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International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

मिखाइल गोर्बाचेव और शीत युद्ध 


चर्चा में क्यों?

हाल ही में सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

मिखाइल गोर्बाचेव का योगदान

परिचय

  • एक युवानेता के रूप में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए, और स्टालिन की मृत्यु के बाद वे निकिता ख्रुश्चेव के स्टालिन के द्वारा लागू नीतियों में सुधार के प्रबल समर्थक बन गए।
  • उन्हें वर्ष 1970 में स्टावरोपोल क्षेत्रीय समिति के प्रथम पार्टी सचिव के रूप में चुना गया था।
  • वर्ष 1985 में उन्हें सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में, दूसरे शब्दों में सरकार के वास्तविक शासक के रूप में चुना गया था।

उपलब्धियाँ

प्रमुख सुधार

  • इन्होंने "ग्लासनोस्त" और "पेरेस्त्रोइका" की नीतियों की शुरुआत की, जिसने भाषण तथा प्रेस की स्वतंत्रता और अर्थव्यवस्था के आर्थिक विस्तार में मदद की।
  • पेरेस्त्रोइका का अर्थ है "पुनर्गठन", विशेष रूप से साम्यवादी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था का सोवियत अर्थव्यवस्था में बाज़ार अर्थव्यवस्था की कुछ विशेषताओं को शामिल करके। इसके परिणामस्वरूप वित्तीय निर्णय लेने में विकेंद्रीकरण भी हुआ।
  • ग्लासनोस्त का अर्थ है- "खुलापन", विशेष रूप से सूचनाओं के संदर्भ में पारदर्शिता, इसी क्रम में सोवियत संघ का लोकतंत्रीकरण शुरू हुआ।

शस्त्रों में कमी पर ज़ोर

  • उन्होंने दो विश्व युद्ध के बाद से यूरोप को विभाजित करने मुद्दों का समाधान करने और जर्मनी के एकीकरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों में कमी के लिये समझौते कर पश्चिमी शक्तियों के साथ साझेदारी की।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ द्वारा स्वयं और उसके आश्रित पूर्वी एवं मध्य यूरोपीय सहयोगियों को पश्चिम और अन्य गैर-कम्युनिस्ट देशों के साथ मुक्त  संपर्क का अभाव ही प्रमुख राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक अवरोध था।

शीत युद्ध की समाप्ति

  • शीत युद्ध को समाप्त करने का श्रेय गोर्बाचेव को दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अलग-अलग देशों के रूप में सोवियत संघ का विघटन हुआ।

नोबेल शांति पुरुस्कार

  • अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य शीत युद्ध को समाप्त करने के उनके प्रयासों के लिये उन्हें वर्ष 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

भारत के साथ तत्कालीन संबंध

  • गोर्बाचेव दो बार वर्ष 1986 और वर्ष 1988 में भारत आए थे।
  • उनका उद्देश्य यूरोप में अपने निरस्त्रीकरण की पहल को एशिया तक विस्तारित करना और भारतीय सहयोग को सुनिश्चित करना था।
  • सोवियत संघ के नेता के रूप में पदभार संभालने के बाद गोर्बाचेव की गैर-वारसा संधि वाले देश की यह पहली यात्रा थी।
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गोर्बाचेव को "शांति के धर्मयोद्धा" (Crusader for peace) की उपाधि से सम्मानित किया किया था।
  • यात्रा के दौरान भारत की संसद में उनके संबोधन को भारतीय और सोवियत मीडिया में अतिशयोक्तिपूर्ण कवरेज मिला और इसे भारतीय कूटनीति के एक उच्च बिंदु के रूप में देखा गया।

शीत युद्ध

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परिचय

  • शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों – सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्चस्व वाले दो शक्ति समूहों में विभाजित हो गया था।
  • यह पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियाँ अपने-अपने समूह के देशों के साथ संलग्न थीं।
  • "शीत" (Cold) शब्द का उपयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच प्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर कोई युद्ध नहीं हुआ था।
  • इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने वर्ष 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख में किया था।
  • शीत युद्ध सहयोगी देशों (Allied Countries), जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में यू.के., फ्राँस आदि शामिल थे और सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (Satellite States) के बीच शुरू हुआ था।

