साहित्य
फारसी साहित्य का विकास
¯ सल्तनतकालीन साहित्य के क्षेत्र में विशेष रूप से धर्म के परिवेश में अरबी और फारसी साहित्य का सर्जन हुआ।
¯ इस काल में मूल ग्रंथों का अभाव रहा, केवल टीकाएं लिखी गयीं।
¯ फारसी का धार्मिक मूल साहित्य केवल सूफी संतों के उपदेशों में था।
¯ तेरहवीं शताब्दी में मौलाना रज़ीउद्दीन सगनी ने ‘हदीस’ पर चार ग्रंथ लिखे।
¯ इसके अतिरिक्त रहस्यवाद पर काजी हमीदुद्दीन नागौरी ने इश्किया, शेख जमालुद्दीन हंसवी ने मुल्हामत, दीवान, अमीर हसन सिज्जी ने फवायद-उल-फौद, सरूर-उस-सुदूर और मिफता-उत-तीलिविन नामक ग्रंथ लिखे।
¯ तुर्की आक्रमणकारी महमूद गजनवी भाषा और साहित्य का प्रेमी था। आक्रमणों के समय वह साथ अनेक कवि और लेखक अपने साथ लाया था। प्रसिद्ध इतिहासकार अबू रीहान मोहम्मद अलबरूनी उनमें सर्वाधिक प्रख्यात था।
¯ दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद फारसी राज-भाषा हो गयी।
¯ कुतुबुद्दीन ऐबक विद्वानों के प्रति बहुत उदार था। इसीलिए उसे ‘लाखबख्श’ कहा गया।
¯ उसके शासनकाल में हसन निजामी बाहर से दिल्ली आया था। उसने ऐतिहासिक ग्रंथ ताज-उल-मासिर की रचना की।
¯ इल्तुतमिश भी विद्वानों के प्रति उदार रहा।
¯ इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज इल्तुतमिश की राजकीय सेवा में था।
¯ इसका प्रसिद्ध ग्रंथ तवाकत-ए-नासिरी 1260 ई. तक का इतिहास प्रस्तुत करता है।
¯ नासिरुद्दीन महमूद शाह (1246-65 ई.) को साहित्य से प्रेम था। फखरुद्दीन नूनाकी ‘आमिद’ और मिनहाजुद्दीन उसके समकालिक और कृपापात्र थे।
¯ गियासुद्दीन बलबन का दरबार तो इस्लामी संस्कृति का केंद्र बन गया था। बलबन विद्वानों का सत्संग एवं सानिध्य करता था।
¯ बलबन का ज्येष्ठ पुत्र मोहम्मद ‘खाने रशीद’ कवियों का संरक्षक था। फारसी के महान् कवि अमीर खुसरो और मीरहसन देहलवी ने उसी के आश्रित होकर काव्य का सृजन किया।
¯ अमीर खुसरो फारसी का श्रेष्ठ भारतीय कवि था। उसने ‘हिंदवी’ में भी कविताएं लिखीं। उसका जन्म 1256 ई. में पटियाली में हुआ था।
¯ वह निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था।
¯ उन्होंने कविता, कथा, कहानी, मसनवी और इतिहास आदि विषयों पर ग्रंथ लिखे जिनमें उल्लेखनीय हैं - खमशा पजगंज, मतला-उल-अनवर, शीरी व फरहाद, लैला व मजनू, आइने सिकंदरी, नूह सिफर, रसैल इलाज, तुगलकनामा, मिफता उल फुतूह, अफजल उल फरायद, तारीख-ए-दिल्ली, खजाइन-उल-फुतूह आदि।
¯ वह भारतीय संगीत का प्रेमी था। अनुश्रुति है कि भारतीय वीणा और ईरानी तंबूरा को मिलाकर सितार का आविष्कार उसी ने किया था।
¯ अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी कवियों में सदरुद्दीन अली, फखरुद्दीन, हमीदुद्दीन, मौलाना आरिफ, अब्दुल हकीम और शिहाबुद्दीन सद्रनिशीन उल्लेखनीय हैं।
¯ मोहम्मद तुगलक स्वयं विद्वान था और विद्वानों का आश्रयदाता भी। तुगलक काल में फारसी साहित्य का अत्यंत विकास हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी 17 वर्ष तक उसके संरक्षकत्व में रहा।
