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संविधान निर्माण, संघ का राज्य क्षेत्र, - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

संविधान सभा

कैबिनेट-मिशन योजना के अनुसार, जुलाई 1946 में संविधान-सभा की रचना के लिए निर्वाचन हुआ। निर्वाचन के लिए निम्नलिखित तथ्य थे

कैबिनेट मिशन योजना,1946कैबिनेट मिशन योजना,1946

  • प्रत्येक 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि।
  • निर्वाचन प्रांतीय विधान सभाओं द्वारा समानुपाती प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर।
  • चुनाव में वयस्क-मताधिकार के सिद्धांत को मान्यता नहीं दी गई थी, लेकिन संविधान सभा के सदस्यों को चुनने का अधिकार केवल प्रांतीय विधानमंडलों को दिया गया था।
  • चूंकि संविधान सभा में कांग्रेस की स्थिति अच्छी थी, इसलिए उसकी सबल स्थिति को देखकर मुस्लिम लीग के नेता न केवल निराश हुए, वरन् संविधान सभा के बहिष्कार का निर्णय भी कर लिया। उन्होंने यह मांग रखी की पाकिस्तान का संविधान बनाने के लिए एक पृथक् संविधान सभा की स्थापना होनी चाहिए।
  • कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार ने इस संबंध में मुस्लिम लीग के नेताओं को मनाने की कोशिश की, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे।
  • संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर, 1946 को 11 बजे दिन में नयी दिल्ली के वर्तमान संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में हुई।
  • संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष पद के लिए सबसे पुराने सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया गया था। डॉ. सिन्हा को सर्वसम्मति से संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।
  • संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 11 दिसंबर, 1946 को सर्वसम्मति से चुना गया।
  • इस सभा की 11 अधिवेशन और 165 बैठक हुई।
  • इसके कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया। इन 15 समितियों में से 8 समितियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण थीं।
  • इन विभिन्न समितियों से निश्चित रूप में सामग्री प्राप्त हुई, लेकिन प्रारूप समिति (Drafting Committee) ने संविथान को अंतिम स्वरूप दिया। इस समिति के अध्यक्ष डा. अम्बेडकर थे। इसलिए उन्हें ‘भारतीय संविधान का जनक’ कहा गया है।
  • 21 फरवरी, 1948 के दिन संविधान का प्रारूप तैयार हुआ। इस प्रारूप पर संविधान सभा ने पहली बार 4 नवंबर, 1948 को विचार-विमर्श करना शुरू किया जो 9 नवंबर तक चलता रहा।
  • 15 नवंबर, 1948 से 17 अक्टूबर, 1949 तक प्रारूप की धाराओं पर खुलकर विचार-विमर्श हुआ।
  • संविधान सभा की बैठक पुनः 14 नवंबर, 1949 से प्रारंभ हुई और 26 नवंबर को समाप्त हुई।
  • नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद से संबंधित उपबंधों और संक्रमणकारी उपबंधों, यथा;अनुच्छेद 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 को तत्काल प्रभावी अर्थात् 26 नवम्बर, 1949 से लागू कर दिया गया। शेष संविधान 26 जनवरी, 1950 को प्रवृत्त हुआ और इस तारीख को संविधान में उसके प्रारम्भ की तिथि कहा गया है।

उद्देश्य-संकल्प

प्रत्येक संविधान का अपना एक दर्शन होता है। हमारे संविधान के पीछे जो दर्शन है उसके लिए में पंडित नेहरू के उस ऐतिहासिक उद्देश्य-संकल्प की ओर दृष्टिपात करना होगा जो संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को अंगीकार किया था और जिससे आगे के सभी चरणों में संविधान को वास्तविक रूप देने में प्रेरणा मिली है। ये संकल्प इस प्रकार हैं:

भारत की उद्देशिकाभारत की उद्देशिका

  • भारत एक स्वतंत्र प्रभुत्व संपन्न गणराज्य होगा।
  • भारत एक प्रजातांत्रिक संघ होगा जिसके सभी संघटक इकाइयों में समान स्तरीय स्वशासन की व्यवस्था होगी।
  • प्रभुत्व संपन्न स्वतंत्र भारत की सभी शक्तियां और प्राधिकार, उसके संघटक भाग और शासन के सभी अंग लोक से व्युत्पन्न है।
  • भारत की जनता को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा विधि के समक्ष समता; विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगम और कार्य की स्वतंत्रता विधि और सदाचार के अधीन रहते हुए होगी।
  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों और दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जाएंगे।
  • गणराज्य के राज्यक्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र तथा वायु पर उसके प्रभुत्व संपन्न अधिकार न्याय और सभ्य राष्ट्रों की विधि के अनुसार बनाए रखे जाएंगे।
  • यह प्राचीन भूमि विश्व में अपना समुचित और गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करेगी और विश्व शांति तथा मानव कल्याण के लिए अपनी इच्छा से अपना पूरा सहयोग प्रदान करेगी।

संविधान की प्रस्तावना

  • हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा इसके समस्त नागरिकों को:
    सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते है
  • प्रस्तावना में संवैधानिक ढांचे के आधार स्वरूप सिद्धांतों की व्यापक अभिव्यक्ति की गई है। प्रस्तावना के विभिन्न भागों में उन स्रोतों  की चर्चा की गई है जिससे संविधान प्राधिकार प्राप्त करता है। इसमें सरकार का स्वरूप और राजनीतिक व्यवस्था के लक्ष्यों की रूपरेखा भी दी गई है। संविधान एक कानूनी दस्तावेज है, इसलिए प्रस्तावना में इसके अंगीकरण की निश्चित तिथि दी गई है।
  • प्रस्तावना में घोषणा की गई है कि ”भारत के लोग“ संविधान के प्राधिकार का स्त्रोत है। यह भी स्पष्ट है कि जनता ने संविधान के अंगीकरण का निर्णय स्वयं ही किया।
  • संविधान में सरकार के स्वरूप की परिभाषा इस तरह की गई है प्रभुतासंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक।
  • न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लक्ष्य निर्धारित करते है। प्रस्तावना में व्यक्ति की निष्ठा और राष्ट्र की एकता व अखंडता की चर्चा की गई है। इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति को भारतीय लोकतंत्र की मूल इकाई के रूप में कितना महत्व दिया गया है।
  • यद्यपि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है और इसे न्यायालय में कानूनी दर्जा हासिल नहीं है, तथापि इसका वैधानिक महत्व है क्योंकि इसी परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक नियमों की व्याख्या की जा सकती है। इसीलिए प्रस्तावना को संविधान की कुंजी (Key) कहा जाता है।
  • संविधान की प्रस्तावना में अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन किया जा सकता है या नहीं, यह प्रश्न सर्वप्रथम 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार के मामले में उठा। इस तरह के विवादों को दूर करने के उद्देश्य से उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन प्रस्तावना के उस भाग में संशोधन नहीं हो सकता, जो भाग आधारभूत ढांचे से संबंधित है। इसी आधार पर प्रस्तावना में 1976 के 42वें संशोधन द्वारा समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अखण्डता शब्द जोड़े गए।

भारतीय संविधान की विशेषताएं

  • भारतीय संविधान पूर्णता निर्मित एवं लिखित तथा विश्व का सबसे बड़ा संविधान है।
  • इसमें विश्व के विभिन्न संविधानों के संचित अनुभवों का समावेश किया गया है।
  • भारतीय संविधान के माध्यम से भारत में प्रभुत्व-सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, धर्म-निरपेक्ष एवं समाजवादी गणराज्य की स्थापना की गयी है।
  • भारत में संविधान द्वारा संसदीय प्रणाली की स्थापना की गई है।
  • संविधान में प्रवर्तनीय और प्रवर्तनीय दोनों प्रकार के अधिकार सम्मिलित किये गये हैं, यथा मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्व तथा मौलिक कर्तव्य।
  • भारतीय संविधान में लचीलापन एवं कठोरता का सुसंगत मेल विद्यमान है।
  • सामान्य परिस्थिति में भारतीय संविधान की प्रकृति संघात्मक है, जबकि विशेष, यथा आपातकालीन, परिस्थितियों में यह एकात्मक है।
  • हमारे संविधान में संसदीय सर्वोच्चता एवं न्यायिक पुनर्विलोकन के बीच समन्वय स्थापित किया गया है।
  • भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
  • संविधान के तहत स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अंतिम विवाचक है तथा उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • देश में सामाजिक समानता संविधान द्वारा प्रत्याभूत की गई है।

