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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): April 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हीट वेव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवी मुंबई में एक सरकारी पुरस्कार समारोह में भाग लेने के दौरान लू से प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित लोगों को देखा गया। यह घटना हीट वेव के संभावित खतरों को रेखांकित करती है, जो कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिक तीव्र एवं लगातार होने का अनुमान है।

  • लंबी दूरी की यात्रा, अंतर्निहित चिकित्सा मुद्दे, और बड़ी सभाओं में पीने के जल और चिकित्सा देखभाल तक पहुँच की कमी कुछ ऐसे कारक हैं जो लोगों को हीट स्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

हीट वेव

  • परिचय:  
    • हीट वेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
    • भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीट वेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
  • भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड:
    • मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र: यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीट वेव की स्थिति माना जाता है।
    • हीट वेव के मानक से विचलन का आधार: विचलन 4.50 डिग्री सेल्सियस से 6.40 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
    • चरम हीट वेव: सामान्य से विचलन>6.40°C है।
    • वास्तविक अधिकतम तापमान हीट वेव पर आधारित: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥45°C हो।
    • चरम हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥47 डिग्री सेल्सियस हो।
    • यदि एक मौसम विज्ञान उपखंड के भीतर कम-से-कम दो स्थान न्यूनतम दो दिनों के लिये उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो इसकी घोषणा दूसरे दिन की जाती है।
  • तटीय क्षेत्र:  
    • जब अधिकतम तापमान विचलन सामान्य से 4.50 डिग्री सेल्सियस अथवा अधिक होता है, तो इसे हीट वेव कहा जा सकता है, बशर्ते वास्तविक अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक हो।
  • मृत्यु:  
    • उच्च तापमान अपने आप में उतना घातक नहीं होता है जितना कि उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता का संयोजन, जिसे वेट बल्ब तापमान कहा जाता है। यह हीट वेव को और घातक बनाता है।
    • वातावरण में उच्च नमी के कारण पसीने को वाष्पित होने और शरीर को ठंडा रखने में कठिनाई होती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर का आंतरिक तापमान तेज़ी से बढ़ता है और अक्सर घातक होता है। 
  • कारण:  
    • ग्लोबल वार्मिंग: यह भारत में हीट वेव के प्राथमिक कारणों में से एक है जो मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक गतिविधियों के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को संदर्भित करता है।
    • ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे हीट वेव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • शहरीकरण: तेज़ी से शहरीकरण और शहरों में कंक्रीटों संरचनाओं की वृद्धि "नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव (urban heat island effect)" के रूप में जानी जाने वाली घटनाओं को जन्म दे सकता है।
    • उच्च जनसंख्या घनत्त्व वाले शहरी क्षेत्र, इमारतें और कंक्रीट की सतह अधिक गर्मी को अवशोषित करती हैं तथा ऊष्मा को बनाए रखती हैं जिस कारण हीट वेव के दौरान तापमान उच्च होता है।
    • अल नीनो प्रभाव: अल नीनो घटना के दौरान प्रशांत महासागर का गर्म होना वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित कर सकता है जिससे विश्व भर में तापमान, वर्षा और वायु के पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
    • भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में प्रभावी ला नीना अवधि के समाप्त होने और अल नीनो घटना के अनुमान से पहले होने के कारण वर्ष 2023 की गर्मियों के मौसम के असामान्य रूप से गर्म होने की आशंका है।
  • प्रभाव  
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव:  
      • गर्मी में तेज़ी से वृद्धि तापमान को नियंत्रित करने की शरीर की क्षमता से समझौता कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप गर्मी में ऐंठन, थकावट, हीटस्ट्रोक और हाइपरथर्मिया सहित कई बीमारियाँ हो सकती हैं।  
      • गर्मी से होने वाली मौतें और अस्पताल में भर्ती होने की घटनाएँ बहुत तेज़ी से बढ़ सकती हैं या इनका प्रभाव पड़ सकता है।
      • जल संसाधनों पर प्रभाव: गर्म हवाएँ भारत में जल की कमी के मुद्दों को बढ़ा सकती हैं; जल निकायों का सूखना, कृषि और घरेलू उपयोग के लिये जल की उपलब्धता में कमी एवं जल संसाधनों के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा।
      • इससे जल को लेकर  संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, सिंचाई के तरीके प्रभावित हो सकते हैं तथा जल पर निर्भर उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है।
      • ऊर्जा पर प्रभाव: गर्म हवाएँ शीतलन उद्देश्यों के लिये बिजली की मांग को बढ़ा सकती हैं, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव और संभावित ब्लैकआउट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • यह आर्थिक गतिविधियों, उत्पादकता और कमज़ोर आबादी को प्रभावित कर सकता है, जिनकी गर्म हवाओं के दौरान शीतलता प्रदान करने के लिये विश्वसनीय बिजली तक पहुँच नहीं है

