एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ‘सैंड और डस्ट’ तूफान का जोखिम
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 500 मिलियन से अधिक लोग एवं तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान तथा ईरान की पूरी आबादी का लगभग 80% से अधिक हिस्सा ‘सैंड और डस्ट’ तूफानों के कारण मध्यम से उच्च स्तर की खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में हैं।
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक सूखे की स्थिति के कारण 2030 के दशक में रेत और धूल भरी आँधी के तूफान का प्रभाव काफी अधिक बढ़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
‘सैंड और डस्ट’ तूफान
(i) परिचय
- शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में रेत और धूल भरी आँधी प्रायः मौसम संबंधी एक महत्त्वपूर्णखतरा है।
- यह आमतौर पर ‘थंडरस्टॉर्म’ या चक्रवात से जुड़े मज़बूत दबाव ग्रेडिएंट के कारण होता है, जो एक विस्तृत क्षेत्र में हवा की गति को बढ़ाते हैं।
- क्षोभमंडल (पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत) में लगभग 40% एरोसोल हवा के कटाव के कारण धूल के कण के रूप में मौजूद होते हैं।
(ii) मुख्य स्रोत:
- इन खनिज धूलों के मुख्य स्रोत- उत्तरी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, मध्य एशिया और चीन के शुष्क क्षेत्र हैं।
- तुलनात्मक रूप से ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका काफी कम योगदान देते हैं, हालाँकि व्यापक दृष्टि से वे भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रभाव
(iii) नकारात्मक
- बिजली संयंत्रों पर प्रभाव:
- वे ऊर्जा की बुनियादी अवसंरचना में हस्तक्षेप कर सकते हैं, बिजली ट्रांसमिशन लाइनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और बिजली की कटौती हेतु उत्तरदायी हो सकते हैं।
- इनके कारण भारत, चीन और पाकिस्तान में क्रमशः 1,584 GWh , 679 GWh और 555 GWh ऊर्जा का नुकसान हुआ है।
- परिणामस्वरूप भारत को प्रतिवर्ष 782 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
- पीने योग्य जलस्रोतों पर प्रभाव
- ‘हिमालय-हिंदूकुश पर्वत शृंखला’ और तिब्बती पठार, जो एशिया में 1.3 बिलियन से अधिक लोगों के लिये ताज़े पानी के स्रोत हैं, में धूल का जमाव काफी अधिक होता है, जो इन्हें प्रदूषित करता है।
- बर्फपिघलने की दर में वृद्धि:
- हिमनदों पर धूल का जमाव खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उत्पादन, कृषि, जल तनाव और बाढ़ सहित कई मुद्दों के माध्यम से समाज पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रभावों के साथ बर्फ के पिघलने की दर को बढ़ाकर वार्मिंग प्रभाव उत्पन्न करता है।
- कृषि (Farm land) पर:
- धूल के जमाव ने तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में कृषि भूमि के बड़ेहिस्से को प्रभावित किया है।
- इस धूल के अधिकांश भाग में नमक की मात्रा अधिक होती है जो इसे पौधों के लिये विषाक्त बनाती है।
- यह उपज को कम करता हैजिससे सिंचित कपास और अन्य फसलों के उत्पादन के लिये खतरा पैदा होता है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर:
- ये 17 संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्यसतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में से 11 को सीधे प्रभावित करते हैं:
- गरीबी को सभी रूपों में समाप्त करना, भुखमरी को समाप्त करना, अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, सभ्य कार्य तथा आर्थिक विकास, जलवायु कार्रवाई आदि।
(iv) सकारात्मक:
- वे निक्षेपण के क्षेत्रों में पोषक तत्त्व बढ़ा सकते हैं और वनस्पति को लाभ पहुँचा सकते हैं।
- जल निकायों पर जमा धूल उनकी रासायनिक विशेषताओं को बदल सकती है, जिससे सकारात्मक और प्रतिकूल दोनों तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं।
- आयरन को ले जाने वाले धूल के कण महासागरों के कुछ हिस्सों को समृद्ध कर सकते हैं, फाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) संतुलन में सुधार कर सकते हैं और समुद्री खाद्य जाल (Food Webs) को प्रभावित कर सकते हैं।
सुझाव:
- इनके प्रभाव काफी गंभीर हैं और इस प्रकार वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नीति-निर्माताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उभरते मुद्दे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सदस्य राज्यों को रेत और धूल भरे तूफान के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव की गहरी समझ हासिल करने, प्रभाव-आधारित फोकस के साथ एक समन्वित निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने तथा जोखिमों को कम करने के लिये सबसे अधिक जोखिम वाले भौगोलिक क्षेत्रों के कार्यों में समन्वय पर विचार करते हुए अपने संयुक्त कार्यों को रणनीतिक बनाने की आवश्यकता है।
EPF में योगदान पर कर लगाने का नियम
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में किये गए योगदान से प्राप्त ब्याज़ की राशि पर कर लगाने के नियमों को अधिसूचित किया है।
कर्मचारी भविष्य निधि योजना
(i) कर्मचारी भविष्य निधि और विविध अधिनियम, 1952 के तहत EPF मुख्य योजना है।
(ii) यह योजना कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को संस्थागत भविष्य निधि प्रदान करती है।
(iii) कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना में नियोक्ता (Employer) और कर्मचारी (Employee) दोनों द्वारा कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) के 12% का योगदान किया जाता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में सुझाव दिया गया था कि कर्मचारियों को यह चुनने की अनुमति दी जानी चाहिये कि वे अपने वेतन का 12% EPF में बचाएँ या इसे टेक होम पे (Take Home Pay) के रूप में रखें।
(iv) EPF योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य हैजिनका मूल वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपए तक है।
प्रमुख बिंदु
(i) पृष्ठभूमि:
- फरवरी 2021 में बजट में प्रस्तावित किया गया कि भविष्य निधि (PF) में एक वर्ष में 2.5 लाख रुपए से अधिक के योगदान पर ब्याज़ आय पर कर छूट उपलब्ध नहीं होगी।
- मार्च 2021 में सरकार ने वित्त विधेयक, 2021 में एक संशोधन पेश किया, जिसमें उसने कर मुक्त ब्याज़ आय के लिये योगदान की सीमा को 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए करने का प्रस्ताव रखा यदि योगदान किसी ऐसे फंड में किया जाता है, जहाँ नियोक्ता द्वारा कोई योगदान नहीं दिया जाता है।
- इसके साथ ही सरकार ने सामान्य भविष्य निधि में किये गए योगदान के लिये राहत प्रदान की जो केवल सरकारी कर्मचारियों हेतु उपलब्ध है और नियोक्ता द्वारा कोई योगदान नहीं दिया जाता है।
(ii) नए नियम:
- कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में 2.5 लाख रुपए (निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये) और 5 लाख रुपए (सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये) से अधिक के योगदान पर ब्याज आय पर कर लगेगा।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 की शुरुआत से सरकार इन सीमाओं से अधिक के योगदान के मामले में ब्याज पर कर लगाएगी, जिसमें अलगअलग खातों को भविष्य निधि खाते में 2021-22 एवं आगमी वर्षों में कर योग्य योगदान तथा एक व्यक्ति द्वारा किया गया योगदान को गैर-कर योग्य के लिये बनाए रखा जाएगा।
- एक वित्तीय वर्ष, जिसे बजट वर्ष के रूप में भी जाना जाता है, सरकार और व्यवसायों द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरण एवं रिपोर्ट तैयार करने हेतु लेखांकन उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली अवधि है।
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने आयकर नियम, 1962 में नियम 9D का सृजन किया है, जिसके अनुसार पिछले वर्ष के दौरान अर्जित ब्याज के माध्यम से जिस आय पर छूट प्राप्त नहीं है (निजी कर्मचारी के लिये 2.5 लाख रुपए से अधिक तथा सरकारी कर्मचारी के लिये 5 लाख रुपए से अधिक) उसकी गणना कर योग्य योगदान खाते में विगत वर्ष के दौरान अर्जित ब्याज के रूप में की जाएगी।
(iii) कर की निरंतरता:
- अधिसूचना के अनुसार, एक वर्ष के लिये अतिरिक्त योगदान (निजी के लिये 2.5 लाख रुपए से अधिक और सरकारी कर्मचारियों के लिये 5 लाख रुपए) पर ब्याज आय पर प्रत्येक वर्ष कर लगेगा।
- इसका मतलब यह हैकि अगर वित्त वर्ष 2021-22 में PF में वार्षिक योगदान 10 लाख रुपए है, तो 7.5 लाख रुपए की ब्याज आय पर न केवल वित्त वर्ष 2021-22 हेतु बल्कि आगामी सभी वर्षों के लिये भी कर लगेगा।
(iv) आवश्यकता :
- बजट प्रस्ताव में कहा गया था कि सरकार को ऐसे उदाहरण मिले हैं जहाँ कुछ कर्मचारी इन फंडों में व्यापक मात्रा में योगदान दे रहे हैं और सभी चरणों (योगदान, ब्याज संचय और निकासी) में कर छूट का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
- उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्तियों (HNIs) को उनके व्यापक योगदान पर उच्च कर मुक्त ब्याज आय के लाभ से बाहर करने के उद्देश्य से सरकार ने कर छूट के लिये एक सीमा निर्धारित करने का प्रस्ताव किया है।
एडिशनल टियर-1’ बाॅण्
हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 7.72% की कूपन दर पर ‘बेसल अनुपालन एडिशनल टियर-1’ (AT1) बाॅण्ड से 4,000 करोड़ रुपए जुटाए हैं।
- सेबी के नए नियमों के बाद घरेलू बाज़ार में यह पहला AT1 बाॅण्ड है।
