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विपक्षी नेता - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हमारा प्रधानतः एक भागीदारी वाला प्रजातंत्र है जो संसदीय शासन व्यवस्था पर आधारित है। इसमें विपक्षी दल सत्ता प्राप्त करने के लिए मान्य संसदीय तरीकों से सदन में प्रयास करते हैं। इस शताब्दी की एक महान संसदीय उपलब्धि यह है कि विपक्ष की भूमिका को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है और संसदीय प्रणाली में उसे उचित स्थान दिया गया है। 
संसद के गिने.चुने पदाधिकारियों में, जिनमें सदन के नेता, संसदीय कार्य मंत्री या मुख्य सचेतक या अन्य सचेतक जो संसद की कार्यवाही में सदस्यों की भागीदारी को वास्तविक, प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाने में और सभा को एक स्पष्ट दिशा निर्धारित करने में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं, विपक्ष के नेता का स्थान अनुपम एवं अति महत्वपूर्ण है।

विपक्षी नेता का उद्भव
ब्रिटेन की संसदीय शासन प्रणाली में बहुत पहले से ही विपक्ष के महत्व को व्यावहारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया था। विख्यात मुहावरा श्हिज मैजेस्टीज़ अपोजिशनश्  महामहिम का विपक्ष जोन कम होबहाउस द्वारा गढ़ा गया था। मगर ब्रिटेन में विपक्षी नेता के लिए न किसी संविधि में न ही सभा के किसी स्थायी आदेश में कोई सरकारी कार्य निर्धारित किया गया है। सन् 1937 में विपक्ष के नेता को वेतन देकर सांविधिक मान्यता प्रदान की गई, श्महामहिम की वैकल्पिक सरकारश् माना जाता है। अतः महामहिम के विपक्ष का स्थान महामहिम की सरकार के तुरन्त बाद आता है और विपक्ष के नेता को महामहिम का वैकल्पिक प्रधान मंत्री समझा जाता है। श्तकनीकी तौर पर वह केवल कुछ समय के लिए मुख्य विपक्षी दल का नेता है। विपक्ष में कई दल हो सकते हैं, परन्तु विपक्ष का अर्थ है दूसरा मुख्य दल, जो अस्थायी तौर पर अल्पमत में है और जिसमें अनुभवी नेता हैं और जो समय आने पर, सत्ता सँभालने की स्थिति में है। इससे यह गारंटी मिलती है कि इसके द्वारा की गई आलोचना किसी तर्कसंगत नीति के तहत होगी और पूरी जिम्मेदरी के साथ की जाएगी न कि सत्ता हथियाने की भावना से।
विपक्ष के नेता का कार्य अत्यन्त लोक महत्व का है। एक तरह से विपक्ष का नेता सदन के नेता का परिपूरक है। वस्तुतः उसका स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि अनुसचिवीय और अन्य वेतन अधिनियम, 1975 के अंतर्गत  अपना वेतन न्यायाधीशों की तरह संचित निधि से प्राप्त करता है।

