राजा राममोहन राय एवं ब्रह्म समाज
- सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागरण के सबसे प्रमुख नेता राजा राम मोहन राय थे जिन्हें भारत के नव जागरण का अग्रदूत, सुधार आन्दोलनों का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का पहला महान नेता माना जाता है।
- राम मोहन राय का जन्म 1774 में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- राम मोहन राय संस्कृत, फारसी, अरबी, अंग्रेजी, फ्रेन्च, लैटिन, ग्रीक, जर्मन तथा हिब्रू सहित एक दर्जन से अधिक भाषाएं जानते थे।
- उन्होंने वेदों और पाँच प्रमुख उपनिषदांे का बंगला में अनुवाद प्रकाशित किया।
- 1814 में राम मोहन राय ने कलकत्ता में अपने कुछ युवा समर्थकों की सहायता से ”आत्मीय सभा“ की स्थापना की।
- राम मोहन राय ने 1829 में एक नयी धार्मिक संस्था ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाज कहा जाने लगा। ब्रह्म समाज का उद्देश्य हिन्दू धर्म को स्वच्छ बनाना और एकेश्वरवाद की शिक्षा देना था। ब्रह्म समाज के दो आधार थे तर्क शक्ति और वेद तथा उपनिषद। ब्रह्म समाज सभी धर्मों की अच्छाइयों को हिन्दू धर्म में समाहित करने के पक्ष में था। इसने मूर्तिपूजा का विरोध किया तथा सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों की आलोचना की। ब्रह्म समाज के प्रथम मंत्राी तारा चन्द्र चक्रवर्ती थे।
- राम मोहन राय की 1833 में इंग्लैण्ड में मृत्यु हो गयी।
- राम मोहन राय की मृत्यु के उपरान्त ब्रह्म समाज में शिथिलता आ गयी थी जिसे देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने पुनर्जीवित किया।
- राममोहन राय के विचारों के प्रचार के लिए 1839 में देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना की। तत्वबोधिनी सभा में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर तथा अक्षय कुमार दत्त जैसे चिंतक शामिल हुए। तत्वबोधिनी सभा तथा उसके प्रमुख पत्रा तत्वबोधिनी पत्रिका ने बंगला भाषा में भारत के सुव्यवस्थित अध्ययन को बढ़ावा दिया।
- 1843 में देवेन्द्रनाथ ने ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किया जिससे समाज सक्रिय रूप से विधवा पुनर्विवाह, बहुविवाह उन्मूलन, नारी शिक्षा, रैयत की दशा में सुधार और आत्म संयम के आन्दोलन का समर्थन करने लगा। देवेन्द्रनाथ ने केशव चन्द्र सेन को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया।
- केशवचन्द्र सेन के अति उदारवादी दृष्टिकोण के कारण ब्रह्म समाज में फूट पड़ गयी और देवेन्द्रनाथ ने 1865 में केशव चन्द्र सेन को आचार्य के पद से हटा दिया। केशव चन्द्र सेन ने एक नवीन ब्रह्म समाज का गठन किया जिसे वे आदि ब्रह्म समाज कहते थे।
- 1878 में केशवचन्द्र सेन द्वारा अपनी 13 वर्षीय पुत्राी का विवाह वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार करने के कारण आदि ब्रह्म समाज में फूट पड़ गया और केशव चन्द्र सेन के बहुत से समर्थक इससे अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की।
यंग बंगाल आन्दोलन
- हेनरी विवियन डेरोजिओ 1826 से 1831 तक हिन्दू कालेज में प्राध्यापक थे। वे फ्रांस की महान क्रांति से अत्यधिक प्रभावित थे।
- डेरोजिओ ने समाज सुधार तथा आत्मिक उन्नति के लिए ”एकेडेमिक एसोशिएशन“ और ”सोसायटी फार दि ऐक्जीवीशन आफ जनरल नालेज“ जैसे कई संगठनों की स्थापना की। उन्होंने एंग्लो इण्डियन हिन्दू एशोसिएशन, बंगहित सभा और डिबेटिंग क्लब का गठन किया।
- 1831 में डेरोजियो को उनके क्रान्तिकारी विचारों के कारण हिन्दू कालेज से निकाल दिया गया। इसके पश्चात वे ”ईस्ट इण्डिया“ नामक एक दैनिक पत्रा का सम्पादन करने लगे।
- 26 दिसम्बर, 1831 को 22 वर्ष की अवस्था में उनकी हैजे से मृत्यु हो गयी।
