UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  गुलाम वंश (1206-1290 ई.) और ख़लजी वंश(1290-1320 ई.) - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

गुलाम वंश (1206-1290 ई.) और ख़लजी वंश(1290-1320 ई.) - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

गुलाम वंश (1206-1290 ई.) और ख़लजी वंश(1290-1320 ई.)

I. गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
 (i)  कुतबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)
 (ii) आरामशाह (1210-1211 ई.)
 (iii) इल्तुतमिश (1211-1236 ई.)
 (iv) रजिया (1236-1240 ई.)
 (v) बहरामशाह (1240-1242 ई.)
 (vi) अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-46 ई.)
 (vii) नसीरुद्दीन महमूद (1246-65 ई.)
 (viii) बलबन (1266-87 ई.)
 (ix) कैकूबाद (1287-1290 ई.)

II.  खलजी वंश (1290-1320 ई.)
 (i) जलालुद्दीन फिरोज ख़लजी (1290-96 ई.)
 (ii) अलाउद्दीन ख़लजी (1296-1316 ई.)
 (iii) कुतबुद्दीन मुबारक शाह ख़लजी (1316-20 ई.)

III. तुगलक वंश (1320-1412 ई.)
 (i) गयासुद्दीन तुगलक (1320.1325 ई.)
 (ii) मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ईण्)
 (iii) फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ईण्)
 (iv) गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय
 (v) अबूबक्र
 (vi) मुहम्मदशाह
 (vii) अलाउद्दीन सिकंदरशाह     
 (viii) नसीरुद्दीन महमूद (1394-1412 ई.)

IV.  सैय्यद वंश (1414-1451 ई.)
 (i) खि़ज्र खान (1414-1421 ई.)
 (ii)मुबारकशाह (1421-1434 ई.)
 (iii) मुहम्मद शाह (1434 - 1445 ई.)
 (iii) अलाउद्दीन आलमशाह (1445-51 ई.)

V.  लोदी वंश (1451-1526 ई.)
 (i) बहलोल लोदी (1451-89 ई.)
 (ii)सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)
 (iii) इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)

 ¯ इनमें प्रथम तीन शासक वंश तुर्क थे और लोदी अफगानी थे।

गुलाम सुल्तान (1206-1290 ई.)

 ¯ मुहम्मद गोरी के आक्रमण के फलस्वरूप भारत में पंजाब से लेकर बंगाल तक तुर्क राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। चूंकि इस नए राज्य की राजधानी दिल्ली थी, अतः इसे दिल्ली सल्तनत कहा जाता है। 
 ¯ दिल्ली के सुल्तानों में आरम्भिक शासक ममलूक थे। 

¯ वे गुलाम सुल्तान भी कहे जाते हैं क्योंकि उनमें से कुछ तो गुलाम थे और कुछ गुलामों के पुत्र थे जो सुल्तान बन गए थे।
 कुतबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)
 ¯ मुहम्मद गोरी को कोई पुत्र नहीं था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका सेनापति कुतबुद्दीन ऐबक उसके भारतीय साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। तराइन के युद्ध के उपरांत कुतबुद्दीन ने भारत में तुर्की सल्तनत के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। 
 ¯ मुहम्मद गोरी का एक दूसरा गुलाम ताजूद्दीन यल्दोज गजनी का शासक बना। 
 ¯ उसने कुतबुद्दीन ऐबक के राज्य को अपने राज्य में मिला लेना चाहा पर उसको इसमें सफलता नहीं मिली। 
 ¯ कुतबुद्दीन बहुत उदार शासक था। उसकी उदारता के कारण ही उसे लाखबख्श (लाखों का दान देने वाला) कहा जाता है।
 ¯ सन् 1210 ई. में चैगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

इल्तुतमिश (1211-1236 ई.)

