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संघ एवं राज्य - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारतीय संविधान में क्षेत्राीय परिषदें

  • भारतीय संविधान में क्षेत्राीय परिषदों के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था।
  • क्षेत्राीय परिषदों के गठन के सम्बन्ध में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 15 में प्रावधान किया गया। इस धारा के अनुसार भारत में चार क्षेत्राीय परिषदों, यथा उत्तरी क्षेत्रा, मध्य क्षेत्रा, पश्चिमी क्षेत्रा तथा दक्षिणी क्षेत्रा के लिए परिषद का गठन किया जाना था।
  • लेकिन नये राज्यों के निर्माण के कारण क्षेत्राीय परिषदों की संख्या 5 कर दी गयी। वर्तमान समय में भारत में 5 क्षेत्राीय परिषदें कार्यरत है। क्षेत्राीय परिषद तथा उनके अन्तर्गत शामिल राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों का विवरण निम्न प्रकार है -
  • उत्तरी क्षेत्राीय परिषद - जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान राज्य और चण्डीगढ़ तथा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्रा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्रा।
  • मध्य क्षेत्राीय परिषद - उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश राज्य।
  • पूर्वी क्षेत्राीय परिषद - बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम राज्य।
  • पश्चिमी क्षेत्राीय परिषद - गुजरात, महाराष्ट्र तथा गोवा राज्य और दमन एवं दीव तथा दादर एवं नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्रा।
  • दक्षिणी क्षेत्राीय परिषद - आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य एवं पािण्डचेरी संघ राज्य क्षेत्रा।

क्षेत्राीय परिषदों का गठन

  • क्षेत्राीय परिषदों का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इसके निम्नलिखित सदस्य होते है - 
  •  भारत का गृहमंत्राी या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत केन्द्र सरकार का एक मंत्राी।
  •  क्षेत्राीय परिषद के अधीन आने वाले राज्यों के मुख्यमंत्राी।
  •  क्षेत्राीय परिषद के अधीन आने वाले प्रत्येक राज्य के राज्यपाल द्वारा नामजद दो-दो अन्य मंत्राी।
  •  संघ राज्य क्षेत्रों के मामले में प्रत्येक के लिए राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एक सदस्य।
  • योजना आयोग के सदस्यगण (सलाहकार के रूप में)।
  •  क्षेत्राीय परिषदों में शामिल राज्यों के मुख्य सचिव (सलाहकार के रूप में)।
  •  प्रत्येक क्षेत्राीय परिषद का भारत का गृहमंत्राी या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत केन्द्रीय मंत्राी अध्यक्ष होता है तथा सम्बन्धित राज्यों के मुख्यमंत्राी उपाध्यक्ष होते है, जो प्रतिवर्ष बदलते रहते है।


क्षेत्राीय परिषदों का कार्य

  • जनता में भावनात्मक एकता पैदा करना।
  • क्षेत्रावाद तथा भाषावाद के आधार पर उत्पन्न होने वाली विघटनकारी प्रवृत्तियों को रोकना।
  • केन्द्र तथा राज्यों को आर्थिक तथा सामाजिक मामलों में समान नीति बनाने के विचारों तथा अनुभवों का आदान-प्रदान करना।
  • पारस्परिक विकास योजना के सफल तथा तीव्र क्रियान्वयन में सहयोग करना।
  • देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रकार की राजनीतिक सन्तुलन की अवस्था को निर्धारित करना।
  • निम्नलिखित मामलों में सलाह देना-
  • अन्तर्राज्यीय परिवहन के मामले में,
  • भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्या के मामले में,
  • आर्थिक तथा सामाजिक योजनाओं के मामले में,
  • दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य सीमा सम्बन्धी विवादा के मामले में।
     

राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित संवैधानिक प्रक्रिया

  • भारतीय संविधान के भाग एक में अनुच्छेद 1 से 4 तक संघ और उसके राज्य क्षेत्रा के संबंध में बातें है। हमारे संविधान के निर्माताओं ने संघ की संसद को सादी प्रक्रिया से राज्यों का पुनर्गठन करने के लिए शक्ति दी है। इससे संबंधित उपबंध संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में है।

संसद विधि द्वारा-
    (क) किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्रा अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा राज्य क्षेत्रा को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी।
    (ख) किसी राज्य का क्षेत्रा बढ़ा सकेगी।
    (ग) किसी राज्य का क्षेत्रा घटा सकेगी।
    (घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी।

  •  परन्तु इस प्रयोजन के लिए कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना नहीं पेश की जाएगी।
  • संसद द्वारा राज्यों की सीमा, क्षेत्रों तथा नामों में परिवर्तन करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के पूर्व उसे संबंधित विधान मंडल में भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति संबंधित राज्यों के विधान मंडल द्वारा विधेयक पर सहमति देने या न देने दोनों ही हालत में विधेयक को संसद में पेश करने की अनुमति दे सकता है, किंतु जम्मू-कश्मीर के संबंध में पहले विधान मंडल की स्वीकृति अनिवार्य है।

 

