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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): May 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भूमि पुनरुद्धार

चर्चा में क्यों?  

विशेष रूप से पूर्वी एशिया, मध्य-पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में तटीय क्षेत्रों के बढ़ते आर्थिक महत्त्व के परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर भूमि पुनरुद्धार के काफी कार्य हुए हैं। इन परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक लाभ के बावजूद इनके कारण समुद्र स्तर में वृद्धि तथा तूफान जैसी पर्यावरणीय बाधाओं से उत्पन्न होने वाले खतरों की संभावना बनी रहती है।

भूमि पुनरुद्धार

  • परिचय:  
    • भूमि पुनरुद्धार से तात्पर्य समुद्र, नदियों, झीलों अथवा दलदल जैसे मौजूदा जलाशयों की स्थलाकृति में बदलाव करके नई भूमि का निर्माण करने की प्रक्रिया से है।
    • आर्द्रभूमि अथवा अन्य जल निकायों का रूपांतरण आमतौर पर समुद्र तट के आसपास के क्षेत्र में किया जाता है, हालाँकि यह अंतर्देशीय क्षेत्र भी हो सकता है।
    • कृषि और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये तटीय क्षेत्रों का विस्तार करने हेतु भूमि पुनरुद्धार कार्य ऐतिहासिक रूप से किया जाता रहा है।
  • पारंपरिक भूमि पुनरुद्धार:  
    • परंपरागत रूप से भूमि पुनरुद्धार का मतलब ज्वारीय दलदल या उथले अपतटीय जल को घेरने हेतु तटबंधों की एक शृंखला का निर्माण करना एवं शुष्क भूमि बनाने के लिये इन तटबंधों को हटाना था।
    • कुछ मामलों में इन क्षेत्रों में अतिरिक्त तलछट ले जाने हेतु धाराओं को मोड़ दिया गया, जिससे उच्च स्तर परआ भूमि का निर्माण हुआ।
      • मुख्य भूमि से मृदा और पत्थरों का उत्खनन कर और समुद्र तट के साथ या मौजूदा द्वीपों के तट पर डंप करके उत्तरोत्तर समुद्र में विस्तारित किया जा सकता है।  
  • आधुनिक भूमि पुनरुद्धार:  
    • वर्तमान में प्रमुख इंजीनियरिंग परियोजनाओं द्वारा कई किलोमीटर की अपतटीय कंक्रीट बाधा दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिसमें रेत, गाद, मृदा या चट्टान की पर्याप्त मात्रा का प्रयोग होता, जिन्हें प्रायः दूरस्थ स्थापित किया जाता है।
    • रिक्लेमेशन साइट को हाइड्रोलिक रिक्लेमेशन प्रक्रिया द्वारा जल के साथ मिश्रित समुद्री तल से निकाली गई मृदा से भी भरा जा सकता है।
  • भूमि पुनरुद्धार की वर्तमान सीमा:  
    • इस अध्ययन, जिसने कम-से-कम 1 मिलियन की आबादी वाले तटीय शहरों की उपग्रह इमेजरी की जाँच की, से पता चला है कि विश्व भर के 106 शहरों में पुनरुद्धार परियोजनाओं के चलते कुल मिलाकर लगभग 2,530 वर्ग किलोमीटर (900 वर्ग मील से अधिक) तटीय भूमि का निर्माण किया गया था।
    • पिछले दो दशकों में पूर्वी एशिया में लगभग 90% नई तटीय भूमि का निर्माण किया गया, इसके तहत वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में उद्योग हेतु और बंदरगाहों पर सुविधाओं के लिये सड़क निर्माण किया गया था।
      • अकेले चीन ने वर्ष 2000 और 2020 के दौरान सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में इंचियोन में भी लगभग 350 वर्ग किलोमीटर के विशाल नए क्षेत्र को जोड़ा।
  • भूमि पुनरुद्धार से जुड़े मुद्दे
    • समुद्र तटीय बाढ़: हाल ही में तटीय भूमि का अधिकांश विस्तार निचले इलाकों में हुआ है तथा वर्ष 2046 और 2100 के बीच इस भूमि के 70% से अधिक भाग पर समुद्र तटीय बाढ़ के उच्च जोखिम का अनुमान है," यह स्थिति आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उत्पन्न तूफान व भूमि के धँसने के जोखिम के कारण है।
      • तेज़ तूफान और विनाशकारी बाढ़ के कारण तटीय समुदाय अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
    • सी-बेड इकोसिस्टम की विकृति: समुद्री और नदी पारिस्थिकी से प्राप्त रेत जैसी सामग्री का उपयोग किये जाने से जीवों के निवास स्थान और स्पॉइंग ग्राउंड का विनाश हो सकता है।
      • कई देशों ने भूमि पुनरुद्धार के लिये रेत के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। इसके परिणामस्वरूप रेत की कमी के चलते कुछ निर्माण कंपनियाँ समुद्र तल से रेत और मृदा निकालने के लिये मजबूर हैं। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी नुकसान हुआ है। 
    • आर्द्रभूमि का नुकसान: मैंग्रोवलवणीय दलदल और ज्वारनदमुख जैसी तटीय आर्द्रभूमियाँ काफी उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनसे कई पारिस्थितिक लाभ प्राप्त होते हैं।
      • भूमि पुनरुद्धार के अंतर्गत अक्सर इन आर्द्रभूमियों की जल निकासी अथवा उन्हें भरने का कार्य शामिल होता है जो इनके नष्ट या परिवर्तित होने का कारण बनता है।
      • आर्द्रभूमि का यह नुकसान तटीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राकृतिक संतुलन को बाधित करने के साथ ही जल की गुणवत्ता, मत्स्य नर्सरी और तटीय क्षेत्र की समग्र सुनम्यता को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह 