 ¯ ऐबक की मृत्यु के बाद कुछ अमीरों ने उसके पुत्र आरामशाह को गद्दी पर बैठाया। वह निर्बल और अयोग्य शासक था। 
 ¯ जल्द ही ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने आरामशाह को पराजित कर पदच्युत कर दिया और खुद शासक बन बैठा। 
 ¯ इल्तुतमिश को ही भारत में तुर्क साम्राज्य का वास्तविक संगठन-कर्ता माना जाता है। वह इल्बरी तुर्क था। 
 ¯ उसी के शासन काल में मंगोलांे का खतरा पश्चिमोत्तर भारत पर मंडराना शुरू हुआ। 
 ¯ चंगेज खां के नेतृत्व में मंगोल शासक एशिया की सबसे बड़ी राजनीतिक और सैनिक शक्ति के रूप में उभरे थे। 
 ¯ मंगोलांे ने सिंध और पश्चिमी पंजाब को लूटा लेकिन भीषण गर्मी की वजह से वे भारत में आगे नहीं बढ़े। 
 ¯ सल्तनत के कई भाग अपने को स्वतंत्र घोषित कर चुके थे। 
 ¯ पर इल्तुतमिश ने साहस के साथ परिस्थिति का सामना किया। उसने अपने प्रतिद्वंद्वियों के मनसूबे को नाकाम कर दिया। 
 ¯ 1229 ई. में इल्तुतमिश को बगदाद के खलीफा का अधिकार पत्र मिला। इससे उसकी सत्ता को नया बल मिला तथा उसे मुस्लिम संसार में एक दर्जा मिल गया। 
 ¯ 1234 ई. में इल्तुतमिश ने मालवा राज्य पर आक्रमण कर भिलसा दुर्ग पर अधिकार कर लिया। 
 ¯ इसके बाद उसने उज्जैन पर चढ़ाई की और उसे लूटा। विख्यात विक्रमादित्य की एक मूर्ति दिल्ली लाई गई। 
 ¯ उसका अंतिम अभियान बनियान के विरुद्ध हुआ, लेकिन रास्ते में उसे ऐसा भयंकर रोग हुआ कि वह डोली में दिल्ली लाया गया। यह रोग घातक सिद्ध हुआ और 1236 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। 
 ¯ उसने महान सूफी संत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी के सम्मान में 1231-32 ई. में कुतुबमीनार का निर्माण पूरा करवाया। 
 ¯ उसने सुगठित एवं सुव्यवस्थित शासन प्रणाली का श्री गणेश किया।

रजिया (1236-1240 ई.)

 ¯ अपने अयोग्य एवं विलासी पुत्रों की तुलना में अपनी प्रतिभासम्पन्न एवं साहसी पुत्री रजिया को इल्तुतमिश ने स्वयं अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् रजिया सिंहासन पर अधिकार करने में सफल भी हुई। 
 ¯ प्रारम्भ में इल्तुतमिश के अमीरों ने सुल्तान की इच्छाओं एवं मनोनयन की उपेक्षा कर उसके सबसे बड़े जीवित पुत्र रूक्नुद्दीन फिरोज को सिंहासनारूढ़ किया। लेकिन वह अयोग्य एवं विलासी था, अतः उसको पदच्युत कर रजिया को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। 
 ¯ वह सदैव पुरुषों की वेशभूषा पहनती थी और युद्ध में स्वयं सेना का नेतृत्व करती थी। 
 ¯ कुलीन वर्गीय तुर्क उसके óी होने के कारण असंतुष्ट थे। उस पर अबीसीनिया के अमीर याकूत खां से प्रेम करने का आरोप लगाया गया। 
 ¯ सरहिन्द के राज्यपाल अल्तूनिया के नेतृत्व में तुर्की अमीरों ने विद्रोह किया। रजिया को बन्दी बना लिया गया। चतुर रजिया ने अल्तूनिया को अपनी ओर आकृष्ट कर उससे विवाह कर लिया। 
 ¯ इस बीच दिल्ली की गद्दी पर रजिया के भाई बहराम का अधिकार हो गया था। रजिया अपने पति के साथ दिल्ली की ओर बढ़ी। यद्यपि उसने बहादुरी के साथ युद्ध किया, लेकिन पराजित हुई। वे दोनों भागकर जब एक जंगल में सो रहे थे, तो डाकुओं ने उनकी हत्या कर दी।

बलबन का युग (1246-1287 ई.)

