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सिंधु घाटी सभ्यता - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सिंधु घाटी सभ्यता

-    हड़प्पा सभ्यता ताम्र-पाषाण काल अथवा तृतीय कांस्य काल की सभ्यता है। इसमें कांस्य काल की सर्वोत्कृष्ट विशेषताएं परिलक्षित होती हैं।
-   ”हड़प्पा“ स्थल के नाम पर, जहाँ प्रथमतः इस सभ्यता को पहचाना गया था, इस सभ्यता का नामकरण कर दिया गया जो पुरातात्विक प्रचलन पर आधारित गैर-भौगोलिक नामकरण है। इसे ”सिन्धु घाटी की सभ्यता“ जैसा भौगोलिक सीमाबद्ध नाम भी दिया गया परन्तु इस सभ्यता का विस्तार सिन्धु घाटी से बाहर भी अत्यन्त व्यापक है, अतः इस नाम की उपादेयता भी नहीं ठहराई जा सकती।
-    हड़प्पा सभ्यता के कालानुक्रम को लेकर भी अत्यन्त विवाद था परन्तु कार्बन डेटिंग पद्धति ने इस सभ्यता का काल ईसा पूर्व 2300 से 1750 निर्धारित किया है। इसके संशोधित ऐतिहासिक तिथि परिवर्तन से इस सभ्यता का काल सामान्यतया ई. पू. 2900/2800.2000 निर्धारित होता है।
-    हड़प्पा सभ्यता के उत्थान में विभिन्न स्थानीय संस्कृतियों जैसे ब्राहुई, आमरी, नाल, झूकर, झाब एवं कुल्ली का योगदान रहा, परन्तु वैदेशिक सम्पर्क का प्रभाव (विशेषतया मेसोपोटामिया एवं सुमेर) भी स्पष्ट परिलक्षित होता है।
-    नृविज्ञानियों ने हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से प्राप्त अस्थि-कंकालों के आधार पर अग्रलिखित प्रजातीय वर्गों को हड़प्पा अस्तित्व प्रदान किया है-प्रोटो आस्ट्रेलाॅयड (आद्य-निषाद), मंगोलाॅयड, आल्पियन, मेडीटेरेनियन (भूमध्य सागरीय)।
-   सिन्धु सभ्यता पश्चिम में मकरान तट (बलूचिस्तान) पर सुत्कागेनडोर से पूरब में आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश) और उत्तर में  जम्मू के मांडा से लेकर दक्षिण में किम सागर संगम पर भागत्राव तक फैली थी। क्षेत्रा की दृष्टि से यह मिस्र या सुमेरियाई सभ्यता से कहीं अधिक विशाल थी।
-   हड़प्पा सभ्यता के निम्नलिखित केन्द्रों से प्राक्-हड़प्पा संस्कृति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है-मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, कालीबंगा, बनवाली, कोटदीजी, रंगपुर, डाबरकोट आदि।
-   यह सभ्यता नगरीय तथा व्यापार प्रधान थी। इसके अन्तर्गत सिन्धु निवासियों ने आश्चर्यजनक उन्नति की थी। सुनियोजित नागरीय जीवन पद्धति से जुड़े सैन्धव सभ्यता के लोग विशाल नगरों, सुव्यवस्थित सड़कों, नालियों, स्नानागारों आदि के निर्माता थे। नगर की स्वच्छता व्यवस्था उत्कृष्ट थी, जो कि 17वीं शताब्दी के पेरिस व लन्दन जैसे नगरों में भी नहीं अपनायी जा सकी थी।
-   सिन्धु सभ्यता शान्तिमूलक थी। उसके संस्थापकों को युद्ध से अनुराग न था। जो अस्त्र शस्त्र (धनुष-बाण, भाला, कुल्हाड़ी) मिले है। उनका महत्व आखेटीय ज्यादा था। उत्खनन में कवच, शिरस्त्राण एवं ढाल नहीं मिले है।
