UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

भारत-ऑस्ट्रेलिया प्रमुख खनिज निवेश साझेदारी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने आपसी आपूर्ति शृंखला विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं में निवेश की दिशा में काम करने में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर तय किया है।

प्रमुख खनिज: 

  • परिचय: प्रमुख खनिज ऐसे तत्त्व हैं जो आवश्यक आधुनिक प्रौद्योगिकियों का आधार हैं और इनकी आपूर्ति शृंखला में व्यवधान का खतरा है।
  • उदाहरण: तांबा, लिथियमनिकलकोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व आदि वर्तमान में तेज़ी से बढ़ती स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में उपयोग होने वाले महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जिनमें पवन टर्बाइन एवं पावर ग्रिड से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं। स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी आने के साथ इन खनिजों की मांग भी बढ़ती जाएगी।
  • भारतीय नीति: भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के सहयोग से वर्ष 2016 में भारत के लिये प्रमुख खनिज रणनीति का मसौदा तैयार किया, जिसमें वर्ष 2030 तक भारत की संसाधन आवश्यकताएँ प्रमुख विषय था।
  • इंडियन क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजी ने 49 खनिजों की पहचान की है जो भविष्य में भारत के आर्थिक विकास के लिये अहम होंगे।

प्रमुख बिंदु:

  • कपल्ड मॉडल अंतर तुलना परियोजना (Coupled Model Intercomparison Project- CMIP) में दो लिथियम और तीन कोबाल्ट परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया विश्व के कुल लिथियम के लगभग आधा हिस्से का उत्पादन करता है और यह कोबाल्ट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • दोनों देशों के साझा निवेश का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया में संसाधित आवश्यक खनिजों द्वारा समर्थित नई आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना है, जो अपने ऊर्जा संजाल से उत्सर्जन को कम करने तथा इलेक्ट्रिक वाहनों सहित विनिर्माण के केंद्र के रूप में खुद को स्थापित करने के भारत के प्रयासों में मदद करेगा।
  • साथ ही दोनों देश उत्सर्जन में कमी, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और आवश्यक खनिजों एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिये वैश्विक बाज़ारों का विस्तार करने के लिये समर्पित हैं।

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंध अब तक कैसे रहे हैं? 

  • सौहार्दपूर्ण संबंध: भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध हैं जो हाल के वर्षों में परिवर्तनकारी विकास से गुज़रे हैं, ये मैत्रीपूर्ण साझेदारी संबंध सकारात्मक दिशा की तरफ अग्रसर हैं। 
  • यह एक अनूठी साझेदारी है जो संसदीय लोकतंत्रों, राष्ट्रमंडल परंपराओं, आर्थिक जुड़ाव में वृद्धि, लोगों के मध्य लंबे समय से विद्यमान दीर्घकालिक संबंधों और उच्च-स्तरीय वार्ताओं में वृद्धि जैसे साझा मूल्यों द्वारा परिभाषित की गई है। 
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी: इसे जून 2020 में भारत-ऑस्ट्रेलिया नेताओं के आभासी शिखर सम्मेलन के दौरान लॉन्च किया गया था और यह भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय संबंधों की नींव है। 
  • व्यापार साझेदार: माल और सेवाओं दोनों में भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 में 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है जिसमें बड़े पैमाने पर कच्चे माल, खनिज एवं मध्यवर्ती सामग्री शामिल हैं। 
  • अन्य: जापान के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) में भागीदार हैं, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन में सुधार लाना है।
  • इसके अलावा भारत और ऑस्ट्रेलिया क्वाड समूह (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं जापान) के सदस्य भी हैं, जिसका उद्देश्य सहयोग बढ़ाने तथा साझा चिंता जैसे कई मुद्दों पर साझेदारी विकसित करना है। 

महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति के बारे में विश्व के देश क्या कर रहे हैं?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2021 में अमेरिका ने महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं में अपनी कमज़ोरियों की समीक्षा का आदेश दिया और पाया कि महत्त्वपूर्ण खनिजों एवं सामग्रियों के लिये विदेशी स्रोतों तथा प्रतिकूल राष्ट्रों पर अत्यधिक निर्भरता ने राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न किया है।
  • भारत: इसने भारतीय घरेलू बाज़ार में महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के संयुक्त उद्यम KABIL या खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड की स्थापना की है। 
  • यह राष्ट्र की खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करता है और आयात प्रतिस्थापन के समग्र उद्देश्य को साकार करने में भी मदद करता है।
  • अन्य देश: अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने अपने प्रमुख खनिज स्रोतों में विविधता लाने की संभावनाओं की पहचान करने में सरकारों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में आवश्यक खनिज भंडार का एक इंटरेक्टिव मानचित्र प्रकाशित किया। प्रमुख खनिजों हेतु आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन को मज़बूत करने एवं आपूर्ति सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहलों को यूनाइटेड किंगडम की प्रमुख खनिज रणनीति में रेखांकित किया गया है। यूनाइटेड किंगडम इस दृष्टिकोण के माध्यम से घरेलू क्षमताओं के विकास में तेज़ी लाएगा। 

निष्कर्ष

  • ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच CMIP द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
  • दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने हेतु मिलकर काम करना चाहिये कि गठबंधन उचित एवं पूर्ण ढंग से लागू हो, साथ ही सहयोगी अनुसंधान एवं विकास के अवसरों की जाँच करे। CMIP के परिणामस्वरूप प्रमुख खनिज उद्योग में बदलाव लाया जा सकता है, जो दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विस्तार तथा विकास में भी मदद करेगा। 

भारत-चीन संबंध

चर्चा में क्यों? 

शंघाई सहयोग संगठन और G-20 की अध्यक्षता के साथ ही भारत, चीन पर लगातार नज़र रखे हुए है।

चीन के विकास के प्रमुख क्षेत्र

  • स्थिर वृद्धि: 
    • वर्ष 2022 में चीन की अर्थव्यवस्था में 3% की वृद्धि हुई।
    • चीन का सकल घरेलू उत्पाद पिछले पाँच वर्षों में 5.2% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ 121 ट्रिलियन युआन (लगभग 18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँच गया।
  • जनहित के कार्य: 
    • पिछले आठ वर्षों के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन ने लगभग 100 मिलियन ग्रामीण निवासियों को गरीबी से मुक्त करने के साथ ऐतिहासिक रूप से गरीबी का पूर्ण समाधान किया है।
    • सरकार ने 70% से अधिक खर्च लोगों की भलाई सुनिश्चित करने हेतु किया।
  • विन-विन सहयोग:
    • वर्ष 2013-2021 की अवधि में वैश्विक आर्थिक विकास में चीन का योगदान औसतन 38.6% था, जो G7 देशों के संयुक्त (25.7%) योगदान से अधिक था।
    • जब से चीनी राष्ट्रपति ने वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक भाषण में वैश्विक विकास पहल (Global Development Initiative- GDI) का प्रस्ताव रखा, तब से 100 से अधिक देशों ने अपना समर्थन व्यक्त किया है और 60 से अधिक देश GDI के ग्रुप ऑफ फ्रेंड्स में शामिल हो गए हैं।

चीन और भारत के बीच व्यापार का परिदृश्य

  • अमेरिका के बाद चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
  • चीन और भारत महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं एवं द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 135.984 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • व्यापार घाटे के बावजूद भारत द्वारा चीन से उपकरणों और सामग्रियों का आयात "मेड-इन-इंडिया" उत्पादों की कुल लागत को कम करता है, साथ ही भारतीय डाउनस्ट्रीम उद्योगों एवं उपभोक्ताओं को लाभ प्रदान करता है, भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है तथा वैश्विक औद्योगिक और आपूर्ति शृंखलाओ में भारत के एकीकरण की सुविधा प्रदान करता है।
  • चीन का बाज़ार भारत के लिये खुला है और चीन की जनता अपने बाज़ार में अधिक उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय सामान, सांस्कृतिक एवं अन्य उत्पादों का स्वागत करती है।
  • चीनी उद्यमों के निवेश ने भारतीय लोगों के लिये बड़ी संख्या में नौकरियाँ सृजित की हैं और भारत के आर्थिक विकास में योगदान दिया है।  