संविधान की बुनियादी विशेषताएं

  • संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताएं हैं जिन्हें अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित नहीं किया जा सकता है। ये मूल विशेषताएं हैं। भारत की संप्रभुता और अखंडता, संघीय प्रणाली, न्यायिक समीक्षा, सरकार की संसदीय प्रणाली। हालांकि यह सूची संपूर्ण नहीं है।
  • यदि संविधान संशोधन अधिनियम संविधान की आधारिक संरचना या ढांचे में परिवर्तन करने के लिए है तो न्यायालय उसे ”शक्ति बाह्य“ के आधार पर शून्य करार देने का हकदार होगा। कारण है कि अनुच्छेद 368 में ”संशोधन“ का अर्थ है ऐसा परिवर्तन जो संविधान की संरचना को प्रभावित नहीं करता है। ऐसा करना नया संविधान बनाना होगा।

29 अगस्त, 1947 को प्रारूप समिति का गठन किया गया। इसके सदस्य निम्नलिखित थे:

  • डॉ. भीमराव आंबेडकर (अध्यक्ष) 
  • श्री. एन. गोपालस्वामी आयंगर 
  • श्री अल्लादि कृष्णास्वामी आयंगर
  • श्री. के. एम. मुंशी  
  • श्री. सैयद मोहम्मद सादुल्ला
  • श्री. एन. माधव राव 

भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोत

  • भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोतों में से एक 1935 का 'भारत सरकार अधिनियम' है। इसके लगभग 200 खंडों को शाब्दिक रूप से और कुछ वाक्यों में मामूली बदलाव के साथ अपनाया गया है। इसके अन्य स्रोत और प्रावधान हैं:
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  • 44वें संविधान संशोधन द्वारा कुछ मूलभूत विशेषताओं की चर्चा की गई है। यह भारत की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक प्रकृति, मौलिक अधिकार, निष्पक्ष चुनाव, वयस्क मताधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि है।
  • 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले में कहा कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है, लेकिन यह संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 1980 में मिनर्वा मिल्स मामले में भी यही विचार रखा था। परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों के अनुसार, ये प्रस्ताव अनुच्छेद 368 से सामने आएंगे।
  • अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन किया जा सकता है।
  • संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन के लिए जनमत संग्रह या संविधान सभा को संदर्भित करना आवश्यक नहीं है।
  • यदि कोई संशोधन संविधान की "आवश्यक विशेषताओं" को मिटा देता है या नष्ट कर देता है, तो संविधान के किसी भी प्रावधान या किसी भाग को इस तरह से संशोधित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 368 में स्पष्ट रूप से निर्धारित प्रक्रियात्मक सीमाओं के अलावा, अदालतों ने हमारे संविधान में मूल विशेषताओं के सिद्धांत के आधार पर एक वास्तविक सीमा जोड़ी है।

केंद्र शासित प्रदेश

ब्रिटिश प्रांतों और देशी रियासतों का एकीकरण

  • ब्रिटिश सरकार ने पूर्णरूपेण यह व्यवस्था कर दी थी कि भारत कई खण्डों में विभाजित हो जाये, लेकिन सरदार बल्लभ भाई पटेल की सूझ-बूझ तथा लार्ड माउण्टबेटन की सहायता ने ब्रिटिश सरकार की इस कूटनीति को सफल नहीं होने दिया गया।
  • स्वतंत्रता के समय, भारत में 542 रियासतें थीं, जिनमें से 539 रियासतों का स्वेच्छा से भारत में विलय हो गया। शेष तीन रियासतों को भारत में विलय करने में कठिनाई हुई। जूनागढ़ की रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर भारत में विलय कर दिया गया था जब इसके शासक पाकिस्तान भाग गए थे। पुलिस की कार्रवाई से हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो गया और पाकिस्तानी आदिवासियों के आक्रमण के कारण जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर अपनी रियासत का भारत में विलय कर दिया।

