UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन

आर्थिक स्थिति
 ¯ भारत के तुर्की सुल्तानों की आर्थिक नीति मुस्लिम कानूनविदों की हनफी विचारधारा के वित्तीय सिद्धान्त के ढांचे पर आधारित थी। इसे तुर्की सुल्तानों ने गजनवियों से लिया था, जिससे उन्होंने गद्दी छीनी थी। 
 ¯ इस तरह दिल्ली सल्तनत के प्रमुख साधनों में कुछ विशेष करों के अतिरिक्त शरा में वर्णित पांच कर - खिराज, उस्त्र, खुम्स, जकात व जजिया शामिल थे।
 खिराज (गैर-मुसलमानों पर भूमि कर) : गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला भू-राजस्व खिराज कहलाता था। यह प्रायः उपज के दो-तिहाई से कम और आधा से अधिक नहीं लिया जाता था। उदाहरणस्वरूप, गुलाम शासकोंने उपज का तीसरा भाग और अलाउद्दीन ख़लजी व मुहम्मद तुगलक ने आधा भाग तक भूमि कर के रूप में वसूल किया था।
 उस्त्र (मुसलमानों पर भूमि कर) : मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर उस्त्र कहलाता था।
 खुम्स: वस्तुतः यह लूट का धन था जो युद्ध में शत्रु राज्य की जनता से लूटा जाता था। लूट का 4/5 भाग सैनिकों में बांट दिया जाता था व 1/5 भाग राजकोष में जमा होता था। अलाउद्दीन ख़लजी एवं मुहम्मद तुगलक ने 4/5 भाग राजकोष में जमा किया तथा शेष 1/5 भाग सैनिकों में बांटा।
 जकात (मुसलमानों पर धार्मिक कर) : मुसलमानों से धार्मिक कार्यों के लिए लिया जानेवाला कर जकात कहलाता था। वह आय का ढाई प्रतिशत होता था तथा इस्लाम के प्रचार व प्रसार पर खर्च किया जाता था।
 जजिया (गैर-मुसलमानों पर धार्मिक कर) : जजिया मूल रूप में एक प्रकार का गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला कर था जिसके बदले में उनके जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा होती थी तथा वे सैनिक सेवा से मुक्त कर दिए जाते थे। पर कालांतर में इसके साथ एक धार्मिक उद्देश्य जोड़ दिया गया तथा भारत में यही एक अतिरिक्त बोझ था, जो हिन्दुओं को उठाना पड़ता था। अन्धे, अपंग, साधु, भिखारी व पुजारी इस कर से मुक्त थे। इस कर के लिए समस्त गैर-मुस्लिम जनता को तीन भागों में विभाजित किया गया था। पहले वर्ग को 48 दिहराम, दूसरे वर्ग को 24 दिहराम और तीसरे वर्ग को 12 दिहराम देने होते थे।
 ¯ उपर्युक्त करों के अतिरिक्त भी अनेक करों से धन एकत्रित किया जाता था, जैसे - खानों से आय, भूमि में गड़े हुए धन की प्राप्ति, निःसंतान मरने वालों की सम्पत्ति, आयात-निर्यात कर इत्यादि। 
 ¯ आयात की वस्तुओं पर जो कर लगाया जाता था उसमें घोड़ों पर पांच प्रतिशत और अन्य व्यापारिक वस्तुओं पर ढाई प्रतिशत कर लगाया जाता था। यह कर मुसलमानों के लिए था; हिन्दुओं से इसके दुगुना वसूल किया जाता था। 
 ¯ इसके अतिरिक्त मकान कर, चारागाह कर, जल कर व अन्य साधारण कर भी लिए जाते थे। 
 ¯ सुल्तान को दी जाने वाली बहुमूल्य भेंट भी आय का प्रमुख स्रोत थी।
 ¯ युद्ध के दौरान स्थानीय निवासियों को सेना को अनेक तरह की सुविधायें प्रदान करनी पड़ती थी। 
 ¯ फिरोज तुगलक ने प्रजा की दशा सुधारने का प्रयत्न किया। राज्य की मांग कम कर दी गई। अन्य कर व अबवाब क्षमा कर दिए गए। 
 ¯ इस काल में भारत में कई व्यवसायों की उन्नति हुई। उनमें कपड़े बुनना, धातु का काम, पत्थर का काम, चीनी, नील एवं कागज बनाना आदि उल्लेखनीय है। 
 ¯ राजधानी में बड़ी मात्रा में कुछ व्यवसाय चलते थे। फीरोज तुगलक के समय में दिल्ली में रेशम के कारखानों में सहस्त्रों व्यक्ति काम करते थे। 
 ¯ अच्छी मलमल के लिए बंगाल एवं रेशम और साटन के लिए गुजरात में खम्भात प्रसिद्ध था। 
 ¯ आगरे में पत्थर का काम होता था। 
 ¯ बंगाल में खांड एवं कागज के कारखाने थे।
 ¯ भारत का व्यापार उस काल में समृद्धशाली था। मुल्तानी व्यापारी, मारवाड़ी, चेट्टी एवं बनजारे अधिकतर देश के अन्दर व्यापार करते थे। 
 ¯ भारत में रहने वाले अरब व अन्य व्यापारी विदेशांे से व्यापार करते थे। वे माल को लाल सागर के मार्ग से भूमध्य सागर के प्रदेशों में और उससे दूर के देशों में भी पहुंचाते थे। 
 ¯ स्थल के मार्गों से भी विदेशों में माल भेजा जाता था। व्यापारियों के काफिले मुल्तान-क्वेटा एवं कश्मीर के मार्ग से माल अफगानिस्तान, फारस और मध्य एशिया के प्रदेशांे में ले जाते थे। 
 ¯ रेशमी एवं सूती वस्त्र, अनाज, नील आदि भारत से बाहर भेजे जाते थे। 
 ¯ घोड़े, ऊंट, शराब, दरी और विलासिता का सामान बाहर से लाया जाता था।
 ¯ अमीर शाहजादे की भांति जीवन व्यतीत करते थे। साधारणतः वे रेशम तथा अन्य बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे। वे लोग बड़े-बड़े महलों में रहते थे और उनके पास नौकरों, दासों तथा दासियों की भरमार रहती थी। 
 ¯ बहुत से अमीर गायकों, वादकों तथा कवियों को भी अपने आश्रय में रखते थे। उन्हें घोड़े रखने का बड़ा शौक था। 
 ¯ परन्तु साधारण जनता की दशा अच्छी नहीं थी। वह अपनी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर पाती थी।