- यंग बंगाल आन्दोलन की प्रेरणा से आगे यंग बाम्बे, यंग मद्रास सरीखे आन्दोलन प्रारम्भ हुए।
- महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आन्दोलन 1840 के बाद प्रारम्भ हुआ। इसका प्रारम्भ 1849 में परमहंस मण्डली की स्थापना से हुआ जिसका उद्देश्य मूर्ति पूजा और जातिवाद का विरोध करना
तथा विधवा विवाह का समर्थन करना था।
- पश्चिम भारत में गोपाल हरि देशमुख जो लोकहितवादी के नाम से प्रसिद्ध थे, एक प्रमुख धर्म सुधारक थे। उन्होंने हिंदू धर्म की रूढ़िवादिता पर गम्भीर रूप से प्रहार किया।
- जोतिबा फुले महाराष्ट्र में विधवा पुनर्विवाह के अग्रदूत थे। फुले तथा उनकी पत्नी ने 1851 में पुणे में एक बालिका विद्यालय खोला जिसके बाद जल्द ही अनेक विद्यालय खुल गये।
- विष्णु शास्त्री पंडित ने उन्नीसवीं शताब्दी के छठे दशक में विधवा पुनर्विवाह की वकालत के लिए एक संस्था की स्थापना की। कर्सन दास मूलजी ने 1852 में विधवा पुनर्विवाह की वकालत के लिए गुजराती में सत्य प्रकाश आरम्भ किया।
- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बंगाल के एक प्रमुख समाज सुधारक थे। उन्होंने संस्कृत पढ़ाने के लिए एक नयी तकनीक विकसित की तथा बंगला वर्णमाला लिखी जिसका प्रयोग आज तक होता है। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा बंगला में आधुनिक गद्य शैली के विकास में सहायता दी। उन्होंने संस्कृत कालेज के दरवाजे गैर ब्राह्मण विद्यार्थियों के लिए भी खोल दिए।
- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया। देश में पहला कानूनी विधवा पुनर्विवाह कलकत्ता में 7 दिसम्बर, 1856 को विद्यासागर की प्रेरणा तथा प्रयास से हुआ। उन्होंने बाल-विवाह तथा बहु-विवाह का विरोध किया।
- 1849 में कलकत्ता में बेथुन स्कूल की स्थापना हुई जो नारी शिक्षा के लिए चलाए जा रहे आन्दोलन का प्रथम परिणाम था।
प्रार्थना समाज
- 1867 में बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से हुई जिसके प्रमुख नेता महादेव गोविन्द रानाडे और आर. जी. भण्डारकर थे।
- प्रार्थना समाज का उद्घाटन डाॅ. आत्माराम पांडुरंग के नेतृत्व में हुआ था।
- प्रार्थना समाज ने एकेश्वरवाद का उपदेश दिया तथा इसने धर्म को जाति की रूढ़ि और पुरोहितों के आधिपत्य से मुक्त कराने का प्रयास किया।
- महादेव गोविन्द रानाडे ने साहित्य, धर्म, समाज तथा शिक्षा में सुधार के लिए प्रयास करके महाराष्ट्र को जागृत किया। उन्होंने दक्षिण शिक्षा समाज की स्थापना की जिसके सदस्य गोखले, तिलक, आयंगर इत्यादि थे।
- 1844 में गुजरात में मेहताजी दुर्गाराम मंचाराम ने ”मानव धर्म सभा“ और ”युनिवर्सल रिलिजियस सोसायटी“ का गठन किया जिसका उद्देश्य सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करना था। अधिकांश गुजराती सुधारक गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी, अहमदाबाद से सम्बद्ध थे।
- केशव चन्द्र सेन की मिशनरी गतिविधियों के परिणामस्वरूप 1864 में मद्रास में ‘वेद-समाज’ की स्थापना हुई जिसे 1871 में श्रीधरलु नायडू ने पुनः संगठित करके इसका नाम ”ब्रह्म समाज आफ साउथ इण्डिया“ रखा।
आर्य समाज
- आर्य समाज की स्थापना 1875 में दयानन्द सरस्वती ने बम्बई में की।
- दयानन्द का जन्म 1824 में गुजरात में काठियावाड़ के मोखी राज्य के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 21 वर्ष की आयु में वे घर से निकाल दिये गये और 15 वर्षों तक देश भर में भ्रमण करते रहे। 1860 में मथुरा में उनकी भेंट एक अन्धे स्वामी विरजानन्द से हुई जिनसे प्रभावित होकर वे उनके शिष्य बन गये।
- 1868 से दयानन्द धर्म सुधारक और समाज सुधारक के रूप में सक्रिय हो गये।