-   यह सभ्यता समष्टिवादिनी थी। उत्खनन में राज सामग्री के स्थान पर सार्वजनिक व सामुदायिक सामग्री ही मिली है। विशाल सभागार एवं स्नानागारों के अवशेष सामूहिक जीवन के परिचायक हैं।
-   सिन्धु प्रदेश का आर्थिक जीवन औद्योगिक विशेषीकरण एवं स्थानीकरण पर अवलम्बित था। अधिकांश व्यवसायी प्रायः एक ही व्यवसाय का अनुसरण करते थे। समान व्यवसाय के अनुसरणकर्ता प्रायः एक ही क्षेत्रा में रहते थे।
-   हड़प्पा सभ्यता का धर्म द्वि-देवतामूलक था। श्रद्धा-भक्ति का प्रमुख केन्द्र दो देवता थे- एक पुरुष के रूप में दूसरा नारी के रूप में। पुरुष एवं नारी के  चिरन्तन द्वंद्व का यह दैवीकरण सिन्धु निवासियों की प्रबल कल्पनाशीलता का द्योतक है।
-    हड़प्पा सभ्यता के लोगों का समग्र दृष्टिकोण उपयोगितावादी था। जीवन के प्रत्येक क्षेत्रा में वे व्यावहारिक एवं प्रायोगिक यथार्थपूर्ण विचारधारा से परिचालित थे।
-    हड़प्पा सभ्यता में शासन व्यवस्था भी मूलतः सामुदायिक रही होगी और अनुमान है कि इसकी बागडोर वाणिज्यिक वर्ग के हाथ में रही होगी। कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार निम्नतया ह®-
    (i)    हंटर महोदय-मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था। सत्ता जनता के प्रतिनिधियों में अधिष्ठित थी।
    (ii)    मैके महोदय-मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ में था।
    (iii)     ह्नीलर महोदय-हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के शासक सुमेर एवं अक्कड़ के पुरोहित राजाओं तथा उनके प्रतिनिधियों के समान थे।
    (iv)     पिगट महोदय-सिन्धु प्रदेश के शासन पर पुरोहित वर्ग का प्रभाव था।
-    मूलतः यहाँ विकेन्द्रीकृत शासन था। सम्भव है राजतंत्रा पर धर्मतंत्रा की गहरी छाप रही हो।
-    हड़प्पा सभ्यता में मातृ सत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था परिलक्षित होती है। यह मातृ देवी की अधिकतर मूर्तियों एवं अन्य साक्ष्यों से प्रमाणित होता है।
सिंधु घाटी सभ्यता - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

उद्भव संबंधी विचारधाराएं
1.    सिन्धु सभ्यता मेसोपोटामिया की संस्कृति की देन थी।     - हीलर, गार्डन
2.    सिन्धु सभ्यता का उद्भव व विस्तार बलूची संस्कृतियों का सिन्धु के शिकार पर निर्भर करने वाली किन्हीं वन्य एवं कृषक संस्कृतियों के पारस्परिक प्रभाव के पफलस्वरूप हुआ ।  - पेफयरसर्विस
3.    सोथी संस्कृति से सिन्धु सभ्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला।   -अमलानद घोष    
4.    सोथी संस्कृति सिन्धु सभ्यता से पृथक नहीं थी, अपितु वह सिन्धु सभ्यता का ही प्रारंभिक स्वरूप थी।   -रेमण्ड अल्विन, ब्रिजेट अल्विन, धर्मपाल
5.    सिन्धु सभ्यता आर्यों की ही सभ्यता थी तथा आर्य ही इस सभ्यता के जनक थे।  -लक्ष्मणस्वरूप पुसाल्कर

पत्तन संबंधी विचारधाराएं
1.    सिन्धु सभ्यता को आर्यों ने नष्ट किया।  -आर. ई. एम. हीलर, गार्डन चाइल्ड   
2.    इसका पतन बाढ़ द्वारा हुआ।    -मार्शल, मैके