भारत की भूमिका

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीति ने औपचारिक रूप से खुद को संयुक्त राज्य या सोवियत संघ के साथ संरेखित करने की कोशिश नहीं की बल्कि स्वतंत्र या तटस्थ रहने की मांग की।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की मूल अवधारणा वर्ष 1955 में इंडोनेशिया में आयोजित एशिया-अफ्रीका बांडुंग सम्मेलन में उत्पन्न हुई थी।
  • पहला NAM शिखर सम्मेलन सितंबर 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुआ था।

उद्देश्य

  • साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, नस्लवाद और विदेशी अधीनता के सभी रूपों के खिलाफ उनके संघर्ष में "गुटनिरपेक्ष देशों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता एवं सुरक्षा" सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1979 के हवाना घोषणा पत्र में संगठन का उद्देश्य तय किया गया था।
  • शीत युद्ध के दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विश्व व्यवस्था को स्थिर करने और शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

तटस्थ कदम

  • भारत महाशक्तियों के हितों की सेवा करने के बजाय अपने स्वयं के हितों की सेवा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने और रुख अपनाने में सक्षम था।

G20 शिक्षा मंत्रियों की बैठक 

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में शिक्षा मंत्री ने बाली, इंडोनेशिया में G20 शिक्षा मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया।
  • थीम: पुनर्प्राप्ति, पुनर्कल्पना और सशक्त पुनर्निर्माण (Recovery, Re-imagine and Rebuild Stronger)।

प्रमुख बिंदु

  • पारस्परिक अनुभवों को साझा करने और नए विश्व के निर्माण के लिये मिलकर काम करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जिसमें शिक्षा आम चुनौतियों का सामना करने हेतु प्रयास प्रमुख बिंदु रहे।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, (NEP) पहुँच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, जो आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने और G20 के साझा दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये भारत का मार्गदर्शक है।
  • NEP, 2020 के कार्यान्वयन के माध्यम से अधिक लचीला और समावेशी शिक्षा एवं कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण तथा प्रत्येक शिक्षार्थी की रचनात्मक क्षमता को साकार करने की दिशा में भारत की तीव्र प्रगति पर प्रकाश डाला गया।
  • भारत ने प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा को औपचारिक रूप देने, दिव्यांग बच्चों का समर्थन करने, डिजिटल एवं मल्टी-मोडल सीखने को बढ़ावा देने, लचीले प्रवेश-निकास मार्ग, कौशल के साथ शिक्षा को एकीकृत करने पर विशेष ज़ोर दे रहा है, जो सीखने के परिणामों में सुधार की कुंजी हैं।

G20 समूह

परिचय

  • यह 19 देशों और यूरोपीय संघ (EU) का एक अनौपचारिक समूह है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ हुई थी।
  • G20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • नाइजीरिया इसका 20वांँ सदस्य बनने वाला था लेकिन उस समय की राजनीतिक समस्याओं के कारण अंतिम समय में उसे इस विचार को त्यागना पड़ा।
  • G20 समूह में विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश शामिल हैं जो दुनिया की आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है।

G20 की कार्यप्रणाली

  • जी-20 का कोई स्थायी मुख्यालय नहीं है और सचिवालय प्रत्येक वर्ष समूह की मेज़बानी करने वाले या अध्यक्षता करने वाले देशों के बीच रोटेट होता है।
  • सदस्यों को पांँच समूहों में बांँटा गया है (रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की के साथ भारत समूह 2 में है)।
  • G20 एजेंडा जो अभी भी वित्तमंत्रियों और केंद्रीय राज्यपालों के मार्गदर्शन पर बहुत अधिक निर्भर करता है, को 'शेरपा' की निर्धारित प्रणाली द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है, जो G20 नेताओं के विशेष दूत होते हैं।
  • वर्तमान में वाणिज्य और उद्योग मंत्री भारत के मौजूदा "G20 शेरपा" हैं।
  • G20 की एक अन्य विशेषता 'ट्रोइका' बैठकें हैं, जिसमें पिछले वर्ष, वर्तमान वर्ष और अगले वर्ष में G20 की अध्यक्षता करने वाले देश शामिल हैं। वर्तमान में ट्रोइका में इटली, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthlyविगत वर्षों में G20 का विकास-क्रम