आगे की राह

  • चीन एवं भारत का विकास और पुनरुद्धार विकासशील देशों की ताकत को बढ़ावा देता है; यह विश्व की एक-तिहाई आबादी की नियति को बदल देगा और एशिया के भविष्य को प्रभावित करेगा।
  • दो पड़ोसी तथा प्राचीन सभ्यताओं के रूप में 2.8 बिलियन की संयुक्त जनसंख्या के साथ चीन और भारत विकासशील देशों एवं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि हैं।
  • भारत और चीन दोनों राष्ट्रीय कायाकल्प और आधुनिकीकरण के दौर से गुज़र रहे हैं अर्थात् चुनौतियों को दूर करना होगा, साथ ही समस्याओं का समाधान करना होगा।
  • चीन और भारत के बीच मतभेद की तुलना में साझा हित कहीं अधिक हैं। 

ICC द्वारा व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट

चर्चा में क्यों? 

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और एक अन्य रूसी अधिकारी पर युद्ध अपराधों के लिये गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।  

  • यह पहली बार है जब ICC ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से एक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।

ICC द्वारा व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का कारण

ICC ने यूक्रेन के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से बच्चों को रूसी संघ में गैरकानूनी रूप से निर्वासित करने एवं स्थानांतरित करने के कथित युद्ध अपराध के लिये रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। 

  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC):
    • अधिक न्यायपूर्ण विश्व बनाने की दिशा में 120 देशों द्वारा 17 जुलाई, 1998 को रोम संविधि को अपनाया गया था।
    • रोम संविधि 1 जुलाई, 2002 को लागू हुई, 60 राज्यों के अनुसमर्थन के बाद आधिकारिक तौर पर ICC की स्थापना की गई। ICC इस तारीख को या उसके बाद किये गए अपराधों से निपटता है क्योंकि इसका कोई पूर्वव्यापी क्षेत्राधिकार नहीं है।
    • रोम संविधि, चार मुख्य अपराधों पर ICC को अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है:
    • नरसंहार का अपराध
    • मानवता के विरुद्ध अपराध
    • युद्ध संबंधी अपराध
    • आक्रामकता का अपराध 
    • न्यायालय अराजकता को समाप्त करने की वैश्विक लड़ाई में भाग ले रहा है और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्याय के माध्यम से यह उन लोगों को उनके अपराधों हेतु ज़िम्मेदार ठहराने एवं भविष्य में होने वाले समान अपराधों को रोकने में मदद करने का समर्थन करता है।
  • ICC दुनिया का पहला स्थायी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है।
    • वर्तमान में रोम संविधि के पक्षकार देशों की संख्या 123 है, हालाँकि भारत, अमेरिका और चीन रोम संविधि के पक्षकार नहीं है।
    • किसी देश की अपनी कानूनी मशीनरी के कार्य करने में विफल होने की स्थिति में ICC की स्थापना जघन्यतम अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिये की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ), जो देशों और अंतर-राज्यीय विवादों से निपटता है, के विपरीत ICC व्यक्तियों पर मुकदमा दायर करता है।

क्या ICC के पास रूस पर अभियोग चलाने की शक्ति है?  

  • मार्च 2023 तक रूस रोम संविधि का पक्षकार नहीं है और इसलिये ICC के पास अपने क्षेत्र में किये गए अपराधों पर सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। हालाँकि ICC अन्य देशों के व्यक्तियों द्वारा किये गए अपराधों की जाँच और उन पर अभियोग शुरू कर सकता है, जिन्होंने रोम संविधि के पक्षकार राष्ट्र के क्षेत्र में कथित अपराध किये हैं।
  • यूक्रेन भी रोम संविधि का सदस्य नहीं है, लेकिन संविधि के अनुच्छेद 12(3) के तहत उसने दो बार रोम संविधि के तहत अपने क्षेत्र में हो रहे कथित अपराधों पर ICC के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करने के लिये अपने विकल्पों का प्रयोग किया है।
  • अनुच्छेद 12(3) में कहा गया है कि यदि किसी ऐसे राज्य जो कानूनी पक्षकार नहीं है, संबंधित अपराध के लिये रजिस्ट्रार को एक घोषणा करके और बिना किसी देरी या अपवाद के सहयोग कर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार कर सकता है।

