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सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

समिति का गठन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश की सरकार के स्वरूप और कार्यों में आमूल परिवर्तन आया है। अद्योग और व्यापार में सरकार की सहभागिता बढ़ने के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में सरकारी उपक्रमों की स्थापना हुई है। सरकारी उपक्रम योजनाबद्ध विकास के महत्वपूर्ण साधन हैं। दिसम्बर, 1990 में 245 सरकारी उपक्रम थे जिनमें लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये की सरकारी पूँजी लगी हुई है। चूँकी सरकारी उपक्रमों का सरकारी धन से वित्त पोषण होता है अतः यह बहुत आवश्यक है कि वे सरकार के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ध्यान में रख कर ही कार्य करें। लोकतंत्र में इस उत्तरदायित्व की महत्वपूर्ण बात यह है कि संसद द्वारा निदेश दिया जाये एवं निगरानी रखी जाये। किन्तु संसद द्वारा सरकारी उपक्रमों के कार्यनिष्पादन पर चर्चा तथा उसकी पुनरीक्षा करने के लिए निर्धारित समय सूची के अनुसार कोई नियमित कार्यक्रम नहीं है। संसद द्वारा सरकारी उपक्रम पर निगरानी रखने का सबसे कारगर तरीका यह है कि संसद सदस्यों की एक समिति द्वारा उसकी जाँच की जाए। यही समिति सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति है। 
सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति का गठन पहली बार 1964 में किया गया था तथा यह संसद की तीनों वित्तीय समितियों में से सबसे बाद में बनी।
सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति का गठन प्रति वर्ष किया जाता है। इसमें 22 सदस्य होते हैं। इनमें से 15 सदस्य लोक सभा सदस्यों में से अनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार एकल संक्रमणी मत द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं और राज्य सभा के 7 सदस्य राज्य सभा द्वारा समिति में भाग लेने हेतु नामांकित किए जाते हैं। इस प्रकार समिति के सदस्य मोटे तौर पर संसद के सभी दलों में से उनकी सदस्य संख्या के अनुपात के आधार पर चुने जाते हैं तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा चुनाव की पद्धति से ऐसा सुनिश्चित किया जाता है। इस प्रकार समिति में केवल किसी एक सभा के ही नहीं वरन् पूरी संसद के विभिन्न दलों के सदस्य होते हैं। 
कोई भी मंत्री समिति का सदस्य नहीं बन सकता है। यदि कोई सदस्य समिति के लिए निर्वाचित होने के बाद मंत्री नियुक्त कर दिया जाए तो वह ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति का सदस्य नहीं रहता है। समिति का सभापति अध्यक्ष द्वारा समिति के लोक सभा सदस्यों में से नियुक्त किया जाता है। 

समिति के कृत्य
समिति के कृत्य लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमों के नियम 312 क में निर्धारित हैं जो इस प्रकार हैंः
(क)    नियमों की चतुर्थ अनुसूची में उल्लिखित सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं की जाँच करना;
(ख)    सरकारी उपक्रमों के संबंध में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों की, यदि कोई हो, जांच करना;
(ग)    सरकारी उपक्रमों की स्वायत्तता और कार्यकुशलता के संदर्भ में यह जाँच करना कि क्या सरकारी उपक्रमों के कार्य समुचित व्यापार सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रथाओं के अनुरूप चल रहे हैं;
(घ)    चतुर्थ अनुसूची में उल्लिखित सरकारी उपक्रमों के संबंध में लोक लेखा समिति और प्राक्कलन समिति में निहित ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना जो उपरोक्त खंड (क), (ख) और (ग) के अंतर्गत न आते हों और जो समय.समय पर अध्यक्ष द्वारा समिति को सौंपे जायें।
परन्तु समिति निम्नलिखित में से किसी के बारे में जाँच और छानबीन नहीं करेगी, अर्थात्-
(1).    प्रमुख सरकारी नीति संबंधी मामले जो सरकारी उपक्रमों के व्यापार अथवा वाणिज्यिक कृत्यों से भिन्न हैं;
(2)    दिन.प्रतिदिन के प्रशासन संबंधी मामले; और
(3)    ऐसे मामले जिन पर विचाय के लिए उस विशेष संविधि के अधीन व्यवस्था की गई है, जिसके अंतर्गत कोई सरकारी उपक्रम विशेष स्थापित किया गया है। 

