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ब्लैक कार्बन

चर्चा में क्यों?

लोकसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने ब्लैक कार्बन से निपटने के लिये किये गए विभिन्न उपायों की जानकारी दी।

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ज़ियोस्फीयर बायोस्फीयर प्रोग्राम के तहत एयरोसोल वेधशालाओं के एक नेटवर्क का संचालन करता है जिसमें ब्लैक कार्बन, द्रव्यमान सघनता मापन वाले मापदंडों में से एक है।

ब्लैक कार्बन

परिचय

  • ब्लैक कार्बन (BC) एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
  • अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC तेज़ी से प्रक्षालित हो जाता है और उत्सर्जन बंद होने पर वायुमंडल से समाप्त किया जा सकता है।
  • ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह स्थानीय स्रोतों से व्युत्पन्न होकर स्थानीय प्रभाव डालता है।
  • ब्लैक कार्बन एक प्रकार का एयरोसोल है।
  • एयरोसोल (जैसे ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
  • ब्लैक कार्बन सौर ऊर्जा को अवशोषित करता है तथा वातावरण को गर्म करता है। जब यह वर्षा की बूँदों के साथ पृथ्वी पर गिरता है तो यह हिम और बर्फ की सतह को काला कर देता है, जिससे उनका एल्बिडो (सतह की परावर्तक शक्ति) कम हो जाती है जिससे बर्फ गर्म हो जाती है और उसके पिघलने की गति तेज़ हो जाती है।
  • यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर या PM का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): December 2022 UPSC Current Affairs | पर्यावरण (Environment) for UPSC CSE in Hindiसरकार के प्रयास

  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: इस पहल के तहत सरकार स्वच्छ घरेलू भोजन पकाने के ईंधन के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
  • BS VI उत्सर्जन मानदंड: 1 अप्रैल, 2020 से ईंधन और वाहनों हेतु BS-IV से BS-VI मानदंड के रूप में महत्त्वपूर्ण कदम।
  • नए स्वच्छ ईंधन: स्वच्छ/वैकल्पिक ईंधन जैसे गैसीय ईंधन (सीएनजी, एलपीजी आदि) तथा इथेनॉल सम्मिश्रण की शुरुआत।
  • सतत(SATAT) पहल: 5000 कम्प्रेस्ड बायो-गैस उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और कम्प्रेस्ड बायो-गैस को उपयोग के लिये बाज़ार में उपलब्ध कराने हेतु एक नई पहल, “किफायती परिवहन के लिये सतत विकल्प” शुरू की गई है।
  • फसल अवशेषों का प्रबंधन: इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत का 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: केंद्र सरकार देश भर में वायु प्रदूषण की समस्या से व्यापक रूप से निपटने के लिये दीर्घकालिक, समयबद्ध, राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को लागू कर रही है।
  • केंद्र ने वर्ष 2026 तक योजना के तहत शामिल किये गए शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (PM) की सघनता में 40% की कमी का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है,साथ ही वर्ष 2024 तक 20 से 30% की कमी के पहले के लक्ष्य को अद्यतन किया है।
  • शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएँ (City specific Clean Air Action Plans):
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने परिवेशी वायु गुणवत्ता के स्तर के आधार पर 131 शहरों की पहचान की है, जो राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक कुप्रभावित हैं और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर हैं।
    • इन शहरों में कार्यान्वयन के लिये शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएँ तैयार और लागू की गई हैं।
    • ये योजनाएँ शहर के विशिष्ट वायु प्रदूषण स्रोतों (मृदा और सड़क की धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को जलाना, निर्माण सामग्री एवं उद्योग आदि) को नियंत्रित करने के लिये समयबद्ध लक्ष्यों को परिभाषित करती हैं।
  • FAME योजना: फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME) फेज-2 योजना शुरू की गई है।