- यह वर्ष 2013 में ‘बेसल-III’ पूंजी नियमों के लागू होने के बाद से किसी भी भारतीय बैंक द्वारा जारी किये गए इस तरह के ऋण पर अब तक की सबसे कम कीमत है।
बाॅण्ड
- बाॅण्ड, कंपनियों द्वारा जारी कॉर्पोरेट ऋण की इकाइयाँ होती हैं, जो प्रतिभूति संपत्ति के रूप में व्यापार योग्य होती हैं।
- बाॅण्ड को एक निश्चित आय वाले वित्तीय उपकरण के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि बाॅण्ड पारंपरिक रूप से देनदारों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान करते हैं। हालाँकि अब परिवर्तनीय या अस्थायी ब्याज़ दरें भी काफी सामान्य हो गई हैं।
- बाॅण्ड की कीमतें ब्याज दरों के साथ विपरीत रूप से सह-संबद्ध होती हैं: जब दरें बढ़ती हैं, बाॅण्ड की कीमत गिरती है और जब दरें घटती हैं, तो बाॅण्ड की कीमत बढ़ती है।
- बाॅण्ड की एक निर्धारित परिपक्वता अवधि होती है, जिस पर मूल राशि का भुगतान पूर्ण या जोखिम डिफाॅल्ट रूप से किया जाना होता है।
प्रमुख बिंदु
(i) ‘AT1’ बाॅण्ड
- ‘AT1 बाॅण्ड’ जिसे ‘परपेचुअल बाॅण्ड’ भी कहा जाता है, की कोई परिपक्वता तिथि नहीं होती है, किंतु इनमें कॉल विकल्प होता है। ऐसे बाॅण्ड के जारीकर्त्ताबाॅण्ड को कॉल या रिडीम कर सकते हैं यदि उन्हें सस्ती दर पर पैसा मिल रहा है, खासकर तब जब ब्याज दरें गिर रही हों।
- ये बैंकों और कंपनियों द्वारा जारी किये गए किसी भी अन्य बाॅण्ड्स की तरह ही हैं, लेकिन अन्य बाॅण्डों की तुलना में इनमें थोड़ी अधिक ब्याज़ दर का भुगतान किया जाता है।
- बैंक ये बाॅण्ड ‘बेसल-III’ मानदंडों को पूरा करने के उद्देश्य से अपने मूल पूंजी आधार को बढ़ाने के लिये जारी करते हैं।
- ये बाॅण्ड भी सूचीबद्ध होते हैं और एक्सचेंजों पर इन्हें खरीदा या बेचा जाता है। इसलिये यदि किसी ‘AT1’ बाॅण्डधारक को पैसे की ज़रूरत है, तो वह इसे सेकेंडरी मार्केट में बेच सकता है।
- निवेशक इन बाॅण्ड्स को जारीकर्त्ताबैंक को वापस नहीं कर सकते हैं यानी इसके धारकों के लिये कोई ‘पुट ऑप्शन’ उपलब्ध नहीं है।
- ‘AT-1’ बाॅण्ड जारी करने वाले बैंक किसी विशेष वर्ष के लिये ब्याज भुगतान को रोक भी सकते हैं या बाॅण्ड के अंकित मूल्य को भी कम कर सकते हैं।
(i) बाॅण्ड प्राप्त करने के लिये मार्ग:
ऐसे दो मार्ग हैं जिनके माध्यम से इन बाॅण्ड्स को प्राप्त किया जा सकता है:
- धन जुटाने की मांग करने वाले बैंकों द्वारा AT-1 बाॅण्ड के आरंभिक निजी प्लेसमेंट ऑफर।
- द्वितीयक बाज़ार में पहले से कारोबार कर रहे AT-1 बाॅण्ड्स की खरीदारी होती है।
(i) विनियमन:
- AT-1 बाॅण्ड भारतीय रिज़र्वबैंक (RBI) द्वारा विनियमित होते हैं। अगर RBI को लगता हैकि किसी बैंक को बचाव की ज़रूरत है, तो वह बैंक को अपने निवेशकों से परामर्शकिये बिना अपने बकाया AT-1 बाॅण्ड को बट्टेखाते में डालने के लिये कह सकता है।
बेसल- III मानदंड
(i) यह एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक समझौता हैजिसने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग क्षेत्र के भीतर विनियमन, पर्यवेक्षण और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिये डिज़ाइन किये गए सुधारों का एक सेट पेश किया।
(ii) बेसल- III मानदंडों के तहत बैंकों को पूंजी का एक निश्चित न्यूनतम स्तर बनाए रखने के लिये कहा गया था और उन्हें जमा से प्राप्त होने वाले सभी धन को उधार नहीं देने के लिये कहा गया था।
(iii) बेसल- III मानदंडों के अनुसार, बैंकों की नियामक पूंजी को टियर-1 और टियर-2 में बाँटा गया है, जबकि टियर-1 को कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) और अतिरिक्त टियर-1 (AT-1) पूंजी में विभाजित किया गया है।
- सामान्य इक्विटी टियर-1 पूंजी में इक्विटी उपकरण शामिल होते हैं जहाँ रिटर्न, बैंकों के प्रदर्शन से जुड़ा होता है और इसलिये शेयर की कीमत का प्रदर्शन होता है। उनकी कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है।
- CET और AT-1 को सामान्य इक्विटी कहा जाता है। बेसल- III मानदंडों के तहत सामान्य इक्विटी पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता को परिभाषित किया गया है।
(iv) टियर-2 पूंजी में कम-से-कम पाँच वर्ष की मूल परिपक्वता अवधि के साथ असुरक्षित अधीनस्थ ऋण होता है।
- बेसल मानदंडों के अनुसार, यदि न्यूनतम टियर-1 पूंजी 6% से कम हो जाती है, तो यह इन बाॅण्ड्स को बट्टेखाते में डालने की अनुमति देता है।
भारत-अमेरिका व्यापार विवाद: मुक्त व्यापार समझौता
हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्त्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया हैकि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है, जिसके साथ भारत का महत्त्वपूर्ण व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) है।
- यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील (US-India mini-trade deal) को समाप्त करने से भारत को वैश्विक व्यापार पर अपने रुख की समग्र रूप से समीक्षा करने का अवसर प्राप्त होगा।
प्रमुख बिंदु
मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
(i) FTA के बारे में:
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है। इसके तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता हैजिसके तहत दोनों देशों के मध्य उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ता हो जाता है।
- मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
(ii) भारत तथा मुक्त व्यापार समझौते:
- नवंबर 2019 में भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर होने के बाद, 15 सदस्यीय FTA समूह जिसमें जापान, चीन और ऑस्ट्रेलिया, FTA शामिल हैं, भारत के लिये निष्क्रिय हो गया।
- लेकिन मई 2021 में यह घोषणा हुई कि भारत-यूरोपीय संघ की वार्ता, जो 2013 से रुकी हुई थी, फिर से शुरू की जाएगी। इसके बाद खबर आई कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों के साथ भी FTAs चर्चा के विभिन्न चरणों में हैं।
यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील के बारे में :
(i) भारत की मांग :
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) के तहत कुछ खास घरेलू उत्पादों पर निर्यात लाभ बहाल करने की मांग की गई है।
- कृषि, ऑटोमोबाइल, ऑटो और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के उत्पादों को बाज़ार तक अधिक-से-अधिक पहुँच प्रदान करने की भी मांग की गई है।
(ii) अमेरिका की मांग :
- अमेरिका, कृषि तथा विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिये बाज़ार तक अधिक पहुँच की मांग कर रहा है।
- यू.एस. ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (US Trade Representative-USTR) के कार्यालय ने कंपनियों द्वारा अपने नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को देश के बाहर भेजने से प्रतिबंधित करने हेतु भारत द्वारा किये गए उपायों/मानदंडो को डिजिटल व्यापार के लिये प्रमुख बाधा के रूप में रेखांकित किया है।
- USTR रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती हैकि विदेशी ई-कॉमर्स फर्मों पर डेटा इक्वलाइजेशन लेवी (Equalisation Levy) लगाने का भारत का यह कदम अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करता है।
- अमेरिका ने भारत के साथ बढ़ते व्यापार घाटे पर भी चिंता व्यक्त की है।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंधी अन्य प्रमुख मुद्दे:
(i) टैरिफ: अमेरिका द्वारा भारत को "टैरिफ किंग" के रूप में संदर्भित किया गया है क्योंकि यह "अत्यधिक उच्च" आयात शुल्क आरोपित करता है।
- जून 2019 में ट्रम्प प्रशासन ने GSP योजना के तहत भारत के लाभों को समाप्त करने का निर्णय लिया था।
- बढ़ते व्यापार तनाव के बीच GSP सूची से हटाने से भारत को अंततः कई अमेरिकी आयातों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने के लिये प्रेरित किया। इसने अमेरिका को भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) का रुख करने के लिये प्रेरित किया।
(ii) बौद्धिक संपदा (IP): नवाचार को प्रोत्साहित करने और दवाओं तक पहुँच जैसे अन्य नीतिगत लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये IP सुरक्षा को संतुलित करने के तरीके पर दोनों पक्षों में भिन्नता है।
- पेटेंट, उल्लंघन दर और व्यापार संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी की सुरक्षा जैसी चिंताओं के आधार पर भारत 2021 के लिये "विशेष 301" प्राथमिकता निगरानी सूची में बना हुआ है।
(iii) सेवाएँ: भारत द्वारा दोनों देशों के बीच अपने व्यवसाय (Careers) को साझा करने वाले श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के समन्वय के लिये "समग्रता समझौते" की तलाश जारी है।
भारत की विदेश व्यापार नीति से संबंधी मुद्दे:
(i) खराब विनिर्माण क्षेत्र: हाल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 14% है।
- जर्मनी, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे उन्नत और विकसित देशों के लिये तुलनीय आँकड़े क्रमशः 19%, 11%, 25% और 21% हैं।
- चीन, तुर्की, इंडोनेशिया, रूस, ब्राज़ील जैसे उभरते और विकासशील देशों के लिये, संबंधित आँकड़े क्रमशः 27%, 19%, 20%, 13%, 9% हैं, और निम्न आय वाले देशों के लिये यह हिस्सेदारी 8% है।
(ii) प्रतिकूल मुक्त व्यापार समझौता (FTA): पिछले एक दशक में, भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान), कोरिया गणराज्य, जापान और मलेशिया के साथ FTAs पर हस्ताक्षर किये।
- हालाँकि मोटे तौर पर यह माना जाता हैकि भारत की तुलना में भारत के व्यापार भागीदारों को इन समझौतों से अधिक लाभ हुआ है।