¯ बरनी ने तारीख-ए-फीरोजशाही, फतवा-ए-जहांदारी, सना-ए-मुहम्मदी, सलत-ए-कबीर, इनायतनामा-ए-इलाही मासिर-ए-सआदत और हसरतनामा नामक ग्रंथ लिखे। यह भी निजामुद्दीन औलिया का शिष्य और खुसरो और मीरहसन का मित्र था। वह फीरोज तुगलक के राजाश्रय से वंचित रहा।
¯ फीरोज तुगलक विद्या तथा इतिहास प्रेमी था। उसने अपने राज्यकाल का विवरण फतुहात-ए-फीरोजशाही नामक ग्रंथ में लिखा है।
¯ प्रसिद्ध विद्वान् और इतिहासकार शम्स-उस-सिराज अफीफ उसका दरबारी था।
¯ अफीफ के ग्रंथ तारीख-ए-फीरोजशाही फीरोज के राज्यकाल का विवरण है। जहां बरनी का ग्रंथ समाप्त होता है वहां से अफीफ का ग्रंथ आरंभ होता है।
¯ एक अज्ञात लेखक ने तात्कालिक इतिहास सीरत-ए-फीरोजशाही नामक ग्रंथ लिखा है।
¯ तुगलक सुल्तानों के अंतिम काल में मुहम्मद बिहामद खानी और शाहया बिन अहमद नामक विद्वान हुए जिन्होंने क्रमशः तारीख-ए-मुहम्मदी और तारीख-ए- मुबारकशाही नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखे।
¯ सिंध में सैयद मुइनुल हक ने भक्कर के सैयदों की वंशावली तैयार की (1426-27 ई.) और उसका नाम मनवा-उल-अनसाब रखा गया।
¯ दक्षिण के बहमनी वंश का सुल्तान ताजुद्दीन फीरोज (1397-1422) ज्योतिष का विद्वान था इसीलिए उसने दौलताबाद में एक वेधशाला का निर्माण शुरू किया किंतु वह पूर्ण न हो सकी।
¯ इसी राज्य का प्रसिद्ध वजीर ख्वाजा महमूद गवां ने प्रख्यात कवि अब्दुल रहमान जामी को आमंत्रित किया। गवां ने रियाजुलइंशा नामक एक पत्रसंग्रह तैयार किया था।
¯ गुजरात में महमूद बेगड़ा (1458-1511) के शासनकाल में फजालुल्लाह जैनुल आविदीन उर्फ सद्र-ई-जहां ने प्रारंभिक काल से 9वीं शताब्दी तक का इतिहास लिखा।
¯ बीजापुर के महमूद अयाज ने कामशास्त्र पर मिफ्ता-उस-सुरूर-ए-आदिली नामक ग्रंथ (1516 ई. में) लिखा।
¯ सिकंदर लोदी कवि और विद्वान् था। उसने स्वयं कविताएं लिखीं और अनेक कवियों को आश्रय दिया, जिनमें शेख अब्दुल्ला तुलानवी, शेख अजीजुल्ला और ईरानी विद्वान् रफीउद्दीन शिराजी के नाम उल्लेखनीय हैं।
¯ लोदी काल के ख्याति प्राप्त कवि जमालुद्दीन थे।
¯ सिकंदर लोदी के काल में औषधिशास्त्र पर संस्कृत के एक ग्रंथ का तिब्ब-ए-सिकंदरी के नाम से फारसी में अनुवाद किया।
हिंदवी उर्दू और हिंदी
¯ तुर्कों के आगमन के बाद भारत में मध्य-एशियाई तुर्कों तथा हिंदुओं के संपर्क के परिणामस्वरूप एक नई बोलचाल की भाषा का जन्म हुआ, जो प्रारंभ में छावनियों और बाजारों की भाषा बनी। लगभग 200 वर्ष तक यह केवल बोलचाल की भाषा रही। इसके साहित्य सृजन का श्री गणेश 14वीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुआ। प्रारंभ में इसका नाम ‘जबान-ए-हिंदवी’ था, बाद में ‘उर्दू’ पड़ा।
सल्तनतकालीन स्थापत्य की विशेषताएं |
¯ अमीर खुसरो ने इसका नामकरण ‘हिंदवी’ अथवा ‘देहलवी’ किया। 1200 से 1700 ई. तक उर्दू तथा पश्चिमी हिंदी लगभग एक-सी रही।
