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Essays (निबंध): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

जीवन कौशल का महत्त्व

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिये एक ऐतिहासिक पहल थी, जिसमें शिक्षा क्षेत्र में गहन सुधार और एक प्रणालीगत बदलाव का आह्वान किया गया था। इस नवीन नीति में जीवन कौशल (Life Skills) को पाठ्यक्रम के अंग के रूप में शामिल करने की अनुशंसा की गई जहाँ दृष्टिकोण यह है कि हमारी भावी पीढ़ियों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शिक्षा को महज शैक्षणिक परिणामों तक सीमित नहीं रहना चाहिये बल्कि हमें इससे आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
  • संयोग से यह नीति एक ऐसे समय सामने आई जब दुनिया कोवि-19 महामारी की चपेट में थी। स्वास्थ्य संकट इस समयावधि की विशिष्टता थी और समग्र रूप से शिक्षा एवं सीखने के अवसरों को हो रही हानि को प्रकट कर रही थी।
  • यूनिसेफ द्वारा वर्ष 2019 में जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया कि वर्ष 2030 में दक्षिण एशिया के आधे से अधिक युवाओं के पास न तो ऐसी शिक्षा होगी और न ही कौशल कि वे रोगार पा सकें यह आकलन हमारे भविष्य की गंभीर वास्तविकता को उजागर करता है।
  • भारत की समस्या केवल बेरोगारी नहीं है, बल्कि रोज़गार पा सकने की अयोग्यता भी है। 650 मिलियन भारतीय 25 वर्ष से कम आयु के हैं, जो विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है, यह एक अनूठी स्थिति को प्रकट करता है। अगले तीन दशकों में वृद्धिशील वैश्विक कार्यबल का लगभग 22% भारत से उत्पन्न होगा। उपयुक्त हस्तक्षेप के साथ इस जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) को सरलता से एक संवहनीय/सतत् अवसर में परिवर्तित किया जा सकता है।

जीवन कौशल/लाइफ स्किल से क्या तात्पर्य है?

परिचय

  • जीवन कौशल क्षमताओं, उपागमों और सामाजिक-भावनात्मक दक्षताओं का एक समूह है जो व्यक्तियों को स्वस्थ एवं उत्पादक जीवन जीने के लिये सीखने, सूचित निर्णय लेने व अधिकारों का प्रयोग करने में तथा फिर बाद में परिवर्तन के अभिकर्त्ता बनने में सक्षम बनाता है।
  • जीवन कौशल, युवाओं में जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य एवं क्षमता को प्रोत्साहित करते हैं।
  • ये कौशल साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान, डिजिटल कौशल जैसे मूलभूत कौशल के विकास का समर्थन करते हैं साथ ही शिक्षा में लैंगिक समानता, पर्यावरण शिक्षा, शांति शिक्षा या विकास के लिये शिक्षा, आजीविका एवं आय सृजन और सकारात्मक स्वास्थ्य संवर्द्धन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी इनका उपयोग किया जा सकता है।
  • जीवन कौशल युवाओं को अपने समुदायों में भागीदारी करने, निरंतर सीखने की प्रक्रिया से संलग्न होने, स्वयं की रक्षा करने और स्वस्थ एवं सकारात्मक सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये सकारात्मक कार्रवाई करने हेतु सशक्त बनाता है।

