संस्कृत साहित्य
¯ सल्तनत काल में राज्य की ओर से संस्कृत साहित्य को तनिक भी प्रोत्साहन नहीं मिला। संस्कृत का कोई विद्वान् या कवि ऐसा नहीं था, जो दरबार से संबंधित हो। हां सल्तनत काल के अंतिम चरण में सुल्तानों ने संस्कृत के कुछ बड़े ही उपयोगी ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया।
¯ इस काल में जो संस्कृत रचनाएँ तैयार हुई वे लगभग सभी विजयनगर, वारंगल और गुजरात के हिंदू राजाओं के संरक्षण में रचित हुई।
¯ मल्लाचार्य (साकल्पामल) ने उदार राधव नामक ग्रंथ की रचना (1330 ई.) की। इसमें रामचरित का अलंकृत शैली में वर्णन है।
¯ वारंगल नरेश प्रताप रुद्रदेव के संरक्षण में अगस्त्य नामक कवि ने महाभारत के आधार पर अनेक काव्य ग्रंथ लिखे।
¯ विद्या चक्रवर्तिन ने रुक्मिणी कल्याण नामक काव्य ग्रंथ की रचना की, जिसमें भगवान श्रीड्डकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का बड़ा ही हृदयग्राही वर्णन है।
¯ 15वीं शताब्दी में वामन बाण भट्ट ने नल अभ्युदय एवं रघुनाथ चरित्र नामक ग्रंथों की रचना की।
¯ ऐतिहासिक काव्य ग्रंथों में जोनरनज और श्रीवर (शिष्य) कृत द्वितीय राजतरंगिणी और तृतीय राजतरंगिणी, प्रज्ञाभट्ट और सुक कृत राजवती पताका, न्याय चंद्र कृत हम्मीर काव्य, सोमचरित गुणी कृत ‘गुरुगुण रत्नाकर, पट्ट¨ भट्ट कृत प्रसंग रस्नावली, विद्यारण्य कृत राजकला निर्णय तथा राजनाथ [1]कृत सालुव अभ्युदय सल्तनत काल की बहुचर्चित रचनाओं में से हैं।
¯ दक्षिणी भारत में कुछ ऐसे प्रख्यात लेखक हुए जिन्होंने संस्कृत साहित्य की अभिवृद्धि की। इन विद्वानों में सायम, मल्लिनाथ एवं कात्यायन की गणना होती है।
स्थापत्य कला
¯ बारहवीं शताब्दी में तुर्क लोग भारत में जो स्थापत्य कला लाये, वह पूर्णतः मुस्लिम और अरबी न थी। इस विदेशी स्थापत्य कला की चार प्रमुख विशेषताएं थीं - गुंबद, उत्तुंग मीनार, मेहराब और मेहराबी डाटदार छत ।
¯ इसके विपरीत तुर्कों ने भारत में एक बहुत ही विकसित स्थापत्य कला के दर्शन किये। उनकी प्रमुख विशेषताएं ये थीं -
1. पटी हुई छत , 2. कदलिका टोड़ा (कार्बेल ब्रेकेट), 3. शिखर,
4.घोड़ियों पर आधारित मेहराब, 5.गुफाएं,
6. गोल और चैकोर स्तंभ।
¯ किंतु विजेता मुसलमानों ने विचार रूपरेखा शैली के अनुरूप भवन बनाये, किंतु मध्य एशिया के भवनों के हू-बहू नमूने वे यहां नहीं निर्मित कर सके क्योंकि उनके पास विदेशी स्थापत्यियों का अभाव था। अतः उन्हें कुशल भारतीय स्थापत्यियों से भवन निर्माण कार्य करवाना पड़ा।
¯ इन कलाकारों ने मुसलमानी इमारतों की सजावट एवं बनावट में अपनी परंपरागत शैली, प्राचीन आदर्श एवं धारणाओं की छाप लगा दी।
¯ दिल्ली के सुल्तानों ने आगे चलकर हिंदू स्थापत्य कला की दो विशेष बातों, भवनों की दृढ़ता और सुंदरता को अपना लिया।
¯ इस प्रकार हिंदू और मुस्लिम दोनों की कला शैलियों के समन्वय से एक नयी कला शैली का जन्म हुआ जिसे ‘इंडो-इस्लामिक कला’ कहा जा सकता है।
गुलाम वंश का काल (1206-90 ई.)