आगे की राह 

  • हीट वेव्स एक्शन प्लान: गर्म हवाओं के प्रतिकूल प्रभावों से संकेत मिलता है कि हीट वेव क्षेत्रों में गर्म हवा के प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी आपदा अनुकूलन रणनीतियों और अधिक मज़बूत आपदा प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता है।
  • चूँकि गर्म हवाओं के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है, इसलिये सरकार को मानव जीवन, पशुधन और वन्य जीवन की सुरक्षा के लिये दीर्घकालिक कार्ययोजना तैयार करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-30 के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क का प्रभावी कार्यान्वयन, जिसमें राज्य अग्रणी भूमिका निभा रहे है और अन्य हितधारकों के साथ ज़िम्मेदारी साझा करना, अब समय की मांग है।
  • जलवायु कार्ययोजनाओं को लागू करना: समावेशी विकास और पारिस्थितिक स्थिरता के लिये जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को उचित रूप से लागू किया जाना चाहिये।
  • प्रकृति-आधारित समाधानों को ध्यान में रखा जाना चाहिये, यह कार्य न केवल जलवायु परिवर्तन से प्रेरित गर्म हवाओं से निपटने के लिये बल्कि एक ऐसे तरीके से करना चाहिये जो नैतिक हो और अंतर-पीढ़ीगत न्याय को बढ़ावा दे।
  • सस्टेनेबल कूलिंग: पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, जो प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों के निर्माण में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये अर्बन हीट आइलैंड को संबोधित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) के तीसरे भाग में कहा कि प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइन, जिन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल किया है, को ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक सुविधाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है।
  • हीट वेव न्यूनीकरण योजनाएँ: गर्मी से होने वाली मौतों को प्रभावी उपायों जैसे कि पानी तक पहुँच, ओरल पुनर्जलीकरण समाधान (ORS) और छाया, विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों पर लचीले काम के घंटे तथा बाहरी श्रमिकों के लिये विशेष व्यवस्था के माध्यम से कम किया जा सकता है।
  • सतर्कता के साथ स्थानीय प्रशासन द्वारा सक्रिय कार्यान्वयन, उच्च अधिकारियों द्वारा निगरानी भी महत्त्वपूर्ण है।

हाथियों का स्थानांतरण

चर्चा में क्यों?  

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केरल सरकार की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें मुन्नार के "राइस टस्कर" अरिकोम्बन (जंगली हाथी) को परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था।

हाथी स्थानांतरण के पक्ष में तर्क

  • केरल उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुनर्वास स्थल में प्राकृतिक भोजन एवं जल संसाधनों की उपलब्धता हाथी को मानव बस्तियों में भोजन की तलाश में जाने से रोकेगी। 
  • न्यायालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हाथी को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा तथा वन/वन्यजीव अधिकारियों द्वारा उनकी गतिविधियों की निगरानी की जाएगी, जो किसी भी संघर्ष की स्थिति के कारण अचानक आने वाले संकट को प्रभावी ढंग से दूर करेगा।

हाथी के स्थानांतरण के विरोध में तर्क

  • भारत का पहला रेडियो-टेलीमेट्री अध्ययन वर्ष 2006 में दक्षिण बंगाल के पश्चिम मिदनापुर की फसल वाली भूमि से दार्जिलिंग ज़िले के महानंदा वन्यजीव अभयारण्य में स्थानांतरित एक बड़े नर हाथी पर किया गया था।   
  • लगभग तुरंत ही हाथी ने गाँवों एवं सेना क्षेत्रों में घरों पर हमला तथा फसलों को क्षति पहुँचाना शुरू कर दिया था।
  • वर्ष 2012 में एशियाई हाथियों के स्थानांतरण समस्या पर एक अध्ययन किया गया था, जिसमें जीव-विज्ञानियों की एक टीम ने श्रीलंका के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में 16 बार स्थानांतरित किये गए 12 नर हाथियों की निगरानी की थी।
  • अध्ययन में पाया गया कि स्थानांतरण के कारण मानव-हाथी संघर्ष की व्यापक स्थिति और इसमें तीव्रता हुई, जिसके कारण हाथियों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई।
  • दिसंबर 2018 में विनायगा बैल जिसे फसलों की व्यापक क्षति करने हेतु जाना जाता है, को कोयंबटूर से मुदुमलाई-बांदीपुर क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • यह फसलों को क्षति पहुँचाने हेतु हाथियों से सुरक्षित रहने के लिये बनाई गई खाई को भी पार कर जाता था।

हाथी

  • परिचय:  
    • हाथी भारत का प्राकृतिक धरोहर पशु है।
    • हाथियों को "कीस्टोन प्रजाति" माना जाता है क्योंकि वे वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • वे अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता हेतु जाने जाते हैं, जिनका स्थलीय जानवरों में सबसे बड़ा मस्तिष्क होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्व:  
    • हाथी बहुत महत्त्वपूर्ण चरने वाले और ब्राउज़र (ऐसा जानवर जो पत्तियों, ऊँचे उगने वाले पौधों के फल, मुलायम अंकुर झाड़ियों को खाने में माहिर होता है) हैं, क्योंकि वे प्रत्येक दिन भ्रमण करते हुए बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खा जाते हैं और साथ ही इन वनस्पतियों के बीजों को चारों ओर फैलाते हैं।
    • वे एशियाई परिदृश्य की प्रायः सघन वनस्पति को आकार देने में भी मदद करते हैं।
    • उदाहरण के लिये वनों में सूरज की रोशनी को नए अंकुरों तक पहुँचने में हाथी काफी मदद करते हैं, वे पौधों को बढ़ने में मदद करते हैं तथा वनों को प्राकृतिक रूप से पुन: उत्पन्न होने में मदद करते हैं।
    • सतही जल नहीं होने की स्थिति में हाथी जल के लिये खुदाई में भी मदद करते हैं जिससे अन्य प्राणियों के साथ-साथ स्वयं के लिये भी जल तक पहुँच सुनिश्चित करने में मदद प्राप्त हो सकती है।
  • भारत में हाथियों की स्थिति:
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार, भारत में जंगली एशियाई हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
    • यह इन प्रजातियों की वैश्विक आबादी का लगभग 60% है।
    • कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद असम और केरल का स्थान है।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • प्रवासी प्रजातियों का अभिसमय (CMS): परिशिष्ट I
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
    • IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध प्रजातियाँ:
    • एशियाई हाथी- लुप्तप्राय
    • अफ्रीकी वन हाथी- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
    • अफ्रीकी सवाना हाथी- लुप्तप्राय

