पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में अधिक है, जिससे एयरलाइनों के लिये SAF उत्पादन और उपयोग में निवेश करना आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य हो जाता है।
  • संसाधन उपलब्धता: SAF के उत्पादन, भंडारण और वितरण के लिये सीमित बुनियादी ढाँचा है, जिससे SAF के उत्पादन एवं आपूर्ति को बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।
  • फीडस्टॉक उपलब्धता: SAF उत्पादन के लिये फीडस्टॉक की उपलब्धता सीमित है और खाद्य तथा कृषि क्षेत्रों जैसे अन्य उद्योगों के बीच संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा है।
  • प्रमाणन: SAF के लिये प्रमाणन प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है तथा SAF उत्पादन के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों की कमी है।
  • जन जागरूकता: सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और SAF के लाभों की समझ बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों से अधिक समर्थन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • निवेश में वृद्धि: सरकारों, एयरलाइंस और निवेशकों को लागत कम करने तथा उपलब्धता बढ़ाने के लिये SAF उत्पादन एवं बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इसमें R&D के वित्तपोषण के साथ-साथ नई सुविधाओं का निर्माण करना और SAF के उत्पादन हेतु मौजूदा सुविधाओं को जारी रखना शामिल है।
  • समर्थन नीति और नियामक ढाँचे: सरकारें SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने वाली नीति और नियामक ढाँचे को लागू कर सकती हैं, जैसे- कर प्रोत्साहन, सब्सिडी और SAF के एक निश्चित प्रतिशत का उपयोग करने के लिये एयरलाइनों हेतु आदेश।
  • सहयोग को प्रोत्साहित करना: एयरलाइंस, ईंधन उत्पादकों और अनुसंधान संस्थानों सहित हितधारकों के बीच सहयोग से अधिक एकीकृत और कुशल SAF आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
  • जन जागरूकता को बढ़ावा देना: यह SAF के लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता और टिकाऊ विमानन की आवश्यकता की मांग बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों को अधिक समर्थन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करना: SAF उत्पादन के लिये नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करने हेतु अनुसंधान में निवेश, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और कृषि अपशिष्ट, फीडस्टॉक उपलब्धता बढ़ाने तथा अन्य उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को कम करने में मदद कर सकता है।

टी फोर्टिफिकेशन

चर्चा में क्यों?

फोलेट और विटामिन B12 के साथ फोर्टिफाइंग टी/चाय के प्रभाव का आकलन करने हेतु 43 महिलाओं पर महाराष्ट्र में हाल ही में किये गए एक अध्ययन में फोलेट एवं विटामिन B12 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इसने हीमोग्लोबिन के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि पर भी प्रकाश डाला।

  • हालाँकि अध्ययन अपने नमूने के आकार के कारण ज़्यादातर गलत साबित हुआ है।

टी फोर्टिफिकेशन प्रभावकारी परिवर्तन/गेम-चेंजर

  • एनीमिया और NTD से मुकाबला: नए अध्ययन के अनुसार, फोलेट और विटामिन B12 के साथ फोर्टिफाइंग चाय भारतीय महिलाओं में एनीमिया और NTD का मुकाबला करने में मदद कर सकती है क्योंकि चाय भारत में पिया जाने वाला सबसे आम पेय पदार्थ है।
    • अधिकांश भारतीय महिलाओं द्वारा खराब आहार फोलेट और विटामिन B12 का सेवन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी विटामिन की स्थिति लगातार कम होती है, जो एनीमिया को बढ़ाता है, यही कारण है कि भारत में फोलेट-उत्तरदायी न्यूरल-ट्यूब दोष (Neural-Tube Defects- NTD) की उच्च घटनाएँ होती हैं।
      • शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन हेतु विटामिन B12 और फोलेट दोनों महत्त्वपूर्ण हैं।
      • शरीर में फोलेट के उचित अवशोषण और उपयोग हेतु विटामिन B12 आवश्यक है क्योंकि फोलेट की कमी से गंभीर जन्म दोष (NTDs) हो सकते हैं।

नोट: न्यूरल ट्यूब की समस्या तब होती है जब भ्रूण के विकास के दौरान न्यूरल ट्यूब पूरी तरह से बंद नहीं होती है। न्यूरल ट्यूब अंततः मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और आसपास के ऊतकों का निर्माण करती है।