 ¯ रजिया के बाद दिल्ली की गद्दी पर मुइजुद्दीन बहराम और उसके बाद अलाउद्दीन मसूद आरूढ़ हुए। दोनों ही शासक अयोग्य साबित हुए। 
 ¯ अंततः अमीरों तथा मलिकों ने 1246 ई. में इल्तुतमिश के छोटे पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को सिंहासन पर बैठा दिया। इस तरह तुर्क सरदारों और राजतंत्र के बीच संघर्ष चलता रहा। 
  

दिल्ली सल्तनत

  • हशमे अतराफ - प्रांतों की सेना।
  • हशमे कल्ब - दिल्ली की सेना।
  • जिम्मी - किसी स्वतंत्र राज्य को जीतने के बाद यदि वहां की जनता इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करती थी, परन्तु जजिया कर देना स्वीकार कर लेती थी, उसे जिम्मी कहा जाता था।
  • मैमार - इमारतों का निर्माण करनेवाले इंजीनियर।
  • तफसीर - कुरान का अनुवाद एवं समीक्षा।
  • हदीस - मुहम्मद साहब के कथनों तथा उनके जीवन से संबंधित कहानियों का संग्रह।
  • सदका - एक प्रकार का धार्मिक कर।
  • सभा - सूफियों का संगीत तथा नृत्य।
  • बक्फ - वह धन-सम्पत्ति व भूमि जिसे धार्मिक कार्यों हेतु सुरक्षित रखा जाता है।
  • अक्ता - वह भूमि जिसकी आय सेना के सरदारों को सेना रखने एवं उचित देख-भाल के लिए दी जाती थी। अक्ता भूमि उन अक्तादारों से वापस ले ली जाती थी जो सेना में रहने के योग्य नहीं रहते थे।
  • मुक्ता - बड़ी अक्ता के मालिक मुक्ता कहलाते थे।
  • मिल्क - वह भूमि जो विद्वानों को एवं धार्मिक कार्यों के लिए दी जाती थी। यह वंशानुगत होती थी।
  • मसाहत - भूमि की पैमाइश।
  • मवास - उस घने जंगल एवं पहाड़ी इलाके वाले भाग को कहते थे जहां प्रायः विद्रोही विद्रोह करके छिप जाते थे।
  • बलाहर - साधारण किसान।
  • नौबत - कई वाद्य यंत्रों का सम्मिलित नाम।
  • फिकह - इस्लामी धर्मनीति का ज्ञान।
  • इदरार - विद्वानों एवं धार्मिक लोगों को दी जाने वाली आर्थिक मदद।

