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Essays (निबंध): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

कोयले के उपयोग की चरणबद्ध समाप्ति

भारत ने अपनी राष्ट्रीय विद्युत नीति (National Electricity Policy- NEP) के अंतिम मसौदे से एक प्रमुख खंड (clause) को हटाकर कोयला-संचालित नए विद्युत संयंत्रों का निर्माण नहीं करने (उन संयंत्रों को छोड़कर जो पहले से निर्माणरत हैं) की योजना बनाई है, जो जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले के प्रयासों में एक बड़ा प्रोत्साहन है।
सरकार को संभवतः यह लगता है कि संचालन के 25 वर्ष पूरे कर लेने के बाद भी पुराने संयंत्रों को बनाए रखना एक अच्छा विचार होगा। 25 वर्ष से अधिक पुरानी उत्पादन इकाइयों को बनाए रखना बुरा विचार नहीं है क्योंकि सुसंचालित संयंत्रों की ‘स्टेशन हीट रेट’ दीर्घ कार्यकरण के साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं होती है। पुराने संयंत्रों को चालू रखने का लाभ यह है कि पारेषण लिंक पहले से ही मौजूद हैं और इनका कोयला लिंकेज बना हुआ है।

इस कदम का क्या महत्त्व है?

  • यह जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • भारत की प्रस्तावित कोयला विद्युत क्षमता चीन के बाद सबसे अधिक है। सभी सक्रिय कोयला परियोजनाओं के 80% भारत और चीन में संचालित हैं।
  • यह दृष्टिकोण कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने और ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की ओर आगे बढ़ने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।
  • यह नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ऊर्जा दक्षता के विकास को प्रोत्साहित करता है।
    • सरकार वर्ष 2030 तक 500 GW स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता औरवर्ष 2070 तक शून्य कार्बन तटस्थता (netzero carbon neutrality) प्राप्त करने का लक्ष्य रखती है।
    • नए कोयला विद्युत संयंत्रों को निर्माण शुरू करने की अनुमति देने से न केवल मिश्रित संकेत प्राप्त होंगे और बाज़ार अपने महत्त्वाकांक्षी RE लक्ष्यों से विचलित होगा, बल्कि यह नवीकरणीय उद्योग के विकास को भी बाधित करेगा।
  • कोयला दहन से होने वाले प्रदूषण को कम करके वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
  • यह कोयले के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में योगदान करेगा।
  • विद्युत उत्पादन की लागत कम करना-
    • अभी 33 ऐसे ‘ज़ोंबी’ कोयला संयंत्र प्रस्ताव मौजूद हैं जो या तो अनुमति की प्रतीक्षा कर रहे हैं अथवा उन्हें अनुमति मिल गई है लेकिन अभी तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है।
    • ये ऊर्जा संयंत्र नवीकरणीय ऊर्जा (RE) विकल्पों की तुलना में 2 से 3 गुना अधिक महँगे होंगे।

भारत का कितना विद्युत उत्पादन कोयले पर निर्भर है?

  • भारत विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर अत्यधिक निर्भर है। भारत में उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 60% कोयले से उत्पादित होता है और यह देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्रोत है।
    • गैर-जीवाश्म स्रोत लगभग 40% की हिस्सेदारी रखते हैं।
  • वर्ष 2022-23 में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से विद्युत उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 8.87% की वृद्धि देखी गई।
  • वर्ष 2023-24 के लिये विद्युत उत्पादन का लक्ष्य 1750 बिलियन यूनिट तय किया गया था, जिसमें से 75% से अधिक तापीय स्रोतों (मुख्य रूप से कोयले) से अपेक्षित है।

भारत को कोयले पर निर्भरता क्यों कम करनी चाहिये?