(iii) संरक्षणवाद: आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इस विचार को और बढ़ा दिया हैकि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।
आगे की राह:
(i) बहुपक्षवाद की ओर रूख: यह देखते हुए कि भारत किसी भी मेगा-व्यापार सौदे का भागीदार नहीं है, यह एक सकारात्मक व्यापार नीति एजेंडे का एक महत्त्वपूर्णहिस्सा होगा।
- RCEP से बाहर निकलने के बाद, भारत को यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम सहित अपने संभावित FTA भागीदारों को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता हैकि यह कोविड के बाद की विश्व में चीन के लिये एक व्यवहार्यविकल्प है।
(ii) आर्थिक सुधार: भारत की व्यापार नीति के ढाँचे को आर्थिक सुधारों द्वारा समर्थित होना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप एक खुली, प्रतिस्पर्द्धी और तकनीकी रूप से नवीन भारतीय अर्थव्यवस्था हो।
(iii) विनिर्माण में सुधार: मेक इन इंडिया पहल जैसी योजनाओं के कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को बढ़ाने की जरूरत है।
- इसके अलावा, भारत की प्रमुख योजनाओं- स्मार्ट सिटी परियोजना, स्किल इंडिया प्रोग्राम और डिजिटल इंडिया के कार्यान्वयन के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा भारत के विनिर्माण क्षेत्र के व्यापक रीबूटिंग और कायाकल्प की आवश्यकता होगी।
(iv) नवाचार की आवश्यकता: यदि नवाचार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, तो शायद भारत को एक नवाचार प्रोत्साहन नीति का अनावरण करना चाहिये, क्योंकि बौद्धिक संपदा अधिकार नवाचार रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है।
अकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम
हाल ही में आठ प्रमुख बैंक ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) नेटवर्क में शामिल हुए हैं, जो ग्राहकों को अपने वित्तीय डेटा को आसानी से एक्सेस करने और साझा करने में सक्षम बनाएगा।
प्रमुख बिंदु
‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA)
- ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) का आशय एक ऐसे फ्रेमवर्क से है, जो विनियमित संस्थाओं (बैंकों और NBFCs) के बीच वास्तविक समय और ‘डेटा-ब्लाइंड’ (इसके माध्यम से प्रवाहित डेटा पूर्णतः एन्क्रिप्टेड होता है) के माध्यम से वित्तीय जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- ‘भारतीय रिज़र्वबैंक’ ने वर्ष 2016 में ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ को ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFCs) के एक नए वर्ग के रूप में मंज़ूरी दी थी, जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी उपयोगकर्त्ता के वित्तीय डेटा को उसकी स्पष्ट सहमति से स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान करना है।
- यह वित्तीय सूचना प्रदाताओं (FIPs) और वित्तीय सूचना उपयोगकर्त्ताओं (FIUs) के बीच डेटा के प्रवाह को सक्षम बनाता है।
- ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) की संरचना ‘डेटा एंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर’ (DEPA) फ्रेमवर्क पर आधारित है।
- DEPA एक ऐसा आर्किटेक्चर है, जो उपयोगकर्त्ताओं को सुरक्षित रूप से अपने डेटा तक पहुँच प्रदान करता है और इसे तीसरे पक्ष के साथ साझा करने की सुविधा देता है।
महत्त्व:
(i) उपभोक्ताओं के लिये:
- AA फ्रेमवर्क ग्राहकों को सहमति पद्धति के आधार पर एकल पोर्टल पर प्रदाताओं को एक मेज़बान के माध्यम से विभिन्न वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति देता है, जिसके तहत उपभोक्ता यह चुनाव कर सकते हैं कि कौन सा वित्तीय डेटा साझा करना है और किस इकाई के साथ।
- यह उपयोगकर्त्ताओं को यह नियंत्रित करने की अनुमति देता हैकि कौन उनके डेटा तक पहुँच प्राप्त कर सकता है, इसकी गति को ट्रैक और लॉग कर सकता है तथा पारगमन में रिसाव के संभावित जोखिम को कम कर सकता है।
(ii) बैंकों हेतु:
- भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे के अतिरिक्त यह सहमति वाले डेटा प्रवाह और सत्यापित डेटा तक बैंकों को पहुँचने की अनुमति देगा। इससे बैंकों को लेन-देन की लागत कम करने में मदद मिलेगी, जिससे वे अपने ग्राहकों को कम आकार के ऋण और अधिक अनुरूप उत्पादों एवं सेवाओं की पेशकश करने में सक्षम होंगे।
(iii) धोखाधड़ी में कमी:
- AA फ्रेमवर्क डेटा साझा करने के लिये सुरक्षित डिजिटल हस्ताक्षर और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन शुरू करके भौतिक डेटा से जुड़ी धोखाधड़ी को कम करता है।
आगे की राह
- आगे चलकर बड़ी संख्या में लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) तक बिना भौतिक शाखाओं के पहुँचा जा सकेगा और यह क्रेडिट पैठ को बदल देगा। जैसे-जैसे हम ओपन बैंकिंग कार्य प्रणाली की गहराई में जाते हैं तो ज्ञात होता हैकि आश्चर्यजनक रूप से भारत क्रेडिट तथा अन्य वित्तीय उत्पादों की बात करता है। जागरूकता व पारिस्थितिकी तंत्र स्तर को अपनाने से इसे एक बड़ा धक्का लगेगा।
- अकाउंट एग्रीगेटर (AA) फ्रेमवर्क को अन्य डोमेन से भी डेटा को संभालने के लिये बढ़ाया जा सकता है, जैसे- स्वास्थ्य देखभाल और दूरसंचार से संबंधित डेटा। हालाँकि अगर गैर-लाइसेंस प्राप्त संस्थाओं को अनुमति दी जानी है, तो डेटा का फ्रेमवर्क गोपनीय होना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि RBI वर्तमान में अपने जनादेश के भीतर केवल वित्तीय डेटा की सुरक्षा करता है I
क्रिप्टो फाइनेंस
एक दशक में बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी के विकास ने रुपए की परिभाषा बदल दी है तथा वैकल्पिक वित्तीय सेवाओं (AFS) के समानांतर जगत का निर्माण किया है।
- इस प्रकार के विकास ने क्रिप्टो व्यवसायों को पारंपरिक बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी है।
- AFS एक ऐसा शब्द हैजिसका उपयोग अक्सर उन प्रदाताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाओं की श्रेणी का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो संघ द्वारा बीमित बैंकों और मितव्ययिता के बाहर काम करते हैं।
मुख्य बिंदु
क्रिप्टो द्वारा दी जाने वाली वैकल्पिक सेवाएँ:
- वैकल्पिक सेवाओं के बारे में: मुख्य रूप से उधार देना और उधार लेना।
- बैंकों को लाभ: निवेशक डिजिटल करेंसी की अपनी होल्डिंग्स पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं, अक्सर वे बैंक में नकद जमा पर बहुत अधिक या ऋण वापस करने के लिये क्रिप्टो के साथ संपार्श्विक के रूप में उधार लेते हैं।
- कारण: कानून के अनुसार, बैंकों के लिये नकद रिज़र्व रखना आवश्यक होता है ताकि यदि कुल ऋण में से कुछ बैड लोन में परिवर्तित भी हो जाए तो यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्राहक अपना धन निकाल सकें, जबकि क्रिप्टो बैंकों के पास इस प्रकार का कोई भी रिज़र्व नहीं होता है और वे जिन संस्थानों को उधार देते हैं उनमें जोखिमपूर्ण गतिविधियों की संभावना रहती है।
- जोखिम: इस प्रकार के जमा की गारंटी केंद्रीय बैंक के समर्थित जमा बीमा निगम द्वारा नहीं दी जाती है। साइबर हमले, बाज़ार की प्रतिकूल स्थिति या अन्य परिचालन या तकनीकी कठिनाइयों के कारण निकासी या स्थानांतरण पर अस्थायी या स्थायी रोक लग सकती है।
स्टेबलकॉइन:
- स्टेबल करेंसी वह क्रिप्टोकरेंसी है जो आमतौर पर डॉलर से जुड़ी होती है। वे ब्लॉकचेन लेन-देन हेतु डिजिटल रूप में सरकार द्वारा जारी धन का स्थिर मूल्य प्रदान करने के लिये हैं, लेकिन निजी संस्थाओं द्वारा जारी किये जाते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी अस्थिर प्रकृति की होती है, जिससे भुगतान या ऋण जैसे लेन-देन के लिये यह कम व्यावहारिक है। यहीं से स्टेबलकॉइन का महत्त्व बढ़ जाता है।
- स्टेबलकॉइन जारीकर्त्ता को सरकारी संस्थानों की तरह भंडार बनाए रखने के साथ-साथ उसकी निगरानी करनी चाहिये लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं हैकि वे वास्तव में वे डॉलर के समर्थन का दावा करते हों।
केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा:
- यह एक विशेष राष्ट्र या क्षेत्र के लिये फिएट मुद्रा (सरकार द्वारा जारी और एक केंद्रीय प्राधिकरण जैसे केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित) मुद्रा का आभासी प्रारूप है।
- केंद्रीय बैंकर सरकार की क्रिप्टोकरेंसी जारी करने की क्षमता की जाँच कर रहे हैं। यह सैद्धांतिक रूप से केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित धन की विश्वसनीयता के साथ क्रिप्टो की सुविधा प्रदान करेगा।
- अमेरिका और भारत सहित कई देश केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा विकसित करने पर विचार कर रहे हैं।
विकेंद्रीकृत वित्त:
- विकेंद्रीकृत वित्त या DeFi, एक वैकल्पिक वित्त पारिस्थितिकी तंत्र को संदर्भित करता है, जहाँ उपभोक्ता सैद्धांतिक रूप से पारंपरिक वित्तीय संस्थानों और नियामक संरचनाओं से अलग एवं स्वतंत्र रूप से क्रिप्टोकरेंसी को स्थानांतरित, व्यापार, उधार देने जैसे कार्य करते हैं।
- DeFi का उद्देश्य कंप्यूटर कोड का उपयोग करके वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया में बिचौलियों और मध्यस्थों को समाप्त करना है।
- इस प्लेटफॉर्म को समय के साथ अपने डेवलपर्स और बैकर्स से स्वतंत्र होने के लिये संरचित किया जाता है और अंततः यह उपयोगकर्त्ताओं के एक समुदाय द्वारा शासित किया जाता है।
क्रिप्टो वित्त का महत्त्व:
(i) वित्तीय समावेशन