¯ उलूग खां नामक एक तुर्क सरदार ने, जो बलबन के नाम से जाना जाता है, धीरे-धीरे समस्त शक्ति अनौपचारिक रूप से हथिया ली और अंत में सन् 1265 में वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। 
 ¯ बलबन इल्तुतमिश के महत्वपूर्ण चेहलगान (चालीस) नामक तुर्की दासों के प्रसिद्ध दल का था। 
 ¯ अनेक तुर्की सरदार बलबन के बढ़ते प्रभाव से भयभीत थे। वे बलबन के विरुद्ध षड़यंत्र रचकर उसे सुल्तान के नायब पद से अपदस्थ करवा दिए। 
 ¯ बलबन की जगह इमादुद्दीन रैहान नामक एक भारतीय मुसलमान की नियुक्ति हुई। लेकिन बलबन फिर अपने पद को पाने में सफल हुआ। 
 ¯ 1265 ई. में सुल्तान महमूद की मृत्यु के बाद बलबन स्वयं गद्दी पर काबिज हुआ।
 ¯ उसके समक्ष तीन प्रमुख समस्याएं - मंगोलों के आक्रमण से राज्य की रक्षा करना, विद्रोहों का दमन करना और षड्यंत्रकारी एवं विरोधी मुसलमानों तथा विद्रोही हिन्दुओं को शांत करना था। बलबन को इन समस्याओं को सुलझाने में इल्तुतमिश से अधिक सफलता मिली। 
 ¯ उत्तर में मंगोलों के आक्रमणों से उसने सल्तनत की रक्षा की। 
 ¯ सल्तनत के अंदर और उसकी सीमा पर विद्रोह करने वाले स्थानीय शासकों से उसने कई लड़ाइयां लड़ीं। 
 ¯ उसके सरदार इस समय बड़े शक्तिशाली हो गए थे और वे सुल्तान के सम्मान का भी ध्यान नहीं रखते थे और उसको धमकी भी देते रहते थे। बलबन के सामने यह सबसे बड़ी समस्या थी। धीरे-धीरे, किन्तु दृढ़ता से बलबन ने उनकी शक्ति को नष्ट कर दिया और अंत में सुल्तान ही सबसे अधिक शक्तिशाली बन गया। 
 ¯ उसने सेना के संगठन में तथा शासन-प्रणाली में कुछ परिवर्तन किए जिससे कुछ हद तक उसको अपनी समस्याओं को सुलझाने में सफलता मिली। 
 ¯ बलबन सुल्तान की निरंकुश शक्ति में विश्वास करता था। सुल्तान की शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता था। उसने हख्मी और सासानी वंश के ईरान के महान सम्राटों के विषय में सुना था और अपने को वह उन्हीं के समान बनाना चाहता था।
 ¯ उसने सिजदा और पाबोस (सम्राट के सम्मुख झुककर उसके पैरों को चूमना) की प्रथा को अपने दरबार में शुरू करवाया जो मूलतः ईरानी प्रथा थी और जिन्हें गैर-इस्लामी समझा जाता है। 
 ¯ इसने अपने शत्रुओं के प्रति ‘लौह और रक्त’ की नीति अपनाई जिसमें पुरुषों को मार दिया जाता था और बच्चों व स्त्रियों को दास बनाया जाता था।

ख़लजी वंश (1290-1320 ई.)

 ¯ 1286 ई. में बलबन की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली में फिर अराजकता का दौर शुरू हुआ। सुल्तान का ज्येष्ट पुत्र शाहजादा मुहम्मद ‘शहीद’ मंगोलों के साथ युद्ध में मारा गया था। 
 ¯ बलबन का दूसरा पुत्र बोगरा खां, जो बंगाल प्रांत का शासक था, बंगाल में ही शासन करना चाहा था और दिल्ली की गद्दी संभालने में अनिच्छा व्यक्त की थी। 
 ¯ अतः बलबन ने अपने पौत्र कैकूबाद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। वह एक विलासी और अयोग्य शासक था। इस समय राज्य के अमीर भी दो दलों, तुर्की अमीर और ख़लजी अमीर, में विभाजित हो गए। 
 ¯ ख़लजी अमीरों ने अपने प्रतिद्वंद्वी प्रमुख तुर्की अमीरों की हत्या करवा दी। कैकूबाद की भी किलोखरी के उसके शीश-महल में 1290 ई. में हत्या कर दी गई।

जलालुद्दीन फिरोज ख़लजी (1290-1296 ई.)

 ¯ बलबन के अयोग्य उत्तराधिकारियों को सिंहासन से वंचित करने में ख़लजी सरदारों का नेतृत्व जलालुद्दीन फिरोज ने किया था। वह 1290 ई. में किलोखरी के महल में सिंहासन पर बैठा। 
 ¯ जलालुद्दीन ख़लजी ने केवल छह वर्षों तक शासन किया। इस अल्पकालीन अवधि में उसने बलबन के कठोर शासन में नरमी लाने का प्रयास किया। 
 ¯ वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसका स्पष्ट विचार था कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए और चूंकि भारत की अधिकांश जनता हिन्दू थी, अतः सही अर्थों में यहां कोई भी राज्य इस्लामी राज्य नहीं हो सकता था। 
 ¯ 1292 ई. में हलाकू खां के एक पौत्र के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया। सुल्तान ने उन्हें परास्त किया लेकिन शांतिपूर्वक दिल्ली में बसने की अनुमति दे दी। 
 ¯ इन मंगोलों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और ये ‘नए मुसलमान’ कहलाए। आगे चलकर ये ‘नए मुसलमान’ षड्यंत्र और असंतोष का केन्द्र बने। 
 ¯ इस शांतिप्रिय सुल्तान की भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं हो सकी। उसका भतीजा एवं दामाद अलाउद्दीन ने छल से 1296 ई. में उसकी हत्या कर दी।

