सहिष्णुता एवं करूणा | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सहिष्णुता

सहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ है, सहन करना। सहिष्णुता का अर्थ है, ऐसे लोग जो आपके धर्म, विचार, राष्ट्रीयता, आदि से भिन्नता या विरोध रखते हैं। उसके प्रति भी एक वस्तुनिष्ठ, न्यायोचित तथा सम्मानपूर्वक मनोवृत्ति बनाये रखना तथा किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचना। समय के साथ सहिष्णुता के अर्थ में परिवर्तन आते रहे है। आज वर्तमान में शिक्षा, सद्भाव की भावना व राष्ट्रीयता के विकास के कारण सहिष्णुता यानि दूसरों के विचारों को सुनना, उन्हें अपने तार्किक मतों से संतुष्ट करना या उनका पक्ष सही है तो उसे स्वीकार करना आदि मनोवृत्ति में वृद्धि हुई है। प्राचीन काल में अशोक, मध्यकाल में अकबर व आधुनिक काल में महात्मा गांधी, सहिष्णुता के अद्भुत उदाहरण है। पश्चिम में इरास्मस ने पुनर्जागरण काल में सहिष्णुता का विचार दिया। 

सहिष्णुता के लाभ 

  • एक प्रकार से सहिष्णुता, सुनने की एक आंतरिक ताकत है जो स्वस्थ्य तर्क-वितर्क का मौका देता है। अतः लोकतांत्रिक देशों में सहिष्णुता का पनपना समाज, राजनीति व लोकतंत्र के लिये महत्वपूर्ण होता है। 
  • जब समाज में सभी लोगों को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता होती है तो कई बार ऐसा होता है कि नये-2 मौलिक विचार प्राप्त होते हैं जो व्यक्ति, समाज व देश की दशा व दिशा बदलते हैं।
  •  जब एक व्यक्ति, दूसरों के विचारों, धर्म व अन्य अभिव्यक्तियों को सुनने या अपनाने की भावना रखता है तो समाज में नैतिकता का जन्म होता है। 
  • सहिष्णुता से चिंतन व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है।

सहिष्णुता का वर्तमान महत्त्व

  • एक ही देश के भीतर कई जाति, धर्म व संस्कृति के लोग रहते हैं। अत: आवश्यक है कि उनके धार्मिक, सांस्कृतिक व रहन-सहन के तरीके दूसरे लोगों से भिन्न हो, ऐसे विविधता समाज में सहिष्णुता ही आपसी मेलमिलाप व बंधुत्व को बनाये रख सकता है। 
  • बीसवीं सदी में आतंकवाद की घटनाएँ उत्तरोत्तर बढ़ रही हैं। ऐसी घटनाओं में किसी एक विशेष धार्मिक समुदाय को निशाना बनाया जाता है। जिससे समाज में असहिष्णुता को बढ़ावा मिलता हैं। ध्यातत्य हो, आतंकवाद या ऐसी विचारधारा से संपन्न कृत्य किसी भी खास जाति या धर्म से नहीं जुडा होता है, अतः सहिष्णुता का विचार ऐसे गतिरोध को कम कर सकता है।

समानुभूति शब्द की बहुत सारी परिभाषा है। लेकिन वृहद स्तर पर ये कुछ सामान्य सी बातें करती हैं। जैसे दूसरों की देखभाल करना, दूसरों की मदद की इच्छा रखना, संवेगों का अनुमान करना और अपने संवेगों को दूसरों से जोड़ना, और यह जानना कि दूसरे व्यक्ति की विचार भावनाएँ क्या हैं, के लिए अपने उसके बीच के अंतर को धूमिल करना।
समानुभूति की आवधारण दूसरो से संवेगों की मानसिक अवस्था को समझने को अपने में शामिल करती हैं। दूसरों के संवेगों को समझने के लिए दूसरों के शारीरिक हाव-भाव को समझना अति आवश्यक हो जाता है। इस अर्थ में व्यक्ति के विश्वास व उसकी इच्छाओं का केन्द्रीय महत्व हो जाता है। बिना किसी के विश्वासों, इच्छाओं को जाने हुए उसके संवेगों के सही अर्थ को नहीं जाना जा सकता है और इस प्रकार समानुभूति को नहीं जाना जा सकता है।
समानुभूति के लिए दूसरों के संवेगों को जानने के लिए कल्पनात्मक होना भी आवश्यक है। बिना कल्पनात्मक हुए दूसरों की स्थिति के बारे में खुद को रखकर उनका सही ज्ञान नहीं हो सकता साथ ही सहिष्णुता का गुण समानुभूति के लिए अति आवश्यक है क्योंकि दूसरों के संवेगों को जानने के लिए उसके विचारों को, उसकी बातों को सुनना और उनके हिसाब से सोचना अति आवश्यक है।