- दयानन्द ने 1863 में झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए ”पाखण्ड खण्डिनी पताका“ लहराया। उन्होंने हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों के दोषों को भी उजागर किया। हिन्दू रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए उन्होंने मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध तथा झूठे कर्मकाण्डों और अंधविश्वासों का विरोध किया।
- दयानन्द ने अपनी पुस्तक ”सत्यार्थ प्रकाश“ में अपने मूल विचार व्यक्त किये है जिसकी रचना उन्होंने 1874 में की।
- दयानन्द सरस्वती ने नारा दिया - पुनः वेदों की ओर चलो।
- स्वामी दयानन्द सरस्वती ने शुद्धि प्रथा को जन्म दिया जिसके अनुसार अन्य धर्मावलम्बियों को हिन्दू धर्म में प्रवेश करने की आज्ञा दी गयी।
- 1883 में दयानन्द की अजमेर में मृत्यु हो गयी।
रामकृष्ण मिशन
- रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की स्मृति में 1896 में की थी।
- रामकृष्ण का जन्म 1834 मेें बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। वे कलकत्ता के एक छोटे से मन्दिर के पुजारी थे।
- रामकृष्ण मानव सेवा को ही ईश्वर की सेवा मानते थे।
- रामकृष्ण ने तीनों प्रकार की साधना - तांत्रिक, वैष्णव और अद्वैत की और अन्त में निर्विकल्प समाधि की स्थिति प्राप्त कर लिया जिसके कारण लोग उन्हें परमहंस कहने लगे। 1886 में
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी।
- स्वामी विवेकानन्द का जन्म 1863 में कलकत्ता में हुआ था।
- स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। वे आध्यात्मिक जिज्ञासा से रामकृष्ण के सम्पर्क में आये और उनसे प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गये।
- स्वामी विवेकानन्द ने 1898 में लिखा, ”हमारी अपनी मातृभूमि के लिए दो महान् प्रणालियों, हिन्दू धर्म और इस्लाम का संगम ही एकमात्रा आशा है“।
- स्वामी विवेकानन्द ने 1893 में शिकागो में ”पार्लियामेण्ट आफ रिलीजन“ में अपने सुप्रसिद्ध भाषण द्वारा पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया।
- विवेकानन्द ने सभी धर्मों की मूलभूत एकता, ईश्वर की अलौकिक सत्ता तथा आध्यात्मिक महत्ता और मानवतावाद का उपदेश दिया।
थियोसोफिकल सोसाइटी
- थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना 1875 में मैडम एच. पी. ब्लावत्स्की और कर्नल एच. एस. ओलकाट ने संयुक्त राज्य अमेरिका में किया।
- थियोसोफिकल सोसाइटी का उद्देश्य समस्त धर्मों की एकता, विश्व बंधुत्व तथा आध्यात्मिक जीवन का महत्व बताना था।
- मैडम ब्लावत्स्की तथा कर्नल ओलकाट बाद में भारत आये तथा उन्होंने 1886 में सोसाइटी का मुख्यालय मद्रास के निकट अडयार में बनाया।
- भारत में थियोसोफिस्ट आन्दोलन श्रीमती एनीबेसेन्ट के नेतृत्व में काफी लोकप्रिय हुआ।
- श्रीमती बेसेन्ट ने 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की जहाँ हिन्दू दर्शन और पाश्चात्य वैज्ञानिक विषय पढ़ाये जाते थे। यही स्कूल आगे चलकर कालेज और अन्ततः 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बन गया।
- श्रीमती बेसेन्ट ने आयरलैण्ड की स्वराज लीग के नमूने पर भारतीय स्वराज लीग बनायी।
- थियोसोफिस्टों ने रूढ़िवादी परम्परा के अनुसार हिन्दू धर्म की व्याख्या की और प्राचीन भावना ”कुण्वन्तो विश्वमार्यम“ को साकार बनाने का प्रयास किया।
- थियोसोफिकल सोसाइटी के अनुसार आत्मा एवं परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास करना चाहिए तथा प्रकृति पूजा एवं मूर्तिपूजा वैज्ञानिक है। ”वसुधैव कुटुम्बकम“ की भावना का आदर करना चाहिए।
मुस्लिम सुधार आन्दोलन