¯ हिंदवी भाषा के विकास में सूफी संतों ने विशेष योगदान दिया, जिनमें ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, ख्वाजा बख्तियार काकी, हजरत फरीदउद्दीन गंजशंकर, हजरत निजामुद्दीन औलिया का नाम उल्लेखनीय है।
¯ कतिपय विद्वानों ने शेख ऐनुद्दीन गंजुल इस्लाम को उर्दू गद्य का प्रथम लेखक माना है, किंतु इनकी रचना अप्राप्य है।
¯ कुछ विद्वान ख्वाजा मोहम्मद गेसूदराज को उर्दू गद्य का जन्मदाता और उनके द्वारा रचित मेराज-उल-आशिकीन ग्रंथ को उर्दू गद्य की प्रथम कृति मानते हैं।
¯ तेरहवीं शताब्दी के प्रथम दशक में पृथ्वीराज रासो की रचना (चंदबरदाई द्वारा) हुई।
¯ इस समय साहित्यिक गतिविधियों का प्रमुख
केंद्र राजस्थान था, इसलिए तात्कालिक साहित्य भाट-चारणों
के गीतों के रूप में मुख्यतः मिलता है। यह रूप डिंगल कहलाता है।
¯ जैन लेखकों ने अपभ्रंश में ग्रंथ लिखे जो प्राचीन हिंदी से मेल खाते हैं।
¯ नरपति नाल्ह आदिकाल के कवियों में से थे, उनका शास्त्रीय काव्य ग्रंथ बीसलदेवरासो तेरहवीं शताब्दी के अंत अथवा चैदहवीं शताब्दी के प्रारंभ में रचा गया।
¯ अमीर खुसरो (1253-1326 ई.) भी हिंदी के प्रमुख कवि थे।
¯ यद्यपि सल्तनत काल में हिंदी का विकास हो रहा था किंतु वह अभी साहित्यिक भाषा नहीं बन पायी थी। उसे राज्य की ओर से कोई सहायता या समर्थन नहीं प्राप्त था, फिर भी वह देश के जन-मानस की भाषा बनती जा रही थी।
¯ भक्ति आंदोलन के अनेक संत उसका प्रचार एवं प्रसार कर रहे थे। सूफी संतों ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने उपदेश दिये।
¯ बारहवीं शताब्दी में दामोदर पंडित ने उक्ति-व्यक्ति प्रकरण नामक अवधी ग्रंथ लिखा।
¯ बंदानवाज गेसूदराज (1321-1432 ई.) नामक सूफी संत ने हिंदी उर्दू मिश्रित भाषा में मीरत-उल-अशिकीन नामक ग्रंथ की रचना की।
¯ 1370 ई. में मौलाना दाउद ने चंदायन नामक अवधी ग्रंथ की रचना की। यह एक प्रेम गाथा है।
¯ इसके बाद कुतबन ने मृगावती नामक अवधी काव्य ग्रंथ की रचना की। यह एक राजपूती प्रेम गाथा है।
¯ मंझन ने 1532 ई. में मधुमालती नामक श्रेष्ठ काव्य ग्रंथ की रचना की।
¯ 1540 ई. में मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्यावत नामक विशुद्ध शास्त्रीय ग्रंथ की रचना की, जिसमें लौकिक प्रेम के द्वारा आध्यात्मिक तत्त्वों की विवेचना की गयी है। यह सूफी मसनवी ढंग पर लिखा गया है।
¯ इसके बाद उस्मान ने चित्रावली और नूर मुहम्मद ने इंद्रावती की रचना की।
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1. साहित्य, हिन्दवी उर्दू और हिंदी - भारतीय-इस्लामी संस्कृति, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस UPSC के बारे में क्या है? |
2. क्या हैं साहित्य, हिन्दवी उर्दू और हिंदी के मुख्य तत्व? |
3. साहित्य, हिन्दवी उर्दू और हिंदी का महत्व क्या है भारतीय-इस्लामी संस्कृति में? |
4. साहित्य, हिन्दवी उर्दू और हिंदी के महत्वपूर्ण लेखकों के नाम बताएं। |
5. साहित्य, हिन्दवी उर्दू और हिंदी के महत्वपूर्ण काव्य और कहानी संग्रह के बारे में बताएं। |
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