3.    मोहनजोदड़ो में आग लगाकर निवासियों की हत्या कर दी गई   -डी.डी. कोसाम्बी
4.    वर्षा में कमी के कारण कृषि एवं पशुपालन पर बुरा असर पड़ा।   -आस्टाईन
5.    भूकंप के कारण सिन्धु नदी की धारा बदल गई जिसके परिणामस्वरूप यह सभ्यता वीरान हो गई।  -डेल्स
6.    इसके विनाश का प्रमुख कारण जल प्लावन था।  -साहनी
7.    जलवायु में परिवर्तन एवं अनावृष्टि के कारण इस सभ्यता का पत्तन हुआ।  - अमलनान्द घोष

महत्वपूर्ण तथ्य
•   दाशराज्ञ  युद्ध  परुष्णी नदी के तट पर हुआ था। इस युद्ध का उल्लेख कहां मिलता है?    -ऋग्वेद में
•    ऋग्वेद में उल्लिखित शतुद्री क्या है?-एक नदी का नाम
•    प्राचीन काल में साकेत, मथुरा व पांचाल पर यूनानी आक्रमण का उल्लेख किस ग्रंथ में किया गया है? -गार्गी संहिता के युगपुराण में
•    हैदराबाद के निजाम वंश की स्थापना किसने की? -चिन किलिच खां (निजाम उल् मुल्क)
•    महात्मा  बुद्ध से संबंधित किस घटना को धम्मचक्रप्रवत्र्तन कहा गया है -सारनाथ में दिया गया उपदेश
•    रामानुजाचार्य का संबंध किस दर्शन से है? -विशिष्ट अद्वैत दर्शन से
•    किस मुगल बादशाह ने अपनी आत्मकथा लिखी है? -बाबर व जहांगीर ने
•  भारत में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम किस गवर्नर जनरल ने कानून बनाया था?  -लाॅर्ड विलियम बेंटिंक ने
•    चंगेज खां ने किसके शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया था? -इल्तुतमिश के शासनकाल में
•    दिल्ली के सिंहासन पर बैठनेवाला पहला अफगान शासक कौन था?-बहलोल लोदी

नगर आयताकार हुआ करते थे तथा उनकी योजना का आधार सड़कें हुआ करती थीं। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।  सड़कें प्रायः कच्ची हुआ करती थीं जबकि मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे। दो मंजिले मकानों का भी अस्तित्व था। विशाल एवं छोटे दोनों तरह के घरों का अस्तित्व था। घरों के निर्माण का आधार मुख्यतः आँगन हुआ करता था। घरों में रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि की उत्कृष्ट व्यवस्था थी। घरों के दरवाजे व खिड़कियां प्रायः गलियों में ही खुलते थे, ऐसा सम्भवतः स्वच्छता व सुरक्षा के दृष्टिकोण से रहा होगा। सड़कों की चैड़ाई 13.5 फीट से 33 फीट तक मिलती है जबकि गलियाँ 9 से 12 फीट तक चौड़ी थी।
-   हड़प्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी व मांसाहारी दोनों थे। भोज्य पदार्थों में गेहूं, जौ, खजूर, तरबूज, मटर, तिल, सरसों, ब्रासिका जुंसी (Brassica juncear) गाय, सुअर, बकरी का मांस, नदी की ताजा मछलियाँ, घड़ियाल, कछुए आदि का मांस प्रयोग होता था। वे दूध का विभिन्न रूपों में प्रयोग करते थे।