भारत डेनमार्क सहयोग

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कहा कि भारत और डेनमार्क संयुक्त रूप से नई दिल्ली में 'इंडिया-डेनमार्क: पार्टनर्स फॉर ग्रीन एंड सस्टेनेबल प्रोग्रेस कॉन्फ्रेंस' के दौरान महत्त्वाकांक्षी जलवायु एवं सतत् ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने की व्यवहार्यता प्रदर्शित कर सकते हैं।

  • वर्ष 2020 में ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के शुभारंभ के बाद से द्विपक्षीय सहयोग हरित और सतत् विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप

  • ग्रीन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एक पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौता है जिसका उद्देश्य राजनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाना, आर्थिक संबंधों और हरित विकास का विस्तार करना, रोज़गार सृजित करना एवं पेरिस समझौते तथा संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के महत्त्वाकांक्षी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ वैश्विक चुनौतियों व अवसरों को संबोधित करने में सहयोग को मज़बूत करना है।
  • विशिष्ट तकनीकों और विशेषज्ञता वाली डेनमार्क की कंपनियों ने प्रमुख रूप से  पराली जलाने की समस्या से निपटने सहित वायु प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्यों को पूरा करने में भारत की मदद करने की पेशकश की है।
  • साझेदारी के तहत अन्य प्रमुख बिंदुओं में कोविड-19 महामारी से निपटना और जल दक्षता तथा जल संकट की स्थिति में सहयोग करना शामिल है।
  • बड़ी संख्या में डेनिश फर्मों वाले क्षेत्रों में भारत-डेनमार्क ऊर्जा पार्कों का निर्माण और भारतीय जनशक्ति को प्रशिक्षित करने के लिये एक ‘भारत-डेनमार्क कौशल संस्थान’ का प्रस्ताव किया गया है।
  • हरित रणनीतिक साझेदारी का गठन (The Green Strategic Partnership) मौजूदा संयुक्त आयोग और संयुक्त कार्य समूहों के सहयोग के लिये किया जाएगा। 

भारत-डेनमार्क सहयोग की स्थिति 

  • पृष्ठभूमि:  
    • सितंबर 1949 में स्थापित भारत और डेनमार्क के बीच राजनयिक संबंधों को नियमित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान द्वारा चिह्नित किया गया है।
    • दोनों देशों का उद्देश्य ऐतिहासिक संबंध, आम लोकतांत्रिक परंपराएँ, क्षेत्रीय, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं स्थायित्व के लिये साझेदार के रूप में काम करना है।
    • वर्ष 2020 में आयोजित वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक उन्नत किया गया। 
  • वाणिज्यिक और आर्थिक संबंध:  
    • भारत और डेनमार्क के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं का द्विपक्षीय व्यापार 78% बढ़कर वर्ष 2016 के 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वर्ष 2021 में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। 
    • भारत से डेनमार्क को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में वस्त्र, परिधान एवं सूत से संबंधित, वाहन एवं पुर्जे, धात्विक वस्तुएँ, लौह-इस्पात, जूते एवं यात्रा की वस्तुएँ शामिल हैं। 
    • भारत में डेनमार्क से होने वाले प्रमुख आयात में औषधीय/दवा संबंधी वस्तुएँ, विद्युत उत्पन्न करने वाली मशीनरी, औद्योगिक मशीनरी, धातु अपशिष्ट एवं अयस्क तथा जैविक रसायन शामिल हैं। 
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान:  
    • भारत का 75वाँ स्वतंत्रता दिवस कोपेनहेगन में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी लोगों ने ध्वजारोहण समारोह तथा आज़ादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में आयोजित रंगारंग कार्यक्रमों में भाग लिया।
    • इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सड़कों और सार्वजनिक स्थानों का नाम भारतीय नेताओं के नाम पर रखा गया है, जिनमें आर्हस में आरहु विश्वविद्यालय के पास एक नेहरू रोड और कोपेनहेगन का गांधी पार्क शामिल हैं।
  • बौद्धिक संपदा सहयोग: 
    • वर्ष 2020 में हस्ताक्षर किये गए समझौता ज्ञापन का उद्देश्य दोनों देशों के बीच बौद्धिक संपदा सहयोग बढ़ाना, पेटेंट के लिये आवेदन निपटान हेतु प्रक्रियाओं संबंधी सूचना और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान -प्रदान, औद्योगिक डिज़ाइन, भौगोलिक संकेतक तथा पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग करना है।
    • यह वैश्विक नवाचार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने और राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016 के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