  • टी फोर्टिफिकेशन संबंधी मुद्दे:
    • सीमित खेती: चाय बड़े पैमाने पर केवल 4 राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में उगाई एवं संसाधित की जाती है।
    • अवसरंचना की कमी: कई चाय उगाने वाले क्षेत्रों में फोर्टीफाइड चाय के प्रसंस्करण और पैकेजिंग के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे कमी है।
      • इसमें चाय के सम्मिश्रण और पैकेजिंग के साथ-साथ परिवहन और भंडारण के बुनियादी ढाँचे की सुविधाएँ शामिल हैं।
    • आहार संबंधी बाधाएँ: लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है, जहाँ अनाज अधिक बार उगाया एवं साफ किया जाता है तथा स्थानीय स्तर पर खरीदा जाता है। सांस्कृतिक, धार्मिक एवं जातीय मतभेदों व विश्वासों के अनुसार आहार प्रकृति काफी भिन्न होती है।

फूड फोर्टिफिकेशन

  • परिचय:
    • चावल, दूध और नमक जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों में आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D जैसे प्रमुख विटामिन तथा खनिजों को शामिल करना फोर्टिफिकेशन है, ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार हो सके। प्रसंस्करण से पहले ये पोषक तत्त्व भोजन में मूल रूप से मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
  • भारत में फूड फोर्टिफिकेशन की स्थिति:
    • चावल: खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) "चावल के फोर्टिफिकेशन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से इसके वितरण पर केंद्र प्रायोजित पायलट योजना" चला रहा है।
      • योजना को तीन साल के पायलट अवधि के लिये वर्ष 2019-20 में शुरू किया गया था।
      • यह योजना वर्ष 2023 तक चलेगी और लाभार्थियों को 1 रुपए किलो की दर से चावल की आपूर्ति की जाएगी।
    • गेहूँ: गेहूँ के फोर्टिफिकेशन पर निर्णय की घोषणा वर्ष 2018 में की गई थी और बच्चों, किशोरों, गर्भवती माताओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार के लिये भारत के प्रमुख पोषण अभियान के तहत 12 राज्यों में इसे लागू किया जा रहा है।
    • खाद्य तेल: वर्ष 2018 में FSSAI द्वारा देश भर में खाद्य तेल का फोर्टिफिकेशन अनिवार्य कर दिया गया था।
    • दूध: वर्ष 2017 में भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) ने कंपनियों को विटामिन D मिलाने के लिये प्रोत्साहित करके दूध के फोर्टिफिकेशन की शुरुआत की।
  • महत्त्व:
    • व्यापक जनसंख्या स्वास्थ्य सुधार: चूँकि व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों का योग किया जाता है, यह आबादी के एक बड़े हिस्से के स्वास्थ्य में एक साथ सुधार लाने का एक उत्कृष्ट तरीका है।
    • सुरक्षित तरीका: फोर्टिफिकेशन लोगों के बीच पोषण में सुधार का एक सुरक्षित तरीका है।
      • यदि मिलाई गई मात्रा को निर्धारित मानकों के अनुसार अच्छी तरह से विनियमित किया जाता है तो पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा की संभावना नहीं होती है।
    • खाने की आदतों पर कोई प्रभाव नहीं: इसे खाने की आदतों और लोगों के पैटर्न में किसी भी बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है और यह लोगों को पोषक तत्त्व प्रदान करने का एक सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है।
      • यह भोजन की विशेषताओं- स्वाद, स्पर्श, रूप में भी परिवर्तन नहीं करता है।
    • लागत प्रभावी: यह विधि लागत प्रभावी है, विशेष रूप से यदि मौजूदा प्रौद्योगिकी और वितरण प्लेटफॉर्म का समुचित लाभ उठाया जाता है।
      • कोपेनहेगन सहमति (Copenhagen Consensus) का अनुमान है कि फूड फोर्टिफिकेशन पर व्यय किया गया प्रत्येक 1 रुपया अर्थव्यवस्था के लिये 9 रुपए का लाभ उत्पन्न करता है।
  • चुनौतियाँ:
    • भारत में केवल कुछ खाद्य पदार्थों (गेहूँ, चावल, नमक) के लिये खाद्य पदार्थों का फोर्टीफिकेशन किया जाता है, कई अन्य खाद्य पदार्थों को फोर्टिफाइड नहीं किया जाता है, जिससे पोषक तत्त्वों का सेवन अपर्याप्त हो जाता है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को मिलाने की प्रक्रिया प्राकृतिक खाद्य पदार्थों जैसे- फाइटोकेमिकल्स और पॉलीअनसैचुरेटेड वसा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
    • गर्भवती महिलाओं द्वारा अधिक आयरन का सेवन करने से भ्रूण के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और जन्म के समय बच्चों में पुरानी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है।
    • फोर्टीफिकेशन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये एक गारंटीकृत बाज़ार प्रदान कर सकता है, जो पूरे भारत में छोटे व्यवसायों की आजीविका को संभावित रूप से नुकसान पहुँचा सकता है।
    • जोड़े गए विटामिन और खनिजों की अस्थिरता के कारण दूध एवं तेल जैसे कुछ खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन में तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

टी फोर्टिफिकेशन से संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु आवश्यक कदम

