UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  फल और पादप-हारमोन (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC

फल और पादप-हारमोन (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

फल और पादप-हारमोन
फल (Fruit)

  • फल, परिपक्व अण्डाशय (Ovary) को कहते है। पुष्पों में निषेचन (Fertilization) का अण्डाशय पर दोहरा प्रभाव पड़ता है- युग्मन (Syngamy) के फलस्वरूप बीजाण्ड (Ovule) बीज में परिवर्तित हो जाता है और अण्डाशय-भित्ति में कुछ परिवर्तन होते है जिससे वृद्धि-नियामक पदार्थ (Growth Hormones) बहुत अधिक मात्र में संश्लेषित होने लगते है जिस कारण अण्डाशय की कार्यिकी (Physiology) में परिवर्तन हो जाता है। इन मृदुतक कोशाओं में बहुत से अम्ल, शर्करा तथा कुछ दूसरे स्वादिष्ट पदार्थ उत्पन्न हो जाते है और अण्डाशय-भित्ति पककर फलभित्ति (Pericarp) के रूप में बदल जाती है। फलभित्ति पतली या मोटी हो सकती है। मोटी फलभित्ति में प्रायः तीन स्तर हो जाते है। बाहरी स्तर को बाह्य फलभित्ति (Epicarp), मध्य स्तर को मध्य फलभित्ति (Mesocarp) और सबसे अन्दर के स्तर को अन्तः फलभित्ति (Endocarp) कहते है।
  • यदि फल के बनने में केवल अण्डाशय (Ovary) ही भाग लेता है तो उस फल को सत्य फल (True fruit) कहते है, परन्तु कभी-कभी अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग, जैसे- पुष्पासन, बाह्यदल इत्यादि भी फल बनने में भाग लेते है, ऐसे फलों को कूट फल (False Fruit) कहते है, जैसे- सेब (Apple) में पुष्पासन (Thalamus) फल बनाने में भाग लेता है। फल पौधों के लिए लाभदायक है, क्योंकि यह तरुण बीजों की रक्षा करता है और बीजों के प्रकीर्णन (Dispersal) में सहायता करता है।

 

कुछ सामान्य रोग, प्रभावित अंग, कारण

रोग

प्रभावित अंग

कारण

कण्ठमाला (Goitre)

गला (थाॅयराॅयड ग्रंथि)

आयोडीन की कमी

ओटोरिया (Otorrhoea)

कान

बैक्टिरिया

चेचक (छोटी माता)

त्वचा

वायरस (वेरियोला)

खसरा  (Measles)

त्वचा

वायरस (पारामिक्सो)

रूबेला  (Rubella)

श्वसन संस्थान

वायरस (टोथा)

बलकंठ (Mumps)

पिट्यूटरी ग्रंथि

वायरस (मिक्सो)

इन्फ्लूएन्जा (Influenxa)

पूरा शरीर

वायरस (इनफ्लूएंजा)

डीप्थिरिया (Diptheria)

गला

बैक्टिरिया (कोर्नी बैक्टिरिया)

कुकुर खाँसी (Whooping Cough)

फेफड़ा

बैक्टिरीया (बी. परटूमिस)

क्षय (Tuber Culosis)

सामान्यतः छाती; परंतु आँत, वृक्क,ग्रंथियों, अस्थि आदि में भी हो जाता है 

बैक्टिरिया (माइकोबैक्टिरिया ट्यूबरक्यूलोसिस)

पोलियो मेलाइटिस

तंत्रिकाएँ

वायरस (पोलियो)

जाउण्डिस

यकृत

वायरस (हेमाटाइटिस A तथा B)

टायफाॅयड या इन्टेरिक बुखार

आँत

बैक्टिरिया (टाइफी सालमोनेला)

हैजा (Cholera)

छोटी आँत

बैक्टिरिया (बीब्रियो कोलेरी)

एमोयबियेसिस (Amoebiasis)

छोटी आँत प्रोटोजोआ

 