महत्वपूर्ण तथ्य


    (क) मूल प्रस्ताव - मूल प्रस्ताव अपने आप में सम्पूर्ण प्रस्ताव होता है, जो सदन के अनुमोदन के लिए पेश किया जाता है। मूल प्रस्ताव को इस तरह से बनाया जाता है कि उससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके। निम्नलिखित प्रस्ताव मूल प्रस्ताव होते है- 
(i) राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव,
(ii)अविश्वास प्रस्ताव - इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद् में अपना अविश्वास व्यक्त करता है और यदि यह प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।
(iii)लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या राज्यसभा के उपसभापति के निर्वाचन के लिए या हटाने के लिए प्रस्ताव।
(iv) विशेषाधिकार प्रस्ताव - यह प्रस्ताव संसद के किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब उसे यह प्रतीत हो कि मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य ने संसद में झूठा तथ्य प्रस्तुत करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है।
(ख) स्थानापन्न प्रस्ताव - जो प्रस्ताव मूल प्रस्ताव के स्थान पर और उसके विकल्प के रूप में पेश किये जाते (i), उन्हें स्थानापन्न प्रस्ताव कहा जाता है।
(ग) अनुषंगी प्रस्ताव - इस प्रस्ताव को विभिन्न प्रकार के कार्यों के अगले कार्यवाही के लिए नियमित उपाय के रूप में पेश किया जाता (i)।
(घ) प्रतिस्थापन प्रस्ताव - यह किसी अन्य प्रश्न पर विचार-विमर्श के दौरान पेश किया जाता है। कोई सदस्य किसी विधेयक पर विचार करने के प्रस्ताव के सम्बन्ध में प्रतिस्थापन प्रस्ताव पेश कर सकता है।
(ङ) संशोधन प्रस्ताव - यह प्रस्ताव मूल प्रस्ताव में संशोधन करने के लिए पेश किया जाता है।
(च) अनियत दिन वाले प्रस्ताव- जिस प्रस्ताव को अध्यक्ष द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है, लेकिन उस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के लिए कोई समय नियत नहीं किया जाता, उसे अनियत दिन वाला प्रस्ताव कहा जाता है।

  

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FAQs on संघ एवं राज्य - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. संघ और राज्य के बीच क्या अंतर है?
उत्तर: संघ और राज्य भारतीय राजव्यवस्था में दो महत्वपूर्ण स्तर हैं। संघ भारतीय संविधान में स्थापित एक संगठन है जिसका मुख्य उदेश्य राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रण, न्यायपालन, और विधायन कार्य करना है। राज्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में उल्लिखित संगठन हैं जो राज्य स्तर पर नियंत्रण, न्यायपालन, और विधायन कार्य करते हैं। यह अंतर संघ और राज्य के कार्यकाल, अधिकार, और प्राथमिकताओं में होता है।
2. संघ के प्रमुख विभाग क्या हैं?
उत्तर: संघ के प्रमुख विभाग निम्नलिखित हैं: 1. गृह मंत्रालय: इस विभाग का मुख्य कार्य देश की आंतरिक सुरक्षा, पुलिस, और सुरक्षा बलों का नियंत्रण और प्रशासन है। 2. वित्त मंत्रालय: यह विभाग देश की आर्थिक मामलों, बजट, कर, और मुद्रा नीतियों के लिए जिम्मेदार है। 3. विदेश मंत्रालय: इस विभाग का कार्य देश की विदेश नीति, विदेशी राजदूतों के साथ संवाद, और विदेशी यात्रा का प्रबंधन करना है। 4. रक्षा मंत्रालय: यह विभाग देश की सशस्त्र बलों का नियंत्रण करता है और सुरक्षा की देखभाल करता है। 5. जल संसाधन मंत्रालय: इस विभाग का कार्य जल संसाधन के विकास, नदी नीति, और जल संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।
3. भारतीय राजव्यवस्था में UPSC क्या है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय राजव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संगठन है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315-323 में स्थापित किया गया है। यह संघ और राज्य स्तर पर सरकारी नौकरियों की भर्ती करने के लिए जिम्मेदार है। UPSC विभिन्न प्रशासनिक और तकनीकी पदों की भर्ती करता है जैसे कि IAS, IPS, IFS, IRS आदि।
4. UPSC की परीक्षाएं किस प्रकार की होती हैं?
उत्तर: UPSC विभिन्न स्तरों की परीक्षाएं आयोजित करता है। कुछ महत्वपूर्ण परीक्षाएं निम्नलिखित हैं: 1. सिविल सेवा परीक्षा (IAS): यह परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है और विभिन्न प्रशासनिक पदों की भर्ती के लिए होती है। 2. रक्षा सेवा परीक्षा (CDS): इस परीक्षा का आयोजन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है और यह रक्षा सेवाओं में शामिल होने के लिए होती है। 3. भारतीय वन सेवा परीक्षा (IFS): यह परीक्षा भारतीय वन सेवा में करियर बनाने के लिए होती है। 4. भारतीय इकोनॉमिक/सांख्यिकी सेवा परीक्षा (IES): इस परीक्षा का आयोजन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है और यह भारतीय अर्थशास्त्रिय सेवा में करियर बनाने के लिए होती है।
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