UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs

Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

साक्षरता द्वारा महिलाओं के लिये समानता

‘‘बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 

थोड़ी-थोड़ी सी सब में

दिल भर इक रस्सी के ऊपर

चलती नटनी-जैसी माँ’’

उपर्युक्त पंक्तियाँ क्या कहना चाहती हैं और वो किस सामाजिक स्थिति की ओर हमारा ध्यान ले जाना चाह रही हैं? माँ याद करने पर दिनभर घर में काम करने वाली माँ ही याद आती है। चाहे वह बीवी, बेटी, बहन या पड़ोसन की ही भूमिका क्यों न निभा रही हो।

  • अवलोकन एवं तत्त्व चिंतन से यह पता चलता है कि प्रकृति ने महिला एवं पुरुष का निर्माण परस्पर पूरक के रूप में किया है। स्त्री एवं पुरुष के बीच का शाश्वत, मूल, प्राकृतिक या वास्तविक संबंध समानता का होता है, न कि एक गौण और दूसरा प्रधान हो। किंतु विडंबना है कि आज स्त्री और पुरुष के मध्य असमानता की खाई व्याप्त हो गई है जो उपर्युक्त पंक्तियों में स्पष्ट नजर आती है। हमें यह देखना होगा कि इस असमानता का स्वरूप क्या है, अर्थात् नारी को आज किन-किन रूपों में अन्याय, अत्याचार एवं अपमान सहना पड़ रहा है और किन विधियों द्वारा महिलाओं की स्थिति में समानता की पुर्नस्थापना की जा सकती है।
  • साक्षरता के अर्थ पर अगर गौर करें तो इसका शब्दार्थ होता है अक्षर ज्ञान से युक्त होने की स्थिति। इस स्थिति में व्यक्तिगत स्तर पर साक्षरता को वयैक्तिक साक्षरता एवं सामूहिक स्तर पर सामाजिक साक्षरता कहते हैं। उसी प्रकार साक्षरता का व्यापक अर्थ होता है पढ़ा-लिखा या विद्वान परंतु यदि साक्षरता के व्यावहारिक अर्थ को देखते हैं तो इन दोनों के मध्य भी एक मध्यममार्गी अर्थ है जो अधिक उपयोगी तथा व्यवहार्य है। 
  • महिला समानता से तात्पर्य है महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार की प्राप्ति व उनका उपभोग। महिलाओं की असमानता के स्वरूप पर अगर बात की जाए तो सिर्फ पिछड़े ग्रामीण समाज में ही नहीं अपितु शहरी प्रगतिशील आधुनिक समाज में भी महिलाओं को विभिन्न स्थानों पर असमानता का सामना करना पड़ता है। लेकिन महिलाओं की यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब वे निरक्षर होती हैं।
  • महिलाओं के साथ असमानता की स्थिति उनके जन्म लेने के पूर्व से ही शुरू हो जाती है। लड़की की तुलना लड़के के जन्म की इच्छा एक प्रगतिशील समाज के लिये श्राप के समान होता है, परंतु आज भी कई स्थानों पर बेटी के जन्म लेने के पूर्व ही उसे मार दिया जाता है। जन्म लेने के उपरांत भी पालन-पोषण में असमानता दिखाई देती है। खान-पान एवं वस्त्रों के चयन में यह निश्चित रूप दिखाई देता है। 
  • शिक्षा के संदर्भ में बात की जाए तो आज भी पुरुष  साक्षरता दर, महिला साक्षरता दर की अपेक्षा ज्यादा है जो समाज की हकीकत को बयाँ करता है। नौकरी में अवसर के संदर्भ में देखा जाए तो वहाँ भी पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा अधिक वरीयता प्राप्त है। अधिक शारीरिक श्रमवाली नौकरियों में पुरुषों का एकाधिकार स्थापित है एवं बच्चों के जन्म से लेकर लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने के कारण भी महिलाओं को कई जगह नौकरी में प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में भी महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा पीछे ही पाई गई हैं। न उन्हें इच्छानुसार खर्च करने की स्वतंत्रता होती है और न ही घर की अर्थव्यवस्था पर अधिकार। खेलकूद से लेकर स्वास्थ्य स्थिति तक में पाया गया है कि इन सब क्षेत्रों में भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा निम्न है।
  • इन सभी को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि समाज द्वारा इन असमानताओं को दूर करने के प्रयास किये जाएं। लेकिन इससे पहले यह भी जरूरी है कि महिलाएँ अपने अधिकार की रक्षा हेतु स्वयं सामने आएँ और समाज का कर्त्तव्य है कि उन्हें इस कार्य में सहयोग करे।