विपक्षी नेता की भूमिका
संसदीय जनतंत्र में विपक्ष के महत्व को देखते हुए, विपक्षी नेता का पद अत्यधिक दायित्वपूर्ण है। उससे अन्य बातों के साथ.साथ यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों के अतिक्रमण पर नजर रखेगा और उन मुद्दों पर वाद.विवाद की माँग करेगा जिन पर संरकार संसद की आलोचना से बचना चाहती है। अपने कर्तव्य पालन में उसे प्रधान मंत्री से ज्यादा एकनिष्ठ एवं दृढ़ होना चाहिये | "एक  तरीके से यह भावी सत्ता पक्ष के सदस्यों के लिए एक श्रेष्ठ प्रशिक्षण है और एक लोकतांत्रिक सरकार के कारगर संचालन के लिए अत्यावश्यक है।" अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वाह करते हुए विपक्ष के नेता को न सिर्फ अपनी वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये तथा उसे अपनी भावी स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिये।
भारत में, संसद और विधानसभाओं के कारगर कार्यकरण के लिए जिन परिपाटियों, परंपराओं और अन्य कार्यविधियों को अपनाने की जरूरत है, उनका निर्धारण करने के लिए 1967 में पेज समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने यह सिफारिश की थी कि सबसे बड़े मान्यता प्राप्त विपक्षी दल के नेता को विपक्षी नेता’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये। इस समिति के अनुसार यदि मुख्य मंत्री सदन में कोई नीति वक्तव्य देने से पहले, विपक्ष के नेता को आमंत्रित करे और उसे वक्तव्य की एक प्रति अग्रिम दे और जहाँ तक संभव हो सभा में किसी विशेष दिन किसी विशेष कार्य करने के उसके सुझाव को अध्यक्ष और सभा के नेता स्वीकार करें तो यह एक अच्छी परंपरा होगी। पेज समिति ने यह भी सुझाव दिया कि विपक्षी नेताष् को वेतन भी दिया जाना चाहिये और उसे निवास स्थान एवं कार्यालय तथा सचिवीय कर्मचारी भी उपलब्ध कराये जाने चाहिये। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार 1969 में लोक सभा में एक मान्यता प्राप्त विपक्षी दल बना। नवम्बर, 1969 में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में हुए विभाजन के परिणामस्वरूप बनी नेता को विपक्षी नेता के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इस संबंध में अध्यक्ष के निर्देश 121 में अन्य बातों के साथ यह प्रावधान है किः
121 किसी संसदीय अथवा ग्रुप को मान्यता देने में अध्यक्ष निम्न लिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखेंगे।
1. सदस्यों की संख्या जो कोई संसदीय दल बनाना चाहे जिसमें:
(क) सामान्य निर्वाचन के अवसर पर एक स्पष्ट विचारधारा तथा संसदीय कार्यक्रम की, जिसके आधार पर वे इस सभा के लिए चुने गये हों, घोषणा की हो;
(ख) सभा के बाहर और भीतर एक - एक संगठन बना रखा हो; और  
(ग) सभा की बैठक गठित करने के लिए निश्चित गणपूर्ति जितनी, अर्थात्, सभा के सदस्यों की कुल संख्या के दसवें हिस्से के बराबर सदस्य संख्या बना ली हो। 
पुन: मार्च, 1977 में हुए लोक सभा चुनावों के बाद सरकार के विरोधी दल को विपक्षी दल के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977 के पारित होने के साथ विपक्षी नेताष् का सांविधिक मान्यता प्रदान की गई। यह अधिनियम 1 नवम्बर, 1977 से लागू हुआ।
इस अधिनियम की धारा.2 में विपक्षी नेताष् की परिभाषा इस प्रकार दी गईः
"2. इस अधिनियम में संसद के किसी सदन के संबंध में ‘विपक्षी नेता’ से, यथास्थिति, राज्य सभा या लोक सभा का वह सदस्य अभिप्रेत है जो सरकार के विपक्ष में सबसे अधिक संख्या वाले दल का उस सदन में उस समय नेता है और जिसे, यथास्थिति, राज्य सभा के सभापति या लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा उस रूप में मान्यता दी गई है।"
स्पष्टीकरण: जहाँ राज्य सभा या लोक सभा में सरकार के विपक्ष में दो या दो से अधिक ऐसे दल हैं जिनकी संख्या एक समान है, वहाँ यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष ऐसे दलों की परिस्थिति का ध्यान रखते हुए इन दलों के नेताओं में से किसी एक को विपक्षी नेता के रूप में इस धारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता देगा और ऐसी मान्यता अंतिम तथा निश्चायक होगी।

सुविधाएं एवं विशेषाधिकार 

लोक सभा और राज्य सभा में विपक्षी नेता, संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977 (समय.समय पर यथासंशोधित) के अंतर्गत तथा इसमें निर्धारित नियमों के अंतर्गत वेतन के साथ.साथ निम्नलिखित सुविधाएं पाने के भी हकदार हैंः
(क)   वेतन एक हजार पांच सौ रुपए प्रति माह और कार्यालय के प्रत्येक दिन के लिए एक सौ पचास रुपए का दैनिक भत्ता।
(ख)   तीन हजार रुपये प्रति माह निर्वाचन.क्षेत्र भत्ता तथा एक हजार रुपये प्रति माह अतिथि भत्ता।
(ग)   किराया.मुफ्त सुसज्जित निवास स्थान बिना किसी अनुरक्षण प्रभार के।
(घ)   अपने तथा अपने कुटुम्ब के सदस्यों के लिए यात्रा भत्ताः