  • रणनीतिक तटीय योजना: भूमि पुनरुद्धार के दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखने और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने वाले व्यापक तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
  • हरित इंजीनियरिंग समाधान: तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर भूमि पुनरुद्धार के प्रभाव को कम करने वाली नवीन व हरित इंजीनियरिंग तकनीकों को नियोजित करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये पारगम्य संरचनाओं, तैरते द्वीपों और रेत से भरे कंटेनर जैसे इंजीनियरिंग समाधानों को अपनाना, जो पानी का प्रवाह सुनिश्चित करते हैं और तटीय गतिविद्घियों में व्यवधान को कम करते हैं।
  • तटीय निगरानी के लिये AI: तटीय परिवर्तनों की निगरानी करने, कटाव हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने और तटीय प्रबंधन हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट का विगलन

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन के अनुसार, "पर्माफ्रॉस्ट का विगलन ऐतिहासिक रूप से औद्योगिक संदूषण वाले हज़ारों स्थलों में पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न कर सकता है", साथ ही पर्माफ्रॉस्ट के विगलन से आर्कटिक क्षेत्र में विषाक्त पदार्थों का प्रसार हो सकता है। 

पर्माफ्रॉस्ट

  • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
  • ये स्थायी रूप से जमे हुए मैदान अक्सर आर्कटिक क्षेत्रों जैसे- ग्रीनलैंड, अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, रूस और पूर्वी यूरोप में पाए जाते हैं।
  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, पर्माफ्रॉस्ट "मृदा, चट्टानों और रेत के संयोजन से बने हैं जो बर्फ द्वारा एक साथ संयोजित होते हैं। पर्माफ्रॉस्ट में मृदा और बर्फ वर्ष भर जमी रहती है।
  • हालाँकि यहाँ भूमि हमेशा जमी रहती है, जबकि पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढके नहीं होते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • क्षेत्र में दूषित स्थल: 
    • पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र में 4,500 औद्योगिक संचालनों के चलते 13,000 से 20,000 दूषित स्थलों के निर्माण की आशंका है।
    • अब तक लगभग 1,000 ज्ञात औद्योगिक स्थल और 2,200-4,800 तक ज्ञात दूषित स्थल पहले से ही पर्माफ्रॉस्ट के विगलन के कारण अस्थिर होने के जोखिम में हैं।
  • आर्कटिक में औद्योगिक अपशिष्ट:
    • इस क्षेत्र में ज्ञात औद्योगिक अपशिष्ट के प्रकारों में ड्रिलिंग व खनन अपशिष्ट, मृदा व तरल पदार्थ जैसे दूषित पदार्थ, खदान अपशिष्ट डंपिंग साइट्स, भारी धातु, फैला हुआ तरल ईंधन और रेडियोधर्मी अपशिष्ट शामिल हैं।
  • तेज़ी से पिघलना और औद्योगिक साइट को अस्थिर करना:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण शेष ग्रह की तुलना में आर्कटिक लगभग चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है और इसलिये पर्माफ्रॉस्ट तेज़ी से पिघल रहा है, जो न केवल औद्योगिक स्थलों बल्कि दूषित क्षेत्रों को भी अस्थिर कर सकता है।
      • इस शताब्दी के अंत तक लगभग 2,100 औद्योगिक स्थलों और 5,600-10,000 तक दूषित स्थलों पर अस्थिरता का खतरा मंडरा रहा है।