समानुभूति/परानुभूति/तदनुभूति


समानुभूति व्यक्ति की वह गहरी संवेगात्मक समझ एवं क्षमता है जिसमें वह स्वयं को दूसरे लोगों की स्थिति से जोड़कर उनकी, मन:स्थिति को समझते हुये समस्या के स्वरूप एवं उसकी गहनता को महसूस करता है। समानुभूति प्रभावपूर्ण संवाद में बाधक अनेक कठिनाईयों को दूर कर सकता है।
समानुभूति (Empathy) के विकास हेतु दूसरे लोगों की समस्याओं से अवगत होने, स्थितियों, परम्परा, विश्वास आदि को तन्मयता से सुनने एवं समझने का अवसर मिलना चाहिये। प्रशासनिक अधिकारी फील्ड Visit करते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में कैंप लगाते हैं उनके बीच रहकर उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं। समानुभूति से युक्त अधिकारी जनता की समस्याओं को जानकर उनका समुचित हल निकाल सकता है।

  • समानुभूति के प्रकार
    (i) 
    सांवेगिक समानुभूति
    (ii) संज्ञानात्मक समानुभूति
    (i) सांवेगिक समानुभूति: दूसरों की मानसिक अवस्था के अनुसार उचित ढंग से दूसरों की भावना पर अनुक्रिया देने की क्षमता।
    (ii) संज्ञानात्मक समानुभूति: दूसरों के दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता। इसके लिए दूसरों के विश्वासों,इच्छाओं, उसकी स्वीकृति आदि का ज्ञान होना चाहिए।

तदनुभूति का प्रशासन में उपयोग

  • प्रशासनिक अधिकारियों को भी दूसरों की भावनाओं को समझना चाहिये, उनसे अपने को जोड़ते हुये

    उनकी भावनाओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तद्नुरूप कदम भी उठाने चाहिये।

  • तद्नुभूति (Empathy) न केवल लोगों में संवाद स्थापित करने में मदद करता है बल्कि यह नागरिकों पर
    सफलतापूर्वक प्रभाव भी डालता है तथा यह पारस्परिक समझ को बढ़ावा देता है।

करूणा


करूणा का आशय है, प्राणी मात्र के लिये मंगलकामना का भाव। करूणा दु:खी एवं कमजोर व्यक्तियों या प्राणियों के प्रति उत्पन्न होने वाली ऐसी भावना है, जो उसकी कमजोर एवं दु:खद स्थिति को समझने, उनके प्रति समानुभूतिमूलक चिंता रखने और उनके दु:खों को दूर करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करती है। इसमें दु:खियों एवं जरूरतमंदों की मदद एवं सेवा का भाव निहित है।
करूणा से युक्त व्यक्ति जाति, धर्म, लिंग, भाषा या प्रांत के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता। बुद्ध मतानुसार “करूणा वह है जो अच्छे लोगों के हृदय को पर-पीड़ा से द्रवित कर देती है।" परोपकार की मूल भावना करूणा में ही निहित होती है। भगवान बुद्ध को दया और करूणा का महासागर कहा जाता था। दया में जहाँ विशेष परिस्थिति एवं विशेष व्यक्ति का भाव होता है वहीं करूणा में सामान्य का भाव होता है। दया में जहाँ हीनता, स्वयं की श्रेष्ठता, अहंकार आदि का भाव हो सकता है वहीं करूणा में नि:स्वार्थ भाव से, स्वाभाविक रूप से दूसरों के दु:ख दूर करने का भाव उत्पन्न होता है। बुद्ध ने करूणा को ही नैतिकता का मूल आधार माना है।
बौद्ध दर्शन की महायान शाखा में जीवन के नैतिक आदर्श के रूप में बोधिसत्व को स्वीकार किया गया है, जिन्हें करूणा के महासागर के रूप में व्याख्यायित किया जाता है। अगर लोक सेवक में करूणा का भाव होगा तो वह गरीब वर्ग, दु:खी एवं कमजोर वर्ग की दशा को सुधारने के लिये भीतर से प्रेरित एवं प्रतिबद्ध होगा। ऐसा होने से ही समावेशी विकास का लक्ष्य हासिल हो सकता है।

करूणा (Compassion) बनाम सहानुभूति (Sympathy) 

करूणा और सहानुभूति दोनों मानव जीवन के संवेगात्मक पक्ष से संबंधित है। करूणा इच्छित न होकर अंत: करण से सम्बन्धित है। दूसरों की कठिनाईयों को समझना और उसे दूर करने की चाहत ही करूणा है। गरीब एवं जरूरतमंद, जो अपनी आवाज स्वयं नहीं उठा सकते, अपनी स्थिति को स्वयं परिवर्तित नहीं कर सकते, उनकी आवाज बनना तथा उनकी स्थिति में परिवर्तन लाना ही करूणा को इंगित करता है।सहानुभूति में केवल हमदर्दी का भाव रहता है। हम ऐसा कहते हैं, कि 'मुझे आपके प्रति हमदर्दी है।' इसका मतलब है कि 'मैं आपके बारे में यह मानता हूँ कि आप अभी अच्छी स्थिति में नहीं हैं।

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