  • प्रदूषण में कमी लाना:
    • कोयला एक अत्यधिक प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन है जो वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय योगदान करता है।
      • कोयला दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कणिका पदार्थ (Particulate Matter- PM) का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन, धूम्र-कोहरा (smog), अम्ल वर्षा और श्वसन रोग, हृदय संबंधी समस्याओं तथा यहाँ तक कि समय-पूर्व मृत्यु में योगदान करते हैं।
    • कोयला वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। पेरिस समझौते के एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता रखता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की ओर आगे बढ़ना: भारत के पास प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन मौजूद हैं, जिनमें सौर, पवन, जल और बायोमास शामिल हैं। कोयले के उपयोग से हटकर और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर भारत स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिये अपनी विशाल क्षमता का दोहन कर सकता है।
  • जल की कमी को दूर करना: कोयला-संचालित विद्युत संयंत्रों के शीतलन और अन्य प्रक्रियाओं के लिये बड़ी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। कोयला खनन और विद्युत उत्पादन के लिये जल की निकासी एवं उपभोग से जल की कमी और पारिस्थितिक गिरावट की स्थिति बन सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो पहले से ही जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • आयात कम करना: भारत को कोयले के आयात पर अत्यधिक निर्भर रहना पड़ता है। कोयले पर निर्भरता कम करने से विदेशी मुद्रा भंडार की बड़ी बचत होगी।
  • रोज़गार सृजन: कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की ओर आगे बढ़ना नए आर्थिक अवसरों का सृजन कर सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र रोज़गार सृजन, नवाचार और तकनीकी प्रगति की नवीन संभावनाएँ प्रदान करता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताओं का अनुपालन: भारत द्वारा कोयले से आगे बढ़ना जलवायु परिवर्तन से निपटने और निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है। कोयले पर निर्भरता कम करने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करके भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को बेहतर बना सकता है, वैश्विक सतत लक्ष्यों में योगदान कर सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश को आकर्षित कर सकता है।

भारत विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर अपनी निर्भरता कैसे कम कर सकता है?

  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाना: भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जो विद्युत मिश्रण में कोयले की हिस्सेदारी को कम करने में मदद करेगा। सौर, पवन, पनविद्युत एवं बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत भारत की बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था के लिये स्वच्छ, सस्ती एवं विश्वसनीय विद्युत प्रदान कर सकते हैं।
  • ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना: भारत अपने ऊर्जा संयंत्रों, उद्योगों, भवनों, उपकरणों एवं वाहनों की दक्षता में सुधार करके ऊर्जा की बचत कर सकता है और उत्सर्जन को कम कर सकता है। ऊर्जा दक्षता उपाय विद्युत बिल को कम करने, रोज़गार सृजित करने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में भी योगदान कर सकते हैं।
  • पुराने और अकुशल कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करना: भारत अपने पुराने और अक्षम कोयला-संचालित विद्युत संयंत्रों को बंद कर सकता है, जिनका संचालन एवं रखरखाव महँगा पड़ता है और उन्हें स्वच्छ एवं सस्ते विकल्पों के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना: भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर और अपने ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस, परमाणु एवं पनविद्युत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर कोयले पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है। ये स्रोत ग्रिड को लचीलापन एवं स्थिरता प्रदान कर सकते हैं और नवीकरणीय ऊर्जा के परिवर्तनीय उत्पादन को पूरकता प्रदान कर सकते हैं।
  • ग्रिड अवसंरचना को सुदृढ़ करना: भारत अधिक नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण को सक्षम करने और हानि एवं आउटेज को कम करने के लिये अपने ग्रिड अवसंरचना एवं ट्रांसमिशन नेटवर्क में सुधार ला सकता है। भारत ग्रिड की विश्वसनीयता एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिये स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण और मांग प्रतिक्रिया प्रौद्योगिकियों (demand response technologies) में निवेश भी कर सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) की बदहाल वित्तीय स्थिति, जिनमें से अधिकांश का स्वामित्व राज्य सरकारों के पास है, एक प्रमुख चुनौती है। DISCOMs नवीकरणीय ऊर्जा के मुख्य खरीदार हैं, लेकिन वे प्रायः उत्पादकों को भुगतान में देरी करते हैं अथवा कम मांग या उच्च लागत के कारण अपनी विद्युत में कटौती करते हैं। यह नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता और बैंक क्षमता को प्रभावित करता है।
  • विद्युत व्यवस्था में सौर एवं पवन जैसे चर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के लिये पर्याप्त ग्रिड अवसंरचना और भंडारण क्षमता की कमी एक अन्य प्रमुख चुनौती है। आपूर्ति की विश्वसनीयता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये ट्रांसमिशन लाइनों, सबस्टेशनों, स्मार्ट मीटर, मांग प्रतिक्रिया और बैटरी भंडारण में निवेश की आवश्यकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पूंजी जुटाने हेतु, विशेष रूप से घरेलू स्रोतों से, वित्तीय मध्यस्थों और साधनों की कमी है। भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये विदेशी वित्तपोषण पर अत्यधिक निर्भर है, जो इसे मुद्रा जोखिमों और नीतिगत अनिश्चितताओं के लिये भेद्य/संवेदनशील बनाता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा से संबद्ध अवसरों और लाभों के बारे में निवेशकों में, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों, परिवारों एवं ग्रामीण समुदायों के बीच, जागरूकता एवं समझ की कमी पाई जाती है।