भारतीय संदर्भ में जीवन कौशल की आवश्यकता

  • स्थिति के प्रति अनुकूलबच्चों के लिये समय प्रबंधन कौशल, विद्यार्थियों के लिये आत्म-जागरूकता संबंधी कौशल, पारस्परिक संबंध कौशल आदि परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढालने, दृढ़ बने रहने और जीवन का लगातार पुनर्मूल्यांकन एवं पुनर्संरचण करने की दक्षता प्रदान करते हैं।
  • छात्रों के लिये स्थितियों को समझने और संबोधित करने का अवसर
    • आलोचनात्मक चिंतन कौशल (Critical thinking skills) छात्रों को उपलब्ध सूचना और तथ्यों के आधार पर स्थितियों को समझने और संबोधित करने की अनुमति देता है।
    • आलोचनात्मक चिंतन में किसी समस्या की रूपरेखा तैयार करने और प्रभावी समाधान विकसित करने के लिये तथ्यों, सूचनाओं एवं अन्य डेटा को व्यवस्थित और संसाधित करना शामिल है।
  • रचनात्मक चिंतन कौशल
    • रचनात्मक चिंतन कौशल (Creative Thinking Skills) हमें किसी भी विषय पर नए परिप्रेक्ष्य और नए दृष्टिकोण से पुनर्विचार करने का अवसर देता है।
    • यह एक अभिनव चिंतन प्रक्रिया है जो उत्साहजनक परिणाम प्राप्त करने तथा कार्यों को नए तरीके से करने में सक्षम बनाता है।
    • नए विचारों के सृजन के लिये रचनात्मक चिंतन को पार्श्व चिंतन या विचार-मंथन की अनुपूरकता प्रदान की जा सकती है।
  • मज़ोर ज्ञान समाज
    • ज्ञान किसी उत्पादक समाज का मूल है, हालाँकि समस्याओं को हल करने के लिये आलोचनात्मक चिंतन कौशल को सीखने और उसे प्रवर्तित करने की क्षमता (जहाँ दोनों को ‘कौशल’ के रूप में परिभाषित किया गया है) ज्ञान के संचय से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है।
    • यह क्षमता व्यक्तियों को अविष्कार तथा नवाचार करने में सहायता करती है, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • भारतीय बच्चों और किशोरों में लर्निंग/सीखने की कला अथवा क्षमता, विश्लेषणात्मक कौशल तथा मानवाधिकारों (लैंगिक समानता सहित) के ज्ञान के बारे में समझ तथा वैचारिक स्पष्टता का निम्न स्तर पाया जाता है।
  • राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (National Achievement Survey- NAS), राज्यस्तरीय लर्निंग उपलब्धि सर्वेक्षण (State Learning Achievement Surveys- SLAS), शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) और अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (Programme for International Student Assessment- PISA) आदि कुछ वृहत् स्तरीय आकलन हैं जिन्होंने आठ वर्ष की शिक्षा के बाद भी बच्चों में भाषा और गणित सीखने के खराब स्तर की ओर लगातार ध्यान आकर्षित किया है।

मानव पूंजी का ह्रास

  • एक कमज़ोर ज्ञान समाज अपने सदस्यों द्वारा अवसरों को हासिल करने और एक उत्पादक समाज के निर्माण में लर्निंग/सीखने की क्षमता के महत्त्व को समझने एवं उसे लागू कर सकने की क्षमता को भी प्रभावित करता है।
  • यह स्वास्थ्य, शिक्षा तथा जीवन की संभावनाओं में असमानताओं को बढ़ावा दे रहा है और भारत के कुछ राज्यों एवं क्षेत्रों में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आता है।
  • देश कई भौगोलिक क्षेत्रों में चरम गरीबी और निम्न विकास की स्थिति का अनुभव कर रहा है, जहाँ युवाओं में उत्पादक रोज़गार एवं आजीविका के लिये आवश्यक कौशल मौज़ूद नहीं है और गतिशील बाज़ार की बदलती मांगों के अनुरूप प्रमुख दक्षताओं के अभाव के साथ ही कार्यबल में तैयारी व उत्साह की कमी है।

असमानता

  • स्वतंत्रता के बाद की कालावधि में भी भारत में असमानता और बहिर्वेशन की स्थिति बनी रही, जिसका कारण गहराई से अपनी जड़ें जमा चुकी सामाजिक (जैसे जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक और लिंग) और वर्ग आधारित संरचनाएँ हैं। ये लोगों के लिये अवसरों को स्थिर एवं सीमित करती हैं, उन्हें व्यवस्थित रूप से उन अधिकारों, अवसरों और संसाधनों का लाभ उठाने से रोकती हैं जो आमतौर पर समाज के सभी सदस्यों के लिये उपलब्ध होते हैं।
  • इन समूहों के भीतर, बालिकाओं के साथ लैंगिक आधार पर और भी अधिक भेदभाव किया जाता है। इन असमानताओं का स्तर विभिन्न क्षेत्रों और भू-भागों में पर्याप्त रूप से भिन्न-भिन्न भी है।