वायु प्रदूषण पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक ने 'स्वच्छ वायु के लिये प्रयास: दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य' नामक एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में लागू की जा रही नीतियों (अधिकतर वर्ष 2018 से) के साथ बने रहने से परिणाम तो मिलेंगे लेकिन वाँछित स्तर तक नहीं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • एयरशेड (Airsheds) 
    • दक्षिण एशिया में छह बड़े एयरशेड मौज़ूद हैं, जहाँ एक की वायु गुणवत्ता दूसरे में वायु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। वे हैं:
    • पश्चिम/मध्य भारत-गंगा का मैदान (IGP) जिसमें पंजाब (पाकिस्तान), पंजाब (भारत), हरियाणा, राजस्थान का हिस्सा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
    • मध्य/पूर्वी IGP: बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बांग्लादेश
    • मध्य भारत: ओडिशा/छत्तीसगढ़
    • मध्य भारत: पूर्वी गुजरात/पश्चिमी महाराष्ट्र
    • उत्तरी/मध्य सिंधु नदी का मैदान: पाकिस्तान, अफगानिस्तान का हिस्सा
    • दक्षिणी सिंधु का मैदान और आगे पश्चिम: दक्षिण पाकिस्तान, पश्चिमी अफगानिस्तान पूर्वी ईरान में फैला हुआ है।
    • जब वायु की दिशा मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर थी तो भारतीय पंजाब में वायु प्रदूषण का 30% पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की ओर से आया तथा बांग्लादेश के सबसे बड़े शहरों (ढाका, चटगाँव और खुलना) में वायु प्रदूषण का औसतन 30% भारत में उत्पन्न हुआ था। कुछ वर्षों में सीमाओं के पार दूसरी दिशा में पर्याप्त प्रदूषण प्रवाहित हुआ। 
  • PM 2.5 के संपर्क में: 
    • वर्तमान में 60% से अधिक दक्षिण एशियाई प्रतिवर्ष PM2.5 के औसत 35 µg/m3 के संपर्क में हैं।
    • IGP के कुछ हिस्सों में यह 100 µg/m3 तक बढ़ गया है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 5 µg/m3 की ऊपरी सीमा से लगभग 20 गुना है।
  • वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:
    • बड़े उद्योग, बिजली संयंत्र और वाहन वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन दक्षिण एशिया में इनके अतिरिक्त ऐसे और कई स्रोत प्रदूषण में पर्याप्त योगदान देते हैं।
    • इनमें खाना पकाने और गर्म करने के लिये ठोस ईंधन का दहन, ईंट भट्टों जैसे छोटे उद्योगों से उत्सर्जन, नगरपालिका और कृषि अपशिष्ट को जलाना तथा दाह संस्कार शामिल हैं।

सुझाव

  • एयरशेड को कम करना:
    • विभिन्न सरकारी उपाय कण पदार्थ में कमी ला सकते हैं, लेकिन एयरशेड में महत्त्वपूर्ण कमी के लिये एयरशेड में समन्वित नीतियों की आवश्यकता है।
    • दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में वर्ष 2030 तक सभी वायु प्रदूषण प्रबंधन उपायों को पूरी तरह से लागू किये जाने के बावजूद दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र 35 ग्राम/एम3 से नीचे प्रदूषक जोखिम को नियंत्रित नहीं कर पाएगा।
    • हालाँकि यदि दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों ने भी सभी संभव उपायों को अपनाया तो यह प्रदूषण संबंधी आँकड़े में कमी लाने में मदद कर सकता है। 
  • नज़रिये में बदलाव: 
    • भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों को वायु गुणवत्ता में सुधार लाने और प्रदूषकों को WHO द्वारा स्वीकार्य स्तरों तक कम करने के लिये अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।
  • समन्वय की आवश्यकता:
    • वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये न केवल इसके विशिष्ट स्रोतों से निपटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बीच घनिष्ठ समन्वय की भी आवश्यकता है।
    • क्षेत्रीय सहयोग लागत प्रभावी संयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकता है जो वायु गुणवत्ता की अन्योन्याश्रित प्रकृति से संबंधित है।
    • एयरशेड के बीच पूर्ण समन्वय की आवश्यकता वाले इस सबसे किफायती कदम से दक्षिण एशिया में PM 2.5 का औसत जोखिम 27.8 करोड़ डॉलर प्रति μg/m3 तक कम हो जाएगा और सालाना 7,50,000 से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकेगी।