आगे की राह

  • परिचालन दक्षता में सुधार लाने, हानियों को करने, राजस्व संग्रह को बढ़ाने और उत्पादकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के रूप में DISCOMs की स्थिति में सुधार लाया जाना चाहिये।
    • इसमें प्रदर्शन-आधारित अनुबंध, कॉस्ट-रेफ्लेक्टिव टैरिफ, स्मार्ट मीटरिंग और प्रीपेड बिलिंग जैसे उपाय भी शामिल हो सकते हैं।
    • नए विद्युत नियम विद्युत क्षेत्र में सुधार लाने की मंशा रखते हैं और यदि इन्हें उपयुक्त रूप से क्रियान्वित किया जाए तो स्थिति व्यापक सीमा तक ठीक हो सकती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों के अंगीकरण एवं स्वीकरण को बढ़ावा देने के लिये सूचना प्रसार, क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और उपभोक्ता संलग्नता में सुधार लाने की आवश्यकता है।
  • पारेषण एवं वितरण नेटवर्क में निवेश करके ग्रिड अवसंरचना एवं भंडारण क्षमता को सुदृढ़ करना, ग्रिड के लचीलेपन एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाना और बैटरी भंडारण एवं पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज प्रणालियों (pumped hydro storage systems) को तैनात करना उपयोगी सिद्ध होगा।
    • इसमें ग्रिड कोड, सहायक सेवाएँ, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र (renewable energy zones) और ग्रीन कॉरिडोर जैसे उपाय भी शामिल हो सकते हैं।
  • निम्न लागत एवं दीर्घकालिक वित्तपोषण, जोखिम न्यूनीकरण और ऋण वृद्धि प्रदान कर सकने वाले वित्तीय मध्यस्थों एवं साधनों को विकसित करके नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये घरेलू पूंजी जुटाना आवश्यक होगा।
    • इसमें ग्रीन बॉण्ड, ग्रीन बैंक, ग्रीन फंड और ग्रीन इंश्योरेंस जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।

भारत और संकटग्रस्त पाकिस्तान

हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी को लेकर पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हिंसक भीड़ द्वारा (जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री के समर्थक शामिल थे) खैबर पख्तूनख्वा (KPK), पंजाब, बलूचिस्तान और पाकिस्तान के अन्य प्रमुख शहरों में सैन्य एवं अर्द्ध-सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला किया गया। वर्ष 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति (पाकिस्तान विभाजन), सैन्य तख्तापलट की घटनाओं या यहाँ तक कि बेनज़ीर भुट्टो सदृश लोकप्रिय नेताओं की हत्या के बाद भी सेना को कभी निशाना नहीं बनाया गया था।
अफगानिस्तान में व्याप्त अस्थिरता ने आगे आग में और घी डालने का काम किया है, जबकि पाकिस्तान में व्याप्त अस्थिरता अफगानिस्तान को आगे और अस्थिर बना सकती है। पाकिस्तान में बढ़ती अस्थिरता जल्द ही व्यापक रूप से फैल सकती है और क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।