आगे की राह

एक ‘साझा शब्दावली’ (Common Vocabulary) का निर्माण करना

  • एक सहमत शब्दावली और मूल्यांकन ढाँचे के बिना भारत में जीवन कौशल वितरण को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाना संभव नहीं है।
  • इसे सक्षम करने का सबसे सार्थक तरीका यह होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा शब्दावली का विकास किया जाए।
  • यदि वर्ष 2005 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (National Curriculum Framework- NCF) ने अकादमिक दक्षताओं के लिये एक आधार रेखा के निर्माण में मदद की थी तो NEP 2020 द्वारा परिकल्पित नई रूपरेखा से अपेक्षा है कि वह यही भूमिका जीवन कौशल शिक्षा के मामले में करे। इसके लिये बुनियादी कार्रवाई शुरू हो चुकी है।
  • ‘लाइफ स्किल्स कोलैबोरेटिव’ (Life Skills Collaborative- LSC) बहु-क्षेत्रीय विशेषज्ञता वाले 30 संगठनों का एक संघ है जो राज्य सरकारों और शैक्षिक संस्थानों के सहयोग में कार्य कर रहा है। इसने जीवन कौशल से संबंधित प्रमुख शब्दों/पदों का एक शब्दकोष और जीवन कौशल प्रशिक्षण हेतु एक रूपरेखा तैयार करने में पिछले 18 माह व्यतीत किये हैं।

मूल्यांकन उपकरण का सृजन

  • एक प्रबल मूल्यांकन उपकरण हमें जीवन कौशल प्रशिक्षण के प्रत्येक ढाँचे के प्रभाव का आकलन करने और सबसे प्रभावी ढाँचे को प्रवर्तित करने की दिशा में हमारे प्रयासों को व्यवस्थित करने में मदद करेगा।
  • उदाहरण के लिये, ‘यंग वॉरियर एनएक्सटी’ (Young Warrior NXT) के तहत 15 अलग-अलग पायलट अभियानों में तैनात ‘फ्यूचर रेडीनेस’ (Future Readiness) मूल्यांकन साधन को नामांकन, संलग्नता और शिक्षार्थी प्रतिसूचना (learner feedback) के तीन प्रमुख आयामों में तुलनीय मूल्यांकन व प्रज्ञता प्रदान करने के लिये अभिकल्पित किया गया था।
  • यह संवहनीयता और भविष्य की मापनीयता को सूचित करेगा, जो लाखों छात्रों तक पहुँच रखने वाले शिक्षा विभागों में बड़े प्रणालीगत बदलावों के प्रबंधन के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

जीवन कौशल पर क्यूरेटिंग सामग्री

  • सभी के लिये आयु-उपयुक्त, प्रासंगिक और संदर्भगत शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराना 21वीं सदी के लिये जीवन कौशल के निर्माण की आधारशिला होगी।
  • कई ई-लर्निंग समाधान (जो सबसे बुनियादी शैक्षणिक विषयों पर उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षण सामग्री को एकत्रित करते हैं) ने वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का कार्य किया है।
  • जीवन कौशल पर सामग्री को क्यूरेट करने का ऐसा ही एक समाधान बड़े पैमाने पर जीवन कौशल के लेनदेन में निवेश करने वाले हितधारकों को वृहत् रूप से लाभान्वित कर सकता है। यह न केवल युवाओं को अपनी स्वयं की प्रज्ञता (लर्निंग) का प्रभार लेने में सक्षम करेगा, बल्कि पारितंत्र में मौजूदा प्रयासों पर आगे बढ़ने और इस क्षेत्र में लर्निग विशेषज्ञों के साथ सहयोग करने के अवसर भी प्रदान करेगा।

