UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2022 UPSC Current Affairs

Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

विश्व की आबादी 8 अरब

चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNPFA) के अनुसार, विश्व भर में मानव आबादी 8 अरब तक पहुँच गई है।

  • वर्ष 2022 के आँकड़ों के अनुसार दुनिया की आधी से अधिक आबादी एशिया में रहती है, चीन और भारत 1.4 बिलियन से अधिक लोगों के साथ दो सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं।

जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति

  • समग्र जनसंख्या वृद्धि दर में कमी:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या को 7 अरब से 8 अरब तक बढ़ने में 12 साल लगे और वर्ष 2037 तक 9 अरब तक पहुँचने में इसे लगभग 15 साल लगेंगे।
    • यह इंगित करता है कि वैश्विक जनसंख्या की समग्र विकास दर धीमी हो रही है।
    • संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक जनसंख्या वर्ष 1950 के बाद से अपनी सबसे धीमी दर से बढ़ रही है, जो वर्ष 2020 में 1 प्रतिशत से कम रही है।
    • विश्व की जनसंख्या वर्ष 2030 में लगभग 8.5 बिलियन और वर्ष 2050 में 9.7 बिलियन तक पहुँच सकती है।
    • इसके वर्ष 2080 तक लगभग 10.4 बिलियन के साथ उच्च स्तर तक पहुँचने और वर्ष 2100 तक उसी स्तर पर बने रहने का अनुमान है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक आबादी के 60% ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
    • वर्ष 1990 में 40% ऐसे क्षेत्रों में रहते थे जहाँ प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे थी।
  • गरीब देशों में उच्च प्रजनन स्तर:
    • उच्चतम प्रजनन स्तर वाले देश प्रति व्यक्ति सबसे कम आय वाले होते हैं।
    • वर्ष 2050 तक वैश्विक जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि के आधे से अधिक की वृद्धि इन आठ देशों में केंद्रित होगी:
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और संयुक्त गणराज्य तंज़ानिया।
    • उप-सहारा अफ्रीका के देशों द्वारा वर्ष 2050 तक प्रत्याशित वृद्धि में आधे से अधिक का योगदान किया जाने की संभावना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन:
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन कई देशों में अब विकास का चालक है, इसे हम वर्ष 2020 में 281 मिलियन लोगों के अपने जन्म के देश के बाहर रहने के रूप में देख सकते हैं।
    • भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका सहित सभी दक्षिण एशियाई देशों में हाल के वर्षों में उच्च स्तर का उत्प्रवास देखा गया है।

भारत की जनसंख्या के संदर्भ में

  • स्थिर होती जनसंख्या वृद्धि:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत की प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 जन्मों तक पहुँच गई है, अर्थात् प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता में और भी गिरावट आ सकती है।
    • भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर होने के बावजूद अभी भी 0.7% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है और वर्ष 2023 में इसकी आबादी दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से अधिक होने की संभावना है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, चीन की जनसंख्या अब बढ़ नहीं रही है और वर्ष 2023 की शुरुआत से इसमें कमी आनी शुरू हो सकती है।
    • विश्व जनसंख्या संभावना 2022 ने चीन की 1.426 बिलियन जनसंख्या की तुलना में वर्ष 2022 में भारत की जनसंख्या 1.412 बिलियन होने का अनुमान लगाया है।
    • वर्ष 2048 तक भारत की आबादी चरम स्थिति के साथ 1.7 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है और फिर सदी के अंत तक गिरावट के साथ इसके 1.1 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
  • दुनिया में किशोरों की सबसे अधिक आबादी:
    • UNFPA के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत की 68% आबादी 15-64 वर्ष के बीच है, जबकि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की आबादी 7% है
    • देश में 27% से अधिक लोग 15-29 वर्ष की आयु के हैं।
    • 253 मिलियन के साथ भारत में दुनिया की सबसे बड़ी किशोर आबादी (10-19 वर्ष) है।
    • भारत में वर्तमान में किशोरों और युवाओं की संख्या सर्वाधिक है।
    • भारत की जनसंख्या, वर्तमान समय में "यूथ बल्ज़ (किसी देश की युवा, परंपरागत रूप से 16-25 या 16-30 आयु की जनसंख्या और अनुपात में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि) देखी जा रही है, वर्ष 2025 तक यह ऐसी ही बनी रहेगी और वर्ष 2030 तक भारत के सबसे ज़्यादा युवा जनसंख्या वाला देश बने रहने की संभावना है।

‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’:

  • परिचय:
    • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है जो इसके यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
    • UNFPA का जनादेश संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) द्वारा स्थापित किया गया है।
  • स्थापना:
    • इसे वर्ष 1967 में ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था और इसका परिचालन वर्ष 1969 में शुरू हुआ।
    • इसे वर्ष 1987 में आधिकारिक तौर पर ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ नाम दिया गया, लेकिन इसका संक्षिप्त नाम UNFPA (जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष) को भी बरकरार रखा गया।
  • उद्देश्य:
    • UNFPA प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य संबंधी सतत् विकास लक्ष्य-3, शिक्षा संबंधी लक्ष्य-4 और लिंग समानता संबंधी लक्ष्य-5 के संबंध में कार्य करता है।
  • वित्तपोषण:
    • UNFPA संयुक्त राष्ट्र के बजट द्वारा समर्थित नहीं है, इसके बजाय यह पूरी तरह से दाता सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र तथा आम लोगों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।

आगे  की राह

  • अनुकूल आयु वितरण के संभावित लाभों को अधिकतम करने के लिये, देशों को सभी उम्र में स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करके तथा उत्पादक रोज़गार एवं सभ्य काम के अवसरों को बढ़ावा देकर अपनी मानव पूंजी के आगे के विकास में निवेश करने की आवश्यकता है
  • भारत जनसांख्यिकीय संक्रमण के चरण में है जहाँ मृत्यु दर घट रही है और अगले दो से तीन दशकों में प्रजनन दर में गिरावट आएगी। भारत अब गर्भनिरोधक की ज़रूरत को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
  • महिलाएँ कब, कितने और किस अंतराल पर बच्चे पैदा करना चाहती हैं यह तय कर सकती हैं।
  • युवा और किशोर आबादी के लिये कौशल की आवश्यकता है, जो यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि वे अधिक उत्पादन के साथ बेहतर आय प्राप्त कर सकें

स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) की संस्थापक इलाबेन भट्ट का निधन हो गया।

स्व-नियोजित महिला संघ (SEWA)

  • SEWA का उद्भव वर्ष 1920 में अनसूया साराभाई और महात्मा गांधी द्वारा स्थापित टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (TLA) से हुआ था, लेकिन वर्ष 1972 तक यह ट्रेड यूनियन के रूप में पंजीकृत नहीं हो सका क्योंकि इसके सदस्यों के पास कोई "नियोक्ता" नहीं था और ऐसे में उन्हें श्रमिकों के रूप में नहीं देखा जाता था।
  • वर्ष 1981 में आरक्षण विरोधी दंगों के बाद जिसमें चिकित्सा शिक्षा में दलित वर्ग के लिये आरक्षण का समर्थन करने के लिये भट्ट समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था, TLA और SEWA अलग हो गए।
  • वर्ष 1974 की शुरुआत में गरीब महिलाओं को छोटे ऋण प्रदान करने के लिये सेवा बैंक की स्थापना की गई थी।
  • यह एक पहल है जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा माइक्रोफाइनेंस आंदोलन के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • मात्र 10 रुपए के वार्षिक सदस्यता शुल्क के साथ, कोई भी स्व-नियोजित व्यक्ति इसका सदस्य बन सकता है।
  • इसका नेटवर्क भारत के 18 राज्यों, दक्षिण एशिया के अन्य देशों, दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में फैला हुआ है।
  • इसने महिलाओं को कौशल और प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त बनाकर व्यक्तिगत एवं राजनीतिक, सामाजिक संकटों के समय उनका पुनर्वास करने में मदद की है।
  • इसने बड़ी संख्या में महिलाओं को रोज़गार प्रदान किया और वस्त्रों के सहकारी उत्पादन, उपभोग तथा विपणन को बढ़ावा दिया जो भारत के औद्योगीकरण का मूल था।
  • इसने भारत में ट्रेड यूनियनवाद और श्रमिक आंदोलन की दिशा को भी निर्णायक रूप से प्रभावित किया।

SEWA की उपलब्धियाँ

  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (2008), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (2011), और स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम, (2014) को SEWA के संघर्ष की सफलता के रूप में देखा जाता है।
  • पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम-स्वनिधि) योजना को SEWA के माइक्रोफाइनेंस मॉडल से प्रेरित माना जा रहा है।
  • महामारी के दौरान SEWA ने विक्रेताओं को खरीदारों से जोड़ने के लिये एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, अनुबंध लॉन्च किया, ताकि लॉकडाउन के दौरान खान-पान संबंधी समस्या न हो।

कुपोषण, भूख और खाद्य असुरक्षा से निपटना

चर्चा में क्यों?