एस्केरियेसिस (Ascariasis)

छोटी आँत

प्रोटोजोआ (एस्केरिस लंब्रीकोयड्स)

पीत ज्वर (Yellow fever)

लीवर व यकृत

वायरस(फ्लेवी फेब्रीक्स)

प्लेग (Plague)

लिम्फ-नोड्स

बैक्टिरिया

मलेरिया

लीवर

प्रोटोजोआ (प्लाजमीडियम बाइवेक्स)

कालाजार

प्लीहा (Spleen)

प्रोटोजोआ (लिसमेनिया डोनोवानी)


 पादप-हारमोन
(1) आॅक्सिन (Auxin)- आॅक्सिन (Auxin) वे कार्बनिक पदार्थ होते है जो तने की कोशा का दीर्घीकरण करते है। ऐसे सभी पदार्थ जो IAA (इण्डोल एसेटिक एसिड = प्राकृतिक हारमोन) की तरह कार्य करते है, आॅक्सिन कहलाते है। वर्तमान में विभिन्न प्रकार के आॅक्सिन पाए जाते है। आॅक्सिन के द्वारा पौधों में अनुवर्तनी गति (Tropical Movement), शीर्ष प्रमुखता (Apical dominance), विलगन (Abscission) अपतृण निवारण (Weed destruction), कटे तनों पर जड़ विभेदन (Root-differentiation on stem cutting), अनिषेक फलन (Parthenocarpy), फसलों के गिरने का नियंत्रण (Control of lodging) एवं प्रसुप्तता नियंत्रण (Control of dormancy) किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इनका उपयोग विस्तृत पैमाने पर किया जाता है।
(2) जिबरलिन (Gibberellin)- इस वर्ग के पादप हारमोन की प्राप्ति सर्वप्रथम कवक से हुई। विभिन्न प्रकार के पौधे से अब तक 50 जिबरलिन पृथक किए जा चुके है। जिबरलिन पौधे की लम्बाई में वृद्धि (विशेषतया बौने पौधे में) एवं पुष्प उत्पत्ति में सहायक होता है। जिबरलिन से कुछ पौधों में अनिषेक फलन ;च्ंतजीमदवबंतचलद्ध भी हो जाता है।
(3) साइटोकाइनिन अथवा फाइटोकाइनिन (Cytok-inins  or phytokinins) - साइटोकाइनिन ऐसे पदार्थ है जो आॅक्सिन की सहायता से कोशा-विभाजन का उद्दीपन करते है। ये जीर्णता (Senescence) को रोकते है और पर्णहरिम को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देते है। कोशा-विभाजन के अतिरिक्त साइटोकाइनिन पौधों के कुछ अंगों के निर्माण को नियंत्रित करते है।
(4) इथीलीन (Ethylene)- यह वृद्धिरोधक (Growth inhibitors) हारमोन है, जो गैसीय अवस्था में पाया जाता है। यह फल पकाने वाला हारमोन है। यह पुष्पी पौधों में पुष्पन को कम करता है, परन्तु अन्नानास में पुष्पन को तीव्र करता है। यह मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है और नर पुष्पों की संख्या कम करता है। यह पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन (Abscission) को तीव्र करता है।
(5) एबसिसिक एसिड (Abscisic acid)- ये भी वृद्धिरोधक (Growth inhibitors) हारमोन है। ये पत्तियों का विलगन करते है। ये कलियों की वृद्धि तथा बीजों के अंकुरण को रोकते हैं। ये पर्णहरित को नष्ट कर जीर्णावस्था को उत्पन्न करते है। ये आलू में कन्द बनाने मंे सहायता करते है। ये रंध्रों (Stomata) को बंद कर वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं।
 

कुछ सामान्य रोग, प्रभावित अंग, कारण

रोग

प्रभावित अंग

कारण

फाइलेरिया

लिम्फ नोड्स एवं वेसल्स

प्रोटोजोआ (वूचेरिया वेनक्रोफ्टी)