-   पहनावे का कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिलता, परन्तु प्राप्त मूर्तियों एवं चित्रों (वस्तुओं) के आलोक में पता चलता है कि द्विस्तरीय प्रथा थी। एक शाल की तरह का वó जो कि शरीर के ऊपरी भाग पर डाला जाता था एवं दाहिनी बाँह के नीचे से बांए कंधे पर फेंका जाता था जिससे की दाहिना हाथ स्वतंत्रा रहे जबकि दूसरा आधुनिक ”धोती“ जैसा कोई अधोवस्त्र था। स्त्रियों और पुरुषों के पहनावे में विशेष अंतर न था। वस्त्र सूती व ऊनी होते थे और सम्भवतः सिए भी जाते थे।
-   पुरुष व स्त्री दोनों ही लम्बे बाल रखते थे व उनका उचित विन्यास एवं श्रंगार करते थे। दोनों बालों की चोटियाँ बांधते थे तथा एक जूड़ा भी लगाते थे।
-   पुरुष एवं स्त्री  दोनों आभूषण धारण करते थे जो कि सोने, चाँदी, ताँबा, काँसा, सीप, पत्थर व मिट्टी के बने होते थे। इनमें कण्ठहार, कर्णफूल, हंसली, भुजबन्ध, कड़े, अंगूठिया, छल्ले, करधनी, पाजेब आदि प्रमुख थे। कभी-कभी इन पर पच्चीकारी भी होती थी।
-   समाज की इकाई परम्परागत तौर पर परिवार ही था। समाज में आर्थिक एवं सामाजिक आधार पर वर्गीकरण स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है। नगर योजना, गृह तथा प्रयुक्त की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं से समाज में धनी व निर्धन वर्ग के अस्तित्व का स्पष्ट संकेत मिलता है। सम्भवतः शासक, अधिकारी व व्यापारी वर्ग उच्च स्थिति में रहे होंगे जबकि कृषक, उद्यमी व अन्य निम्नवर्गीय रहे होंगे। ऐसा परिलक्षित होता है कि जन सामान्य का जीवन भी सहज रहा होगा।
-   आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी। कृषि व उस पर आधारित उद्योगों के अलावा आन्तरिक तथा बाह्य व्यापार भी विकसित अवस्था में था। कृषि-कर्म के साथ पशुपालन भी महत्वपूर्ण था। बैल सर्वाधिक महत्व का पशु था जबकि गाय का कोई धार्मिक महत्व नहीं प्रतिबिम्बित होता है। यातायात के साधन के रूप में बैलगाड़ियों का व्यापक प्रयोग होता था, जबकि आधुनिक ”इक्का “ जैसी रचनाएं भी उत्खनन में मिली है।
-    व्यापार सम्भवतः वस्तु विनिमय से ही होता था। 2000 से अधिक प्राप्य मुद्राओं के व्यापारिक प्रयोग को लेकर अस्पष्टता है। माप-तौल की उत्कृष्ट पद्धति चलन में थी। छोटे से बड़े आकार के बाट (पाषाण) थे। ये मुख्यतः घनाकार होते थे। माप का आनुपातिक आधार 16 के गुणक में था, जबकि माप में दशमलव पद्धति चलन में था।
-    सीप की एक 6.62 इंच लम्बी पट्टिका जो कि 9 निश्चित भागों में विभाजित है, को मै के महोदय ने लम्बाई के मापक के रूप में होना बताया है।
-    कच्चे माल के आंतरिक व्यापार का विस्तृत जाल बिछा रहा होगा। व्यापार स्थल व जल दोनों मार्गों से होते थे। नाव एवं जहाज का साक्ष्य नहीं मिला है, परन्तु मुद्राओं पर इनका अंकन इनके अस्तित्व का सूचक है। बाह्य व्यापार भी अपने उत्कृष्ट अवस्था में था एवं समुद्रतटीय नगरों लोथल, सुत्कागेनडोर, सोत्काकोह, बालाकोट का सम्भवतः पत्तनीय अस्तित्व था। नौकाओं द्वारा पश्चिम एशिया से घनिष्ट सम्बन्ध रहा होगा।
-    माल उत्पादन हेतु कच्चा माल प्राप्ति व व्यापार निम्नलिखित स्थलों से होता रहा होगा-
सोना - दक्षिण भारत-मैसूर, अफगानिस्तान, फारस से