ब्रिटिश प्रांत और देशी रियासतों का एकीकरण करके भारत में चार प्रकार के राज्यों का गठन किया गया। ये राज्य थे:

  • ‘A’ राज्य - 216:  देशी रियासतों को ब्रिटिश भारत के पड़ोसी प्रान्तों में मिलाकर ‘ए’ राज्य का गठन किया गया। ये राज्य थे असम, बिहार, बम्बई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, संयुक्त प्रान्त, पश्चिमी बंगाल और आन्ध्र। इनकी संख्या 10 थी।
  • ‘B’ राज्य - 275: देशी रियासतों को नयी प्रशासनिक इकाई में गठित करके ‘बी’ राज्य की श्रेणी प्रदान की गयी। ये राज्य थे हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पेप्सू, राजस्थान, सौराष्ट्र, ट्रावनकोर, कोचीन। इनकी संख्या 8 थी।
  • ‘C’ राज्य - 61: देशी रियासतों को एकीकृत करने ‘की’ राज्य की श्रेणी में रखा गया। ये राज्य थे अजमेर, बिलासपुर, भोपाल, कुर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा तथा विन्ध्य प्रदेश। इनकी संख्या 9 थी।
  • ‘D’ राज्य: अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह को ‘D’ राज्य की श्रेणी में रखा गया था।

स्मरणीय तथ्य 

  • अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्र घोषित किया गया। इस दिन से भारतीय संविधान सभा भी एक संप्रभु निकाय बन गई।
  • 3 जून, 1947 की योजना के तहत पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा का गठन किया गया था। पुनर्गठित भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 299 थी। इनमें से 284 सदस्य 26 नवंबर, 1949 को उपस्थित थे और उन्होंने अंतिम रूप से अपनाए गए संविधान पर अपने हस्ताक्षर किए। .
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में वस्तुनिष्ठ प्रस्ताव पेश कर संविधान निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।

संविधान निर्माण का कार्यसंविधान निर्माण का कार्य

  • संविधान सभा की प्रारूप समिति के गठन के कुछ समय बाद ही बी.अले. 1948 में माधव राव और डी.पी. खेतान की मृत्यु के बाद मित्र के बजाय एन. टी. कृष्णमाचारी को इस समिति में शामिल किया गया।
  • संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई थी और उसी दिन संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया था।
  • 26 जनवरी, 1950 को संविधान सभा को अस्थायी संसद में बदल दिया गया। अनुच्छेद 394 के अनुसार 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने की तिथि कहा जाता है।
  • संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे।
  • मूल संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं।
  • सैद्धांतिक रूप से संविधान सभा का विचार ब्रिटिश विचारक सर हेनरी मेन ने प्रस्तुत किया था।
  • व्यावहारिक रूप से पहली बार अमेरिका में संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया गया।