मौजूदा तंत्र का उपयोग

  • जीवन कौशल के बड़े पैमाने पर वितरण के लिये मौजूदा स्कूल प्रणालियों और व्यावसायिक प्रशिक्षण अवसंरचना का लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • भारत में 10 मिलियन से अधिक शिक्षक और 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल मौजूद हैं, जो एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति आधार और वितरण चैनल है जिसका दोहन किया जा सकता है।
  • हालाँकि यह ध्यान रखना भी महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षक पहले से ही कार्य बोझ से दबे हैं और कोविड काल में हुई शिक्षा की हानि की भरपाई का दबाव तंत्र पर अत्यधिक भार डाल रहा है।
  • इसलिये, यह आवश्यक है कि हम मुख्यधारा के पाठ्यक्रम के भीतर जीवन कौशल प्रशिक्षण के वितरण को सक्षम करने के लिये शैक्षणिक ढाँचे, पाठ योजनाओं और मूल्यांकन उपकरणों के साथ शिक्षकों की पर्याप्त सहायता, समर्थन और मार्गदर्शन करें।

स्मार्ट और उचित कृषि के लिये राह 

  • भारत में 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति (Green Revolution) ने राष्ट्र को घरेलू खाद्य उत्पादन में व्यापक स्तर उन्नत कर कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों की प्रगति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसने भारत को एक खाद्य-कमी वाले वाले देश से एक खाद्य-अधिशेष वाले और निर्यात-उन्मुख देश में रूपांतरित कर दिया है।
  • भारत में 70% ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका के लिये मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं, जिसमें से 82% छोटे और सीमांत किसान शामिल हैं।
  • हालाँकि अब भारत दूसरी पीढ़ी की  विशेष रूप से संवहनीयता, पोषण, नई कृषि तकनीकों के अंगीकरण और खेती पर निर्भर आबादी के आय स्तर के संबंध में समस्याओं का सामना कर रही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा और औद्योगिक क्षेत्र का प्रेरित विकास: भारत में समृद्ध कृषि उत्पादन, वृहत भारतीय आबादी की खाद्य सुरक्षा हेतु मुख्य कारक है।
  • कृषि चीनी, जूट, सूती वस्त्र और वनस्पति उद्योगों जैसे विभिन्न कृषि आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इसी प्रकार, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी कृषि पर ही निर्भर है।
  • औद्योगिक विकास के लिये ग्रामीण क्रय शक्ति में वृद्धि लाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि भारत की दो-तिहाई आबादी गाँवों में ही निवास करती है।
  • हरित क्रांति के बाद आय में वृद्धि के साथ बड़े किसानों की क्रय शक्ति में व्यापक रूप से वृद्धि हुई।
  • सरकारी राजस्व का स्रोत: कृषि देश की केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिये ही राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। भू-राजस्व में वृद्धि से सरकार को एक उल्लेखनीय आय प्राप्त हो रही है।
  • रेलवे, रोडवेज़ जैसे कुछ अन्य क्षेत्र भी कृषि वस्तुओं की आवाजाही से अपनी आय का एक उल्लेखनीय अंश प्राप्त कर रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में योगदान: कृषि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जूट, चाय, कॉफी और मसाले देश के जाने-माने पारंपरिक निर्यात उत्पाद हैं।

