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आर्य समाज - सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागरण, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आर्य समाज
 ¯ आर्य समाज आंदोलन का प्रसार प्रायः पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। 
 ¯ यहाँ यह स्मरणीय है कि न तो स्वामी दयानन्द और न उनके गुरु स्वामी विरजानन्द ही पाश्चात्य शिक्षा-से प्रभावित हुए थे। ये दोनों ही शुद्ध रूप से वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे और उन्होंने ”पुनः वेद की ओर चलो“ का नारा लगाया। 
 ¯ उत्तर वैदिक काल से आज तक के सभी अन्य मत मतान्तरों को उन्होंने पाखण्ड अथवा झूठे धर्म की संज्ञा दी।
 ¯ मूलशंकर (1824-83) जो प्रायः दयानन्द के नाम से जाने जाते हैं , का जन्म 1824 में गुजरात की मौरवी रियासत के निवासी एक ब्राह्मण कुल में हुआ।
 ¯ इनके पिता जो स्वयं वेदों के महान विद्धान थे, वे उन्हें वैदिक वाङ्मय, न्याय दर्शन इत्यादि पढ़ाया। 
 ¯ दयानन्द की जिज्ञासा ने उन्हें योगाभ्यास इत्यादि करने पर बाध्य किया तथा उन्होंने गृहत्याग दिया। 
 ¯ 15 वर्ष तक स्थान-स्थान पर घूमते रहे। 
 ¯ 1860 में वे मथुरा पहुँचे और स्वामी विरजानन्दजी से वेदों के शुद्ध अर्थ तथा वैदिक धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा प्राप्त की। 
 ¯ 1863 में उन्होंने झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए ‘पाखण्ड खण्डिनी पताका’ लहराई। 
 ¯ 1875 में उन्होंने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनःस्थापना करना था। 
 ¯ 1877 में आर्य समाज लाहौर की स्थापना हुई जिसके पश्चात् आर्य समाज का अधिक प्रचार हुआ। 
 ¯ स्वामी दयानन्द का उद्देश्य था कि भारत को धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय रूप से एक कर दिया जाए। उनकी इच्छा थी कि आर्य धर्म ही देश का समान धर्म हो। 
 ¯ राजा राममोहन राय के समान दयानंद ने मुद्रित पुस्तकों के सहारे अपने विचारों को प्रकाशित किया। 
 ¯ उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है, ”जिसने उनके सिद्धांत की व्याख्या की तथा इसे एक अनुपम सिद्धांत के रूप में रखा।“ 
 ¯ किन्तु उन दोनों में अंतर भी था। दयानंद ने सीधे जनता को उपदेश दिया - उन्होंने अपने उपदेशों को बौद्धिक श्रेष्ठ व्यक्तिगण तक सीमित नहीं किया (जैसा राजा राम मोहन राय ने किया था)। फलतः उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ी और उनके उपदेशों ने विशेषकर पंजाब और संयुक्त प्रांत में गहरी जड़ जमा ली।
 ¯ उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके काम को उनके अनुयायियों ने जारी रखा। इनमें प्रमुख थे लाला हंसराज, पंडित गुरुदत्त, लाल लाजपत राय और स्वामी श्रद्धानंद।
 ¯ मगर आर्य समाज वत्र्तमान युग की तर्कवादिता से नहीं बच पाया है। इसमें पहले से ही एक ऐसा वर्ग बढ़ रहा था जो अंग्रेजी शिक्षा की कीमत जानता था तथा अधिक उदार कार्यक्रम के पक्ष में था। 
 ¯ इसके मुख्य व्याख्याता थे लाल हंसराज तथा इसका प्रत्यक्ष प्रतीक है लाहौर का दयानंद ऐंग्लो-वैदिक कालेज। इसके विपरीत हम 1902 ई. में स्थापित प्रसिद्ध हरद्वार गुरुकुल को ले सकते हैं , 