सामाजिक जीवन

 ¯ सल्तनत काल के तुर्की शासकों ने बहुत से हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया। 
 ¯ अनेक हिन्दू धन, वैभव व उच्च पदों को प्राप्त करने के लिए मुसलमान बन गए जबकि अपने जीवन व सम्पत्ति की रक्षा करने के लिए मुसलमान बनने वाले हिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक थी। 
 ¯ इस प्रकार तुर्कों के काल में एक बहुत बड़ा वर्ग भारतीय मुसलमानों का तैयार हो गया था। 
 ¯ तुर्क अपने को श्रेष्ठ मानते थे और भारतीय मुसलमानों को हीन दृष्टि से देखते थे। 
 ¯ सुल्तानों ने विदेशी व भारतीय मुसलमानों में भेदभाव बनाए रखा और विदेशी मुसलमानों के साथ न केवल उदारता का व्यवहार किया बल्कि उन्हें उच्च पदों पर आसीन किया। 
 ¯ अलाउद्दीन ख़लजी ने अपने शासन को दृढ़ आधार प्रदान करने के लिए तथा राज्य के विस्तार के लिए भारतीय मुसलमानों को भी महत्व दिया और उन्हें उच्च पदों पर प्रतिष्ठित करके अपने शासन की सेवा में लगाया। 
 ¯ उसने मलिक कफूर नामक धर्मान्तरित मुसलमान को नायब-उल-मुल्क बनाया तथा अन्य भारतीय मुसलमानों को भी उच्च पद प्रदान किया।
 ¯ उस काल में मुस्लिम समाज में अनेक वर्ग थे। सर्वाधिक प्रतिष्ठित व शक्तिशाली वर्ग उलेमाओं का था। 
 ¯ दूसरा महत्वपूर्ण व प्रभावशाली अमीरों का वर्ग था। इन अमीरों का शासन व्यवस्था में विशेष प्रभाव रहता था। विशेष सुविधाएं प्राप्त यह सम्मानित वर्ग राजनीति में सक्रिय भाग लेता था और विलासिता का जीवन व्यतीत करता था। 
 ¯ बलबन व अलाउद्दीन ख़लजी ने इन्हें नष्ट करने का प्रयास किया किन्तु ये पूर्णतः नष्ट नहीं किए जा सके। 
 ¯ तीसरा वर्ग मध्यम वर्ग था। उसमें सैनिक, मुंशी व व्यापारी मुसलमान सम्मिलित थे। यह वर्ग भी सुविधाभोगी वर्ग था तथा हिन्दुओं की तुलना में शासन के बहुत निकट था।
 ¯ हिन्दू समाज का सैनिक राजपूत वर्ग तथा ब्राह्मण समाज ही मुख्यतः सुल्तानों का निशाना बना। 
 ¯ अभी भी ब्राह्मणों का समाज में आदर था और शेष समाज उससे नेतृत्व की आशा करता था।
 ¯ मां-बाप अपनी कन्याओं का छोटी आयु में ही विवाह करने लगे, जिससे उनकी सुरक्षा का दायित्व समाप्त हो जाता था। 
 ¯ घर में बन्द हो जाने के कारण महिलाओं की शिक्षा भी बन्द हो गई और फिर धीरे-धीरे हिन्दू महिलाओं की दुर्दशा प्रारम्भ हो गई। 
 ¯ भारतीय मुसलमानों ने हिन्दुओं के साथ सम्बन्धों को बढ़ाया। इन मुसलमानों में हिन्दू रीति-रिवाज, हिन्दू रहन-सहन पहले से ही विद्यमान था, अतः धीरे-धीरे इनके बीच की खाई कम होने लगी। इनमें भी जाति व्यवस्था के बीज जो पहले से विद्यमान थे, अब पुनः पनपने लगे। 
 ¯ उनके सम्प्रदाय बन गए और वे मजारों की पूजा व मिन्नतें मांगने लगे। दूसरी ओर हिन्दुओं ने मुसलमानों की भाषा, वेश-भूषा व शिष्टाचार अपना लिया। 
 ¯ परदा प्रथा हिन्दुओं में भी प्रचलित हो गई।