संरक्षण हेतु किये गए अन्य प्रयास

भारत

भारत सरकार ने 1992 में भारत में हाथियों और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा के लिये प्रोजेक्ट एलीफेंट की शुरुआत की थी।

  • हाथियों के संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध भारत में हाथी रिज़र्व की संख्या 33 है।

वैश्विक स्तर पर

  • विश्व हाथी दिवस: हाथियों की रक्षा और संरक्षण की तत्काल आवश्यकता के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जाता है।
  • एशियाई और अफ्रीकी दोनों हाथियों की गंभीर स्थिति को उजागर करने के लिये वर्ष 2012 में इस दिवस की स्थापना की गई थी।
  • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (माइक) कार्यक्रमयह एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है जो हाथियों की मृत्यु दर के स्तर, प्रवृत्तियों और कारणों को मापता है, जिससे एशिया और अफ्रीका में हाथियों के संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय निर्णय लेने व समर्थन करने के लिये एक सूचना आधार प्रदान करता है।

आगे की राह

  • स्थानांतरण प्रभाव आकलन:
    • हाथियों की प्रत्येक समस्या और उनके संभावित स्थानांतरण स्थल की विशिष्ट परिस्थितियों एवं विशेषताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है। 
    • प्राकृतिक भोजन और जल संसाधनों की उपलब्धता, आवास उपयुक्तता और संभावित जोखिमों एवं स्थानांतरण की चुनौतियों का आकलन करने के लिये गहन शोध तथा विश्लेषण किया जाना चाहिये।
  • निगरानी और प्रबंधन: 
    • स्थानांतरण के बाद की निगरानी और किसी भी संभावित संघर्ष को कम करने के उपायों सहित उचित निगरानी एवं प्रबंधन योजनाएँ भी होनी चाहिये। 
    • जबकि हाथियों की स्थानांतरण समस्या को मानव-हाथी संघर्ष को कम करने की रणनीति के रूप में माना जा सकता है, इसे सावधानी से किया जाना चाहिये और ध्वनि वैज्ञानिक अनुसंधान, सामुदायिक जुड़ाव तथा व्यापक प्रबंधन आधारित योजना दोनों की भलाई सुनिश्चित करने, हाथियों और स्थानीय समुदायों के बीच संभावित जोखिम को कम करने के लिये होनी चाहिये।
  • हाथियों के स्थानांतरण का विकल्प:  
    • जंगली हाथियों को 'कुंकी' (एक प्रशिक्षित हाथी जो जंगली हाथियों को पकड़ने के लिये इस्तेमाल किया जाता है) की मदद से पकड़ना और स्थानांतरण करना एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
    • यह विधि कई लाभ प्रदान कर सकती है, जिसमें प्रशिक्षित 'कुंकियों' के साथ परिचित होने के कारण पकड़े जाने के दौरान अधिक सुरक्षा, स्थानांतरित हाथियों पर कम तनाव और स्थानांतरण प्रयासों की सफलता दर में सुधार शामिल है।

स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022: WMO

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट 2022 जारी की है।

  • यह रिपोर्ट प्रमुख जलवायु संकेतकों- ग्रीनहाउस गैस, तापमान, समुद्र स्तर में वृद्धि, महासागरीय ताप और अम्लीकरण, समुद्री बर्फ एवं हिमनद पर केंद्रित है। यह जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम के प्रभावों पर भी प्रकाश डालती है।
  • इससे पहले WMO ने ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, 2022 की अस्थायी स्थिति जारी की।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • तापमान:
    • वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान वर्ष 1850-1900 के औसत से 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
    • वर्ष 1850 के बाद वर्ष 2015 से 2022 के लिखित रिकॉर्ड में ये आठ वर्ष सबसे गर्म दर्ज किये गए थे।
    • यह स्थिति लगातार तीन वर्षों तक कूलिंग La Niña के बावजूद थी- ऐसा "ट्रिपल-डिप" La Niña पिछले 50 वर्षों में केवल तीन बार हुआ है।
  • ग्रीनहाउस गैस:
    • तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैस, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता वर्ष 2021 में रिकॉर्ड उँचाई पर पहुँच गई थी।
    • वर्ष 2020-2021 तक मीथेन सांद्रता में रिकॉर्ड वार्षिक वृद्धि देखी गई थी।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि:
    • ग्लोबल मीन सी लेवल (GMSL) वर्ष 2022 में भी बढ़ना जारी रहा, जो सैटेलाइट अल्टीमीटर रिकॉर्ड के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
    • वर्ष 2005-2019 की अवधि में हिमनदों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में कुल हिम भूमि के नुकसान ने GMSL वृद्धि में 36 प्रतिशत और समुद्र के गर्म होने में 55 प्रतिशत का योगदान दिया।
  • महासागरीय ताप:
    • वर्ष 2022 में समुद्री गर्मी की मात्रा एक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई।
    • ग्रीनहाउस गैसों द्वारा जलवायु प्रणाली में फँसी हुई लगभग 90 प्रतिशत ऊर्जा समुद्र में चली जाती है, यह कुछ हद तक उच्च तापमान में वृद्धि भी करती है और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये जोखिम उत्त्पन्न करती है।
  • महासागरीय अम्लीकरण:
    • CO2 का समुद्री जल के साथ प्रतिक्रिया करने से pH में कमी आती है जिसे 'महासागरीय अम्लीकरण' कहा जाता है, इससे जीवों और पारिस्थितिकी तंत्र प्रणालियों को खतरा होता है।
    • IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि "यह काफी निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि समुद्र का सतही pH वर्तमान में सबसे कम [26 हज़ार वर्षों में] है और pH परिवर्तन की वर्तमान दर कम-से-कम उस समय की तुलना में अभूतपूर्व है।
  • समुद्री बर्फ:
    • अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ के घनत्त्व में फरवरी 2022 में रिकॉर्ड सबसे निचले स्तर 1.92 मिलियन कि.मी2 तक की गिरावट आई और दीर्घावधि (1991-2020) औसत से तुलना करें तो यह लगभग 1 मिलियन कि.मी.2 नीचे है।
  • हिमनद:
    • अक्तूबर 2021 और अक्तूबर 2022 के बीच औसतन -1.3 मीटर से अधिक की मोटाई में बदलाव के साथ हिमनदों में बर्फ की कमी हुई है जो पिछले दशक के औसत से काफी अधिक है।
    • सर्दियो में हिमपात में कमी, मार्च 2022 में सहारा मरुस्थल से आने वाली धूल और मई से सितंबर की शुरुआत तक हीट वेव के कारण यूरोपीय आल्प्स में अभूतपूर्व रूप से हिमनद पिघले।