स्मरणीय तथ्य
 ¯     रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा, ”समस्त मानव समुदाय में आधुनिक युग का महत्व पूर्णरूपेण समझने वाले राममोहन अपने समय के अकेले व्यक्ति थे। वह जानते थे कि मानव सभ्यता का आदर्श स्वतंत्रता के अकेलेपन में नहीं वरन विचार एवं कर्म के समस्त स्वरूपों में व्यक्तियों तथा राष्ट्रों के सहअस्तित्व के भाईचारे में है“।
 ¯     सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने देरोजियो का वर्णन करते हुए लिखा कि वे ”बंगाल की आधुनिक सभ्यता के जन्मदाता, हमारी प्रजाति के आदरणीय पूर्वज, जिनके गुण आदर पैदा करेंगे एवं जिनकी असफलताओं को सौम्यता से देखा जाएगा, थे।“
 ¯     रहनुमाई मज्दा यस्नामः यह एक पारसी संगठन था जो 1851 में दादा भाई नौरोजी के संरक्षण में शुरू हुआ। पारसी धर्म एवं समुदाय के लिए इसने सराहनीय सेवा की।
 ¯     कादियान (पंजाब) के मिर्जा गुलाम मुहम्मद ने अपने आप को ‘महदी’ घोषित कर दिया एवं अहमदिया आंदोलन शुरुआत की। सामाजिक सुधारों के मामले में वह एक बड़ा प्रतिक्रियावादी था। उसने पर्दा प्रथा को हटाने का विरोध किया तथा तलाक एवं बहु-विवाह का समर्थन किया।
 ¯     गोखले की तिलक से पटरी नहीं बैठी, अतः उन्होंने 1885 में सर्वेन्ट्स आॅफ इंडिया सोसायटी की शुरुआत की। इसका लक्ष्य था भारत में राष्ट्रीय कार्यकर्ता तैयार करना एवं भारत के हितों को सभी तरीकों से बढ़ावा देना।
 ¯     श्री एन. एम. जोशी ने 1909 में सोसल सर्विस लीग की स्थापना की। उनका ध्येय भारतीय समाज का सर्वेक्षण करके इसके सुधार के कार्यक्रमों की प्रकृति एवं क्षेत्र निश्चित करने का था।
 ¯     लार्ड बेंटिक, विल्किंसन आदि के प्रयासों से बालबध जैसी बुरी प्रथा पूरी तरह समाप्त हो गई।
 ¯     1833 के चार्टर एक्ट ने भारत में गुलामी का खात्मा कर दिया। गुलामों का व्यापार 1843 में गैरकानूनी बना दिया गया एवं 1860 में पेनल कोड के तहत इसे जुर्म माना गया।
 ¯     राय साहब हर विलास सारदा ने 1928 में विधान सभा (लेजिस्लेटिव असेम्बली) में बाल-विवाह को रोकने के लिए एक बिल रखा। यह 1928 में एक्ट बन गया एवं 1929 का सारदा एक्ट कहलाया। इसके अनुसार लड़कियां 14 वर्ष के पूर्व एवं लड़के 18 वर्ष के पूर्व शादी नहीं कर सकते थे।

जो आधुनिक जीवन में वैदिक आदर्शों को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न करता है।
 ¯ अपने जीवन के प्रारंभ में दयानंद ने ब्रह्म समाज से संधि करने की चेष्टा की थी। इसके वास्ते 1869 ई. में कलकत्ते में एक सम्मेलन हुआ। मगर इसका कोई फल न मिला। 
 ¯ अंत में आर्य समाज ने पंजाब मंे ब्रह्म समाज आंदोलन को दबा कर समाप्त कर डाला, जहाँ लाहौर में पहले ही एक ब्रह्म समाज 1863 ई. में स्थापित किया गया था।

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FAQs on आर्य समाज - सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागरण, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. आर्य समाज क्या है?
उत्तर: आर्य समाज एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक सुधार आंदोलन है जो 19वीं सदी में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यह समाज वेदों की पुनर्जागरण पर आधारित है और समाज में अन्याय, अंधविश्वास और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का मकसद रखता है।
2. आर्य समाज की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर: आर्य समाज की स्थापना 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा की गई थी।
3. आर्य समाज के मुख्य सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर: आर्य समाज के मुख्य सिद्धांत कथनी, मननीय एवं करनीयता का सिद्धांत है। यह समाज वेदों को आधार बनाता है और उनकी अध्ययन, प्रचार और उनके आदर्शों के अनुसरण को महत्व देता है।
4. आर्य समाज की प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?
उत्तर: आर्य समाज की प्रमुख गतिविधियों में वेदों के प्रचार और उनके अध्ययन, शिक्षा का प्रशासन और वैदिक संस्कृति के प्रोत्साहन शामिल हैं। इसके अलावा, आर्य समाज संघटनाओं के माध्यम से सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई भी लड़ता है।
5. आर्य समाज की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपराएं क्या हैं?
उत्तर: आर्य समाज की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपराएं वेदों के अध्ययन, वैदिक धर्म के प्रचार और उनके आदर्शों के अनुसरण पर आधारित हैं। इसके अलावा, यह समाज स्त्रीशक्ति को महत्व देता है और अन्याय, अंधविश्वास और अनर्थपूर्ण सामाजिक प्रथाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ता है।
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