पाकिस्तान में मौजूदा स्थिति

  • राजनीतिक उतार-चढ़ाव:
    • पाकिस्तान अप्रैल 2022 से ही राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है, जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से अपने पद से बेदखल कर दिया था। उन्होंने इस परिणाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और जल्द चुनाव कराने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन एवं रैलियों की एक शृंखला छेड़ दी। वह आतंकवाद, भ्रष्टाचार और न्यायालय की अवमानना सहित कई अन्य कानूनी आरोपों का भी सामना कर रहे हैं। 
      • मौजूदा पाकिस्तान सरकार ने उन पर देश को अस्थिर करने और लोकतंत्र को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है।
      • उन्होंने इमरान खान पर जनता के बीच सेना विरोधी भावना भड़काने के रूप में अवसरवादी और विनाशकारी रवैया अपनाने का भी आरोप लगाया है।
    • पाकिस्तान के राजनीतिक विमर्श में यह उथल-पुथल ‘पाकिस्तान स्प्रिंग’ (‘अरब स्प्रिंग’ की तरह) को जन्म दे सकता है। पाकिस्तान और उन देशों की स्थितियों के बीच कई समानताएँ नज़र आती हैं जहाँ ‘अरब स्प्रिंग’ आंदोलन का प्रसार हुआ था। समानता के इन घटकों में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक शिकायतें, भ्रष्टाचार, युवा उभार, नागरिक समाज की सक्रियता और मीडिया की स्वतंत्रता शामिल हैं। 
  • तालिबान का उदय:
    • अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से ही पाकिस्तानी सेना की घेराबंदी की जा रही है और तालिबान समर्थित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) बलूचिस्तान एवं पंजाब में अपनी सक्रियता का विस्तार कर रहा है।
    • अधिक दुस्साहसी हुए TTP और बलूच समूहों ने पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के ऊपर कई हमले किये हैं।
    • पाकिस्तानी सेना व्यावहारिक रूप से दो मोर्चों पर युद्ध लड़ रही है (आंतरिक मोर्चे पर TTP के साथ और बाह्य मोर्चे पर तालिबान के साथ), जबकि ईरानी सीमा पर भी उसकी कड़ी नज़र बनी हुई है।
    • पाकिस्तानी सेना—जिसे एक मज़बूत एवं सक्षम बल के रूप में देखा जाता था और जो छद्म युद्धों (proxy wars) का एक चतुर खेल खेल सकती थी, तालिबान द्वारा उसकी कमज़ोरियों को उजागर कर दिया गया है।
    • तालिबान अब पाकिस्तान के लिये एक बड़ा खतरा है और सेना इसे रोक सकने के लिये संघर्ष कर रही है। इससे सेना का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ा है और दुर्जेयता की उसकी आभा फीकी पड़ गई है।
  • सेना की घेरेबंदी:
    • इमरान खान को अपदस्थ किये जाने के बाद सड़कों पर उतरे लोगों की लामबंदी ने सेना को कमज़ोर कर दिया है। सेना वर्तमान में राजनीतिक रूप से अत्यंत कमज़ोर है जो TTP जैसे अराजक अभिकर्ताओं को और मज़बूत बनने का अवसर प्रदान कर सकती है।
    • सेना का घटता हुआ कद तब बेहद प्रकट हो गया जब प्रदर्शनकारी थोड़े प्रोत्साहन पर जनरल हेडक्वार्टर तक पहुँच गए। हिंसक भीड़ ने लाहौर में कॉर्प कमांडर के घर, पाकिस्तान सैन्य अकादमी, वायु सेना के अड्डे और शहरों में सेना के गश्ती दल को निशाना बनाया।
  • आर्थिक संकट:
    • पाकिस्तान में महँगाई दर वर्तमान में 30% से अधिक है जो पिछले कई वर्षों में सर्वाधिक है। इससे आम लोगों के लिये खाद्य एवं ईंधन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का वहन कर सकना कठिन हो रहा है। पाकिस्तानी रुपया पिछले एक वर्ष में अमेरिकी डॉलर की तुलना में अपने मूल्य का 30% से अधिक खो चुका है।
    • हाल ही में सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में नज़र आया कि कुछ क्षेत्रों में पाकिस्तानी लोगों द्वारा प्लास्टिक की थैलियों में LNG का भंडारण किया जा रहा है क्योंकि रसोई गैस सिलेंडरों की कमी के कारण डीलरों द्वारा आपूर्ति कम की जा रही है। इस बेहद खतरनाक ‘बैग गैस’ की ‘चलते-फिरते बम’ (Moving bombs) के रूप में चर्चा की गई है।
    • पाकिस्तान का सार्वजनिक ऋण 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर के खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है और आवश्यक सुधारों को लागू करने की असमर्थता के कारण सरकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ‘बेलआउट’ हासिल करने में अभी तक विफल रही है।
    • देश को विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो गिरकर 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम हो गया है (9 वर्ष में निम्नतम स्तर)। इसका अर्थ यह है कि देश के पास आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात के लिये पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है।
    • हाल की जलवायु संबंधी आपदाओं ने पाकिस्तान के संकट को और बढ़ा दिया है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और अधिक कमज़ोर हो गई है।
  • चीन के विरुद्ध असंतोष:
    • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के लिये महत्त्वपूर्ण दो प्रांत (KPK और बलूचिस्तान ) सुरक्षा बलों के लिये जंग का मैदान बन गए हैं। सीपेक को सेना के दृढ़ समर्थन ने इसे चीनी निवेश के विरुद्ध बढ़ते सार्वजनिक असंतोष के केंद्र में ला दिया है।
    • यह भावना इतनी स्पष्ट है कि हाल ही में पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान चीनी विदेश मंत्री को ज़ोर देकर कहना पड़ा कि कुछ शक्तियों द्वारा यह अफवाह फैलाई गई है कि चीन ने पाकिस्तान में ‘ऋण जाल’ (debt trap) का सृजन किया है।