स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट का दूसरा संस्करण जारी किया गया।

  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme- UNEP) द्वारा जर्मनी के संघीय आर्थिक सहयोग और विकास मंत्रालय (BMZ) की द इकोनॉमिक ऑफ लैंड डीग्रेडेशन पहल, संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) और यूरोपीय आयोग द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई थी।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • वर्तमान वित्तीय प्रवाह:
    • NbS के लिये वर्तमान सार्वजनिक और निजी वित्तीय प्रवाह प्रतिवर्ष 154 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
    • इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान 83% है और निजी क्षेत्र का योगदान 17% है।
  • NbS वित्त प्रवाह में बदलाव:
    • NbS के लिये कुल वित्त प्रवाह 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 154 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष हो गया है।
    • यह सार्वजनिक और निजी वित्तीय प्रवाह के योग में वास्तविक रूप से 2.6% के निवेश में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • समुद्री NbS और संरक्षित क्षेत्रों में निवेश:
    • SFN 2022 ने समुद्री प्रकृति-आधारित समाधानों और संरक्षित क्षेत्र वित्त के विस्तृत मूल्यांकन को शामिल करके दायरे को व्यापक बनाया।
    • समुद्री NbS के लिये वित्त प्रवाह मुख्यतौर पर 14 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो कुल (स्थलीय और समुद्री) वित्त प्रवाह का 9% है।
    • समुद्री NbS में वार्षिक घरेलू सरकारी व्यय प्रति वर्ष 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जिसमें समुद्री संरक्षित क्षेत्रों, मत्स्य पालन के सतत् प्रबंधन और मत्स्य पालन के अनुसंधान एवं विकास पर खर्च शामिल है।
  • ्रकृति-नकारात्मक वित्तीय प्रवाह (Nature-negative Financial Flows):
    • प्रकृति-नकारात्मक गतिविधियों के लिये सार्वजनिक वित्तीय सहायता वर्तमान में प्रति वर्ष 500 से 1,100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक है, जो कि NbS में वर्तमान निवेश से तीन से सात गुना अधिक है।

सुझाव

  • प्रकृति आधारित समाधान में निवेश:
    • वर्ष 2025 तक प्रकृति-आधारित समाधानों में 384 बिलियन अमेरिकी डॉलर/वर्ष के निवेश में वृद्धि के बिना, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकेगा।
    • NbS के लिये वित्त पोषण को दोगुना करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions- GHG) को बढ़ाने वाली गतिविधियों के लिये इसे कम करने की आवश्यकता है।
  • निजी निवेश:
    • निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को 'नेट ज़ीरो' को 'नेचर पॉजिटिव' के साथ जोड़ना होगा।
    • इसके लिये निजी कंपनियों को एक स्थायी आपूर्ति शृंखला बनानी चाहिये, जलवायु और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को कम करना चाहिये, समग्र प्रकृति बाजारों के माध्यम से किसी भी अपरिहार्य गतिविधियों को समाप्त करना चाहिये, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भुगतान करना चाहिये और प्रकृति-सकारात्मक गतिविधियों में निवेश करना चाहिये।
  • वित्तीय प्रणालियों में समावेशन में वृद्धि:
    • NBS निवेश को बढ़ाने के लिये, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को मानव अधिकारों की रक्षा करने वाले संक्रमण सिद्धांतों को शामिल करना चाहिये।
    • एक न्यायसंगत संक्रमण में जलवायु कार्रवाई के सामाजिक और आर्थिक अवसरों को अधिकतम करना शामिल है, जबकि किसी भी चुनौती को कम और सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना - प्रभावित सभी समूहों के बीच प्रभावी सामाजिक संवाद और मौलिक श्रम सिद्धांतों तथा अधिकारों के लिये सम्मान भी शामिल है।

प्रकृति-आधारित समाधान (NBS)