रेबिज (Rabies)  (Hydrobhobia)

तंत्रिका

वायरस (बीज)

ट्रेकोमा (Trachoma)

आँख

बैक्टिरिया

कंजंक्टिवाइटिस

आँख

वायरस तथा बैक्टिरिया

टिटनस

मेरू रज्जु

बैक्टिरीया (क्लोस्ट्रिडियमटिटोनाई)

कोढ़ (Leprosy)

तंत्रिकाएँ

बैक्टिरिया (माइकोबैक्ट्रियम लेप्री)

मोतियाबिन्द (Cataract)

आँख

नेत्र के लेंस पर अपार-दर्शी परत जम जाना

ग्लूकोमा

आँख

एक्वस ह्यूमर का दबाव बढ़ जाना

जीरोपथेल्मिया (Xerophthalmia)

आँख

विटामीन ‘A’ की कमी

रता®धी (Night Blindness)

आँख

विटामीन ‘A’ की कमी

मायोपिया (निकट दृष्टि दोष)

आँख

नेत्र गोलक का लम्बा हो जाना

दूर दृष्टि दोष  (Hypermetropea)

आँख

नेत्र गोलक का छोटा हो जाना

अबिन्दुकता (Astigmatism)

आँख

नेत्र गोलक की वक्रता में असमानता हो जाना

प्रेसबायोपिया (Presbiopia)

आँख

बुढ़ापा में नेत्र-लेंस के समायोजन क्षमता मंे कमी आ जाना।

कैलेजियाँ (Chalazian)

आँख

मीबोमीयन ग्रंथि का संक्रमण (जैसे स्टेफाइलोकोक्कस बैक्टिरिया से)

बेरी-बेरी

तंत्रिका तंत्र

विटामीन B1 की कमी

पोलीन्यूराइटिस

तंत्रिका तंत्र

विटामीन B6 की कमी

पेलेग्रा

त्वचा, पाचन संस्थान तथा मस्तिष्क

विटामीन B5 की कमी

रक्ताल्पता (Anaemia)

शरीर में कमजोरी

विटामीन B12 की कमी तथा आयरन की कमी

स्कर्वी

मसूढ़ा

विटामीन 'C' की कमी

 

कुछ सामान्य रोग, प्रभावित अंग, कारण

रोग

प्रभावित अंग

कारण

रिकेट

अस्थि

विटामीन ‘D’ की कमी

नंपुसकता

पेशियाँ

विटामीन ‘E’ की कमी

एलर्जी

कोई भी अंग

एलरजेण्ट्स (जैसे-पराग कण, धूल-कण, सुगंधित पदार्थ, धूप आदि कुछ भी)

अर्थाइटिस

अस्थि-बंध

 

न्यूरोसिस

मस्तिष्क

अज्ञात

सीजोफ्रोनिया

मस्तिष्क

एड्रीनल ग्रंथि का ठीक तरह से कार्य न करना, वस्तुतः कारक अज्ञात है

मेनिया

मस्तिष्क

अज्ञात

सुजाक (Gonorrhoea)

जेनाइटल ट्रेक्ट

बैक्टिरिया (नाइजेरियाँ गोनोरी)

सिफलिस (Syphilis

जेनाइटल ट्रेक्ट

बैक्टिरिया (ट्रिपोनेमापेलेडग)

एड्स (AIDS)

जेनाइटल ट्रेक्ट्स

HIV वायरस

मेनिनजाइटिस

मस्तिष्क

बैक्टिरिया तथा वायरस

इनसेफेलाइटिस

मस्तिष्क

वायरस

राइनाइटिस (Rhinitis)

नाक

एलरजेन्ट्स, वायरस तथा बैक्टिरिया

एनथ्रैक्स (Anthrax)

त्वचा, श्वसन-नलिका, फेफड़े,पाचन-नाल

बैक्टिरिया

स्कारलेट ज्वर (Scarlet fever)

श्वसन-संस्थान

बैक्टिरिया (स्ट्रैप्टीकाकेकस)