भारत भूख, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को मिटाने हेतु वर्ष 2030 के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर नहीं है।

  • वर्ष 2021 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, भारत छह वैश्विक लक्ष्यों स्टंटिंग, वेस्टिंग, एनीमिया, मातृ, नवजात और छोटे बच्चे के पोषण, जन्म के समय कम वज़न और बचपन के मोटापे को दूर करने में से पाँच को प्राप्त करने की राह पर नहीं है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2012 में छह वैश्विक पोषण लक्ष्य निर्धारित किये गए थे, जिन्हें 2025 तक हासिल किया जाना है।

खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में योगदान देने वाले कारक:

  • वर्तमान नीतियाँ:
    • वर्तमान नीतियों ने आधुनिक कृषि-खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहित किया है जिससे मुख्य अनाज पर निर्भर आहारों की तुलना में स्वस्थ आहारों की कीमत कई गुना वृद्धि हुई है।
    • इन प्रतिबंधों ने उच्च ऊर्जा घनत्व और कम पौष्टिक मूल्य के कम लागत वाले खाद्य पदार्थों को अधिक लोकप्रिय बना दिया है।
  • पारंपरिक फसलों का विलुप्त होना:,
    • भविष्य की स्मार्ट फसलें जैसे कि ऐमारैंथस, एक प्रकार का अनाज, माइनर बाजरा, फिंगर बाजरा, प्रोसो बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा और दालें पारंपरिक रूप से भारत में उगाई जाती थीं, जिससे वे खाद्य और पोषण सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गए।
    • ये पारंपरिक फसलें विभिन्न कारणों से धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं।
    • उनके पोषण मूल्य, उत्पादन के लिये व्यवहार्य स्थानीय बाज़ारों और नकदी फसलों की बढ़ती मांग के बारे में ज्ञान की कमी उनके विलुप्त होने को बढ़ावा दे रही है।
  • असंतुलित आहार:
    • हाल के वर्षों में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली ने अप्रत्याशित रूप से दुनिया भर में खाने की आदतों और आहार को बदल दिया है।
  • विभिन्न कारक:
    • ऐसे कारकों में शामिल हैं - संघर्ष, जलवायु चरम सीमा, आर्थिक संकट और बढ़ती असमानता।
    • ये कारक अक्सर संयोजन में होते हैं, राजकोषीय स्थितियों को जटिल बनाते हैं और इसे कम करने की दिशा में प्रयास करते हैं।
  • पहल:
    • पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
    • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक कम करना है।
    • मध्याह्न भोजन (MDM) योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच कानूनी अधिकार बन जाए।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिये बेहतर सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु 6,000 रुपए सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
    • समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है।

आगे की राह

  • कृषि-खाद्य प्रणालियों में निवेश:
    • भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक मंदी, घरेलू आय में कमी, अनियमित कर राजस्व और मुद्रास्फीति के दबाव के बावजूद बढ़ी हुई खाद्य आवश्यकता एवं पोषण के लिये कृषि-खाद्य प्रणालियों में भारी निवेश करना होगा।
  • सार्वजनिक निधियों के आवंटन पर पुनर्विचार करना:
    • यह भी पुनर्विचार करना आवश्यक है कि कृषि उत्पादकता, आपूर्ति शृंखला और उपभोक्ता व्यवहार के संदर्भ में खाद्य एवं कृषि नीतियों के संदर्भ में सार्वजनिक धन कैसे आवंटित किया जाना चाहिये।
  • पोषाहार संरचना में अंतराल को पाटना:
    • भारतीय आहार में फल, फलियाँ, मेवा, मछली और डेयरी वस्तुओं विशेष रूप से कमी है. ये सभी स्वस्थ विकास और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिये आवश्यक हैं।
    • इस प्रकार दैनिक भोजन की पोषण गुणवत्ता में अंतराल को पाटने के रुप में भारत को कुपोषण, पोषण असमानता और खाद्य असुरक्षा के तिहरे बोझ से निपटने के लिये कदम उठाना चाहिये।
  • भविष्य की फसलों का उत्पादन:
    • स्थानीय, पारिस्थितिक, सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक संदर्भों से जुड़े होने के कारण पारंपरिक खाद्य प्रणालियाँ आम जनता के स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा को बनाए रखने के लिये सबसे अच्छी स्थिति में हैं।
    • मुख्य खाद्य फसलों की तुलना में भविष्य की स्मार्ट फसलें अधिक पौष्टिक होती हैं।
  • मज़बूत डेटा प्रबंधन:
    • भारत को वर्ष 2030 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अधिक मज़बूत डेटा प्रबंधन प्रणाली, खाद्य वितरण प्रणाली में बेहतर ज़िम्मेदारी, प्रभावी संसाधन प्रबंधन, पर्याप्त पोषण शिक्षा, कर्मचारियों में वृद्धि और कठोर निगरानी की आवश्यकता है।