- नवोन्मेषकों का तर्क हैकि क्रिप्टो, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है। इससे उपभोक्ता बैंकों के विपरीत अपनी होल्डिंग पर असामान्य रूप से उच्च रिटर्न अर्जित कर सकते हैं।
(ii) त्वरित और मितव्ययी लेन-देन:
- क्रिप्टो फाइनेंस, पारंपरिक संस्थानों द्वारा लंबे समय से बहिष्कृत लोगों को त्वरित, सस्ते और बिना निर्णय के लेन-देन में संलग्न होने का अवसर देता है।
- चूँकि क्रिप्टो अपने ऋणों का समर्थन करता है, अतः सेवाओं को प्रायः किसी प्रकार की क्रेडिट जाँच की आवश्यकता नहीं होती है, हालाँकि इसमें कुछ कर रिपोर्टिंग और धोखाधड़ी-विरोधी उद्देश्यों के लिये ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी ली जाती है।
- इसके तहत आमतौर पर उपयोगकर्त्ता की व्यक्तिगत पहचान साझा नहीं की जाती है, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से उनके क्रिप्टो के मूल्य से आँका जाता है।
आगे की राह
(i) कुछ नियामकों और नवोन्मेषकों का तर्क हैकि नई तकनीक एक नए दृष्टिकोण की मांग करती है, क्योंकि नए प्रकार के जोखिम को नवाचार को बाधित किये बिना भी संबोधित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये यह अनिवार्य करने के बजाय कि DeFi प्रोटोकॉल बैंक के भंडार को बनाए रखेंगे और ग्राहक जानकारी एकत्र करेंगे, अधिकारी प्रौद्योगिकी तथा उत्पादों के लिये ‘कोड ऑडिट’ और ‘जोखिम पैरामीटर’ जैसी नई व्यवस्था बना सकते हैं।
(ii) पहचान से संबंधित मुद्दे, जो कि वित्तीय धोखाधड़ी से मुकाबले के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, को संबोधित करने की आवश्यकता है। विशिष्टताओं से शुरू करने के बजाय- व्यक्तियों की पहचान से संबंधित कानून लागू करने वाले व्यापक दृष्टिकोण को अपना सकते हैं।
(iii) संदिग्ध गतिविधि पर नज़र रखने तथा पहचान को ट्रैक करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विश्लेषण का उपयोग भी किया जा सकता है।
संवहनीय खपत और उत्पादन: एसडीजी 12
सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 12 के मामले में विश्व में भारत की प्रगति काफी उचित गति से हुई हैलेकिन यह प्रगति संतोषजनक नहीं है।
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 12 का उद्देश्य विश्व में हर जगह संवहनीय/सतत् खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना है।
- सतत् खपत और उत्पादन से तात्पर्य "सेवाओं एवं संबंधित उत्पादों के उपयोग से है, जो बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाते हैं तथा प्राकृतिक संसाधनों और भावी पीढ़ियों की ज़रूरतों को खतरे में न डालते हुए विषाक्त पदार्थों के उपयोग में कमी के साथ-साथ जीवन चक्र पर अपशिष्ट और प्रदूषकों के उत्सर्जन के प्रभाव को कम करते हैं।
प्रमुख बिंदु
SDG 12 के बारे में:
- प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना और वर्ष 2030 तक प्राकृतिक संसाधनों के कुशल और टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित करना।
- प्रदूषण को समाप्त करना, समग्र अपशिष्ट उत्पादन को कम करना और रसायनों एवं ज़हरीले कचरे के प्रबंधन में सुधार करना।
- हरित बुनियादी ढांँचे और प्रथाओं को व्यवहार में लाने के लिये कंपनियों के बीच तालमेल का समर्थन करना।
- यह सुनिश्चित करना कि हर जगह हर किसी को प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के तरीकों से पूरी तरह से अवगत कराया जाए और अंततः उद्देश्यपूर्ण तरीकों को अपनाया जाए।
(ii) भारत की स्थिति:
(i) लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट:
- यह हमारी जीवनशैली से उत्पन्न संसाधन खपत की मात्रा को मापता है।
- वर्ष 2015 के आँकड़ों के अनुसार, भारत की औसत ‘लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट’ लगभग 8,400 किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति है, जो कि प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 8,000 किलोग्राम के स्थायी ‘लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट’ की तुलना में काफी हद तक स्वीकार्य है।
(ii) भोजन की बर्बादी:
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग 50 किलोग्राम भोजन बर्बाद होता है।
- शेष नौ वर्षों (2030) में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि किये बिना खाद्य अपशिष्ट या भोजन की बर्बादी को आधा करने के लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव प्रतीत होता है।
- मंदी के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूख, प्रदूषण और धन की बचत पर खाद्य अपशिष्ट में कमी का महत्त्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है।
(iii) पीढ़ी का नुकसान:
- संयुक्त रूप से चीन और भारत की जनसंख्या वैश्विक जनसंख्या का 36% है, लेकिन यह वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट का केवल 27% उत्पन्न करती है।
- जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी वैश्विक आबादी का केवल 4% है और यह 12% कचरे का उत्पादन करती है।
(iv) प्लास्टिक अपशिष्ट:
- वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, भारत का ‘प्लास्टिक नीति सूचकांक’ राष्ट्रीय आवश्यकता से काफी नीचे है, लेकिन यह अंतर चीन की तुलना में काफी कम है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में एक दिन में करीब 26,000 टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जबकि एक दिन में 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र नहीं हो पाता है।
- भारत की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत 11 किलो से कम है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (109 किलो) का लगभग दसवाँ हिस्सा है।
(v) पुनर्चक्रण दर:
- वर्ष 2019 में भारत की घरेलू रीसाइक्लिंग दर लगभग 30% थी और निकट भविष्य में इसमें सुधार होने की उम्मीद है।
- भारत अगले 10 वर्षों में आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर सकता है यदि राष्ट्रीय पुनर्चक्रण नीति को ठीक से लागू किया जाए तथा पुनर्चक्रण उद्योगों में स्क्रैप देखभाल तकनीकों को स्थानांतरित किया जाए।
(vi) जीवाश्म ईंधन सब्सिडी:
- वर्ष 2020 में सरकार ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.2% जीवाश्म ईंधन पर खर्च किया जो वर्ष 2019 की तुलना में थोड़ा अधिक है।
- वर्ष 2019 में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में वृद्धि हुई थी जो वैकल्पिक ऊर्जासब्सिडी से सात गुना अधिक थी।
- वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2017 में अक्षय ऊर्जासब्सिडी में काफी वृद्धि हुई और कुल मात्रा में ऊर्जासब्सिडी में भारी मात्रा में गिरावट आई।
- लेकिन वर्ष 2017 के बाद कुल ऊर्जासब्सिडी में मामूली वृद्धि हुई है।
- जबकि अक्षय ऊर्जासब्सिडी में वृद्धि सराहनीय है, इस क्षेत्र में अधिक संसाधनों को स्थानांतरित करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की आवश्यकता है।
(vii) सतत् पर्यटन:
- स्थायी अथवा सतत् पर्यटन (Sustainable Tourism) में आगंतुकों, उद्योग, पर्यावरण तथा मेज़बान समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए वर्तमान एवं भविष्य के आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों का पूरा ध्यान रखा जाता है।
- यह पर्यटन का कोई विशेष रूप नहीं हैबल्कि इसमें पर्यटन के सभी प्रकारों को और अधिक सतत् बनाने का प्रयास किया जाता है।
- कुमारकोम (केरल) में 'ज़िम्मेदार पर्यटन' की परियोजना स्थानीय समुदाय को आतिथ्य उद्योग से जोड़कर और पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बनाए रखने में मदद करती है।
- हिमाचल प्रदेश ने प्राकृतिक, आरामदायक और बजट के अनुकूल आवास एवं भोजन के साथ पर्यटकों को ग्रामीण क्षेत्रों में आकर्षित करने के लिये एक 'होमस्टे योजना (Homestay Scheme)' शुरू की है।
- नीति आयोग के SDG डैशबोर्ड 2020-21 के अनुसार, भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जम्मू-कश्मीर एवं नगालैंड SDG-12 के संबंध में अब तक शीर्ष प्रदर्शन कर रहे हैं।
(viii) पर्यावरण शिक्षा:
- भारत सरकार ने 1960 के दशक में औपचारिक पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य घटक के रूप में शामिल किया।
विभेदीकृत जीएसटी व्यवस
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद द्वारा उन क्षेत्रों के लिये विभेदीकृत जीएसटी व्यवस्था शुरू करने को लेकर एक मंत्री समूह की रिपोर्ट
पर विचार करने की संभावना है जहाँ कर की चोरी बहुत अधिक है।
- कर चोरी, कर योग्य आय के जान-बूझकर कम विवरण या खर्चों को बढ़ाने जैसी कपटपूर्ण तकनीकों के माध्यम से कर देयता को कम करने का एक अवैध तरीका है। यह किसी के कर बोझ को कम करने का एक गैरकानूनी प्रयास है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद:
- यह वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को सिफारिशें करने के लिये एक संवैधानिक निकाय (अनुच्छेद 279A) है।
- जीएसटी परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है तथा अन्य सदस्य केंद्रीय राजस्व या वित्त मंत्री और सभी राज्यों के वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री होते हैं।
- इसे एक संघीय निकाय के रूप में माना जाता है जहां केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।
प्रमुख बिंदु
(i) पृष्ठभूमि:
- जीएसटी परिषद ने पहले कुछ राज्यों की मांगों पर विचार करने के लिये मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन किया था, जो उत्पादन के बजाय उत्पादन क्षमता (यानी विशेष संरचना योजनाओं) के आधार पर उच्च कर चोरी वाले क्षेत्रों पर कर लगाते थे।