‘‘किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो।’’

  • समाज में नारी के प्रति व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिये नए एवं समान कानूनी व्यवस्थाओं और उनका क्रियान्वयन आवश्यक है। गर्भ परीक्षण, पोषण, उत्तराधिकार एवं नौकरी जैसे अनेक क्षेत्रों में अब भी कानूनी व्यवस्थाएँ अपूर्ण एवं विसंगतिपूर्ण है। समान कानून बनाना एवं सुधारना ही पर्याप्त नहीं, उनका सही रूप से क्रियान्वयन भी हो, ऐसी व्यवस्था स्थापित करना आवश्यक है।
  • समाज में बुद्धिजीवी लोगों को एकत्रित कर नारी की सामाजिक स्थिति में सुधार एवं उत्थान के संबंध में अनेक कानूनी प्रयास किये जाने चाहिये।
  • कानूनी समानता संबंधी तमाम उपायों के बावजूद आज देश की काफी कम महिलाएँ राजनीतिक पदों पर पहुँच सकी हैं। राजनीतिक स्तर पर इस विषमता को दूर करने के लिये जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक पदों पर महिलाओं के लिये आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिये। वर्तमान में महिलाओं को आर्थिक मामलों में वांछित स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। संपत्ति में समान भागीदारी देकर एवं आर्थिक अनुबंधों में लगी पाबंदियाँ हटाकर महिलाओं के आर्थिक अधिकार को संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।
  • नारी समानता की पक्षधर धार्मिक व्यवस्थाएँ भी पुन: प्रखरता से लागू की जानी चाहिये। अन्य लोगों को भी इन व्यवस्थाओं का अनुकरण कर नारी को महत्ता देने का आग्रह करना चाहिये।
  • खेलकूद के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विशेष आर्थिक प्रावधान, विशेष खेल के मैदान, महिला क्रीड़ा शिक्षिकाओं की नियुक्तियाँ, महिला खेल छात्रवृत्तियाँ एवं साथ ही पृथक खेल टूर्नामेंट आयोजित कराने चाहिये।
  • साक्षरता से महिलाओं में नवीन चेतना का संचार होगा। चेतना या जागृति आने से तमाम प्रकार की असमानताएँ, अन्याय, अत्याचार जैसी स्थिति दूर हो जाती है। साक्षर समाज राजनीतिक, कानूनी एवं व्यवस्था संबंधी तथा परंपरागत उपाय करके लिंग समानता की स्थिति का निर्माण कर लेता है। महिलाओं का वर्तमान पिछड़ापन दूर करके उन्हें समानता के वास्तविक स्तर पर लाने का एकमात्र उपाय ‘साक्षरता’ है। उनका वास्तविक उत्थान एवं असली समानता उनकी साक्षरता में है।

ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधि

जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी।

फूल जैसी कोमल नारी, काँटों जितनी कठोर नारी।।

भारतीय संस्कृति में नारी की महत्ता से कौन परिचित नहीं है। भारतीय संस्कृति में भगवान शिव का नाम अर्द्धनारीश्वर बताया गया है। यह पौराणिक प्रतिपादन समग्र समाज में महिलाओं की पुरुषों के साथ बराबरी की भागीदारी की मान्यता, भावना एवं सिद्धांत की पुष्टि करता है। 