  • ऐसी साइट्स के निर्माण का कारण:
    • कभी सतत् स्थिर और भरोसेमंद माना जाने वाला आर्कटिक क्षेत्र वास्तव में एक निर्जन और अछूते क्षेत्र से बहुत दूर है।  
      • यह तेल क्षेत्रों व पाइपलाइन, खदानों और सैन्य ठिकानों जैसी अनगिनत औद्योगिक सुविधाओं से युक्त है।
    • इन औद्योगिक स्थलों से निकलने वाले ज़हरीले कचरे को पर्माफ्रॉस्ट में इस उम्मीद के साथ दफनाया गया था कि यह अनिश्चित काल तक ढका रहेगा और सारा बुनियादी ढाँचा उसी पर खड़ा किया गया है।
      • अब ग्रह लगातार गर्म हो रहा है जिससे खतरा मंडरा रहा है।
    • शीत युद्ध के दौरान आर्कटिक क्षेत्र ने विकास में वृद्धि का अनुभव किया तथा यह संसाधन निष्कर्षण और सैन्य संचालन का केंद्र बन गया। 
      • नतीजतन, औद्योगिक और ज़हरीले कचरा पर्माफ्रॉस्ट पर या उसके अंदर जमा हो गया और इसे हटाने के लिये कोई उपाय नहीं किये गए।

पर्माफ्रॉस्ट के विगलन के प्रभाव

  • इसके सबसे खतरनाक परिणामों में से एक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का वायुमंडल में मुक्त होना है। 
    • नासा की वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “अकेले आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में लगभग 1,700 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन है, जिसमें मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड शामिल हैं। यह 2019 में जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के रूप में जारी कार्बन की मात्रा का लगभग 51 गुना है।
  • पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए पौधे में निहित पदार्थ सड़ता नहीं है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो मृत पौधों की सामग्री के भीतर के रोगाणु पदार्थ को तोड़ना शुरू कर देते हैं और कार्बन को वायुमंडल में छोड़ते हैं।
    • कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से हज़ारों निष्क्रिय वायरस और बैक्टीरिया बाहर निकल आएंगे।
    • इनमें से कुछ "नए या प्राचीन वायरस हो सकते हैं जिनके खिलाफ मनुष्यों में प्रतिरक्षा और इलाज की कमी है या ऐसी बीमारियाँ जिन्हें समाज ने चेचक या ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के रूप में समाप्त कर दिया है।"

स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी): एक अवलोकन

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चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान (एनआईयूए) ने संयुक्त रूप से नई दिल्ली में ‘रिवर-सिटीज एलायंस (आरसीए) ग्लोबल सेमिनार: अंतर्राष्ट्रीय नदी-संवेदनशील शहरों के निर्माण के लिए साझेदारी’ का आयोजन किया। संगोष्ठी का उद्देश्य सदस्य शहरों और वैश्विक हितधारकों के बीच शहरी नदी प्रबंधन पर चर्चा और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना है।
सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में स्थापित, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को 12 अगस्त, 2011 से गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय परिषद द्वारा लागू किया जाता है, जिसे राष्ट्रीय गंगा परिषद के रूप में भी जाना जाता है।