  • सरकार का हस्तक्षेप: चाय के पोषण में वृद्धि करने के लिये नीतियों और विनियमों को लागू करके सरकार टी फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • उदाहरण के लिये सरकार चाय निर्माताओं हेतु आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि करना अनिवार्य कर सकती है।
  • उद्योग की भागीदारी को बढ़ावा देना: चाय निर्माता अनुसंधान एवं शोध में निवेश करके और बाज़ार में फोर्टिफाइड चाय उत्पादों को पेश करके चाय के फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने का कार्य कर सकते हैं।
    • वे फोर्टिफाइड चाय के लाभों को बढ़ावा देने के लिये सरकार और गैर-लाभकारी संगठनों के साथ भी सहयोग कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना: उपभोक्ताओं को फोर्टिफाइड चाय के लाभों के बारे में शिक्षित करने से इसकी खपत को बढ़ावा देने में काफी मदद मिल सकती है।
    • यह विभिन्न माध्यमों जैसे विज्ञापन अभियान, सोशल मीडिया और स्कूलों एवं कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किया जा सकता है।
  • रसद में सुधार: बड़े पैमाने पर चाय के फोर्टिफिकेशन को लागू करने के लिये एक मज़बूत रसद प्रणाली का होना आवश्यक है।
    • इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि पोषण तत्त्वों के किसी भी नुकसान के बिना फोर्टिफाइड चाय लक्षित आबादी तक समय पर और कुशल तरीके से पहुँचे।

साइकेडेलिक पदार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में मनोचिकित्सा (Psychiatry) के नैदानिक और अनुसंधान क्षेत्र में साइकेडेलिक्स पदार्थ के उपयोग को फिर से महत्त्व दिया जा रहा है।

  • भारत नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 साइकेडेलिक पदार्थों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।

साइकेडेलिक

  • परिचय:
    • साइकेडेलिक्स दवाओं का एक समूह है जो धारणा, मनोदशा और विचार प्रक्रिया को बदल देता है, जबकि व्यक्ति स्पष्ट रूप से सचेत होता है। सामान्यतः व्यक्ति की सूझबूझ या दृष्टिकोण भी अक्षुण्ण रहती है।
    • साइकेडेलिक्स ज़हरीले पदार्थों या नशे की लत नहीं हैं। अवैध दवाओं की तुलना में साइकेडेलिक्स बहुत कम हानिकारक हैं।
      • दो सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले साइकेडेलिक्स डी-लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड (LSD) और साइलोसाइबिन (psilocybin) हैं।
      • मेस्केलिन कम इस्तेमाल किये जाने वाले साइकेडेलिक्स में से है जो उत्तर अमेरिकी पियोट कैक्टस (लोफोफोरा विलियम्सी) में पाया जाता है और एन, एन-डाइमिथाइलट्रिप्टामाइन, दक्षिण अमेरिकी धार्मिक अनुष्ठान अयाहुस्का का एक प्रमुख घटक है।
  • उपभोग के बाद शरीर पर प्रभाव: साइकेडेलिक पदार्थों का उपयोग करने वालों में सोचने, समझने के तरीके में बदलाव, मनोदशा में परिवर्तन तथा मतिभ्रम जैसे अनुभव देखने को मिलते हैं:
    • दृश्य क्षेत्र (Vision Domain) उन क्षेत्रों में से एक है जिसमें अवधारणात्मक बदलाव सबसे अधिक बार होता है।
      • संवेदी तौर-तरीके में बदलाव की विचित्र घटना देखी जा सकती है जिसे सिनेस्थेसिया कहा जाता है, इसमें एक व्यक्ति को आवाजें दिखाई दे सकती हैं और वह रंगों को सुन सकता है।
    • दैहिक अनुभवों में आंत्र संबंधी, स्पर्शनीय और इंटरओसेप्टिव (शरीर की आंतरिक स्थितियाँ) अनुभूतियाँ शामिल की जा सकती हैं।
    • उत्साह, चिंता और व्यामोह मनोदशा परिवर्तन के अंतर्गत आते हैं।
    • उत्साही अनुभवों में व्यक्ति को पारलौकिक आध्यात्मिक अनुभव भी हो सकता है।
  • मुद्दे:
    • ओवरडोज़ के लिये कम उद्दीपन और आश्वस्त वातावरण में कार्डियक मॉनिटरिंग तथा सहायक प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
    • सिंथेटिक साइकेडेलिक्स (जैसे 25I-NBOMe) एक्यूट कार्डियक, सेंट्रल नर्वस सिस्टम और लिम्ब इस्किमिया के साथ-साथ सेरोटोनिन सिंड्रोम से जुड़े हुए हैं।
      • सिंथेटिक साइकेडेलिक के उपयोग को सीधे तौर मौत के लिये ज़िम्मेदार ठहराए जाने की खबरें भी मिली हैं।
  • अवसाद/डिप्रेशन का उपचार:
    • नवंबर 2022 में साइलोसाइबिन चरण- II के परीक्षण के परिणाम न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए थे। परीक्षण में पाया गया कि साइलोसाइबिन की 25 मिलीग्राम की एक एकल खुराक ने उपचार-प्रतिरोधी अवसाद वाले लोगों में तीन सप्ताह में अवसाद के स्तर को कम कर दिया।
    • इन निष्कर्षों को हाल ही में एक चरण- IIB परीक्षण में दोहराया गया था, जिसमें पाया गया कि 25 मिलीग्राम साइलोसाइबिन की एक खुराक से अवसाद की गंभीरता, चिंता की स्थिति में सुधार देखा गया।

