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Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

अलीवा: बाल विवाह के उन्मूलन हेतु डेटा संचालित दृष्टिकोण 


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में ओडिशा के एक ज़िले नयागढ़ ने बाल विवाह को मिटाने के लिये एक अनूठी पहल- अलीवा को अपनाया है।
  • ओडिशा की बाल विवाह रोकथाम रणनीति के अनुसार, राज्य का लक्ष्य 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करना है।

पहल के प्रमुख बिंदु

विषय

  • यह कार्यक्रम जनवरी 2022 में शुरू किया गया था।
  • आंँगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं से कहा गया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली हर किशोरी की पहचान करें और उन पर नज़र रखें।
  • ज़िले के आंँगनबाडी केंद्रों में उपलब्ध अलीवा नाम के रजिस्टरों में किशोरियों की जन्म पंजीकरण तिथि, आधार, परिवार का विवरण, कौशल प्रशिक्षण आदि का विवरण दर्ज होता है।
  • लड़की की उम्र को स्थानीय स्कूल के प्रधानाध्यापक, पिता, पर्यवेक्षक और बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO) द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
  • अब तक ज़िले में 48,642 किशोरियों की जानकारी अलीवा रजिस्टर में दर्ज है।
  • बाल विवाह के बारे में सूचना मिलने पर ज़िला प्रशासन और पुलिस लड़कियों की उम्र के प्रमाण का पता लगाने के लिये रजिस्टर का सहारा लेते हैं।
  • ज़िले ने 10 वर्ष यानी 2020 से 2030 तक की अवधि के लिये रिकॉर्ड बनाए रखने का निर्णय लिया है।

महत्त्व

  • अलीवा रजिस्टर अब तक सबसे विस्तारपूर्ण है जो 10 साल तक लड़कियों के जीवन की जानकारी रखता है।
  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये यह रजिस्टर उपयोगी रहा है, क्योंकि माता-पिता सज़ा से बचने के लिये अपनी लड़कियों की उम्र के बारे में झूठ बोलने का प्रयास करते हैं।
  • पिछले आठ महीनों में ज़िला प्रशासन ने 61 बाल विवाह रोकने में कामयाबी हासिल की है।यद्यपि रजिस्टर की संकल्पना बाल विवाह को रोकने के लिये की गई थी, लेकिन यह लड़कियों के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिये बहुत उपयोगी रही है, खासकर यदि वे एनीमिक(रक्त की कमी से पीड़ित) हों

भारत में बाल विवाह की वर्तमान स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के आकलन से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक-तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।
  • NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गई, जो NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% से कम है। पुरुषों में कम उम्र में विवाह का आँकड़ा 17.7% (NFHS-5) और 20.3% (NFHS-4) है।
  • पश्चिम बंगाल और बिहार में लगभग 41% ऐसी महिलाओं के साथ बालिका विवाह का प्रचलन सबसे अधिक था।
  • NHFS-5 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गोवा, नगालैंड, केरल, पुद्दुचेरी और तमिलनाडु में कम उम्र में शादियाँ सबसे कम हुई हैं।
  • 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की हिस्सेदारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले शादी की थी, पिछले पाँच वर्षों में 27% से घटकर 23% हो गई है।
  • राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में कम उम्र के विवाहों के अनुपात में सबसे अधिक कमी देखी गई।