आयात
चाँदी-अफगानिस्तान, ईरान, दक्षिण भारत, बलूचिस्तान,
अरब से
ताँबा-राजस्थान की खेत्राी खान से
लाजवर्द-बदक्शां (पूर्वी अफगानिस्तान) से
फिरोजा-ईरान से
गोमेद, मूंगा-सौराष्ट्र-पश्चिमी भारत से
सेलखड़ी-पूर्व एवं पश्चिम के कई स्थलों से
संगय शव (हरे कीमती पत्थर)-मध्य एशिया
जंुवमणि-महाराष्ट्र से
टिन-मध्य एशिया, अफगानिस्तान से

-  यह स्पष्ट नहीं है कि किन-किन वस्तुओं का विनिमय प्रचलित था परन्तु बाह्य व्यापार की अपेक्षाकृत जानकारी अधिक मिलती है, क्योंकि सिंधु सभ्यता की मुहरें, दो तरह के मनके व कुछ अन्य विविध वस्तुएँ फारस की खाड़ी, मेसोपोटामिया (उर) (उत्तरी व दक्षिणी दोनों), अफगानिस्तान एवं सोवियत दक्षिणी तुर्कमेनिया से प्राप्त हुई है, जबकि ”लोथल“ से फारस की मुहर एवं कालीबंगा से बेलनाकार मुहर (मेसोपोटामियाई विशेषता) प्राप्त हुई है।
-    मेसोपोटामियाई साहित्य में बाह्य व्यापार के सन्दर्भ में तीन स्थलों का बार-बार उल्लेख हुआ है-
    (i) मेलुहा-सिन्धु क्षेत्रा सौराष्ट्र
   (ii)  दिलमुन-बहरीन द्वीप (फारस की खाड़ी)

छः वेदांग
1.    शिक्षा (उच्चारण विधि) : भाषा विज्ञान की शाखा, जो उच्चारण, ध्वनि उत्पत्ति आदि की व्याख्या करती है।
2.    ज्योतिष (खगोल विद्या) : ब्रह्मांडीय पिंडों का विज्ञान।
3.   कल्प (कर्मकाण्ड) : पूर्जा-अर्चना की विधियों की व्याख्या करता है या एक ग्रंथ, जो उत्सवों-पर्वों की संहिता है।
4.  व्याकरण: भाषा का विज्ञान, जिसमें उच्चारण,वाक्य विन्यास, भाषा की लोच एवं इसके ऐतिहासिक विकास का अध्ययन किया जाता है।
5.  छन्दः वर्ण मापन का सिद्धांत, कविताकरण की कला या विज्ञान।
6.   निरुक्तः इसमें व्युत्पत्ति का वर्णन किया गया है।

कल्पसूत्रः धार्मिक कृत्यों की नियमावली है (विस्तृत विषयों की संक्षिप्तिका)। इनको छठी से दूसरी सदी ई.पू. में लिखा गया था।
कल्पसूत्र के चार विभाजन हैं:
1.   स्त्रोतसूत्रः बडे़ कर्मकाण्डों/यज्ञों से संबंधित।
2.   गृहसूत्र: घरेलू कार्यों से संबंधित नियमों से संबंधित है। इनको 600 ई.पू. तक लिखा गया।
3.   धर्मसूत्र: विधि या धर्म की व्याख्या।
4.   सुल्वसूत्र: यज्ञ स्थलों एवं हवन कुण्डों के निर्माण एवं मापन से संबंधित।

मुहरें, दो तरह के मनके व कुछ अन्य विविध वस्तुएँ फारस की खाड़ी, मेसोपोटामिया (उर) (उत्तरी व दक्षिणी दोनों), अफगानिस्तान एवं सोवियत दक्षिणी तुर्कमेनिया से प्राप्त हुई है, जबकि ”लोथल“ से फारस की मुहर एवं कालीबंगा से बेलनाकार मुहर (मेसोपोटामियाई विशेषता) प्राप्त हुई है।
-   मेसोपोटामियाई साहित्य में बाह्य व्यापार के सन्दर्भ में तीन स्थलों का बार-बार उल्लेख हुआ है-
1.  मेलुहा-सिन्धु क्षेत्रा सौराष्ट्र
2.  दिलमुन-बहरीन द्वीप (फारस की खाड़ी)
3.  मगन-यमन या द. अरब का कोई अन्य भू-भाग।
-   चाँदी का प्रयोग सोने से ज्यादा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी के लोगों ने ही सबसे पहले चाँदी का प्रयोग करना सीखा।