- क्षमता आधारित कर, उत्पादन के बजाय विनिर्माण क्षमता पर आधारित है।
- उच्च कर चोरी वाले क्षेत्रों के कुछ उदाहरणों में ईंट भट्टे, रेत खनन और गुटखा एवं पान मसाला उत्पादन शामिल हैं।
- उदाहरण के लिये इससे पहले वर्ष 2021 में एक पान मसाला इकाई में 830 करोड़ रुपए की चोरी का पता चला था।
(ii) चिंताएँ:
- क्षमता आधारित कर (Capacity Based Tax) जीएसटी की संरचना के विरुद्ध है क्योंकि इसका एक उद्देश्य बिक्री की मात्रा में वृद्धि के साथ राजस्व वृद्धि को भी सुनिश्चित करना था।
- यह कपड़ा जैसे अन्य क्षेत्रों की मांगों के लिये भी द्वार खोल सकता है।
- क्रियान्वयन की दृष्टि से भी यह आसान नहीं होगा और हो सकता हैकि यह अपवंचन को रोकने के वांछित परिणाम भी न दे, जिसका मुख्य कारण अत्यधिक उच्च कर दरें हैं।
- इस तरह का बदलाव जीएसटी के मूल विचार के लिये हानिकारक होगा और ईमानदार करदाताओं को गलत संकेत देगा। यह जीएसटी संरचना में अतिरिक्त जटिलता को बढ़ाने का कार्य करेगा।
आगे की राह
- चूंँकि पूर्व की योजनाओं के घटक कर चोरी को रोकने में प्रभावी नहीं रहे हैं जिसके कारण राजस्व अधिकारियों और उत्पादकों के बीच बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता (Production Capacity) विवादों पर मुकदमेबाज़ी हुई है, अत: सरकार को बेहतर डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके जीएसटी चोरी की जांँच करनी चाहिये, साथ ही कर चोरी से बचने के लिये अभिनव, कड़े कानूनी प्रावधानों को पेश करना चाहिये।
नवीकरणीय ऊर्जा और भूमि उपयोग
हाल ही में ‘रिन्यूएबल एनर्जी एंड लैंड यूज़ इन इंडिया बाय मिड-सेंचुरी’ (Renewable Energy and Land Use in India by Mid-Century) नामक एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया हैकि वर्तमान में सावधानीपूर्वक योजना बनाने से भविष्य के लाभ को अधिकतम
किया जा सकता है और भारत के ऊर्जा ट्रांज़िशन की लागत को कम किया जा सकता है।
- यह रिपोर्ट ‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ (IEEFA) द्वारा जारी की गई है, जो ऊर्जाबाज़ारों, प्रवृत्तियों और नीतियों से संबंधित मुद्दों की जाँच करता है।
- इसका मिशन एक विविध, सतत् और लाभदायक ऊर्जा अर्थव्यवस्था में ऊर्जा ट्रांज़िशन को तीव्र करना है।
प्रमुख बिंदु
(i) नवीकरणीय ऊर्जा के लिये भूमि उपयोग:
- भारत नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने हेतु वर्ष 2050 तक भूमि के महत्त्वपूर्णहिस्से का उपयोग करेगा।
- अनुमान के मुताबिक, सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये वर्ष 2050 तक लगभग 50,000-75,000 वर्गकिलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त 15,000-20,000 वर्गकिलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा।
- यूरोप या अमेरिका के विपरीत भारत में बिजली उत्पादन के लिये कृषि, शहरीकरण, मानव आवास और प्रकृति संरक्षण जैसे भूमि के वैकल्पिक उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है।
(ii) सह-अस्तित्त्व:
- उचित रूप से प्रबंधित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन अन्य भूमि उपयोगों के साथ सह-अस्तित्व में भी हो सकता है और यह कोयला आधारित बिजली के विपरीत भूमि के स्वरूप में भी बदलाव नहीं करता है।
(iii) कार्बन उत्सर्जन:
- अप्रत्यक्ष प्रभाव सहित परिणामी भूमि आवरण परिवर्तन से संभावित रूप से प्रति किलोवाट/घंटे (gCO2 / kwh) में 50 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड तक कार्बन का शुद्ध उत्सर्जन होगा।
- कार्बन उत्सर्जन की मात्रा क्षेत्र, उसके विस्तार, सौर प्रौद्योगिकी दक्षता तथा सौर पार्कों में भूमि प्रबंधन के तरीके पर निर्भर करेगी।
(iv) पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव:
- नवीकरणीय ऊर्जा हेतु भूमि उपयोग विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों पर दबाव डाल सकता है। आमतौर पर शून्य प्रभाव क्षेत्र, बंजर भूमि, अप्रयुक्त भूमि या बंजर भूमि का अर्थ हैकि ऐसे क्षेत्रों का कोई मूल्य नहीं है।
- बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत ओपन नेचुरल इकोसिस्टम (ONE), भारत की भूमि की सतह के लगभग 10% को कवर करता है।
- बंजर भूमि के सबसे बड़ेखंड राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पाए जाते हैं।
- हालाँकि इनमें से कुछ भू-खंडों में "बड़े स्तनधारी जीवों का घनत्व और विविधता उच्चतम" है और ये स्थानीय आबादी की आजीविका की पूर्ति करने में सहायक हैं।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवासों से गुज़रने वाली सौर ऊर्जा इकाइयों की सभी बिजली लाइनों को भूमिगत रखने का निर्देश दिया था, क्योंकि ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये खतरा हो सकती हैं।
सुझाव:
(i) पर्यावरणीय क्षति को कम करें:
- पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये उपयोग की गई भूमि के आकार, स्थान और मानव निवास, कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों
- के संरक्षण पर उसके प्रभाव तथा उसके प्रति अनुकूलन।
(ii) भूमि उपयोग को कम करना:
- जल निकायों पर अपतटीय पवन, रूफटॉप सोलर को बढ़ावा देकर अक्षय ऊर्जा के लिये कुल भूमि उपयोग आवश्यकता को कम करना।
(iii) भूमि आकलन:
- संभावित स्थलों की रेटिंग हेतु अनुचित क्षेत्रीयता को सीमित करके और पर्यावरण एवं सामाजिक मानकों को विकसित कर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिये भूमि की पहचान और मूल्यांकन।
- अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के स्थान पर विचार करते समय नीति निर्माताओं और योजनाकारों को उच्च घनत्व वाले आवासीय वनों को इससे बाहर रखना चाहिये।
(iv) कृषि वैद्युत को प्रोत्साहन:
- भारतीय कृषि वैद्युत क्षेत्र पर ध्यान देकर किसानों को लाभ प्रदान करना और कृषि वैद्युत को प्रोत्साहित करना, जहाँ फसल, मिट्टी एवं स्थितियाँ उपयुक्त हों और पैदावार को बनाए रखा जा सके या उसमें सुधार किया जा सके।
- कृषि वैद्युत को फोटोवोल्टिक सेल द्वारा विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के साथ भूमि के कृषि उपयोग को जोड़ती है।
वस्त्र उद्योग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना
हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने वस्त्र उद्योग हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ (PLI) योजना को मंज़ूरी दी है।
- वस्त्र क्षेत्र हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना, केंद्रीय बजट 2021-22 के दौरान 13 क्षेत्रों के लिये घोषित PLI योजना का हिस्सा है, जिसमें 1.97 लाख करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
- RoSCTL, RoDTEP और इस क्षेत्र में सरकार के अन्य उपायों जैसे- प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर कच्चे माल की उपलब्धता एवं कौशल विकास आदि के साथ ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना के माध्यम से वस्त्र निर्माण क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की जा सकेगी।
प्रमुख बिंदु
(i) ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात बिलों में कटौती करने के लिये केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में एक PLI योजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
- विदेशी कंपनियों को भारत में इकाई स्थापित करने के लिये आमंत्रित करने के अलावा, इस योजना का उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या विस्तार के लिये प्रोत्साहित करना भी है।
- इस योजना को ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर जैसे लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, व्हाइट गुड्स, रासायनिक सेल, खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों के लिये भी अनुमोदित किया गया है।
(ii) वस्त्र उद्योग के संदर्भ में PLI योजना की विशेषताएंँ:
- इसके तहत उच्च मूल्य वाले मानव निर्मित फाइबर (MMF) कपड़े, वस्त्र और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- 5 वर्ष की अवधि में इस क्षेत्र को उत्पादन पर 10,683 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी।
- पात्र उत्पादकों को दो चरणों में प्रोत्साहन:
- पहला: कोई भी व्यक्ति या कंपनी जो एमएमएफ फैब्रिक, गारमेंट्स और तकनीकी टेक्सटाइल के उत्पादों के उत्पादन के लिए संयंत्र, मशीनरी, उपकरण और सिविल कार्यों (भूमि और प्रशासनिक भवन लागत को छोड़कर) में न्यूनतम 300 करोड़ रुपए का निवेश करने का इच्छुक है, भाग लेने के लिए पात्र होगा।
- दूसरा: उन्हीं शर्तों के तहत (जैसे पहले चरण के मामले में) न्यूनतम 100 करोड़ रुपए खर्च करने के इच्छुक निवेशक आवेदन करने के पात्र होंगे।
अपेक्षित लाभ:
(i) निवेश और रोज़गार में वृद्धि:
- इससे 19,000 करोड़ रुपए से अधिक का नया निवेश होगा, जिससे कुल कारोबार 3 लाख करोड़ और इस क्षेत्र में 7.5 लाख से अधिक नौकरियों के अतिरिक्त सहायक गतिविधियों के लिये कई लाख से अधिक रोज़गार के अवसर सृजित होंगे।
- वस्त्र उद्योग मुख्य रूप से महिलाओं को रोज़गार देता है, इसलिये यह योजना महिलाओं को सशक्त बनाएगी और औपचारिक अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी को बढ़ाएगी।
(ii) पिछड़ेक्षेत्रों को प्राथमिकता:
- साथ ही आकांक्षी ज़िलों, टियर-3, टियर-4 कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दी जाएगी और इसके माध्यम से उद्योग को पिछड़ेक्षेत्रों में ले जाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा.