आगे की राह

  • भारत और डेनमार्क को विश्व व्यापार संगठनअंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधनआर्कटिक परिषद जैसे लोकतंत्र और मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने एवं नियम-आधारित बहुपक्षीय प्रणाली को बढ़ावा देने के लिये बहुपक्षीय मंचों में सहयोग करना चाहिये।

जापान की एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल

चर्चा में क्यों?

एशिया एनर्जी ट्रांज़िशन इनिशिएटिव (Asia Energy Transition Initiative- AETI) में भारत को शामिल कर जापान द्वारा भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का समर्थन किये जाने की उम्मीद है।

  • वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया जापान का AETI, नवीकरणीय ऊर्जा हेतु 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता सहित शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की दिशा में दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) देशों का शुरू में समर्थन करता है।

एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल (AETI)

  • जापान सरकार ने "एशिया एनर्जी ट्रांज़िशन इनिशिएटिव (AETI)" की घोषणा की है, जिसमें एशिया में ऊर्जा परिवर्तन को साकार करने के लिये विभिन्न प्रकार के समर्थन शामिल हैं।
  • ऊर्जा संक्रमण हेतु रोडमैप तैयार करने में सहायता।
  • संक्रमण के एशियाई संस्करण का वित्तीयन।
  • 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता।
  • नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, LNG आदि के लिये।
  • एशियाई देशों में 1,000 लोगों के लिये डीकार्बोनाइज़ेशन तकनीकों में क्षमता निर्माण।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन, ईंधन-अमोनिया, हाइड्रोजन आदि के लिये।
  • डीकार्बोनाइज़ेशन प्रौद्योगिकियों में क्षमता निर्माण और एशिया CCUS नेटवर्क के माध्यम से ज्ञान साझाकरण।
  • ऊर्जा संक्रमण पर कार्यशालाएँ और सेमिनार।
  • प्रौद्योगिकी विकास एवं परिनियोजन, 2 ट्रिलियन येन फंड की उपलब्धता का उपयोग।

भारत-जापान स्वच्छ ऊर्जा सहयोग की प्रमुख विशेषताएँ

  • भारत और जापान के बीच स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी मार्च 2022 में शुरू हुई थी।
  • यह भारत-जापान ऊर्जा संवाद 2007 में शामिल एजेंडे पर काम करेगा और बाद में पारस्परिक लाभ के क्षेत्रों में विस्तार करेगा।
  • भारत और जापान ने क्रमशः G20 और G7 की अध्यक्षता संभाली है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता के संदर्भ में पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE) भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता में सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।
  • साथ ही जापान सरकार द्वारा फीड-इन प्रीमियम (FiP) योजना को अप्रैल 2022 में लागू किया गया था और इससे देश के ऊर्जा परिवर्तन में सुधार की उम्मीद है।
  • जापान ने वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है और सरकार ने मई 2022 में स्वच्छ ऊर्जा रणनीति पर एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की है।
  • भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
  • भारतीय उपमहाद्वीप की विशाल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता ग्रीन हाइड्रोजन (GH2) उत्पादन और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में वृद्धि कर सकती है।  
  • नेपाल एवं भूटान में भी अधिशेष जल विद्युत क्षमता है और भारत तथा बांग्लादेश जैसे देश ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र द्वारा इसका दोहन कर सकते हैं।
  • भारत-जापान पर्यावरण सप्ताह जैसे कार्यक्रम तकनीकी, संस्थागत और कार्मिक सहयोग के माध्यम से प्रणाली में परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिये एक रोडमैप बनाने में मदद करेंगे। 