जलवायु संकेतकों के रिकॉर्ड उच्च आँकड़ों का प्रभाव

  • पूर्वी अफ्रीका में सूखा:
    • लगातार पाँच वर्षा ऋतुओं में वर्षा औसत से कम रही है, यह पिछले 40 वर्षों में इस तरह का सबसे लंबा क्रम है। जनवरी 2023 तक के अनुमान के अनुसार, सूखे और अन्य आपदाओं के के कारण 20 मिलियन से अधिक लोगों को पूरे क्षेत्र में तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा था।
  • पाकिस्तान में व्यापक वर्षण:
    • कुल नुकसान और आर्थिक नुकसान का आकलन 30 अरब अमेरिकी डॉलर आँका गया था।
    • राष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड किये गए सबसे नम महीने जुलाई (सामान्य से 181% अधिक) और अगस्त (औसत से 243% अधिक) थे।
    • पाकिस्तान में बाढ़ ने प्रभावित ज़िलों में लगभग 8,00,000 अफगान शरणार्थियों सहित लगभग 33 मिलियन लोगों को प्रभावित किया।
  • यूरोप में हीट वेव:
    • अत्यधिक गर्मी और असाधारण शुष्क मौसम कई क्षेत्रों में सह-अस्तित्त्व में थे। यूरोप में गर्मी के कारण हुई 15,000 से अधिक अतिरिक्त मौतें स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्राँस और पुर्तगाल में दर्ज की गईं।
    • चीन ने आधिकारिक रिकॉर्ड की शुरुआत के बाद से अपनी सबसे व्यापक एवं सबसे लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव का अनुभव किया, जो जून के मध्य से अगस्त के अंत तक रही और यह सबसे शुष्क गर्मी रिकॉर्ड 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक रही। इसके अतिरिक्त यह अब तक की दूसरी सबसे शुष्क गर्मी थी।
  • खाद्य असुरक्षा:
    • वर्ष 2021 तक 2.3 बिलियन लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जिनमें से 924 मिलियन लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।
    • अनुमान है कि वर्ष 2021 में 767.9 मिलियन लोग कुपोषण का सामना कर रहे थे, जो वैश्विक जनसंख्या का 9.8% है।
    • इनमें से आधे एशिया में और एक-तिहाई अफ्रीका में हैं।
  • भारत और पाकिस्तान में पूर्व-मानसून हीट वेव:
    • भारत और पाकिस्तान में मौसम पूर्व-मानसून हीटवेव के कारण फसल की उत्पादकता में गिरावट आई है।
    • इसके साथ-साथ यूक्रेन में संघर्ष की शुरुआत के बाद से भारत में गेहूँ और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण अंतर्राष्ट्रीय खाद्य बाज़ारों में मुख्य खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, पहुँच और स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लगने के साथ पहले से ही कमी से प्रभावित देशों के लिये इस संदर्भ में उच्च जोखिम उत्पन्न हुआ है।
  • विस्थापन:
    • सोमालिया में लगभग 1.2 मिलियन लोग सूखे के भयावह प्रभावों से खेती और आजीविका पर पड़े प्रभावों के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित हुए जिनमें से 60,000 से अधिक लोग इसी अवधि के दौरान इथियोपिया एवं केन्या की ओर विस्थापित हुए

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • भारत, विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
  • इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
  • 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गया है।
  • WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

भारत की चीता स्थानांतरण परियोजना

चर्चा में क्यों?

भारत की महत्त्वाकांक्षी चीता स्थानांतरण परियोजना (Cheetah Translocation Project) को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि दो चीतों की मौत के कारण परियोजना में बचे चीतों की संख्या 20 में से 18 रह गई है।

  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 23 अप्रैल, 2023 को छह वर्ष के नर चीते उदय की मौत हो गई और 27 मार्च, 2023 को इसी पार्क में पाँच वर्ष की मादा चीता साशा की मौत हो गई।
  • इसलिये सरकार अब वैकल्पिक संरक्षण मॉडल पर विचार कर रही है, जैसे कि बाड़ वाले रिज़र्व में चीतों के संरक्षण का दक्षिण अफ्रीकी मॉडल।

अपेक्षित मौत

  • इस परियोजना में उच्च मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया था और इसका अल्पकालिक लक्ष्य पहले वर्ष में 50% जीवित रहने की दर हासिल करना था, जो कि 20 चीतों में से 10 है।
  • हालाँकि विशेषज्ञों ने बताया कि परियोजना में कूनो नेशनल पार्क के चीतों हेतु वहन क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया था और इसने परियोजना में सलंग्न कर्मचारियों पर वैकल्पिक साइटों की तलाश करने हेतु दबाव डाला।