समिति का अधिकार क्षेत्र
लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों की चैथी अनुसूची के साथ पठित नियम 312 क के अनुसार वह प्रत्येक सरकारी कंपनी जिसकी वार्षिक रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाती है सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के क्षेत्राधिकार में आती है। इस प्रकार कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत आने वाली सभी सरकारी कंपनियों, जिनकी केन्द्र सरकार सदस्य है, की इस समिति द्वारा जाँच की जाती है। विशेष केन्द्रीय अधिनियमों द्वारा स्थापित किए जाने वाले सरकारी उपक्रमों के मामले में ऐसा नहीं होता है। केन्द्रीय अधिनियमों के अंतर्गत गठित उपक्रमों जिन्हें नियमों की चैथी अनुसूची के भाग एक में विनिद्रिष्ट किया गया है, की ही समिति द्वारा जाँच की जा सकती है। अन्य उपक्रमों को समिति के क्षेत्राधिकार के भीतर केवल अनुसूची में संशोधन करके ही लाया जा सकता है जिसकी सिफारिश नियम समिति द्वारा की गई हो तथा लोक सभा द्वारा उसका अनुमोदन किया गया हो, जैसा कि पहले कुछ ऐसे अवसरों पर किया गया है। कुछ संस्थान जैसे भारतीय रिजर्व बैंक, स्टेट बैंक आॅफ इंडिया तथा उसके अनुषंगी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक, राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक तथा यूनिट ट्रस्ट आॅफ इंडिया अनुसूची के भाग में शामिल नहीं है।

समिति का कार्यकरण
समिति समय.समय पर जाँच हेतु ऐसे सरकारी उपक्रमों अथवा ऐसे विषयों का चयन करती है जिन्हें वह उचित समझे तथा जो उसके विचारार्थ विषयों के अंतर्गत आते हों। सयम और कर्मचारिणी की कमी को ध्यान में रखते हुए समिति सामान्यतः प्रति वर्ष जाँच के लिए 7 से 10 उपक्रमों का चयन करती है। समिति ऐसे उपक्रमों की जाँच कर सकती है जिनका व्यापक मूल्यांकन भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की लेखा परीक्षा रिपोर्ट में किया गया हो। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक उपक्रमों की जाँच के ऐसे मामलों में समिति की सहायता करता है। समिति अपने आप भी स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करने के लिए उपक्रमों/विषयों का चयन कर सकती है।
सरकारी उपक्रमों की बढ़ती हुई संख्या भी समिति के लिए जाँच के मामले में समस्या बन गयी है। अपनी जाँच का क्षेत्र बढ़ाने को ध्यान में रखते हुए समिति अलग.अलग उपक्रमों के एक या उसके अधिक आम पहलुओं अथवा समस्याओं का समस्तरीय अध्ययन भी करती है। समिति ने वर्ष 1990-91 के दौरान सरकारी उपक्रमों द्वारा परियोजनाओं के क्रियान्वयन में लागत और समय में हुई वृद्धि को भी जाँच हेतु चुना था किन्तु नौवीं लोक सभा का विघटन हो जाने के कारण इसकी जाँच पूरी नहीं हो सकी।