बाल विवाह को रोकने हेतु सरकारी कानून और पहल

शादी के लिये न्यूनतम आयु

  • हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, महिला के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
  • इस्लाम में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग की शादी को वैध माना जाता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह हेतु सहमति की न्यूनतम आयु के रूप में क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करता है।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 का स्थान लिया, जो ब्रिटिश काल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
  • यह एक बच्चे को 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला के रूप में परिभाषित करता है।
  • "नाबालिग" को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने अधिनियम के अनुसार, वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है।
  • किसी एक पक्ष द्वारा वांछित होने पर बाल विवाह की कानूनी स्थिति शून्य हो जाती है।
  • हालाँकि यदि सहमति धोखाधड़ी या छल से प्राप्त की जाती है या फिर बच्चे को उसके वैध अभिभावकों द्वारा बहकाया जाता है और यदि एकमात्र उद्देश्य बच्चे को तस्करी या अन्य अनैतिक उद्देश्यों के लिये उपयोग करना है, तो विवाह अमान्य होगा।
  • बालिकाओं के भरण-पोषण का भी प्रावधान है। यदि पति बालिग है तो गुजारा भत्ता देने के लिये उत्तरदायी है।
  • यदि पति भी अवयस्क है तो उसके माता-पिता को भरण-पोषण का भुगतान करना होगा।
  • बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
  • अधिनियम में CPMO की नियुक्ति का भी प्रावधान है जिसका कर्तव्य बाल विवाह को रोकना और इसके बारे में जागरूकता फैलाना है।

लिंग अंतराल को कम करने हेतु भारत के प्रयास

  • भारत ने वर्ष 1993 में ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW) की पुष्टि की थी।
  • इस अभिसमय का अनुच्छेद-16 बाल विवाह का कठोरता से निषेध करता है और सरकारों से महिलाओं के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु का निर्धारण करने एवं उन्हें लागू करने की अपेक्षा करता है।
  • वर्ष 1998 से भारत ने विशेष रूप से मानव अधिकारों की सुरक्षा पर राष्ट्रीय कानून का प्रवर्तन किया है, जिसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 जैसे अंतर्राष्ट्रीय साधनों के अनुरूप तैयार किया गया है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि वर्ष 2021-22 के दौरान प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) योजना के तहत 3 लाख से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है।

पृष्ठिभूमि

  • सरकार द्वारा वर्ष 2015 में कौशल भारत मिशन शुरू किया गया था, जिसके तहत प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) चलाई गई है।
  • इसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत में 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करना है एवं समाज में बेहतर आजीविका और सम्मान के लिये भारतीय युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण व प्रमाणन प्रदान करना है।
  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा PMKVY का कार्यान्वयन किया गया है।

PMKVY 1.0

  • प्रारंभ: भारत की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ 15 जुलाई, 2015 (विश्व युवा कौशल दिवस) को शुरू की गई थी।
  • उद्देश्य: युवाओं को मुफ्त लघु अवधि का कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना एवं मौद्रिक पुरस्कार के माध्यम से कौशल विकास को प्रोत्साहित करना।
  • मुख्य घटक: लघु अवधि का प्रशिक्षण, विशेष परियोजनाएँ, पूर्व शिक्षण को मान्यता, कौशल और रोज़गार मेला आदि
  • परिणाम: वर्ष 2015-16 में 19.85 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया था।

PMKVY 2.0

  • कवरेज: PMKVY 2.0 को भारत सरकार के अन्य मिशनों जैसे- मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत आदि के साथ संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था।
  • बजट: 12,000 करोड़ रुपए।

दो घटकों के माध्यम से कार्यान्वयन

  • केंद्र प्रायोजित केंद्र प्रबंधित (CSCM): यह घटक राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा लागू किया गया था। PMKVY, वर्ष 2016-20 की अवधि के वित्तपोषण का 75% और संबंधित भौतिक लक्ष्यों को CSCM के तहत आवंटित किया गया है।
  • केंद्र प्रायोजित राज्य प्रबंधित (Centrally Sponsored State Managed-CSSM): यह घटक राज्य सरकारों द्वारा राज्य कौशल विकास मिशनों (State Skill Development Missions-SSDMs) के माध्यम से लागू किया गया था। PMKVY के तहत वर्ष 2016-20 की अवधि के वित्तपोषण का 25% और संबंधित भौतिक लक्ष्यों को CSSM के तहत आवंटित किया गया है।
  • परिणाम: PMKVY 1.0 और PMKVY 2.0 के तहत देश में एक बेहतर मानकीकृत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से 1.2 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित/रोज़गार उन्मुख बनाया गया है।