उद्देश्यों

  • मिशन मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के प्रदर्शन को बढ़ाने और रिवरफ्रंट के निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल उपायों को लागू करने पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य नदी में सीवेज के प्रवाह को रोकना है।
  • मिशन मौसमी विविधताओं पर विचार करते हुए पूरे वर्ष नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने का प्रयास करता है।
  • मिशन का उद्देश्य सतह के पानी और भूजल दोनों के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करना और बनाए रखना है।
  • मिशन इस क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति को पुनर्जीवित और संरक्षित करना चाहता है।
  • मिशन गंगा नदी बेसिन की जलीय और तटीय जैव विविधता के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए प्रतिबद्ध है।
  • मिशन का उद्देश्य नदी की रक्षा, कायाकल्प और प्रबंधन की प्रक्रिया में जनता को शामिल करना है।

गंगा से संबंधित पहल क्या हैं?

  • नमामि गंगे कार्यक्रम जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण और कायाकल्प के लिए अनुमोदित एक ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम’ है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना, घरेलू सीवेज के अवरोधन, डायवर्सन और उपचार के माध्यम से पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए पहली नदी कार्य योजना थी। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा कार्य योजना का विस्तार है और इसका उद्देश्य गंगा कार्य योजना चरण -2 के तहत गंगा नदी को साफ करना है।
  • भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत 2009 में राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (एनआरजीबीए) की स्थापना की। 2008 में, गंगा को भारत की ‘राष्ट्रीय नदी’ घोषित किया गया था।
  • गंगा को साफ करने, अपशिष्ट उपचार संयंत्र स्थापित करने और नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिए 2014 में स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना की गई थी।
  • भुवन-गंगा वेब ऐप गंगा नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • 2017 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा में अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया।

पेरिस जलवायु समझौता (Paris Climate Agreement)

चर्चा में क्यों?

  • अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से औपचारिक रूप से पीछे हटने वाला दुनिया का पहला राष्ट्र बन गया है।
  • हालाँकि डेकोक्रेट प्रत्याशी, जो बाइडन जोकि वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव में आगे चल रहे है, ने घोषणा की है कि “राष्ट्रपति बनने के बाद वह सबसे पहले पेरिस जलवायु समझौते में फिर से शामिल होने का फ़ैसला करेंगे।”

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पृष्ठभूमि

  • राष्ट्रपति ट्रम्प ने जून 2017 में पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने की घोषणा की थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के नियमों अनुसार अमेरिका का यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अगले दिन ही लागू होता है।
  • यदि अमेरिका का नया राष्ट्रपति चाहे तो अमेरिका भविष्य में फिर पेरिस समझौते में शामिल हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया को मजबूत करने के लिए 2015 में पेरिस समझौते का मसौदा तैयार किया गया था।

क्या है पेरिस जलवायु समझौता?

  • दिसंबर 2015 में पेरिस में आयोजित हुए UNFCCC के सम्मेलन (CoP-21) में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया गया था।
  • 195 देशों ने जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन और धारणीय विकास की दिशा में निवेश करने पर सहमति व्यक्त की थी।
  • पहली बार पेरिस समझौता के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन की दिशा में सभी राष्ट्रों को उनकी ऐतिहासिक, वर्तमान और भविष्य की जिम्मेदारियों के आधार पर एक साथ लाया गया।
  • गौरतलब है कि इससे पहले 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल ने केवल कुछ विकसित देशों के लिए उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य निर्धारित किए, लेकिन अमेरिका ने हाथ खींच लिए और अन्य लोग इसका पालन करने में विफल रहे थे।

पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य

  • पेरिस समझौता का केंद्रीय उद्देश्य इस सदी में वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से रखकर जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया को मजबूत करना है।
  • इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • 2050 से 2100 के बीच मानव गतिविधि द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को उस स्तर तक लाना जिसे पेड़ों, महासागरों और मृदा द्वारा स्वाभाविक रूप से अवशोषित किया जा सके।
  • इसके अतिरिक्त, समझौते का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता को मजबूत करना भी है।
  • पेरिस समझौते में सभी पक्षकारों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के माध्यम से अपने सर्वोत्तम प्रयासों को आगे बढ़ाने और आने वाले वर्षों में इन प्रयासों को मजबूत करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
  • हर पांच साल में उत्सर्जन में कटौती के लिए प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करना ताकि वे चुनौती के लिए तैयार हों।
  • अमीर देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर जाने के लिए "जलवायु वित्त" प्रदान करके गरीब देशों की मदद करना।