(i)    उस यात्रा के बारे में, जो वह पद ग्रहण करने के लिए दिल्ली के बाहर अपने प्रायिक निवास स्थान से दिल्ली तक करे, और 
(ii)   उस यात्रा के बारे में, जो वह पद मुक्त होने पर दिल्ली के बाहर अपने प्रायिक निवास स्थान तक करे।

(ङ)   विपक्षी नेता के रूप में अपने कत्र्तव्यों के निर्वहन में अपने द्वारा किये गये दौरों के बारे में, चाहे वे समुद्र, भूमि या वायुमार्ग द्वारा किये जायें, यात्रा और दैनिक भत्ते पाने का हकदार होगा।
(च)  विपक्षी नेता और उसके कुटुम्ब के सदस्य सरकार द्वारा अनुरक्षित अस्पतालों में मुफ्त वास.सुविधा और चिकित्सा उपचार के भी हकदार होंगे।
(छ)  टेलीफोन और सचिवीय सुविधाएँ।
(ज)  तीन हजार रुपए प्रतिमाह सवारी भत्ता। परन्तु जहाँ विपक्षी नेता को उसकी सुरक्षा के प्रयोजनों के लिए अथवा अन्यथा किसी अवधि में ड्राइवर सहित गाड़ी की सुविधा दी जाती है वहाँ वह उस अवधि के लिए सवारी भत्ते का हकदार नहीं होगा।
(झ)  मोटर.कार खरीदने के लिए प्रतिसंदेय अधिदाब के तौर पर अग्रिम धनराशि, जिसे वह अपने पद के कत्र्तव्यों का सुविधानुसार तथा दक्षतापूर्वक निर्वहन कर सके।
विपक्षी नेता कुछ अनुष्ठानिक विशेषाधिकार का भी हकदार है जैसे:

(क)  लोक सभा में विपक्षी नेता को अध्यक्षपीठ की बायीं ओर प्रथम पंक्ति में उपाध्यक्ष की सीट से अगली सीट आबंटित की जाती है।
(ख)  विपक्षी नेता को संसद भवन में एक कक्ष तथा टेलीफोन सुविधा प्रदान की जाती है।

सार्वजनिक समारोहों आदि में बैठने की व्यवस्था में विपक्षी नेता को मंत्रिपरिषद के सदस्यों के समान समझा जाता है।
परंपरा के तौर पर वक्तव्य देने में और प्रश्न काल में पूरक प्रश्न पूछने में विपक्षी नेता को अधिमान्यता दी जाती है। 