  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना सामाजिक-पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिये प्रकृति के सतत् प्रबंधन और उपयोग को संदर्भित करता है, जो आपदा जोखिम में कमी, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से लेकर खाद्य एवं जल सुरक्षा के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य तक सीमित है।
  • NBS लोगों और प्रकृति के बीच सद्भाव बनाता है, पारिस्थितिक विकास को सक्षम बनाता है और जलवायु परिवर्तन के लिये एक समग्र, जन-केंद्रित प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इस प्रकार NBS सतत् विकास लक्ष्यों को रेखांकित करता है, क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जैव विविधता और ताजे जल तक पहुँच, बेहतर आजीविका, स्वस्थ आहार और स्थायी खाद्य प्रणालियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा (जैविक कृषि) का समर्थन करते हैं।
  • इसके अलावा NBS जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के समग्र वैश्विक प्रयासों का एक अनिवार्य घटक है।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): December 2022 UPSC Current Affairs | पर्यावरण (Environment) for UPSC CSE in Hindi

जैव विविधता ढाँचा और आदिवासी समुदाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (CBD) के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP-15) में आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले एक समूह ने ज़ोर देकर कहा कि वर्ष 2020 के बाद ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (GBF) को आदिवासी लोगों और स्थानीय समुदायों (IPCL) के अधिकारों का सम्मान, संवर्द्धन और समर्थन करने पर काम करना चाहिये।

  • जैव विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मंच (IIFB) के सदस्यों ने भी आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिये बल दिया गया है।

आदिवासी लोगों द्वारा तनावग्रस्त प्रमुख क्षेत्र:

  • आदिवासी समुदाय, जो हमेशा जैव विविधता के प्रमुख संरक्षक रहे हैं, उनके अधिकारों को भी पहचानने और संरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • GBF को आदिवासी समुदायों के लिये, "मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए, विशेष रूप से आदिवासियों के सामूहिक अधिकारों, लैंगिक समानता, सुरक्षा और पूर्ति व इसके अतिरिक्त उनके अधिकारों की रक्षा के लिये नवीन तरीकों की तलाश करनी चाहिये।
  • 2020 के बाद GBF के कार्यान्वयन में स्वतंत्रता, पूर्व और सूचित सहमति के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए पारंपरिक ज्ञान, प्रथाओं और तकनीकों को शामिल किया जाना चाहिये।

जैव विविधता संरक्षण में आदिवासी समुदायों की क्या भूमिका है?

  • प्राकृतिक वनस्पतियों का संरक्षण:
    • आदिवासी समुदायों द्वारा पेड़ों को देवी-देवताओं के निवास स्थान के रूप में देखे जाने से जुड़ा धार्मिक विश्वास वनस्पतियों के प्राकृतिक संरक्षण को बढ़ावा देता है।
    • इसके अलावा, कई फसलों, जंगली फलों, बीज, कंद-मूल आदि विभिन्न प्रकार के पौधों का जनजातीय और आदिवासी लोगों द्वारा संरक्षण किया जाता है क्योंकि वे अपनी खाद्य ज़रूरतों के लिये इन स्रोतों पर निर्भर हैं।
  • पारंपरिक ज्ञान का अनुप्रयोग:
    • आदिवासी लोग और जैव विविधता एक-दूसरे के पूरक हैं।
    • समय के साथ ग्रामीण समुदायों ने औषधीय पौधों की खेती और उनके प्रचार के लिये आदिवासी लोगों के स्वदेशी ज्ञान का उपयोग किया है।
    • इन संरक्षित पौधों में कई साँप और बिच्छू के काटने या टूटी हड्डियों व आर्थोपेडिक उपचार के लिये प्रयोग में लाए जाने पौधे भी शामिल हैं।