अमेरिका के पेरिस एग्रीमेंट से पीछे हटने के मायने

  • वर्तमान में अमेरिका लगभग 15% वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रतिनिधित्व करता है, यही कारण है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था है।
  • ऐसे में जब वह वैश्विक समस्या के वैश्विक समाधान से पीछे हटने वाला एकमात्र देश बन जाता है तो यह अन्य देशों की प्रतिबद्धताओं को भी कमजोर करता है।
  • अमेरिका का पेरिस समझौते से बाहर होना दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति नहीं बनाना चाहता है।
  • पिछले तीन वर्षों से, अमेरिकी वार्ताकारों ने संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता में भाग लिया है, जबकि वहाँ का प्रशासन ने जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देने के लिए इन घटनाओं का उपयोग करने की कोशिश की।
  • यह दूसरी बार है जब संयुक्त राज्य अमेरिका किसी जलवायु समझौते पर बातचीत करने के पीछे हट रहा है। इसके पहले क्योटो प्रोटोकॉल कभी भी पुष्टि नहीं की और अब पेरिस समझौते से पीछे हट गया है।
  • हालांकि विश्लेषकों को उम्मीद है कि यदि जो बिडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनते हैं, तो संभावना है कि वह पेरिस समझौते से पीछे हटने के फैसले को जल्द से जल्द पलट देंगे।

जलवायु परिवर्तन के लिए भारत के प्रमुख प्रयास

  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)
    • भारत के लिए घोषित लक्ष्य को 2030 तक प्राप्त करना है। इसके लिए भारत निम्न कदम उठा रहा है-
      • 2030 तक उत्सर्जन में प्रति यूनिट जीडीपी उत्सर्जन में 35 से 35% की कटौती (2005 के स्तर की तुलना में)
      • 2030 में कम से कम 40% बिजली गैर जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त की जाएगी
      • वनों के द्वारा 2.5 से 3 बिलियन टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाया जाएगा
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संधि (आईएसए)
      • आईएसए भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवम्बर, 2015 को पेरिस में शुरू की गई प्रथम संधि आधारित अंतर्राष्ट्रीय अंतरसरकारी संगठन है जो 6 दिसंबर, 2017 को अस्तित्व में आया।
      • अभी तक आईएसए ने पांच कार्यक्रम शुरू किए हैं:
        • कृषि उपयोग के लिए सौर ऊर्जा अनुप्रयोगों का आकलन करना,
        • किए गए आकलन के लिए वित्त पोषण उपलब्ध कराना,
        • लघु सौर-ऊर्जा ग्रिडों का आकलन करना,
        • छतों पर लगाए गए सौर ऊर्जा संयंत्रें का आकलन करना और
        • ई-परिवहन तथा भंडारण में सौर-ऊर्जा का आकलन करना।

लुधियाना गैस रिसाव त्रासदी 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पंजाब के लुधियाना ज़िले में गैस रिसाव के कारण 11 लोगों की मौत की जाँच के लिये आठ सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति का गठन किया है।

  • NGT ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर मामले का स्वत: संज्ञान लिया।