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट 1985

  • यह 1985 में अधिनियमित किया गया था और देश में ड्रग्स और उनकी तस्करी से संबंधित है।
    • वर्ष 1988, 2001 और 2014 के बाद अधिनियम में तीन बार संशोधन किये गए हैं।
  • अधिनियम भाँग, हेरोइन, अफीम आदि सहित अनेक मादक दवाओं या मन:प्रभावी पदार्थों के उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, परिवहन तथा उपभोग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • हालाँकि अधिनियम के तहत भाँग प्रतिबंधित नहीं है।
  • NDPS अधिनियम की धारा 20 के तहत अधिनियम में परिभाषित भाँग के उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, आयात और अंतर-राज्य निर्यात के लिये दंड का प्रावधान है। निर्धारित सज़ा जब्त दवाओं की मात्रा पर आधारित है।
  • यह कुछ मामलों में मौत की सज़ा का भी प्रावधान करती है जहाँ एक व्यक्ति बार-बार अपराध करता है।

कार्बन डेटिंग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India- ASI) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर स्थित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग करने की अनुमति दी।

  • याचिकाकर्त्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर संबंधित वस्तु के "शिवलिंग" होने का दावा किया है। इस दावे को मुस्लिम पक्ष द्वारा विवादित माना गया है और कहा गया है कि यह वस्तु "फव्वारे" का हिस्सा है।
  • इसने वाराणसी ज़िला न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत संरचना की कार्बन डेटिंग सहित वैज्ञानिक जाँच की याचिका खारिज कर दी गई थी।

कार्बन डेटिंग

  • परिचय: 
    • कार्बन डेटिंग कार्बनिक पदार्थों यानी जो वस्तुएँ कभी जीवित थीं, की आयु का पता लगाने के लिये व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है।
    • सजीव वस्तुओं में विभिन्न रूपों में कार्बन होता है।
    • डेटिंग पद्धति इस तथ्य पर आधारित है कि कार्बन-14 (C-14) रेडियोधर्मी है और उचित दर पर इसका क्षय होता है।
      • C-14 कार्बन का समस्थानिक है जिसका परमाणु भार 14 है।
      • वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक C-12 है।
      • वायुमंडल में C-14 की बहुत कम मात्रा मौजूद होती है।
        • वातावरण में C-12 की तुलना में C-14 का अनुपात लगभग स्थिर है और ज्ञात है।
  • हाफ लाइफ:
    • प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पौधे कार्बन प्राप्त करते हैं, जबकि जानवर इसे मुख्य रूप से भोजन के माध्यम से प्राप्त करते हैं। इस तथ्य के कारण कि पौधे और जानवर अपना कार्बन पर्यावरण से प्राप्त करते हैं, वे भी वातावरण में मौजूद कार्बन के लगभग बराबर अनुपात में C-12 एवं C-14 प्राप्त करते हैं।
    • जब पौधे का जीवन चक्र समाप्त हो जाता है तब वातावरण के साथ उसका संपर्क बंद हो जाता है। चूँकि C-12 स्थिर होता है, रेडियोधर्मी C-14 को आधा होने में जितना समय लगता है उसे 'अर्द्ध-जीवन/हाफ लाइफ' कहते हैं और यह समय लगभग 5,730 वर्ष होता है।
    • किसी पौधे अथवा पशु का जीवन समाप्त होने के बाद उसके अवशेषों में C-12 से C-14 के परिवर्तित होते अनुपात को मापा जा सकता है और इसका उपयोग उक्त जीव की मृत्यु के अनुमानित समय का आकलन करने के लिये किया जा सकता है।
  • निर्जीव वस्तुओं की आयु का निर्धारण: 
    • कार्बन डेटिंग को सभी परिस्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये इसका उपयोग चट्टानों जैसी निर्जीव वस्तुओं की आयु निर्धारित करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
    • साथ ही कार्बन डेटिंग से 40,000-50,000 वर्ष से अधिक पुरानी वस्तुओं की आयु का पता नहीं लगाया जा सकता है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि हाफ लाइफ के 8-10 चक्रों के बाद C-14 की मात्रा लगभग बहुत कम हो जाती है जिसके विषय में पता नहीं लगाया जा सकता है।
    • निर्जीव वस्तुओं की आयु निर्धारित करने के लिये कार्बन के बजाय उसमें मौजूद अन्य रेडियोधर्मी तत्त्वों के क्षय को काल निर्धारण पद्धति का आधार बनाया जा सकता है।
      • इन्हें रेडियोमीट्रिक काल निर्धारण विधि कहा जाता है। इनमें से कई तत्त्वों की  हाफ लाइफ अरबों वर्षों से अधिक की होती है जो वैज्ञानिकों को बहुत पुरानी वस्तुओं की आयु का विश्वसनीय रूप से अनुमान लगाने में मदद करती है।