आदिवासी समुदाय की चुनौतियाँ

  • प्रकृति और स्थानीय लोगों के बीच व्यवधान: जैव विविधता की रक्षा हेतु स्थानीय लोगों को उनके प्राकृतिक आवास से अलग करने से जुड़ा दृष्टिकोण ही उनके और संरक्षणवादियों के बीच संघर्ष का मूल कारण है।
  • किसी भी प्राकृतिक आवास को एक विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में चिह्नित किये जाने के साथ ही यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) उस क्षेत्र के संरक्षण का प्रभार ले लेता है।
  • यह संबंधित क्षेत्रों में बाहरी लोगों और तकनीकी उपकरणों के प्रवेश (संरक्षण के उद्देश्य से) को बढ़ावा देता है, जो स्थानीय लोगों के जीव को बाधित करता है।
  • वन अधिकार अधिनियम का शिथिल कार्यान्वयन: वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA) को लागू करने में भारत के कई राज्यों का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है।
  • इसके अलावा विभिन्न संरक्षण संगठनों द्वारा FRA की संवैधानिकता को कई बार सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई है।
  • एक याचिकाकर्त्ता द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि क्योंकि संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत भूमि को राज्य सूची का विषय माना गया है, ऐसे में FRA को लागू करना संसद के अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
  • विकास बनाम संरक्षण: अधिकांशतः ऐसा देखा गया है कि सरकार द्वारा विकास के नाम पर बाँध, रेलवे लाइन, सड़क विद्युत संयंत्र आदि के निर्माण के लिये आदिवासी समुदाय के पारंपरिक प्रवास क्षेत्र की भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाता है।
  • इसके अलावा इस प्रकार के विकास कार्यों के लिये आदिवासी लोगों को उनकी भूमि से ज़बरन हटाने से पर्यावरण को क्षति होने के साथ-साथ मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है।

पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क

  • परिचय:
    • पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क जैव विविधता के लिये रणनीतिक योजना 2011-2020 पर आधारित है।
    • जैसा कि जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र दशक 2011-2020 समाप्त हो रहा है, प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) एक महत्त्वाकांक्षी नए वैश्विक जैव विविधता ढाँचे के विकास के लिये सक्रिय रूप से समर्थन करता है।
  • लक्ष्य और उद्देश्य:
    • वर्ष 2050 तक नए फ्रेमवर्क के निम्नलिखित चार लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है:
    • जैव विविधता के विलुप्त होने तथा उसमें गिरावट को रोकना।
    • संरक्षण द्वारा मनुष्यों के लिये प्रकृति की सेवाओं को बढ़ाने और उन्हें बनाए रखना।
    • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से सभी के लिये उचित और समान लाभ सुनिश्चित करना।
    • वर्ष 2050 के विज़न को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध वित्तीय और कार्यान्वयन के अन्य आवश्यक साधनों के मध्य अंतर को कम करना।
    • 2030 कार्य-उन्मुख लक्ष्य: 2030 के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये इस फ्रेमवर्क में 21 कार्य-उन्मुख लक्ष्य हैं।
    • उनमें से एक है संरक्षित क्षेत्रों के तहत विश्व के कम- से-कम 30% भूमि और समुद्र क्षेत्र को लाना।
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरूआत की दर में 50% से अधिक कमी और उनके प्रभावों को खत्म करने या कम करने के लिये ऐसी प्रजातियों का नियंत्रण या उन्मूलन।
    • पर्यावरण के लिये नुकसानदेह पोषक तत्वों को कम से कम आधा और कीटनाशकों को कम से कम दो तिहाई कम करना, और प्लास्टिक कचरे के निर्वहन को समाप्त करना।
    • प्रति वर्ष कम से कम 10 GtCO2e (गीगाटन समतुल्य कार्बन डाइऑक्साइड) के वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में प्रकृति-आधारित योगदान और सभी शमन तथा अनुकूलन प्रयास जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभावों से बचाते हैं।

आगे की राह

  • स्वदेशी लोगों के अधिकारों को मान्यता देना:
    • संबद्ध क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये, वनों पर निर्भर रहने वाले वनवासियों के अधिकारों की मान्यता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि विश्व विरासत स्थल के रूप में प्राकृतिक आवास की घोषणा।
  • FRA का प्रभावी कार्यान्वयन:
    • देश के अन्य सभी लोगों की तरह समान नागरिक जैसा व्यवहार करते हुए सरकार को इस क्षेत्र में अपनी एजेंसियों और वनों पर निर्भर रहने वाले उन लोगों के बीच विश्वासपूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।
  • संरक्षण के लिये जनजातीय लोगों से संबद्ध पारंपरिक ज्ञान:
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002 स्थानीय समुदायों के साथ जैविक संसाधनों के उपयोग और ज्ञान से उत्पन्न होने वाले लाभों के न्यायसंगत साझाकरण का उल्लेख करता है।
    • अतः सभी हितधारकों को यह समझना चाहिये कि स्वदेशी लोगों का पारंपरिक ज्ञान जैव विविधता के अधिक प्रभावी संरक्षण हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • आदिवासी, वन वैज्ञानिक:
    • आदिवासी आमतौर पर सर्वश्रेष्ठ संरक्षणवादी माने जाते हैं क्योंकि वे प्रकृति से आध्यात्मिक रूप से जुड़े होते हैं।
    • उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के संरक्षण का सबसे सस्ता और तेज़ तरीका जनजातीय लोगों के अधिकारों का सम्मान करना है।

वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022

 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 पारित किया, जो वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन (Convention on International Trade on Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के तहत भारत के दायित्वों को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।

विधेयक का उद्देश्य:

  • लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण: विधेयक अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये सजा बढ़ाने का प्रयास करता है।
  • संरक्षित क्षेत्रों का बेहतर प्रबंधन: यह स्थानीय समुदायों द्वारा पशुओं के चरने या आवाजाही और पीने एवं घरेलू जल के वास्तविक उपयोग जैसी कुछ अनुमत गतिविधियों के लिये अनुमति प्रदान करता है।
  • वन भूमि का संरक्षण: संबद्ध वनक्षेत्र में सदियों से रह रहे लोगों के अधिकारों की सुरक्षा को समान रूप से शामिल करना।

प्रस्तावित संशोधन

  • इस संशोधन ने CITES के तहत परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये एक नया कार्यक्रम प्रस्तावित किया।
  • ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करने एवं स्थायी समिति का गठन करने के लिये धारा 6 में संशोधन किया गया है जो इसे राज्य वन्यजीव बोर्ड द्वारा प्रत्यायोजित किया जा सकता है।
  • अधिनियम की धारा 43 में संशोधन किया गया जिसमें 'धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य' के लिये हाथियों के उपयोग की अनुमति दी गई है ।
  • केंद्र सरकार को एक प्रबंधन प्राधिकरण नियुक्त करने में सक्षम बनाने के लिये धारा 49E को जोड़ा गया है।
  • केंद्र सरकार को एक वैज्ञानिक प्राधिकरण नियुक्त करने की अनुमति देना जो व्यापार किये जाने वाले नमूनों के अस्तित्त्व पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित मामलों पर मार्गदर्शन प्रदान करे।
  • विधेयक केंद्र सरकार को विदेशी प्रजातियों के आक्रामक पौधे या पशु के आयात, व्यापार या नियंत्रण को विनियमित करने और रोकने का भी अधिकार देता है।
  • विधेयक अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये निर्धारित दंड को भी बढ़ाता है।
  • 'सामान्य उल्लंघन' के लिये अधिकतम ज़ुर्माना 25,000 रूपए से बढ़ाकर 1 लाख रूपए कर दिया गया है।
  • विशेष रूप से संरक्षित पशुओं के मामले में न्यूनतम ज़ुर्माना 10,000 रूपए से बढ़ाकर 25,000 रूपए कर दिया गया है

विधेयक से जुड़ी चिंताएँ

  • वाक्यांश "कोई अन्य उद्देश्य" अस्पष्ट है और हाथियों के वाणिज्यिक व्यापार को प्रोत्साहित करने की क्षमता रखता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र नियम आदि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया है।
  • संसदीय स्थायी समिति द्वारा प्रदान की गई रिपोर्ट के अनुसार विधेयक की तीनों अनुसूचियों में सूचीबद्ध प्रजातियाँ अधूरी हैं।
  • वैज्ञानिक, वनस्पतिशास्त्री, जीवविज्ञानी संख्या में कम हैं और वन्यजीवों की सभी मौजूदा प्रजातियों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये उन्हें अधिक से अधिक शामिल करने की आवश्यकता है।

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन तथा जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • यह अधिनियम सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा और निगरानी प्राप्त उन पौधों और पशुओं की अनुसूची को भी सूचीबद्ध करता हैै।