राज्यों का पुनर्गठन 

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  • वैसे तो भारत द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने के पहले से ही भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की जाती रही थी, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस मांग में और अधिक वृद्धि हो गयी। स्वतंत्रता के पूर्व तथा बाद में भारत का प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस राजनीतिक कारणों से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग का समर्थन करता था।
  • इस दल ने तेलुगु, कन्नड़ तथा मराठी भाषी जनता के दबाव में आकर 27 नवम्बर, 1947 को राज्यों की भाषा के आधार पर पुनर्गठन की माँग को मान लिया तथा संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश एस. के. दर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की। इस आयोग का कार्य विशेषकर दक्षिण भारत में उठी इस माँग की जाँच करना था कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं।
  • इस आयोग ने 10 दिसम्बर, 1948 को 56 पृष्ठीय अपनी रिपोर्ट संविधान सभा को प्रस्तुत किया, जिसमें भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया गया था, लेकिन प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया गया था।
  • उक्त आयोग की रिपोर्ट का तीव्र विरोध हुआ और कांग्रेस ने अपने जयपुर अधिवेशन में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के मामले पर विचार करने के लिए जवाहरलाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल तथा पट्टाभि सीतारमैया की एक समिति गठित की। इस समिति ने 1 अप्रैल, 1949 को पेश की गई अपनी रिपोर्ट में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जनभावना व्यापक रूप से इस मांग को उठाती है, तो लोकतांत्रिक होने के कारण जनभावना का आदर करते हुए इस माँग को स्वीकार कर लेना चाहिए।
  • समिति की रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद मद्रास राज्य में रहने वाले तेलुगु भाषियों द्वारा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले पोट्टी श्री रामुल्लुध्आमरण अनशन पर बैठ गये और 56 दिन के लगातार आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर, 1952 को उनकी मृत्यु हो गयी।
  • उनकी मृत्यु के बाद आंदोलन और तीव्र हो गया। फलस्वरूप 19 दिसम्बर, 1952 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने तेलुगु भाषियों के लिए पृथक आन्ध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी। इस प्रकार 1 अक्टूबर, 1953 को आन्ध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया, जो भाषा के आधार पर गठित भारत का पहला राज्य था।
  • आन्ध्र प्रदेश राज्य के गठन के कारण भारत के अन्य भाषा भाषियों के माँग की अवहेलना नहीं की जा सकती थी। इसलिए केन्द्र सरकार ने 22 दिसम्बर, 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति की घोषणा की। इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फजल अली थे तथा आयोग के अन्य सदस्य के. एम. पनिक्कर तथा हृदय नाथ कुंजरू थे।
  • आयोग ने 30 दिसम्बर, 1955 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी। इस आयोग की मुख्य सिफारिशें थीं
  • केवल भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं किया जाना चाहिए।
  • राज्यों का पुनर्गठन करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय तथा प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजना को सफल बनाने की क्षमता को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  • A, B, C तथा D राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करके भारतीय संघ को 16 राज्यों तथा 3 संघ राज्य क्षेत्रों में विभाजित करना चाहिए।
  • केन्द्र सरकार ने आयोग की सिफारिशों को कुछ संशोधन के साथ स्वीकार करते हुए राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 संसद से पारित करवाया। इस अधिनियम के प्रवर्तन के कारण भारत में 14 राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, असम, बम्बई, बिहार, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल) और 5 संघ राज्य क्षेत्रों (दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप, अमीन द्वीप तथा मिनीकाय द्वीप) का गठन किया गया।
  • गोवा मुक्ति संग्राम की उग्रता के कारण भारत सरकार ने 1961 में सैनिक हस्तक्षेप करके गोवा, दमन तथा दीव को जीतकर भारत में मिला लिया और इसे सातवाँ संघ राज्य क्षेत्र बनाया गया।
  • बम्बई प्रान्त में दो भाषा (मराठी तथा गुजराती) भाषियों के पारस्परिक संघर्ष के कारण बम्बई को विभाजित करके 15वें राज्य गुजरात का गठन किया गया।
  • नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके 1962 में नागालैंड को अलग राज्य बनाया गया।
  • 1966 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब को पंजाबी भाषी प्रान्त बना दिया गया तथा उसके हिन्दी भाषी प्रान्त को हरियाणा राज्य बनाया गया।
  • 1969 में असम को एक बार फिर विभाजित करके मेघालय को उपराज्य बनाया गया।
  • 1971 में हिमाचल प्रदेश तथा मेघालय को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • 1974 में सिक्किम को पहले सहयोगी राज्य का दर्जा प्रदान किया गया और 1975 में उसे भारत का राज्य बना दिया गया।
  • 1986 में अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम को पूर्ण राज्य तथा 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • भारत के राज्यों की संख्या 25 और संघ राज्य क्षेत्रों की संख्या 7 है। इन्हें संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया है।