समिति का कार्य निष्पादन
जहाँ तक सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों का संबंध है, सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति संसद के लिए सजग प्रहरी के रूप में कार्य करती है। समिति के प्रतिवेदनों से, जिनमें राष्ट्र के क्रियाकलापों के विस्तृत क्षेत्र की जाँच की गई होती है यह पता चलता है कि सरकारी उपक्रम किस प्रकार कार्य करते हैं तथा ऐसे क्षेत्रों का सुझाव देते हैं जिनमें सुधार की बहुत अधिक गुंजाइश होती है। 
समिति के प्रतिवेदनों की सबसे प्रमुख बात यह है कि वह संक्षिप्त और व्यापक होती है तथा उनसे न केवल सरकारी उपक्रमों के ही उत्तरदायित्व का पता चलता है वरन यह भी पता चलता है कि उपक्रमों के कारगर कार्यचालन के लिए प्रशासी मंत्रालयों की क्या जिम्मेदारी है। समिति ने योजना और सरकारी उपक्रमों के बीच संबंध स्थापित करने की कोशिश की है और उसने समय.समय पर प्रतिवेदनों के माध्यम से वास्तविक, आर्थिक और वित्तीय कमियों को भी उजागर किया है। 
इसके अतिरिक्त, समिति ने उपक्रमों के वित्तीय निष्पादन का न केवल मूल्यांकन किया है अपितु इनसे महत्वपूर्ण पहलुओं के विस्तृत क्षेत्र की भी जाँच की है जो उपक्रमों के बेहतर कार्य निष्पादन के लिए जरूरी है।
परियोजना प्रारूपण तथा उसका क्रियान्वयन सरकारी उपक्रमों के प्रबंधन के निरन्तर कमजोर क्षेत्र रहे हैं जिनकी ओर समिति द्वारा प्रमुखता के साथ समय.समय पर ध्यान दिया जाता रहा है। समिति यह सिफारिश करती रही है कि प्रबंधक और सरकार उन कारणों पर बड़ा नियंत्रण रखें जिनकी वजह से विभिन्न परियोजनाओं के क्रियान्वयन में समय और लागत में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए समिति ने अपने पचपनवें प्रति वेदन (आठवीं लोक सभा) में इंडियन आयल कार्पोरेशन लि. बंगलौर में दो एल.पी.जी. बाॅटलिंग  प्लांट्स की स्थापना के संबंध में यह सिफारिश की थी कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि परियोजनाओं को यथार्थ रूप में बनाया जाना चाहिए और उन्हें निर्धारित समय.सूची के अनुसार अनुमानित व्यय के अंतर्गत ही पूरा किया जाना चाहिए। समिति ने यह इच्छा व्यक्त की थी कि मंत्रालयों को अपने प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आने वाले उपक्रमों द्वारा प्रारम्भ की गई परियोजनाओं पर निरंतर निगरानी रखनी चाहिए। सरकार ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के साथ.साथ सभी तेल कंपनियों को अपनी परियोजना आयोजन प्रणाली को मजबूत बनाने और कार्यान्वित करने का सुझाव दिया था। समिति ने निगरानी प्रणाली के महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा की गई कार्यवाही संबंधी अपने सातवें प्रतिवेदन में अपने पूर्व अनुदेशों को दोहराया।
समिति के प्रतिवेदन सर्वसम्मत रहे हैं और इनकी कमजोरियों तथा त्रुटियों को सदैव ही रचनात्मक ढंग से उजागर किया जाता रहा है। समिति उपक्रमों/सरकार की उनकी त्रुटियों के लिए ही आलोचना नहीं करती बल्कि साथ ही उपचारात्मक उपायों का भी सुझाव देती है। समिति ने भारतीय नौवहन निगम के संबंध मेें अपने चवालीसवें प्रतिवेदन में इस तथ्य को गम्भीरता से लिया था कि भारतीय पत्तनों पर भारतीय जहाजों के लिए कार्गो सहायता हेतु ऐसी कोई योजना नहीं है जैसा कि विश्व के अनेक देशों में किया जा रहा है। अतः यह सिफारिश की गई थी कि भारतीय नौवहन की समुचित कार्गो उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक विधान द्वारा भारतीय जहाजों को अनिवार्य सहायता सुनिश्चित कराने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि भारतीय नौवहन उद्योग व्यवसाय के क्षेत्र में बना रहे। मंत्रालय ने इस सिफारिश के संबंध में उत्तर देते हुए यह बताया था कि यद्यपि जलभूतल परिवहन मंत्रालय संसदीय विधान के पक्ष में था लेकिन कुछ क्षेत्रों में ये आशंकाएं व्यक्त की गई थीं कि इससे भारतीय निर्यात व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तथापि, समिति ने प्रस्तावित विधान लाने के लिए कोई कार्यवाही न किये जाने के लिए अत्यधिक अप्रसन्नता व्यक्त की और भारतीय नौवहन निगम के संबंध में की गई कार्यवाही संबंधी अपने 5 वें प्रतिवेदन में इस विधान को बिना और विलंब के बनाने पर पुनः जोर दिया।
समिति सरकारी उपक्रमों को होने वाली कठिनाइयों और बाधाओं को समझती है और सरकारी स्तर पर उपयुक्त उपचारात्मक कार्यवाही करने हेतु सिफारिश करती है। दूसरी ओर, समिति उपक्रम/मंत्रालय के किसी अधिकारी चाहे वह कितने ही उच्च पद पर क्यों न हों, द्वारा की गई अनियमितताओं की आलोचना भी करती है। उदाहरण के लिए समिति ने तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के संबंध में अपने नौवें प्रतिवेदन में संविदा की शर्तों से बाहर एक विदेशी ठेकेदार को 89.06 लाख रुपये की परिहार्य अदायगी में जिस प्रकार सदस्य तट दूर (आॅफ शोर) ने अपने प्राधिकार का अतिक्रमण किया है और यहाँ तक कि ठेकेदार के साथ की गई समझौता.वार्तांओं के अंन्तिम परिणामों की सूचना भी उसने सक्षम अधिकारी को भेजने की परवाह नहीं की, उस पर समिति ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है।
समिति यह भी सुझाव देती है कि यदि यह पाया जाता है कि निर्धारित प्रक्रिया अथवा अधिनियमों से हटकर कतिपय अनियमिततायें की गई हैं तो इसके लिए सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए एयर इंडिया निजी प्रचालनों को अनुचित लाभ संबंधी अपने दसवें प्रतिवेदन में समिति ने यह टिप्पणी की कि एयर निगम अधिनियम के अंतर्गत कारपोरेशन (अर्थात् इण्डियन एयरलाइन्स और एयर इंडिया) अथवा उसके सहयोग के अतिरिक्त किसी अन्य के द्वारा निर्धारित एअर ट्रांसपोर्ट सर्विस जिसकी इन निगमों में से किसी के भी द्वारा व्यवस्था की जाती है, का संचालन करना गैर.कानूनी है। 