- 1863 में कलकत्ता में मुहम्मडन लिटरेरी सोसाइटी की स्थापना हुई जिसने आधुनिक विचारों के प्रकाश में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रश्नों पर विचार विमर्श को बढ़ावा दिया तथा उच्च एवं मध्य वर्गीय मुसलमानों को पाश्चात्य शिक्षा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
- मौलवी चिराग अली ने प्रयास किया कि मुसलमान अंग्रेजी सरकार को स्वीकार करके इस व्यवस्था में उचित स्थान प्राप्त करें। वे एक-पत्नीवाद में विश्वास करते थे तथा चाहते थे कि मुसलमान स्त्रियों को समाज में अच्छा स्थान मिले।
- मुस्लिम सुधारकों में सबसे प्रमुख सैयद अहमद खाँ थे जिनका जन्म 1817 में दिल्ली में हुआ था। उन्होंने परम्परागत मुस्लिम ढंग से शिक्षा प्राप्त की। 1857 के विद्रोह के समय वे कम्पनी की न्यायिक सेवा में थे। वे कम्पनी के प्रति पूर्ण राजभक्त बने रहे।
- सैयद अहमद ने 1875 में अलीगढ़ में पाश्चात्य विज्ञानों और संस्कृति के प्रसार के लिए मुहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कालेज की स्थापना की जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
- मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन पंजाब के गुरुदासपुर जिले के अन्तर्गत कादिया नगर से आरम्भ हुआ। मिर्जा गुलाम अहमद ने अपने सिद्धान्तों को अपनी पुस्तक वराहीन-ए- अहमदिया में 1880 में प्रकाशित किया। 1891 में मिर्जा ने अपने को मसीद-अल-ऊद कहा और 1904 में अपने को कृष्ण का अवतार कहने लगा। मिर्जा गुलाम अहमद हजरत मुहम्मद को आखिरी पैगम्बर नहीं मानते।
- रायबरेली के सैयद अहमद ने वहाबी आन्दोलन प्रारम्भ किया।
पारसियों में धार्मिक सुधार आन्दोलन
- नौरोजी फरदोन जी, दादा भाई नौरोजी, एस. एस. बेंगाली तथा अन्य लोगों ने 1851 में रहनुमाई माजदायासन सभा या धार्मिक सुधार परिषद की स्थापना बम्बई में किया। इस संस्था ने धार्मिक रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष किया और नारी शिक्षा, विवाह तथा स्त्रियों की सामान्य अवस्था सम्बन्धी पारसी सामाजिक प्रथाओं के आधुनिकीकरण की शुरुआत की। दादा भाई नौरोजी के प्रयासों से पारसी ला एसोशिएसन की स्थापना हुई जिसने स्त्रियों को कानूनी दर्जा देने तथा पारसियों के लिए विरासत और विवाह के समरूप कानून बनाने के लिए आन्दोलन किया।
सिखों में धार्मिक सुधार
- सिखों में धार्मिक सुधार का प्रारम्भ अमृतसर में खालसा कालेज की स्थापना से हुआ।
- 1920 में अकाली आन्दोलन के उदय से सुधार आन्दोलन और तेज हो गया।
- अकाली आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों के प्रबन्ध को स्वच्छ बनाना था जिसके लिए अकालियों ने 1922 में सरकार से सिख गुरुद्वारा एक्ट पास करवा लिया जिसे 1925 में संशोधित किया गया। इस एक्ट की सहायता से सिखों ने धीरे-धीरे गुरुद्वारों को भ्रष्ट महंतों से मुक्त कराया।
समाज सुधार के क्षेत्रा में सरकारी एवं कुछ महापुरुषों के प्रयास
- 1872 में कानून द्वारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं का विवाह वर्जित कर दिया गया तथा बहुपत्नी प्रथा समाप्त कर दी गयी परन्तु यह हिन
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1. सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति क्या होती है? |
2. सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति क्यों महत्वपूर्ण है? |
3. सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति कैसे प्रभावित होती है? |
4. सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति के लिए सरकारी नीतियों का क्या महत्व है? |
5. सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति के लिए संगठनों का क्या योगदान होता है? |
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