-   कांस्ययुगीन सभ्यता होने पर भी कांसे का प्रयोग कम हुआ। ऐसा सम्भवतः ”टिन“ की कम उपलब्धता के कारण हुआ होगा जबकि ताँबे के व्यापक प्रयोग व भट्ठियों के अवशेष मिलते है।
-   मूर्तियों का प्रयोग पूजा एवं मनोरंजन दोनों हेतु किया गया है।
-   धार्मिक विचारधारा में मातृदेवी, पुरुष देवता, लिंग-योनि, वृक्ष प्रतीक, पशु, जल आदि की पूजाओं का प्रचलन था। इस धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक एवं व्यावहारिक अधिक था।
-   सैन्धव सभ्यता की कला में मुहरों का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी संख्या 2000 के ऊपर तक पहुँच चुकी है। सेलखड़ी (Steatite) का मुहरों के निर्माण में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। गोमेद, चर्ट एवं मिट्टी की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं। सैन्धव मुहर बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार है। बहुसंख्यक मुहरों पर किसी पशु का अंकन और संक्षिप्त मुद्रा लेख अंकित मिलता है। पशुओं में बिना डील वाले बैल का अंकन सर्वाधिक है।
-   हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने अपनी एक लिपि भी विकसित कर ली थी। इस लिपि की अभी तक लगभग 400 अक्षर-आकृतियाँ मिली है। सामान्यतया इसका अंकन मुहरों पर है, परन्तु कालीबंगा, सुरकोतदा एवं बनवाली में मिट्टी के बर्तनों के कतिपय ठीकरों पर भी सैंधव लिपि अंकित मिली है। इनको भाव चित्रात्मक लिपि कहा गया है, परन्तु यह भी अभी तक अपठ्य है, क्योंकि किसी अन्य पठनीय समकालीन भाषा में इसका अनुवाद नहीं मिल सका है।
-   सिंधु सभ्यता में अन्त्येष्टि संस्कार की 3 विधियाँ प्रचलित थीं-
1.  पूर्ण समाधीकरण
2.  आंशिक समाधीकरण
3.  दाह संस्कार

-   कब्रिस्तान (समाधि-क्षेत्रा) बस्ती से बाहर होते थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, रोपड़, लोथल, कालीबंगा, सुरकोतदा, सुत्कागेनडोर के अतिरिक्त चण्डीगढ़, तारखाने वाला डेरा (राजस्थान) एवं रण्डल-हडवा (गुजरात) से अन्त्येष्टि के साक्ष्य मिले ह®। हड़प्पा में एकमात्रा ऐसी समाधि मिली है जिसमें शव को लकड़ी के ताबूत में रखकर दफनाया गया था। यह सम्भवतः किसी विदेशी व्यक्ति की कब्र थी। शवों का सिर उत्तर की ओर एवं पैर दक्षिण की ओर करके कब्र में लिटाया जाता था।
-   गार्डन चाइल्ड ने सैन्धव सभ्यता के निम्नलिखित भौतिक तत्वों को परवर्ती काल में स्पष्टतः अनुसंतत बताया है-
1. आर्थिक संगठन, गृह, दुर्ग एवं नगर विन्यास, शिल्प तथा रहन-सहन, जौ, गेहूँ, कपास आदि की कृषि, गाय, बैल, भेड़, भैंस, बकरी आदि पशुओं का पालन, हलों, बैलगाड़ियों, नावों का स्वरूप, मृद्भाण्ड एवं उनके अलंकरण अभिप्राय, लिपि (ब्राह्मी) एवं आहत सिक्कों के कतिपय चिन्ह पर सैन्धव सभ्यता का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।