मृत्यु का कारण

  • एक दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन में पाया गया कि चीतों की मृत्यु दर में 53.2% का कारण शिकार की वजह से मौत है। इसके लिये शेर, तेंदुआ, लकड़बग्घा और सियार मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं।
  • मुख्य रूप से परभक्षण के कारण चीतों को उच्च शावक मृत्यु दर का सामना करना पड़ता है, जो विशेषकर संरक्षित क्षेत्रों में 90 प्रतिशत तक है।
  • अफ्रीका में शेर को चीतों का प्रमुख शिकारी माना जाता है लेकिन भारत में जहाँ शेरों की अनुपस्थिति पाई जाती है (गुजरात को छोड़कर), वहाँ संभावित चीता परिदृश्यों में शिकार में तेंदुओं की भूमिका का अनुमान है।
  • मृत्यु दर के अन्य कारणों में शिविर लगाना, स्थिरीकरण/पारगमन, ट्रैकिंग डिवाइस और चीतों (शावकों) को मारने वाले अन्य वन्यजीव हो सकते हैं, जिनमें जंगली सुअर, बबून, साँप, हाथी, मगरमच्छ, गिद्ध, जेब्रा तथा यहाँ तक कि शुतुरमुर्ग भी शामिल हैं।

चीता संरक्षण के लिये दक्षिण अफ्रीकी मॉडल

  • दक्षिण अफ्रीका में चीतों की सुरक्षा के लिये मेटा-जनसंख्या प्रबंधन नामक एक संरक्षण रणनीति का उपयोग किया गया था।
  • इस रणनीति में चीतों को एक छोटे समूह से दूसरे छोटे समूह में स्थानांतरित करना शामिल था ताकि उनकी पर्याप्त आनुवंशिक विविधता के साथ ही एक स्वस्थ आबादी को बनाए रखा जा सके।
  • यह दृष्टिकोण दक्षिण अफ्रीका में चीतों की व्यवहार्य आबादी को बनाए रखने में सफल रहा जिससे केवल 6 वर्षों में चीतों की मेटा-जनसंख्या बढ़कर 328 हो गई।

परियोजना के लिये उपलब्ध विकल्प

  • अधिकारी चीतों के लिये दूसरे निवास स्थान के रूप में चंबल नदी घाटी में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य तैयार करने की संभावना तलाश रहे हैं।
  • एक अन्य विकल्प कुनो से कुछ चीतों को राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व में 80 वर्ग किलोमीटर के घेरे वाले क्षेत्र की सुरक्षा के लिये स्थानांतरित करना है।
  • हालाँकि दोनों विकल्पों का मतलब है कि परियोजना का लक्ष्य एक खुले परिदृश्य (Open Landscape) में चीतों को रखने के बजाय अफ्रीकी आयातों को प्रबंधित करने के लिये बाड़े या प्रतिबंधित क्षेत्रों में कुछ कम आबादी (Pocket Populations) के रूप में उन्हें स्थानांतरित करना होगा।

गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य

  • यह राजस्थान से सटे मंदसौर और नीमच ज़िलों की उत्तरी सीमा पर मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • इसकी विशेषता विशाल खुले परिदृश्य और चट्टानी इलाके हैं।
  • वनस्पतियों में उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, मिश्रित पर्णपाती वन और झाड़ी शामिल हैं।
  • अभयारण्य में पाई जाने वाली कुछ वनस्पतियाँ खैर, सलाई, करधई, धावड़ा, तेंदू और पलाश हैं।
  • जीवों में चिंकारा, नीलगाय, चित्तीदार हिरण, धारीदार लकड़बग्घा, सियार और मगरमच्छ शामिल हैं।

मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व

  • यह कोटा, राजस्थान के पास दो समानांतर पहाड़ों मुकुंदरा एवं गगरोला द्वारा निर्मित घाटी में स्थित है।
  • यह टाइगर रिज़र्व चार नदियों रमज़ान, आहू, काली और चंबल से घिरा हुआ है और चंबल नदी की सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
  • संरक्षित क्षेत्र:
    • मुकुंदरा हिल्स को वर्ष 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य और वर्ष 2004 में एक राष्ट्रीय उद्यान (मुकुंदरा हिल्स (दर्रा) राष्ट्रीय उद्यान) घोषित किया गया था।
    • इसे वर्ष 2013 में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया था जो रणथंभौर और सरिस्का टाइगर रिज़र्व के बाद राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है।
  • पार्क और अभयारण्य:
    • मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व में तीन वन्यजीव अभयारण्य दर्रे, जवाहर सागर और चंबल शामिल हैं तथा इसमें राजस्थान के चार ज़िले कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ शामिल हैं।

आगे की राह

  • चीता परियोजना की सफलता के लिये इसे भारत के पारंपरिक संरक्षण पद्धति के अनुरूप होना चाहिये। भारत का संरक्षण दृष्टिकोण व्यवहार्य गैर-खंडित आवासों में प्राकृतिक रूप से फैले वन्यजीवों की सुरक्षा पर ज़ोर देता है।
  • चीता परियोजना दक्षिण अफ्रीकी मॉडल को अपना कर जोखिम को कम करने का विकल्प चुन सकती है, जिसमें कुछ निर्धारित आबादी को संरक्षित रिज़र्व में रखा जा सकता है।
  • हालाँकि चीतों को तेंदुए से सुरक्षित बाड़ों में रखना एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। साथ ही चीतों को अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों तक सीमित करने जैसे हस्तक्षेप से पशुओं को नुकसान पहुँच सकता है।