भारत के लिये निहित खतरे

  • सीमा-पार तनाव में वृद्धि: पाकिस्तान के राजनीतिक संकट से सीमा-पार तनाव में वृद्धि हो सकती है, विशेष रूप से कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) पर। पाकिस्तान अपनी घरेलू समस्याओं से ध्यान हटाने या सरकार या सेना के पीछे जनता का समर्थन जुटाने के लिये आतंकवादी समूहों का समर्थन करने या संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन करने के रूप में भारत को उकसाने का सहारा ले सकता है।
  • शरणार्थी संकट: पाकिस्तान में आर्थिक संकट से शरणार्थी संकट उत्पन्न हो सकता है, जहाँ लाखों लोग पाकिस्तान से पलायन कर सकते हैं। इससे भारत के संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है और इससे अपराध एवं सामाजिक अशांति में भी वृद्धि हो सकती है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा: पाकिस्तान में मौजूदा संकट क्षेत्रीय अस्थिरता को जन्म दे सकता है, क्योंकि पाकिस्तान समर्थन के लिये अपने पड़ोसी देशों पर अधिक निर्भर हो गया है। इससे पाकिस्तान और उसके पड़ोसी देशों (भारत सहित) के बीच तनाव बढ़ सकता है।
  • परमाणु प्रसार: पाकिस्तान में कोई भी राजनीतिक या आर्थिक अस्थिरता जो उसके परमाणु शस्त्रागार पर उसके नियंत्रण को कमज़ोरर करती हो, संभावित रूप से उन हथियारों की सुरक्षा के बारे में चिंता उत्पन्न कर सकती है। इससे तनाव बढ़ सकता है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिये खतरा पैदा हो सकता है।