- यह योजना विशेष रूप से गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा आदि जैसे राज्यों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।
वस्त्र उद्योग
(i) वस्त्र और वस्त्र उद्योग श्रम प्रधान क्षेत्र है जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, रोज़गार के मामले में इस क्षेत्र का कृषि क्षेत्र के
बाद दूसरा स्थान है।
(ii) भारत का वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत तथा संस्कृति का भंडार एवं वाहक है।
(iii) इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने का है जो पारंपरिक उपकरणों और विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प एवं रेशम उत्पादन शामिल हैं।
- संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है तथा इसमें कताई, परिधान एवं वस्त्र शामिल हैं।
निर्यात को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन योजनाए
सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विभिन्न निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के तहत व्यापार के साथ-साथ सेवा निर्यात के लिये 56,027 करोड़ रुपए के लंबित दावों को जारी करने का निर्णय लिया है।
- अप्रैल-अगस्त, 2021 के लिये मर्चेंडाइज़ निर्यात लगभग 164 बिलियन डॉलर का था जो वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में 67 प्रतिशत तथा 2019-20 की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक था।
प्रमुख बिंदु
(i) परिचय:
- ये लाभ 45,000 से अधिक निर्यातकों के बीच वितरित किये जाएंगे, जिसमें से लगभग 98 प्रतिशत MSME वर्ग के छोटे निर्यातक हैं।
- विकसित देशों में भारतीय सामानों की बढ़ती मांग के बीच सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में 400 अरब डॉलर के व्यापारिक निर्यात को हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
- निर्यातकों को निम्नलिखित योजनाओं के तहत प्रोत्साहन दिया जाएगा:
- मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (MEIS), सर्विस एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (SEIS), राज्य लेवी की छूट (RoSL), राज्य और केंद्रीय करों तथा लेवी (RoSCTL) की छूट एवं RoDTEP (निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट)।
(ii) महत्त्व:
विदेशी मुद्रा लाने में मदद:
- एक निर्यातक राष्ट्र के रूप में चीन की सफलता उसके निर्माताओं को विदेशी बाज़ारों के लिये विशेष रूप से उत्पादन करने हेतु सरकारी प्रोत्साहन (भारी कर छूट सहित) की एक विस्तृत शृंखला प्राप्त करने में निहित है।
कम चालू खाता घाटा:
- प्रोत्साहन योजनाओं से चालू खाता घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, जो कि उस घाटे का कारण है जब कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है।
- पिछले एक दशक में भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का औसतन 2.2% रहा है (जुलाई-सितंबर 2020 में लगभग 15 बिलियन डॉलर)।
तरलता:
यह लाभ व्यापारिक क्षेत्रों (कृषि और संबद्ध क्षेत्रों, ऑटो और ऑटो घटकों) को नकदी प्रवाह बनाए रखने एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात मांग को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें इस वित्तीय वर्ष में तेज़ी से सुधार हो रहा है।
निर्यात प्रोत्साहन योजनाएंँ
(i) भारत से पण्य वस्तु निर्यात योजना:
- MEIS को विदेश व्यापार नीति (FTP) 2015-20 में पेश किया गया था। इसके तहत सरकार उत्पाद और देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।
- इस योजना में पुरस्कार के तहत देय फ्री-ऑन-बोर्डवेल्यू (2%, 3% और 5% का) के प्रतिशत के रूप में दी जाती है तथा MEIS ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप को स्थानांतरित किया जा सकता है या मूल सीमा शुल्क सहित कई कार्यों के भुगतान हेतु उपयोग किया जा सकता है।
(ii) भारत योजना से सेवा निर्यात:
- इसे भारत की विदेश व्यापार नीति 2015-2020 के तहत अप्रैल 2015 में 5 वर्षों के लिये लॉन्च किया गया था।
- इससे पहले वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये इस योजना को भारत योजना (SFIS योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
- इसके तहत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में स्थित सेवा निर्यातकों को भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
(iii) निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP)
- यह भारत में निर्यात बढ़ाने में मदद करने हेतु जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिये पूरी तरह से स्वचालित मार्ग है।
- ITC कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों, वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर दिये जाने वाले कर पर प्रदान किया जाता हैजिसका उपयोग वस्तुओं या सेवाओं के निर्माण में किया जाता था। यह दोहरे कराधान और करों के व्यापक प्रभाव से बचने में मदद करता है।
- इसे जनवरी 2021 में MEIS जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप नहीं था, के स्थान पर शुरू किया गया था।
- विभिन्न क्षेत्रों के लिये टैक्स रिफंड दरें 0.5% से 4.3% तक होती हैं।
- छूट का दावा माल ढुलाई के प्रतिशत के रूप में निर्यात की बोर्डवेल्यू पर करना होगा।
(iv) राज्य एवं केंद्रीय करों और लेवी की छूट
- मार्च 2019 में घोषित RoSCTL को एम्बेडेड स्टेट (Embedded State) और केंद्रीय ज़िम्मेदारियों (Central Duties) तथा उन करों के लिये पेश किया गया था जो माल एवं सेवा कर (GST) के माध्यम से वापस प्राप्त नहीं होते हैं।
- यह केवल कपड़ों और बने हुए सामान के लिये उपलब्ध था। इसे कपड़ा मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था।
- इससे पहले यह राज्य लेवी के लिये छूट (ROSL) थी।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का त्रैमासिक बुलेटिन
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अक्तूबर-दिसंबर 2020 के लिये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का त्रैमासिक बुलेटिन जारी किया।
- यह डेटासेट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट से अलग है, जिसमें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को शामिल किया गया है। शहरी क्षेत्रों के लिये बेरोज़गारी के आँकड़ेत्रैमासिक आधार पर जारी किये जाते हैं।
- NSO सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980 के तहत सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।
प्रमुख बिंदु
त्रैमासिक बुलेटिन के मुख्य बिंदु:
(i) अक्तूबर-दिसंबर 2020 के दौरान शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिये बेरोज़गारी दर बढ़कर 10.3% हो गई, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि के दौरान यह 7.9% थी।
(ii) वर्ष 2020 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लिये श्रम बल भागीदारी दर 47.3% रही, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में यह दर 47.8% थी।
(iii) शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लिये वर्ष 2020 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में श्रमिक जनसंख्या अनुपात 42.4% था, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि के दौरान यह दर 44.1% थी।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के विषय में:
(i) अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की।
(ii) PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
- 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
(iii) PLFS में एकत्रित आँकड़ों के आधार पर PLFS की तीन वार्षिक रिपोर्टें जुलाई 2017 - जून 2018, जुलाई 2018 - जून 2019 और जुलाई 2019 - जून 2020 की अवधि के अनुरूप हैं।
(iv) दिसंबर 2018 से दिसंबर 2020 को समाप्त होने वाली तिमाहियों के लिये PLFS के नौ त्रैमासिक बुलेटिन जारी किये गए हैं।
प्रमुख शब्दावलियाँ
(i) श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): LFPR को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों (अर्थात् कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिये उपलब्ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
(ii) कामगार-जनसंख्या अनुपात (WPR): WPR को कुल आबादी में रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
(iii) बेरोज़गारी दर (UR): इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में से बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
(iv) कार्यकलाप की स्थिति: किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति एक निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
- सामान्य स्थिति: सर्वेक्षण की तारीख से पहले पिछले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि की स्थिति को व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति के रूप में जाना जाता है।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तारीख से पहले पिछले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि की स्थिति को व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) के रूप में जाना जाता है।
कोयले से मेथनॉल का उत्पादन
हाल ही में पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया उच्च राख कोयला गैसीकरण आधारित मेथनॉल उत्पादन संयंत्र हैदराबाद में स्थापित किया गया है।
- इसके साथ ही सरकारी स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग फर्म भेल (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) ने उच्च राख वाले भारतीय कोयले से मेथनॉल बनाने की दक्षता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:(i) मेथनॉल का उपयोग मोटर ईंधन के रूप में जहाज़ के इंजनों को ऊर्जा प्रदान करने और पूरी दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति हेतु किया जाता है। हालाँकि दुनिया भर में मेथनॉल उत्पादन का अधिकांश हिस्सा प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है, जो अपेक्षाकृत आसान प्रक्रिया है।
(ii) चूँकि भारत में प्राकृतिक गैस का अधिक भंडार नहीं है, आयातित प्राकृतिक गैस से मेथनॉल का उत्पादन करने से विदेशी मुद्रा का बहिर्वाह होता है और उच्च कीमतों के कारण यह अलाभकारी है।
(iii) इसका सबसे अच्छा विकल्प भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कोयले का उपयोग करना है। हालाँकि भारतीय कोयले के उच्च राख प्रतिशत के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश सुलभ तकनीक मेथनॉल उत्पादन हेतु पर्याप्त नहीं होगी।
(iv) इस मुद्दे को हल करने के लिये भेल ने 1.2 TPD फ्लूइडाइज़्ड बेड गैसीफायर का उपयोग करके उच्च राख वाले भारतीय कोयले से 0.25 TPD (टन प्रतिदिन) मेथनॉल बनाने की सुविधा का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।
- उत्पादित कच्चे मेथनॉल की शुद्धता 98 और 99.5% के बीच होती है।
(v) यह नीति आयोग के 'मेथनॉल इकॉनमी' कार्यक्रम का हिस्सा हैजिसका उद्देश्य भारत के तेल आयात बिल, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करना और कोयला भंडार तथा नगरपालिका के ठोस कचरे को मेथनॉल में परिवर्तित करना है।