तेज़ी से पिघल रही अंटार्कटिक की बर्फ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि तेज़ी से पिघलने वाली अंटार्कटिक बर्फ नाटकीय रूप से दुनिया के महासागरों के माध्यम से जल के प्रवाह को धीमा कर रही है और वैश्विक जलवायु, समुद्री खाद्य शृंखला और बर्फ की पेटियों की स्थिरता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ

  • विश्व के महासागर पर प्रभाव:
    • जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है और अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ से स्वच्छ जल समुद्र में प्रवेश करता है, सतह के जल की लवणता और घनत्व कम हो जाता है, जिससे समुद्र के तल में नीचे की ओर जल का प्रवाह कम हो जाता है।
    • अध्ययन से पता चला है कि पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ के शेल्फ में गर्म जल का प्रवेश बढ़ जाएगा, लेकिन यह नहीं देखा कि यह प्रतिक्रिया प्रभाव कैसे पैदा कर सकती है और किस प्रकार इससे भी अधिक पिघलने का कारण बन सकती है।
    • रिपोर्ट में पाया गया कि अंटार्कटिक में गहरे जल का संचलन उत्तरी अटलांटिक में गिरावट की दर से दोगुनी दर से कमज़ोर हो सकता है।
    • इसके अलावा, अंटार्कटिका से गहरे समुद्र के जल का प्रवाह वर्ष 2050 तक 40% तक घट सकता है।
  • वैश्विक जलवायु पर प्रभाव:
    • निष्कर्ष यह भी सुझाव देते हैं कि समुद्र उतना कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि इसकी ऊपरी परतें अधिक स्तरीकृत हो जाती हैं, जिससे वातावरण में अधिक CO2 निकल जाती है।
  • खाद्य शृंखला पर प्रभाव:
    • समुद्र के निवर्तनियता से पोषक तत्त्व नीचे से ऊपर उठते हैं, दक्षिणी महासागर का वैश्विक फाइटोप्लांकटन उत्पादन के तीन-चौथाई हिस्से का योगदान है, जो खाद्य शृंखला का आधार है।
    • अंटार्कटिका के पास सिंकिंग का धीमा होना, पूरे संचलन को धीमा कर देता है और इसलिये पोषक तत्त्वों की मात्रा भी कम हो जाती है जिनका गहरे समुद्र से वापस सतह पर निवर्तन होता है।
  • अंटार्कटिका के संदर्भ में भारत की पहलें:
    • अंटार्कटिक संधि: भारत आधिकारिक तौर पर 1 अगस्त, 1983 को अंटार्कटिक संधि प्रणाली में शामिल हुआ। 12 सितंबर, 1983 को भारत अंटार्कटिक संधि का पंद्रहवांँ सलाहकार सदस्य बना।
    • अनुसंधान स्टेशन: अंटार्कटिका में अनुसंधान करने के लिये दक्षिण गंगोत्री स्टेशन (वर्तमान में डीकमीशन) और मैत्री, भारती स्टेशन की स्थापना की गई थी।
    • NCAOR की स्थापना: राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCAOR) की स्थापना ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में देश की अनुसंधान गतिविधियों को संचालित करने के लिये की गई थी।
    • भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम 2022: यह अंटार्कटिका की यात्राओं और गतिविधियों को विनियमित करने के साथ-साथ महाद्वीप पर मौजूद लोगों के बीच उत्पन्न होने वाले संभावित विवादों की परिकल्पना करता है।
    • अधिनियम के अन्य प्रावधानों में खनिज संसाधनों, स्थानिक पौधों और  अंटार्कटिका के स्थानिक पक्षियों के संरक्षण एवं भारतीय टूर ऑपरेटरों के लिये प्रावधान शामिल हैं।

शेष विश्व में डीग्लेसिएशन की स्थिति

  • थवाइट्स ग्लेशियर का पिघलना: थवाइट्स ग्लेशियर अंटार्कटिका में स्थित 120 किमी चौड़ा, तीव्र गतिशील ग्लेशियर है।
    • इसके आकार (1.9 लाख वर्ग किमी) के कारण, इसमें इतना जल है कि यह विश्व समुद्र स्तर को आधा मीटर से अधिक बढ़ा सकता है।
    • इसका पिघलना प्रत्येक वर्ष वैश्विक समुद्र-स्तर की वृद्धि में 4% का योगदान देता है।
  • माउंट किलिमंजारो पर बर्फ का पिघलना: अफ्रीका की सबसे बड़ी चोटी, तंजानिया के माउंट किलिमंजारो पर बर्फ की टोपी जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक पिघलने वाले प्रसिद्ध ग्लेशियरों में से एक है।
    • यह वर्ष 1912 से अब तक 80% से अधिक पिघल चुका है।
  • निवर्तित हिमालय: हिमालय के हिमनद ध्रुवीय टोपियों के बाहर बर्फ के सबसे बड़े खंड का निर्माण करते हैं और भारतीय-गंगा के मैदानी इलाकों में प्रवाहित होने वाली नदियों के लिये जल का स्रोत हैं।
    • दुनिया के किसी भी हिस्से की तुलना में हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं।
    • वर्ष 2000 के बाद से प्रत्येक वर्ष ग्लेशियर एक वर्टिकल फुट से अधिक और वर्ष 1975 से 2000 तक बर्फ पिघलने की मात्रा के दोगुने से अधिक का क्षरण हो रहा है। 

मानव-वन्यजीव संघर्ष पर सम्मेलन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में मानव-वन्यजीव संघर्ष और सह-अस्तित्त्व पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे का हल निकालने के लिये लगभग 70 देशों के हज़ारों कार्यकर्त्ता एकजुट हुए।

  • यह सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN), खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UN Development Programme) और अन्य संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से आयोजित किया गया था।