  • वैश्विक वित्तीय संकट (2007-08) ने प्रमुख संकट प्रबंधन और समन्वय निकाय के रूप में G20 की प्रतिष्ठा को मज़बूत किया।
  • अमेरिका, जिसने 2008 में G20 की अध्यक्षता की थी, ने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक को राष्ट्राध्यक्षों तक बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप पहला G20 शिखर सम्मेलन हुआ।
  • वाशिंगटन डीसी, लंदन और पिट्सबर्ग में आयोजित शिखर सम्मेलनॉ ने कुछ सबसे टिकाऊ वैश्विक सुधारों हेतु परिदृश्य तैयार किया
  • इसमें कर चोरी और परिहार से निपटने के प्रयास में राज्यों को ब्लैक लिस्ट करना, हेज़ फण्ड और रेटिंग एजेंसियों पर सख्त नियंत्रण का प्रावधान करना, वित्तीय स्थिरता बोर्ड को वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिये एक प्रभावी पर्यवेक्षी और निगरानी निकाय बनाना, असफल बैंकों के लिये सख्त नियमों का प्रस्ताव करना, सदस्यों को व्यापार आदि में नए अवरोध लगाने से रोकना आदि शामिल हैं।
  • कोविड-19 की दस्तक तक G20 अपने मूल मिशन से भटक चुका था तथा G20 के मूल लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया।
  • G20 ने जलवायु परिवर्तन, नौकरियों और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों, असमानता, कृषि, प्रवास, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, खाद्य सुरक्षा और पोषण, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों जैसे मुद्दों को शामिल करने और सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अपने एजेंडे को विस्तृत करके खुद को फिर से स्थापित किया।
  • हाल के दिनों में G20 के सदस्यों ने महामारी के बाद सभी प्रतिबद्धताएँ पूरी की हैं, लेकिन यह बहुत कम है।
  • अक्तूबर 2020 में रियाद शिखर सम्मेलन में उन्होंने चार स्तंभों- महामारी से लड़ाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवधानों को संबोधित करने और वैश्विक सहयोग बढ़ाने को प्राथमिकता दी।
  • वर्ष 2021 में इटली ने कोविड-19 का मुकाबला करने, वैश्विक अर्थव्यवस्था में रिकवरी को तीव्र करने और अफ्रीका में सतत् विकास को बढ़ावा देने जैसे विषयों के लिये G20 विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2022 


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2022 उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित किया गया।
  • समरकंद घोषणा पर सदस्य राज्यों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
  • भारत ने वर्ष 2023 के लिये SCO की अध्यक्षता संँभाली।

शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएंँ

  • समरकंद घोषणा ने "बातचीत और परामर्श के माध्यम से देशों के बीच मतभेदों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये प्रतिबद्धता" की वकालत की।
  • संप्रभुता, स्वतंत्रता, राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता, समानता, पारस्परिक लाभ, आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप की बात की गई और इस बात पर ज़ोर दिया गया कि बल के उपयोग की धमकी के लिये पारस्परिक सम्मान के सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सतत विकास के आधार हैं।
  • सदस्य देश आतंकवादियों, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक एकीकृत सूची बनाने के लिये सामान्य सिद्धांतों तथा दृष्टिकोणों को विकसित करने की योजना बना रहे हैं जिनकी गतिविधियांँ SCO सदस्य राज्यों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं।
  • रूस भी अपनी गैस के निर्यात के लिये अधिक ग्राहकों की तलाश कर रहा है क्योंकि पश्चिमी देश इस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं।
  • रूस ने सुझाव दिया कि संगठन को अपनी बड़ी एथलेटिक प्रतियोगिता आयोजित करने के बारे में सोचना चाहिये।