निर्जीव वस्तुओं के आयु निर्धारण के लिये रेडियोमीट्रिक विधि

  • पोटेशियम-आर्गन और यूरेनियम-थोरियम-लेड: चट्टानों की डेटिंग के लिये आमतौर पर नियोजित दो तरीके पोटेशियम-आर्गन डेटिंग और यूरेनियम-थोरियम-लेड डेटिंग हैं।
    • पोटेशियम के रेडियोधर्मी समस्थानिक का आर्गन में क्षय हो जाता है और उनका अनुपात चट्टानों की आयु के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकता है।
    • यूरेनियम और थोरियम में कई रेडियोधर्मी समस्थानिक होते हैं और इन सभी का स्थिर लेड परमाणु में क्षय हो जाता है। किसी भी वस्तु/सामग्री में मौजूद इन तत्त्वों के अनुपात को माप कर उसकी आयु के बारे में अनुमान लगाने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आना: यह निर्धारित करने के तरीके भी हैं कि कोई वस्तु कितने समय तक सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रही है। यह विभिन्न तकनीकों पर निर्भर करती है लेकिन फिर से रेडियोधर्मी क्षय पर आधारित होती है और विशेष रूप से दफन वस्तुओं या टोपोलॉजी में परिवर्तन का अध्ययन करने में उपयोगी है।
    • इनमें से सबसे साधारण को कॉस्मोजेनिक न्यूक्लाइड डेटिंग या CRN कहा जाता है, और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के कोर की आयु का अध्ययन करने के लिये नियमित रूप से इसका उपयोग किया जाता है।
  • अप्रत्यक्ष कार्बन डेटिंग: कुछ स्थितियों में कार्बन डेटिंग का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से भी किया जा सकता है।
    • एक ऐसा तरीका जिसमें विशाल बर्फ की चादरों के अंदर फँसे कार्बन डाइऑक्साइड अणुओं का अध्ययन करके ग्लेशियरों और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के कोर की आयु निर्धारित की जाती है।
      • फँसे हुए अणुओं का बाहरी वातावरण से कोई संपर्क नहीं होता है और वह उसी अवस्था में पाए जाते हैं जिस अवस्था में वे फँस गए थे। इनकी उम्र का निर्धारण उस समय का कच्चा अनुमान देता है जब बर्फ की चादरें बन रही थीं।

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

ज्ञानवापी शिवलिंग के आयु निर्धारण की सीमाएँ

  • इस मामले में विशिष्ट सीमाएँ हैं जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित हैं और विघटनकारी तरीकों या संरचना को उखाड़ने से रोकती हैं।
  • इसलिये कार्बन डेटिंग जैसे पारंपरिक तरीके, जिसमें संरचना के नीचे फँसी हुई कार्बनिक सामग्री का विश्लेषण करना शामिल है, इस विशेष स्थिति में संभव नहीं हो सकता है।

ज्ञानवापी विवाद

  • ज्ञानवापी विवाद वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के इर्द-गिर्द घूमता है। हिंदू याचिकाकर्त्ताओं का दावा है कि मस्जिद एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। उनका तर्क है कि "शिवलिंग" की उपस्थिति मंदिर के अस्तित्त्व के प्रमाण के रूप में है। याचिकाकर्त्ताओं ने मस्जिद परिसर की बाहरी दीवार पर माँ शृंगार गौरी की पूजा का अधिकार मांगा है। 
  • हालाँकि मस्जिद की प्रबंधन समिति का कहना है कि भूमि वक्फ संपत्ति है और तर्क देती है कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 मस्जिद के स्वरूप में किसी भी बदलाव पर रोक लगाता है।
  • ऐतिहासिक रूप से ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 1669 में मुगल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में हुआ था। इसका निर्माण प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर के विध्वंस के बाद किया गया था। मंदिर के चबूतरे को बरकरार रखा गया था और इसे मस्जिद के आँगन के रूप में उपयोग किया गया था, जबकि मक्का की ओर एक दीवार को किबला दीवार के रूप में संरक्षित किया गया था। भगवान शिव को समर्पित वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर बाद में 18वीं शताब्दी में रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा मस्जिद के बगल में बनाया गया था।
  • पिछले कुछ वर्षों में कई दावे किये गए हैं, जिनमें से कुछ का दावा है कि मस्जिद स्थल मूल रूप से हिंदुओं की पूजा का पवित्र स्थान है।

पोखरण-II की 25वीं वर्षगांठ

चर्चा में क्यों?