¯ दिल्ली के किला-ए-राय पिथौरा के निकट ‘कुब्बत-उल- इस्लाम’ नामक मस्जिद कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-10) द्वारा निर्मित प्रथम कलाकृति है, जिसे उसने अपनी विजयश्री की स्मृति में दिल्ली में निर्मित कराया था। इसका निर्माण हिंदू मंदिर के चबूतरे पर हिंदू और जैन मंदिरों की विध्वस्त सामग्री (मंदिर के स्तंभ, तोरण और छत) से हुआ है।
¯ कुतुबमीनार दिल्ली के निकटस्थ है। इसके निर्माण का श्रीगणेश कुतुबुद्दीन ने कराया था और इसे इल्तुतमिश ने पूरा किया। प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन के नाम पर इसका नामकरण, ‘कुतुबमीनार’ किया गया। इसका निर्माण मुअज्जिन को आजान देने के लिए किया गया था, जो उस पर चढ़कर नमाज के लिए आजान दिया करता था।
¯ कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण कराया था। मूलरूप से यह सम्राट् विग्रहराज बीसलदेव द्वारा निर्मित एक मंदिर था, जिसके ऊपरी भाग को कुतुबुद्दीन ने गिरवाकर गुंबद और मेहराबें निर्मित करवायीं।
¯ सुल्तान गढ़ी - कुतुबमीनार से तीन मील की दूरी पर मलकापुर नामक स्थान में निर्मित है। यह इल्तुतमिश के ज्येष्ठ पुत्र नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा है, जिसे स्वयं इल्तुतमिश ने निर्मित कराया था।
¯ इल्तुतमिश का मकबरा - दिल्ली में कुतुब मस्जिद के उत्तरी भाग में जोड़े हुए हिस्से के पीछे स्थित है। यह लाल पत्थर से निर्मित है और एक ही कक्ष का है।
¯ जामा मस्जिद - बदायूं में स्थित है। सुल्तान इल्तुतमिश ने इसका निर्माण कराया था। आगे चलकर मुहम्मद तुगलक ने इसका जीर्णोद्धार कराया। बदायूं में ही हौज-ए-शम्सी तथा शम्सी ईदगाह का निर्माण भी इसी सुल्तान ने कराया था।
¯ अतारकिन का दरवाजा - नागौर, राजस्थान (पहले जोधपुर राज्य) में स्थित है। इसका निर्माण भी सुल्तान इल्तुतमिश ने कराया था और स्वयं इसका नामकरण भी किया था।
¯ सुल्तान बलबन का मकबरा - दिल्ली के किला-ए-राय पिथौरा के दक्षिण में स्थित है।
ख़लजी काल (1290-1320 ई.)
¯ अलाउद्दीन ख़लजी महत्त्वाकांक्षी था। वह कुतुब मीनार के आसपास एक मजिस्द और एक ऊंची मीनार का निर्माण करवाना चाहता था, किंतु उसकी मृत्यु के कारण उसका स्वप्न साकार न हो सका।
¯ अलाई दरवाजा - कुतुबमीनार के निकटस्थ था। यह लाल पत्थर और संगमरमर द्वारा निर्मित किया गया।
¯ अलाउद्दीन ने शेख निजामुद्दीन औलिया के दरगाह के अहाते में ‘जमात खाना मस्जिद’ का निर्माण कराया। यह लाल पत्थरों द्वारा निर्मित है। इसके निर्माण की रूपरेखा एवं शैली ‘अलाई दरवाजा’ से मेल खाती है। भारत में पूर्णरूपेण मुसलमानी आदर्श पर निर्मित मस्जिदों में यह प्रथम है।
¯ अलाउद्दीन ने दिल्ली के निकटस्थ सीरी नामक एक नगर बसाया और वहीं ‘हजार सितून’ (सहस्त्र स्तंभों वाला) नामक महल का निर्माण कराया। यह महल अब पूर्णतः नष्ट हो गया है और सीरी नगर भी भग्नावस्था में है।
¯ अलाउद्दीन ने सीरी नगर के पश्चिमी कोने पर हौज-ए-अलाई नामक एक विशाल तालाब का निर्माण कराया।
¯ अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन मुबारकशाह ख़लजी ने बसाना (राजस्थान) में ऊखा मस्जिद का निर्माण कराया था।
तुगलक काल (1320-1412 ई.)