भारतीय परिप्रेक्ष्य

  • संपर्क: भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों से एक-दूसरे को पारगमन का पूरा अधिकार देने का आग्रह किया, क्योंकि इससे संपर्क बढ़ेगा और क्षेत्र में विश्वसनीय एवं लचीली आपूर्ति शृंखला स्थापित करने में मदद मिलेगी।
  • खाद्य सुरक्षा: पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व ऊर्जा और खाद्य संकट का सामना कर रही है, भारत ने बाजरा को बढ़ावा देने तथा खाद्य सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को हल करने की पहल पर ज़ोर दिया।
  • इस संदर्भ में भारत बाजरा को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि SCO 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में चिह्नित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
  • पारंपरिक चिकित्सा पर कार्य समूह: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अप्रैल 2022 में गुजरात में पारंपरिक चिकित्सा के लिये अपना वैश्विक केंद्र खोल
  • WHO द्वारा स्थापित पारंपरिक चिकित्सा के लिये यह पहला और एकमात्र विश्वव्यापी केंद्र था।
  • पर्यटन: लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत तथा SCO सदस्य राज्यों की पर्यटन क्षमता को बढ़ावा देने के लिये वाराणसी को 2022-2023 के लिये SCO पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी घोषित किया गया था।
  • इसके अलावा यह भारत और SCO सदस्य देशों के बीच पर्यटन, सांस्कृतिक व मानवीय आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।
  • यह SCO के सदस्य देशों, विशेष रूप से मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ भारत के प्राचीन सभ्यतागत संबंधों को भी रेखांकित करता है।
  • इस प्रमुख सांस्कृतिक आउटरीच कार्यक्रम के ढांँचे के तहत, 2022-23 के दौरान वाराणसी में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा

शंघाई सहयोग संगठन (SCO)

परिचय

  • यह एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसे वर्ष 2001 में बनाया गया था।
  • SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था और वर्ष 2003 में लागू हुआ।
  • यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है।
  • इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, यह नौ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।

आधिकारिक भाषाएँ

  • रूसी और चीनी।

स्थायी निकाय

  • बीजिंग में SCO सचिवालय।
  • ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।

अध्यक्षता

  • अध्यक्षता एक वर्ष पश्चात् सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के माध्यम से की जाती है।

उत्पत्ति

  • वर्ष 2001 में SCO के गठन से पहले, कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान शंघाई फाइव के सदस्य थे।
  • शंघाई फाइव (1996) सीमाओं के सीमांकन और विसैन्यीकरण वार्त्ता की एक शृंखला से उभरा, जिसे चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने चीन के साथ सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयोजित किया था।
  • वर्ष 2001 में संगठन में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद शंघाई फाइव का नाम बदलकर SCO कर दिया गया।
  • भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
  • वर्तमान सदस्य: कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान।
  • ईरान 2023 में SCO का स्थायी सदस्य बनने के लिये तैयार है।
  • भारत को वर्ष 2005 में SCO में एक पर्यवेक्षक बनाया गया था और इसने आमतौर पर समूह की मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लिया है जो मुख्य रूप से यूरेशियन क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित हैं।

श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा बेलआउट पैकेज़ 


चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने श्रीलंका के साथ चार वर्ष की अवधि के लिये 2.9 बिलियन अमेरीकी डॉलर के बेलआउट पैकेज़  पर एक प्रारंभिक समझौते को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त दक्षिण एशियाई राष्ट्र के लिये आर्थिक स्थिरता और ऋण स्थिरता को बहाल करना है।

श्रीलंका को प्रदान बेलआउट पैकेज़

आवश्यकता

  • 51 बिलियन अमेरीकी डॉलर के ऋण के साथ श्रीलंका का आर्थिक संकट के निम्नलिखित कारण हैं:
  • कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोट
  • किसानों के लिये निम्नतम कर दर और व्यापक सब्सिडी की सरकार की नीति।
  • वर्ष 2020 में कोविड -19 महामारी जिसने श्रीलंका में चाय, रबर, मसाले, वस्त्र और पर्यटन क्षेत्र के निर्यात को प्रभावित किया।

परिचय

  • IMF पैकेज़ का भुगतान अगले चार वर्षों में किश्तों में किया जाना है, जो कि भारत द्वारा श्रीलंका को चार महीनों में प्रदान किये गए पैकेज़ से कम है।
  • पैकेज़ को IMF के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
  • अनुमोदन श्रीलंका के अंतर्राष्ट्रीय लेनदारों पर निर्भर है - वाणिज्यिक ऋणदाता जैसे बैंक और परिसंपत्ति प्रबंधक, बहुपक्षीय एजेंसियाँ, साथ ही चीन, जापान और भारत सहित द्विपक्षीय लेनदारों ने अपने ऋण के पुनर्गठन के लिये सहमति व्यक्त की है।