(vi) साथ ही यह आंतरिक क्षमता भारत के कोयला गैसीकरण मिशन और हाइड्रोजन मिशन के लिये कोयले से हाइड्रोजन उत्पादन में सहायता करेगी।
नीति आयोग का मेथनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम:
(i) मेथनॉल के बारे में: मेथनॉल एक कम कार्बन, हाइड्रोजन वाहक ईंधन है जो उच्च राख वाले कोयले, कृषि अवशेषों, थर्मल पावर प्लांटों से CO2 और प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है। COP 21 (पेरिस समझौता) के लिये भारत की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये यह सबसे अच्छा मार्ग है।
(ii) पेट्रोल और डीज़ल की तुलना में मेथनॉल: हालाँकि पेट्रोल और डीज़ल की तुलना में सीमित ऊर्जा परिक्षमता के साथ मेथनॉल, इन दोनों ईंधनों को परिवहन क्षेत्र (सड़क, रेल और समुद्री), ऊर्जाक्षेत्र (बॉयलर, प्रोसेस हीटिंग मॉड्यूल सहित ट्रैक्टर और वाणिज्यिक वाहन) तथा खुदरा खाना पकाने (एलपीजी [आंशिक रूप से], मिट्टी तेल और लकड़ी के चारकोल की जगह) जैसे क्षेत्रों में रूपांतरित कर सकता है।
(iii) पर्यावरण और आर्थिक प्रभाव:
- गैसोलीन में 15% मेथनॉल के सम्मिश्रण से गैसोलीन/कच्चे तेल के आयात में कम- से-कम 15% की कमी हो सकती है। इसके अलावा इससे पार्टिकुलेट मैटर, NOx और SOx के मामले में GHG उत्सर्जन में 20% की कमी आएगी, जिससे शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।
- मेथनॉल अर्थव्यवस्था मेथनॉल उत्पादन/अनुप्रयोग और वितरण सेवाओं के माध्यम से करीब 50 लाख रोज़गार सृजित करेगी।
- इसके अतिरिक्त LPG में 20% DME (डाय-मिथाइल ईथर, मेथनॉल का एक उत्पाद) को मिलाकर सालाना 6000 करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है। इससे उपभोक्ता को प्रति सिलेंडर 50-100 रुपए की बचत करने में मदद मिलेगी।
(iv) पहलें:
- भारतीय मानक ब्यूरो ने LPG के साथ 20% DME सम्मिश्रण को अधिसूचित किया है और सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा M-15, M-85, M-100 मिश्रणों के लिये एक अधिसूचना जारी की गई है।
- अक्तूबर 2018 में असम पेट्रोकेमिकल्स ने एशिया का पहला कनस्तर-आधारित मेथनॉल खाना पकाने के ईंधन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह पहल एक स्वच्छ, लागत प्रभावी और प्रदूषण मुक्त खाना पकाने के प्रावधान की दिशा में प्रयास करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- इज़रायल के साथ एक संयुक्त उद्यम में उच्च राख कोयले पर आधारित पाँच मेथनॉल संयंत्र, पाँच DME संयंत्र और 20 MMT/वर्ष की क्षमता वाले एक प्राकृतिक गैस आधारित मेथनॉल उत्पादन संयंत्र की स्थापना की योजना बनाई गई है।
- समुद्री ईंधन के रूप में मेथनॉल का उपयोग करने हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के लिये कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा तीन नावों और सात मालवाहक जहाज़ो का निर्माण किया जा रहा है।
आगे की राह
(i) भारत के पास 125 बिलियन टन प्रमाणित कोयला भंडार और 500 मिलियन टन बायोमास के साथ हर साल उत्पन्न होने वाले वैकल्पिक फीडस्टॉक और ईंधन के आधार पर ऊर्जासुरक्षा सुनिश्चित करने की एक बड़ी क्षमता है।
(ii) हालाँकि मेथनॉल पर सरकार द्वारा EV (इलेक्ट्रिक वाहन) की तरह ध्यान नहीं दिया जाता है। मेथनॉल अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से लागू करने के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य करने की आवश्यकता है।
(iii) मेथनॉल आधारित प्रौद्योगिकी का विकास ऊर्जा आयात करने वाले भारत को ऊर्जा निर्यातक देश में बदल सकता है।
परिवहन और विपणन सहायता योजना
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के लिये परिवहन और विपणन सहायता (TMA) योजना को संशोधित किया है।
- यह 1 अप्रैल, 2021 या उसके बाद 31 मार्च, 2022 तक प्रभावी रहेगी।
प्रमुख बिंद
परिचय:
(i) इसे वर्ष 2019 में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ देशों में वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
- सरकार ने वर्ष 2018 में एक कृषि निर्यात नीति को मंज़ूरी दी जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक शिपमेंट को दोगुना करके 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने है।
- APEDA (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) भारतीय कृषि एवं खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता के विस्तार की दिशा में काम करता है।
(ii) TMA के तहत सरकार भाड़ा शुल्क के एक निश्चित हिस्से की प्रतिपूर्ति करती है और कृषि उपज के विपणन के लिये सहायता प्रदान करती है।
- समय-समय पर निर्दिष्ट अनुमत देशों को पात्र कृषि उत्पादों के निर्यात के लिये अधिसूचित दरों पर सहायता उपलब्ध होगी।
(iii) संशोधित योजना में अन्य कृषि उत्पादों के साथ डेयरी उत्पादों को भी इसके दायरे में शामिल किया गया है और सहायता की दरों में वृद्धि की गई है।
- सहायता की दरों में समुद्र द्वारा निर्यात के लिये 50% और हवाई मार्ग हेतु 100% की वृद्धि की गई है।
(iv) TMA की प्रतिपूर्ति डीजीएफटी (विदेश व्यापार महानिदेशालय) के क्षेत्रीय अधिकारियों के माध्यम से की जाएगी।
उद्देश्य:
- कृषि उपज की माल ढुलाई और विपणन के अंतर्राष्ट्रीय घटक के लिये सहायता प्रदान करना।
- ट्रांस-शिपमेंट के कारण निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के निर्यात के परिवहन की उच्च लागत को कम करना।
- निर्दिष्ट विदेशी बाज़ारों में भारतीय कृषि उत्पादों के लिये ब्रांड पहचान को बढ़ावा देना।
कृषि निर्यात नीति, 2018
(i) कृषि निर्यात नीति का दृष्टिकोण भारत को कृषि में वैश्विक महाशक्ति बनाने तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिये उपयुक्त नीतिगत माध्यमों के ज़रिये भारतीय कृषि की निर्यात क्षमता का दोहन करना है।
(ii) नीति को इस उद्देश्य के साथ अनुमोदित किया गया था,
- निर्यात टोकरी (Export Basket) में विविधता लाकर, पहुँच और उच्च मूल्य एवं मूल्य वर्द्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना जिसमें खराब होने वाली वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
- नवीन, स्वदेशी, जैविक, नृजातीय, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना।
- बाज़ार तक पहुँच को बढ़ावा देना, बाधाओं तथा स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी मुद्दों से निपटने के लिये एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना।
- किसानों को विदेशी बाज़ार में निर्यात के अवसरों का लाभ प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाना।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)
(i) कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) एक गैर-व्यापारिक, वैधानिक निकाय हैजिसे भारत की संसद
द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के तहत दिसंबर 1985 में पारितकिया गया था।
(ii) यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। प्राधिकरण का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
(iii) इसे निर्यात प्रोत्साहन और अनुसूचित उत्पादों जैसे- फल, सब्जियाँ, मांस उत्पाद, डेयरी उत्पाद, मादक और गैर-मादक पेय आदि के विकास की ज़िम्मेदारी के साथ अनिवार्यकिया गया है।
(iv) इसे चीनी के आयात की निगरानी करने की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई है।
(v) वर्ष 2017 में APEDA ने एक मोबाइल एप- "किसान कनेक्ट"(Farmer Connect) लॉन्च किया जिसका उद्देश्य किसानों को उनके खेत के पंजीकरण की सुविधा प्रदान करने के लिये ऑन-लाइन प्रक्रिया लागू करना तथा राज्य सरकार द्वाराअधिकृत अनुमोदन और अधिकृत प्रयोगशालाओं द्वारा लैब नमूनाकरण पर नज़र रखना है।
कंटेनर की कमी
हाल ही में कंटेनर की व्यापक कमी का प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़े पैमाने पर देखा गया।
प्रमुख बिंदु
कमी का कारण:
(i) शिपिंग जहाज़ों की कम संख्या:
- कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप संचालित शिपिंग जहाज़ों की संख्या में कमी के चलते खाली कंटेनरों को कम संख्या में उठाया गया।
(ii) भीड़/जमाव:
- चीनी बंदरगाहों पर भीड़भाड़ के कारण अमेरिका जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर लंबी प्रतीक्षा अवधि भी कंटेनरों के लिये टर्नअराउंड समय में वृद्धि करने में योगदान दे रही है।
वैश्विक प्रभाव:
(i) एक सतत् वैश्विक आर्थिक सुधार ने व्यापार को गति प्रदान की है। कंटेनरों की उपलब्धता में कमी और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपेक्षा से अधिक गति से रिकवरी ने परिवहन लागत दरों में काफी वृद्धि की है।
- इससे परिवहन लागत दरों में 300% से अधिक की वृद्धि हुई है।
भारत पर प्रभाव:
(i) भारतीय निर्यातकों को अपने शिपमेंट में अधिक देरी का सामना करने के परिणामस्वरूप तरलता के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें निर्यात की गई वस्तुओं हेतु भुगतान प्राप्त करने के लिये लंबा इंतजार करना पड़ता है।
- तरलता से तात्पर्य उस सहजता से हैजिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सुरक्षा को उसके बाज़ार मूल्य को प्रभावित किये बिना तैयार नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।
(ii) भारत में जहाज़ों के लिये उच्च टर्नअराउंड समय जैसी संरचनात्मक समस्याएँ भी समस्या को बढ़ाती हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने अपने अधिकारियों को निर्यातकों के लिये कंटेनरों की उपलब्धता को आसान बनाने के उद्देश्य से लावारिस (Unclaimed) रखे गए कंटेनर्स, अस्पष्ट और ज़ब्त की गई वस्तुओं का शीघ्र निपटान करने का निर्देश दिया है।
आगे की राह
- सरकार खाली कंटेनरों के निर्यात को नियंत्रित कर सकती है। यह वित्तीय वर्ष के अंत तक सभी निर्यातों के लिये माल ढुलाई सहायता योजना को भी अधिसूचित कर सकती है, हालाँकि भारतीय निर्यात संगठनों के संघ (Federation of IndianExport Organisations) के अनुरोध पर माल ढुलाई दरों के सामान्य होने की उम्मीद है।
- सरकार उच्च दरों पर प्राथमिकता के आधार पर बुकिंग की पेशकश करने के लिये शिपिंग लाइनों को एक कदम पीछे धकेल सकती है, यह कहते हुए कि शिपिंग लाइनें पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बुकिंग कर सकती हैं।
प्रतिभूतियों के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली
हाल ही में ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (SEBI) ने स्टॉक एक्सचेंजों को शेयरों के लेन-देन को पूरा करने हेतु ‘T+2’ के स्थान पर ‘T+1’ प्रणाली को एक विकल्प के रूप में शुरू करने की अनुमति दी है।
- इसे तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से वैकल्पिक आधार पर प्रस्तुत किया गया है।
- ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’, 1992 में ‘भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992’ के प्रावधानों के अनुसार स्थापितएक वैधानिक निकाय है।
निपटान प्रणाली
- प्रतिभूति उद्योग में ‘निपटान अवधि’ का आशय व्यापार की तारीख (जब बाज़ार में आदेश निष्पादित किया जाता है) और निपटान तिथि (जब व्यापार को अंतिम रूप दिया जाता है) के बीच के समय से होता है।
- निपटान अवधि के अंतिम दिन खरीदार प्रतिभूति का धारक बन जाता है।
प्रमुख बिंदु
‘T+1’ प्रणाली