सिफारिशों का कार्यान्वयन
समिति केवल प्रतिवेदनों को प्रस्तुत किये जाने से ही संतुष्ट नहीं है। इसने अपनी सिफारिशों/टिप्पणिओं के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने की एक व्यवस्था बनाई है। समिति प्रतिवेदन प्रस्तुत किये जाने के समय से छः महीने के भीतर सरकार से ऐसे वातावरण माँगती है जिनमें समिति की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्यवाही की जानकारी दी गई हो। समिति की एक उप.समिति इन विवरणों की संवीक्षा करती है और की गई कार्यवाही संबंधी प्रतिवेदन तैयार करती है जो मुख्य समिति द्वारा अनुमोदित कर दिये जाने के बाद मूल प्रतिवेदनों की भाँति ही संसद के दोनो सदनों को प्रस्तुत किए जाते हैं। की गई कार्यवाही सम्बन्धी प्रतिवेदनों में समिति सरकार के उत्तरों को स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है। सरकार के उत्तर को अस्वीकार किये जाने की स्थिति में समिति अपनी पिछली सिफारिशों को दोहरा सकती है और उत्तर के संबंध में जिस प्रकार की टिप्पनी करना उपयुक्त समझे, कर सकती है।

राष्ट्रीय प्रेस में समय.समय पर की जाने वाली टिप्पणीयों को देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह समिति सरकारी क्षेत्र, सरकार और जनता पर प्रभाव डाल सकती है। सरकारी उपक्रमों सम्बन्धी समिति सरकारी उद्यमों के कार्यचालन पर संसदीय निगरानी रखने के अपने मूल कार्य में ही सफल नहीं रही है, बल्कि इससे निःसंदेह एक आवश्यकता की भी पूर्ति हुई है। इससे अनेक प्रतिवेदनों से सरकारी उद्यमों के प्रशाशन और प्रबन्ध के क्षेत्र में अर्जित किये गये व्यापक और विविध्तापूर्ण  अनुभव की आलोचनात्मक और रचनात्मक जाँच के  परिणामो की एक साथ जानकारी आसानी से हो जाती है।