2. आध्यात्मिक तत्वों में मातृदेवी की उपासना, पशुपति शिव की परिकल्पना, मूर्तिपूजा, वृक्ष पूजा, जल पूजा, तप एवं योग की परम्परा सैन्धव धर्म की ही देन है।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

1.    हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने अपने बर्तनों पर किसकी चित्राकारी नहीं की थी?    -मानव
2.   कौन-सा हड़प्पाई स्थल कृषि की दृष्टि से अनुपयोगी क्षेत्रा में स्थित था?    -सुत्कांगेनडोर
3.   हड़प्पा सभ्यता के किन स्थलों से प्राप्त मुहरों से ज्ञात है कि वे जलपरिवहन में पारंगत थे।    -लोथल, मोहनजोदड़ो
4.  हड़प्पाई लोग अपने क्षेत्रा से मुख्यतः किन वस्तुओं का निर्यात करते थे    -तांबा, सूतीवस्त्रा एवं बर्तन
5.    किस हड़प्पाई स्थल के भवन निर्माण में कच्ची ईंटों के प्रयोग किये जाने का साक्ष्य मिलता है?    -कालीबंगा
6.   आर्य संस्कृति की किस संस्था को कभी-कभी “विद्थ” का पर्यायवाची भी माना जाता है?    -गृह
7.    “शतपथ ब्राह्मण” में वर्णित “विदे्घमाथव” की कथा से किस पर प्रकाश डाला जा सकता है?    -आर्यीकरण का प्रसार
8.   वैदिक ग्रंथों में वर्णित “वृचीवत्” क्या थ?    -एक यज्ञ विरोधी रहस्यपूर्ण जाति
9.    पूर्व वैदिक काल में दान की जाने वाली वस्तुएं कौन-सी थीं।  -दासियां, सोना एवं मवेशी
10.    वैदिक ग्रंथों में वैसी नारियों को क्या कहा गया है जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अध्ययन एवं आध्यात्मिक चिंतन में बिताया। -ब्रह्मवादिनी
11.    रोमन व्यापारी किन-किन चीजों को भारत लाते थे?  -वस्त्रा, शराब, सिक्के एवं बर्तन
12.    संगम कालीन राज्यों से कौन-कौन सी वस्तुएं निर्यात की जाती थीं?  -मसाले, वस्त्रा, पशु एवं मनुष्य
13.   बौद्धधर्म की हीनयान शाखा से कौन-कौन से संप्रदाय संबद्ध माने जाते हैं?    -थेरवाद, वैभाषिक एवं सौत्रांतिक
14.  ‘खुद्दक निकाय’ से कौन-सा ग्रंथ असम्बद्ध है?    -कथावत्थु
15.   जैन धर्म के अनुसार निर्वाण का मार्ग कब प्रशस्त होता है?  -जब आत्मा से भौतिक तत्व अलग हो जाए।
16.  “चतुव्र्यूह सिंद्धांत” किस धर्म से संबद्ध माना जाता है?    -भागवत
17.  कृष्ण का वासुदेव नाम किस युग में प्रचलित हुआ?    -पाणिनी युग
18.   किस उपनिषद से भक्ति का उल्लेख पहली बार मिलता है? -श्वेताश्वर उपनिषद
19.  शतरुद्रिय के रूप में रुद्र की कल्पना का विकास    -यजुर्वेद
20.    किस काल में शिव एवं पार्वती की संयुक्त मू£तयां बनायी गयीं?  -गुप्तकाल
21.   कौन-सा स्थल काली पाॅलिश मृदभांड संस्कृति से संबद्ध नहीं माना गया है?     -वृह्मगिरि
22.    तमिल साहित्य का ‘अहनासुर’ एवं ‘पुरुनानूर’ नामक ग्रंथ किस मौर्य शासक के कार्यों पर प्रकाश डालता है?    -चन्द्रगुप्त
23.    अशोक के किस अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसके धम्मनीति का प्रभाव बहेलियों एवं मछुआरों पर भी पड़ा?    -कंधार अभिलेख
24.  मौर्यकाल में भू-राजस्व की सामान्य दर कितनी थी?  -1/6 से 1/4 भाग तक