भारतीय कृषि के समक्ष विद्यमान वर्तमान चुनौतियाँ

  • मृदा स्वास्थ्य में गिरावट: पवन एवं जल अपरदन, निर्वनीकरण, शहरीकरण, प्राकृतिक वनस्पतियों की कटाई, वनों का कृषि-भूमियों में रूपांतरण आदि व्यापक रूप से मृदा स्वास्थ्य में गिरावट ला रहे हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) के विश्लेषण से देश भर में मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC) के खतरनाक रूप से निम्न स्तर की पुष्टि होती है। उल्लेखनीय है कि SOC मृदा के स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
  • खेतों का घटता आकार: भूमि के आकार के कारण श्रम उत्पादकता बाधित होती है। भारत में खेतों का औसत आकार लगातार छोटा होता जा रहा है जिससे श्रम उत्पादकता में बाधा उत्पन्न हो रही है और यह आकारिक मितव्ययिता (Economies Of Scale) को सीमित कर रहा है।
  • अधिकांश ग्रामीण परिवारों के खेत का आकार अव्यवहार्य स्तर तक छोटा हो गया है जिससे किसान खेती छोड़ बेहतर रोज़गार अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने के लिये प्रेरित हो रहे हैं।
  • प्रति बूंद अधिक फसल: राष्ट्रीय स्तर पर भारत के सकल फसल क्षेत्र (Gross Cropped Area-GCA) का केवल 52% ही सिंचाई के दायरे में है।
  • स्वतंत्रता के बाद से हुई उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत में खेतों का एक बड़ा अनुपात सिंचाई के लिये मानसून पर निर्भर है, जिससे फसल की तीव्रता बढ़ाने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • ऋण तक सुविधाजनक पहुँच का अभाव: छोटे और सीमांत किसानों के लिये सुविधाजनक ऋण उपलब्ध नहीं है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2018 में किये एक सर्वेक्षण के अनुसार छोटे भूखंड आकार के स्वामी किसानों ने बड़े भूखंड आकार (> 2 हेक्टेयर) के स्वामी किसानों की तुलना में गैर-संस्थागत ऋणदाताओं से अधिक ऋण लिया था।
  • यह इंगित करता है कि छोटे और सीमांत किसान बड़े किसानों की तुलना में ऋण के अनौपचारिक स्रोतों (जो अधिक ब्याज भी लेते हैं) पर अधिक निर्भरता रखते हैं।
  • फसल असुरक्षा: भारतीय कृषि के तेज़ी से व्यावसायीकरण के बावजूद अधिकांश किसान, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान, अनाज के उत्पादन को अधिक प्राथमिकता देते हैं (न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण) और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) की उपेक्षा करते हैं।
  • नीति अंतःस्रवण की अप्रभाविताभारत में लैंड लीजिंग कानूनों ने ऐसे रूप ग्रहण कर लिये हैं जो भू-स्वामी और पट्टेदार/काश्तकार के बीच औपचारिक लीजिंग अनुबंध को हतोत्साहित करते हैं।
  • देश में बड़ी संख्या में अनौपचारिक पट्टेदारी की स्थिति है। काश्तकारों की पहचान की कमी के कारण, काश्तकारों के लिये आपदा राहत और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण जैसे लक्षित लाभ भू-स्वामियों को वितरित हो जाने का जोखिम रखते हैं क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड में भू-स्वामी ही काश्तकार प्रतीत होता है

कृषि क्षेत्र के विकास के लिये सरकार की कुछ प्रमुख पहलें

  • ई-नाम पोर्टल (E-NAM Portal)
  • परंपरागत कृष विकास योजना (PKVY)
  • प्रधानमंत्री फसल बीम योजना (PMFBY)
  • सूक्ष्म सिंचाई कोष (MIF)
  • एग्रीस्टैक (AgriStack