अलाउद्दीन ख़लजी (1296-1316 ई.)

 ¯ अपने चाचा और ससुर जलालुद्दीन की हत्या कर अलाउद्दीन ने गद्दी हासिल की। 
 ¯ अवध के गवर्नर के रूप में अलाउद्दीन ने दक्षिण में देवगिरी पर आक्रमण कर अपार सम्पत्ति इकट्ठा कर ली थी। इस खजाने पर कब्जा करने की अभिलाषा से जलालुद्दीन अपने भतीजे के पास इलाहाबाद के निकट कड़ा नामक स्थान पर गया था। 
 ¯ अपने चाचा की हत्या करने के बाद अलाउद्दीन ने सोने को पानी की तरह बहाकर अधिकांश मलिकों और सैनिकों को अपने वश में कर लिया। 
 ¯ अपने विरोधियों को आतंकित करने के लिए अलाउद्दीन ने बहुत कड़ाई और निष्ठुरता से काम लिया। उसने मलिकों को अपने विरुद्ध षड़यंत्र रचने पर रोक लगाने के लिए कई कानून बनाए। 
 ¯ सुल्तान की अनुमति के बिना वे प्रीतिभोज, उत्सव या विवाह नहीं कर सकते थे। 
 ¯ उसने मदिरापान और मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। 
 ¯ मलिकों की कथनी और करनी की सूचना प्राप्त करने के लिए उसने गुप्तचर विभाग का गठन किया।
 ¯ इन उपायों से तत्काल तो अलाउद्दीन को फायदा हुआ, पर आगे चलकर यह तरीका उसके वंश के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। 
 ¯ पुराना मलिक वर्ग नष्ट कर दिया गया। नये मलिक वर्ग को यह एहसास कराया गया कि चाहे जो कोई भी व्यक्ति दिल्ली की गद्दी पर बैठे, उसे वे स्वीकार करें। 
 ¯ 1316 ई. में अलाउद्दीन ख़लजी की मृत्यु के बाद यह तथ्य और भी स्पष्ट हो गया। 
 ¯ अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उसके कृपापात्र मलिक कफूर ने उसके अन्य पुत्रों को बंदी या अंधा बनाकर उसके अल्प वयस्क पुत्र को सिंहासन पर बैठा दिया।
 ¯ शीघ्र ही महल-रक्षकों ने कफूर को मार डाला और अलाउद्दीन का दूसरा पुत्र मुबारकशाह सिंहासन पर बैठा लेकिन धीरे-धीरे समस्त शक्तियाँ खुसरो नामक वजीर के हाथों में चली गईं जो हिन्दू से मुसलमान बना था। 
 ¯ कुछ समय के पश्चात् मुबारक शाह का वध कर खुसरो गद्दी पर बैठा। 
 ¯ 1320 ई. में गयासुद्दीन तुगलक के नेतृत्व में कुछ अधिकारियों ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया। राजधानी दिल्ली के बाहर एक घनघोर युद्ध में खुसरो पराजित हुआ और मारा गया।
 ¯ 1299 ई. के गुजरात अभियान के दौरान भारी लूट-पाट की गई। गुजरात का राजा रायकर्ण घबराकर भाग खड़ा हुआ। इसी अभियान में मलिक कफूर को पकड़ा गया जो आगे चलकर अलाउद्दीन का विश्वासपात्र बना और दक्षिण भारत की विजय का नेतृत्व किया। 
 ¯ गुजरात विजय के बाद अलाउद्दीन ने अपना ध्यान राजस्थान की ओर केन्द्रित किया। प्रारम्भिक अभियानों की विफलता के बाद 1301 ई. में अलाउद्दीन ने व्यक्तिगत रूप से रणथम्भौर के विरुद्ध कूच किया। तीन महीने की घेराबंदी के बाद रणथम्भौर के किला पर अलाउद्दीन का कब्जा हुआ। 
 ¯ पृथ्वीराज चैहान का वंशज हमीर देव वहां का शासक था। महिलाओं ने घेराबंदी के दौरान जौहरव्रत का पालन किया। 
 ¯ समसामयिक लेखकों द्वारा जौहरव्रत का यह पहला विवरण मिलता है। 
 ¯ प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो भी इस अभियान में अलाउद्दीन के साथ था जिसने किले का सचित्र वर्णन किया है। 
 ¯ तत्पश्चात् सुल्तान अलाउद्दीन ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। सन् 1303 ई. में उसने चितौड़ पर अधिकार कर लिया और उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र खिज्र खां को किले का दायित्व सौंपा।
 ¯ सन् 1306-1307 ई. में अलाउद्दीन ने दो अभियानों की योजना बनाई। पहला अभियान था रायकर्ण के विरुद्ध जो गुजरात से निष्कासित होने के पश्चात् मालवा की सीमा पर स्थित बागलाना पर अपना अधिकार जमाए हुए था। रायकर्ण ने वीरता के साथ युद्ध किया पर वह अधिक समय तक नहीं टिक सका। 