प्रमुख बिंदु 

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष के समाधान हेतु कार्य करने वाले लोगों और संस्थानों के बीच साझेदारी तथा सहयोग के विषय पर आपसी संवाद और समझ विकसित करने के लिये सुविधा प्रदान करना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष पर सह-अस्तित्त्व और बातचीत के क्षेत्र से नवीनतम अंतर्दृष्टि, प्रौद्योगिकियों, विधियों, विचारों एवं सूचनाओं की अंतःविषयक और साझा समझ विकसित करना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष जैवविविधता संरक्षण और अगले दशक के लिये निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों में शीर्ष वैश्विक प्राथमिकताओं में से एक है, यह राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा वैश्विक नीतियों तथा पहलों पर एक साथ काम करने का अवसर प्रदान करता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को प्रबंधित करने और इसमें कमी लाने के लिये समझ और निष्पादन भिन्नताओं की समस्या के निपटान हेतु एक सामूहिक कार्ययोजना विकसित करना।

सम्मेलन की आवश्यकता का कारण

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष विश्व भर में विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, सह-अस्तित्त्व और जैवविविधता की सुरक्षा के संदर्भ में एक प्रमुख चुनौती है। 
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, इस संघर्ष से विश्व भर में 75 फीसदी से अधिक जंगली बिल्लियों की प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • यह "पारिस्थितिकी, पशु व्यवहार, मनोविज्ञान, कानून, संघर्ष का विश्लेषण, मध्यस्थता, शांति निर्माण, अंतर्राष्ट्रीय विकास, अर्थशास्त्र, नृ-विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को विभिन्न दृष्टिकोणों के माध्यम से मानव-वन्यजीव संघर्ष को समझने, एक-दूसरे से सीखने तथा सहयोग प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करेगा। 
  • दिसंबर 2022 में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में सहमत कुनमिंग-मॉन्ट्रियल  वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के लक्ष्य- 4 में मानव-वन्यजीव संपर्क का प्रभावी प्रबंधन निर्धारित किया गया है। 

मानव-पशु संघर्ष

  • परिचय: 
    • मानव-पशु संघर्ष उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ मानव गतिविधियों, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढाँचे का विकास या संसाधन निष्कर्षण, में वन्य पशुओं के साथ संघर्ष की स्थिति होती हैं, इसकी वजह से मानव एवं पशुओं दोनों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
  • प्रभाव: 
    • आर्थिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों, विशेष रूप से किसानों और पशुपालकों को महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षति हो सकती है। वन्य पशु फसलों को नष्ट कर सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा पशुधन को हानि पहुँचा सकते हैं जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
    • मानव सुरक्षा के लिये खतरा: जंगली जानवर मानव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। शेर, बाघ और भालू जैसे बड़े शिकारियों के हमलों के परिणामस्वरूप गंभीर चोट या मृत्यु हो सकती है। 
    • पारिस्थितिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिये यदि मानव शिकारी-पशुओं को मारते हैं तो शिकार-पशुओं की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकती है। 
    • संरक्षण चुनौतियाँ: मानव-पशु संघर्ष भी संरक्षण प्रयासों के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवों की नकारात्मक धारणा हो सकती हैं तथा संरक्षण उपायों को लागू करना कठिन हो सकता है। 
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानव-पशु संघर्ष का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्होंने हमलों या संपत्ति के नुकसान का अनुभव किया है। यह भय, चिंता और आघात का कारण बन सकता है।
  • सरकारी उपाय:
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम गतिविधियों, शिकार पर प्रतिबंध, वन्यजीव आवासों के संरक्षण एवं प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना आदि के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002: भारत जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का एक हिस्सा है। जैवविविधता अधिनियम के प्रावधान वनों या वन्यजीवों से संबंधित किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अतिरिक्त हैं।
    • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (वर्ष 2002-2016): यह संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को मज़बूत करने के साथ उन्हें बढ़ाने, लुप्तप्राय वन्यजीवों एवं उनके आवासों के संरक्षण, वन्यजीव उत्पादों के व्यापार को नियंत्रित करने तथा अनुसंधान, शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर केंद्रित है। 
    • प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों के लिये आश्रय प्रदान करती है।
    • प्रोजेक्ट एलीफैंटयह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और हाथियों, उनके आवासों एवं उनके गलियारों की सुरक्षा के लिये फरवरी 1992 में शुरू की गई थी।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी

चर्चा में क्यों?  

अगस्त 2020 में चेन्नई-अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Chennai-Andaman & Nicobar Islands- CANI) केबल का उद्घाटन किये जाने के बाद से पोर्ट ब्लेयर में इंटरनेट कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया है।

  • हालाँकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (ANI) वर्तमान में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके लिये समावेशिता एवं स्थिरता की दिशा में ANI की व्यापक और स्थायी प्रगति सुनिश्चित करने के लिये एक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी में हाल के विकास

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा चेन्नई के बीच समुद्र के नीचे स्थापित केबल, जिसे CANI कहा जाता है, ने इस केंद्रशासित प्रदेश को विश्व के सभी स्थानों को इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा है, जिससे दूरसंचार ऑपरेटरों का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ है।
  • यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) ने जानकारी दी कि टेलीकॉम ऑपरेटरों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये 70 GBPS से अधिक बैंडविड्थ खरीदा है।
  • खरीदे गए बैंडविड्थ में एयरटेल और बीएसएनएल का सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसमें दोनों दूरसंचार कंपनियों को 60 GBPS आवंटित किये गए हैं। Airtel ने पोर्ट ब्लेयर में 5G सेवाएँ शुरू कर दी हैं।