विपक्षी नेता का निर्धारण
दोनों सभाओं के पीठासाीन अधिकारियों द्वारा जारी किये गये निर्देशों के अनुसार किसी भी संसदीय दल अथवा ग्रुप के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल के सदस्यों की संख्या सभा के सदस्यों की कुल संख्या के दसवें हिस्से के बराबर होना अनिवार्य है। संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम 1977 के अंतर्गत पीठासाीन अधिकारियों को किसी भी संसदीय दल के नेता को विपक्षी नेता के रूप में मान्यता देने का अधिकार दिया गया है, यदि वह अधिनियम द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो। पीठासीन अधिकारी द्वारा इस मामले में लिया गया फैसला अंतिम तथा निश्चायक होता है और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है।
नौवीं लोक सभा के 2 दिसम्बर, 1989 में गठन के समय 195 सदस्यों वाली कांग्रेस (इ) दल लोक सभा के सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभर कर सामने आया। परन्तु केवल अपनी सदस्य संख्या के आधार पर सरकार बनाने की स्थिति में न होने के कारण, उस दल ने, विपक्ष में रहने का फैसला किया। परिणामस्वरूप, भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन के साथ कई दलों के एक गठबंधन राष्ट्रीय मोर्चा ने जनता दल के नेतृत्व में सरकार बनाई। कांग्रेस (ई) के नेता श्री राजीव गांधी को 18 अगस्त, 1989 से विपक्षी नेता के रूप में मान्यता दी गई।
परन्तु भारतीय जनता पार्टी ने जिसने श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार को बाहर से समर्थन दिया था 23 अक्टूबर, 1990 को अपना समर्थन वापस ले लिया। कुछ ही दिनों बाद जनता दल में (i) जनता दल (ii) जनता दल (स) के रूप में विभाजन हो गया और अध्यक्ष ने इस विभाजन को अपने 11 नवम्बर, 1990 को सदन में घोषित आदेशानुसार 5 नवम्बर, 1990 से मान्यता प्रदान की। 
7 नवम्बर, 1990 को श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार सदन में बहुमत सिद्ध करने में असफल रही। 10 नवम्बर, 1990 को कांग्रेस (आई), ए.आई.ए.डी.एम.के. आदि के बाहरी समर्थन से जनता दल (समाजवादी) के नेता चंद्रशेखर के नेतृत्व में एक नई सरकार ने शपथ ग्रहण किया।
इन परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी, जिसकी सदस्य संख्या 86 थी और वह कांग्रेस (आई) पार्टी के बाद दूसरी बड़ी पार्टी थी, ने विपक्षी दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने का दावा पेश किया तथा श्री आडवाणी को विपक्षी दल का नेता बनाने का अपना दावा पेश किया। इस मामले पर निर्णय लेने से पूर्व अध्यक्ष ने लोक सभा के तत्कालीन विपक्षी दल के नेता श्री गांधी से इस पर विचार मांगे। इसके उत्तर में कांग्रेस (आई) के मुख्य सचेतक (प्रो. पी.जे. कुरियन) ने विपक्षी दल के मामले में यथास्थिति बनाये रखने को कहा क्योंकि उनका दल अब भी विपक्षी दल के रूप में ही कार्य करता रहेगा। अपने दल के समर्थन में प्रो. कुरियन ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये।
(1)    संविधान में विपक्षी नेता या विपक्षी दल के लिए विशिष्ट उपबन्ध नहीं है। विख्यात न्याय विदों के अनुसार विपक्षी दलश् का उपयोग श्सत्तारूढ़ दलश् के विपरीतार्थ किया गया है। श्सरकारश् शब्द की अभिव्यक्ति श्सत्तारूढ़ दलश् से है और जो दल सत्तारूढ़ दल या शाशक  दल नहीं है वह संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार विपक्षी दल है।  
(2)     संविधान की संस्थापित परंपरा के अनुसार त्रिशंकु संसद के मामले में एक दल दूसरे दल को अल्पमत सरकार बनाने में सहयोग देता है तो ऐसी स्थिति में वह दल विपक्षी दल में बना रहता है। यह निश्चित रूप से इसलिए होता है क्योंकि ऐसे दल के साथ मिली.जुली सरकार बनाकर वह अपना परिचय तथा संसद में विपक्षी दल के रूप में अपनी भूमिका को खोना नहीं चाहता।
(3)     ब्रिटेन में अल्पमत सरकारों का गठन हुआ है एवं साधारणतः वहाँ मिली.जुली सरकार की तुलना में अल्पमत सरकारों की सत्ता रही है। विपक्षी दल तथा सरकार एक दूसरे का सहयोग लेते थे तथा राष्ट्रीय संकट की स्थिति में विपक्षी दल सरकर को सहयोग दे सकती है। 
(4)    श्री राजीव गांधी ने राष्ट्रपति को सरकार बनाने से इन्कार करते हुए उन्हें यह आश्वासन दिय है कि यदि श्री चन्द्रशेखर को अल्पमत सरकार बनाने के लिए बुलाया जाता है तो वे उसका समर्थन करेंगे, तो उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में अपना संवैधानिक दायित्व पूर किया।
इस मामले की गहराई से जाँच करने पर, अध्यक्ष महोदय इस निर्णय पर पहुँचे कि यदि एक दल एक ऐसी अल्पमत सरकार को बिना किसी शर्त के समर्थन दे रहा है, जिसका अस्तित्व उसके समर्थन पर निर्भर करता है, तो ऐसा दल विपक्षी दल होने का दावा नहीं कर सकता। अतः अध्यक्ष महोदय ने भारतीय जनता पार्टी को विपक्षी दल के रूप में मान्यता देने की माँग स्वीकार कर लिया तथा 24 दिसम्बर, 1999 से श्री लाल कृष्ण आडवाणी को विपक्षी दल के रूप में मान्यता प्रदान कर दी। तदनुसार उसी तारीख से श्री राजीव गांधी विपक्षी दल के नेता नहीं रहे।