स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण

  • परिचय:  
    • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण पारंपरिक, जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों (जैसे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) ऊर्जा के स्वच्छ, अधिक टिकाऊ स्रोतों में बदलाव को संदर्भित करता है जिससे पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है। 
    • यह परिवर्तन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करनेजलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग से जुड़े अन्य पर्यावरणीय एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता से प्रेरित है
  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोत:
    • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में अक्षय ऊर्जा स्रोत जैसे- सौर, पवन, जल, भूतापीय और बायोमास ऊर्जा के साथ-साथ बैटरी एवं हाइड्रोजन ईंधन सेल जैसी ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।  

भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति:

  • रक्षा संबंध: भारत-जापान रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी क्रमशः धर्म गार्जियन तथा मालाबार सहित द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अभ्यासों और पहली बार मिलन अभ्यास (MILAN Exercise) में भाग लेने वाले जापान के सहयोग से विकसित हुई है।
  • स्वास्थ्य-देखभाल: जापान के AHWIN और भारत के आयुष्मान भारत कार्यक्रम के समान लक्ष्य और उद्देश्य हैं, इसलिये दोनों पक्ष उन परियोजनाओं की पहचान करने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं जो AHWIN के समान आयुष्मान भारत के सपने को साकार करने में मदद करेंगे। 
  • निवेश और ODA: भारत पिछले कुछ दशकों से जापान से आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है। दिल्ली मेट्रो, ODA के उपयोग के माध्यम से जापान के सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है। 
  • भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा आर्थिक साझेदारी (STEP) के लिये विशेष शर्तों के तहत प्रदान किये गए सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित है।

जी-20 और बहुपक्षवाद की आवश्यकता

खबरों में क्यों?

भारत की G-20 अध्यक्षता बहुपक्षीय सुधार को अपनी शीर्ष राष्ट्रपति प्राथमिकताओं में से एक के रूप में रखती है क्योंकि भारत ने कहा कि इसका एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा।

  • भारत ने यह भी कहा कि इसका प्राथमिक उद्देश्य महत्वपूर्ण विकास और सुरक्षा मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाना और वैश्विक सामान वितरित करना है।

बहुपक्षवाद की आवश्यकता क्या है?

  • लगातार गतिरोध के कारण बहुपक्षवाद ने बहुमत का विश्वास खो दिया है। बहुपक्षवाद एक उपयोगिता संकट का सामना कर रहा है, जहाँ शक्तिशाली सदस्य-राज्य सोचते हैं कि यह अब उनके लिए उपयोगी नहीं है।
  • इसके अलावा, बढ़ती महाशक्तियों के तनाव, डी-वैश्वीकरण, लोकलुभावन राष्ट्रवाद , महामारी और जलवायु आपात स्थितियों ने कठिनाइयों को जोड़ा।
  • इस गतिरोध ने राज्यों को द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और लघु पार्श्व समूहों सहित अन्य क्षेत्रों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया, जिसने बाद में वैश्विक राजनीति के ध्रुवीकरण में योगदान दिया।
  • हालाँकि, सहयोग और बहुपक्षीय सुधार समय की आवश्यकता है। आज देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश वैश्विक प्रकृति की हैं और उनके लिए वैश्विक समाधान की आवश्यकता है।
  • संघर्ष, जलवायु परिवर्तन , पलायन, मैक्रोइकॉनॉमिक अस्थिरता और साइबर सुरक्षा जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों को वास्तव में सामूहिक रूप से ही हल किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, कोविड-19 महामारी जैसे व्यवधानों ने पिछले कुछ दशकों में वैश्विक समाज द्वारा की गई सामाजिक और आर्थिक प्रगति को उलट दिया है ।

सुधारों के लिए रोडब्लॉक क्या हैं?