पायरिया

मसूड़े

बैक्टिरिया

ब्रोंकाइटिस

श्वसन संस्थान

बैक्टिरिया

पेचिस  (Dysentry)

आँत

प्रोटोजोआ (एन्टअमीबा हिस्टोलीटिका)

सर्दी-जुकाम (Common Cold)

श्वसन संस्थान

वायरस तथा एलरजेन्ट्स

एक्जीमा

त्वचा

कवक (Fungi)

खुजली (स्कॅबीज)

त्वचा

कवक

दाद-दिनाय  (Ring worm)

त्वचा

कवक

 वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

  • स्थलीय पौधों से पानी का वाष्प के रूप में बाहर निकलने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते है। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते है-

(i) क्यूटिकूलर (Cuticular): उपचर्म (Cuticle) से
(ii) लेन्टीकूलर (Lenticular): वातरंध्र (Lenticel) से
(iii) स्टोमाटल (Stomatal): रंध्रों (Stomata) से

  • वाष्पोत्सर्जन मुख्य रूप से रंध्रों द्वारा होता है।
  • पौधों का वाष्पोत्सर्जन साधारण वाष्पीकरण से भिन्न है, क्योंकि यह जीवित ऊत्तकों से होता है और इसलिए यह पादप की कार्यिकी (Physiology) से प्रभावित होता है।
  • अब तक हुए शोध के अनुसार  वाष्पोत्सर्जन से पौधों को कोई लाभ नहीं है।


बिन्दुस्त्राव (Guttation)

  • पौधों द्वारा जलरंध्रों (hydathodes) से पानी की बुँदों का उत्सर्जन गटेशन या बिन्दुस्त्राव कहलाता है।
  • यह प्रायः उच्च आद्र्रता वाली दशा में जड़ दबाव (Root Pressure) से उत्पन्न जाइलम में दबाव के कारण होता है।


प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)

  • जैविक विधि द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है।
  • इस प्रक्रिया में जल से हाइड्रोजन तथा क्लोरोफिल द्वारा सौर ऊर्जा के उपयोग से कार्बनडायआॅक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में अवकृत कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में आॅक्सीजन जल से निकलता है। 

CO2 + 12 H2O → C6H12O6 + 6O2 + 6H2O

  • प्रकाश संश्लेषण की दर सबसे अधिक लाल प्रकाश तथा सबसे कम हरे प्रकाश में होती है।

 
श्वसन (Respiration)

  • जैविक विधि से कार्बनिक यौगिक के आॅक्सीकरण को श्वसन कहते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, एमीनोअम्ल या वसा सभी भाग ले सकते है।
  • इस प्रक्रिया में आॅक्सीकरण के फलस्वरूप जल, Coतथा उच्च ऊर्जा पदार्थ ATP बनते हैं जो माइटोकोन्ड्रिया में संग्रह कर लिये जाते है। 
  • ग्लूकोज के 1 अणु के पूर्ण आॅक्सीकरण से ।ज्च् के 38 अणु बनते है।

C6H12O6 → 6CO2 + 6O2 + 38 ATP
 
 

स्मरणीय तथ्य

• जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है।

• शरीर के भीतर होने वाली विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं को सम्मिलित रूप से उपापचय कहते है।

• निर्माणकारी उपापचयी क्रियाओं को उपचय या एनाबाॅलिज्म कहते है और विखण्डनात्मक उपापचयी क्रियाओं को अपचय या कटाबाॅलिज्म कहते है।

• पौधों की कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति कड़ी और मोटी होती है और उसमें सेल्यूलोस नामक पदार्थ पाया जाता है। जन्तुओं की कोशिकाओं का बाहरी आवरण मुलायम कोशिका-झिल्ली का बना होता है जिसमें सेल्यूलोस नहीं पाया जाता।

