भावार्थ :
इस कविता में कवि ने माँ के उस पीड़ा को व्यक्त किया है जब वह अपने बेटी को विदा करती है। उस समय मान को लगता है जैसे उसने अपने जीवन भर की पूंजी गँवा दी। माँ के हृदय में आशंका बनी रहती है कि कहीं ससुराल में उसे कष्ट तो नही होगा, अभी वो भोली है। विवाह के बाद वह केवल सुखी जीवन की कल्पना कर सकती है किन्तु जिसने कभी दुःख देखा नही वह भला दुःख का सामना कैसे करेगी। कवि कहते हैं कि सुख सौभाग्य को वह अबोध बेटी पढ़ सकती है परन्तु अनचाहे दुखों को वह पढ़ और समझ नही सकती।
माँ अपनी बेटी को सीख देते हुए कहतीं हैं कि प्रतिबिम्ब देखकर अपने रूप-सौंदर्य पर मत रीझना। यह स्थायी नही है। माँ दूसरी सीख देते हुए कहती हैं कि आग का उपयोग खाना बनाने के लिए होता इसका उपयोग जलने जलाने के लिए मत करना। यह सीख उन मानसिकता वाले लोगों पर कटाक्ष है जो दहेज़ के लालच में अपनी दुल्हन को जला देते हैं। तीसरी सीख देते हुए माँ कहतीं हैं कि वस्त्र आभूषणों को ज्यादा महत्व मत देना, ये स्त्री जीवन के बंधन हैं। इनसे ज्यादा लगाव अच्छा नही है। माँ कहतीं हैं लड़की होना कोई बुराई नही है परन्तु लड़की जैसी कमजोर असहाय मत दिखना। जरुरत पड़ने पर कोमलता, लज्जा आदि को परे हटाकर अत्याचार के प्रति आवाज़ उठाना।
कवि परिचय
ऋतुराज
इनका जन्म सन 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविधालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए किया। चालीस वर्षो तक अंग्रेजी साहित्य के अध्यापन के बाद अब वे सेवानिवृत्ति लेकर जयपुर में रहते हैं। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और वे अपने आसपास रोजमर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर निग़ाह डालते हैं, इसलिए उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुडी हुई है।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह – एक मरणधर्मा और अन्य, पुल और पानी, सुरत निरत और लीला मुखारविंद।
पुरस्कार – सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार।
कठिन शब्दों के अर्थ
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2. कन्यादान के पाठ में कौन-कौन से कथानक हैं? | ![]() |
3. कन्यादान की कहानी में किस तरह का संदेश दिया गया है? | ![]() |
4. कन्यादान की कहानी में पाठकों को कौन-कौन से सूचनात्मक तत्व प्राप्त होते हैं? | ![]() |
5. कन्यादान के पाठ में कौन-कौन से विचार प्रस्तुत किए गए हैं? | ![]() |