आगे की राह

  • पारंपरिक और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को संयुक्त करना: वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) और पौधों के पोषक तत्त्वों, कीट प्रबंधन आदि के लिये जैविक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण (Recycling Of Organic Waste) के क्षेत्र में पारंपरिक प्रौद्योगिकियाँ अत्यंत उपयोगी और प्रासंगिक साबित हुई हैं।
  • एक सहक्रियात्मक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये पारंपरिक प्रौद्योगिकियों को टिशू कल्चर, जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसी आधुनिक फ्रंटियर प्रौद्योगिकियों के साथ संयुक्त किया जाना चाहिये ताकि उच्च उत्पादकता प्राप्त की जा सके।
  • ज्ञान गहन कृषि (Knowledge Intensive Agriculture) के लिये इनपुट: भारत कृषि पद्धतियों की विविधता के लिये जाना जाता है। भविष्य के लिये उपयुक्त समाधान पाने हेतु राष्ट्रीय स्तर के संवाद में विविध दृष्टिकोणों को शामिल किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा, उन्नत राष्ट्र अब परिशुद्ध कृषि (Precision Farming) की ओर आगे बढ़ रहे हैं जहाँ इनपुट के सटीक अभ्यासों और अनुप्रयोगों के लिये सेंसर एवं अन्य वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
  • भारत में हाई-टेक फार्मिंग की ओर एक कुशल/स्मार्ट और सटीक कदम औसत लागत को कम करेगा, किसानों की आय बढ़ाएगा और कई अन्य आकारिक चुनौतियों (Challenges Of Scale) का समाधान करेगा।
  • अनुसंधान और नवाचार में निवेश: कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दूर करने और संवहनीय कृषि की दिशा में आगे बढ़ने के लिये कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार में वृद्धि करना आवश्यक है।
  • उदाहरण के लिये, पशुधन क्षेत्र भारत में कृषि क्षेत्र के भीतर कार्बन उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान करता है, इसलिये स्थायी समाधान खोजने के लिये उनके प्रभावों का आकलन करना महत्त्वपूर्ण है।
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographical Information System- GIS) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग (AIML) जैसी नवीन प्रौद्योगिकियाँ कृषि में एक क्रांतिकारी युग को आधार प्रदान करने के लिये तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं।
  • जैव सुरक्षा की ओर: चूँकि भारत कीट और खरपतवार के हमलों के प्रति अतिसंवेदनशील है, इसलिये उपभोक्ताओं की खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पशुओं एवं पौधों के जीवन एवं उनके स्वास्थ्य के लिये उत्पन्न जोखिमों से निपटने हेतु एक रणनीतिक और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय किसान आयोग (National Farmers Commission) के अध्यक्ष एम.एस. स्वामीनाथन ने भी एक राष्ट्रीय कृषि जैव सुरक्षा कार्यक्रम (National Agricultural Biosecurity Program) स्थापित करने की सिफारिश की थी।
  • फसल अधिशेष प्रबंधन का उन्नयन: पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन, बीज, उर्वरक और कृषि रसायन गुणवत्ता विनियमन के लिये एक अवसंरचना उन्नयन और विकास कार्यक्रम की आवश्यकता है।
  • इसके साथ ही, उपार्जन केंद्रों की ग्रेडिंग और मानकीकरण को बढ़ावा देना भी आवश्यक है।
  • बाज़ार एकीकरण के माध्यम से व्यापक लाभ उठानाघरेलू बाज़ारों को सुव्यवस्थित करने और स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय एवं वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिये बुनियादी ढाँचे और संस्थानों को स्थापित किया जाना चाहिये।
  • घरेलू एवं वैश्विक बाज़ारों के बीच सहज एकीकरण की सुविधा हेतु और व्यापार उदारीकरण को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये भारत को एक नोडल संस्थान की आवश्यकता है जो वैश्विक और घरेलू मूल्य संचालनों की सूक्ष्म निगरानी कर सके तथा बड़े आघातों से बचाव के लिये समयबद्ध एवं उपयुक्त उपाय कर सके।

उदारीकरण से परे आर्थिक सुधारों की आवश्यकता 

वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न हुए सभी व्यवधानों के बावजूद पिछले 2 वर्षों में भारत का भुगतान संतुलन अधिशेष की स्थिति में बना रहा है।

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही में यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ दिया है और विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है
  • IMF और विश्व बैंक (WB) यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि अन्य देश भारत के विकास से लाभान्वित हो सकें; विशेष रूप से उनके मुख्य वित्तपोषक, बड़े पूंजी निर्यातक यह लाभ उठा सकें। लेकिन संरचनात्मक भूमि, श्रम और अन्य बाज़ार-उद्घाटन सुधारों की IMF-WB की पवित्र त्रयी से भारत के घरेलू बाज़ार को नुकसान पहुँचता है और
  • एक बिंदु से परे गंभीर प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न होती है जो फिर बड़ी राजनीतिक लागत लेकर आती है।\
  • वर्ष 1991 के बाद भारत ने अपने आर्थिक नियंत्रणों में ढील देना शुरू किया और उदारीकरण के बढ़े हुए स्तर से देश के निजी क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई। तब से हमारे देश की विकास यात्रा उतार-चढ़ाव, उपयोग किये गए अवसरों और सीखे गए सबक की एक रोचक कहानी रही है
  • हालाँकि उदारीकरण ने नए अवसर पैदा किये हैं, लेकिन एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का रूपांतरण ने अभी तक इसके सभी नागरिकों को पूरी तरह से लाभान्वित नहीं किया है।