 ¯ दूसरा अभियान देवगिरि के राजा रामचन्द्र के विरुद्ध था जिसने रायकर्ण की सहायता की थी और दिल्ली को वार्षिक कर देना बंद कर दिया था। सेना के नेतृत्व का भार अलाउद्दीन के विश्वसनीय गुलाम मलिक कफूर को दिया गया था। राय रामचन्द्र ने कफूर के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। कफूर ने उसके साथ मर्यादित ढंग से व्यवहार किया। उसे दिल्ली ले जाया गया जहां उसे कुछ समय बाद ‘राय राजा’ की उपाधि प्रदान की गई और उसका राज्य उसे लौटा दिया गया।
 ¯ सन् 1309 और 1311 ई. के बीच मलिक कफूर ने दक्षिण भारत में दो अभियानों का नेतृत्व किया। पहला अभियान तेलंगाना क्षेत्र के बारंगल और दूसरा द्वारसमुद्र और माबर (आधुनिक कर्नाटक और तमिल क्षेत्र के मदुरै) के विरुद्ध थे। 
 ¯ सुप्रसिद्ध दरबारी अमीर खुसरो ने इन घटनाओं को अपनी पुस्तक तारीख-ए-अलाई में लिपिबद्ध किया है। 
 ¯ प्रथम बार मुसलमानों की सेना मदुरै तक पहुंची और अपने साथ अपार सम्पत्ति लूटकर लाई। 
 ¯ कफूर बारंगल और द्वारसमुद्र के शासकों को शांति के लिए समझौता करने, अपने समस्त कोष और हाथियों को समर्पित करने तथा वार्षिक कर देने हेतु मजबूर करने में सफल हुआ। लेकिन उसे तमिल सेना को पराजित किए बिना ही दिल्ली वापस लौटना पड़ा। 
 ¯ दिल्ली के प्रति सदा निष्ठावान बने रहने वाले राय रामचन्द्र की मृत्यु सन् 1315 में हो गई और उसके पुत्र ने दिल्ली शासन के बोझ को अपने कंधे से उतार फेंका। मलिक कफूर शीर्घ सेना लेकर वहां पहुंचा और विद्रोह को कुचल कर इस क्षेत्र के शासन को अपने हाथों में ले लिया। 
 ¯ अलाउद्दीन ने अपने शासन के प्रारम्भ में ही उलेमाओं के प्रभुत्व को समाप्त करने में अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया। 
 ¯ सिकन्दर के समान अपनी विजय पताका दूर-दूर तक फैलाने की उसकी योजना थी। 
 ¯ राज्यों के विद्रोहों को दबाने के लिए उसने अमीर वर्ग की सम्पत्ति जब्त कर ली; खालसा भूमि को कृषि योग्य बनाकर राजस्व में वृद्धि की;  दिल्ली में मद्य निषेध कर दिया; अमीरों के परस्पर मेल-मिलाप और उनके उत्सवों व समारोहों पर रोक लगा दी। 
 ¯ अलाउद्दीन ने अनेक प्रशासनिक सुधार किए - पुलिस और गुप्तचर पद्धति को प्रभावशाली व कुशल बनाया, डाक-पद्धति में सुधार किया, प्रांतीय प्रशासन में सुधार किया। 
 ¯ एक विशाल सेना के रखरखाव के लिए अलाउद्दीन ने आर्थिक सुधार लागू किया जिसका वर्णन जियाउद्दीन बर्नी ने किया है। ¯ मूल्य-नियंत्रण के अंतर्गत सबसे कठिन अधिनियम ‘जाब्ता’ सभी प्रकार के गन्ने के भाव निश्चित करने से संबंधित था। उसके मूल्यों में वृद्धि नहीं की जा सकती थी। 
 ¯ अलाउद्दीन ने काला बाजारी और मुनाफाखोरी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। 
 ¯ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं कि उसने राशन व्यवस्था भी लागू की। 
 ¯ घोड़ों, दासों तथा मवेशियों के बाजार पर सामान्यतः चार नियम लागू होते थे - किस्म के अनुसार मूल्य का निश्चय, व्यापारियों और पूँजीपतियों का बहिष्कार, दलालों पर कठिन नियंत्रण तथा सुल्तान द्वारा बार-बार जांच-पड़ताल।
 ¯ हालांकि अलाउद्दीन संभवतः अशिक्षित था, लेकिन साहित्य में उसकी अभिरुचि थी। अमीर खुसरो और मीर हसन देहलवी उसके दरबारी कवि थे। 
 ¯ उसने अलाई दरवाजा का निर्माण करवाया। 
 ¯ उसने दिल्ली के पड़ोस में एक नगर ‘सीरी’ का निर्माण करवाया। 
 ¯ 1311 ई. में उसने कुतुबमीनार से दुगुने आकार के मीनार बनवाने का कार्य प्रारम्भ किया परन्तु पूरा नहीं कर सका।