भारत ने हाल ही में 11 मई 2023 को पोखरण-द्वितीय की 25वीं वर्षगांठ मनाई , जिसमें सफल परमाणु बम परीक्षण विस्फोट हुआ, जो परमाणु शक्ति बनने की अपनी यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया।

  • 11 मई को भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है , जिन्होंने देश की वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति के लिए काम किया और पोखरण परीक्षणों के सफल आयोजन को सुनिश्चित किया।

पोखरण-द्वितीय और परमाणु शक्ति के रूप में भारत की यात्रा क्या है?

  • मूल:
    • 1945 में, प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी होमी जे भाबा ने बॉम्बे में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना के लिए पैरवी की , जो परमाणु भौतिकी अनुसंधान के लिए समर्पित था।
      • टीआईएफआर परमाणु भौतिकी के अध्ययन के लिए समर्पित भारत का पहला शोध संस्थान बन गया ।
    • स्वतंत्रता के बाद, भाबा ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को परमाणु ऊर्जा के महत्व के बारे में आश्वस्त किया और 1954 में भाभा के निदेशक के रूप में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की स्थापना की गई।
      • महत्वपूर्ण सार्वजनिक जांच से दूर, डीएई स्वायत्त रूप से संचालित होता है
  • भारत के परमाणु हथियारों की खोज के कारण:
    • भारत की परमाणु हथियारों की खोज चीन और पाकिस्तान से इसकी संप्रभुता और सुरक्षा खतरों पर चिंताओं से प्रेरित थी।
    • 1962 के चीन-भारतीय युद्ध और 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने की आवश्यकता को बढ़ा दिया।
    • 1965 में चीनी समर्थन के साथ पाकिस्तान के साथ युद्ध ने रक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर और बल दिया।
  • पोखरण-I:
    • के बारे में :
      • 1970 के दशक तक, भारत परमाणु बम परीक्षण करने में सक्षम था।
        • पोखरण-I भारत का पहला परमाणु बम परीक्षण था जो 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण टेस्ट रेंज में किया गया था।
      • इसका कोड-नेम स्माइलिंग बुद्धा था और आधिकारिक तौर पर इसे "कुछ सैन्य प्रभाव" के साथ "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" के रूप में वर्णित किया गया था।
      • अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत परमाणु हथियार क्षमता रखने वाला दुनिया का छठा देश बन गया ।
    • परीक्षण के निहितार्थ:
      • परीक्षणों को लगभग सार्वभौमिक निंदा और विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा से महत्वपूर्ण प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।
        • इसने परमाणु प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति को बाधित किया और इसकी परमाणु यात्रा को धीमा कर दिया।
      • घरेलू राजनीतिक अस्थिरता, जैसे 1975 का आपातकाल और परमाणु हथियारों का विरोध भी प्रगति में बाधा बन गया।
    • पोखरण-I के बाद:
      • 1980 के दशक में पाकिस्तान की प्रगति के कारण परमाणु हथियारों के विकास में रुचि का पुनरुत्थान देखा गया।
      • भारत ने अपने मिसाइल कार्यक्रम के लिए धन में वृद्धि की और अपने प्लूटोनियम भंडार का विस्तार किया।
  • पोखरण-II:
    • के बारे में :
      • पोखरण-द्वितीय राजस्थान के पोखरण रेगिस्तान में 11-13 मई 1998 के बीच भारत द्वारा किए गए पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों के अनुक्रम को संदर्भित करता है ।
      • कोड नाम - ऑपरेशन शक्ति, इस घटना ने भारत के दूसरे सफल प्रयास को चिह्नित किया।
    • महत्व:
      • पोखरण-द्वितीय ने परमाणु शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत किया।
      • इसने परमाणु हथियारों को रखने और तैनात करने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया, इस प्रकार इसकी निवारक क्षमताओं को बढ़ाया।
      • प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर खुद को पोखरण-द्वितीय के बाद परमाणु हथियार रखने वाले राज्य के रूप में घोषित किया।
    • निहितार्थ:
      • जबकि 1998 में परीक्षणों ने भी कुछ देशों (जैसे अमेरिका) से प्रतिबंधों को आमंत्रित किया था, निंदा 1974 की तरह सार्वभौमिक थी।
      • भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बाजार की क्षमता के संदर्भ में, भारत अपनी जमीन पर खड़ा होने में सक्षम था और इस प्रकार एक प्रमुख राष्ट्र राज्य के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया।
  • भारत का परमाणु सिद्धांत:
    • भारत ने विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध की नीति अपनाई , जिसमें कहा गया कि वह निवारक उद्देश्यों के लिए पर्याप्त परमाणु शस्त्रागार बनाए रखेगा लेकिन हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं होगा।
    • 2003 में, भारत आधिकारिक तौर पर अपने परमाणु सिद्धांत के साथ सामने आया, जिसमें स्पष्ट रूप से 'पहले उपयोग नहीं' नीति पर विस्तार से बताया गया था।
  • भारत की वर्तमान परमाणु क्षमता:
    • फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (FAS) के अनुसार, भारत के पास वर्तमान में लगभग 160 परमाणु हथियार हैं।
    • भारत ने भूमि, वायु और समुद्र से परमाणु हथियारों के प्रक्षेपण की अनुमति देते हुए एक परिचालन परमाणु त्रिक क्षमता हासिल की है ।
      • ट्रायड डिलीवरी सिस्टम में अग्नि, पृथ्वी और के सीरीज बैलिस्टिक मिसाइल, लड़ाकू विमान और परमाणु पनडुब्बियां शामिल हैं।