भारत को तुलनात्मक बढ़त प्रदान करने वाले संभावनाशील क्षेत्र

  • अंतर्मुखी उदारीकृत अर्थव्यवस्था (Inward Looking Liberalised Economy)भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक एक अंतर्मुखी और घरेलू मांग संचालित अर्थव्यवस्था है।
  • इसके अलावा, भारत अब एक ‘बंद’ (closed) नहीं बल्कि उदारीकृत अर्थव्यवस्था है जो अपने प्रतिस्पर्द्धी लाभ को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखता है और यह भारत को वर्ष 2047 तक एक मध्यम आय वाले देश बनने की राह पर ले जाएगा।
  • जनसांख्यिकी लाभांश (Demographic Dividend): भारत ने वर्ष 2005-06 में जनसांख्यिकीय लाभांश अवसर खिड़की में प्रवेश कर लिया है जहाँ वह वर्ष 2055-56 तक बना रहेगा। लगभग 65 प्रतिशत भारतीय कामकाजी आयु (working age) के हैं, जो भारत को भविष्य में आधे से अधिक एशिया के लिये संभावित कार्यबल बनाते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में अग्रणीकृषि और संबद्ध क्षेत्र निस्संदेह भारत में, विशेष रूप से इसके विशाल ग्रामीण क्षेत्रों में, सबसे बड़े आजीविका प्रदाता हैं। इसके अलावा, भारत में फसल पैटर्न गन्ना और रबड़ जैसी नकदी फसलों की ओर स्थानांतरित हुआ है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार कृषि और संबद्ध क्षेत्र कोविड-19 के आघात के प्रति सबसे अधिक लचीले साबित हुए, जहाँ इनमें वर्ष 2020-21 में 3.6% की और वर्ष 2021-22 में 3.9% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • इसके साथ ही, खाद्य प्रसंस्करण का ‘सूर्योदय उद्योग’ (Sunrise Industry) के रूप में उभार हो रहा है।
  • IT और बिज़नेस सर्विसेज़ आउटसोर्सिंग से लाभ उठा सकने के अनुकूल: भारत लंबे समय से एक ‘टेक-सैवी’ देश के रूप में पहचाना जाता रहा है। इंफोसिस, विप्रो और TCS जैसी भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियों ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है।
  • निम्न-लागत लाभ, अंग्रेज़ी बोल सकने वाली कुशल जनशक्ति का एक बड़ा पूल और नवीनतम प्रौद्योगिकी समाधान भारत को सबसे आकर्षक आउटसोर्सिंग हब बनाते हैं।
  • पसंदीदा पर्यटन गंतव्य: विशाल सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही भारत अपने समृद्ध इतिहास और उल्लेखनीय विविधता के लिये अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।
  • उत्तर-महामारी समय में विश्व में यात्रा इच्छा की जागृति के साथ यात्रा और पर्यटन पुनर्जीवित हो रहे हैं, जो भारत को अपने पर्यटन उद्योग का विकास करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं। इससे भारत गर्मजोशी से आतिथ्य प्रदान करने और रोज़गार पैदा करने दोनों में सक्षम होगा

भारत के लिये सतत् आर्थिक विकास की राह की प्रमुख बाधाएँ

  • समसामयिक भू-राजनीतिक मुद्दे: उभरते बाज़ार (भारत सहित) कई तरह से भू-राजनीतिक जोखिम का खामियाजा भुगतते हैं। इसमें आपूर्ति शृंखला की बाधाएँ प्रमुख हैं जो मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को चौड़ी करती हैं।
  • उदाहरण के लिये, रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप वैश्विक कमी उत्पन्न हुई जिससे भारत को कच्चे तेल और उर्वरकों के आयात के लिये अधिक भुगतान करना पड़ा है।
  • निकट अतीत में रोगारहीन विकास: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार भारत में बेरोज़गारी दर लगभग 7-8% है। ऐसा इसलिये है क्योंकि रोज़गार वृद्धि का जीडीपी वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रहा है।
  • कार्य सक्षम श्रमबल का केवल 40% ही वास्तव में कार्यरत है या कार्य की तलाश में है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी दर और कम है।
  • व्यापक व्यापार घाटा: भारत के निर्यात की प्रवृत्ति में गिरावट आई है जहाँ जुलाई 2022 में भारत का व्यापार घाटा 31 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया। ऐसा विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे अमेरिका) में मंदी के रुझान और उच्च कमोडिटी मूल्यों के कारण हुआ।
  • पूंजी का बहिर्वाह और चालू खाता घाटा भारतीय रुपए पर दबाव डाल रहा है
  • जलवायु परिवर्तन का खतरा: भारत जैसे विकासशील देशों के लिये आर्थिक प्रगति और जलवायु परिवर्तन के बीच राहों का टकराव अपरिहार्य है क्योंकि आर्थिक विकास के कई पहलू पर्यावरण की सेहत के साथ संबद्ध हैं, जिसके अभाव में आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (ISM) से कृषि उत्पादन, जल संसाधन, मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं। हाल के समय में ISM में अनिश्चित पैटर्न का उभार हुआ है जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी बाढ़ और ग्रीष्म लहरों जैसी स्थिति बनी है।
  • अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई: ‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2022’ (World Inequality Report 2022) के अनुसार भारत की शीर्ष 10% आबादी कुल राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा धारण करती है, जबकि नीचे की 50% आबादी का हिस्सा घटकर 13% रह गया है।
  • भारत की असमानता असमान अवसर के कारण सीमित ऊर्ध्वगामी गतिशीलता से प्रेरित है।