  • श्रेष्ठ कार्य के समय महिला को पुरुष के दाहिनी ओर बैठाने की परंपरा के पीछे भी महिलाओं को श्रेष्ठ कार्यों में प्राथमिकता देने का विचार ही निहित है। समग्र विकास में महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी की आवश्यकता पर ये तथ्य बल देते हैं। एक-दूसरे के पूरक होते हुए नर एवं नारी की समाज में महत्त्वपूर्ण भागीदारी है। इसी संकल्पना पर विचार करते हुए ग्रामीण विकास में भी महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
  • भारत को गाँवों का देश माना जाता है। अत: भारत के विकास हेतु आवश्यक है कि गाँवों का भी विकास हो। ग्रामीण विकास की परिधि में ग्रामों में शिक्षा, संस्कृति, कला-कौशल, चिकित्सा, सामुदायिक विकास, कृषि, सामाजिक सुधार, पशु-पालन, उद्योग-धंधे, रोजगार का विस्तार, पेयजल, विद्युत की सुविधा संचार व्यवस्था का विस्तार आदि चीजे आती हैं।
  • महिला जनप्रतिनिधि का अर्थ है समस्त वर्गों एवं स्तरों से प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई या नामांकित महिला जो ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा आदि में पंच, सरपंच, पार्षद या जिला पंचायत प्रतिनिधि, विधायक, सांसद आदि की हैसियत से कार्य करने हेतु अधिकृत है।
  • महिला जनप्रतिनिधि द्वारा ही ग्रामीण विकास की बात करने के पीछे यह तर्क है कि भारत में महिलाओं की संख्या भी काफी है, अत: इतनी बड़ी जनशक्ति के लिये उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी झिझक और घबराहट दूर होगी तथा उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा, साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा।
  • यह सत्य है कि अभी भी महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है। अत: उनकी उन्नति हेतु उन्हें आगे लाकर उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है।
  • इस पहलू से विकास के तर्क पर प्रकाश डाले तो हम पाते हैं कि महिलाएँ स्वयं कई दृष्टियों से पिछड़ी एवं लज्जाशील होती हैं, अत: विकास संबंधी जागरूकता को लेकर लोग उन्हें संशय की दृष्टि से देखते हैं। ग्रामीण विकास के लिये विकास कार्यों की योजना बनाना, कार्यस्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं माने जाते। 
  • राजनीति एवं विकास संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी लेने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियाँ जैसे- बच्चे का पालन एवं पारिवारिक दायित्व संभालने आदि में बाधा आएगी।
  • देश में महिलाओं की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अगर उनकी भागीदारी देश के विकास में न ही तो इस जनसंख्या को उचित अवसर नहीं प्राप्त होगा। इस विशाल जनशक्ति की भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण मानी गई है।
  • महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में मौलिक विकास के नए-नए आयाम खुल रहे हैं। चूंकि महिला जनप्रतिनिधि होने के नाते वे महिलाओं की कठिनाइयों को भली-भाँति समझेगी, अत: विकास करना आसान होगा। उदाहरणस्वरूप पेयजल स्रोतों का विकास, पनघट के मार्गों का विकास, प्रसूति सुविधाएँ, महिला शिक्षा, बाल विकास, मनोरंजन आदि कार्यों में विशेष रुचि लेते हुए इन क्षेत्रों का संपूर्ण विकास होगा। इन विकास कार्यों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में नितांत आवश्यकता है।
  • महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण की भी उन्नति होती है। इसके अतिरिक्त महिलाओं के मनोबल में वृद्धि, महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य, महिला प्रतिष्ठा आदि में भी वृद्धि होगी। महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से महिलाओं में व्याप्त पर्दा प्रथा, झिझक एवं घबराहट दूर होती है तथा सही निर्णय करने की क्षमता का विकास होता है।
  • पुरुष प्रतिनिधि अक्सर निजी शत्रुता, ईष्या एवं प्रतिष्ठा को प्रश्न बनाकर एक-दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं, इससे उनकी सकारात्मकता शून्य ही जाती है। किंतु महिलाओं के जनप्रतिनिधि होने पर वैसी राजनीतिक उठापटक नहीं होती।
  • महिलाएँ प्राय: भ्रष्टाचार से दूर रहती है, फलत: विकास कार्यों का पूरा पैसा विकास कार्यों में लगने से विकास में वृद्धि होती है।

हालाँकि महिला जनप्रतिनिधियों की यह कह कर भी आलोचना की जाती है कि महिला ----- के कारण पंच एवं सरपंच महिलाएँ अपने घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हो जाती है और गाँव सामाजिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। लेकिन वह भी सत्य है कि ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सारी आलोचनाओं के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
महिलाओं के प्रतिनिधित्व से विकास कार्यों में बढ़ोतरी हो रही है। वस्तुत: महिला जनप्रतिनिधि सभी -----, सभी अधिकार और सभी विकास कार्यक्रम तभी लागू कर सकती है जब वह इन तत्त्वों से भली-भाँति परिचित होती है। किसी भी त्रुटि, कमी या आलोचना की परवाह किये बिना महिला जनप्रतिनिधित्व द्वारा विकास की प्रक्रिया जारी रखनी चाहिये तभी सही अर्थों में ग्रामीण विकास सुनिश्चित हो पाएगा।

क्या वर्तमान समाज में रंगभेद व्याप्त है?