परमाणु हथियारों के बारे में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर भारत की स्थिति क्या है?

  • अप्रसार संधि (NPT) 1968:
    • भारत हस्ताक्षरकर्ता नहीं है; संधि की कथित भेदभावपूर्ण प्रकृति और परमाणु हथियार वाले राज्यों से पारस्परिक दायित्वों की कमी के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए एनपीटी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया ।
  • व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी):
    • भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है क्योंकि यह परमाणु हथियार संपन्न राज्यों (एनडब्ल्यूएस) से समयबद्ध निरस्त्रीकरण प्रतिबद्धता के लिए एक मजबूत वकील है और सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने से बचने के लिए एक कारण के रूप में प्रतिबद्धता की कमी का उपयोग कर सकता है।
  • परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि (TPNW) :
    • यह 22 जनवरी 2021 को लागू हुआ और भारत इस संधि का सदस्य नहीं है।
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG):
    • भारत NSG का सदस्य नहीं है।
  • वासेनार पैकेज:
    • भारत दिसंबर 2017 को अपने 42वें भाग लेने वाले राज्य के रूप में व्यवस्था में शामिल हुआ।

AI-जनित कार्य एवं कॉपीराइट स्वामित्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) के संदर्भ में कॉपीराइट उल्लंघन के मुद्दे ने काफी ध्यान आकर्षित किया है, साथ ही आवश्यक चर्चाओं को जन्म दिया है।

  • इस अंतर्विरोध का एक प्रसिद्ध उदाहरण एंडी वारहोल फाउंडेशन और लिन गोल्डस्मिथ के गायक प्रिंस के चित्र के बीच संबंध है।
    • विवाद इस बात पर केंद्रित है कि क्या वारहोल द्वारा छवि के अन्य संस्करणों को उत्पन्न करने हेतु छवि का उपयोग उचित रुप से किया गया है या यह कॉपीराइट उल्लंघन है।

कॉपीराइट उल्लंघन और AI के बीच संबंध

  • कॉपीराइट सामग्री का प्रशिक्षण डेटा के रूप में उपयोग:
    • अपने एल्गोरिदम को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने के लिये चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसे AI सिस्टम को प्रायः व्यापक मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है।
      • इसमें कॉपीराइट सामग्री जैसे चित्र, टेक्स्ट/लेख और संगीत शामिल हैं, जो कॉपीराइट के उल्लंघन जैसी चिंताओं को बढ़ा सकते हैं।
  • AI तकनीकों का उपयोग मौजूदा कॉपीराइट किये गए कार्यों की प्रतिकृति बनाने या नकल करने के लिये किया जा सकता है। एल्गोरिदम ऐसी सामग्री का विश्लेषण और निर्माण कर सकते हैं जो संरक्षित कार्यों से काफी हद तक मिलती-जुलती है, यह इस तरह की प्रतिकृति की वैधता और नैतिक निहितार्थों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
  • उचित और परिवर्तनकारी उपयोग: 
    • उचित उपयोग या फेयर यूज़ अमेरिका का एक कानूनी सिद्धांत है (जैसा कि हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा माना गया) जो कुछ परिस्थितियों में बिना अनुमति के भी कॉपीराइट सामग्री के सीमित उपयोग की अनुमति देता है।
      • यह निर्धारित करने के लिये कि AI-जनित कार्य फेयर यूज़ हेतु योग्य है अथवा नहीं, उसके उपयोग के उद्देश्य, प्रकृति, मात्रा और प्रभाव जैसे कारकों पर विचार किया जाना आवश्यक है।
    • प्रायः परिवर्तनकारी उपयोग (Transformative use) को फेयर यूज़ एनालिसिस का एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है, जिसमें कॉपीराइट किये गए कार्य में नए अर्थ या अभिव्यक्ति को जोड़ना शामिल है।
  • दायित्व और उत्तरदायित्व: 
    • AI-जनित कार्यों में कॉपीराइट उल्लंघन के लिये दायित्व निर्धारित करना जटिल हो सकता है, जिसमें AI डेवलपर्स, उपयोगकर्त्ताओं और स्वयं कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका के विषय में प्रश्न शामिल हैं।
    • कॉपीराइट कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी AI-जनित कार्यों के निर्माता और उपयोगकर्त्ता दोनों की है। 
      • यदि AI प्रणाली मानव हस्तक्षेप के बिना काम करती है, तो सही कॉपीराइट स्वामी का निर्धारण करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 