¯ स्थापत्य के अलंकरण और विलासितापूर्ण वैभव का स्थान तुगलककाल में इस्लामी सादगी और गंभीरता ने ले लिया।
¯ इस काल में फीरोजशाह तुगलक ने भवन निर्माण के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की।
¯ तुगलकाबाद, जो दिल्ली के सात नगरों में एक था, बसाया गया और इसे सुरक्षित रखने के लिए उसने एक किला निर्मित कराया।
ऐतिहासिक स्मारक/नगर एवं निर्माता शासक | |
कार्लें का चैत्य सातवाहन | सिरी फोर्ट (दिल्ली) अलाउद्दीन |
¯ तुगलकाबाद किला के बाहर उत्तरी भाग में गियासुद्दीन तुगलक का मकबरा स्थित है।
¯ मुहम्मद तुगलक ने तुगलकाबाद नगर के निकट आदिलाबाद नामक एक किला का निर्माण कराया।
¯ मोहम्मद तुगलक ने जहांपनाह नामक एक नगर की स्थापना की थी। इसे चैथी दिल्ली कहा जा सकता है। यह नगर राय-ए-पिथौरा और सीरी के मध्य स्थित था। सुल्तान ने जहांपनाह में सतपुला नामक एक दो मंजिला पुल का निर्माण कराया था। इस पुल में सात मेहराबें थीं, संभवतः इसीलिए इसे सतपुला कहा गया है। इसके निर्माण का लक्ष्य एक कृत्रिम झील में पानी पहुँचाना था।
¯ सुल्तान फीरोजशाह ने फीरोजाबाद नामक पांचवीं दिल्ली बसायी थी और उसमें एक महल की स्थापना की थी। उस महल का नामकरण ‘कोटला फीरोजाबाद’ किया गया।
¯ फीरोजशाह तुगलक ने मृगया एवं मनोरंजन के उद्देश्य से दिल्ली से दूर ‘कुश्क-ए-शिकार’ नामक एक दुमंजिले महल का निर्माण कराया था।
¯ फीरोजशाह तुगलक ने हौज खास के किनारे एक शानदार मदरसा का निर्माण कराया था।
¯ फीरोजशाह का मकबरा प्राचीरों से आवेष्ठित वर्गाकार इमारत है, जिसके ऊपर केवल एक ही गुम्बद है। इसमें संगमरमर का सुंदर प्रयोग हुआ है। यह हिंदू-मुस्लिम शैली का विकसित रूप है।
¯ खान-ए-जहां का मकबरा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के दक्षिण में स्थित है और तुगलक काल की एक महत्त्वपूर्ण इमारत है। इसे उसके पुत्र खान-ए-जहां जौनाशाह ने निर्मित कराया था।
¯ फीरोजशाह तुगलक के शासनकाल में काली मस्जिद का निर्माण हुआ था। यह दुमंजिला थी।
¯ खिर्की मस्जिद और बेगमपुरी मस्जिद जहांपनाह नामक नगर में स्थित थी। बेगमपुरी मस्जिद में संगमरमर प्रयुक्त है।
¯ कलां मस्जिद विशाल एवं सुदृढ़ है और यह मस्जिद शाहजहानाबाद में स्थित है।
¯ कबीरुद्दीन औलिया का मकबरा लाल गुंबद के नाम से विख्यात है। यह नासिरुद्दीन महमूद शाह के काल में बना। यह मकबरा गियासुद्दीन तुगलक के मकबरा की प्रतिकृति है। इसमें संगमरमर का प्रयोग है।
सैयद और लोदीकालीन स्थापत्यकला
¯ मुबारक शाह सैयद मकबरा का आकार विशाल है।
¯ मोहम्मदशाह सैयद के मकबरा का निर्माण अलाउद्दीन आलमशाह (1445-1451 ई.) ने करवाया था।
¯ सिकंदर लोदी के मकबरा का नमूना मोहम्मदशाह सैयद के मकबरे के नमूने पर है।
¯ इस काल में बनी हुई मस्जिदों में मोठ की मस्जिद विशेष महत्त्व की है। 16वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी के वजीर ने इसका निर्माण कराया था।
प्रांतीय शैलियां
¯ बंगाल के स्थापत्य में पत्थर का कम, ईंटों का अधिक प्रयोग हुआ है।
¯ बंगाली स्थापत्य कला शैली के सर्वप्रथम नमूने जफर खां गाजी का मकबरा और उसकी मस्जिद है, जो हिंदू मंदिरों की सामग्री से बने है।
¯ विख्यात विशाल अदीना मस्जिद का निर्माण सिकंदर शाह ने पांडुआ में कराया था। यहां जलालुद्दीन मोहम्मदशाह का सुंदर मकबरा है।