भारत के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का महत्त्व

  • परिचय:  
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित द्वीपों का एक समूह है।
    • वे भारत के केंद्रशासित प्रदेश का हिस्सा हैं और भारतीय मुख्य भूमि से लगभग 1,400 किमी. दूर स्थित हैं।
  • महत्त्व:  
    • जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 5 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों- ग्रेट अंडमानी, जारवास, ओंगेस, शोम्पेन एवं उत्तरी सेंटिनली का आवास स्थल है
    • सामरिक क्षेत्र: वे भारत को समुद्री संचार लाइनों (Sea Lines of Communication - SLOCs) और मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से हिंद एवं प्रशांत महासागरों के बीच आवागमन के महत्त्वपूर्ण यातायात मार्ग के चलते सामरिक स्थिति प्रदान करते हैं।
    • समुद्री भागीदारों के लिये महत्त्वपूर्ण स्थान: भारत के प्रमुख समुद्री साझेदार जैसे- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं फ्राँस अंडमान और निकोबार की रणनीतिक स्थिति को स्वीकार करते हैं, साथ ही महत्त्व प्रदान करते हैं।
    • ये द्वीप न केवल भारत को एक महत्त्वपूर्ण समुद्री स्थान की स्थिति प्रदान करते हैं बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र की सामरिक एवं सैन्य गतिशीलता को आकार देने की भी महत्त्वपूर्ण क्षमता रखते हैं।
  • ANI हेतु हाल की विकास योजनाएँ: 
    • जापान की विदेशी विकास सहायता: जापान ने वर्ष 2021 में ANI  विकास परियोजनाओं हेतु 265 करोड़ अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता को मंज़ूरी दी।
    • ग्रेट निकोबार हेतु नीति आयोग की परियोजना: इसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, हवाई अड्डा, विद्युत संयंत्र और एक टाउनशिप शामिल हैं।
    • लिटिल अंडमान हेतु नीति आयोग का प्रस्ताव: इसने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग के साथ प्रतिस्पर्द्धा हेतु तटीय हरित शहर के विकास का प्रस्ताव रखा है।
  • ANI से संबद्ध चुनौतियाँ: 
    • संपोषणीय विकास: अंडमान और निकोबार प्रमुख पर्यटक आकर्षण का केंद्र है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में कई विकास परियोजनाएँ शुरू की जा रही हैं।
    • जहाँ एक तरफ यह द्वीपों के स्वरूप को काफी हद तक बदल देगा, वहीं इससे पारिस्थितिक स्थिरता को भी नुकसान होगा।
    • विकासात्मक गतिविधियाँ क्षेत्र में प्रवाल भित्तियों को भी प्रभावित कर रही हैं, जो पहले से ही महासागरों के उष्मण के कारण खतरे में हैं। प्रवाल भित्तियों का अत्यधिक पारिस्थितिक महत्त्व है।
    • पर्यावरणविदों ने विकास परियोजना के परिणामस्वरूप द्वीप पर मैंग्रोव के नुकसान को भी चिह्नित किया है। 
    • भूगर्भीय अस्थिरता: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भूकंप की दृष्टि से अत्यधिक सक्रिय क्षेत्र में अवस्थित हैं। इसके कारण इस क्षेत्र में कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने की आशंका बनी रहती है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2004 में आए एक भूकंप और सुनामी ने इस द्वीप शृंखला के बड़े हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया।
    • निकोबार और कार निकोबार द्वीप (निकोबार का सबसे उत्तरी द्वीप) अपनी आबादी का लगभग पाँचवाँ हिस्सा और लगभग 90% मैंग्रोव खो चुके हैं।
    • भू-राजनीतिक अस्थिरता: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हिंद-प्रशांत भू-राजनीतिक क्षेत्र का हिस्सा है जहाँ चीन सक्रिय रूप से अपने प्रभाव का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है तथा यह संभावित रूप से भारत की नीली अर्थव्यवस्था एवं समुद्री सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है।
    • जनजातीय क्षेत्र में अतिक्रमण: स्थानीय सरकार से उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होने के बावजूद PVTG को अभी भी अपने क्षेत्रों में विकास अतिक्रमण और कुशल पुनर्वास कार्यक्रमों की कमी के परिणामस्वरूप कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • सतत् द्वीप विकास ढाँचा: अंडमान और निकोबार में बुनियादी ढाँचा और विकासात्मक परियोजनाएँ निस्संदेह भारत की सामरिक और समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता कर सकती हैं, लेकिन यह विकास अंडमान और निकोबार के पारिस्थितिकी तंत्र के दोहन की कीमत पर नहीं होना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में किसी भी विकास गतिविधि से पहले पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव आकलन अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • एक सतत् द्वीप विकास ढाँचा न केवल अंडमान और निकोबार के लिये महत्त्वपूर्ण है बल्कि अन्य भारतीय द्वीपों पर भी लागू होना चाहिये।
  • विकासशील द्वीप सुरक्षा प्रारूप: भारत को समुद्री सुरक्षा में क्षमता निर्माण में निवेश करने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने, एक द्वीप सुरक्षा मॉडल विकसित करने और घुसपैठ की निगरानी करने के लिये अपनी नौसेना को नवीनतम तकनीक से लैस करने की आवश्यकता है।
  • लिंकिंग परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना: सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) के माध्यम से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मुख्य भूमि से जोड़ने की योजना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
  • सबमरीन केबल अंडमान और निकोबार को सस्ती एवं बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने तथा डिजिटल इंडिया के सभी लाभों (विशेष रूप से ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन, बैंकिंग एवं ऑनलाइन ट्रेडिंग में सुधार लाने) को प्राप्त करने में भी मदद करेगी।
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