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सर्वोच्च न्यायालय का गठन

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय के संबंध में उपबंध है। इसके अनुसार भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो कि एक मुख्य न्यायाधीश और संसद की विधि द्वारा निर्धारित अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।
  • इन अन्य न्यायाधीशों की संख्या मूल संविधान में 7 निर्धारित की गई थी। लेकिन संसद द्वारा समय-समय पर यह संख्या बढ़ायी जाती रही है।
  • 1956 के उच्चतम न्यायालय अधिनियम द्वारा यह संख्या 10 कर दी गई थी।
  • 1960 में बढ़ाकर 13 की गयी थी तथा 1977 के संशोधन में बढ़ाकर 17 कर दी गयी।
  • 1986 के संशोधन अधिनियम द्वारा यह संख्या 25 कर दी गयी है।
  • इस प्रकार वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनता है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्राी एवं मंत्राीपरिषद् के परामर्श से की जाती है।
  • उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श पर की जाती है।

न्यायाधीशों की योग्यताएँ

  • संविधान के अनुच्छेद 124(3) में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों के लिए निम्न योग्यताएँ निर्धारित की गई है -

(क) वह भारत का नागरिक हो,
(ख) किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो, या
(ग) किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो, या
(घ) राष्ट्रपति की राय में वह पारंगत विधिवेत्ता हो।

  • इस अन्तिम उपबन्ध को शामिल करने का उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति का दायरा विस्तृत करना था। इस प्रावधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति ऐसे किसी विधि शास्त्र  को जो कि किसी विश्वविद्यालय में विधि शास्त्र  का अध्यापन कर रहा हो न्यायाधीश पद पर नियुक्त कर सकता है।

न्यायाधीशों का कार्यकाल

  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदावधि अथवा कार्यकाल का निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में उल्लिखित है। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रह सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेन 124 (2) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद में रिक्ति निम्न प्रकार से ही हो सकेगी -

(क) 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकने पर।
(ख) न्यायाधीश स्वयं राष्ट्रपति को संबोधित कर अपने हस्ताक्षर सहित लिखित पत्रा द्वारा अपना पद त्याग सकता है।
(ग) संसद द्वारा महाभियोग लगाकर उसे पद से हटाया जा सकता है।

महाभियोग प्रक्रिया

  • संविधान के अनुच्छेद 124 के खण्ड (4) में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। 
  • संसद अपने प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा सदनोें में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा न्यायाधीशों को पदच्युत कर सकती है। लेकिन ऐसा वह केवल राष्ट्रपति की अनुमति से ही कर सकती है।
  • ऐसा प्रस्ताव संसद के उसी सत्रा में पारित होना चाहिए जिस सत्रा में वह प्रस्तुत किया गया है।

(1) प्रमाणित कदाचार (दुर्व्यवहार) के आधार पर - इसका तात्पर्य है कि यदि संसद यह महसूस करे कि न्यायाधीश द्वारा अपने पद का दुरुपयोग किया गया है अथवा उसने संविधान के विरुद्ध आचरण किया है तब ऐसी स्थिति में वह प्रस्तुत प्रकरणों के आधार पर राष्ट्रपति की अनुमति से महाभियोग प्रस्ताव रख सकती है।

(2) अक्षमता के आधार पर - संसद यदि यह महसूस करे कि न्यायाधीश अपने पद पर कार्य करते रहने में असमर्थ अथवा अक्षम है तब वह इस आशय का प्रस्ताव राष्ट्रपति  की अनुमति से सदस्यों के समक्ष रख सकती है।

  • इस प्रकार के किसी भी प्रस्ताव के संसद में पेश होने पर संबंधित न्यायाधीश को अपना पक्ष प्रस्तुत करने तथा अपनी पैरवी करने का पूरा अवसर प्रदान किया जाएगा।
  • इस प्रकार महाभियोग प्रस्ताव पारित होने पर ही राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने की घोषणा करेगा।