राष्ट्रमंडल देशों में विपक्ष के नेता की स्थिति
कुछ राष्ट्रमंडल देशें के विपक्षी दल के नेताओं के दायित्व तथा कार्य इस प्रकार हैंः

 

(a) ब्रिटेन
कार्य संचालन के लिए सरकार के मुख्य सचेतक तथा मुख्य विपक्षी सचेतक के बीच अनौपचारिक बातचीत में विपक्ष के नेता का परामर्श लिया जाता है। विपक्ष का नेता कोई प्रश्न नहीं करता। यदि वे अल्पकालीन प्रश्न पूछना चाहते हों तथा प्रश्न क्रम में हों, तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष महोदय उस प्रश्न की अत्यावश्यकता पर विचार किये बिना, जैसा कि अन्य सदस्यों के गैर.सरकारी नोटिस पर किया जाता है, उसे स्वीकार कर लेता है। परन्तु सूचना आदि देने से संबंधित नियमों में विपक्ष के नेता को किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जाती। इसके अलावा प्रधान मंत्री अथवा सरकार ने मंत्री को वक्तव्य देने की तरह विपक्ष के नेता को वक्तव्य देने की सुविधा नहीं दी गई है।
साधारणतः विपक्ष के नेता को किसी भी सदस्य से पहले, जो सरकार का सदस्य नहीं है, बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है या अनुपूरक प्रश्न पूछने की अनुमति दी जाती है। संसद सत्र प्रारम्भ होने पर महारानी के अभिभाषण पर हुए वाद.विवाद का उत्तर देने के लिए प्रधान मंत्री के पश्चात् पहले विपक्ष के नेता को कहा जाता है।औपचारिक तथा समारोहों के अवसर पर प्रधान मंत्राी के तुरन्त बाद विपक्ष के नेता को बुलाया जाता है। साधाणतः वे विशेषाधिकार समिति का सदस्य होता है। उनके द्वारा नामांकित व्यक्तियों को लोक लेखा समिति के चेयर मैन तथा प्रशासन के संसदीय आयुक्त (ओडमैन) संबंधी चयन समिति का चेयरमैन नियुक्त किया जाता है। 

(b) ऑस्ट्रेलिया 
सदन के कार्य.संचालन की व्यवस्था हेतु सदन के नेता तथा विपक्षी कार्यों के प्रबंध (छाया मंत्रिमंडल का एक सदस्य) के बीच अनौपचारिक बातचीत के जरिए विपक्ष के नेता से अप्रत्यक्ष रूप से परामर्श लिया जाता है। विपक्ष का नेता नोटिस आदि के संबंध में विपक्ष के नेता को किसी भी प्रकार की विशेष अधिमानता नहीं दी जाती है। विपक्षी दल के अन्य सदस्यों के मामले में बोलने हेतु विपक्ष के नेता को अध्यक्ष द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। वे सदन की अनुमति से प्रधान मंत्री/मंत्री की तरह किसी मामले पर वक्तव्य दे सकता है। वेतन तथा भत्ते निर्धारित करने वाले सर्वाधिक प्राधिकरण द्वारा किए गए उपबंधों के अनुसार विपक्ष के नेता को श्हाउस आफ रिप्रजेंटेटिव और प्रेजिडेट आफ सीनेट के तुल्य रखा गय है। उसे मिलने वाले वेतन, भेत्ते, आवास, यात्रा की सुविधाएं तथा कर्मचारी आदि विशेषाधिकार केबिनेट मंत्री के समान मिलते हैं।