भारत के लिये अवसर

  • आतंकवाद-विरोधी सहयोग:
    • पाकिस्तान की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति भारत को सीमा-पार आतंकवाद के मुद्दे को संबोधित करने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ संलग्नता का अवसर प्रदान कर सकती है।
    • पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के समर्थन को उजागर कर भारत आतंकवाद का मुक़ाबला करने और राज्य-प्रायोजित आतंकवादी नेटवर्क को अलग-थलग करने में वैश्विक सहयोग के लिये अपने दावे को मज़बूत कर सकता है।
  • क्षेत्रीय शक्ति प्रक्षेपण:
    • पाकिस्तान के समक्ष विद्यमान आंतरिक संघर्ष के विपरीत भारत स्थिरता बनाए रखने और क्षेत्रीय चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संभाल सकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकता है।
    • क्षेत्रीय गठबंधन एवं भागीदारी का सुदृढ़ीकरण (विशेष रूप से दक्षिण एशिया और मध्य-पूर्व के देशों के साथ) एक ज़िम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत कर सकता है।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करना:
    • भारत पाकिस्तान की मौजूदा चुनौतियों के बीच ईरान में चाबहार बंदरगाह या अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पहलों को बढ़ावा देकर लाभ उठा सकता है।
    • ये परियोजनाएँ मध्य एशिया, अफगानिस्तान और उससे आगे भारत की पहुँच को मज़बूत कर सकती हैं और व्यापार विविधीकरण को सक्षम करने तथा भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने में योगदान कर सकती हैं।
  • अन्य देशों के साथ आर्थिक सहयोग:
    • भारत इस भूभाग में स्वयं को एक स्थिर और आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित कर सकता है।
    • पाकिस्तान की आर्थिक चुनौतियों के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने और अन्य देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये भारत अपनी आर्थिक वृद्धि एवं स्थिरता का लाभ उठा सकता है।
    • इससे व्यापार साझेदारी और सहयोग में वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत की आर्थिक स्थिति और मज़बूत हो सकती है।

आगे की राह

  • हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान से वार्ता के प्रश्न पर भारत के दृष्टिकोण को प्रकट करते हुए इस आशय का वक्तव्य दिया कि ‘‘आतंकवाद के पीड़ित आतंकवाद पर चर्चा करने के लिये आतंकवाद के कर्ता के साथ नहीं बैठ सकते।’’ लेकिन भारत पाकिस्तान को औपचारिक वार्ता का एक अवसर दे सकता है यदि वह आतंकवाद को रोकने और कश्मीर मुद्दे को हल करने पर सहमत हो। अपने मौजूदा हालात में पाकिस्तान भारत के साथ वार्ता की सख्त ज़रूरत रखता है।
  • भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने तथा आतंकवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन को उसके कथित समर्थन को उजागर करने के लिये अपने कूटनीतिक लाभ का उपयोग कर सकता है।
  • पाकिस्तान में वर्तमान संकट से यह प्रकट हुआ कि वह स्वयं का प्रभावी ढंग से शासन कर सकने में असमर्थ है। भारत अपने लाभ के लिये इस स्थिति का उपयोग कर सकता है जहाँ आतंकवाद और परमाणु प्रसार जैसे मुद्दों पर अपना आचरण बदलने के लिये पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है।
  • पाकिस्तान के वर्तमान संकट के बीच भारत को अपनी सीमा सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिये और उग्रवाद, सीमा-पार आक्रामकता या पाकिस्तान की ओर उकसावे पर नियंत्रण के लिये अपनी सैन्य तैयारियों को सशक्त करना चाहिये।
  • क्षेत्र में पाकिस्तान के प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिये भारत ईरान और अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करने की ओर भी आगे बढ़ सकता है।

निष्कर्ष: भारत विरोधी आतंकवादी समूहों का समर्थन करने वाले पाकिस्तानी व्यवस्था से कोई संवाद करना प्रियकर स्थिति नहीं है। लेकिन पाकिस्तान को चरमपंथी इस्लामवादियों के प्रभाव में आने का अवसर देना और भी गंभीर परिदृश्य का निर्माण करेगा। भारत को पाकिस्तान में स्थिरता लाने हेतु प्रयास करने चाहिये, क्योंकि सीमा पर तनाव और उग्रवाद जैसे इसके परिणाम भारत को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेंगे।

परंपरा का संरक्षण: जल्लीकट्टू पर ऐतिहासिक फैसला

दक्षिणी भारतीय राज्य तमिलनाडु समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएँ रखता है जिसके दर्शन उसके पर्व-त्योहारों और विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में होते रहते हैं। ऐसे ही सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है जल्लीकट्टू (Jallikattu) जो स्थानीय लोगों और आगंतुकों को समान रूप से लुभाता रहा है। साँडों (bull) को वश में करने का यह प्राचीन खेल, जिसका इतिहास लगभग 2000 वर्ष तक प्राचीन है, तमिलनाडु के लोगों के लिये गर्व और विरासत का प्रतीक रहा है।

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य विधानसभाओं द्वारा पशु क्रूरता निवारण (Prevention of Cruelty to Animals- PCA) अधिनियम, 1960 में किये गए संशोधनों उचित करार दिया; इस प्रकार, जल्लीकट्टू, कंबाला (kambala) और बैलगाड़ी दौड़ जैसे खेलों को अनुमति प्रदान की।

जल्लीकट्टू क्या है?