CITES

  • CITES एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका राष्ट्र और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वेच्छा से पालन करते हैं।
  • वर्ष 1963 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के सदस्य देशों की बैठक में अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप CITES का मसौदा तैयार किया गया था।
  • CITES जुलाई 1975 में लागू हुआ था।
  • CITES सचिवालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है और यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रशासित है।
  • भारत CITES का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

वन्यजीव संरक्षण के लिये संवैधानिक प्रावधान

  • 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976, द्वारा वन और जंगली पशुओं और पक्षियों के संरक्षण को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 51A(जी) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48 ए, के तहत राज्य पर्यावरण की रक्षा और विकसित करने तथा देश के वनों और वन्य जीव की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

आगे की राह

  • वन्य जीवों के संरक्षण हेतु कानून का सख्ती से पालन आवश्यक है।
  • अचल संपत्ति में शामिल व्यवसायों और निगमों को अपनी धन और बल शक्ति को संतुलित करने के लिये कानून का सख्ती से पालन करना चाहिये।
  • कुछ निगमों के लाभ के लिये निकोबार के जंगलों को पूरी तरह से उजाड़ा व नष्ट किया जा रहा है।
  • अतः मुख्य रूप से, वन्यजीवों पर वास्तव में मनुष्यों द्वारा नहीं बल्कि निगमों द्वारा हमला किया जा रहा है।
  • केवल नियमों और तकनीकी की समझ ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आदिवासी समुदायों को भी अपने अधिकारों का ज्ञान होना आवश्यक है।
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FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): December 2022 UPSC Current Affairs - पर्यावरण (Environment) for UPSC CSE in Hindi

1. ब्लैक कार्बन क्या होता है?
उत्तर. ब्लैक कार्बन, जिसे कीचड़ी कोयला भी कहा जाता है, एक छोटे आकार वाला कार्बन धुएं का अणु होता है जो जलती हुई या अधर्मी धुएं की बनावट रखता है। इसका प्रमुख स्रोत वाहनों, उद्योगों और जलती हुई जगहों से आने वाले इंजन रोधक धुएं हैं।
2. वायु प्रदूषण क्या है और विश्व बैंक की रिपोर्ट में इसका क्या महत्व है?
उत्तर. वायु प्रदूषण वायुमंडल में विभिन्न वायु द्रवों और ऊर्जा स्रोतों के तत्वों का मिश्रण है जो वायुमंडल की गुणवत्ता को कम करके मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में वायु प्रदूषण का महत्व है क्योंकि यह रिपोर्ट वायु प्रदूषण के प्रबंधन के लिए नीतिगत सुझावों और नवीनतम दिशानिर्देशों को प्रस्तुत करती है।
3. स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट क्या है और यह किस विषय पर चर्चा करती है?
उत्तर. स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट एक प्रमुख राष्ट्रीय रिपोर्ट है जो भारतीय पर्यावरण और वन्य जीवों के लिए वित्तीय स्थिति को आकलन करती है। यह रिपोर्ट भारत के प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों को मापने और उनकी प्रगति को मूल्यांकन करने के लिए आकलन और विश्लेषण प्रदान करती है। यह रिपोर्ट वन्य जीव और जैव विविधता क्षेत्र पर चर्चा करती है।
4. जैव विविधता ढाँचा और आदिवासी समुदाय के बीच क्या संबंध है?
उत्तर. जैव विविधता ढाँचा आदिवासी समुदायों के लिए जैव विविधता के संरक्षण और प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए एक मार्गदर्शिका है। यह ढाँचा आदिवासी समुदायों की स्थानीय ज्ञान, रचनात्मकता और प्रबंधन प्रथाओं को सम्मिलित करता है और उन्हें जैव विविधता के संरक्षण में साझा भागीदारी और सशक्तीकरण की मदद करता है।
5. वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर. वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य वन्य जीवों के संरक्षण, उनके आवास क्षेत्रों की सुरक्षा, और जैव विविधता की संरक्षा करना है। यह विधेयक भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून को सुधारने का प्रयास है और वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में नवीनतम नीतियों और प्रबंधन दिशानिर्देशों को प्रस्तुत करता है।
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