आगे की राह

  • आर्थिक विकास लक्ष्यों की स्थापना: भारत का प्रदर्शन न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि वह समकालीन चुनौतियों का कितनी अच्छी तरह से सामना करता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिये वह कितना तैयार है।
  • भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उसके नीतिगत विकल्प आधुनिक तकनीकी समाधानों के साथ सुदृढ़ और अग्रगामी हों। इसके लिये भारत के पास एक प्रभावी रणनीति हो जो देश के आर्थिक विकास लक्ष्यों की पारदर्शी अभिव्यक्ति पर आधारित हो।
  • इन लक्ष्यों को एक ऐसी महत्त्वाकांक्षा की रूपरेखा तैयार करनी चाहिये जो साहसिक, ऊर्जावान और देश की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हो।
  • सामाजिक और आर्थिक विकास का एकीकरण: आर्थिक विकास जो सामाजिक विकास प्राप्त नहीं करे, वह समाज को खंडित करता है और अंततः समृद्धि की नींव को ही नष्ट कर देता है।
  • इसलिये, वर्तमान में सक्रिय श्रम बाज़ार से बाहर के लोगों के लिये प्रतिस्पर्द्धी नौकरियों के सृजन को सक्षम करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही ही उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता है।
  • भारत में विनिर्माण, भारत के लिये विनिर्माण: ‘ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफेक्ट’ पर विशेष बल देते हुए ‘मेक इन इंडिया’ पहल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार की आवश्यकता है जो केवल बड़े विनिर्माण के बजाय छोटे पैमाने के विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद कर सके।
  • कारोबार सुगमता प्रदान करना: अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट अवसरों का निर्धारण और कारोबार सुगमता को सक्षम करने वाले एक स्वस्थ कारोबारी माहौल का निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय युवाओं को सशक्त बनाना: निकट भविष्य में जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिये कौशल विकास को भारत में पारंपरिक स्कूली शिक्षा के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • भारत को पेरू जैसे उदाहरणों से प्रेरणा लेनी चाहिये जहाँ ‘इनोवा स्कूल’ (Innova Schools) संचालित किये जा रहे हैं, जो छात्रों को लागत-प्रभावी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु एक आकर्षक मॉडल प्रदान करते हैं।
  • भारतीय महिलाओं की क्षमता के द्वार खोलना: शिक्षा में लैंगिक अंतराल की समाप्ति और महिलाओं के वित्तीय एवं डिजिटल समावेशन के साथ उनके लिये बाधाकारी स्थितियों का अंत हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों को सुदृढ़ बनाना: विदेशी निवेश बढ़ाने, निर्यात बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास का समर्थन करने के लिये अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों की आवश्यकता है।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों पर बाबा कल्याणी समिति (Baba Kalyani Committee on SEZs) ने सिफ़ारिश की है कि SEZs में MSME निवेश को MSME योजनाओं से जोड़कर और क्षेत्र-विशिष्ट SEZs को अनुमति देकर प्रोत्साहित किया जाए।
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