(i) यदि स्टॉक एक्सचेंज ‘स्क्रिप’ के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली का विकल्प चुनता है, तो उसे अनिवार्य रूप से न्यूनतम 6 महीने तक इसे जारी रखना होगा।
- ‘स्क्रिप’ कानूनी निविदा का एक विकल्प है, जो धारक को बदले में कुछ प्राप्त करने का अधिकार देता है।
(ii) इसके बाद यदि वह ‘T+2’ प्रणाली पर वापस जाना चाहता है, तो बाज़ार को एक माह का अग्रिम नोटिस देकर ऐसा कर सकता है। कोई भी ट्रांज़िशन (‘T+1’ से ‘T+2’ या इसके विपरीत) न्यूनतम अवधि के अधीन होगा।
‘T+1’ बनाम ‘T+2’ प्रणाली
(i) ‘T+2’ प्रणाली के तहत यदि कोई निवेशक शेयर बेचता है, तो व्यापार का निपटान आगामी दो कार्यदिवसों (T+2) के भीतर होता है और व्यापार को संभालने वाले मध्यस्थों को तीसरे दिन पैसा मिलता है तथा वह निवेशक के खाते में चौथे दिन पैसे हस्तांतरित करेगा।
- अतः इस प्रणाली में निवेशक को तीन दिन बाद पैसा मिलता है।
(ii) ‘T+1’ प्रणाली में व्यापार का निपटान एक ही कार्यदिवस में हो जाता है और निवेशक को अगले दिन पैसा मिल जाएगा।
- ‘T+1’ प्रणाली में हस्तांतरण हेतु बाज़ार सहभागियों को व्यापक पैमाने पर परिचालन या तकनीकी परिवर्तनों की आवश्यकता नहीं होगी और न ही यह विखंडन या निकासी अथवा निपटान पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जोखिम का कारण बनेगा।
‘T+1’ निपटान प्रणाली के लाभ:
(i) कम निपटान समय: एक छोटा चक्र न केवल निपटान समय को कम करता हैबल्कि उस जोखिम को संपार्श्विक बनाने के लिये आवश्यक पूंजी को भी कम करता है और मुक्त करता है।
(ii) अस्थिर व्यापार में कमी: यह किसी भी समय बकाया अनसेटल्ड ट्रेडों की संख्या को भी कम कर सकता है तथा इस प्रकार यह क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के लिये अनसेटल्ड एक्सपोज़र को 50% तक कम कर देता है।
- निपटान चक्र जितना संकीर्ण होगा, प्रतिपक्ष दिवाला/दिवालियापन के लिये व्यापार के निपटान को प्रभावित करने हेतु समय चक्र उतना ही कम होगा।
(iii) अवरुद्ध पूंजी में कमी: इसके अतिरिक्त व्यापार के जोखिम को कवर करने के लिये सिस्टम में अवरुद्ध पूंजी, किसी भी समय शेष
अनसुलझे ट्रेडों की संख्या के अनुपात में कम हो जाएगी।
(iv) प्रणालीगत जोखिमों में कमी: एक छोटा निपटान चक्र प्रणालीगत जोखिम को कम करने में मदद करेगा।
विदेशी निवेशकों की चिंताएँ:
- विदेशी निवेशकों ने विभिन्न भौगोलिक टाइम ज़ोन से परिचालन से जुड़े मुद्दों (सूचना प्रवाह प्रक्रिया और विदेशी मुद्रा समस्याओं) पर चिंता व्यक्त की है।
- T+1 प्रणाली के तहत दिन के अंत में उन्हें डॉलर के संदर्भ में भारत में अपने नेट एक्सपोज़र (Net Exposure) को हेज या बाधित करना भी मुश्किल होगा।
IRDAI (ट्रेड क्रेडिट इंश्योरेंस) दिशा-निर्देश, 2021
हाल ही में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने व्यापार ऋण बीमा (Trade Credit Insurance) के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
प्रमुख बिंदु
व्यापार ऋण बीमा :
(i) परिचय:
- व्यापार ऋण बीमा व्यवसायों को वस्तुओं और सेवाओं के गैर-भुगतान के जोखिम से बचाता है।
- यह आमतौर पर खरीदारों के एक पोर्टफोलियो को कवर करता है तथा एक चालान या कई चालानों के सहमति प्रतिशत की क्षतिपूर्ति करता हैजिसे लंबे समय तक डिफाॅल्ट या दिवाला/दिवालियापन के परिणामस्वरूप धन संशाधित नहीं किया गया हो।
- यह व्यापार को सुविधाजनक बनाकर किसी देश के आर्थिक विकास में योगदान देता है और भुगतान जोखिमों के कारण होने वाले व्यापार घाटे का समाधान कर आर्थिक स्थिरता में सुधार लाने में मदद करता है।
(ii) कवरेज:
- यह वस्तुओं और सेवाओं के विक्रेताओं या आपूर्तिकर्त्ताओं, फैक्टरिंग कंपनियों (फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011में परिभाषित) एवं बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को जारी किया जा सकता है।
- बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों और फैक्टरिंग कंपनियों को खरीदार से भुगतान प्राप्त न होने के कारण, वाणिज्यिक या राजनीतिक जोखिमों, खरीदे या भुनाए गए बिलों और चालानों के विरुद्ध होने वाले नुकसान को कवर करता है।
- वाणिज्यिक जोखिमों में खरीदार की दिवाला या विस्तारित चूक, अनुबंध की शर्तों के अधीन डिलीवरी के बाद खरीदार द्वारा अस्वीकृति और शिपमेंट से पहले अस्वीकृति एवं संग्रहकर्त्ताबैंक की विफलता के कारण भुगतान की प्राप्ति न होना शामिल है।
- राजनीतिक जोखिम कवर केवल भारत के बाहर के खरीदारों के मामले में उपलब्ध है और इसमें खरीदार के देश तथा भारत के बीच युद्ध की घटना एवं शत्रुता, गृहयुद्ध, विद्रोह, क्रांति, अशांति या खरीदार के देश में अन्य गड़बड़ी शामिल होगी।
प्रयोज्यता:
- ये दिशा-निर्देश बीमा अधिनियम, 1938 के तहत पंजीकृत सामान्य बीमा कारोबार करने वाले सभी बीमाकर्ताओं पर लागू होंगे।
- हालाँकि ECGC लिमिटेड (पूर्व में एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) को इन दिशा-निर्देशों के आवेदन से छूट दी गई है।
उठाए गए कदम के लाभ:
- यह सामान्य बीमा कंपनियों को देश में व्यवसायों के जोखिम का प्रबंधन करने, नए बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करने और व्यापार वित्तपोषण पोर्टफोलियो से जुड़े गैर-भुगतान जोखिम के प्रबंधन में मदद करेगा।
- यह सामान्य बीमा कंपनियों को इन उद्यमों की उभरती बीमा जोखिम ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) हेतु व्यवसायों को बेहतर बनाने के लिये अनुकूलित कवर के साथ व्यापार ऋण बीमा की पेशकश करने में सक्षम करेगा।
डिजिटल कृषि
हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने डिजिटल कृषि को आगे बढ़ाने के लिये निजी कंपनियों के साथ 5 समझौता ज्ञापनों (MOUs) पर हस्ताक्षर किये।
- ये पायलट परियोजनाएँ डिजिटल कृषि मिशन का हिस्सा हैं और राष्ट्रीय किसान डेटाबेस पर आधारित होंगी, जिसमें पहले से ही मौजूदा राष्ट्रीय योजनाओं का उपयोग करने वाले 5.5 करोड़ किसान शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
डिजिटल कृषि:
(i) संदर्भ: डिजिटल कृषि "सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) और डेटा पारिस्थितिकी तंत्र है जो सभी के लिये सुरक्षित पौष्टिक तथा किफायती भोजन प्रदान करते हुए खेती को लाभदायक एवं टिकाऊ बनाने हेतु समय पर लक्षित सूचना एवं सेवाओं के विकास व वितरण का समर्थन करता है।"
(ii) उदाहरण:
- कृषि जैव प्रौद्योगिकी पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों या जीवों के कुछ हिस्सों को बदल देती है; पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास करती है।
- परिशुद्ध कृषि (Precision Agriculture- PA) के अंतर्गत सेंसर, रिमोट सेंसिंग, डीप लर्निंग और अर्टीफिशियल इंटेलीजेंस तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) में हुए विकास को व्यवहार में लाकर दक्षता एवं पर्यावरणीय निरंतरता का संवर्द्धित उपयोग कर मृदा, पौधों एवं पर्यावरण की निगरानी के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर चर्चा करना है।
- डेटा मापन, मौसम निगरानी, रोबोटिक्स/ड्रोन प्रौद्योगिकी आदि के लिये डिजिटल और वायरलेस प्रौद्योगिकियाँ।
(iii) लाभ:
- कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
- मृदा के क्षरण को रोकती है।
- फसल उत्पादन में रासायनिक अनुप्रयोग को कम करती है।
- जल संसाधनों का कुशल उपयोग।
- गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है।
- किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाती है।
(iv) चुनौतियाँ:
- उच्च पूंजी लागत: यह किसानों को खेती के डिजिटल तरीकों को अपनाने के लिये हतोत्साहित करती है।
- छोटी जोत: भारतीय खेत आकार में बहुत छोटे होते हैं और 1-2 एकड़ खेत के भूखंड काफी आम हैं। साथ ही भारत में कृषि भूमि को पट्टे पर देना भी व्यापक रूप से प्रचलित है।
- भूमि किराए पर लेने और साझा करने की प्रथाएँ: सीमित वित्तीय संसाधनों और छोटे खेत के भूखंडों के कारण ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि जैसे उपकरण और मशीनरी हेतु एकमुश्त खरीद के बजाय भूमि को किराए पर देना और साझा करना काफी आम है।
- ग्रामीण क्षेत्र में निरक्षरता: बुनियादी कंप्यूटर साक्षरता की कमी ई-कृषि के तीव्र विकास में एक बड़ी बाधा है।
संबंधित सरकारी प्रयास
(i) एग्रीस्टैक: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का एक संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा।
(ii) डिजिटल कृषि मिशन: कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉक चेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है।
(iii) एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP): यह कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा, एप्लीकेशन और टूल्स का एक संयोजन है जो देश भर में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न सार्वजनिक और निजी आईटी प्रणालियों की निर्बाध अंतःक्रियाशीलता को सक्षम बनाता है। UFSP निम्नलिखित भूमिका निभाता है:
- यह कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करता है (जैसे ई भुगतान में UPI)।
- सेवा प्रदाताओं (सार्वजनिक और निजी) और किसान सेवाओं के पंजीकरण को सक्षम करता है।
- सेवा वितरण प्रक्रिया के दौरान आवश्यक विभिन्न नियमों और मान्यताओं को लागू करता है।
- सभी लागू मानकों, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (Application Programming Interface- API) और प्रारूपों के भंडार के रूप में कार्य करता है।
- किसानों को व्यापक स्तर पर सेवाओं के वितरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न योजनाओं और सेवाओं के बीच डेटा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना।
(iv) कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, इस योजना को वर्ष 2010-11 में 7 राज्यों में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों तक समय पर कृषि संबंधी जानकारी पहुँचाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग के माध्यम से भारत में तेज़ी से विकास को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2014-15 में इस योजना का विस्तार शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था।
(v) अन्य डिजिटल पहलें: किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, कृषि बाज़ार एप, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) पोर्टल आदि।
आगे की राह:
- प्रौद्योगिकी के उपयोग ने 21वीं सदी को परिभाषित किया है। जैसे-जैसे दुनिया क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा और अन्य नई तकनीकों की ओर बढ़ रही है, भारत के पास आईटी दिग्गज होने का लाभ उठाने और कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने का एक ज़बरदस्त अवसर है। जैसे कि हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में वृद्धि की, वैसे ही भारतीय खेती में आईटी क्रांति अगला बड़ा कदम होना चाहिये।
- उपग्रह इमेजिंग, मृदा स्वास्थ्य सूचना, भूमि रिकॉर्ड, फसल पैटर्न और आवृत्ति, बाज़ार डेटा एवं देश में एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
- डेटा दक्षता को डिजिटल एलिवेशन मॉडल (डीईएम), डिजिटल स्थलाकृति, भूमि उपयोग और भूमि कवर, मृदा मानचित्र आदि के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।