PMKVY 3.0

  • कवरेज: 717 ज़िलों, 28 राज्यों/आठ केंद्रशासित प्रदेशों में इसे लॉन्च किया गया। PMKVY 3.0 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक कदम है।
  • कार्यान्वयन: इसे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और ज़िलों से अधिक ज़िम्मेदारियों और समर्थन के साथ अधिक विकेन्द्रीकृत संरचना में लागू किया जाएगा।
  • राज्य कौशल विकास मिशन (SSDM) के मार्गदर्शन में ज़िला कौशल समितियाँ (DSCs) ज़िला स्तर पर कौशल अंतराल को दूर करने और मांग का आकलन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगी।

विशेषताएँ

  • इसमें 948.90 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2020-2021 की योजना अवधि में आठ लाख उम्मीदवारों के प्रशिक्षण की परिकल्पना की गई है।
  • यह प्रशिक्षुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा। नए युग और उद्योग 4.0 रोज़गार भूमिकाओं के क्षेत्रों में कौशल विकास को बढ़ावा देकर मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • यह युवाओं के लिये उद्योग से जुड़े अवसरों का लाभ उठाने के लिये प्रारंभिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार करेगा।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 समग्र विकास और रोज़गार में वृद्धि के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
  • प्रशिक्षण के लिये ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण अपनाते हुए यह उन रोज़गार भूमिकाओं की पहचान करेगा जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग है और युवाओं को इन अवसरों (वोकल फॉर लोकल) से जोड़ते हुए उन्हें कौशल प्रदान करेगा।
  • यह बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को अतिरिक्त आवंटन उपलब्ध कराकर राज्यों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगा।

LGBTQIA हेतु ‘कन्वर्जन थेरेपी’ पर प्रतिबंध

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने सभी राज्य चिकित्सा परिषदों को LGBTQIA+ समुदाय की रूपांतरण चिकित्सा या ‘कन्वर्ज़न थेरेपी पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसे "व्यावसायिक कदाचार (Professional Misconduct)" कहा है।

  • NMC ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के तहत ‘कन्वर्ज़न थेरेपी अवैध है

LGBTQIA+

  • LGBTQAI+ लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल तथा अन्य लोगों को संबोधित करता है। ये ऐसे लोग होते हैं जिनमें सीसजेंडर विषमलैंगिक "आदर्शों" की अनुपस्थिति होती है।
  • '+ ' का उपयोग उन सभी लैंगिक पहचानों और यौन अभिविन्यासों को दर्शाने के लिये किया जाता है जिनका अक्षर और शब्द अभी तक पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते हैं।
  • भारत में, LGBTQIA+ समुदाय में एक विशिष्ट सामाजिक समूह, एक विशिष्ट समुदाय थर्ड जेंडर भी शामिल है।
  • उन्हें सांस्कृतिक रूप से या तो "न पुरुष, न ही महिला" या एक महिला की तरह व्यवहार करने वाले पुरुषों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • वर्तमान में उन्हें थर्ड जेंडर भी कहा जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2018 को धारा 377[1] को गैर-आपराधिक घोषित कर दिया, जिसमें समलैंगिक संबंधों को "अप्राकृतिक अपराध" कहा गया था।