 

The document आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|679 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. दिल्ली सल्तनत क्या है और इसका इतिहास क्या है?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत, 1206 ईस्वी में गठित हुई थी और यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसका इतिहास दिल्ली में स्थापित सल्तानत के राजकीय और सामाजिक जीवन को दर्शाता है। यह सल्तानत द्वारा कायम की गई व्यापक स्वामित्व की संरचना और उसके अधिकारियों की राजनीतिक और सामरिक कार्रवाई इसके महत्वपूर्ण पहलुओं में शामिल है।
2. दिल्ली सल्तनत के दौरान आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत के दौरान आर्थिक स्थिति विषम थी। वहां किसानों की अधिकांशता थी और व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियाँ मुख्य आय के स्रोत थीं। तथापि, अस्थायी और स्थायी विशेषाधिकार शुल्क, कर और उपज की धारा के साथ आय उठाई जाती थी। व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों में विदेशी व्यापारी भी शामिल थे और यह विदेशी व्यापारी भागीदारी के माध्यम से सल्तानत की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करते थे।
3. दिल्ली सल्तनत के दौरान सामाजिक जीवन कैसा था?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत के दौरान सामाजिक जीवन विविधताओं के साथ व्याप्त था। सल्तानत के अधिकारियों और व्यापारियों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में विदेशी महकमों का बहुत अधिक प्रभाव था। समाज में विभाजन था और इस्लामी साम्राज्य के संरक्षण के लिए अहमियत थी। धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को महत्व दिया जाता था और इस्लामी संस्कृति प्रमुख थी।
4. यूपीएससी और आईएएस UPSC परीक्षा के लिए इस विषय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न क्या हो सकते हैं?
उत्तर: यूपीएससी और आईएएस UPSC परीक्षा में इस विषय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न हो सकते हैं, जैसे: - दिल्ली सल्तनत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन की विशेषताएं क्या थीं? - दिल्ली सल्तनत के किस प्रांत में व्यापार और व्यापारिक गतिविधियाँ सबसे अधिक थीं? - दिल्ली सल्तनत के दौरान समाज में किस प्रकार का विभाजन था? - दिल्ली सल्तनत में विदेशी व्यापारियों का कार्यक्रम कैसा था और इसने सल्तानत की आर्थिक स्थिति को कैसे प्रभावित किया? - दिल्ली सल्तनत के दौरान कौन-कौन से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ महत्वपूर्ण थीं और क्यों?
5. दिल्ली सल्तनत के दौरान आर्थिक स्थिति के बारे में अधिक जानने के लिए कौनसी स्रोतें उपयोगी हो सकती हैं?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत के दौरान आर्थिक स्थिति के बारे में अधिक जानने के लिए निम्नलिखित स्रोतें उपयोगी हो सकती हैं: - इतिहास के पुस्तकें और ग्रंथ - वैदिक पत्रिकाएं और ज
398 videos|679 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

pdf

,

आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत

,

Sample Paper

,

आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Summary

,

यूपीएससी

,

video lectures

,

Exam

,

MCQs

,

Extra Questions

,

shortcuts and tricks

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

study material

,

इतिहास

,

Semester Notes

,

Free

,

practice quizzes

,

यूपीएससी

,

इतिहास

,

आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन - दिल्ली सल्तनत

,

यूपीएससी

,

Objective type Questions

,

इतिहास

,

Important questions

,

past year papers

,

ppt

,

mock tests for examination

,

Viva Questions

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Previous Year Questions with Solutions

;