  • कहा जाता है कि जैसे भारत में जातिभेद है, वैसे ही पश्चिम में रंगभेद है। शायद कहने वालों का आशय यह होता है कि हर समाज में भेदभाव का कोई-न-कोई अनिवार्य रूप अस्तित्व में होता ही है। भारत के संदर्भ में देखा जाए तो क्या यहाँ सिर्फ जातिभेद है, रंगभेद नहीं है। परंतु वास्तविकता कुछ और ही है, क्योंकि भारत भी रंगभेद से अछूता नहीं है। भारत में इसका अपना अलग ही स्वरूप है, क्योंकि लिंगभेद से जुड़कर यह और भयानक हो जाता है। 
  • विदेशी रंगभेद से भारतीय रंगभेद इस मायने में अलग है कि विदेशों में काले रंग का भेदभाव स्त्री और पुरुष दोनों के साथ समान रूप से होता है परंतु भारत में काले या सांवलेपन को खासतौर से स्त्रियों के सदंर्भ में देखा जाता है। प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी और लेखिका व उद्योगपति प्रभा खेतान की आत्मकथाओं से पता चलता है कि किस प्रकार सांवले रंग ने उनके बचपन में जहर घोला, जिसका असर उनके पूरे व्यक्तित्व पर जिंदगीभर रहा। भारतीय समाज में लड़कियों के लिये सांवला रंग किसी शारीरिक अपंगता जैसा ही बड़ा अभिशाप है।
  • अगर वैश्विक स्तर पर रंगभेद की बात की जाए तो दक्षिण अफ्रीका और भारत के साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव और रंगभेद के खिलाफ साझा संघर्ष रहा है और इससे ही दोनों देशों के मध्य जुड़ाव स्थापित हुआ था। स्वतंत्रता उपरांत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों में साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव, रंगभेद, गुट-निरपेक्षता और दक्षिण-दक्षिण सहयोग जैसे विषय प्रमुख थे, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री नेहरू ने दक्षिण अफ्रीका को प्रमुखता दी। इसी के परिणामस्वरूप भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य आर्थिक और राजनैतिक संबंधों का एक नया अध्याय शुरू हुआ। 
  • नेहरू द्वारा वरीयता दिये जाने के कारण ही 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने जाति भेदभाव संबंधी मुद्दों को उठाया तथा दक्षिण अफ्रीका में हुए रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन के फलस्वरूप ही भारत वह प्रथम देश बना, जिसने रंगभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका से अपने आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया था। संयुक्त राष्ट्र के अलावा अन्य मंचों यथा- गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा 1955 के अफ्रीका-एशिया सम्मेलन और अन्य बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से भारत ने रंगभेद की नीति को समाप्त करने का प्रयास किया। 
  • भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में अफ्रीकी नेशनल कॉन्ग्रेस का कार्यालय खोलने की दिशा में भी सहयोग किया गया एवं रंगभेद नीति के विरुद्ध किये जाने वाले प्रयासों के तहत आर्थिक सहयोग के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभाई गई, स्वतंत्रता पश्चात् भारत द्वारा रंगभेद की नीति के विरोध के कारण दोनों देशों के आर्थिक संबंध प्रभावित हुए परंतु 1993 में नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका में बनी पहली अश्वेत सरकार के उपरांत दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार एवं वाणिज्यिक समझौते में काफी परिवर्तन आया।
  • रंगभेद के संबंध में चर्चा करने पर मंडेला और गांधीजी का नाम स्वयं सामने आ जाता है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को मिटाने वाले नेल्सन मंडेला का अपने देश में वहीं स्थान है, जो भारत में महात्मा गांधी का है। जहाँ मंडेला ने रक्तहीन क्रांति द्वारा अफ्रीकी लोगों को उनका हक दिलाया जो अहिंसात्मक था। 
  • वे समस्याओं का निराकरण बातचीत के द्वारा करते थे। वहीं महात्मा गांधी भी रंगभेद के मुखर विरोधी थे। 06 नवम्बर, 1913 को महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के खिलाफ ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व किया था। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के बराबर दर्जा प्राप्त है।