• पादप-कोशिकाओं में एक बड़ी रिक्तिका पायी जाती है जिसमें कोशाद्रव भरा रहता है, जन्तुओं में नहीं होता। पादप-कोेशिकाओं में हरितलवक पाया जाता है, जन्तु-कोशिकाओं में नहीं।

• पादप-कोशिकाओं का विभाजन कोशिका-पट्ट द्वारा होता है, जन्तु-कोशिकाओं में गढ़े द्वारा।

जन्तु-कोशिकाओं में केन्द्रक के पास तारककाय होता है, पादप-कोशिकाओं में नहीं होता।

• जन्तुओं में जटिल अंग और अंगतंत्रा पाये जाते है, पौधों में नहीं।

• पौधे अपना भोजन सरल अकार्बनिक तत्त्वों से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा खुद बनाते है। जन्तुओं में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया नहीं होती। जन्तु अपना भोजन ठोस कार्बनिक पदार्थ के रूप में लेते है।

• पौधे उत्पादक कहलाते है और जन्तु उपभोक्ता कहलाते है।

• पौधों में वृद्धि तीव्र और जीवनपर्यन्त होती है। इनमें वृद्धि की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। जन्तुओं में वृद्धि एक निश्चित समय के बाद रुक-सी जाती है। इनमें वृद्धि एक निश्चित सीमा तक और निश्चित ढंग से होती है।

• विषाणु सबसे सूक्ष्मतर जीव है। ये जीव और निर्जीव की सीमा-रेखा पर रखे जाते है और बहुत-सी बीमारियों के जनक है।

• बैक्टिरिया या जीवाणु सूक्ष्मतर पौधा है। ये भी कई घातक बीमारियों के जनक होते है।

• विषाणु और जीवाणु संसार के प्रत्येक हिस्से में विद्यमान है।

• अधिकांश पौधे और जन्तु अपने प्राकृतिक आवासों में रहते है और विशिष्ट जीवन-यापन के लिए भलीभाँति अनुकूलित होते है।

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FAQs on फल और पादप-हारमोन (भाग - 1) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. फल क्या होता है और यह पादप-हारमोन के साथ कैसे जुड़ा होता है?
उत्तर: फल एक पादप-हारमोन होता है जो फूल के बाद पौधे में उत्पन्न होता है। यह पादप-हारमोन पौधे को उसके विकास के लिए संकेत देता है और फल के रूप में बदल जाता है।
2. फल के विकास के दौरान पादप-हारमोन की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: पादप-हारमोन फल के विकास के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पादप-हारमोन पौधे को फल के रूप में विकसित होने के लिए संकेत देता है और फल की उत्पादन को बढ़ाता है।
3. फल का विकास किस प्रक्रिया से होता है?
उत्तर: फल का विकास फूल के विकास के बाद होता है। फूल के बाद, पादप-हारमोन पौधे में उत्पन्न होता है और फल के रूप में बदल जाता है। इसके बाद, पौधा अपने फल को विकसित करता है जिसमें बीज, मसले और अन्य अंगों का विकास शामिल होता है।
4. फल के विकास के लिए कौन से पादप-हारमोन जिम्मेदार होते हैं?
उत्तर: फल के विकास के लिए एक समूह के पादप-हारमोन जिम्मेदार होते हैं, जिनमें ऑक्सिन, जिब्बरेलिन और अबशिसिक एसिड शामिल होते हैं। ये पादप-हारमोन पौधे को उसके विकास के लिए संकेत देते हैं और फल के रूप में उसके उत्पादन को बढ़ाते हैं।
5. फल के विकास में पादप-हारमोनों के किस प्रकार का नियंत्रण होता है?
उत्तर: फल के विकास में पादप-हारमोनों के नियंत्रण में विभिन्न कारकों का होता है, जैसे ग्रामीण, तापमान, उपयोगिता, पोषण और अन्य पर्यावरणीय कारक। इन कारकों के प्रभाव से पादप-हारमोनों की मात्रा और कार्यक्षमता नियंत्रित होती है, जो फल के विकास में विभिन्न चरणों को नियंत्रित करते हैं।
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