  • वैश्विक शक्ति राजनीति:
    • वैश्विक सत्ता की राजनीति में बहुपक्षवाद की गहरी पैठ है। नतीजतन, बहुपक्षीय संस्थानों और ढांचे में सुधार की कोई भी कार्रवाई स्वचालित रूप से एक ऐसे कदम में बदल जाती है जो सत्ता के मौजूदा वितरण में बदलाव की मांग करता है।
    • वैश्विक व्यवस्था में शक्ति के वितरण में संशोधन न तो आसान है और न ही सामान्य। इसके अलावा, अगर सावधानी से नहीं किया गया तो इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • एक शून्य-राशि खेल मानता है:
    • यथास्थितिवादी शक्तियाँ बहुपक्षीय सुधारों को एक शून्य योग खेल के रूप में देखती हैं। उदाहरण के लिए, ब्रेटन वुड्स प्रणाली के संदर्भ में, अमेरिका और यूरोप का मानना था कि सुधार से उनका प्रभाव और प्रभुत्व कम हो जाएगा।
    • यह आम सहमति या मतदान के द्वारा इन संस्थानों में सुधार के बारे में निर्णय लेना कठिन बना देता है।
  • मल्टीप्लेक्स ग्लोबल ऑर्डर:
    • बहुपक्षवाद उभरती मल्टीप्लेक्स वैश्विक व्यवस्था की वास्तविकताओं के विपरीत प्रतीत होता है ।
    • उभरता हुआ क्रम अधिक बहुध्रुवीय और बहु-केन्द्रित प्रतीत होता है।
    • ऐसी स्थिति नए क्लबों, संगीत कार्यक्रमों और समान विचारधारा वाले गठबंधनों के गठन की सुविधा प्रदान करती है , जो पुराने संस्थानों और रूपरेखाओं के सुधार को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना देती है।

G-20 और भारत बहुपक्षवाद को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?

  • सगाई समूह का गठन:
    • वर्तमान में, बहुपक्षवाद सुधार कथा केवल अभिजात वर्ग और कुछ राष्ट्रीय राजधानियों, विशेष रूप से उभरती शक्तियों में ही रहती है।
    • इसलिए, जी-20 को सबसे पहले बहुपक्षीय सुधार के उचित आख्यान स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए।
    • G-20 वैश्विक संवाद में कथा को सबसे आगे लाने के लिए समर्पित एक सगाई समूह का गठन कर सकता है ।
    • भारत को समूह, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की आगामी अध्यक्षों से बहुपक्षीय सुधारों को अपनी राष्ट्रपति की प्राथमिकताओं के रूप में रखने का भी आग्रह करना चाहिए। चूंकि दोनों की वैश्विक उच्च-टेबल महत्वाकांक्षाएं हैं, इसलिए यह भारत के लिए एक आसान काम होगा।
  • द्विपक्षीय समूहों को प्रोत्साहित करना:
    • बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करते हुए, G-20 को बहुपक्षवाद के एक नए रूप के रूप में लघुपक्षीय समूहों को प्रोत्साहित करना जारी रखना चाहिए।
    • मुद्दा-आधारित लघुपक्षवाद के नेटवर्क बनाना, विशेष रूप से वैश्विक कॉमन्स के शासन से संबंधित क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी गठबंधनों को रोकने में सहायक होगा जहां अन्य अभिनेता अपने लाभ के लिए एक ही खेल खेलते हैं, जिससे विश्व व्यवस्था अधिक खंडित हो जाती है।
  • अधिक समावेशी होना:
    • दक्षता का त्याग किए बिना समूह को अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, एक स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ और स्थायी आमंत्रितों के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासचिव और महासभा के अध्यक्ष को शामिल करना इसकी वैधता को बढ़ाने में सहायक होगा।
    • इसी तरह, भरोसे और उपयोगिता के संकट को दूर करने के लिए जी-20 को एक या दो अहम वैश्विक मुद्दों को हल करने के लिए अपने सभी प्रयास करने चाहिए और इसे नए बहुपक्षवाद के मॉडल के रूप में प्रदर्शित करना चाहिए।
    • खाद्य, ईंधन और उर्वरक सुरक्षा ऐसा ही एक मुद्दा हो सकता है। एक ओर, यह 'विश्व राजनीति की निम्न राजनीति' के अंतर्गत आता है, इसलिए सहयोग अधिक प्राप्त करने योग्य है।
The document International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2325 docs|814 tests

Top Courses for UPSC

Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Exam

,

ppt

,

Important questions

,

Extra Questions

,

study material

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

MCQs

,

Free

,

Objective type Questions

,

Weekly & Monthly

,

Viva Questions

,

Sample Paper

,

video lectures

,

past year papers

,

Weekly & Monthly

,

mock tests for examination

,

Summary

,

practice quizzes

,

shortcuts and tricks

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Weekly & Monthly

,

pdf

,

Semester Notes

;