कार्यकारी तथा तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • संविधान के अनुच्छेद 126 के अधीन राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति में अथवा अन्य किसी कारण से उसके अपने पद के कत्र्तव्यों के पालन करने में असमर्थ रहने पर न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से किसी एक को जिसे वह उचित समझे नये मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होने तक कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त है।
  • इसी प्रकार अनुच्छेद 127 के अनुसार - किसी समय यदि न्यायालय के सत्रा (बैठक) को आयोजित करने अथवा चालू रखने के लिये आवश्यक गणपूर्ति नहीं हो तो ऐसी स्थिति में भारत का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की सहमति से तथा उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात् जिसके कि किसी न्यायाधीश को वह उच्चतम न्यायालय का तदर्थ न्यायाधीश उस समय की अवधि तक के लिए जब तक कि गणपूर्ति न हो नियुक्त करने का अधिकार रखता है।    
  • एक तदर्थ न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश  की सभी अधिकारिता शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।

उन्मुक्तियां एवं विशेषाधिकार

  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक बनाया गया है। न्यायाधीश अपना कार्य निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता के साथ सम्पन्न करे, इस हेतु उन्हें कुछ विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। ये निम्न है -

    (1) किसी भी न्यायाधीश को केवल साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप ही पदच्युत किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
    (2) किसी भी न्यायाधीश के वेतन, भत्तों, छुट्टियों या अन्य सुविधाओं में उसके कार्यकाल में कटौती नहीं की जा सकती। कटौती केवल अनुच्छेद 360 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपातकाल के दौरान की जा सकती है।
    (3) न्यायाधीशों का वेतन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के अन्तर्गत आता है।
    इसी प्रकार उच्च न्यायालय के सभी प्रशासनिक व्यय तथा उसके अन्य कर्मचारियों के वेतन-भत्ते सभी भारत की संचित निधि में से देय होंगे। इन पर संसद में मतदान नहीं किया जा सकता।
    (4) किसी भी न्यायाधीश के आचरण एवं कार्यों के संबंध में संसद में महाभियोग प्रस्ताव के अतिरिक्त किसी भी स्थिति में कोई चर्चा नहीं की जा सकती।
    (5) न्यायाधीश अपनी सेवा निवृत्ति के पश्चात् भारत राज्यक्षेत्रा के किसी भी न्यायालय में अथवा किसी भी सरकारी अधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकते।
    (6) सर्वोच्च न्यायालय को अपने कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिये कर्मचारियों की नियुक्ति में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इनकी सेवा-शर्तें भी इसी न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ

  • संविधान के अनुच्छेद 124 (6) के अनुसार अपना पद ग्रहण करने से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस हेतु नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची मेंüइस पद के लिये निर्धारित शपथ ग्रहण करनी होगी।
  • संविधान की तीसरी अनुसूची में मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों के लिए शपथ का निम्न प्रारूप निर्धारित किया गया है।

"मैं अमुक जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूं, ईश्वर की शपथ लेता हूँ (या सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ) कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और सत्यनिष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखण्डता अक्षुण्ण रखूँगा तथा मैं सम्यक प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कत्र्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाये रखूँगा।"

  • उपर्युक्त प्रारूप में "मैं भारत की प्रभुता और अखण्डता अक्षुण्ण रखूँगा" वाक्यांश संविधान के सोलहवें संशोधन अधिनियम 1963 की धारा 5 द्वारा शामिल किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय की कार्यविधि

  • सर्वोच्च न्यायालय अपना कार्य किस प्रक्रिया के अनुरूप करेगा, इस हेतु कुछ उपबन्ध तो संविधान में ही निर्धारित किये गये है तथा समय की आवश्यकतानुसार संसद एवं न्यायालय को स्वयं ही अपनी प्रक्रिया संबंधी नियम निर्धारण की शक्ति भी प्रदान की गई है। सामान्यतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी कार्यवाही निम्न विधि द्वारा संचालित की जाती है - 