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FAQs on गुलाम वंश (1206-1290 ई.) और ख़लजी वंश(1290-1320 ई.) - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. What was the duration of the Gulam dynasty and the Khilji dynasty in Delhi Sultanate?
Ans. The Gulam dynasty ruled from 1206 to 1290 CE and the Khilji dynasty ruled from 1290 to 1320 CE in Delhi Sultanate.
2. Who was the founder of the Gulam dynasty in Delhi Sultanate?
Ans. Qutb-ud-din Aibak was the founder of the Gulam dynasty in Delhi Sultanate. He was a slave of Muhammad Ghori.
3. What was the significance of the Khilji dynasty in Delhi Sultanate?
Ans. The Khilji dynasty was significant in Delhi Sultanate as it introduced agricultural reforms, expanded the empire, and promoted trade and commerce. It was also known for its military conquests.
4. What was the impact of the Delhi Sultanate on Indian society and culture?
Ans. The Delhi Sultanate had a significant impact on Indian society and culture. It introduced Persian and Islamic culture and language to India. It also led to the development of Indo-Islamic architecture and art. The Sultanate's policies towards Hindus led to the growth of Bhakti movement in India.
5. How did the Delhi Sultanate contribute to the growth of Indian economy?
Ans. The Delhi Sultanate contributed to the growth of Indian economy by promoting trade and commerce. It established a network of roads and markets, which facilitated the growth of trade. The Sultanate also introduced new crops and agricultural techniques, which led to increased agricultural production. The Sultanate's policies towards crafts and industries led to the growth of handicrafts and textiles in India.
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