लुधियाना में हुई त्रासदी

  • पृष्ठभूमि:
    • लुधियाना के ग्यासपुरा इलाके में गैस रिसाव ने 11 लोगों की जान ले ली है।
    • पुलिस को संदेह है कि इलाके में आंशिक रूप से खुले मैनहोल से ज़हरीली गैस निकली होगी और आस-पास की दुकानों तथा घरों में फैल गई।
      • गैस रिसाव के कारणों की जाँच की जा रही है।
    • पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि मौतें "इनहेलेशन पॉइज़निंग" के कारण हुई हैं।
      • फोरेंसिक विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन सल्फाइड को त्रासदी के लिये ज़िम्मेदार होने का संदेह व्यक्त किया है जो कि एक न्यूरोटॉक्सिक गैस है।
      • एक विशेषज्ञ के अनुसार, संभवतः कुछ अम्लीय अपशिष्ट सीवर में फेंके गए थे जिसने मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य सीवरेज गैसों के साथ प्रतिक्रिया कर हाइड्रोजन सल्फाइड उत्पन्न की।
  • न्यूरोटॉक्सिन:
    • न्यूरोटॉक्सिन ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो सीधे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
      • ये पदार्थ स्नायु या तंत्रिका कोशिकाओं, जो कि मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के अन्य भागों में संकेतों को प्रसारित करने तथा संसाधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, को बाधित या मार भी सकते हैं।
  • न्यूरोटॉक्सिक गैसें:
  • मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड आम न्यूरोटॉक्सिक गैसें हैं।
  • मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड गंधहीन गैसें हैं, लेकिन हाइड्रोजन सल्फाइड में तीखी गंध होती है जिसकी उच्च सांद्रता मनुष्यों हेतु घातक हो सकती है।
    • हाइड्रोजन सल्फाइड इतनी ज़हरीली होती है कि इसमें साँस लेने से किसी व्यक्ति की जान जा सकती है।

भारत में रासायनिक आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा उपाय

  • पृष्ठभूमि: भोपाल गैस त्रासदी से पहले IPC 1860 ऐसी आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाला एकमात्र कानून था, हालाँकि त्रासदी के तुरंत बाद सरकार ने पर्यावरण को विनियमित करने एवं सुरक्षा उपायों तथा दंडों को निर्धारित करने व निर्दिष्ट करने वाले कई कानून बनाए। कुछ कानून निम्नलिखित हैं:
    • भोपाल गैस रिसाव (दावों की प्रक्रिया) अधिनियम, 1985 ने केंद्र सरकार को भोपाल गैस त्रासदी से उत्पन्न होने वाले या उससे जुड़े दावों को सुरक्षित करने की शक्तियाँ प्रदान कीं।
      • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसे दावों को शीघ्रता और समान रूप से निपटाया जाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act- EPA), 1986 केंद्र सरकार को पर्यावरण में सुधार के उपाय और मानक निर्धारित करने एवं औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण करने की शक्ति देता है।
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 खतरनाक पदार्थों को प्रबंधित करने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने हेतु एक बीमा है।
  • खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन संचालन और सीमा पार संचलन) नियम, 1989 के तहत उद्योगों को प्रमुख दुर्घटना खतरों की पहचान, निवारक उपाय करने एवं नामित अधिकारियों को रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
  • खतरनाक रसायनों के निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 के तहत आयातकों को संपूर्ण उत्पाद सुरक्षा जानकारी सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करनी होती है, साथ ही संशोधित नियमों के अनुसार आयातित रसायनों का परिवहन करना आवश्यक है।
  • रासायनिक दुर्घटनाएँ (आपातकाल, योजना निर्माण, तैयारी और प्रतिक्रिया) नियम, 1996 के तहत केंद्रीय सरकार को रासायनिक दुर्घटनाओं के प्रबंधन के लिये एक केंद्रीय आपदा समूह का गठन करना अनिवार्य है; साथ ही आपदा चेतावनी प्रणाली के रूप में जाने जानी वाली त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करना भी इसी के अंतर्गत आता है।
  • प्रत्येक राज्य को एक संकट समूह स्थापित करने और इसके कार्य के बारे में रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम, 1997: इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण विशिष्ट सुरक्षा उपायों के अधीन उन स्थानों पर EPA1986 के प्रतिबंधों के बारे में अपील पर विचार कर सकता है जिसमें कुछ उद्योग, संचालन, प्रक्रियाएँ संचालित हो सकती हैं अथवा नहीं हो सकती हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal)