(c) कनाडा
कनाडा की संसद में महारानी ‘अपर हाउस’, जिसे सीनेट कहते हैं एवं हाउस आॅफ काॅमन्स होते हैं। सीनेट के राजनीतिक अधिकारियों में सरकारी पक्ष एवं विपक्ष के नेता तथा उनके उपनेता सरकार और विपक्ष के सचेतक और मंत्रिमंडल के सचेतक शामिल हैं। सीनेट मे विपक्ष के नेता का चयन सीनेट पार्टी काॅमन्स के परामर्श से हाउस काॅमन्स के विपक्षी दल के नेता द्वारा किया जाता है। उनका कार्य विपक्ष के नेता तथा उस सदन के नेता जिसका वह सदस्य है, के कार्यों का मिश्रण है या वह वाद.विवाद में विपक्ष के दैनिक कार्यों का समन्वय करता है और साथ ही सीनेट के कार्य के विषय में सरकारी पक्ष के नेता के साथ विचार विमर्श करता है। सरकार तथा विपक्ष के उप नेताओं की नियुक्त्यिां काॅमन्स में अपने.अपने दल के नेता द्वारा की जाती है तथा वे सीनेट के नेता को सीनेट के कार्य को सुचारु रूप से चलाने तथा शीघ्रता से पूरा करने में सहयोग प्रदान करते हैं। 
महारानी के अभिभाषण पर बहस के दौरान केवल प्रधान मंत्री तथा विपक्ष का नेता ही 20 मिनट से अधिक समय के लिए बोल सकता है। बजट से संबंधित वाद विवाद में भी विपक्ष के नेता को 20 मिनट से अधिक समय के लिए बोलने का विशेषाधिकार प्राप्त है।

(d)न्यूजीलैंड
सदन में एक या एक से अधिक दलों का प्रतिनिधित्व हो सकता है परन्तु सरकार में नहीं। इन गैर.सरकारी दलों में (यदि एक से अधिक दल हैं तो सबसे बड़े दल को सरकारी विपक्ष कहा जाता है। इसके सदस्य अध्यक्ष के आसान के बाईं ओर बैठते हैं। इस दल का नेता ही विपक्ष का नेता होता है तथा इस पर  कार्यरत होने के नाते उन्हें वेतन तथा भत्ते दिये जाते हैं। यह एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था है, जहाँ पर संसद का सत्र आरम्भ होने के समय यहाँ के सम्राट अपना भाषण पढ़ते हैं तो विपक्ष के नेता और प्रधान मंत्री उसके दाएं और बाएं होते हैं। किसी अन्य जगह सरकार की संसदीय व्यवस्था की विशिष्ट शक्ति इस तरह प्रदर्शित  नहीं होती जितनी कि विपक्ष के नेता पद की गरिमा में होती है। जिसका दर्जा प्रतीक्षारत सरकार के बराबर होता है।
सदन के कक्ष में प्रधान मंत्री, उप.प्रधानमंत्री, विपक्षी दल नेता और विपक्ष के उप नेता सामने की पंक्ति में निश्चित स्थानों पर आमने सामने बैठते हैं और उनके सचेतक ठीक उनके पीछे बैठते हैं।     
गवर्नर जनरल के अभिभाषण के उत्तर में और बजट के मामले में प्रस्तावक तथा अनुमोदक द्वारा दिए गए प्रारंभिक भाषण तथा वित्त मंत्री द्वारा बजट प्रस्तुत किए जाने के बाद विपक्ष का नेता पारंपरिक तौर पर स्थगन प्रस्ताव पेश करता है। इससे विपक्ष के नेता को निर्धारित समय पर वाद.विवाद पुनः शुरू करने का अधिकार मिल जाता है।
विपक्षी दल के नेता को बजट वाद.विवाद पर बोलने के लिए स्थायी आदेशानुसार 40 मिनट का समय दिया जाता है परन्तु यह समय साधरणतः भाषण के शुरूआत में ही वरिष्ठ सरकारी सचेतक के अनुरोध पर सदन के नेता के समय को बढ़ा सकता है और इसके बाद बोलने वाले मंत्री के लिए कोई समय सीमा नहीं है। 
प्रथा के अनुसार मतदान के समय प्रधान मंत्री तथा विपक्ष के "डिवीज़न  लाॅबी" में शामिल नहीं होते- यदि वे कक्ष में उपस्थित हों तो उनके नाम अपने आप कट जाते हैं।
प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता किसी भी सदस्य को समिति में भाग लेने से रोक सकते हैं तथा उसके स्थान पर किसी अन्य सदस्य को नियुक्त कर सकते हैं। प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता को दिए गए अधिकर बहुत ही लचीले हैं और वे इसका प्रयोग किसी का£मक को स्थायी रूप से बदलने, किसी विशेष अवधि के लिए बदलने, किसी विशेष बैठक या बैठक के किसी भाग के लिए बदलने, जबकि किसी विशिष्ट विषय पर विचार हो रहा हो, करते हैं।
चयन समिति, जो अस्तित्व में है, के सदस्यों को बदलने का अधिकार प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता को संयुक्त रूप से स्थायी आदेश के अन्तर्गत मिला हुआ है। व्यवहार में ऐसा है कि प्रधान मंत्री सरकारी सदस्यों को बदलता है और विपक्ष का नेता विपक्षी सदस्यों को बदलता है। 
विशेषाधिकार समिति में अनिवार्य रूप से प्रधान मंत्री/उप प्रधान मंत्री विपक्ष का नेता और विपक्ष का उपनेता सदस्य होते हैं।