‘कन्वर्न थेरेप चिकित्सा और संबद्ध जोखिम

  • कन्वर्ज़न थेरेपी एक हस्तक्षेप है जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति की यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान को बदलना है जिसके लिये मनोवैज्ञानिक उपचार, ड्रग्स, ईविल सेरेमोनियल प्रैक्टिस और यहाँ तक कि हिंसा का भी उपयोग किया जाता है।
  • इसमें उन युवाओं की मूल पहचान को बदलने के प्रयास शामिल हैं जिनकी लिंग पहचान उनके लिंग शरीर रचना के साथ असंगत है।
  • अक्सर, इस मुद्दे से निपटने में बहुत कम विशेषज्ञता वाले नीम हकीमों द्वारा चिकित्सा की जाती है।
  • अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकियाट्री (AACAP) के अनुसार कन्वर्ज़न थेरेपी के तहत हस्तक्षेप झूठे आधार पर प्रदान किया जाता है कि समलैंगिकता और विविध लिंग पहचान रोगात्मक हैं।
  • कन्वर्ज़न थेरेपी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को पैदा करती है, जैसे चिंता, तनाव और नशीली दवाओं का उपयोग जो कभी-कभी आत्महत्या का कारण भी बनता है

मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश

  • मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले ने LGBTQIA+ (लेस्बियन, गे, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, अलैंगिक या किसी अन्य अभिविन्यास के) लोगों के यौन अभिविन्यास को चिकित्सकीय रूप से "ठीक करने" या जबरन बदलने के किसी भी प्रयास को प्रतिबंधित कर दिया है।
  • इसने अधिकारियों से किसी भी रूप या कन्वर्न थेरेपी के तरीके में खुद को शामिल करने वाले पेशेवरों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
  • न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को एक आदेश दिया कि वह "एक पेशेवर कदाचार के रूप में 'कन्वर्न थेरेपी' को सूचीबद्ध करके आवश्यक आधिकारिक अधिसूचना जारी करे।
  • न्यायालय ने कहा कि समुदाय को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के समन्वय से ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • एजेंसियों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का अक्षरश: पालन करने के लिये कहते हुए न्यायालय ने कहा कि समुदाय एवं उसकी ज़रूरतों को समझने के लिये हर संभव प्रयास हेतु संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करना अनिवार्य है।

LGBTQIA+ की सुरक्षा हेतु निर्णय

  • नाज़ फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2009): दिल्ली उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक गतिविधियों को वैध बनाने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया।
  • सुरेश कुमार कौशल केस (2013): उच्च न्यायालय (2009) के पिछले फैसले को यह तर्क देते हुए पलट दिया कि "यौन अल्पसंख्यकों की दुर्दशा" को कानून की संवैधानिकता तय करने के लिये तर्क के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
  • न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि निजता का मौलिक अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के लिये अंतर्निहित है और इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। यह माना गया कि "यौन अभिविन्यास गोपनीयता का एक अनिवार्य गुण है"।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018): सुरेश कुमार कौशल मामले (2013) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को खारिज कर, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया।
  • शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. और अन्य (वर्ष 2018): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि साथी या पार्टनर का चयन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और यह साथी किसी भी जेंडर से संबंधित हो सकता है।
    ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिये और उससे जुड़े एवं उसके आनुषंगिक मामलों के लिये यह अधिनियम लाया गया।
  • समलैंगिक विवाह: फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का विरोध करते हुए कहा कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब बच्चा पैदा करने में सक्षम "जैविक पुरुष" और "जैविक महिला" के बीच विवाह हुआ हो।

आगे की राह

  • समुदाय की बेहतर समझ के लिये स्कूलों और कॉलेजों को पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिये ।
  • वर्ष 2018 के अंत तक चिकित्सा पुस्तकों ने समलैंगिकता को "विकृति" के रूप में रेखांकित किया है। एक अलग यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान के लोग प्रायः भेदभाव, सामाजिक कलंक और बहिष्कार का सामना करते रहे हैं।
  • शैक्षणिक संस्थानों और अन्य जगहों पर जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिये।
  • इस विषय पर माता-पिता को भी संवेदनशील होने की ज़रूरत है, क्योंकि ऐसे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की शुरुआत सबसे पहले घर से ही होती है, जिसमें किशोरों को "कन्वर्न थेरेपी " को चुनने के लिये बाध्य किया जाता है।
  • सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी का विकल्प चुनने वाले वयस्कों को ऑपरेशन से पहले और बाद में थेरेपी जैसे उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है; जो की एक सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के लिये अवहनीय भी हो सकती है।