  • परिचय:
    • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    • NGT की स्थापना के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद भारत एक विशेष पर्यावरण अधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा देश बन गया, ऐसा करने वाला भारत पहला विकासशील देश है
    • NGT को प्राप्त आवेदनों अथवा अपीलों को दाखिल करने के 6 महीने के भीतर पूरी तरह से निपटान करना अनिवार्य है।
    • अधिकरण की प्रधान बैठक नई दिल्ली में और अन्य चार बैठकें भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई में होंगी।
  • शक्तियाँ:
    • किसी भी पर्यावरणीय कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े सभी नागरिक मामले इस अधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
    • यह पर्यावरणीय मामलों का स्वत: संज्ञान ले सकता है।
    • आवेदन दाखिल करने पर मूल अधिकार क्षेत्र के अलावा NGT के पास न्यायालय (ट्रिब्यूनल) के रूप में अपील सुनने के लिये अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है।
    • NGT, CPC 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, लेकिन 'प्राकृतिक न्याय' के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
    • ट्रिब्यूनल का आदेश/निर्णय/अवार्ड सिविल कोर्ट की डिक्री के रूप में निष्पादन योग्य है।
    • NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय का निष्पादन न्यायालय के आदेश के रूप में करना होता है।

प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम/प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (United Nations Environment Programme/Convention on Migratory Species- UNEP/CMS) के सहयोग से मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF) में प्रवासी पक्षियों एवं उनके आवासों के संरक्षण प्रयासों को मज़बूत करने हेतु पक्षकार देशों की एक बैठक आयोजित की।

  • बैठक में आर्मेनिया, बांग्लादेश, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, कुवैत सहित 11 देशों ने भाग लिया। प्रतिनिधियों ने CAF के लिये एक संस्थागत ढाँचे और CMS/CAF कार्ययोजना को अद्यतन करने हेतु एक मसौदा रोडमैप पर सहमति व्यक्त की।

CMS

  • परिचय: 
    • यह UNEP के तहत एक अंतर-सरकारी संधि है जिसे बॉन कन्वेंशन के नाम से जाना जाता है।
    • इस पर वर्ष 1979 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह 1983 से लागू है।
    • CMS में 1 मार्च, 2022 तक 133 पक्षकार हैं।
      • भारत भी वर्ष 1983 से CMS का एक पक्षकार है।
  • लक्ष्य: 
    • इसका उद्देश्य स्थलीय, समुद्री और एवियन प्रवासी प्रजातियों को उनकी सीमा में संरक्षित करना है।
    • यह वैश्विक स्तर पर संरक्षण उपायों को संचालित करने के लिये कानूनी नींव रखता है।
      • CMS के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते और कम औपचारिक समझौता ज्ञापन भी कानूनी साधनों के रूप में संभव हैं।
  • CMS के तहत दो परिशिष्ट:
    • परिशिष्ट I 'संकटग्रस्त प्रवासी प्रजातियों' को सूचीबद्ध करता है।
    • परिशिष्ट II 'अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता वाली प्रवासी प्रजातियों' को सूचीबद्ध करता है।
  • भारत और CMS: 
    • भारत ने साइबेरियन क्रेन (1998), समुद्री कछुए (2007), डुगोंग (2008) और रैप्टर (2016) के संरक्षण एवं प्रबंधन पर CMS के साथ गैर-कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • भारत दुनिया के 2.4% भूमि क्षेत्र के साथ ज्ञात वैश्विक जैवविविधता में लगभग 8% का योगदान देता है।
      • भारत कई प्रवासी प्रजातियों को अस्थायी आश्रय भी प्रदान करता है जिनमें अमूर फाल्कनबार-हेडेड गीज़, ब्लैक-नेक्ड क्रेन, समुद्री कछुएडुगोंग, हंपबैक व्हेल आदि शामिल हैं।
  • प्रवासी प्रजातियाँ: 
    • जंगली पशुओं की एक प्रजाति अथवा निचले श्रेणी के टैक्सोन, (जैविक वर्गीकरण के विज्ञान में प्रयुक्त इकाई) जिसकी पूरी आबादी अथवा आबादी का कोई भौगोलिक रूप से अलग हिस्सा चक्रीय रूप से और अनुमानित रूप से एक या एक से अधिक राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के पार जा सकता है।
    • "चक्रीय रूप से" पद किसी भी प्रकार के चक्र को संदर्भित करता है, जिसमें जलवायु, जैविक और खगोलीय (सर्कैडियन, वार्षिक आदि) चक्र शामिल हैं।
      • पद "अनुमानित रूप से" का तात्पर्य है कि एक घटना की कुछ प्रकार की स्थितियों के तहत पुनरावृत्ति होने की उम्मीद की जा सकती है, हालाँकि जरूरी नहीं कि  यह समय-समय पर नियमित रूप से हो।