(e) श्री लंका
श्री लंका में दलीय व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है। संसद में राजनीतिक दलों का संगठन सरकार और विपक्ष का प्रतिनिधित्व करता है तथा यह सुनिश्चित करता है संसद के सामने सभी पहलू तथा दृष्टिकोणों पर निर्णय लेने से पूर्व उचित विचार किया जाए।
सरकारी ग्रुप सदन के नेता तथा मुख्य सरकारी सचेतक के अधीन होता है। विपक्षी दलों में जिस दल के सबसे अधिक सदस्य होते हैं, उसके नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी जाती है। विपक्ष के नेता को केबिनेट स्तर के मंत्री के समान दर्जा और वेतन मिलता है और साथ ही कर्मचारी सुविधा, सरकारी आवास और कार जैसी सुविधाएं भी मिलती है |

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FAQs on विपक्षी नेता - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. भारतीय राजव्यवस्था में विपक्षी नेता का क्या मतलब है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में विपक्षी नेता वह नेता होता है जो विपक्ष में होते हुए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लोगों के समूह का प्रमुख होता है। यह नेता विभिन्न मुद्दों पर सरकार के नेताओं के खिलाफ विरोध दर्शाता है और विपक्ष के हित में कार्य करता है।
2. भारतीय राजव्यवस्था में UPSC का क्या महत्व है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करने और भर्ती करने का जिम्मेदार है। यह परीक्षा भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय लेखा सेवा और अन्य केंद्रीय संघ सेवाओं के लिए पात्रता का मापदंड होती है।
3. UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए सबसे अच्छी किताबें कौन सी हैं?
उत्तर: UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए कई महत्वपूर्ण किताबें हैं। कुछ लोकप्रिय किताबें इसमें "भारतीय राजव्यवस्था" (M. Laxmikanth), "आधुनिक भारत का इतिहास" (Bipan Chandra), "भारतीय अर्थव्यवस्था" (Ramesh Singh), "सामान्य ज्ञान" (Manohar Pandey) और "विज्ञान और प्रौद्योगिकी" (Arihant Experts) शामिल हैं।
4. UPSC परीक्षा के लिए आवेदन कैसे करें?
उत्तर: UPSC परीक्षा के लिए आवेदन करने के लिए आपको UPSC की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा। वहां आपको ऑनलाइन आवेदन करने के लिए एक आवेदन पत्र उपलब्ध होगा। आपको आवेदन पत्र में आवश्यक जानकारी और दस्तावेज़ों का विवरण प्रदान करना होगा। भुगतान के बाद, आपका आवेदन स्वीकार होगा और आपको परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड और अन्य जरूरी जानकारी प्राप्त होगी।
5. UPSC परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या रणनीति अपनानी चाहिए?
उत्तर: UPSC परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए आपको एक स्वास्थ्य मनोवैज्ञानिक पहलू रखना चाहिए। आपको संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा और निरंतर अध्ययन करना होगा। आपको उचित समय प्रबंधन करना चाहिए और परीक्षा पैटर्न, सिलेबस और पिछले वर्षों के पेपर्स को अच्छी तरह से समझना चाहिए। विभिन्न संसाधनों और स्टडी मटेरियल का उपयोग करना और मॉक टेस्ट पेपर्स का भी अभ्यास करना आपकी तैयारी को मजबूत करेगा।
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