  • अगर वर्तमान में रंगभेद की स्थिति पर बात की जाए तो हाल ही में अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हिरासत में हत्या की घटना ने अश्वेत लोगों के खिलाफ पुलिस हिंसा को उजागर किया है, जिसके विरोध में पूरे अमेरिका में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किये गए। प्रदर्शन के द्वारा अमेरिकी समाज को भयभीत करने वाले स्थानिक और संस्थागत नस्लवाद को खत्म करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु, वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर डेरेन सैमी द्वारा भारत में खेले जाने वाले आईपीएल मैचों के दौरान नस्लीय भेदभाव किये जाने का रहस्योद्दान और उत्तर भारत में दक्षिण व उत्तर-पश्चिम भारत के लोगों के साथ किये जाने वाला व्यवहार भेदभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  • भारत में रंगभेद और अस्पृश्यता की घटनाओं के समाधान के संदर्भ में मूल अधिकारों की व्यवस्था की गई है, परंतु इस संदर्भ में व्यवस्थित रूप से विधि निर्माण की आवश्यकता है, जिसका भारत में अभाव है। स्वतंत्रता उपरांत किसी भी प्रकार के भेदभाव से सामाजिक ताने-बाने को संरक्षण प्रदान करने के लिये भारत में समानता के अधिकार का नारा दिया गया ताकि भारतीय जनमानस को इस बात का अहसास हो सके कि प्रत्येक व्यक्ति संविधान के सम्मुख समान है।
  • भारत सहित किसी भी देश में होने वाले भेदभाव का प्रमुख कारण पूर्वाग्रह है। पूर्वाग्रह का तात्पर्य किसी व्यक्ति की उन भावनाओं से है, जिसके कारण वह किसी व्यक्ति अथवा समूह के प्रति सकारात्मक व नकारात्मक रूझान रखता है। सामान्य रूप से सामाजिक विकास के दौरान व्यक्ति जिन परिस्थितियों में रहता है, उनके आधार पर उसके मन में पूर्वाग्रह का निर्माण होता है। पूर्वाग्रह से प्रभावित व्यक्ति वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए विशेष समूह और लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार करने लगता है। 
  • द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व जर्मनी में नाजियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार तथा अमेरिका में अश्वेतों के प्रति बुरा व्यवहार के मूल में भी यह नस्लीय भेदभाव ही है। हमारे देश में जाति के आधार पर भेदभाव तथा शोषण के मूल में पूर्वाग्रह की मानसिकता ही कार्य करती है।
  • भारत महात्मा गांधी का देश है, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग के आधार पर हुए अपमान के कारण नस्लीय घृणा के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा था। भारत में द्रविण, मंगोल, आर्य आदि नस्लों के लोग सदियों से साथ रहते आए हैं। रंग, क्षेत्र, नस्ल, वेशभूषा आदि के आधार पर होने वाला भेदभाव भारत की अनेकता में एकता की भावना को कलंकित करता है। वह संविधान में निहित समानता की भावना पर आघात पहुँचाता है। 
  • ऐसी स्थिति में भारत को भेदभाव के विरुद्ध व्यापक कार्ययोजना बनाने और इक्वलिटी बिल को संसद से पारित कराने की आवश्यकता है, जो भेदभाव के किसी भी रूप का समाधान करने में सक्षम हो सके। अंतराष्ट्रीय तौर पर हम देखते हैं कि जॉर्ज फ्लॉयड की दर्दनाक हत्या पुलिस हिंसा नस्लभेद की अमेरिकी विरासत की साफ झलक देता है। यह व्यवस्था रंगभेद के आधार पर कुछ लोगों को गलत तरीके से फायदा पहुँचाती है और दूसरों को नुकसान पहुँचाती है। 
  • रंगभेद की यह नीति मानव संसाधनों को नुकसान पहुँचाकर एक समाज के रूप में हमें कमजोर करती है। आज आवश्यकता है कि समाज के सभी लोग इस लड़ाई में एकजुट होकर इस बुराई का अंत करें।
The document Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2213 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2213 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

pdf

,

MCQs

,

Extra Questions

,

Exam

,

mock tests for examination

,

practice quizzes

,

Summary

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

,

shortcuts and tricks

,

Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly

,

Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

video lectures

,

ppt

,

Free

,

Semester Notes

,

past year papers

,

Previous Year Questions with Solutions

,

study material

,

Important questions

,

Weekly & Monthly

,

Essays (निबंध): March 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly

,

Viva Questions

;