जेंडर स्नैपशॉट 2022 


चर्चा में क्यों?
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक तथा सामाजिक मामलों के विभाग (UN DESA) द्वारा "सतत् विकास लक्ष्यों पर प्रगति (SDG): द जेंडर स्नैपशॉट 2022" नामक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत् विकास लक्ष्य -5 (SDG-5) या लैंगिक समानता हासिल करना वर्ष 2030 तक प्रगति की मौजूदा गति से पूरा नहीं होगा।
  • वर्ष 2022 के अंत तक 368 मिलियन पुरुषों और लड़कों की तुलना में लगभग 383 मिलियन महिलाएँ और लड़कियाँ अत्यधिक गरीबी (एक दिन में 1.90 अमेरिकी डॉलर से भी कम) में जी रही होंगी।
  • प्रगति की मौजूदा दर पर पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में लगभग 300 वर्ष लगेंगे।
  • राष्ट्रीय संसद में महिलाओं का समान प्रतिनिधित्व हासिल करने में भी कम से कम 40 वर्ष लगेंगे।
  • वर्ष 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लिये पिछले दशक की प्रगति की तुलना में अगले दशक की प्रगति 17 गुना तेज़ होनी चाहिये।
  • सबसे गरीब ग्रामीण परिवारों और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों को सबसे ज़्यादा नुकसान होने की आशंका है।
  • वर्ष 2021 में, युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 38% महिला-प्रधान परिवारों ने मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा जबकि 20% पुरुष-प्रधान परिवारों ने इसका अनुभव किया।
  • वैश्विक स्तर पर महामारी के कारण वर्ष 2020 में महिलाओं की आय में अनुमानित 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
  • वर्ष 2021 के अंत तक पहले से कहीं अधिक लगभग 44 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को जबरन विस्थापित किया गया।
  • 2 अरब से अधिक 15-49 प्रजनन आयु महिलाएंँ और लड़कियांँ सुरक्षित गर्भपात तक पहुंँच पर कुछ प्रतिबंधों वाले देशों और क्षेत्रों में रहती हैं।

Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthlyचुनौतियांँ

  • COVID-19 महामारी और उसके बाद हिंसक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों के खिलाफ प्रतिक्रिया जैसी वैश्विक चुनौतियाँ लैंगिक असमानताओं को और बढ़ा रही हैं।
  • यूक्रेन पर आक्रमण और युद्ध, विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों के बीच खाद्य सुरक्षा और भी बदतर होती जा रही है।
  • दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अभी भी कानूनी प्रणालियाँ सभी क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों की समान सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती हैं जैसे कि विवाह और परिवार में महिलाओं के अधिकार को सीमित करना, काम पर असमान वेतन एवं लाभ तथा भूमि के स्वामित्व व नियंत्रण के असमान अधिकार आदि और दुर्भाग्य से यह आने वाली पीढ़ियों को सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह

  • आँकड़ों से पता चलता है कि आय, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य में वैश्विक संकट से उनका जीवन बदतर हो गया है। हम इस प्रवृत्ति को ठीक करने में जितना अधिक समय लेंगे, उतना ही हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
  • लैंगिक समानता सभी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नींव है और यह बेहतर निर्माण के केंद्र में होना चाहिये।
  • व्यापक वैश्विक संकट SDG की उपलब्धि को संकट में डाल रहे हैं, दुनिया के सबसे कमज़ोर जनसंख्या समूहों, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों में असमान रूप से प्रभावित हुए हैं।
  • लैंगिक समानता एजेंडे में सहयोग, साझेदारी और निवेश, जिसमें वैश्विक एवं राष्ट्रीय वित्त पोषण में वृद्धि शामिल है, पाठ्यक्रम को सही करने तथा लैंगिक समानता को पटरी पर लाने के लिये आवश्यक है।
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