संभावित लाभ

  • क्रेडिट रेटिंग में सुधार: यह पैकेज़ को प्राप्त करने वाले देश की क्रेडिट रेटिंग को बढ़ा सकता है और अंतर्राष्ट्रीय लेनदारों और निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा दे सकता है जो कि किश्तों के मध्य अंतराल को बंद करने के लिये ब्रिज़ वित्तपोषण प्रदान करने के लिये निवेदन कर सकते हैं।
  • उद्देश्य: कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.3% के प्राथमिक अधिशेष का लक्ष्य प्राप्त करना है।
  • श्रीलंका द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु प्रयास
  • राजस्व में वृद्धि: देश के बजट का उद्देश्य सार्वजनिक ऋण को कम करके राजस्व को वर्ष 2021 के अंत में 8.2% से बढ़ाकर वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 15% करना है।
  • सेवानिवृत्ति की आयु कम की गई: सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संगठनों में सेवानिवृत्ति की आयु क्रमशः 65 और 62 से घटाकर 60 वर्ष कर दी गई है।
  • बैंकिंग क्षेत्र: आर्थिक मंदी के कारण ऋणों की अदायगी न करने से उत्पन्न पुनर्पूंजीकरण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर्मचारियों और जमाकर्त्ताओं को स्टेट बैंकों में 20% शेयरधारिता की पेशकश की गई है।

आसियान-भारत आर्थिक मंत्रियों की बैठक 


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत और कंबोडिया ने कंबोडिया में 19वीं आसियान/ASEAN -भारत आर्थिक मंत्रियों की बैठक की सह-अध्यक्षता की।
  • इस बैठक में सभी 10 आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) देशों के आर्थिक मंत्रियों या उनके प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय आर्थिक संबंध: मंत्रियों के अनुसार, आसियान और भारत के बीच व्यापार एवं आर्थिक संबंध कोविड-19 महामारी के प्रभाव से उबरने लगे हैं तथा आसियान व भारत के बीच दोतरफा व्यापार वर्ष 2021 में 91.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वार्षिक आधार पर 39.2% बढ़ा है।
  • आसियान-भारत व्यापार परिषद (ASEAN-India Business Council):
  • मंत्रियों ने आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) द्वारा आसियान-भारत आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने और वर्ष 2022 में AIBC द्वारा की गई गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
  • आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) की स्थापना मार्च 2003 में भारत और आसियान देशों के प्रमुख निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को व्यापार नेटवर्किंग एवं विचारों को साझा करने के लिये एक मंच पर लाने हेतु की गई थी।
  • कोविड-19 के बाद सुधार: मंत्रियों ने महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने और कोविड-19 के बाद स्थायी सुधार की दिशा में काम करने के लिये सामूहिक कार्रवाई करने की अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की।
  • आपूर्ति शृंखला काॅनेक्टविटी: मंत्रियों ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (ASEAN-India Trade in Goods Agreement-AITIGA) उन्नयन वार्ता, कोविड-19 टीकाकरण की पारस्परिक मान्यता, टीकों के उत्पादन, सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी और चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को बनाए रखने के लिये एक मज़बूत आपूर्ति शृंखला काॅनेक्टविटी हासिल करने हेतु सामूहिक कार्रवाई करने के लिये आसियान तथा भारत का स्वागत किया।
  • आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता: मंत्रियों ने AITIGA की समीक्षा के दायरे का समर्थन किया ताकि इसे व्यवसायों के लिये अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल, सरल और व्यापार सुविधा के साथ-साथ आपूर्ति शृंखला व्यवधानों सहित वर्तमान वैश्विक एवं क्षेत्रीय चुनौतियों के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सके।
  • मंत्रियों ने AITIGA की समीक्षा में तेज़ी लाने के लिये AITIGA संयुक्त समिति को भी सक्रिय किया।

दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ

परिचय

  • यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई।
  • इसके सदस्य राज्यों को अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है।
  • आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP)8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
  • अप्रैल 2021- फरवरी 2022 की अवधि में भारत और आसियान क्षेत्र के बीच कमोडिटी व्यापार 98.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। भारत के व्यापारिक संबंध मुख्य तौर पर इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम और थाईलैंड के साथ हैं।

सदस्य

  • आसियान दस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम को एक मंच पर लाता है।

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राष्ट्रमंडल का भविष्य  

चर्चा में क्यों?

  • यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय की मृत्यु, न केवल ब्रिटिश राजतंत्र के एक युग के अंत का प्रतीक है, बल्कि 14 राष्ट्रमंडल क्षेत्रों, जिनकी वे प्रमुख थीं, के लिये भी एक निर्णायक बिंदु है।
  • पृष्ठभूमि
  • महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय की मृत्यु के बाद से 14 देशों के सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है।
  • इन 14 में से कई देशों ने गणतंत्र स्थापित करने और ब्रिटिश राजशाही से ऐतिहासिक संबंधों से मुक्त होने का आह्वान किया।
  • गणतंत्र, सरकार का वह रूप है जिसमें "सर्वोच्च शक्ति लोगों और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होती है"
  • इस प्रकार यह संभावना है कि रानी के उत्तराधिकारी, राजा चार्ल्स III के शासनकाल के दौरान अधिक राष्ट्र बारबाडोस के नक्शेकदम पर चलेंगे।
  • 2021 में बारबाडोस ब्रिटिश सम्राट को राज्य के प्रमुख की भूमिका से हटाने और उन्हें एक राष्ट्रीय सरकारी अधिकारी के साथ प्रतिस्थापित करने वाला 18वाँ देश बन गया।

राष्ट्रमंडल

विषय

  • राष्ट्रमंडल 56 देशों का एक संगठन है जिसमें मुख्य रूप से पूर्व में ब्रिटिश उपनिवेश रह चुके राष्ट्र हैं।
  • इसकी स्थापना 1949 में लंदन घोषणापत्र द्वारा की गई थी।
  • जबकि राष्ट्रमंडल के सदस्य मुख्य रूप से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और प्रशांत में स्थित हैं, उनमें से कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इस समूह के तीन यूरोपीय सदस्य साइप्रस, माल्टा और यूके हैं।
  • राष्ट्रमंडल के विकसित राष्ट्र ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूज़ीलैंड हैं।

गणराज्य और क्षेत्र

  • राष्ट्रमंडल में गणराज्य और राज्य दोनों शामिल हैं।
  • ब्रिटिश सम्राट राज्य का प्रमुख है, जबकि गणराज्यों पर निर्वाचित सरकारों द्वारा शासन किया जाता है, सिवाय पाँच देशों के ब्रुनेई दारुस्सलामइस्वातिनीलेसोथोमलेशिया और टोंगाये प्रत्येक देश स्व-शासित राजतंत्र है।
  • ये क्षेत्र एंटीगुआ और बारबुडा, ऑस्ट्रेलिया, बहामास, बेलीज, कनाडा, ग्रेनाडा, जमैका, न्यूज़ीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, सोलोमन द्वीप और तुवालु हैं।

राष्ट्रमंडल की वर्तमान दुनिया में प्रासंगिकता

  • यद्यपि महारानी की मृत्यु के बाद राष्ट्रमंडल एक पुराने मंच की तरह लग सकता है, फिर भी यह एक उपयुक्त प्रासंगिकता बरकरार रखता है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के विघटन के बाद भी समय के साथ इसे कायम रखा है।
  • बहुपक्षीय कूटनीति के युग में जहाँ राज्य अपने विचार व्यक्त करने, अपने हितों को आगे बढ़ाने और वैश्विक मानदंडों को आकार देने के लिये एक मंच चाहते हैं, राष्ट्रमंडल ठीक ऐसा ही मंच प्रदान करता है।
  • सम्राट केवल प्रतीकात्मक मुखिया होता है, स्वतंत्र विश्व के नेता राष्ट्रमंडल का काम करते हैं।
  • अपने पूरे शासनकाल में महारानी एलिजाबेथ ने संगठन को समर्थ बनाने और समूह की प्रासंगिकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही नियमित रूप से दुनिया भर के राष्ट्रमंडल देशों के नेताओं से मिलने के लिये यात्रा की।

राष्ट्रमंडल का भविष्य

  • ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और बहामास के भविष्य में गणतंत्र बनने की संभावना है।
  • पाँच अन्य कैरिबियाई देशों- एंटीगुआ और बारबुडा, बेलीज़, ग्रेनाडा, जमैका तथा सेंट किट्स एवं नेविस में सरकारों ने इसी तरह से कार्य करने के अपने इरादे का संकेत दिया है।
  • इस प्रकार यह कल्पना से परे नहीं है कि महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद राष्ट्रमंडल का महत्त्व कम हो सकता हैं और उपनिवेशवाद के इतिहास का सामना करने वाले राष्ट्र सहायक एवं संसाधन निष्कर्षण के साथ खुद को गणराज्यों के रूप में स्थापित करने के लिये आगे बढ़ेंगे।
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