  • जल्लीकट्टू, जिसे एरुथालुवुथल/एरुथाझुवुथल (eruthazhuvuthal) के नाम से भी जाना जाता है, साँडों को वश में करने का खेल है जिसमें प्रतियोगी पुरस्कार के लिये साँड को वश में करने का प्रयास करते हैं और यदि वे असफल होते हैं फिर साँड का मालिक पुरस्कार जीत जाता है।
  • जल्लीकट्टू जल्ली (Calli: coins) और कट्टू (tie) दो शब्दों से मिलकर बना है, जो साँड के सींगों पर सिक्कों के बंडल को जोड़ने की प्रथा को इंगित करता है।
  • इसे जनवरी के दूसरे सप्ताह में पोंगल (एक फसल त्यौहार) के दौरान आयोजित किया जाता है और यह प्रकृति का उत्सव मनाने तथा अच्छी फसल के लिये धन्यवाद ज्ञापित करने का भी प्रतीक है जहाँ पशु-पूजा भी अनुष्ठान का एक अंग है।
  • इसे तमिलनाडु के मदुरै, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल ज़िलों में आयोजित किया जाता है, जिसे ‘जल्लीकट्टू बेल्ट’ के रूप में जाना जाता है।
  • जल्लीकट्टू का ऐतिहासिक महत्त्व 
  • जल्लीकट्टू सदियों से चली आ रही एक सुदीर्घ परंपरा रही है जिसकी उत्पत्ति का सूत्र मोहनजोदड़ो में पाई गई एक प्राचीन मुहर से भी जुड़ता है, जो लगभग 2,500 ईसा पूर्व से 1,800 ईसा पूर्व के बीच की मानी जाती है।
  • जल्लीकट्टू का संदर्भ संगम युग के प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य ‘शिलप्पादिकारम’ (Silappadikaram) में भी पाया जाता है।

निर्णय में क्या कहा गया है?

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि जल्लीकट्टू पर वर्ष 2017 का संशोधन अधिनियम एवं नियम संविधान की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17 (पशु क्रूरता का निवारण) और अनुच्छेद 51 A(g) (प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखना) के अनुरूप हैं
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि संशोधन अधिनियम ने इसमें भागीदारी करने वाले पशुओं की पीड़ा और उनके प्रति क्रूरता में उल्लेखनीय कमी की है।
    • न्यायालय ने कहा कि ‘सांस्कृतिक परंपरा’ के नाम पर वैधानिक कानून का कोई भी उल्लंघन (इस मामले में वर्ष 2017 का कानून) दंडात्मक कानून के दायरे में होगा।
  • याचिकाकर्ताओं ने यहाँ तक तर्क दिया था कि पशुओं को भी गरिमा के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन न्यायालय ने माना कि राज्य का कानून संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन नहीं करता है। 
  • न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विधायिका द्वारा आयोजित ‘विधायी अभ्यास’ में पाया गया कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पिछली कुछ शताब्दियों से आयोजित किया जा रहा है तथा इसकी सांस्कृतिक विरासत का अंग है और इसलिये वह विधायिका के दृष्टिकोण को बाधित नहीं करना चाहता है
  • घटनाक्रम की समयरेखा:
    • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय को एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि जल्लीकट्टू पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के अनुरूप पशुओं के प्रति दयापूर्ण व्यवहार का अनुपालन नहीं करता है।
    • वर्ष 2006 में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा जल्लीकट्टू पर राज्यव्यापी प्रतिबंध लगाया गया था। इसके तुरंत बाद ही, राज्य सरकार द्वारा इस प्रतिबंध को अप्रभावी करने के लिये तमिलनाडु जल्लीकट्टू विनियमन अधिनियम 2009 (Tamil Nadu Regulation of Jallikattu Act of 2009) पेश किया गया था।
    • वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने उन पशुओं की सूची में साँडों/बैलों को भी शामिल करने का कदम उठाया, जिनके प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन पर प्रतिबंध है, जिससे जल्लीकट्टू पर रोक लग गई।
    • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जल्लीकट्टू साँडों के प्रति क्रूरता के समान है और देश में साँडों को वश में करने तथा बैलगाड़ी दौड़ जैसे सभी खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया
    • वर्ष 2016 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2011 की अपनी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसके आधार पर शीर्ष न्यायालय ने प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था।
    • तमिलनाडु राज्य सरकार ने पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 और पशु क्रूरता निवारण (जल्लीकट्टू का आयोजन) नियम 2017 पारित किया, जिससे एक बार फिर इस खेल के आयोजन के द्वार खुल गए।
    • फरवरी 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) और PETA ने तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित वर्ष 2017 के कानूनों को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया

संघर्ष के क्या कारण थे?

  • परिचय:
    • 2000 के दशक की शुरुआत से ही जल्लीकट्टू पर राज्यव्यापी प्रतिबंध लगाने के लिये पशु अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा संघर्ष किया जा रहा है
    • वर्तमान मामले/केस में वादी के रूप में पशु कल्याण बोर्ड, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA), कम्पैशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन (CUPA), फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) और एनिमल इक्वेलिटी (Animal Equality) जबकि प्रतिवादी के रूप में भारत संघ और तमिलनाडु राज्य शामिल हैं।
      • वादियों ने वर्ष 2017 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन को चुनौती देते हुए कुछ याचिकाएँ दायर की हैं।
  • जल्लीकट्टू के पक्ष में तर्क:
    • तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि सदियों पुरानी जल्लीकट्टू प्रथा एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है जिस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिये।
    • उनके अनुसार, समाज के विकास के साथ-साथ इस अभ्यास को विनियमित और संशोधित किया जा सकता है। इसके सांस्कृतिक महत्त्व को उच्च विद्यालय पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिये संरक्षित रहे।
    • यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित है।
    • जल्लीकट्टू को ‘‘पशुओं की इस मूल्यवान स्वदेशी नस्ल के संरक्षण के लिये एक साधन’’ बताते हुए सरकार ने तर्क दिया है कि यह पारंपरिक आयोजन दया भाव एवं मानवता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।
    • जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध को तमिलनाडु की संस्कृति और समुदाय के प्रति शत्रुता के रूप में देखा जाएगा।
  • विपक्ष में तर्क:
    • जल्लीकट्टू के विरोधियों का तर्क है कि पशु जीवन मानव जीवन से जुड़ा हुआ है और प्रत्येक जीवित प्राणी में अंतर्निहित स्वतंत्रता होती है जिसका सम्मान किया जाना चाहिये
    • उनका दावा है कि जल्लीकट्टू पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध को निष्प्रभावी करने के लिये तमिलनाडु का कानून लाया गया था और इस प्रथा के परिणामस्वरूप मनुष्यों तथा साँडों दोनों के लिये मृत्यु एवं आघात की घटनाएँ सामने आई हैं।
    • आलोचकों का तर्क है कि भागीदार प्रतियोगियों द्वारा जिस तरह साँडों पर झपटा जाता है, वह ‘पशुओं के प्रति अत्यधिक क्रूरता’ को प्रकट करता है।
    • उनका तर्क है कि संस्कृति के अंग के रूप में जल्लीकट्टू का कोई औचित्य नहीं है और उन्होंने इसकी तुलना सती एवं दहेज जैसी प्रथाओं से की है, जिन्हें कभी संस्कृति के अंग के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन बाद में कानून के माध्यम से उन्हें प्रतिबंधित किया गया।

निष्कर्ष:

  • जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ जैसे साँडों को वश में करने वाले खेलों की अनुमति देने का सर्वोच्च न्यायालय का हाल का निर्णय जारी बहस में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
  • जहाँ न्यायालय का निर्णय जल्लीकट्टू के सांस्कृतिक महत्त्व को मान्यता देता है, वहीं यह पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकने और वैधानिक कानून को बनाए रखने के महत्त्व पर भी बल देता है।
  • सांस्कृतिक प्रथा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखना ही इस मामले में उपयुक्त दृष्टिकोण होगा, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में भी निहित है।
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