स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट, 2022

चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट का 2022 संस्करण जारी किया गया।

  • यह फ्लैगशिप रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष तैयार की जाती है।
  • रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिया गया है कि कैसे हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों में ऑटोमेशन सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान दे सकता है और नीति निर्माताओं को लाभ को अधिकतम करने तथा जोखिमों को कम करने के बारे में सिफारिशें प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में विभिन्न तकनीकों का प्रतिनिधित्व करने वाले दुनिया भर के 27 केस स्टडीज़ को शामिल किया गया।
  • 27 सेवा प्रदाताओं में से केवल 10 की स्थिति ही फायदेमंद और आर्थिक रूप से टिकाऊ है।
  • प्रति 1,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि के लिये उपलब्ध ट्रैक्टरों की संख्या संबंधी आँकड़ों के अनुसार, क्षेत्रों में मशीनीकरण की दिशा में असमान प्रगति हुई है।
  • उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशिनिया के उच्च आय वाले देश 1960 के दशक तक काफी अधिक यंत्रीकृत थे लेकिन निम्न और मध्यम आय वाले देशों मेंं मशीनीकरण का स्तर निम्न था।
  • विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में इसकी सीमितता के साथ देशों और इनके बीच ऑटोमेशन के प्रसार में व्यापक असमानताएँरही हैं।
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2005 में जापान में प्रति 1,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर 400 से अधिक ट्रैक्टर थे, जबकि घाना में यह आँकड़ा केवल 4 था।
  • उप-सहारा अफ्रीका में मानव और पशु शक्ति पर कृषि क्षेत्र की अधिक निर्भरता के कारण उत्पादकता सीमित रही है।

सुझाव

  • एग्रीकल्चर ऑटोमेशन नीति द्वारा कृषि खाद्य प्रणालियों के टिकाऊ और लचीलेपन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • नीति निर्माताओं को श्रम-प्रचुर क्षेत्रों के संदर्भ में ऑटोमेशन पर सब्सिडी देने से बचना चाहिये।
  • एग्रीकल्चर ऑटोमेशन की वजह से ऐसे क्षेत्रों में बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ ग्रामीण श्रमिक प्रचुर मात्रा में होने के साथ मज़दूरी कम है।
  • नीति निर्माताओं को ऑटोमेशन को अपनाने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये
  • संक्रमण की स्थिति के दौरान नौकरी खोने के अधिक जोखिम वाले कम कुशल श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये

खाद्य और कृषि संगठन

  • परिचय:
    • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी की समस्या को समाप्त करने के लिये वैश्विक पहल को निर्देशित करती है।
    • प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस FAO की स्थापना की वर्षगाँठ की याद में मनाया जाता है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है जो रोम (इटली) में स्थित है। इसके अलावा विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी इसमें शामिल हैं।
  • FAO की पहलें:
    • विश्व स्तरीय महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS)।
    • विश्व में मरुस्थलीय टिड्डी की स्थिति पर नज़र रखना।
    • FAO और WHO के खाद्य मानक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के मामलों के संबंध में कोडेक्स एलेमेंट्रिस आयोग (CAC) उत्तरदायी निकाय है।
    • खाद्य और कृषि के लिये प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ पर अंतर्राष्ट्रीय संधि को वर्ष 2001 में FAO के 31वें सत्र में अपनाया गया था।
  • फ्लैगशिप पब्लिकेशन (Flagship Publications):
    • वैश्विक मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर की स्थिति (SOFIA)।
    • विश्व के वनों की स्थिति (SOFO)।
    • वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI)
    • खाद्य और कृषि की स्थिति (SOFA)।
    • कृषि कोमोडिटी बाज़ार की स्थिति (SOCO)।

सुगम्य भारत अभियान

चर्चा में क्यों?
सुगम्य भारत अभियान (Accessible Indian Campaign- AIC) दिसंबर 2022 में 7 साल पूरे करने जा रहा है।