संविधान की अनुसूचियां

  • संविधान में मूलतः 8 अनुसूचियां थीं। बाद में इसमें 4 और अनुसूचियां जोड़ी गईं।
  • 9वीं अनुसूची संविधान में प्रथम संशोधन द्वारा 1951 में जोड़ी गई और 10वीं अनुसूची 1985 में संविधान के 52वें संशोधन द्वारा जोड़ी गई। 73वें तथा 74वें संशोधन को 11वीं अनुसूची व 12वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है।
  • प्रथम अनुसूची: इसमें भारत के राज्य क्षेत्र का विवरण है अर्थात कितने राज्य और कितने संघ-शासित प्रदेश है।
  • दूसरी अनुसूची: में राष्ट्रपति, गवर्नरों, लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और उप सभापति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि के वेतन और भत्तों आदि का ब्यौरा है।
  • तीसरी अनुसूची: संघ सरकार के मंत्रियों, संसद की सदस्यता के उम्मीदवारों, चुने गए संसद सदस्यों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, राज्य के मंत्रियों, राज्य विधान मंडल की सदस्यता के उम्मीदवारों, राज्य विधानमंडल के लिए चुने गए सदस्यों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप है।
  • चौथी अनुसूची: राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से राज्य सभा के लिए चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या का ब्यौरा।
  • पांचवीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबन्ध।
  • छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित उपबन्ध।
  • सातवीं अनुसूची: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
  • संविधान (इकहत्तर वां) संशोधन अधिनियम 1992 की धारा 2 (क) द्वारा कोंकणी, 2 (ख) द्वारा मणिपुरी और धारा 2 (ग) द्वारा नेपाली भाषा का समावेश आठवीं अनुसूची में किया गया और संख्या 7 से 18 तक की भाषाओं को अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में पुनर्संख्यांति की गयी।
  • नौवीं अनुसूची: ऐसे कानूनों और विनियमों की सूची जिन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती (इसका संदर्भ संविधान की धारा 31-ठ में दिया गया है)।
  • दसवीं अनुसूची: दल-बदल के आधार पर अनर्हता से संबंधित उपबंध।
  • ग्यारहवीं अनुसूची: पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार तथा उत्तरदायित्व।
  • बारहवीं अनुसूची: नगर पालिका की शक्तियां, प्राधिकार तथा उत्तरदायित्व।

संविधान संशोधन द्वारा राज्यों का गठन

  • सातवां संविधान संशोधन, 1956: केन्द्र को भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति देने के लिए।
  • नौवां संविधान संशोधन, 1960-1958: में भारत-पाकिस्तान के मध्य समझौते के अनुपालन में भारत को भू-भाग हस्तांतरित करने का अधिकार देने के लिए।
  • दसवां संविधान संशोधन, 1961: दादरा एवं नागर हवेली को संघ राज्य क्षेत्र बनाने के लिए।
  • बारहवाँ संविधान संशोधन, 1962: गोवा, दमन तथा दीव को भारत में शामिल कर संघ राज्य क्षेत्र बनाने के लिए।
  • तेरहवां संविधान संशोधन, 1962: नागालैण्ड को राज्य का दर्जा प्रदान करने के लिए।
  • चौदहवाँ संविधान संशोधन, 1962: पुडुचेरी को संघ राज्य क्षेत्र बनाने के लिए।
  • अठारहवाँ संविधान संशोधन, 1966: पंजाब तथा हरियाणा को राज्य तथा हिमाचल प्रदेश को संघ राज्य क्षेत्र बनाने के लिए।
  • बाईसवाँ संविधान संशोधन, 1969: मेघालय को राज्य का दर्जा प्रदान करने के लिए।
  • सत्ताईसवाँ संविधान संशोधन, 1975: मणिपुर तथा त्रिपुरा के राज्य एवं मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को संघ राज्य क्षेत्र बनाने के लिए।
  • छत्तीसवाँ संविधान संशोधन, 1975: सिक्किम को भारत में शामिल करके राज्य बनाने के लिए।
  • तिरपनवाँ संविधान संशोधन, 1986: मिजोरम को राज्य बनाने के लिए।
  • पचपनवाँ संविधान संशोधन, 1986: अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा प्रदान करने के लिए।
  • छप्पनवाँ संविधान संशोधन, 1987: गोवा को राज्य बनाने के लिए।