मध्य एशियाई फ्लाईवे

  • मध्य एशियाई फ्लाईवे (CAF) पक्षियों के लिये एक प्रमुख प्रवासी मार्ग है, जो आर्कटिक महासागर से हिंद महासागर तक 30 देशों तक फैला हुआ है।
    • भारतीय उपमहाद्वीप CAF का एक हिस्सा है जहाँ 182 प्रवासी जलपक्षी प्रजातियों (29 विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों सहित) के कम-से-कम 279 आबादी भारत में पाई जाती है।
    • भारत में प्रवासी पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें साइबेरियन क्रेन और लैसर वाइट फ्रंट गूज़ जैसे संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं।

फ्लाईवे

  • फ्लाईवे अपने वार्षिक चक्र के दौरान पक्षियों के एक समूह द्वारा उपयोग किया जाने वाला क्षेत्र है जिसमें उनके प्रजनन क्षेत्र, ठहराव क्षेत्र और सर्दियों के क्षेत्र शामिल हैं।
  • CMS सचिवालय ने पक्षियों के प्रवास के संबंध में वैश्विक स्तर पर नौ प्रमुख फ्लाईवे की पहचान की है।

प्रवासी प्रजातियों के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास

  • प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (2018-2023): भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना शुरू की है। 
    • प्रवासी पक्षियों द्वारा सामना की जाने वाली वाली विभिन्न समस्याओं जैसे- निवास स्थान का नुकसान, निम्नीकरण और विखंडन, अवैध शिकार, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन करके इन प्रजातियों के महत्त्वपूर्ण आवासों तथा प्रवासी मार्गों पर दबाव कम करने का प्रयास।
    • प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी को रोकना और वर्ष 2027 तक इस परिदृश्य को संतुलित करना।
    • आवासों और प्रवासी मार्गों के खतरों से बचाना और भावी पीढ़ियों के लिये उनकी स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिये मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ-साथ विभिन्न देशों के बीच सीमा पार सहयोग का समर्थन करना।
    • प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों पर डेटाबेस में सुधार करना ताकि उनके संरक्षण आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके। 
  • भारत के अन्य प्रयास: 
    • समुद्री कछुओं का संरक्षण: वर्ष 2020 तक समुद्री कछुआ नीति और समुद्री स्ट्रैंडिंग प्रबंधन नीति की शुरुआत।
    • माइक्रो प्लास्टिक और सिंगल यूज़ प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण में कमी।
    • बाघएशियाई हाथीहिम तेंदुआएशियाई शेरएक सींग वाला गैंडा और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी प्रजातियों के संरक्षण के लिये सीमा पार संरक्षित क्षेत्र। 
    • पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में अनुकूल विकास के लिये रैखिक अवसंरचना नीति दिशा-निर्देशों जैसे सतत् बुनियादी ढाँचे का विकास।
  • प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (PSL): PSL को हिम तेंदुओं और उनके आवास के संरक्षण के लिये एक समावेशी और भागीदारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2009 में लॉन्च किया गया था।
  • डुगोंग संरक्षण रिज़र्व: भारत ने तमिलनाडु में अपना पहला डुगोंग संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: 
    • प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों को अधिनियम की अनुसूची-I में शामिल किया गया है जिससे उन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होती है।
    • इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
    • पक्षियों और उनके आवासों की बेहतर सुरक्षा और संरक्षण के लिये इस अधिनियम के तहत प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों के महत्त्वपूर्ण आवासों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • अन्य पहलें: 
    • नगालैंड राज्य में अमूर फाल्कन्स, जो दक्षिणी अफ्रीका की ओर अपनी यात्रा के दौरान पूर्वोत्तर भारत में प्रवास करते हैं, की सुरक्षा के लिये केंद्रित सुरक्षा उपाय किये गए हैं। इन उपायों में स्थानीय समुदायों द्वारा सहायता भी शामिल है।
    • भारत ने गिद्धों के संरक्षण के लिये कई कदम उठाए हैं जैसे- डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगानागिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना आदि।
    • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना वन्यजीवों तथा उनके अंगों एवं उत्पादों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण के लिये की गई है।
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