अभियान का उद्देश्य पूरे देश में दिव्यांगजनों (विकलांग व्यक्तियों - PwDs) के लिये बाधा मुक्त और अनुकूल वातावरण बनाना है।

सुगम्य भारत अभियान

  • परिचय:
    • इसे 3 दिसंबर, 2015 को अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • कार्यान्वयन एजेंसी:
    • AIC सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन अधिकारिता विभाग (DEPwD) का राष्ट्रव्यापी अभियान है।
  • पृष्ठभूमि:
    • दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 स्पष्ट रूप से परिवहन एवं निर्मित वातावरण में गैर-भेदभाव का प्रावधान करता है।
    • यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) का अनुपालन करने के लिये पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित किया।
    • यूएनसीआरपीडी जिसका भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, के अनुच्छेद 9 के अंतर्गत पीडब्ल्यूडी की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सरकारों पर दायित्व डालता है:
    • सूचना
    • परिवहन
    • भौतिक वातावरण
    • संचार प्रौद्योगिकी
    • सेवाओं के साथ-साथ आपातकालीन सेवाओं तक पहुँच।
  • एआईसी के घटक:
    • निर्मित पर्यावरण पहुँच
    • परिवहन प्रणाली अभिगम्यता
    • सूचना और संचार इको-सिस्टम पहुँच

सुगम्य भारत अभियान  का  प्रदर्शन

  • निर्मित वातावरण:
    • 1671 भवनों की अभिगम लेखा परीक्षा पूरी।
    • केंद्र सरकार के 1030 भवनों सहित 1630 सरकारी भवनों को सुलभता की विशेषताएं प्रदान की गई हैं।

परिवहन क्षेत्र

  • हवाई अड्डा:
    • 35 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों और 55 घरेलू हवाई अड्डों को पहुँच की विशेषताएँ प्रदान की गई हैं।
    • 12 हवाई अड्डों पर एम्बुलिफ्ट उपलब्ध हैं।
  • रेलवे:
    • सभी 709 ए1, ए और बी श्रेणी के रेलवे स्टेशनों को सात अल्पकालिक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं।
    • 603 रेलवे स्टेशनों को 2 दीर्घकालिक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं।
  • रोडवेज:
    • 1,45,747 (29.05%) बसों को आंशिक रूप से सुलभ बनाया गया है और 8,695 (5.73%) को पूरी तरह से सुलभ बनाया गया है
  • आईसीटी पारिस्थितिकी तंत्र (वेबसाइट):
    • केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों की लगभग 627 वेबसाइटों को सुलभ बनाया गया है।
  • टीवी देखने में सुगमता:
    • 19 निजी समाचार चैनल आंशिक रूप से सुलभ समाचार बुलेटिनों का प्रसारण कर रहे हैं।
    • 2,447 समाचार बुलेटिनों का प्रसारण सबटाइटलिंग/साइन-लैंग्वेज इंटरऑपरेशन के साथ किया गया है।
    • 9 सामान्य मनोरंजन चैनलों ने सबटाइटलिंग का उपयोग करके 3686 अनुसूचित कार्यक्रमों / फिल्मों का प्रसारण किया है।
  • शिक्षा:
    • 11,68,292 सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में से, 8,33,703 स्कूलों (71%) को रैंप, हैंडरेल और सुलभ शौचालयों के प्रावधान के साथ मुक्त बनाया गया है।
  • निगरानी:
    • सुगम्य भारत अभियान के तहत गतिविधियों की निगरानी प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) पोर्टल के माध्यम से की जा रही है।
  • सुगम्य भारत एप:
    • बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में ज़मीनी स्तर पर सामना की जा रही पहुँच की शिकायतों को क्राउडसोर्स करने में मदद करना और निवारण के लियेअग्रेषित करना।
    • संसाधनों तक पहुँच वाले महत्त्व के बारे में संवेदीकरण और जागरूकता पैदा करने में सहायता करना।
    • दिव्यांगजनों की कोविड-19 से संबंधित शिकायतें को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।

विकलांगों के सशक्तीकरण के लिये पहलें

  • भारतीय:
    • विशिष्ट निःशक्तता पहचान पोर्टल (Unique Disability Identification Portal)
    • दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (DeenDayal Disabled Rehabilitation Scheme)
    • सहायक उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये विकलांग व्यक्तियों को सहायता
    • विकलांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप
  • वैश्विक:
    • अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस
    • विकलांग लोगों के लिये संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत
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