¯ बंगाल की अन्य उल्लेखनीय इमारतों में लोटन मस्जिद, बड़ा सोना मस्जिद, छोटा सोना मस्जिद और कदम रसूल मस्जिद हैं।
¯ जौनपुर का किला 1377 ई. में निर्मित हुआ।
¯ अटाला देवी मस्जिद शर्की का सुंदर नमूना है। यह पूर्व निर्मित अटाला देवी के हिंदू मंदिर के स्थान पर बनी।
¯ दूसरी महत्त्वपूर्ण इमारत झंझरी मस्जिद है। इसे इब्राहीम शर्की ने 1430 ई. में निर्मित कराया।
¯ जौनपुर की ‘लाल दरवाजा मस्जिद’ 15वीं शताब्दी के मध्य निर्मित हुई।
¯ जौनपुर की सर्वाधिक उल्लेखनीय तथा विशाल इमारत वहां की जामी मस्जिद है, जिसे हुसैन शाह शर्की ने 1417 ई. में निर्मित कराया था।
¯ मालवा की प्राचीन राजधानी धार में दो उल्लेखनीय मस्जिद हैं। इनमें प्रथम हिंदू मंदिर से संलग्न संस्कृत पाठशाला की इमारत का परिवर्तित रूप है, जिसे अभी भी योगशाला कहते हैं। दूसरी मस्जिद भी हिंदू मंदिरों की सामग्री से बनी है। दोनों मस्जिदों में हिन्दू प्रभाव झलकता है।
¯ मालवा के मुसलमान शासकों ने मांडू को राजधानी बनाया।
¯ हुशंगशाह ने मांडू के किले का निर्माण कराया था।
¯ किला के अंदर की इमारतों में जामी मस्जिद सर्वाधिक विशाल और शानदार है।
¯ मांडू के अन्य उल्लेखनीय इमारतों में हिंडोला महल, जहाज महल, हुशंगशाह का मकबरा, रूपमती तथा बाजबहादुर के महल हैं।
¯ गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की नींव अहमदशाह ने डाली थी।
¯ गुजराती शैली की सर्वोत्कृष्ट कृति वहां की जामा मस्जिद है, जिसे अहमदशाह ने निर्मित कराया था।
¯ अहमदशाह का मकबरा जामा मस्जिद के पूर्व में एक अहाते में निर्मित है।
¯ महमूद बेगड़ा ने भवनों सहित तीन नगर बसाये थे। चंपारन में एक जामा मस्जिद बनी थी, जो शिल्पकला की दृष्टि से गुजरात की सबसे सुंदर मस्जिद है।
¯ गुजराती शैली को ‘सर्वाधिक स्थानीय भारतीय शैली’ माना गया है।
¯ जैनउल आबिदीन के शासनकाल में कुछ इमारतों का निर्माण हुआ।
¯ श्रीनगर में स्थित मंदानी का मकबरा और उससे संलग्न मस्जिद स्थापत्य कला के सुंदर नमूनों में से है।
¯ ‘बुतशिकन’ सिकंदर ने श्रीनगर की जामा मस्जिद का निर्माण कराया था। उसके बाद जैनउल आबिदीन ने उसका विस्तार कराया।
¯ इमारती लकड़ी की निर्मित शाह हमदान द्वारा निर्मित मस्जिद कला की दृष्टि से उत्तम है।
¯ दक्षिणी भारत के बहमनी सुल्तानों ने स्थापत्य कला के क्षेत्र में एक नवीन शैली को जन्म दिया, जो भारतीय, तुर्की, मिस्रीऔर ईरानी शैलियों का समन्वय थी। गुलबर्गा और बीदर की मस्जिदें इसी कला की शैली में निर्मित है।
¯ किंतु बीजापुर में सर्वोत्तम दक्षिणी कला शैली दृष्टिगोचर होती है। मुहम्मद आदिलशाह का मकबरा, जो गोल गुंबद के नाम से विख्यात है, इसी शैली में निर्मित है।
¯ इसी प्रकार अन्य उल्लेखनीय इमारतों में गुलबर्गा की जामा मस्जिद, दौलताबाद की मीनार और बीदर का महमूद गवां का मदरसा है।
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1. संस्कृत साहित्य की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? |
2. स्थापत्य कला क्या है और इसकी महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं? |
3. भारतीय-इस्लामी संस्कृति का इतिहास क्या है? |
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