  • संविधान के अनुच्छेद 145 के अनुसार -
    (1) ऐसे विषय जिनका संबंध संविधान की व्यवस्था से हो या जिसमें संविधान की विधि के अभिप्राय (अर्थ) को समझने या उसकी व्याख्या करने संबंधी प्रावधान हो, एवं यदि इसमें कोई ऐसा विषय शामिल हो जिस पर विचार या निर्णय करने केे लिए राष्ट्रपति ने निर्देश दिये हों, तो संबंधित सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम 5 न्यायाधीशों की उपस्थिति में ही की जा सकेगी।
    (2) ऐसे विषयों या निर्णयों से संबंधित अपीलें सर्वोच्च न्यायालय के 5 से कम न्यायाधीशों के समक्ष उपस्थित नहीं की जा सकती है जिनमें कि सुनवाई के पश्चात् यह विचार किया जाए कि उसमें संविधान की व्याख्या करने संबंधी या कानून के तात्विक रूप को स्पष्ट करने संबंधी प्रावधान है।
    (3) सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाये जाएंगे एवं प्रत्येक रिपोर्ट खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दी जाएगी।
    (4) सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक निर्णय बहुमत के आधार पर ही लिये जाएंगे। बहुमत के निर्णय से असहमत उसी खण्ड के न्यायाधीश अपना पृथक निर्णय या राय दे सकते है लेकिन इससे बहुमत के निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

  • बहुमत का निर्णय ही प्रभावी माना जाएगा।

  • लोकहित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से न्यायालय को अपने निर्णय सुरक्षित रखने का भी अधिकार प्राप्त है। वह ऐसा प्रायः राष्ट्रपति की सहमति एवं परामर्श से ही करता है।

                                                                    महत्वपूर्ण तथ्य
विभिन्न प्रकार के प्रश्न - संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न विभिन्न प्रकार के होते है, जो निम्नलिखित है: 
(i) तारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरन्त सदन में चाहता है, उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते है। इस प्रश्न पर तारा लगाकर अन्य प्रश्नों से इसका भेद किया जाता है।
(ii) अतारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है, उन्हें अतारांकित प्रश्न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्नों का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते।
(iii) अल्प सूचना प्रश्न - जो प्रश्न अविलम्बनीय लोक महत्व का हो तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प-सूचना प्रश्न कहा जाता है।
(iv) गैर सरकारी सदस्यों से पूछे जाने वाले प्रश्न - संसद में मंत्रिपरिषद के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों, जिन्हें गैर सरकारी सदस्य कहा जाता है, से भी प्रश्न पूछे जा सकते है, जब प्रश्न का विषय किसी ऐसे विधेयक या संकल्प अथवा सदन के कार्य के किसी अन्य विषय से सम्बन्धित हो, जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी रहा हो।

 

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FAQs on सर्वोच्च न्यायालय (भाग - 1) - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. सर्वोच्च न्यायालय क्या है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय भारत की सर्वोच्च न्यायिक अदालत है, जो भारतीय राज्यों में न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत के रूप में कार्य करती है। इसे संविधानिक रूप से स्थापित किया गया है और इसका मुख्य कार्य भारतीय संविधान की प्राधिकृतता को सुनिश्चित करना है।
2. सर्वोच्च न्यायालय कैसे गठित होती है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय के गठन को भारतीय संविधान की धारा 124 और 217 द्वारा विधायित किया गया है। इसमें चीफ जस्टिस और अन्य कम से कम चार न्यायमूर्ति होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं।
3. सर्वोच्च न्यायालय कितने याचिकाओं का संग्रह कर सकती है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय को अपील याचिकाओं और न्यायिक विवादों के संग्रह करने का अधिकार होता है। यह संग्रह आपील याचिकाओं के मामलों के रूप में और न्यायिक विवादों के मामलों के रूप में हो सकता है।
4. सर्वोच्च न्यायालय किस प्रकार संविधान की संविधानिक निपटारी के रूप में कार्य करती है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय संविधानिक निपटारी के रूप में कार्य करती है और इसका मुख्य कार्य संविधानिक विवादों के निपटारे को सुनिश्चित करना है। यह निपटारी भारतीय संविधान के व्याख्यान और व्याख्यान की सिद्धांतों को स्पष्ट करती है।
5. सर्वोच्च न्यायालय का महत्व क्या है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय भारतीय राज्यों में न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत के रूप में कार्य करती है और इसलिए इसका महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न्यायपालिका की आधिकारिक न्यायिक शाखा है और भारतीय संविधान के प्राधिकरण और प्राधिकृतता को सुनिश्चित करती है।
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