संवैधानिक प्रावधान

  • भारत के राज्यक्षेत्र के अन्तर्गत वह सम्पूर्ण भूमि आती है जिस पर उस समय भारत का आधिपत्य था।
  • इस प्रकार, राज्यों के अलावा, दो अन्य प्रकार के प्रदेश हैं जो भारत के क्षेत्र में शामिल हैं-; (i) केंद्र शासित प्रदेश और (ii) ऐसे अन्य क्षेत्र जो भारत द्वारा अधिग्रहित किए गए थे।
  • केंद्र शासित प्रदेश केंद्र शासित प्रदेश हैं जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से शासित होते हैं। राष्ट्रपति उनके सुशासन के लिए नियम भी बनाता है।
  • भारतीय संविधान के भाग एक में अनुच्छेद 1 से 4 संघ और उसके क्षेत्रों से संबंधित हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने संघ की संसद को सरल प्रक्रिया द्वारा राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति प्रदान की है। इससे संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में हैं। भारत के क्षेत्र के अंतर्गत वह संपूर्ण भूमि आती है जिस पर उस समय भारत का प्रभुत्व था।

संसद विधि द्वारा

  • एक राज्य से अपने क्षेत्र को अलग करके या दो या दो से अधिक राज्यों के हिस्सों को मिलाकर या एक राज्य के एक हिस्से के साथ एक राज्य क्षेत्र को मिलाकर एक नया राज्य बना सकता है।
  • किसी राज्य के क्षेत्रफल में वृद्धि कर सकता है।
  • किसी भी राज्य के क्षेत्रफल को कम कर सकता है।
  • किसी भी राज्य की सीमा बदल सकता है।
  • बशर्ते कि राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना इस उद्देश्य के लिए कोई विधेयक पेश नहीं किया जाएगा।
  • राज्यों की सीमाओं, क्षेत्रों और नामों में परिवर्तन करने वाले विधेयक को संसद द्वारा संबंधित विधानमंडल को राष्ट्रपति की सहमति से पहले भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति संबंधित राज्यों के विधानमंडल द्वारा विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकता है या नहीं, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मामले में पहले विधानमंडल की स्वीकृति अनिवार्य है।

प्रस्तावना

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना ‘संविधान की आत्मा’ मानी जाती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आधार पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में 13 दिसम्बर, 1946 को प्रस्तुत किया गया।
  • अक्टूबर 1948 को संविधान सभा ने प्रारूप समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावना को स्वीकृत कर दिया।
  • प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी एवं अखंडता शब्द 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए।
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FAQs on संविधान निर्माण, संघ का राज्य क्षेत्र, - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. What is the purpose of the Constituent Assembly?
Ans. The purpose of the Constituent Assembly was to create a Constitution for the newly independent India. The Constitution was to serve as a framework for the country's governance and provide guidelines for the functioning of its institutions.
2. What is the role of the Centre in the formation of State Constitutions?
Ans. The Centre or the Union Government has a limited role in the formation of State Constitutions. The State Legislative Assembly drafts and adopts the Constitution with the approval of the Governor of the State. The Centre only intervenes if the Constitution violates the principles of the Indian Constitution.
3. What are the functions of the UPSC?
Ans. The Union Public Service Commission (UPSC) is responsible for conducting recruitment exams for various government posts and services. Its functions include conducting civil service exams, engineering service exams, and defense service exams.
4. What are the amendments made to the Indian Constitution?
Ans. The Indian Constitution has been amended several times since it was first adopted. Some of the significant amendments include the abolition of the privy purse, the inclusion of fundamental duties, and the implementation of the Mandal Commission recommendations.
5. What is the significance of the Indian Constitution in the country's governance?
Ans. The Indian Constitution is the supreme law of the country and serves as a framework for its governance. It provides a separation of powers between the three branches of government, ensures the protection of fundamental rights, and promotes social and economic justice. The Constitution has been instrumental in maintaining the democratic fabric of the country and has been hailed as a model for other countries.
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