सरकारी उपक्रमों के प्रबन्धकों के लिए सरकारी उपक्रमों सम्बन्धी समिति ही एकमात्र ऐसा साधन है  जिसके  माध्यम से वे  जनता के प्रतिनिधिओं से सीधा और  आत्मविश्वास  पूर्वक संपर्क कर सकते हैं और इसमें  उन्हें केवल अपनी प्रबन्धकीय समस्याओं को भी स्पष्ट करने का अवसर प्राप्त होता है। यदि यह समिति हो तो उन्हें अपने विचार मंत्री  के  माध्यम से संसद को प्रस्तुत करने होंगे जो कि बहुत कम ही सम्भव हो सकता है। सरकारी उपक्रमों सम्बन्धी समिति ही एकमात्र ऐसा मंच है जहाँ संसद, कार्यपालिका और प्रबन्धक का परस्पर प्रत्यक्ष सम्पर्क   हो पाता है और एक सामूहिक उद्देश्य  से प्रेरित होकर वे सरकारी उद्यमों की कठिनाइयों को विश्लेषण करते हैं और इन उद्यमों की बेहतर आयोजना और प्रबन्ध के लिए सरकारी समाधान खोज निकालते हैं। संक्षिप्त में, सरकारी उपक्रमो  सम्बन्धी समिति ने सरकारी उपक्रमों की संसद के प्रति जवाबदेही की अवधारणा को सार्थकता प्रदान करने की दिशा  मे बहुत उपयोगी कार्य  किया है। यही कारण है कि इस समिति की गणना सर्वाधिक महत्वपूर्ण  और प्रभावशाली संसदीय समतिओं  मे की जाती है।

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FAQs on सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति क्या है?
उत्तर: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति भारतीय राजव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संगठन है जो सरकारी उपक्रमों के नियंत्रण और प्रशासनिक कार्य की जिम्मेदारी संभालती है। यह समिति सरकारी उपक्रमों के नियंत्रण, नियोजन, निरीक्षण और प्रशासनिक सुधार के लिए विभिन्न परीक्षाओं का आयोजन करती है।
2. सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति कौन-कौन से परीक्षाएं आयोजित करती है?
उत्तर: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति कई परीक्षाओं का आयोजन करती है, जैसे कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग (SSC) आदि। इन परीक्षाओं का उद्देश्य सरकारी उपक्रमों के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया को संचालित करना है।
3. सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के अंतर्गत कौन-कौन से पदों के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है?
उत्तर: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के अंतर्गत विभिन्न पदों के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख पद हैं: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति सेवा (IFS), केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग (SSC) आदि।
4. सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं की तैयारी के लिए कैसे तैयारी की जानी चाहिए?
उत्तर: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्रों को समय-समय पर परीक्षा पाठ्यक्रम के साथ सामान्य ज्ञान, मौखिक और लिखित अभ्यास, पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अध्ययन, मॉक टेस्ट और प्रश्नों के संग्रह की अभ्यास करना चाहिए। इसके अलावा, समय प्रबंधन, स्वास्थ्य और मानसिक तैयारी पर भी ध्यान देना चाहिए।
5. सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति की परीक्षा किस प्रकार की होती है?
उत्तर: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति की परीक्षा वैकल्पिक और मानकीकृत दोनों प्रकार की होती है। वैकल्पिक परीक्षा में छात्र अपने विषय के आधार पर परीक्षा देते हैं, जबकि मानकीकृत परीक्षा में अपने ज्ञान की जांच के लिए सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र पूछे जाते हैं। छात्रों को परीक्षा प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार चरण पास करने की आवश्यकता होती है।
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