25.   मौर्यकालीन अधिकारियों की वेतन प्रणाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभिलक्षण क्या था?    -वेतन स्तर में भारी विषमता का व्याप्त होना।

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FAQs on सिंधु घाटी सभ्यता - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. सिंधु घाटी सभ्यता क्या होती है?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता थी जो भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद थी। यह सभ्यता मुख्य रूप से मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और दोबदोब से परिचित है। यह सभ्यता लगभग 2500 ई.पू. तक अपने चरम पर थी और उसकी मुख्य विशेषताएं बढ़ी हुई नगरीयकरण, सड़कों का नेटवर्क, सूक्ष्म निर्माण कर्मचारियों का उपयोग, वस्त्रों का व्यापार, औद्योगिक उत्पादन, और सामाजिक व्यवस्था के विकास थे।
2. सिंधु घाटी सभ्यता किस समयावधि में विकसित हुई थी?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता का विकास लगभग 2500 ई.पू. तक हुआ था। यह सभ्यता लगभग 3300 ई.पू. से शुरू हो गई थी और 1900 ई.पू. के आसपास तक अपने चरम पर थी।
3. सिंधु घाटी सभ्यता में कौन-कौन से स्थल पाए जाते थे?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ मुख्य स्थल थे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, कालीबंगा, दोबदोब, राखीगढ़ी, बनवाली, कोटडीजी, और चांगा। इन स्थलों पर विभिन्न नगरीय और औद्योगिक सुविधाएं पाई जाती थी।
4. सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार किस तरह से होता था?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार विभिन्न तरीकों से होता था। व्यापारिक गतिविधियां मुख्य रूप से सुवर्ण, चांदी, मोती, मूंगे, हीरा, शंख, लोहा, चंदन, और अन्य मूल्यवान वस्त्रों के व्यापार पर आधारित थी। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व्यापारिक रूप से अन्य भूमिगत सभ्यताओं जैसे मेसोपोटामिया और एलाम से भी व्यापार करते थे।
5. सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार थीं: - नगरीयकरण: सिंधु घाटी सभ्यता में नगरों का प्रचार था और घरों का विशेष प्रबंधन किया जाता था। - सूक्ष्म निर्माण कर्मचारियों का उपयोग: यहां पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ कर्मचारी थे जो विभिन्न उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया में सक्षम थे। - सड़कों का नेटवर्क: सिंधु घाटी सभ्यता में विशाल सड़कों का नेटवर्क था जो आपसी व्यापार को सुगम बनाता था। - औद्योगिक उत्पादन: इस सभ्यता में वस्त्रों, गहनों, गर्भपात्रों, चीनी बर्तनों, लोहे के उत्पादों, और अन्य उत्पादों का उद्योगिक निर्माण होता था। - सामाजिक व्यवस्था का विकास: सिंधु घाटी सभ्यता में एक सामान्य जनता के अलावा श्रमिक और व्यापारी भी थे। सामाजिक व्यवस्था में विशेषज्ञ भूमिका थी जो सभ्यता के विभिन्न क्षेत्रों में सं
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