भारत में AI-जनित कंटेंट की वर्तमान कानूनी स्थिति

  • भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और पेटेंट अधिनियम, 1970 कॉपीराइट उल्लंघन हेतु उचित व्यवहार एवं प्रगणित अपवादों के लिये विशिष्ट प्रावधान करता है। 
  • AI मॉडल के प्रशिक्षण के लिये कॉपीराइट सामग्री का उपयोग कानूनी ग्रे सूची में रखा जाता है।
    • जैसा कि कॉपीराइट कानून AI द्वारा पूरी तरह से उत्पन्न किसी भी रचना की रक्षा नहीं करते हैं, भले ही यह मानव-निर्मित पाठ संकेतक से उपजी हो।
  • कॉपीराइट और AI पर हाल ही में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय जैसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों एवं अन्य न्यायालय के अवलोकन और फैसले, भारतीय कॉपीराइट कानून में निष्पक्षता की व्याख्या को प्रभावित कर सकते हैं।
  • भारतीय कॉपीराइट कानून और उचित उपयोग प्रावधानों को AI-जनित सामग्री द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये अनुकूलित करने की आवश्यकता होगी।

आगे की राह 

  • कानूनी उदाहरणों की कमी के बावजूद सिविक चंद्रन बनाम सी. अम्मिनी अम्मा (1996) के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित फोर फैक्टर टेस्ट (अर्थात् चार कारकों के आधार पर परीक्षण) इस बात का निर्धारण करने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है कि किसी उपयोग को फेयर यूज़ माना जाए अथवा नहीं। यह अमेरिका के फेयर यूज़ सिद्धांत के फोर फैक्टर टेस्ट के समान ही है। ये फैक्टर/कारक हैं:
    • उपयोग का उद्देश्य, जिसमें इस बात को शामिल किया गया है कि AI द्वारा उत्पादित सामग्री का उपयोग व्यावसायिक या गैर-लाभकारी शैक्षिक उद्देश्यों के लिये है अथवा नहीं। 
    • कॉपीराइट कार्य की प्रकृति (Nature)
    • संपूर्ण कॉपीराइट किये गए कार्य की तुलना में उपयोग किये गए हिस्से की मात्रा और पर्याप्तता
    • संभावित बाज़ार या कॉपीराइट किये गए कार्य के मूल्य/महत्त्व पर इसके उपयोग का प्रभाव।
  • AI प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ कदम-कदम से कदम मिलाने के लिये बौद्धिक संपदा कानूनों को अपडेट किया जाना चाहिये।
    • AI परियोजनाओं के लिये निरीक्षण एवं अनुपालन तंत्र के साथ डेटा उपयोग और शासन नीतियों को लागू किया जाना चाहिये।
    • AI फर्मों के लिये अनिवार्य किया जाना चाहिये कि वे कॉपीराइट सुरक्षा, ऑडिट और आकलन के लिये ज़िम्मेदार अनुपालन अधिकारियों को नियुक्त करें।
  • कॉपीराइट उल्लंघन और AI के बीच अंतःप्रतिच्छेदन का प्रभाव AI प्रौद्योगिकी के विकास एवं इसके संभावित अनुप्रयोगों पर पड़ सकता है। कॉपीराइट मालिकों के अधिकारों की रक्षा और AI के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के बीच संतुलन स्थापित करना इस क्षेत्र के विकास व उन्नति के लिये आवश्यक है।
The document Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2218 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2218 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Extra Questions

,

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

study material

,

Previous Year Questions with Solutions

,

past year papers

,

pdf

,

shortcuts and tricks

,

Objective type Questions

,

video lectures

,

Viva Questions

,

Free

,

Semester Notes

,

Weekly & Monthly

,

Important questions

,

mock tests for examination

,

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

practice quizzes

,

Weekly & Monthly

,

ppt

,

Summary

,

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

MCQs

,

Sample Paper

,

Exam

,

Weekly & Monthly

;